मंगलवार, 21 मार्च 2017

5 रूपए में आज-कल क्या मिलता है जनाब

नई दिल्ली, भोपाल। 2014 की गर्मियों में जब नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री की कुर्सी संभालने के बाद अपने आपको प्रधानसेवक और जनता को मालिक कहा था तो ऐसा लगा था जैसे अब सही मायने में इस देश में जनता का राज आएगा। आज भी मोदी प्रधानसेवक की भूमिका में नजर आते हैं लेकिन अन्य सेवक(कारिंदे) मालिकों(जनता) का हक मार रहे हैं। तभी तो केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के तहत मजदूरी 1 रूपए से लेकर 18 रूपए तक की बढ़ोत्तरी की है। मप्र के लिए 5 रूपए की बढ़ोत्तरी की गई है। अब इन अफसरों से यह कौन पूछे की आज-कल 1 या 5 रूपए में मिलता ही क्या है। बजट देख अफसर बनाने लगे ख्याली पुलाव 2 फरवरी 2006 को जब मनरेगा देश के 200 जिलों में शुरू की गई तो ऐसा लगा जैसे मजदूरों का भाग्य उदय हो जाएगा, लेकिन यह योजना पूरी तरह भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई। योजना में मजदूर केवल नीमित मात्र हैं। मशीनों से काम कराकर उनकी मजदूरी हड़पी जा रही है। सरकारें हर साल इस योजना के लिए अरबो-खरबो रूपए का बजट जारी करती हैं। वित्तीय वर्ष 2017-18 में केंद्र सरकार ने मनरेगा के लिए 48,500 करोड़ रुपए के बजटीय प्रावधान किया है जो वर्ष 2016-17 से लगभग 10 हजार करोड़ रुपए की वृद्धि की गई है। वहीं मप्र सरकार ने मनरेगा के लिए वित्तीय वर्ष 2017-18 में 30 करोड़ मानव दिवस का लक्ष्य निर्धारित कर 2000 करोड़ का प्रावधान किया है। इस बजट को देखकर अधिकारी अभी से ख्याली पुलाव बनाने लगे हैं, जबकि इस बार भी मजदूरों की झोली खाली रहेगी। 11 साल में सबसे कम मजदूरी बढ़ोत्तरी ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार की गारंटी देने वाली मनरेगा योजना की दैनिक मजदूरी में सालाना बढ़ोतरी हैरान करने वाली है। केंद्र सरकार ने इस बार मनरेगा के तहत कई राज्यों में दैनिक मजदूरी महज एक रूपए ही बढ़ाई है। यह मनरेगा के तहत बीते 11 साल की सबसे कम बढ़ोतरी है जो एक अप्रैल से लागू हो जाएगी। केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय की अधिसूचना के अनुसार मनरेगा के तहत असम, बिहार, झारखंड, उत्तरखंड और उत्तर प्रदेश में दैनिक मजदूरी एक रुपये, ओडिशा में दो रुपये,पश्चिम बंगाल में चार रुपये और मप्र में पांच रूपए बढ़ाई गई है। अन्य राज्यों की तुलना में केरल और हरियाणा में सबसे ज्यादा 18 रुपये की बढ़ोतरी की गई है। इसके तहत मनरेगा मजदूरों को अब असम में 183, बिहार और झारखंड में 168, ओडिशा में 176, उत्तराखंड में 175, पश्चिम बंगाल में 180 और मप्र में 172 रुपए मिलेंगे। न्यूनतम दर से भी कम मजदूरी अर्थशास्त्री एस महेंद्र देव की अध्यक्षता वाली उच्चस्तरीय समिति ने सुझाव के अनुसार मनरेगा के तहत मजदूरी, राज्यों में न्यूनतम मजदूरी के बराबर या उससे अधिक होनी चाहिए, लेकिन विसंगति यह देखिए की मनरेगा के तहत दैनिक मजदूरी राज्यों द्वारा तय की जाने वाली न्यूनतम मजदूरी से भी कम है। उदाहरण के लिए असम में न्यूनतम मजदूरी 240 रुपये है, जबकि मनरेगा की नई मजदूरी 183 रुपये ही पहुंच पाई है। इसी तरह बिहार में न्यूनतम मजदूरी 181 रुपये है, जबकि मनरेगा की दैनिक मजदूरी 168 रुपये पर अटकी है। मध्यप्रदेश में भी राज्य सरकार द्वारा मजदूरी की न्यूनतम दर 267 रूपए तय की गई है, लेकिन यहां मनरेगा के तहत 172 रूपए मजदूरी तय की गई है। कारिंदों के वेतन में 20 फीसदी वृद्धि एक तरफ सरकार ने अपने कर्मचारियों का सातवां वेतनमान दे रही है वहीं मरनेगा मजदूरों की मजदूरी बढ़ाने में तरह-तरह के बहाने कर रही है। समिति की सिफारिशों को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था, क्योंकि वित्त मंत्रालय ने मनरेगा मजदूरी को न्यूनतम मजदूरी के बराबर लाने की सिफारिश पर सवाल उठाया था। इसके लागू होने पर पहले ही साल राजकोष पर कम से कम 3,000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ आता। सरकार अपने कर्मचारियों के मामले में इस दलील को नहीं मानती जिसने सातवें वेतन आयोग की सिफारिश के आधार पर महंगाई भत्ते के रूप में अपने कर्मचारियों का वेतन 20 फीसदी बढ़ाया है। मप्र में मनरेगा मजदूरों का नहीं मिला पूरा काम प्रदेश में मरनेगा मजदूरों की मजदूरी ही कम नहीं है बल्कि उन्हें पर्याप्त काम भी नहीं मिल पा रहा है। इसका खुलासा केंद्र सरकार की रिपोर्ट में हुआ है। रिपोर्ट के अनुसार रोजगार न दिलवा पाने के चलते मप्र उन राज्यों में शुमार हो गया है जो मनरेगा में पिछड़ रहे हैं। ग्रामीण विकास मंत्रालय की यह रिपोर्ट संसद में रखी गई है। हालांकि सरकार का कहना है कि वे मनरेगा में काम व समय पर भुगतान की नई व्यवस्था लागू करेगी। रिपोर्ट में वर्ष 2014 से जनवरी 2017 तक मनरेगा के तहत मांगे गए रोजगार व सरकार द्वारा उपलब्ध करवाए गए रोजगार की जानकारी दी गई है। इसके अनुसार इस दौरान मध्यप्रदेश में एक करोड़ 79 लाख मजदूरों ने मनरेगा में काम मांगा लेकिन सरकार एक करोड़ 48 लाख मजदूरों को ही काम दिलवा पाई। यानि 30 लाख मजदूरों को योजना के होते हुए भी काम नहीं मिला। लगातार घट रही लाभाविंतों की संख्या एक तरफ सरकारें साल दर साल बजट में बढ़ोत्तरी कर रही हैं वहीं दूसरी तरफ मप्र उन राज्यों में है, जहां यह पिछले तीन सालों से लगातार कम हो रही है। रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2014-15 में जहां 58.26 लाख मजदूरों को मनरेगा के तहत काम दिया गया तो, वर्ष 2016-17 तक यह 38 लाख 84 हजार तक पहुंच गया। यानी करीब 33 प्रतिशत की गिरावट आई। पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री गोपाल भार्गव कहते है कि यह स्थिति इसलिए है क्योंकि केंद्र से मनरेगा का पैसा मिलने में दो से तीन महीने लग जाते हैं। हम समय पर डिमांड भेज देते हैं। कई बार राज्य मद से मनरेगा मजदूरों को भुगतान किया जाता है। पैसा समय पर नहीं मिलने से काम की अनवरतता टूट जाती है। हमने भी समीक्षा है और इस बार अलग से फंड बनाया जा रहा है कि जिससे काम भी मिले तो भुगतान में देरी ना हो। उल्लेखनीय है कि मध्यप्रदेश के सभी 51 जिलों में मनरेगा का क्रियान्वयन हो रहा है। इस योजना में करीब 62 लाख 89 हजार जॉब कार्डधारी श्रमिक पंजीकृत हैं। मौजूदा वित्तीय वर्ष 2016-17 में अब तक 936.85 लाख मानव दिवस का रोजगार सृजन हुआ है। इसमें से 150.42 लाख मानव दिवस का रोजगार अनुसूचित-जाति तथा 329.36 लाख मानव दिवस का रोजगार अनुसूचित-जनजाति के श्रमिकों को दिया गया है। चालू माली साल में मनरेगा में श्रम कार्य करने वालों में 41.76 फीसदी महिला श्रमिक शामिल हैं। इन्हें 391.31 लाख मानव दिवस का रोजगार मुहैया करवाया गया है। लेकिन सवाल उठता है कि केंद्र सरकार ने मनरेगा की जो मजदूरी बढ़ाई है वह मजदूरों की खुशहाली के लिए पर्याप्त है?

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें