गुरुवार, 13 फ़रवरी 2014

5000 गांवों के लोगों ने नहीं देखी बिजली

लो फिर आ गए चुनाव , पर बिजली नहीं आई
-2003 और 2008 विधानसभा चुनावों में यह बड़ा मुद्दा भी बनी
भोपाल। एक तरफ भाजपा सरकार प्रदेश में 24 घंटे बिजली पहुंचाने का बखान गाती फिर रही है,वही दूसरी तरफ आलम यह है कि 55,392 गांवों वाले मध्य प्रदेश के 5,000 गांव ऐसे हैं जहां आज भी बिजली नहीं है। इसके अलावा करीब 3,000 गांव ऐसे हैं जहां बमुश्किल दस फीसदी घरों में बिजली पहुंचती है। यह तथ्य मध्य प्रदेश योजना आयोग की एक रिपोर्ट में सामने आई है। विकास के लिए पर्याप्त बिजली अनिवार्य शर्त है। इसीलिए देश और प्रदेश की राजनीति में बिजली को लेकर हमेशा से हलचल रही है। 2003 और 2008 विधानसभा चुनावों में यह बड़ा मुद्दा भी बनी। और अब, तीसरे चुनाव में यदि स्थिति सुधरी है तो श्रेय को लेकर राजनीति हो रही है। उधर लोगों का कहना है कि विधानसभा चुनाव तो फिर आ गए लेकिन बिजली नहीं आई। रिपोर्ट के मुताबिक सबसे खराब स्थिति पन्ना और सीधी जिले की है। इनके अलावा कुल 9 अन्य जिले रीवा, शहडोल, शिवपुरी, भिंड, सतना, गुना, विदिशा, झाबुआ और रायसेन के हजारों गांवों में बिजली नहीं पहुंची हैं। हालांकि भोपाल, हरदा, नीमच, इंदौर, शाजापुर, देवास, उज्जैन, सीहोर, मंदसौर, ग्वालियर और राजगढ़ जिलों के लगभग हर गांव में बिजली उपलब्ध है। अटल ज्योति योजना कितनी अटल विधानसभा 2013 का चुनावी बिगुल बज चुका है। स्वर्णिम मप्र की तस्वीर बताकर मतदाताओं को रिझाने की कोशिश हो रही है। इसी तस्वीर की एक झलक है अटल ज्योति योजना। 24 घंटे बिजली देने वाली यह योजना प्रदेशवासियों के लिए बड़ी राहत की उम्मीदें लेकर आई है। कहीं झूठ तो कही सच नजर आ रही ये योजना भविष्य में कितना अटल रहेंगी? यह सवाल भी अब उठने लगा हैं। असल में मप्र सरकार ने गुजरात मॉडल की नकल करके अटल ज्योति अभियान को शुरू किया है। भविष्य में भी 24 घंटे की सप्लाई लोगों को मिलती रहें इसके लिए मप्र सरकार ने गुजरात की तरह विद्युत उत्पादन बढ़ाने में अपनी अकल नहीं चलाई। सजग प्रकोष्ठ ग्वालियर के अध्यक्ष डॉ. प्रवीण अग्रवाल कहते हैं कि अटल ज्योति योजना अच्छी होती अगर इसे प्लानिंग और मॉनीटरिंग के साथ शुरू किया जाता। तब हमें इस योजना को अटल कह सकते थे। चुकि यह योजना शुरू हो चुकी है इसलिए इसे सफल बनाने के लिए बिजली कंपनी,पुलिस प्रशासन और जिला प्रशासन को संयुक्त रूप से और पूरी इच्छशक्ति के साथ काम करना होगा। 16 जून को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने डबरा से अटल ज्योति योजना का शुभारंभ किया था। अपने हाइड्रल पावर प्रोजेक्ट(पनबिजली परियोजना) और फ्यूचर सौदे की दम पर अटल ज्योति योजना को शुरू किया गया है। मप्र सरकार का दावा है कि अटल ज्योति योजना के तहत प्रदेश के 50 जिलों, 476 शहरों और 54903 गांवों में 24 घंटे बिजली की सप्लाई रहेगी। बिना किसी ठोस प्लानिंग के शुरू की गई इस योजना के दावे अभी से ही झूठे नजर आने लगे हैं। प्रदेश की भाजपा सरकार का दावा है कि उसने 24 घंटे बिजली देकर लोगों के जीवन में उजाला ला दिया है। उसने प्रदेश में न केवल बिजली उपलब्धता को वर्ष 2003 की तुलना में 7000 मेगावाट बढ़ाकर 10,000 के पार पहुंचाया, बल्कि हर घर को बिना किसी बाधा के बिजली दे रहे हैं। शिवराज सरकार की ये दलील विपक्षी पार्टी कांग्रेस सिरे से खारिज करती है। उसके दावे हैं कि प्रदेश में आए लगभग सभी पावर प्लांट की नींव तो दिग्विजय सरकार के नेतृत्व में ही रखी गई थी। उस समय 4500 मेगावाट के संयंत्रों की दिशा में हुए काम का फल शिवराज ने खाया है। इंदिरा सागर, ओंकारेश्वर, सरदार सरोवर के महत्व को समझ कर ही दिग्विजय सिंह ने इस दिशा में तेजी से काम किया था। केन्द्र की यूपीए सरकार ने भी प्रदेश को सेंट्रल सेक्टर से मिलने वाले बिजली शेयर में 1400 मेगावाट की बढ़ोत्तरी की है। केन्द्र सरकार की नई कोल नीति बनने के बाद मध्यप्रदेश में 22 कोल ब्लॉक्स का आवंटन किया गया। इसमें सीमेंट, इस्पात और बिजली के लिए अलग-अलग कंपनियों को मध्यप्रदेश सरकार की अनुशंसा पर आवंटन किया गया। मप्र माइनिंग कार्पोरेशन को व्यावसायिक उपयोग के लिए 7 कोल ब्लॉक आवंटित किए गए। ज्यादातर कोयला खदानें सिंगरौली जिलें में दी गईं। ये आवंटन जनवरी 2006 से जुलाई 2007 के बीच हुए। इसके अलावा बिजली बनाने के लिए निजी कंपनियों में रिलायंस, एस्सार, हिंडाल्को और पावर फाइनेंस कार्पोरेशन सासन को भी दिए गए। इनका निर्माण कार्य तेजी से चल रहा है। सूत्र बताते हैं कि मध्यप्रदेश माइनिंग कार्पोरेशन ने अपने कोटे के कुछ कोल ब्लॉक भोपाल और रीवा की तीन कंपनियों को दे दिए हैं। इसमें से अभी कुछ प्रोजेक्ट में बिजली उत्पादन की प्रक्रिया अंतिम चरण में है। सीधी, शहडोल और सिंगरौली जिले में चारों ओर कोल माइनिंग और पावर प्लांट लगाने की गति तेज है। वहां लोग विस्थापन की समस्या से भी जूझ रहे हैं। जो लोग विस्थापित हुए हैं, उन्हें बिजली नहीं मिल रही। कांग्रेस विधायक प्रद्युम्न सिंह तोमर कहते हैं कि अटल ज्योति योजना से 24 घंटे बिजली देने का मुख्यमंत्री का दावा झूठा है। अभी भी ग्वालियर समेत प्रदेश के 5000 से अधिक गांव अंधेरे में डूबे हैं। जबकि मध्यप्रदेश में यही आंकड़ा चौंकाने वाला है। सीएम की यह योजना सिर्फ चुनावी योजना है। पूर्व ऊर्जा मंत्री और कांग्रेस नेता एनपी प्रजापति कहते हैं कि इंदिरा सागर, सरदार सरोवर, ओंकारेश्वर, बाणसागर, गांधी सागर से बिजली उत्पादन की नींव हमने रखी थी। बिरसिंहपुर में 500 मेगावाट की इकाई के लिए काम शुरू किया था। एनटीपीसी के साथ विंध्याचल पावर प्रोजेक्ट के लिए काम किया। अमरकंटक, चचाई में नई यूनिटों के लिए स्वीकृति दी थी। वर्तमान में शिवराज सरकार केवल बिजली उपलब्ध करा रही है। केन्द्र सरकार के कोटे की बिजली को भी अपनी बताई जा रही है। पिछले पांच साल में 32 हजार करोड़ रुपये की बिजली खरीदी। इसमें से 14 हजार करोड़ रुपये की बिजली बिना टेंडर के खरीदी गई। कोयले का रोना रोने और उस पर घोटाले का आरोप लगाने वाली प्रदेश सरकार यदि चाहती तो उसे मिले 22 कोल ब्लॉक्स में से कुछ का उपयोग बिरसिंहपुर, सारणी और चचाई के पावर प्लांट के लिए कर सकती थी। कहां गई 20,000 करोड़ की बिजली नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह कहते हैं कि बिजली..बिजली का रट लगाते हुए भाजपा सरकार के 10 साल बीत गए लेकिन राज्य में बिजली संकट कम नहीं हुआ है, बल्कि पहले से ज्यादा गंभीर हुआ है। एक ओर तो बिजली संकट है, तो दूसरी ओर बिजली संकट दूर करने के नाम पर बिजली खरीद और आपूर्ति में भारी घोटाले हो रहे हैं। भाजपा सरकार ने प्रदेश में अब तक का सबसे बड़ा घोटाला बिजली खरीदी का किया है। 6 साल में 20 हजार करोड़ रुपए की बिजली खरीदी गई लेकिन यह कहां गई, कोई बताने वाला नहीं है। निजी बिजली कंपनी लैंको पावर ट्रेडिंग लिमिटेड गुडग़ांव ने प्रदेश की पावर ट्रेडिंग कंपनी को 83.63 करोड़ की चपत लगा दी। तीन साल पहले हुए गड़बड़झाले का खुलासा ऑडिट रिपोर्ट में हुआ है। बिजली देने से छग की ना हमारे पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ में बिजली का उत्पादन बड़ी मात्रा में होता हैं। हांलाकि इस उत्पादन में मप्र का भी हक है, लेकिन मप्र से अलग होने के बाद भुगतान नीति के चलते छत्तीसगढ़ से हमें सीधे बिजली नहीं मिलती। यही कारण है कि मप्र को पंजाब, हरियाणा जैसे दूसरे राज्यों और पॉवर कंपनियों से करीब 3000 मेगावाट बिजली खरीदनी पड़ रहीं हैं। कंपनीकरण के बाद हर साल बढ़ी दरें मप्र में विद्युत मण्डल का कंपनीकरण हुआ। इसके बाद से हर साल विद्युत नियामक आयोग ने बिजली की दरों मे इजाफा किया। आयोग और कंपनी मामूली वृद्धि बताते हैं। फैक्ट फाइल -मप्र में तीन वितरण कंपनियां हैं। इन पर मप्र पावर मैनेजमेंट कंपनी का होल्ड हैं। -मप्र में बिजली का उत्पादन करीब 4000 मैगावाट हैं। -6000 मैगावाट बिजली की जरूरत हैं। -अटल ज्योति योजना के बाद 1000 मैगावाट बिजली एक्स्ट्रा चाहिए। -कृषि कार्य के लिए बिजली की डिमांड करीब 1500 मैगावाट होगीं। तीनों कंपनियां करीब 11 हजार करोड़ के कर्ज में डूबी हैं। इसे घाटे से उबारने के लिए सरकार पहले से परेशान। अटल ज्योति से अब घाटा और भी बढ़ रहा है। ये हैं हमारे पावर प्रोजेक्ट हाईड्रल पावर- इंदिरा सागर, बाण सागर, सरदार सरोवर, ओंकारेश्वर, राणा प्रताप सागर,राजघाट, पेंच,चंबल, नाथा आदि। थर्मल पावर-वीरसिंहपुर, सारंणी, अमरकंटक, सिंगाजी व सीधी में दो प्रोजेक्ट। खुल रही पोल मप्र में ये प्लांट आए 20 साल में संजय गांधी थर्मल पावर प्लांट बिरसिंहपुर में 210 मेगावाट की नंबर एक यूनिट 1993 में, 210 मेगावाट की दो नंबर यूनिट वर्ष 94 में, 210 मेगावाट की तीन नंबर यूनिट वर्ष 99 में और 210 मेगावाट की चार नंबर यूनिट वर्ष 2000 में आई। इसी प्रोजेक्ट में 500 मेगावाट की यूनिट वर्ष 2008 में आई। अमरकंटक ताप विद्युत गृह चचाई में 210 मेगावाट की यूनिट वर्ष 2009 में आई। सतपुड़ा ताप विद्युत गृह सारणी में 250 मेगावाट की एक यूनिट 2012 में आई। इंदिरा सागर हाइड्रल पावर प्रोजेक्ट से 1000 मेगावाट बिजली 2004 से मिलना शुरू हुई। सरदार सरोवर हाइड्रल पावर प्रोजेक्ट (जिसकी क्षमता 1450 मेगावाट है) से 826.50 मेगावाट बिजली वर्ष 2005 से मिलना शुरू हुई। ओंकारेश्वर हाइड्रल पावर प्रोजेक्ट से 520 मेगावाट बिजली वर्ष 2008 से मिलना शुरू हुई। सिलपरा हाइड्रल पावर प्रोजेक्ट से 20 मेगावाट बिजली वर्ष 2002 में, देवलोन से 60 मेगावाट बिजली वर्ष 01-02 के बीच, झिन्ना से 20 मेगावाट बिजली वर्ष 2006 से, राजघाट से 45 मेगावाट बिजली वर्ष 1999 से, मणिखेड़ा से 60 मेगवाट बिजली 2006-2007 के बीच मिलना शुरू हुई। प्राइवेट सेक्टर में 90 मेगावाट के बीएल पावर नरसिंहपुर से 32 मेगावाट बिजली वर्ष 12 से, 500 मेगावाट के जेपी पावर बीना से 320 मेगावाट बिजली 2012 से मिलना शुरू हुई। प्रदेश सरकार की कंपनी मप्र विद्युत उत्पादन कंपनी जेनको की सिंगाजी ताप बिजली उत्पादन परियोजना से 600 मेगावाट की इकाई बिजली उत्पादन के लिए तैयार हो चुकी है। इसके अलावा सारणी में 250 मेगावाट की भी एक और यूनिट से बिजली उत्पादन के सारे परिक्षण हो चुके हैं। मप्र में बिजली उत्पादन की प्रगति वर्ष 1993 में बिजली उपलब्धता कुल बिजली 4837.66 मेगावाट जल विद्युत 724.66 मेगावाट ताप विद्युत 2757.50 मेगावाट केन्द्रीय शेयर 1355.8 मेगावाट वर्ष 2000 में बिजली उपलब्धता कुल बिजली 6322.55 मेगावाट जल विद्युत 867.16 मेगावाट ताप विद्युत 3387.50 मेगावाट केन्द्रीय शेयर 2067.89 मेगावाट वर्ष 2003 में बिजली उपलब्धता कुल बिजली 4707.19 मेगावाट जल विद्युत 822.17 मेगावाट ताप विद्युत 2147.50 मेगावाट केन्द्रीय शेयर 1682.52 मेगावाट बाहरी कंपनियों से एग्रीमेंट बेस बिजली 55 मेगावाट वर्ष 2013 में बिजली उपलब्धता कुल बिजली 10859.69 मेगावाट जल विद्युत 915.17 मेगावाट ताप विद्युत 3057.50 मेगावाट दूसरी कंपनियों से मप्र का समझौता 655 मेगावाट प्राइवेट बिजली उत्पादन 912 मेगावाट

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