सोमवार, 22 फ़रवरी 2010

किसकी वफादारी में ताकत लगाए कांग्रेसी

कांग्रेस में निष्ठाओं का संकट है। ऐसा नहीं कि बहुत सारे नेताओं का कांग्रेस से मोहभंग हो चुका है और वे पार्टी से एक साथ निकलने या उसका विभाजन करने की योजना बना रहे है मगर असली सवाल यह है कि जिस गति से राहुल गांधी आगे बढ़ रहे है और तमाम निषेधों के बावजूद उन्हें पार्टी के युवराज के तौर पर स्वीकार कर लिया गया है, कांग्रेसियों के सामने संकट यह है कि वे किसकी वफादारी में अपनी ताकत लगाए।

राहुल गांधी से रिश्ता नहीं बना पाने वाले कांग्रेसी हताश है। उन्हाेंने अब यह आरोप लगाना भी शुरू कर दिया है कि राहुल गांधी भावी प्रधानमंत्री बनने के चक्कर में कांग्रेस की बजाय राहुल ब्रिगेड नाम का संगठन चला रहे है। मगर इनमें से ज्यादातर नेता ऐसे हैं जिनका जनाधार या तो है ही नहीं या फिर बहुत सीमित हैं।

यह तो सब जानते है कि पार्टी में अंतिम फैसला कांग्रेस अध्यक्ष यानी राजमाता सोनिया गांधी का होता है। पिछले चुनाव में राहुल गांधी ने युवाओं के लिए लोकसभा के लिए जितने टिकट मांगे थे वे भी नहीं मिले मगर राहुल के कहने पर कई युवा या अर्ध युवा मंत्री बना दिए गए। राहुल और सोनिया एक साथ मिल कर जो रणनीति बना रहे हैं उससे कांग्रेस के कई नेताओं को अपना भविष्य खतरे में दिखाई पड़ने लगा है।

जब राहुल गांधी पार्टी के महासचिव बने थे तो बहुत से कांग्रेसियों को लगा था कि कांग्रेस के तंत्र में बने रहने और ज्यादा मजबूत हो कर बने रहने के लिए राहुल गांधी के साथ काम करना उपयोगी होगा। ये नेता लगातार राहुल गांधी के चक्कर लगाने लगे। मगर राहुल गांधी राजीव गांधी की शैली में अपनी एकांत की और एक हद तक स्वायत्त राजनीति करना चाहते हैं। यहां तक कि उन्होंने अपने मित्रों और कई तकनीकी जानकारी रखने वाले लोगों को मिला कर अपना एक अलग सचिवालय बना लिया है जो उनके दौरे भी तय करता है और उनसे मुलाकात के लिए लोगों को समय भी देता है।

इतना ही नहीं, राहुल गांधी के फैसलों में भी इस सचिवालय का पर्याप्त दखल होता है। राहुल गांधी के इस सचिवालय का पार्टी के मुख्यालय 24 अकबर रोड से कोई सीधा संबंध नहीं है। दरअसल राहुल गांधी पार्टी मुख्यालय जाते भी बहुत कम है। उनके साथ कांग्रेस के जो सचिव सहायता के लिए जोड़े गए हैं उनसे भी राहुल ने साफ कह दिया है कि वे स्वतंत्र रूप से काम करे और जरूरत पड़ने पर उनसे बातचीत की जाएगी। जितेंद्र सिंह और मीनाक्षी नटराजन राहुल गांधी के साथ जुड़े है और उन्हें पार्टी में खास माना जाता है। मगर इनसे भी ज्यादा ताकतवर कनिष्क सिंह हैं जो राहुल गांधी के सबसे खास सलाहकार माने जाते हैं और पार्टी के किसी भी महासचिव से ज्यादा ताकतवर भी हैं।

दिग्विजय सिंह आज की तारीख में कांग्रेस के सबसे ताकतवर महासचिव हैं। वे खुद राजनैतिक तौर पर कम प्रतिभाशाली नहीं हैं लेकिन कांग्रेस की कलाकाट राजनीति में उनकी ताकत का राज यह है कि वे राहुल गांधी के साथ मिल कर काम कर रहे हैं और जहां राहुल को जमीनी राजनीति समझानी होती है, समझाते हैं।

दिग्विजय सिंह से आतंकित कांग्रेसियों ने उनके हाल के आजमगढ़ दौरे को ले कर बहुत बवाल मचाया था और कुछ ने तो यह राय भी जाहिर कर दी थी कि दिग्विजय सिंह का यह कदम सांप्रदायिक हैं और इसीलिए उन्हें कम से कम महासचिव पद से हटा दिया जाना चाहिए। दिग्विजय सिंह का कसूर यह बताया जा रहा था कि उन्होंने आजमगढ़ जा कर दिल्ली के बाटला हाउस के अभियुक्तों से गहरी दोस्ती कर ली थी और उनके परिवारों से सहानुभूति जाहिर की थी।

मगर दिग्विजय सिंह की शक्ति का स्रोत सिर्फ राहुल गांधी नहीं है। वे मध्य प्रदेश के लगातार दो बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं और जूझने की राजनीति उन्हें आती है। अमर सिंह जैसे वाचाल नेता को कई मौको पर उन्होने सिर्फ हंस कर कहे गए एक या दो सारगर्भित वाक्याें के जरिए खामोश कर दिया था। दिग्विजय सिंह की खासियत यह है कि वे मंत्री नहीं हैं इसलिए पार्टी के लिए उनके पास पूरा वक्त है।

युवा पीढ़ी में जितेंद्र सिंह, जितीन प्रसाद, आरपीएन सिंह, दीपेंद्र हूड्डा, सचिन पायलट, रवनीत सिंह, मीनाक्षी नटराजन और अशोक तवर तो राहुल की टीम में हैं ही, जयराम रमेश, कपिल सिब्बल और आनंद शर्मा ने भी वहां जगह बना ली है। सोनिया गांधी के सबसे करीबी माने जाने वाले और उनके राजनैतिक सचिव अहमद पटेल के अलावा प्रणब मुखर्जी, वीरप्पा मोइली और एके एंटनी से राहुल गांधी खुद सलाह लेने के लिए पहुंचते हैं। कम लोग जानते हैं कि राहुल गांधी हाशिए पर बताए जा रहे अर्जुन सिंह के भी लगातार निकट संकर्प में भी है।

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