गुरुवार, 13 फ़रवरी 2014

आप इफेक्ट के चक्कर में फंसी मप्र सरकार

5 माह में 500 करोड़ का करंट लगेगा कंपनियों को
1 करोड़ उपभोक्ता बिजली के झटके से बचे
भोपाल। 15,000 करोड़ रूपए के घाटे में चल रही बिजली कंपनियों को आगामी पांच में 500 करोड़ रूपए का फटका लगने वाला है। दरअसल,दिल्ली की आप सरकार ने बिजली की दरें जिस प्रकार से कम की है उसको लेकर अब हर प्रदेश में ऐसी ही मांग उठ रही है। कहीं बिजली की दरों को लेकर प्रदेश में बवाल न मच जाए और लोकसभा चुनाव के गणित कहीं उल्टे न पड़ जाए इसलिए प्रदेश सरकार ने अपने लिए गए निर्णय से चार कदम पीछे हटकर विद्युत नियामक आयोग के सामने यह कहा कि बिजली की दरे यथावत रखी जाए। इससे जून तक तीनों बिजली कंपनियों को करीब 500 करोड़ रूपए का घाटे का करंट लगने वाला है। हालांकि इससे प्रदेश के 1 करोड़ उपभोक्ताओं को कुछ महिनों के लिए राहत जरूर मिल गई है। इस साल नहीं बढ़ेंगी बिजली की दरें सरकार ने वित्तीय वर्ष 2014-15 में बिजली दरें न बढ़ाने का निर्णय लिया है। यही वजह है कि 21 जनवरी को नियामक आयोग को जो टैरिफ भेजा गया है उसमें बिजली दरों में कोई बदलाव नहीं किया गया। इसके पीछे बिजली कंपनी जो कारण बता रही हैं उसके अनुसार सासन पॉवर प्लांट से उन्हें सस्ती दर में 235 मेगावॉट बिजली मिल रही है। इसके अलावा आगामी कुछ महीनों में यहा 235 मेगावॉट के चार नए प्लांट शुरू होने जा रहे हैं। वहीं बिजली कंपनियों का कहना है कि उन्होंने लाइन लॉस काफी मात्रा में कम कर लिया और अन्य प्रदेशों को महंगी दरों पर बिजली बेचकर भी फायदा कमाया है। कंपनियों का कहना है कि वर्ष 2013-14 में उन्हें करीब 2000 हजार रुपए का घाटा हुआ है जो आगामी वित्तीय वर्ष में कम कर लिया जाएगा। इसी वजह से इस साल घरेलू या व्यवसायिक बिजली में बढ़ोत्तरी का प्रावधान नहीं किया गया। जबकि हकीकत यह है कि अगले कुछ माह में लोकसभा चुनाव होना है। यदि बिजली कंपनी बिजली की दरों में बढ़ोत्तरी करतीं तो यह चुनावी मुद्दा बन सकता था इस वजह से भी टैरिफ में कोई बदलाव नहीं किया गया।
हर यूनिट पर 1.34 रुपए मुनाफा फिर भी 2000 करोड़ का घाटा प्रदेश में बिजली बनाने के लिए हर यूनिट पर 3.56 रुपए खर्च होते हैं। उत्पादन में 2.56 रुपए और डिस्ट्रीब्यूशन व ट्रांसमिशन पर एक रुपए। लेकिन उपभोक्ताओं को ((100 यूनिट महीने की खपत)) पर एक यूनिट बिजली के लिए कंपनी को 4.90 रुपए चुकाने होते हैं। यानी हर यूनिट पर बिजली कंपनी हमसे 1.34 रुपए मुनाफा कमा रही है। इसके लिए उपभोक्ताओं से कई तरह के चार्ज भी वसूले जाते हैं। बावजुद इसके पिछले वित्तीय वर्ष में बिजली कंपनियों को करीब 2000 करोड़ का घाटा उठाना पड़ा। ऊर्जा सलाहकार डी. राधेकृष्णा कहते हैं कि तीनों ही कंपनियां शुरू से घाटे में हैं। कंपनियों के लगातार घाटे में बने रहने की मुख्य वजह इनकी वितरण हानियां और बिलिंग की समस्या है। तीनों कंपनियों के लिए मध्य प्रदेश नियामक आयोग ने, जो हानियों की दर तय की है, वे पूर्व क्षेत्र के लिए 24 फीसदी, पश्चिम क्षेत्र के लिए 22 फीसदी और मध्य क्षेत्र के लिए 26 फीसदी है। इन तीनों कंपनियों की वितरण हानियां इन दरों से तीन-चार फीसदी अधिक है। इसके अलावा बिल संकलन भी तीनों कंपनियों का 70-80 फीसदी के बीच में होता है। इसी के चलते कंपनियों का घाटा लगातार बना हुआ है। हालांकि नियामक आयोग लगातार टैरिफ में बढ़ोतरी कर रहा है। इसके अलावा ईधन के दामों में हुई बढ़ोतरी को हर तिमाही टैरिफ में शामिल करने की अनुमति भी कंपनियों को दी गई है। इसके बावजूद कंपनियों की स्थिति में जल्द ही कोई बड़ा बदलाव देखने नहीं मिलने वाला है। मध्य प्रदेश की वितरण कंपनियों की हानियों में सुधार बहुत धीमी गति से हो रहा है। इसके अलावा बिल संकलन के मामले में भी स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। यही वजह है कि घाटा लगातार बना हुआ है। तीनों कंपनियों की वितरण हानियां निर्धारित लक्ष्य के मुकाबले तीन-चार फीसदी ज्यादा है। देश में अन्य राज्यों की बिजली वितरण कंपनियों के समान ही मध्य प्रदेश की बिजली वितरण कंपनियों की भी वित्तीय हालात बेहद खराब है। वित्त वर्ष 2010-11 में तीनों कंपनियों का कुल घाटा 2157 करोड़ रुपए था। वित्त वर्ष 2011-12 में घाटा 2141 करोड़ रहा,जबकि 2012-13 यह घाटा 2096 करोड़ था। इसके अलावा तीनों कंपनियों पर कुल कर्ज करीब 15,000 करोड़ रुपए का है, जिसमें बड़ा हिस्सा मध्य प्रदेश सरकार से मिले लोन का है। 15 फीसदी तक कम की जा सकती हैं बिजली की दरें मप्र विद्युत मंडल के पूर्व चेयरमैन पीएल नैने कहते हैं कि बिजली कंपनियां बिजली की दरें 15 फीसदी तक कम कर सकती हैं। घाटे की दुहाई व तरह-तरह के शुल्क लगाकर हर साल बोझ बढ़ाया जाता है। ब्याज की अवधि कम करके भी बिजली की दरें कम की जा सकती है। उधर,प्रदेश के पूर्व ऊर्जा मंत्री एनपी प्रजापति का कहना है कि प्रदेश में मप्र पावर जनरेटिंग कंपनी लिमिटेड के सतपुड़ा ताप विद्युत गृह, सारणी एवं संजय गांधी ताप विद्युत गृह बीरसिंहपुर में पर्याप्त रखरखाव नहीं होने से कम विद्युत का उत्पादन हुआ, जिससे कंपनी को पिछले तीन सालों में सात हजार करोड़ का नुकसान हुआ। सबसे महंगी बिजली मध्यप्रदेश में ही मिल रही भाजपा के तमाम राज्यों की तुलना में सबसे अधिक महंगी बिजली मध्यप्रदेश में ही दी जा रही है, जबकि 10 साल पहले सरकार बनाते वक्त जितनी बिजली उतने दाम का नारा दिया था, लेकिन हर साल बिजली कंपनियां नियमाक आयोग के साथ सांठगांठ कर दरें बढ़वाती रही हैं। मध्यप्रदेश में 500 यूनिट से अधिक की खपत पर 5 रुपए 55 पैसे से अधिक की दर है, जो कि छत्तीसगढ़, गुजरात और राजस्थान की तुलना में अधिक तो है ही वहीं अन्य मदों में भी अधिक राशि वसूल की जाती रही है। प्रदेश में फ्यूल चार्ज के नाम पर बिजली की दरों में चाहे जब इजाफा किया जा रहा है। एक जनवरी से एफएसी (फ्यूल एडस्टमेंट कास्ट) के नाम पर 8 पैसे प्रति यूनिट की बढ़ोतरी कर दी गई। इतना ही नहीं हर तीन माह बाद एफएसी के नाम पर बिजली की दरों में बढ़ोतरी की जा रही है। जुलाई से सितंबर 2013 की तिमाही में 16 पैसे प्रति यूनिट दाम बढ़ाए गए थे। इसी तरह पावर मैनेजमेंट कंपनी (पीएमसी ) ने अक्टूबर से दिसम्बर 2013 की तिमाही में 5 पैसे प्रति यूनिट एफएसी के नाम पर बढ़़ाए जाना प्रस्तावित किया था, लेकिन विधानसभा चुनाव के चलते राज्य सरकार ने उक्त फ्यूल चार्ज को बिल में नहीं बढ़ाया। पीएमसी ने विद्युत नियामक आयोग को जनवरी से मार्च तक के लिए 8 पैसे और विधानसभा चुनाव के दौरान प्रस्तावित 5 पैसे प्रति यूनिट की बढ़़ोतरी का प्रस्ताव भेजा था। जिस पर आयोग ने केवल 8 पैसे बढ़ोतरी की अनुमति दी। अक्टूबर से दिसंबर तक का एफएएसी 5 पैसे बढ़ाने के प्रस्ताव पर याचिका के देने को कहा। मप्र के बिजली अधिकारियों का कहना है कि थर्मल पावर में उपयोग होने वाले कोयले एवं तेल आदि फ्यूल की दामों में बढ़ोतरी होने की वजह से दाम बढ़़ाए जाते हैं। जबकि हकीकत यह है कि प्रदेश में जनरेशन पावर कंपनी (जेनको) के 2932 मेगावाट के थर्मल पावर प्लांट हैं। वहीं गुजरात में 3270 मेगावाट के थर्मल पावर प्लांट हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि गुजरात को कोयले का परिवहन अधिक लगने से उसे अन्य राज्यों की तुलना में कोयला अधिक दामों पर पड़ता है। इसी तरह राजस्थान में 4420 मेगावाट के थर्मल पावर प्लांट होने से उनके यहां कोयले की खपत मप्र से कहीं ज्यादा है। उसके बावजूद वहां पर मप्र से सस्ती बिजली दी जा रही है। उल्लेखनीय है कि अपीलेट ट्रिब्यूनल फॉर इलेक्ट्रिसिटी के आदेश पर सभी राज्यों में बिजली कंपनियां फ्यूल एडजस्टमेंट कॉस्ट बिजली बिलों में जोड़ रही हैं। 23 प्रतिशत दर बढ़ाने का लिया था प्रस्ताव जनवरी माह में प्रदेश की तीनों बिजली कंपनियों द्वारा नियामक आयोग के समक्ष हर साल याचिकाएं दायर की जाती हैं जिन पर उपभोक्ताओं से सुझाव तथा आपत्तियां लेते हैं और सुनवाई का ढोंग भी किया जाता है, मगर घाटे का हवाला देकर हर साल बिजली की कीमतें बढ़ाने की अनुमति आयोग देता रहा। इस साल भी बिजली कंपनियों ने 23 प्रतिशत दरों में बढोतरी के प्रस्ताव तैयार किए थे, मगर लोकसभा चुनाव और दिल्ली सरकार के निर्णय के कारण निर्णय लिया गया कि 23 प्रतिशत की बढोतरी के प्रस्ताव को बदलवाया जाए और घरेलू तथा व्यावसायिक दरों में कोई वृद्धि न करने का निर्णय लिया गया। बिजली की दरें नहीं बढ़ाने के पीछे की कहानी हर साल ये बिजली कंपनियां नियामक आयोग के समक्ष घाटे का हवाला देकर बिजली की दरें बढ़वा लेती हंै। प्रदेश की मध्य क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी,पश्चिमी क्षेत्र विद्युत वितरण और पूर्वी क्षेत्र वितरण कंपनी लगभग 15 हजार करोड़ रुपए के घाटे में चल रही हंै, क्योंकि बिजली चोरी और पारेषण क्षति के कारण घाटा लगातार बढ़ता जा रहा है। इसकी क्षतिपूर्ति के लिए ये कंपनियां हर साल नियामक आयोग के माध्यम से बिजली की दरेंं बढ़वा लेती हैं और प्रदेश के ईमानदार बिजली उपभोक्ताओं को अधिक कीमत चुकाना पड़ती रही। यहां तक कि आयोग के अध्यक्ष का पद भी शासन ने बड़ी होशियारी से बदल दिया। पहले जहां सेवानिवृत्त हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति अध्यक्ष हुआ करते थे उसकी जगह शासन ने सेवानिवृत्त नौकरशाहों खासकर मुख्य सचिव को बैठाना शुरू कर दिया, जो शासन की कठपुतली के रूप में काम करते रहे और आम उपभोक्ताओं को राहत देने की बजाय बिजली कंपनियों और शासन का ही पक्ष लेते रहे। मगर नई दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की आप पार्टी ने बिजली के मुद्दे को ही जोरदार तरीके से भुनाया और सरकार बनाने के बाद बिजली के दामों में कमी तो कर दी, वहीं पहली बार तमाम बिजली वितरण कंपनियों का ऑडिट कराने का भी निर्णय लिया। अब लाख कांग्रेस, भाजपा आप पार्टी की आलोचना करे, मगर उसके इफेक्ट के चलते तमाम राज्य सरकारों को कई जनहित के फैसले लेना पड़ रहे हैं, उसी कड़ी में शिवराज सरकार ने भी बिजली के दाम नहीं बढ़ाने का फैसला किया और जब से इन कंपनियों का गठन हुआ है उसके बाद यह पहला मौका है जब दरों में कोई इजाफा नहीं किया जा रहा है। दरअसल अभी लोकसभा चुनाव है और कांग्रेस जोर-शोर से दिल्ली की तर्ज पर इस मुद्दे को यहां भी उठाने की तैयारी में थी और आप पार्टी ने भी इस मुद्दे को हथियार बनाना तय किया था। लिहाजा घबराई शिवराज सरकार ने कंपनियों को निर्देश दिए कि वह इस बार दरों में बढोतरी का प्रस्ताव नियामक आयोग को नहीं सौंपें। इस संबंध में मध्यप्रदेश बिजली प्रबंधन कंपनी की सफाई यह है कि चूंकि अच्छी बारिश के कारण बिजली का उत्पादन बढ़ गया, वहीं शासन सहित अन्य निजी बिजली उत्पादन संयंत्र चालू हो गए हैं, जिसके चलते एक हजार मेगावाट से अधिक सस्ती बिजली प्रदेश को मिलने लगी है। यह बात अलग है कि अभी भी ये सारी बिजली कंपनियां करोड़ों रुपए के घाटे में है और दिल्ली की तर्ज पर इन कंपनियों का भी ऑडिट करवाने की बात जोर पकडऩे लगी है, क्योंकि साल में एक बार नियामक आयोग से दरें बढ़वाने के अलावा एक प्रावधान और कर रखा है कि सिविल कास्ट में बढोतरी के चलते हर तीन-तीन माह में ये कंपनियां बिजली की दर खुदबखुद बढ़ा सकेंगी, इसके चलते पिछले ही दिनों प्रति यूनिट बिजली की दर में कुछ इजाफा हो गया। मगर फिलहाल तो इस साल उपभोक्ताओं को महंगी बिजली के झटके से राहत मिल गई है। कहीं शुरू होने के पहले ही न उड़ जाए मालवा पॉवर प्रोजेक्ट का फ्यूज मध्यप्रदेश में बढ़ती हुई बिजली की खपत के लिए लगाए जाने वाले श्री सिंगाजी थर्मल पावर प्रोजेक्ट के द्वितीय चरण की महत्वाकांक्षी परियोजना के प्रारंभ होने से पहले ही प्रदेश सरकार की परेशानी बढ़ गई है। मालवा में प्रथम चरण की परियोजना में 2&600 मेगावॉट की यूनिटें स्थापित करने के बाद मप्र जनरेटिंग कंपनी को द्वितीय चरण में 2&660 मेगावॉट की यूनिटें लगाने की जिम्मेवारी सौंपी गई थी। मप्र पावर जनरेटिंग कंपनी ने इस काम के लिये अगस्त के पहले हफ्ते में टेन्डर भी खोले थे। भारत सरकार के ऊर्जा विभाग ने किसी भी ऐसी विद्युत परियोजना को प्रारंभ करने के जो नियम बनाये हैं उसमें अनेक विभागों की स्वीकृति लेनी पड़ती है। वन एवं पर्यावरण विभाग की अनापत्ति एवं कोल लिन्केज के लिये पूर्व स्वीकृति होना अनिवार्य होता है। परन्तु उपर्युक्त परियोजना हेतु इन दोनों ही स्वीकृति के पहले ही टेन्डर आमंत्रित कर लिये गये । सितंबर माह में विधानसभा चुनाव के पूर्व इस परियोजना के विधिवत उद्घाटन की तैयारी थी। सियायत इस तरह गर्माई कि कांग्रेस द्वारा केन्द्र में ऊर्जा विभाग की कमान थामे राज्यमंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को प्रदेश में चुनाव अभियान की कमान सौंप दी गई। चुनाव उद्घाटन की घोषणा कहीं मुद्दा न बन जाए इसलिये आनन-फानन मप्र शासन के वित्त विभाग के उच्च अधिकारियों द्वारा लगाई गई आपत्ति के कारण न तो मप्र पावर जनरेटिंग कम्पनी और न ही मध्य प्रदेश शासन का ऊर्जा विभाग इस पर कोई निर्णय ले सका। अब भोपाल में लगभग 5000 करोड़ रु. के इस प्रोजेक्ट में शीघ्र आदेश देने के लिये लॉबिंग चल रही है। एलएंडटी कंपनी इस ऑडिट को शीघ्र लेना चाहती है। प्रदेश सरकार में ही अधिकारियों की दो लॉबी काम कर रही हैं। एक तरफ ऊर्जा विभाग के कुछ अधिकारी इस परियोजना को केन्द्रीय पर्यावरण एवं वन विभाग की स्वीकृति एवं बिना कोल लिंकेज के चालू करने पर जोर दे रहे हैं, वहीं कुछ अन्य अधिकारी जिसमें वित्त विभाग के महत्वपूर्ण अफसर भी हैं, चाहते हैं कि परियोजना का आर्डर देने से पहले सभी विभागों से आवश्यक स्वीकृति ले ली जाए, ताकि यह योजना निर्बाध गति से चल सके। इन अधिकारियों का मानना है कि यदि वन एवं पर्यावरण विभाग ने स्वीकृति नहीं दी और कोयले का लिंकेज नहीं मिला तो प्रदेश सरकार की बड़ी रकम फंस जाएगी और प्रदेश सरकार पर अक्षमता और भ्रष्टाचार के आरोप लगेंगे। दक्षिण के राज्यों को बिजली बेचने की प्लानिंग बिजली दूसरे राज्यों में बेचने का सिलसिला बढ़ता ही जा रहा है। प्रदेश सरकार दक्षिण के राज्यों को सबसे बड़ा ग्राहक मान रहा है। जहां बिजली की डिमांड अधिक है। जल्द ही उप्र और आंध्र के बाद कर्नाटक में बिजली बेचने का टेंडर भरा जाएगा। बिजली कंपनी अकेले इन्हीं स्टेट से करीब 500 करोड़ का मुनाफा एक साल के अंदर कमाएगी। प्रदेश में बिजली का उत्पादन लगातार बढ़ रहा है। सरकार अब जरूरत से अधिक बिजली को दूसरे राज्यों में बेचने में जुट गई है। ताकि मुनाफा कमाया जा सके। शुरूआत उत्तरप्रदेश से हुई। जहां अगस्त में 450 मेगावाट और जुलाई में लगभग 750 मेगावाट सप्लाई देना है। आंध्रप्रदेश में मई 2014 से मई 2015 तक 200 मेगावाट बिजली आपूर्ति करना है। यदि सबकुछ ठीक हुआ तो 500 करोड़ को बिजली बेचकर कंपनी को मुनाफा होगा। पॉवर मैनेजमेंट कंपनी प्रबंध संचालक मनु श्रीवास्तव के मुताबिक फरवरी माह में कर्नाटक में भी टेंडर डाला जाएगा। हमारे पास फिलहाल बिजली पर्याप्त है। उनके मुताबिक आय बढ़ाने के लिए साउथ की स्टेट में अधिक संभावना है। उन्होंने बताया कि ग्रिड की कनेक्टिविटी होने के कारण आसानी से बिजली की सप्लाई हो सकती है। बिजली टैरिफ पर सरकार का फोकस लोकसभा चुनाव में कहीं महंगी बिजली झटका न दे दे...इसको लेकर प्रदेश सरकार चिंतित है। बिजली टैरिफ को लेकर बिजली कंपनियों द्वारा नियामक आयोग को भेजे जाने वाले प्रस्ताव सिर्फ इसलिए फाइनल नहीं हो पा रहे, क्योंकि उनमें काट-छांट कर जनता को राहत देने का फॉर्मूला तय नहीं हो पा रहा। पूरी एक्सरसाइज करने के लिए कंपनियों को एक्स्ट्रा समय की जरूरत है। ऊर्जा मंत्री ने अनौपचारिक बातचीत में स्वीकार किया कि खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी बिजली टैरिफ को लेकर गंभीर हैं। पूरा फोकस इस बात पर है कि उत्पादन और वितरण के खर्च को कम किया जा सके ताकि जनता को सस्ती बिजली उपलब्ध कराना संभव हो। उन्होंने कहा कि सरकार सब्सिडी बढ़ाकर राहत देने के पक्ष में नहीं क्योंकि यह उपाय अर्थव्यवस्था की सेहत के लिए ठीक नहीं। वैसे भी प्रदेश सरकार बिजली पर 3 हजार करोड़ की सब्सिडी पहले से ही दे रही है।

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