मंगलवार, 23 फ़रवरी 2010

अशोक शर्मा को बचाने की कवायद ?

स्वास्थ्य विभाग में करोड़ों का गोलमाल

स्वास्थ्य विभाग में फिर करोड़ों का गोलमाल हुआ है. और इस बार सभी आरोप वर्त्तमान स्वास्थ्य संचालक डॉ. अशोक शर्मा पर लगाये जा रहे हैं. इन घोटालों की शिकायत लोकायुक्त में भी पहुँच चुकी है. और जांच भी चल रही है. डॉ. अशोक शर्मा पर आरोप है कि उन्होंने विज्ञापन प्रसारण, बैनर मुद्रण, विज्ञापन निर्माण, पल्स पोलियो अभियान, तथा दवा खरीदी में जमकर भ्रष्टाचार किया है. यह भ्रष्टाचार उचित मूल्य से अधिक कीमत पर आवश्यकता से अधिक खरीदी कर किया गया है. साथ ही इस खरीदी में क्रय नियमों की भी अनदेखी की गई है. ताकि उन फर्मो को भी सीधा लाभ पहुंचाया जा सके जिनसे दवा, उपकरण तथा अन्य सामग्री खरीदी जानी थी. हालाकि संयुक्त संचालक एवं प्रभारी संचालक स्वास्थ्य के दो वर्ष के कार्यकाल के भ्रष्टाचार के सम्बन्ध में संचालनालय कोष तथा लेखा के द्वारा अपनी अंकेक्षण रिपोर्ट प्रस्तुत करने के बाद भी डॉ. अशोक शर्मा के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की जा रही है. खबरें तो यह भी हैं कि डॉ. अशोक शर्मा को बचाने के लिए विभाग के अन्य अधिकारीयों ने रिपोर्ट गायब करवा दी है.
आइएएस अरविन्द जोशी और उनकी पत्नी टीनू जोशी के यहाँ आयकर विभाग के छापे के बाद करोड़ों रुपये की बेनामी सम्पत्ती जाप्त की गई थी. छापे की कार्यवाही में ३००० करोड रुपये नकद जाप्त किये गए. आयकर विभाग को इन नोटों को गिनने के लिए मशीन तक लगानी पडी थी. और अभी जहां एक और इस मामले में जांच अभी चल ही रही है. उधर स्वास्थ्य विभाग में एक और घोटाला उजागर हुआ है. और स्वास्थ्य संचालक डॉ. अशोक शर्मा संदेह के घेरे में हैं. इससे पूर्व भी स्वास्थ्य विभाग में करोड़ों का घपला हुआ था. उस वक्त स्वास्थ्य संचालक डॉ. योगीराज शर्मा थे. जिन्हें अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्त कर दिया था. हालाकिं उनकी बर्ख्स्तागी के बाद कोर्ट से उन्होंने अपनी नियुक्ति वापस ले ली थी. लेकिन तत्कालीन स्वास्थ्य संचालक डॉ. योगीराज शर्मा इन दिनों फिर सुर्ख़ियों में है. वह इसीलिये कि पिछले घोटाले की जांच के दौरान उन्हें फिर से निलंबित कर दिया गया है. उनके निलंबन के पीछे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की भ्रष्टाचार के खिलाफ छेड़ी गई मुहिम माना जा रहा है. लेकिन वर्त्तमान स्वास्थ्य संचालक डॉ अशोक शर्मा के मामले में सरकार की चुप्पी पर भी कई सवालिया निशान लग रहे हैं?

कहाँ कहाँ घपला :-

संचालनालय कोष एवम लेखा के अंकेक्षण रिपोर्ट के मुताबिक ०१.०१.२००४ से २८.०२.२००५ तक राष्ट्रीय पल्स पोलियो टीकाकरण अभियान के अंतर्गत ४५ जिलों को ३,५३,२२,०४० रूपये आरसीएच के माध्यम से उपलब्ध करवाए गए. जो कि सम्बंधित जिलों के सीएमएचओ द्वारा व्यय की जानी थी. तथा संबधित व्यय का उपयोगिता प्रमाण पत्र लेना चाहिए था. लेकिन ४५ जिलों में कुल ३,५३,२२,०४० रु में से २,६५,८५,६९० रु खर्च हुए तथा ७,४६,६५९ रुपये संचालनालय को वापस प्राप्त हुए लेकिन संचालनालय ने सीएमएचओ से यह नहीं पूछा कि कितनी राशि कहाँ व्यय हुई.

कार्यालय के अभिलेखों के परिक्षण में पाया गया कि पल्स पोलियो अभियान के विज्ञापन प्रसारण आल इंडिया रेडियो में स्मृति फिल्म्स भोपाल से कराये गए. जिसके लिए कोई टेंडर प्रक्रिया नहीं की गई. जबकि स्मृति फिल्म्स भोपाल की दरों को क्रय समिति ने अनुमोदित नहीं किया था. साथ ही विज्ञापन प्रसारण देय राशि का सत्यापन भी नहीं किया गया. अंकेक्षण रिपोर्ट के मुताबिक विज्ञापन प्रसारण में लगभग २२,८८,२८६ रु अनियमित खर्च होना पाया गया है. इसके अलावा दूरदर्शन पर विज्ञापन प्रसारण के लिए प्रतिदिन ७५ प्रसारण का आदेश दिया गया था लेकिन प्रतिदिन ४५० सेकेण्ड का भुगतान किया गया. साथ ही कुल ८१० सेकेण्ड का प्रसारण किया जाना था लेकिन भुगतान ३३२० सेकेण्ड का किया गया. इस प्रकार १३,२८००० रुपये का भुगतान बिना कार्य के किया गया. ऑडियो केसेट्स निर्माण में २,२०,४०० का ज़्यादा भुगतान करते हुए एडजस्टमेंट कर दिया गया. केबल नेटवर्क पर ८,२०,००० का फर्जी भुगतान किया गया. होर्डिंग की न्यूनतम दरें २८७५ रु प्रतिमाह निर्धारित थीं लेकिन २९१७ रु प्रतिमाह की दर पर होर्डिंग लगाने के आदेश देकर १२,९२००० रुपये के वारे न्यारे कर दिए गए.

राष्ट्रीय पल्स पोलियो टीकाकरण अभियान के बैनर मुद्रण में १,३५,०६,८०० रुपये अनियमित व्यय किये गए. अंकेक्षण रिपोर्ट के मुताबिक ५०००० रुपये के बैनर जिलों में बांटे जाने के आदेश थे. लेकिन ५७६२० रु के बैनर बांटे गए यानि ७६२० रु अधिक काटे गए. इतना ही नहीं बैनर का मुद्रण मेसर्स विनायक क्रियेशन भोपाल से बिना टेंडर जारी किये ही करवा लिया गया.

संचालनालय कोष एवम लेखा के अंकेक्षण रिपोर्ट में दवा एवम अन्य सामग्री खरीदी में १० करोड रुपये बिना अनुमोदन कर सीधे भुगतान किया गया. साथ ही महामारी के नाम पर ४ करोड रु का घोटाला भी किया गया. महामारी के नाम पर लगभग ४ करोड रु की फिनाइल और ब्लीचिंग पाउडर खरीद ली गई. खरीदी में क्रय समिति का अनुमोदन लिया गया और न ही क्रय समिति से आवश्यकता का आंकलन कराया गया. इसके स्थान पर संचालक स्वास्थ्य सेवायें डॉ. अशोक शर्मा ने खुद ही आवश्यकता का आंकलन कर खरीदी कर ली. जो कि नियम विरुद्ध है. फिनाइल खरीदी में जमकर घोटाला किया गया है, इसका सीधा अंदाज़ा इसी बात से ही लगाया जा सकता है कि डी.जी.एच.एस. भारत शासन द्वारा जारी निर्देशों में महामारी में लगने वाली दवाइयों की सूची में फिनाइल शामिल नहीं है फिर कैसे महामारी के नाम पर फिनाइल खरीद ली ? यह एक अहम सवाल है.

बहरहाल आये दिन स्वास्थ्य विभाग में नए नए घोटाले सामने आते हैं. और सरकार मूक दर्शक बनी देखती रहती हैं. मामला जांच की पेचीदिगियों में उलझ जाता है. और कुछ समय बाद दोषी दोषमुक्त हो जाता है. अपुष्ट सूत्रों की माने तो स्वास्थ्य विभाग के संचालक के पास लगभग २०० करोड रु. की बेनामी संपत्ति है. जो कई सवालों को जन्म देता है. हालाकि स्वास्थ्य विभाग समेत अलग अलग विभागों में हो रहे घोटालों की गूँज विधानसभा में भी समय समय पर उठती रही है. लेकिन मध्यप्रदेश सरकार द्वारा भ्रष्टाचार जैसे संगीन मामलों में बिहार सरकार से सीख लेकर कोई कडा क़ानून बनाकर भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के कोई प्रयास न करना भी कई सवालों को जन्म देता है. समय रहते यदि सख्त से सख्त कार्यवाही नहीं की गई तो पूर्व स्वास्थ्य संचालक डॉ. योगीराज शर्मा की तरह वर्त्तमान स्वास्थ्य संचालक डॉ. अशोक शर्मा का मामला भी काफी बड़े स्तर तक जा सकता है. इस मामले में उनके साथ कई बड़ी मछलियाँ भी इस घोटाले में शामिल होंगी इस संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता. आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि जांच के बाद दोषी पाए जाने पर स्वास्थ्य संचालक के खिलाफ क्या कार्यवाही होती है ?


क्या सरकार करेगी डॉ अशोक शर्मा का निलंबन ?

सूत्रों कि माने तो आयकर विभाग ने आय ए एस राजेश राजोरा व डॉ अशोक शर्मा के बारे में एक रिपोर्ट राज्य शासन को भेजी है जिसमें छापे के दौरान इन अधिकारीयों से क्या संपत्ति बरामद हुई है इसका खुलासा होगा रिपोर्ट के आधार पर राज्य शासन आगे की कार्यवाही को अंजाम दे सकता है. स्वास्थ्य विभाग में ऐसी कई बड़ी मछलियाँ हैं जिन पर अनुशासनात्मक कार्यवाही की तलवार लटक रही है ? बड़ा सवाल यह भी है कि किस नेता या अधिकारी की शह पर इन पर कार्यवाही नहीं की जा सकी?

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