शुक्रवार, 14 फ़रवरी 2014

पुलिस सड़क पर नहीं होती, इसलिए बढ़ती है बदमाशों की हिम्मत

भोपाल। बाबूलाल गौर जब से गृहमंत्री बने हैं, उनका अंदाज कुछ जुदा-जुदा नजर आ रहा है। आजकल वे पूरी तरह फिट नजर आ रहे हैं और जहां भी जाते हैं, पैंट-शर्ट पहनकर तनकर चलते हैं। जब उनसे इसकी वजह पूछा जाता है, तो वे कहते हैं कि पुलिस में जो आ गया हूं। बुलडोजर मंत्री के रूप में विख्यात गौर इन दिनों मप्र पुलिस का कायाकल्प करने की दिशा में काम कर रहे हैं। इसके लिए उन्होंने केंद्र सरकार से 200 करोड़ रुपए की मांग की है। गृहमंत्री के तौर पर उनकी प्राथमिकताएं क्या होंगी और प्रदेश में अपराधों पर अंकुश लगाने के लिए विभाग की आगामी योजनाएं क्या होंगी, इन विषयों पर अग्निबाण ने गौर से चर्चा की, तो उन्होंने दावा किया की मप्र पुलिस को देश की सबसे बेहतर पुलिस बल बनाएंगे।
प्रदेश में अपराधों की रोकथाम के लिए क्या प्रयास किया जा रहा है?
< पुलिस की मौजूदगी सड़कों पर अधिक नजर आना चाहिए। आईपीएस अधिकारियों को गांवों में भ्रमण और रात्रि विश्राम करने को कहा गया है। मेरा मानना है कि पुलिस के अधिकारी-कर्मचारी अस्पताल के स्टाफ की तरह सेवा कार्य करें। टीआई से लेकर आरक्षक स्तर के पुलिसकर्मी थानों पर कम और मैदान में ज्यादा नजर आएं। पुलिस की सड़कों पर मौजूदगी नहीं होने से ही असामाजिक तत्वों के हौसले बुलंद होते हैं। पुलिस सड़कों पर होगी तो ट्रैफिक जाम, छेड़छाड़, चोरी, लूट जैसे मामलों पर अंकुश लग जाएगा। सरकार इस व्यवस्था को प्रदेशभर में लागू करने जा रही है। इसके साथ ही अमला बढ़ाने के लिए इस बार पांच हजार पुलिसकर्मियों की भर्ती की जाएगी। वहीं पुलिस को फिट रखने फिटनेस सेंटर खोलने की योजना बना रहे हैं। गौर ने स्वीकार किया कि प्रदेश में फिलहाल 1 लाख 5 हजार का पुलिस बल स्वीकृत है और राष्ट्रीय औसत के आधार पर 90 हजार पुलिसकर्मियों की आवश्यकता है। पिछले दस वर्षों में राज्य शासन ने 30 हजार पुलिसकर्मियों की भर्तियों की सहमति दी थी। 25 हजार की भर्ती हो चुकी है, जबकि 1993 से 2003 के बीच दस सालों में 8 हजार पुलिसकर्मी ही भर्ती हुए। पिछले वर्षों में 10 हजार 500 मकानों की स्वीकृति दी गई। ढाई हजार मकान बन भी चुके हैं।
पुलिस सुधार के लिए कई कमीशन बने, लेकिन स्थिति जस की तस क्यों है?
< प्रदेश की आमदनी कम है। हम केवल पुलिस के लिए ही बजट का बड़ा हिस्सा नहीं रख सकते, इसलिए हम धीरे-धीरे सुधार कर रहे हैं। पुलिस की मूलभूत सुविधाओं में भी इजाफा करने की तैयारी की जा रही है। हमारे यहां पुलिसकर्मियों के लिए पर्याप्त आवास उपलब्ध नहीं हैं। उनका आवास भत्ता भी कम है। निश्चित रूप से हमारे पुलिसकर्मी दयनीय स्थिति में रहते हैं। बजट में पुलिसकर्मियों के लिए आवास भत्ता बढ़ाने आदि का प्रावधान किया जाएगा। हालांकि कुछ राज्यों की तुलना में हमारी पुलिस अच्छी स्थिति में है। पुलिस बल के लिए दो सौ करोड़ रुपए मांगे थे, लेकिन केंद्र ने हमेशा की तरह पक्षपातपूर्ण रवैया अपना रखा है।
ट्रांसफर बोर्ड बनाने के बाद भी नेताओं की चिट्ठी पर तबादले क्यों हो रहे हैं?
< इस बारे में सुप्रीम कोर्ट और केंद्र सरकार की ओर से निर्देश मिले हैं। फिलहाल सभी जगह बल पर्याप्त नहीं है, इसलिए पूरे सुझाव अपनाना संभव नहीं, लेकिन फिर भी हम प्रयास कर रहे हैं कि ज्यादा से ज्यादा सुझावों को अपनाया जाए। और उस पर अमल किया जाए। प्रदेश की जेलों के सुधार के लिए क्या करेंगे?
< प्रदेश की जेलों में कड़ी सुरक्षा व्यवस्था और बंदी कल्याण पर विशेष ध्यान दिया जाएगा। हमने अधिकारियों को निर्देशित किया है कि बंदियों द्वारा उत्पादित वस्तुओं से होने वाली आय का एक हिस्सा उनके कल्याण पर खर्च किया जाए। जेलों में बंदियों द्वारा उत्पादित वस्तुओं से लगभग ढाई करोड़ की सालाना आय होती है। इस आय का एक हिस्सा बंदियों के कल्याण पर खर्च करने के संबंध में विभाग प्रस्ताव तैयार करेगा। साथ ही जेल प्रहरियों को पुलिस विभाग के समान विशेष वेतन एवं अवकाश की सुविधाएं प्राप्त हों। जेल में बंदियों को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में भी कारगर प्रयास होंगे। जेलों में नियुक्त प्रहरियों द्वारा बिना अवकाश के की जा रही सुरक्षा ड्यूटी को ध्यान में रखते हुए जरूरी है कि जेल प्रहरियों को भी पुलिस विभाग के समान वर्ष में एक माह का विशेष वेतन और अवकाश प्राप्त हो। इस संबंध में महानिदेशक जेल को प्रस्ताव तैयार करने को कहा है।
क्या राज्य सरकार मामूली अपराधों के केस वापस लेने जा रही है?
< वर्षों से कोर्ट में लंबित मामूली अपराधों से जुड़े केसों को राज्य सरकार वापस लेने जा रही है। कौन से अपराध मामूली हैं, किन केसों में पीडि़त पक्ष के साथ अन्याय की स्थिति नहीं बनेगी, ऐसे प्रकरणों की सूची तैयार करने के लिए हर जिले में कलेक्टर, एसपी और लोक अभियोजक की कमेटी बना दी गई है। मामूली केसों को कोर्ट से वापस लेने की प्रक्रिया मार्च माह से शुरू होगी। हर जिले में बनाई गई कमेटी को निर्देश दिए गए हैं कि इस माह केसों की छानबीन कर सूची तैयार कर ली जाए। महिलाओं और भ्रष्टाचार से संबंधित केस वापस नहीं होंगे। इसके अलावा गंभीर अपराधों पर अंकुश लगाने के लिए आदतन अपराधियों के खिलाफ कोर्ट में चल रहे केसों में जल्द फैसला कराने के प्रयास किए जाएंगे।
नक्सल प्रभावित जिलों के लिए क्या योजना है?
< हमने केंद्रीय गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे से मुलाकात करके प्रदेश के नक्सल प्रभावित दस जिलों की जानकारी देते हुए वहां सुरक्षा आदि के लिए 200 करोड़ रुपए मुहैया कराने की मांग की है। राज्य के नक्सल प्रभावित जिलों में तैनाती के लिए दो हेलीकॉप्टर केंद्रीय गृह मंत्री से उपलब्ध कराने का अनुरोध किया गया। नक्सली समस्या से जुड़े विभिन्न बिंदुओं पर विचार-विमर्श के लिए ही यह बैठक भोपाल में आयोजित करने का विचार किया गया, जिसमें नक्सल प्रभावित राज्यों छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और मप्र के वरिष्ठ अधिकारी शामिल होंगे।
यूपी-बिहार से आगे है हमारी पुुलिस
गौर ने कहा कि प्रदेश की पुलिस उत्तरप्रदेश और बिहार जैसे प्रदेशों से तो आगे है, लेकिन दक्षिण के राज्यों से काफी पीछे है। वहां तुरंत कार्रवाई होती है और पीडि़त को न्याय मिलता है। हालांकि वहां जनसंख्या कम और फोर्स भी अधिक है। उन्होंने विभिन्न सवालों के जवाब में बताया कि दुष्कर्म पीडि़ता से महिला पुलिस अधिकारी अथवा पुलिस ही पूछताछ करेगी। जनता और पुलिस के बीच दूरी मिटाने का काम पुलिस पर ही है। उन्होंने लंबित मामले भी जल्दी निपटाने के निर्देश दिए। गौर ने पुलिस थानों की कार्यप्रणाली पर असंतोष जाहिर करते हुए कहा कि थानों को अस्पताल की तरह होना चाहिए। जिस भी मर्ज का पीडि़त पहुंचे, उसे तुरंत राहत उपलब्ध करवाई जाए। जब मैं विधायक था तो लोग आकर कहते थे- थाने फोन कर दीजिए, ताकि रिपोर्ट लिख ली जाए। गृहमंत्री ने कहा कि दुष्कर्म पीडि़त महिलाओं के बयान अब महिला पुलिसकर्मी ही लेंगी। इसके लिए थानों में महिला कक्ष भी बनाए गए हैं।
राजनीतिक प्रकरण भी होंगे वापस
गृहमंत्री गौर ने प्रदेश सरकार ने विभिन्न न्यायालयों में लंबित करीब साढ़े पांच लाख मामले वापस लेने का निर्णय लिया है। चार सदस्यीय कमेटी दिसंबर-2007 तक के मामूली अपराधों की श्रेणी में आने वाले मामलों की छटनी कर उसे सरकार के पास भेज देगी। इससे न्यायालयों का बोझ 65 फीसदी तक कम हो जाएगा। गौर ने बताया कि वर्तमान में सभी न्यायालयों में 8 लाख 57 हजार 922 मामले लंबित हैं। इनमें से करीब 65 फीसदी (5 लाख 57 हजार 649) बहुत ही मामूली किस्म के हैं। इनके न तो फरियादियों का पता है और न ही आरोपियों का। उनकी तलाश में पुलिस और न्यायालय का काफी समय बर्बाद हो जाता है। इससे न्यायालय में लंबित मामलों की संख्या बढऩे से काम का बोझ अधिक हो गया है। यही कारण है कि पुलिस और न्यायालय गंभीर प्रकरणों पर भी ठीक से ध्यान नहीं दे पा रहे हैं। इसी को देखते हुए निर्णय लिया गया है कि 31 दिसंबर, 2007 से पहले के पुलिस एक्ट, जुआ एक्ट, नाप-तौल, मोटर व्हीकल्स और तीन साल से कम सजा वाले असंज्ञेय प्रकरणों को वापस लेने का निर्णय लिया गया है। ऐसे मामलों की पहचान के लिए चार सदस्यीय टीम (जिला न्यायाधीश, जिला कलेक्टर, पुलिस अधीक्षक और अभियोजन अधिकारी) बनाई गई है। यह अपने-अपने जिलों के ऐसे मामलों की छटनी कर उसे सरकार के पास भेज देगी। सरकार जांच के बाद इन पर न्यायालय से राय लेकर उनकी अनुमति से इन्हें वापस ले लेगी। गौर ने बताया कि पुलिस राजनीतिक मामले भी वापस लेने पर निर्णय ले रही है। लेकिन जिन मामलों में तोडफ़ोड़ और शासकीय तथा निजी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया गया है, उन्हें इसमें राहत नहीं दी जाएगी।

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