मंगलवार, 21 मार्च 2017

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का हाल

19,000 करोड़ ठग ले गई बीमा कंपनियां
मध्यप्रदेश के 34 लाख किसानों के साथ फिर हुई धोखाधड़ी
भोपाल। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के आह्वान पर प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत खरीफ 2016-17 में सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं। अपने को सुरक्षित और नुकसान से बचाने की उम्मीद में मध्यप्रदेश में करीब 34 लाख किसानों ने 19 हजार करोड़ का बीमा कराकर खुद को सुरक्षित किया है। लेकिन हकीकत यह है बड़े-बड़े आश्वासन के बीच किसानों के साथ एक बार फिर ठगी हुई है। सरकारी बीमा एजेंसियां होने के बावजुद किसानों की फसलों का बीमा उन्हीं ठगोरी प्राइवेट कंपनियों से कराया गया है जो वर्षों से किसानों को ठगती आ रही हैं। यही कारण है कि मप्र के 98.8 लाख किसानों में से आधे ने भी बीमा नहीं करवाया। उल्लेखनीय है कि मप्र जितनी तेजी से कृषि उत्पादन में आगे बढ़ रहा है उसी तेजी से प्रदेश में नकली बीज, खाद का गोरखधंधा फैल रहा है। किसान जैसे-तैसे नकली बीज, खाद से बचते-बचाते खेती कर रहे हैं, लेकिन हर साल फसल बीमा के नाम पर उनके साथ ठगी की जा रही है। इसको देखते हुए इस बार देशभर में कई किसान हितैषी प्रावधानों के साथ प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना लागू की गई है। केंद्र सरकार की प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में प्रीमियम राशि कम होने के कारण अधिकांश किसानों इस योजना के तहत फसलों का बीमा कराया है। इसी खरीफ सीजन में प्रदेश के 34 लाख 13 हजार किसानों (ऋणी किसान 30 लाख 24 हजार और अऋणी 3 लाख 88 हजार) ने बीमा कराया है। इन किसानों का कुल 18 हजार 969 करोड़ रुपए से अधिक का बीमा हुआ है। पिछले साल राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना में मात्र 276 अऋणी किसानों ने फसल बीमा करवाया था, जबकि इस खरीफ सीजन में यह आंकड़ा 3 लाख 88 हजार किसानों तक पहुंच गया है। प्रदेश का 73 लाख 43 हजार हेक्टेयर रकबा बीमित हुआ है। इसके लिए बीमित किसानों ने कुल 396 करोड़ का प्रीमियम जमा किया है। फिर ठगों के हाथ में किसानों का भविष्य मप्र सहित देशभर में सरकार ने बीमा का काम सरकारी कंपनियों की जगह इस बार भी निजी कंपनियों को दे दिया है। प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री के आश्वासन पर किसानों ने बढ़-चढ़ कर बीमा तो करा लिया है, लेकिन सोयाबीन, कपास, ज्वार, धान और उड़द की फसल खराब होते ही कंपनियां गायब हो गई है। अब किसान मुख्यमंत्री से गुहार लगा रहे हैं। दरअसल, मानसून की मेहरबानी के बाद किसानों, सरकार और बीमा कंपनियों को इस बार बंपर उत्पादन की आस है। लेकिन मौसम में लगातार हो रहे बदलाव के कारण सोयाबीन की फसल बर्बाद होने लगी है। सरकारी कार्यालयों में कागजी खानापूर्ति पूरी करने के बाद भी प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का लाभ नहीं मिल रहा है। किसान कभी कलेक्टर कार्यालय तो कभी बैंकों के चक्कर लगाने को मजबूर हैं। किसानों का कहना है कि अफसर बीमा कंपनी से ही राशि आवंटित नहीं होने की बात कह रहे हैं। ऐसे में उनके पास सीएम हेल्पलाइन में शिकायत करने के अलावा कोई रास्ता नहीं रह गया है। किसान संगठनों का आरोप है कि फसल बीमा योजना का लाभ सरकारी बीमा कंपनियों के बजाय निजी बीमा कंपनियों को मिल रहा है। इस महत्वाकांक्षी योजना के पहले चरण में सरकारी बीमा कंपनी की उपस्थिति नाममात्र की है। दिलचस्प है कि भारत में बीमा क्षेत्र में भारी योगदान दे रही चार प्रमुख सरकारी कंपनियों को फसल बीमा योजना से नहीं जोड़ा गया। इससे किसानों का एक बड़ा तबका फसल बीमा योजना से नाराज है। किसान नेता विजय चौधरी कहते हैं कि प्रचार प्रसार में योजना के बहुत से लाभ बताए थे लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि यह बीमा योजना पुरानी बीमा योजना से भी बदतर है। इससे किसानों को कोई लाभ नहीं होगा। वह कहते हैं कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना पंजाब में इसी लिए लागू नहीं की गई है। जबकि पंजाब देश का एक बड़ा कृषि प्रधान राज्य है। पंजाब को प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की कुछ शर्तों पर आपत्ति थी। उसे यह भी आशंका थी कि इससे किसानों को कम, बीमा कंपनियों को लाभ ज्यादा मिलेगा। कई राज्यों में इस योजना के प्रति उत्साह नहीं है। देश के कई हिस्सों में किसान नेताओं ने इस योजना को बीमा कंपनियों को लाभ पहुंचाने वाली बताया। उनका आरोप था कि इस योजना से किसानों को नफा के बजाए नुकसान होगा। किसान संगठनों का एक आरोप यह भी है कि फसल बीमा योजना का लाभ सरकारी बीमा कंपनियों के बजाय निजी बीमा कंपनियों को मिल रहा है। इस महत्वाकांक्षी योजना के पहले चरण में जुड़ी बीमा कंपनियों में सरकारी बीमा कंपनी की उपस्थिति नाममात्र की है। सरकारी क्षेत्र की एग्रीकल्चर इन्श्योरेंस कंपनी ऑफ इंडिया लिमिटेड को इस योजना से जोड़ा गया है। एक और कंपनी एसबीआई जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड आंशिक सरकारी कंपनी है, क्योंकि इसमें भारतीय स्टेट बैंक की हिस्सेदारी चौहत्तर फीसदी है। जबकि इस योजना से जुड़ी आइसीआइसीआई लोंबार्ड, एचडीएफसी अर्गो, इफ्को टोकियो, चोलामंडलम एमएस, बजाज अलियांज, फ्यूचर जेनराली, रिलायंस जनरल इंश्योरेंस, टाटा एआइजी आदि निजी क्षेत्र की बीमा कंपनियां हैं। दिलचस्प है कि भारत में बीमा क्षेत्र में भारी योगदान दे रही चार प्रमुख सरकारी कंपनियों- नेशनल इंश्योरेंस कंपनी, न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी, ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी और यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी को फसल बीमा योजना से नहीं जोड़ा गया। प्रीमियम राशि को लेकर विरोध पिछले एक दशक से प्राइवेट बीमा कंपनियों की ठगी के बाद जब केंद्र की मोदी सरकार ने प्रधानमंत्री फसल बीमा शुरू किया तो किसानों को उम्मीद थी की अब यह योजना सरकार के नियंत्रण में रहेगी लेकिन फिर निजी कंपनियों के हाथों में आ गई है। बताया जाता है कि सरकारी बीमा कंपनियों ने इस योजना में शामिल होने के लिए काफी जोर लगाया लेकिन उनकी कोशिशें नाकाम हो गर्इं। सरकारी बीमा कंपनियों के पास योजना में शामिल होने के मजबूत तर्क थे क्योंकि इनका नेटवर्क देश में सबसे ज्यादा है। पूरे देश में इनके पास हजारों कार्यालय हैं। लाखों बीमा एजेंट हैं। कई जगहों पर तो राजनीतिक दलों और किसान संगठनों ने इस योजना का विरोध किया। उनका विरोध प्रीमियम राशि को लेकर था। किसानों के बैंक खातों से जबर्दस्ती प्रीमियम राशि काटे जाने के कारण भी उनमें भारी रोष था। किसानों का आरोप था कि फसल बीमा योजना में धोखाधड़ी हो रही है। उनकी खाली पड़ी जमीन का भी बीमा कर प्रीमियम की राशि काट ली गई। जबकि कई जगहों पर आरोप लगाया कि उनके खेत में ज्वार की फसल को धान की फसल दिखा कर प्रीमियम काट लिया गया। मप्र में बीमा योजना की सफलता के लिए राज्य सरकार के मंत्रियों ने किसानों के बीच जागरूकता यात्रा भी निकाली थी। किसान संगठनों का कहना था कि फसल बीमा योजना आकर्षक होती, तो किसान खुद आगे आते, मंत्रियों को पदयात्रा की जरूरत नहीं पड़ती। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को लेकर सरकार उत्साहित है, क्योंकि यूपीए सरकार के समय तीन फसल बीमा योजनाएं लागू थीं और उनसे किसानों को अक्सर शिकायत रही। उस समय भी शिकायत थी कि बीमा कंपनियों ने भारी प्रीमियम राशि इक_ा की, लेकिन किसानों को मुआवजा देने के वक्त हेराफेरी की गई। कई किसान संगठनों ने इस पर सवाल उठाया है। किसान संगठनों का आरोप है कि 2016 के खरीफ सीजन से लागू इस योजना में किसानों को जितना मुआवजा नहीं मिलेगा, उससे कई गुना ज्यादा राशि बतौर प्रीमियम बीमा कंपनियों को मिलेगी। बीमा योजनाओं की ऑडिट की तैयारी सरकार देश में अभी तक लागू की गई फसल बीमा योजनाओं की ऑडिट की तैयारी कर रही है। यह स्वागत योग्य कदम है। ऑडिट में जो खामियां सामने आएंगी उनके आधार पर आगे फसल बीमा योजनाओं में सुधार किया जा सकता है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने देश के सारे बैंकों को इस संबंध में दस्तावेज उपलब्ध कराने को कहा है। शुरू में देश के नौ राज्यों-मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, असम, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, गुजरात, राजस्थान, तेलंगाना और महाराष्ट्र में फसल बीमा योजनाओं का ऑडिट कराने की योजना है। गौरतलब है कि इनमें मध्य प्रदेश कुछ राज्य किसानों की दुर्दशा के लिए जाने जाते हैं। महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और हरियाणा में किसानों की आत्महत्याओं की खबरें लगातार आ रही हैं। खेती की बढ़ती लागत ने जहां किसानों को परेशान किया है, वहीं बाढ़, बेमौसमी बरसात और सूखे ने खेती बर्बाद कर दी है। फसल खराब होने के बाद कर्ज में डूबे किसानों के पास आत्महत्या के सिवा कोई चारा नहीं होता। किसानों को राहत देने के लिए प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना लागू होने से पहले देश के अलग-अलग राज्यों में फसल बीमा योजना लागू थी। लेकिन लगातार यही आरोप लगते रहे कि इसमें किसानों के साथ छल किया गया। किसानों से प्रीमियम तो वसूला किया, लेकिन मुआवजे के नाम पर कंपनियां और सरकार धोखाधड़ी करती रही हैं। इन शिकायतों के बाद पूरे देश में एक ही फसल बीमा योजना- प्रधानमंत्री मंत्री फसल बीमा योजना- लागू की गई। पहले लागू हर फसल बीमा योजना में किसानों की एक आम शिकायत आ रही है कि बीमा कंपनियां प्रीमियम तो मोटा ले रही हैं, लेकिन मुआवजे के नाम पर पंद्रह रुपए से हजार रुपए तक पकड़ा रही हैं। किसान को नहीं, गांव को इकाई बनाया गया। अगर पूरे गांव में कम से कम पचहत्तर प्रतिशत फसल बर्बाद होगी, तो मुआवजा मिलेगा। इसका आकलन बीमा कंपनियों के साथ सरकारी पदाधिकारी करेंगे। फसल ऋण लेने वाले किसान के खाते से प्रीमियम की राशि जबर्दस्ती काटे जाने पर भी किसानों को आपत्ति है। किसानों का फर्जी फसल बीमा यूपीए के समय में लागू फसल बीमा योजना के प्रति किसानों का आरोप था कि प्रीमियम राशि तो कंपनियां जबर्दस्ती ले लेती हैं, लेकिन मुआवजा देते वक्त हेराफेरी करती हैं। यही नहीं, जिस जमीन पर खेती नहीं की गई, उस जमीन का भी फसल बीमा कर कंपनियों ने भारी हेराफेरी की है। 2014 और 2015 में बीमा कंपनियों की हेराफेरी के मामले मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान जैसे राज्यों में सामने आए। लोगों का आरोप था कि फसल बीमा योजना लूट का माध्यम बन गई है। मप्र में तो किसानों ने आरोप लगाया कि उस जमीन पर भी प्रीमियम वसूल लिया गया है, जिस पर किसानों ने खेती ही नहीं की। यह हेराफेरी किसान के्रडिट कार्ड के माध्यम से की गई। लेकिन प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में भी ऐसी शिकायतें आ रही है। रतलाम जिला सहकारी केन्द्रीय बैंक ने फसल बीमा योजना के तहत 53 हजार किसानों का फर्जी बीमा कर डाला। किसानों ने सोयाबीन की उपज के लिए बीज डाला है और बैंक ने टमाटर की फसल का बीमा कर दिया। किसानों के खातों से 10 करोड़ रुपए प्रीमियम के भी काट लिए गए। अब मामले ने तूल पकड़ लिया है। राज्य वित्त आयोग के अध्यक्ष हिम्मत कोठारी ने सहकारिता मंत्री विश्वास सारंग को पत्र लिखकर मामले की विस्तृत जांच कराने का आग्रह किया है। वित्त आयोग के अध्यक्ष हिम्मत कोठारी ने बताया कि, 53 हजार किसानों को नुकसान न हो इसलिए; विभाग को फसल बीमा की तारीखें आगे बढ़ाना चाहिए। कोठारी के इस पत्र के बाद जिले की राजनीति में भी उबाल आ गया है, क्योंकि जिला सहकारी केंद्रीय बैंक की बागडोर भाजपा के नेताओं के ही हाथों में है। अब इस पत्र के बाद भाजपा नेता सकते में आ गए हैं। वित्त कारी केंद्रीय बैंक के महाप्रबंधक पीएन यादव को भी हटाने की मांग के साथ अन्य दोषियों पर कार्रवाई की मांग की है। गौरतलब है कि रतलाम जिले में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में 53 हजार किसानों की सोयाबीन की जगह टमाटर की फसल का बीमा किया गया है, जिसकी 10 करोड़ की प्रीमियम राशि भी किसानों से खातों से काटी जा चुकी है। कांग्रेस नेता वीरेंद्र सिंह सोलंकी ने इस पूरे मामले का खुलासा किया है, जिसके बाद जिले की राजनीति में हड़कंप मच गया है। सूत्रों की मानें तो प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में करोड़ों रुपए का गोलमाल हुआ है। ज्ञातव्य है कि यूपीए के समय में लागू फसल बीमा योजना के प्रति किसानों का भी यहीआरोप था।दरअसल, किसानों के क्रेडिट कार्ड में किसानों की पूरी जमीन दर्ज है। जब किसानों ने खाद और बीज के लिए कर्ज लिया, तो उनके क्रेडिट कार्ड से बीमे का प्रीमियम वसूल लिया गया। लेकिन हद तो तब हो गई जब किसान क्रेडिट कार्ड के बहाने किसानों की खाली पड़ी जमीन का भी फसल बीमा कंपनियों ने कर दिया। झाबुआ जिले के एक किसान पार्वती का आरोप था कि उससे तेईस हेक्टेयर जमीन की प्रीमियम राशि वसूल की गई, जबकि उसने मात्र बारह हेक्टेयर जमीन पर खेती की थी। बालाघाट के एक किसान बैजनाथ के अनुसार उसने सिर्फ डेढ़ हेक्टेयर जमीन पर धान की रोपाई की, लेकिन उससे चौबीस हजार रुपए प्रीमियम वसूला गया। अब ऐसे ही मामले प्रधानमंत्री फसल बीमा में आ रहे हैं। किसान नेता शिवकुमार शर्मा कहते हैं कि देश और प्रदेश की सरकार किसानों को कमाई का जरिया मान बैठी है। देश में किसानों को हर कोई ठग रहा है। योजना में अब भी भ्रम में हैं किसान खरीफ और रबी फसलों में प्राकृतिक आपदा से होने वाले नुकसान की भरपाई अभी तक फसल बीमा योजना से किया जाता रहा है लेकिन अब प्रचलित योजना की कई कमियों को दूर कर प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को नए सिरे से लागू किया गया है। इसमें किसान अधिसूचित फसलों की सूची और लाभ मिलने की स्थिति को लेकर भ्रम में हैं। हालांकि कृषि विभाग के प्रमुख सचिव राजेश राजौरा कहते हैं कि पुरानी फसल बीमा योजना में केवल प्राकृतिक आपदा से फसलों को नुकसान होने की स्थिति में ही किसानों को बीमा कंपनी की ओर से क्लेम के तहत राशि देकर मदद करने का प्रावधान था। इस बीमा योजना में किसानों को 8 से 10 प्रतिशत तक प्रीमियम देना पड़ता था जिससे कई किसान पूरी प्रीमियम नहीं कर पाते थे और कीट व्याधि व अन्य बीमारियों से खराब हुई फसलों के नुकसान से किसान बीमा के लाभ से वंचित रह जाते थे। इतना ही नहीं कई किसान तो पूरा प्रीमियम भरने के बावजूद आपदा से फसल में नुकसान होने पर बीमा योजना का लाभ लेने के लिए अधिकारियों के दफ्तरों के चक्कर काटकर परेशान हो जाते थे। ऐसी तमाम कमियों को प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में दूर करने का प्रयास किया गया है। इसकी सीधी मानीटरिंग पीएम ऑफिस से की जाएगी। इस नई योजना में पुरानी योजना की परेशानियों को दूर करने के साथ प्रक्रिया को भी सरल बनाया गया है। उधर, विशेषज्ञों का कहना है कि कृषि विभाग के पास प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत मिले गजट नोटिफिकेशन में सोयाबीन, अरहर और असिंचित धान को अधिसूचित फसलों में रखा गया है, जबकि एचडीएफसी जनरल इंश्योरेंस कंपनी के पास जो जानकारी है उसमें उड़द, मूंग, मूंगफली, तिल, सोयाबीन और असिंचित धान को अधिसूचित फसलों की श्रेणी में रखा गया है। अब किसानों में इस बात का भ्रम है कि उन्हें कृषि विभाग की जानकारी के अनुसार फसल बीमा का लाभ मिलेगा या फिर कंपनी को मिली सूची में लिखी गई अधिसूचित फसलों के हिसाब से योजना का लाभ दिया जाएगा। किसान नेता शिवकुमार शर्मा कहते हैं कि नई फसल बीमा पॉलिसी किसानों के साथ छलावा है। जंगली जानवरों से नुकसान की भरपाई नहीं फसल उगाने के लिए किसान जी जान लगा देते हैं। प्राकृतिक आपदा से नुकसान न हो, इसके लिए किसान कर्ज लेकर फसल का बीमा करवाते हैं। पांच बीघा क्षेत्र में भी यदि लाखों की फसल बर्बाद हो जाए तो किसान के हाथ में बीमे के तहत औसतन 100 रुपए आते हैं। यह सच है प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का। यही कारण है कि केंद्र सरकार की इस योजना में किसानों अपनी फसलों का बीमा तो करा लिया, लेकिन अब वे पछता रहे हैं। दरअसल, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना किसानों का दर्द बांटने में नाकाम रही है। खेत में खड़ी फसल पर कुदरत का कहर बरपे तो ही बीमा रकम मिलेगी। यदि फसल को जंगली जानवर या बंदर चौपट कर जाते हैं तो इस तरह से बर्बाद हुई फसल के लिए बीमा कंपनी फूटी कौड़ी नहीं देगी। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना शुरू होने के बाद खरीफ की दूसरी फसल कवर हुई। उधर, किसानों का आरोप है कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में बीमा कंपनियों ने बैंक के माध्यम से किसानों से लाखों की प्रीमियम राशि जमा करा ली है। अब जब फसल खराब हो गई है कोई सुन नहीं रहा है। शासन द्वारा दावा किया जा रहा था कि एक फोन पर कंपनी के अधिकारी किसानों की फसल का जायजा लेने आएंगे, यहां तो किसान कंपनी वालों को फोन लगा रहे हैं, लेकिन अधिकारी फोन ही नहीं उठा रहे। खरीफ फसल में नुकसान के बाद किसान रबी फसल की बोवनी की तैयारी करने जा रहे हैं। किसानों की खेत में खराब फसल में नुकसान का आकलन नहीं किया जा रहा जिससे किसान फसल बीमा क्लेम से वंचित रहे जाएंगे। प्रशासन भी इस दिशा में कोई प्रयास नहीं कर रहा। इसी सिलसिले में श्योपुर जिले के किसानों की समस्याओं को लेकर किसान कांग्रेस ने रैली निकालकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नाम जिला प्रशासन को ज्ञापन सौंपा है। किसान कांग्रेस नेताओं ने किसानों को फसल का नुकसान कर बीमा क्लेम तत्काल दिलाने की मांग की है। बीमा कंपनियों को कोई नुकसान नहीं कृषि बीमा योजना के अंतर्गत एग्रीकल्चर इंश्योरेंस कंपनी के पास किसानों का बीमा होता है। प्रदेश के जिला सहकारी बैंक और प्राथमिक सहकारी समितियों के जरिए जो किसान अल्पकालीन कृषि ऋण लेते है उनके ऋण की राशि को ही बीमा राशि मानते हुए उसका डेढ़ से साढ़े तीन प्रतिशत तक प्रीमियम राशि शुरूआत में ही काट ली जाती है। बीमा कंपनी केवल उस सीमा तक नुकसान की भरपाई करती है जितनी उन्हें प्रीमियम के रूप में प्राप्त हुई। दावे की राशि ज्यादा होने पर राज्य और केंद्र सरकार आधा-आधा वहन करती है। इस कारण बीमा कंपनी को इसमें कोई नुकसान नहीं होगा। बल्कि जिस वर्ष में ज्यादा प्रीमियम मिलता है और दावा भुगतान कम किया जाता है उस वर्ष उन्हें फायदा होता है। फसल बीमा योजना की सबसे बड़ी गड़बड़, योजना का स्वैच्छिक और अनिवार्य होना है। जो भी किसान बैंक या सहकारी संस्था से ऋण लेता है, बैंक उससे बिना पूछे अनिवार्य रूप से प्रीमियम काट लेता है। उसे कोई जानकारी, रसीद या पॉलिसी का कागज नहीं दिया जाता। जिसके चलते किसान को मालूम ही नहीं चलता कि उसकी फसल का बीमा हुआ भी है,या नहीं। मौसम आधारित फसल बीमा योजनाएं हमारे मुल्क में पश्चिम मुल्कों से आई हैं। और सब जानते हैं,कि इसमें विश्व बैंक की सिफारिशों और बहुराष्ट्रीय कंपनियों का बहुत बड़ा दबाव था। पश्चिमी मुल्कों और हमारे यहां की परिस्थितियों में यदि अंतर करके देखें, तो इसमें बुनियादी फर्क है। यूरोपीय मुल्कों में जहां सैंकड़ो-हजारों एकड़ जमीन के किसान और कंपनियां बहुतायत में हैं, तो हमारे यहां छोटे-छोटे काश्तकार हैं। एक बात और। वहां के किसान संतुष्ट होकर स्वेच्छा से अपनी फसल का बीमा करवाते हैं,लेकिन हमारी सरकारों ने इस बीमे को जबर्दस्ती किसानों पर थोपा है। किसान चाहे न चाहे,उसे बीमा करवाना ही पड़ेगा। आलम यह है कि हमारे यहां सभी फसल बीमा योजनाएं सरकार के अनुदान और सहयोग से क्रियान्वित हो रही हैं। उसके बाद भी तस्वीर कुछ इस तरह से है, पैसा किसान व सरकार का, मुनाफा कंपनियों का और नुक्सान सिर्फ व सिर्फ किसान का। कुल मिलाकर, सरकारों के तमाम दावों और वादो के बाद भी फसल बीमा योजना किसानों के लिए सिर्फ एक छलावा साबित हुई है। लगातार हो रही किसानों की आत्महत्याएं, फसल बीमा योजना की नाकामी को उजागर करती हैं। बीमा कंपनी द्वारा किसानों की फसल का बीमा व्यक्तिगत होता है। लेकिन फसल के नुकसान होने पर मुआवजा सामूहिक मिलता है। प्राकृतिक आपदा के बाद 3 और 5 साल के औसत उत्पादन के आधार पर नुकसान का आकलन होता है। अधिकांश फसल कटाई प्रयोग किसान के सामने नहीं होते। मौसम खराबी का आंकलन करने के लिए हर जगह पर्याप्त लैब और उपकरणों का अभाव है। अऋणी किसानों को नहीं मिल पाता बीमा योजना का लाभ। विडंबना की बात यह है कि एक तरफ किसानों को यहां फसल बीमा का फायदा नहीं मिला,तो दूसरी तरफ बैंक अधिकारी किसानों को कर्ज वसूली के लिए परेशान कर रहे हैं। किसानों पर दंड व ब्याज लगाया जा रहा है। 3 साल में 84 लाख किसानों के साथ ठगी मध्यप्रदेश में फसल बीमा की हकीकत क्या है इसका पता इसी से चलता है कि पिछले तीन साल में 83,75,105 किसानों से फसल बीमा योजना के अंतर्गत प्रीमियम लेने के बाद भी कंपनियों ने उन्हें एक रूपए का भी भुगतान नहीं किया। यह जानकारी राज्य सभा में केंद्रीय कृषि मंत्री ने दिग्विजय सिंह के एक सवाल के जवाब में दिया। केंद्रीय कृषिमंत्री के अनुसार मप्र में वर्ष 2011-12 में 33,74,706 किसानों का बीमा हुआ था लेकिन मात्र 6,61,779 किसानों को ही बीमा का लाभ मिल सका। इसी तरह वर्ष 2012-13 में 40,60,131 किसानों का बीमा हुआ था लेकिन लाभान्वित 4,34,642 ही किसान हो सका। 2013-14 में 24,10,937 किसानों की फसल का बीमा हुआ था लेकिन 14,70,666 किसानों को ही बीमा का लाभ मिला। यानी इन तीन सालों में 98,45,771 किसानों का बीमा हुआ लेकिन लाभ 14,70,666 किसानों को ही मिला। यानी 83,75,105 किसानों को एक धेला भी नहीं मिला। किसानों के साथ धोखा करने वाली कंपनियों में से भारतीय कृषि बीमा कंपनी लि., आईसीआईसीआई-लोम्बामर्ड, इफ्को-टोकियो, एचडीएफसी-इआरजीओ, चोलामंडलम-एमएस, टाटा-एआईजी, फ्यूचर जनरली इंडिया, रिलायंस, बजाज एलाइंज, एसबीआई और यूनिवर्सल सोम्पोस जनरल बीमा कंपनी शामिल हैं। यही कंपनियां इस बार भी किसानों की फसलों का बीमा कर रही हैं। अभी तक इन कंपनियों द्वारा किए गए बीमा की जो खामिया सामने आ रही हैं उससे किसान एक बार फिर डरे हुए हैं। किसानों की मदद या कोई और है मकसद? भारत सरकार समय समय पर किसानों की फसलों के लिए बीमा योजना लेकर आती रही है, लेकिन फिर भी लाख कोशिशों के बावजूद, सिर्फ 23 प्रतिशत एरिया ही बीमा योजना के तहत कवर किया जा सका। लेकिन अब भारत सरकार की कोशिश प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के जरिए अगले 2 साल में इसे बढ़ाकर 50 प्रतिशत तक ले जाने की है। इस साल भी किसानों से बीमा प्रीमियम वसूला गया है। फसलों पर एक बार फिर प्रकृति की मार पड़ती आ रही है। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आजकल जहां भी जाते हैं, वहां अपनी सरकार की कुछ अहम योजनाओं में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का भी नाम लेते हैं। उनके मंत्रिमंडल के कई सहयोगियों को भी इस योजना को किसानों के लिए वरदान बताते हुए देखा जा सकता है। लेकिन जिन बीमा कंपनियों को मोदी सरकार ने अपनी इस महत्वाकांक्षी योजना के पहले चरण को लागू करने का जिम्मा दिया है, उनमें सरकारी क्षेत्र की प्रमुख बीमा कंपनियों के नाम ही नहीं हैं। इन कंपनियों के अधिकारी दबी जुबान से ही सही सरकार पर यह आरोप लगा रहे हैं कि उन्हें जानबूझकर इस बीमा योजना से दूर रखा गया है। प्रधानमंत्री की इस महत्वाकांक्षी योजना के पहले चरण से जिन 11 कंपनियों को जोड़ा गया है, उनमें से सिर्फ एक ही पूरी तरह से सरकारी है और दूसरे को आंशिक तौर पर सरकारी कहा जा सकता है। सरकारी क्षेत्र की जो कंपनी है उसका नाम है एग्रीकल्चर इंश्योरेंस कंपनी ऑफ इंडिया लिमिटेड। वहीं दूसरी कंपनी जिसे आंशिक तौर पर सरकारी कहा जा सकता है, वह है एसबीआई जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड। इस कंपनी में भारतीय स्टेट बैंक की हिस्सेदारी 74 फीसदी है और इंश्योरेंस ऑस्ट्रेलिया ग्रुप के पास इस कंपनी का 26 फीसदी स्वामित्व है। इसके अलावा जिन नौ कंपनियों को इस योजना के पहले चरण में शामिल किया गया है, वे निजी क्षेत्र की हैं। इन कंपनियों के नाम हैं: आईसीआईसीआई लोंबार्ड, एचडीएफसी अर्गो, इफ्को टोकियो, चोलामंडलम एमएस, बजाज अलायंज, फ्यूचर जेनराली, रिलायंस जनरल इंश्योरेंस, टाटा एआईजी और यूनिवर्सल सोंपो। हालांकि, कुछ लोग इस सूची में शामिल इफ्को टोकियो को लेकर यह दावा कर सकते हैं कि यह भी आंशिक तौर पर सरकारी है। क्योंकि इसमें दो जापानी कंपनियों के साथ-साथ सहकारी क्षेत्र की इफ्को की भी हिस्सेदारी है। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को लागू कराने के लिए भारत सरकार के कृषि मंत्रालय की ओर से राज्यों को जो दिशानिर्देश दिए गए हैं, उनमें इस बात का साफ तौर पर जिक्र है कि राज्य सरकारों को इसे अपने राज्य में लागू कराने के लिए इन्हीं 11 कंपनियों में से किसी का चयन करना होगा। कृषि मंत्रालय के अधिकारी भी अनौपचारिक बातचीत में यह मान रहे हैं कि इस योजना को लगभग पूरी तरह से निजी क्षेत्र के हवाले कर देने के सरकार के कदम से सरकारी क्षेत्र की बीमा कंपनियों में असंतोष का माहौल है। जीवन बीमा निगम के अलावा अन्य क्षेत्रों में बीमा देने वाली चार प्रमुख सरकारी कंपनियां हैं - नैशनल इंश्योरेंस कंपनी, न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी, ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी और यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी। इन कंपनियों में किसी को प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में शामिल नहीं किया गया है। जबकि गैर जीवन बीमा क्षेत्र में जितने का कुल कारोबार होता है उनमें से तकरीबन आधे पर इन्हीं चार कंपनियों का कब्जा है। चूंकि इस योजना को मूलत: ग्रामीण क्षेत्रों में लागू कराना है इसलिए इस योजना को लेकर एक बड़ा सवाल यह खड़ा होता है कि सरकारी कंपनियों को इस महत्वाकांक्षी बीमा योजना से बाहर रखने पर यह योजना लाभार्थियों तक कितना और किस रूप में पहुंच पाएगी। इन बीमा कंपनियों और कृषि मंत्रालय के अधिकारियों की मानें तो इन चारों कंपनियों ने पूरी ताकत लगाकर कोशिश की थी कि इन्हें भी इस योजना में शामिल होने दिया जाए। इन कंपनियों के पास इसके लिए मजबूत तर्क भी थे। इन चारों कंपनियों को मिला दें तो पूरे देश में इनके तकरीबन 9,000 कार्यालय हैं और इन चारों कंपनियों के कुल बीमा एजेंटों की संख्या तीन लाख के ऊपर है। इसके बावजूद इन कंपनियों को इस योजना में सरकार द्वारा शामिल नहीं किया जाना कई तरह के सवाल खड़े करता है। इन्हीं सरकारी कंपनियों में से एक के एक अधिकारी बताते हैं कि निजी कंपनियों की लॉबीइंग के आगे ये सरकारी कंपनियां टिक नहीं पाईं। ये अधिकारी दावा करते हैं कि सरकारी कंपनियों ने न सिर्फ कृषि मंत्रालय बल्कि वित्त मंत्रालय का दरवाजा भी बार-बार खटकाया लेकिन उन्हें कहीं से सकारात्मक जवाब नहीं मिला। इनका यह भी कहना है कि सरकारी कंपनियों को शामिल नहीं किए जाने से योजना से अपेक्षित नतीजों की उम्मीद भी नहीं की जा सकती क्योंकि योजना में शामिल कंपनियों का नेटवर्क इसकी जरूरतों पर खरा नहीं उतरता। कंपनियों को लाभ पहुंचाने का आरोप मप्र कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अरूण यादव कहते हैं कि चूंकि इस योजना को मूलत: ग्रामीण क्षेत्रों में लागू कराना है इसलिए इस योजना को लेकर एक बड़ा सवाल यह खड़ा होता है कि सरकारी कंपनियों को इस महत्वाकांक्षी बीमा योजना से बाहर रखने पर यह योजना लाभार्थियों तक कितना और किस रूप में पहुंच पाएगी। अगर सरकार की इस गलती की वजह से इस योजना का लाभ ठीक ढंग से किसानों तक नहीं पहुंच पाता है तो फिर इसे लेकर सरकार की नीयत पर भी सवाल उठेंगे। 2016-17 के बजट में इस योजना के लिए 5,500 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। लेकिन बीमा क्षेत्र के जानकार बता रहे हैं कि इस योजना में चालू वित्त वर्ष पर तकरीबन 8,800 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है। ऐसे में कुछ लोग सरकार पर यह आरोप भी लगा रहे हैं कि इस 8,800 करोड़ रुपये में से अधिक से अधिक निजी बीमा कंपनियों को मिल सके, इसलिए सरकार ने प्रमुख सरकारी बीमा कंपनियों को इस योजना से बाहर रखा है। जो लोग सरकार पर इस तरह के आरोप लगा रहे हैं, वे अपनी बातों के समर्थन में इस तथ्य को भी सामने रख रहे हैं कि इस साल न सिर्फ भारतीय मौसम विभाग ने बल्कि दूसरी एजेंसियों ने भी अच्छे मानसून की उम्मीद जताई थी। इस वजह से यह उम्मीद भी की जा रही है कि इस साल फसल अच्छी होगी और नुकसान कम होगा। इसका मतलब यह हुआ कि इस साल फसल बीमा देने वाली कंपनियां फायदे में रहेंगी। इन बातों की पृष्ठभूमि में अगर इस पूरे मामले को देखें तो उन लोगों की बातों में दम लगता है जो सरकार पर यह आरोप लगा रहे हैं कि इस योजना से जानबूझकर सरकारी बीमा कंपनियों को बाहर रखा गया है। किसानों को प्राकृतिक आपदा से उबारने के लिए बनी फसल बीमा योजना महज छलावा नजर आ रही है। हर साल बीमा कंपनियां फसल बीमा प्रीमियर के नाम पर किसानों से करोड़ों रुपए वसूल कर रही, जिसके एवज में किसानों को ऊंट के मुंह में जीरा जैसी रकम ही मिली है। इस साल भी बीमा कंपनियों ने विभिन्न बैंकों और जिला केंद्रीय सहकारी बैंक के माध्यम से खरीफ और मौसम आधारित फसलों के लिए 15 करोड़ से ज्यादा की प्रीमियम राशि वसूल की है। पिछले तीन सालों में बीमा प्रीमियम और क्लेम की रकम की तुलना की जाए तो किसान ठगाते ही नजर आ रहे है। सिर्फ 2014 में मौसम आधारित फसल बीमा योजना में ही किसानों को मिर्च की फसल के लिए डेढ़ करोड़ का क्लेम मिला था। जबकि 2014 में रबी और खरीफ की फसल दोनों ही प्राकृतिक आपदा की चपेट में आई थी। 2015 में भी दोनों ही फसलों पर प्रकृति की मार पड़ी थी, लेकिन किसानों को एक रुपए का क्लेम भी नहीं मिल पाया था। 9999999999999999

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