शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2010

मूर्तियों के प्रदेश में मौत मांगते किसान

उत्तर प्रदेश में एक तरफ मुख्यमंत्री मायावती ने पत्थर की मूर्तियां लगाने में लाखों करोड़ों रुपए पानी की तरह बहा दिया है वहीं प्रदेश के किसान सरकार की बेरुखी से मौत मांगते फिर रहे हैं। वैसे तो प्रदेश में सैकड़ों किसान बेहाल हैं लेकिन यह एक ऐसे किसान की कहानी है जो सोलह साल से भू माफियाओं से अपनी चार एकड़ जमीन को बचाने के लिए सत्ता से संघर्ष कर रहा है और अब वह थक-हार कर आत्महत्या करना चाहता है। लंबे संघर्ष और कोर्ट कचहरी के चक्कर ने न केवल गरीब चंदन सिंह बंजारा की कमर तोड़ दी है बल्कि उसके ऊपर हजारों का कर्ज भी लाद दिया है। 11 लोगों का परिवार चलाना उसके लिए अब मुश्किल हो गया है। उपर से अधिकारियों ने उसे एक लाख रूपये का ट्यूबेल के बिजली का बिल थमा दिया है। लिहाजा, चंदन सिंह अब दरबदर ठोकरें खाने की बजाए अपनी इहलीला ही समाप्त कर देना चाहता है। लेकिन आत्महत्या करना यहां कानूनन जुर्म है। चंदन सिंह बंजारा अधिकारियों के सामने कई बार आत्महत्या का प्रयास कर चुका है। लेकिन हर बार लोगों ने उसे बचा लिया। एक बार जिला मजिस्ट्रेट के सामने आत्महत्या के करने के प्रयास में चंदन सिंह को 14 दिन हवालात में भी बिताने पड़े। जब चंदन ने हवालात से बाहर आने से इनकार कर दिया (चंदन का कहना था कि हवालात में उसे रोटी मिल रही है घर में भूखा रहना पड़ता है) तो पुलिस उसे जबरन गांव छोड़ गई। लिहाजा, इस बार वह राष्ट्रपति से मय परिवार सामूहिक आत्महत्या की इजाजत देने की गुहार लगा रहा है। उधर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव कहते हैं कि 'यह तो एक उदाहरण भर है। दलितों के नाम पर पार्टी बनाने और उन्हीं के वोट से सत्ता सुख भोग रही बहनजी अब दलितों को भूल गई हैं।Ó वैसे देखा जाए तो मुलायम सिंह यादव की भी कथनी-करनी अगर सही रहती तो यह हालात पैदा नहीं होते।पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरपुर जिले के कैराना तहसील याहियापुर गांव के रहने वाले अनुसूचित जनजाति के साठ वर्षीय चंदन सिंह बंजारा के जीवन में 20 साल पहले एक सरकारी घोषणा ने जहर घोल दिया। किसानों के लिए लाभदायी इस घोषणा ने चंदन सिंह को लाभ पहुंचाने की बजाए मौत को गले लगाने के लिए विवश कर दिया है। सरकारी अमले में बैठे भ्रष्ट अधिकारियों ने धोखे से चंदन सिंह बंजारा की जमीन को भूमाफियाओं को बेच दिया। बात सन 1985 की है, ये दिन चंदन सिंह की खुशहाली के दिन थे। तब मेहनतकश इस किसान ने अपने खेतों में ट्यूबेल लगवाने के लिए सरकार से 10 हजार रुपए का कर्ज लिए थे। पांच सालों में उसने कर्ज के करीब 5,700 रुपये वापस कर दिए। इसी दौरान जनता दल की वीपी सिंह सरकार ने किसानों के 10 हजार रुपये तक के कर्ज माफ करने की घोषणा की। इस घोषणा से चंदन सिंह फूले नहीं समाए। चंदन सिंह बंजारा कहते हैं, ''तब एक दिन कुछ सरकारी कर्मचारी मेरे घर आए और बताया कि तुम्हारा कर्जा माफ हो जाएगा, लेकिन इसके लिए तुम्हें हमें दो हजार रुपये देने पड़ेंगे।ÓÓ चंदन सिंह बंजारा के तब इतने पैसे नहीं थे। एक बार उन्होंने सोचा की साहूकार से कर्ज लेकर वह कर्मचारियों को रिश्वत दे दें, लेकिन फिर उन्हें लगा कि जब सरकार ने घोषणा कर दी है तो जब सबका कर्ज माफ होगा तो उनका भी होगा। लेकिन चंदन सिंह ने गलत सोचा था। रिश्वत के भूखे सरकारी बैंक के कारिंदों ने चंदन सिंह का नाम कर्ज माफी की सूची में शामिल नहीं किया। लेकिन इसके बाद जो कुछ हुआ उसने चंदन सिंह की कमर तोड़ दी। फरवरी, 1992 में उन्हें तहसीलदार के यहां से एक नोटिस मिलता है तो उनके पांव के नीचे से जमीन खिसक जाती है। यह कर्ज की रिकबरी का आदेश था। इस रिकबरी आदेश के मुताबिक चंदन सिंह की बकाया कर्ज राशि मय ब्याज सहित 12,384 रूपये हो चुकी थी और इसे फौरन सरकारी खजाने में जमा करने का आदेश था। चंदन सिंह के पास इतने पैसे नहीं थे। लिहाजा, कर्ज अदायगी न कर पाने के बाद पुलिस चंदन सिंह को पकड़ कर थाने ले गई और उन्हें 14 दिन तक हिरासत में रखा। अंगूठाटेक चंदन सिंह बंजारा भोलेपन में कहते हैं कि ''मैं पढ़ा लिखा नहीं हूं, मुझे लगा कि जब मुझे जेल हो गई तो अब मेरा कर्ज माफ हो गया और पैसा नहीं देना पड़ेगा। इसके बाद मुझे कभी रिकबरी का नोटिस भी नहीं आया।ÓÓ इस घटना के करीब तीन साल बाद एक दिन चंदन सिंह बंजारा की जमीन पर कब्जा करने कुछ लोग आते है और पता चलता है कि सरकार ने कर्ज अदायगी न कर पाने के एवज में उनकी 21 बीघे जमीन को 19 जुलाई, 1994 को हरबीर सिंह को नीलाम कर दिया है। हैरान परेशान चंदन सिंह भारतीय किसान यूनियन के नेताओं से संपर्क करते हैं। यूनियन और गांव के लोगों ने मिल कर फिलहाल तब जमीन पर कब्जा नहीं होने दिया। इसके पीछे किसानों की एक जुटता थी जब जमीन मालिक चंदन से कब्जा लेते आता गांव और यूनियन के लोग एकजुट होकर उसे गांव से भगा देते। यूनियन के नेताओं की तहकीकात से इस बात का खुलासा हुआ की कैसे तहसीलदार और पटवारी की मिलीभगत से चंदन सिंह की जमीन को गुपचुप तरीके बेच दिया गया। इस मामले को लेकर आंदोलन चलाने वाले भारतीय किसान यूनियन के प्रदेश उपाध्यक्ष चौधरी देश पाल सिंह कहते हैं, ''कर्ज अदायगी न कर पाने पर सरकार जब किसी की जमीन नीलाम करती है तो इसके बारे में संबंधित व्यक्ति के दरवाजे पर न केवल नोटिस चिपकाया जाता है बल्कि इस बारे में गांव में मुनादी कराई जाती है और अखबारों में इश्तहार भी दिया जाता है। लेकिन चंदन के मामले में ऐसा कुछ भी नहीं किया गया। चंदन की 21 बीघे यानी करीब चार एकड़ जमीन को महज 90 हजार रूपये में नीलाम कर दिया गया। जबकि उस समय इस जमीन का बाजार भाव 15 लाख रूपये से कहीं ज्यादा था। इस समय तो इस जमीन की कीमत करीब 50 लाख है.ÓÓन्याय की मांग को लेकर चंदन सिंह बंजारा पिछले 10 सालों में दर्जनों बार तहसीलदार से लेकर एसडीएम और डीएम के सामने धरना दे चुके हैं। कई बार तो आत्महत्या का भी प्रयास कर चुके हैं। मामले की जांच भी हुए। सिटी मजिस्ट्रेट ने अपनी जांच में साफ पाया कि तहसील अधिकारियों अधिकारियों ने चंदन सिंह की बिना जानकारी के और नियम-कानूनों की धजिज्यां उड़ाते हुए उसकी जमीन को सस्ते में नीलाम कर दिया। सिटी मजिस्ट्रेट की जांच रिपोर्ट और दूसरे ऐसे कई दस्तावेज मौजूद है जिससे साबित होता है कि है तहसील अधिकारियों और भू माफियाओं की सांठगांठ ने चंदन सिंह के साथ धोखाधड़ी कर जमीन को नीलाम करवा दिया। जांच रिपोर्ट में साफ लिखा है, ''वसूली मांग पत्र में अंतर्निहित धनराशि 12,384.50 रूपये के सापेक्ष निलाम की गई भूमि का सर्किल मूल्य 1,60,080 रूपये है। इतनी छोटी धनराशि के सापेक्ष इतने बड़े भूखंड को नीलाम किया जाना संदेह की स्थित पैदा करता है। इस छोटी धनराशि की वसूली कुर्क शुदा भूमि पर लगी आवर्ती फसलों की नीलामी से भी की जा सकती थी। सिटी मजिस्ट्रेट की जांच के बाद साफ हो गया कि चंदन सिंह के साथ नाइंसाफी हुई है। इस जांच रिपोर्ट के आधार पर कमिश्नर ने एक आदेश जारी किया कि कर्ज की रकम मय ब्याज सहित जितनी बनती है उसका एक माह में भुगतान कर चंदन सिंह अपनी जमीन को वापस पा सकता है। भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत कहते हैं, ''तत्कालीन कमिश्नर का यह आदेश भी तर्क संगत नहीं था। होना यह चाहिए था कि दोषी अधिकारियों को सजा दी जाती और चंदन सिहं को उसकी जमीन का मालिकाना हक बिना किसी हर्जाने के वापस कर दिया जाता। लेकिन सरकार ने गरीब और निर्दोष चंदन सिंह से कर्ज की राशि 8,464 रूपये के एवज में करीब 60,000 रूपये वसूले। जबकि कर्ज की यह राशि भी वीपी सिंह सरकार ने माफ कर दिया था।ÓÓ वे सवाल करते हुए कहते हैं, ''उत्तर प्रदेश में दलितों की सरकार है। अगर मायावती के राज में अनुसूचित जनजाति के चंदन सिंह बंजारा को न्याय नहीं मिलेगा तो कब मिलेगा। दोषी अधिकारियों को तो जेल होनी चाहिए लेकिन सजा दिलाने की बजाए अधिकारी उन्हें बचाने में लगे हैं। ÓÓ यह जानते हुए कि कर्ज की मय ब्याज सहित रकम करीब 60 हजार रूपये का फौरन भुगतान करना चंदन सिंह के बस की बात नहीं है। मजबूरन कर्ज लेकर सरकार को अदा करने वाले चंदन सिंह के मित्र और मददगार योगेंद्र सिंह कहते हैं, ''मैने अपनी जमानत पर प्रति माह पांच रूपये सैकडे की दर से शहर के एक व्यापारी से चंदन सिंह को 50,000 रूपये कर्ज दिलवाया है। रकम भरने के बाद भी अधिकारी जमीन चंदन सिंह के नाम करने में हिल्ला हवाली कर रहे हैं। लिहाजा, न्याय की आस छोड़ झुके चंदन अब हुक्करानों के आगे गिड़गिड़ाने की बजाए, अपना जीवन ही समाप्त कर लेना चाहते हैं।

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