मंगलवार, 21 मार्च 2017

नर्मदा के नाम पर कारोबार, सेवा में दरकिनार...

कहां हैं 17,84,57,02,196 रूपए लेकर मौज करने वाले एजनीओ?
भोपाल। मप्र की जीवन रेखा नर्मदा को अवैध खनन से बचाने, प्रदूषण मुक्त करने प्रदेश सरकार नमामि देवी नर्मदे यात्रा निकाल रही है। इस यात्रा में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, मंत्रीगण, सांसद, विधायक, नेता, अधिकारी-कर्मचारी, साधु-संत, पर्यावरणविद, प्रकृति प्रेमी और आमजन शामिल हो रहे हैं। लेकिन पर्यावरण, नदी और प्राकृतिक संपदा के संरक्षण के नाम पर सेवा का कारोबार कर पिछले 5 साल में 17,84,57,02,196 रूपए कमाने वाले गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ)गायब हैं। कुछ एनजीओ शामिल हो भी रहे हैं तो वे महज औपचारिकता निभा रहे हैं। जबकि नर्मदा नदी सफेदपोश, माफिया और अफसरों के साथ ही उनके नाम पर समाज सेवा करने वालों के लिए भी कमाई का सबसे आसान जरिया बनी हुई हैं। यहां तक की यात्रा के दौरान नर्मदा के संरक्षण के तथाकथित सबसे बड़े पैरोकार नर्मदा बचाओ आंदोलन के लोग तो गायब हैं। दरअसल, नमामि देवी नर्मदे यात्रा पूरी तरह सरकार के नियंत्रण में हो रही है। इस यात्रा में लोग स्व प्रेरणा से शामिल हो रहे हैं। ऐसे में किसी आयोजन-प्रयोजन की जरूरत नहीं पड़ रही है, जिससे एनजीओ की कमाई हो सके। इसलिए पूरे आयोजन से एनजीओ दूर हैं। हद तो यह है कि शासकीय योजनाओं के क्रियान्वयन में जिस जन अभियान परिषद की सक्रिय भूमिका रहती है, उसकी सहभागिता भी कम नजर आ रही है। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि साल भर नर्मदा के संरक्षण की बात करने वाले एनजीओ आखिर कहां हैं? जबकि नदी संरक्षण, पर्यावरण रक्षण और प्रदूषण निवारण के नाम पर प्रदेश के एनजीओ पिछले 5 सालों में 17,84,57,02,196 रूपए लेकर मौज कर रहे हैं। इस रकम में से 5,34,57,02,196 रूपए उन एनजीओ के हैं जिन्होंने विदेशों से यह राशि प्राप्त की है। 50 हजार एनजीओ किस काम के नमामि देवी नर्मदे यात्रा सरकारी आयोजन है इसलिए जन अभियान परिषद यात्रा की तैयारियों में जुटा हुआ है। क्योंकि मुख्यमंत्री इसके अध्यक्ष हैं और यात्रा भी उन्हीं की मंशा से निकाली जा रही है। लेकिन जन अभियान परिषद से रजिस्टर्ड तकरीबन 50 हजार से ज्यादा एनजीओ इस अभियान से गायब है। साल भर सरकारी फंड से सेवा के नाम पर मेवा खाने वाले इन एनजीओ की कोई पड़ताल भी नहीं कर रहा है। जबकि इन 50 हजार एनजीओ को पिछले पांच साल में 12500000000 रूपए जन अभियान परिषद द्वारा दिए गए हैं। लेकिन नदी संरक्षण को लेकर काम करने वाले कुछ चुनिंदा एनजीओ को छोड़कर सामाजिक चेतना की अलख जगाने का दावा करने वाले तमाम संगठनों के सदस्य सिर्फ इक्का-दुक्का पौधे रोपकर ही अपने कर्तव्य से इतिश्री कर रहे हैं। नर्मदा तटों पर रोजाना सुबह से रात तक हजारों श्रद्धालु गंदगी फैलाकर चले जाते हैं। लेकिन इन्हें जागरूक करने वाले सैकड़ों एनजीओ कभी, कहीं नजर नहीं आते। ज्ञातव्य है कि समाज के समग्र विकास के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए अपने व्यवस्थागत ढांचे का अतिक्रमण कर शासन ने स्वैच्छिक संगठनों के अस्तित्व को मान्यता दी है। जनता और सरकार के बीच सेतु के लिए स्वयंसेवी संस्थाओं और सामुदायिक संगठनों को विकास की सशक्त इकाई के रूप में विकसित करने के उद्देश्य हेतु मध्यप्रदेश जन अभियान परिषद का गठन किया गया है। यह परिषद शासन को सलाह देने, सामुदायिक भागीदारी प्रोत्साहित करने, स्वयंसेवी संस्थाओं से संबंधित प्रक्रियाओं की जानकारी समेकित कर नीतियों के क्रियान्वयन के लिये एक समन्वयक अभिकरण के रूप में कार्य करती है। इसके तहत जन अभियान परिषद में 50 हजार से अधिक एनजीओ रजिस्टर्ड हैं। संस्थाएं पर्यावरण संरक्षण, स्वास्थ्य, शिक्षा, ऊर्जा, जल संरक्षण और कुपोषण उन्मूलन के क्षेत्र में कार्य करती हैं। लेकिन पिछले कुछ सालों में देखा गया है कि अधिकांश एनजीओ केवल फंड लेने तक ही सीमित हैं। अधिकांश एनजीओ रसूखदारों के होने के कारण जन अभियान परिषद कोई कार्रवाई भी नहीं कर पा रहा है। इसलिए अभी हाल ही में अभियान ने स्वयंसेवी संस्थाओं को सीधी फंडिंग बंद कर दी है। पहले जन अभियान परिषद इन संस्थाओं को 50 हजार रुपए सालाना देता था। नए नियम में अब परिषद केवल इनके सदस्यों को ट्रेनिंग देगी और इनकी सहायता का बजट भोपाल पर निर्भर करेगा। अपनी फंडिंग बंद होने से एनजीओ ने नमामि देवी नर्मदे यात्रा से भी मुंह मोड़ लिया है। सेवा यात्रा से नहीं जुड़े एनजीओ जन अभियान परिषद के माध्यम से एनजीओ को बकायदा उनके काम के हिसाब से बजट आवंटित किया जाता है। लेकिन प्रदेश स्तर पर चल रही नर्मदा सेवा यात्रा में जागरुकता फैलाने के लिए एक भी एनजीओ को इससे नहीं जोड़ा जा सका। नर्मदा सेवा यात्रा में सिर्फ जनअभियान परिषद के कर्मचारी, सदस्य, नगर पंचायत, ग्राम पंचायत, निकाय व जिलास्तर पर काम रहे सरकारी कर्मचारी-अधिकारी ही काम कर रहे हैं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि जन अभियान परिषद से जुड़े एनजीओ आम दिनों में नर्मदा को निर्मल बनाने के लिए क्या काम कर रहे होंगे। जबकि शासन स्तर से स्पष्ट आदेश जारी हुए थे कि सभी सामाजिक क्षेत्रों में काम करने वाली संस्थाओं को इस यात्रा से जुडऩा है। हैरानी की बात यह है कि नमामि देवि नर्मदा सेवा यात्रा को सफल बनाने के लिए भरसक कोशिश करने का दावा करने वाले जनअभियान परिषद कार्यालय ने भी अपनी सेवा देने के लिए किसी भी एनजीओ से संपर्क नहीं साधा। यदि एनजीओ सदस्यों को साथ लिया जाता तो नर्मदा किनारे वाले गांवों में जागरुकता अभियान चलाने, स्वच्छता फैलाने में सरकारी अमले को मदद मिलती। जन अभियान परिषद के भीमसेन डामोर कहते हैं कि नदियों के संरक्षण पर काम करने वाली एनजीओ नर्मदा सेवा यात्रा में शामिल नहीं हैं। अभी कितनी एनजीओ इस विषय पर काम कर रही है, ये ब्योरा देखना होगा। डॉलर से बंधे सरोकार दरअसल, स्वयंसेवी संगठन का गठन कर देश, प्रदेश में विदेश पूंजी कमाना एक बड़ा धंधा बन गया है। आईबी की रिपोर्ट को छोड़ भी दें तो हम पाते हैं कि पिछले 10 सालों में विदेशी पैसे पर चलने वाली एनजीओ की पूरी कार्यप्रणाली देश की विकास परियोजनाओं में रोड़ा अटकाने वाली रही है। मानवाधिकार, पर्यावरण सुरक्षा, धार्मिक स्वतंत्रता, असमानता आदि के नाम पर देश की बड़ी-बड़ी परियोजनाओं को रोका गया है, चाहे वह नर्मदा नदी पर बनने वाली सरदार सरोवर परियोजना हो या कोई अन्य परियोजना। लेकिन आज जब नर्मदा को बचाने के लिए सरकार मैदान में उतरी है तो एनजीओ मैदान से गायब हैं। नर्मदा को बचाने के नाम पर सरदार सरोवर परियोजना का विरोध करने वाली नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेत्री मेधा पाटकर आज कहां हैं। सरदार सरोवर परियोजना का उद्देश्य गुजरात के सूखाग्रस्त इलाकों में पानी पहुंचाना और मध्य प्रदेश के लिए बिजली पैदा करना है। लेकिन डॉलर के लिए विरोध किया जा रहा है। विदेशी चंदा लेने वालों की दुकान बंद समाज सेवा के नाम पर विदेशों से चंदा लेकर विकास कार्यों को बाधित करने वाले गैर-सरकारी संगठनों की दुकान पर सरकारी ताला डलने लगा है। हाल ही में केंद्र सरकार ने देश में चल रहे तैंतीस हजार गैर-सरकारी संगठनों में से करीब बीस हजार संगठनों के लाइसेंस रद््द कर दिए हैं। सरकार ने यह कार्रवाई तब की, जब पाया गया कि ये एनजीओ विदेशी चंदा नियमन कानून (एफसीआरए) के विभिन्न प्रावधानों का उल्लंघन कर रहे हैं। यानी जिन एनजीओ का एफसीआरए लाइसेंस रद््द किया गया है, वे अब विदेशी चंदा नहीं ले सकेंगे। इस कार्रवाई के बाद अब देश में सिर्फतेरह हजार एनजीओ कानूनी तौर पर मान्य हैं। गौरतलब है कि एनजीओ के कामकाज की समीक्षा की कवायद करीब एक साल पहले शुरू हुई थी। इसी प्रक्रिया के तहत यह कदम उठाया गया है और सरकार द्वारा विदेशी चंदा नियमन कानून का पालन नहीं करने के कारण कुछ एनजीओ पर ये बंदिशें लगाई हैं। सरकार ही नहीं, आमजन के मन में भी गैरसरकारी संगठनों के कामकाज और उनके पास आ रहे धन के इस्तेमाल को लेकर हमेशा से ही सवाल रहे हैं। विदेशी योगदान के आंकड़ों पर गौर करें तो ताजा आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2013-14 की तुलना में वर्ष 2014-15 में गैर सरकारी संगठनों को विदेशी धन दोगुना मिला है। लेकिन संगठनों ने इस फंड का क्या किया इसका हिसाब नहीं है। इसलिए केंद्र सरकार ने 10,000 एनजीओ पर विदेशों से फंड न लेने का प्रतिबंध लगाया है। प्रदेश में विदेशों से फंड लेकर काम करने वाले जिन एनजीओ पर बैन किया गया है उनमें समरीतन सेवा सदन, सहयोगिनी ट्रस्ट, साहस वॉलेंट्री सोसायटी, सागर महिला एवं बाल समिति, साधना विनय मंदिर, रिसोर्सेस डेव्लपमेंट इन्सिट्यूट, रिहैबीलिएशन कम वर्क सेंटर फॉर फिजिकली हैंडिकैप्ड, रिच कम्यूनिटी डेव्लपमेंट प्रोजेक्ट, रामा महिला मंडल, राहोद एजुकेशन सोसायटी, रफी अहमद किदवई एजुकेशन सोसायटी, पुष्पांजलि छात्र समिति, पुष्पा कान्वेंट, एजुकेशन सोसायटी, प्रखर प्रज्ञा शिक्षा प्रसार एवं समाज कल्याण समिति सागर, पिपुल्स फॉर एनिमल, न्यू शिवम व्यावसायिक युवती मंडल, नेशनल लॉ इन्सिट्यूट युनिवर्सिटी, नर-नारायण सेवा आश्रम, एमपी ब्रांच ऑफ नेशनल एसोसिएशन फॉर दा बलाइंड, शोसित सेवा संस्थान, श्रीकृष्ण ग्रामोत्थान समिति, श्रीकांत विकलांग सेवा ट्रस्ट, श्री चित्रगुप्त शिक्षा प्रसार समिति, श्री शिव विद्या पीठ, श्रम निकेतन संस्थान, शिवपुरी जिला सेवा संघ, शिव कल्याण एवं शिक्षा समिति, शिक्षा एवं ग्रामीण विकास केंद्र, शांति महिला ग्रह उद्योग कूप सोसायटी, शांति बाल मंदिर, श्री स्वामी के.विवेकानंद कुस्ता मुक्ता आश्रम, सेठ मन्नुलाल दास ट्रस्ट हॉस्पिटल, सतपुड़ा आदिवासी विकास समिति, सार्वजनिक सेवा समाज, सार्वजनिक परिवार कल्याण एवं सेवा समिति, शंकर,संजीवन आश्रम, संगम नगर शिक्षा समिति, समदर्शी सेवा केंद्र, अंजुमन इस्लामिया, अदिम जाति जाग्रति मंच, आर्दश लोक कल्याण (आलोक) संस्थान, आचार्य विद्यासागर गाऊ संवर्धन केंद्र, अभिव्यक्ति, असरारिया अल्पसं यक एजुकेशन चिकित्सा एवं वेलफेयर सोसायटी, आरोही-डेव्लपमेंट एवं रिसर्च सेंटर, अर्ध आदिवासी विकास संघ, मिशन हॉस्पिटल, मिशन हायर सेकण्ड्री स्कूल, मिशन हायर सेकण्ड्री स्कूल, मिशन गल्र्स प्राइमरी स्कूल, मिशन फॉर वेलफेयर एवं ट्रिबल चाइल्ड एंड वुमन, मेथोडिस्ट वुमन वर्क , मेथोडिस्ट वुमन प्रोजेक्ट, मिनू क्रिश्चन एजुकेशन सोसायटी, मेडीकेयर एंड रिसर्च फाउण्डेशन, मसीही प्राथमिक विद्यालय, मसीही माध्यमिक विद्यालय, मसीही कन्या विद्यालय हॉस्टल, मसीही हायर सेकण्ड्री स्कूल, मसीही हायर सेकण्ड्री स्कूल, मंजू महिला समिति, मंदसौर जिला समग्र सेवा संघ, मालवांचल विकास परिषद, मैत्री एजुकेशनल एंड कल्चरल एसोसिएशन, महिला परिषद, महिला एजुकेशन सोसायटी, महिला अध्ययन केंद्र, मध्यप्रदेश ग्रामीण विकास मंडल, मध्यप्रदेश हैरीटेज डेव्लपमेंट ट्रस्ट, माधवी महिला कल्याण समिति, मातृ सेवा संघ, लुथेरन मिशन हॉस्टल, लॉयन चैरीटेबल ट्रस्ट, कोठारी एजुकेशनल फाउण्डेशन, किसान खादी ग्रामद्योग संस्थान, खंडवा डिस्ट्रिक्ट वुमन वर्क, कर्मपा मल्टीपरपस कूप सोसायटी, कानपुर मिशन प्राइमरी स्कूल, कला जाग्रति परिवार, जोहरी क्रिएशन स्टूडेंट हॉस्टल, जन-कल्याण आश्रम समिति, जाग्रति सेवा संस्था, जगत गुरू राम भद्रचर्या विकलांग सेवा संघ, जबलपुर मिशन हॉस्पिटल प्रोजेक्ट-1641, जे.डी. सोशल डेव्लपमेंट आर्गनाइजेशन, इंदौर स्कूल ऑफ सोशल वर्क, इंदिरा गांधी एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी, इंडिया चर्च काउंसिल डिसीप्स ऑफ क्रिस्ट, हेवेंली पाइंट ऑफ एजुकेशन सोसायटी, हरित, एच.सी. मिशन हायर सेकण्ड्री स्कूल, ग्वालियर फॉरेस्टर सोसायटी, गुरू तेज बहादुर चैरीटेबल हॉस्पिटल ट्रस्ट, गुरू राजेंद्र सूरी चिकित्सालय एंड नेत्र अनुसंधान केंद्र, गायत्री शक्ति शिक्षा कल्याण समिति, ग्रासिम जन कल्याण ट्रस्ट, ग्रामोदय चेतना मंडल, गर्वमेंट पॉलिटेक्निक, गौवंश रक्षा समिति (अक्षय पशु-पक्षी सेवा सदन), गोंडवाना फाउण्डेशन, गरीबनवाज फाउण्डेशन फॉर एजुकेशन, जी.सी. मनोनित मिशन, गैस पीडि़त राहत समिति, गंगापुर युवा क्लब, गगन बाल मंदिर, फ्रेंड्स रूरल सेंटर, इकोनॉमी लाइफ कमेटी, ई.बी.ए. मिशन को-एजुकेशनल स्कूल, ईएलसी वेलफेयर एसोसिएशन, डॉ. पाठक चाईल्ड एंड मदर वेलफेयर सोसायटी,डिस्ट्रीक्ट वुमन वर्क, दिशा सामाजिक एंड विकास युवा मंडल, ड्यिोसेस ऑफ जबलपुर, धनवंतरी शिक्षा समिति, धनंतरी क्रिश्चन हॉस्पिटल, डेवलपमेंट फंड बोर्ड ऑफ सेकण्ड्री एजुकेशन, दारूल अलूम, कार्पोरेशन बास्केटबॉल ट्रस्ट, कनज्यूमर एंड राईट एसोसिएशन, काफ्रेंस ऑफ एसएस पीटर एंड पॉल (सोसायटी ऑफ सेंट. विनसेट डी पॉल), कम्यूनिटी हेल्थ सेंटर, क्रिश्चया बंधूरकूलम फैमली हेल्पर प्रोजेक्ट, क्रिश्चन हॉस्पिटल वेस्ट निमार, क्रिश्चन हॉस्पिटल दमोह, क्रिश्चन हॉस्पिटल, क्रिश्चन हिंदी मिडिल स्कूल, क्रिश्चन बॉयज एंड गल्र्स हॉस्टल, क्रिश्चन एसोसिएशन फॉर रेडिया एंड विजिवल सर्विस, क्रिश्चन एसोसिएशन फॉर रेडियो एंड ऑडियो विजिवल, चिनमय सेवा ट्रस्ट, चिल्ड्रन होम, छत्तीसगढ़ विकास परिषद, चांदबाद विद्या भारती समिति, चंबल बाल एवं महिला कल्याण समिति, सेंट्रल एमप्लाई स्पोंसर्स रिलीफ ट्रस्ट, सीएएसए पतपरा मंडला डेवलपमेंट प्रोजेक्ट, बरगेस इंग्लिश हायर सेकेण्ड्री स्कूल, बुंदेलखंड क्रिश्चन सोशल सर्विस, ब्रिलियंट स्टार एजुकेशन सोसायटी, ब्राइट स्टार सोशल सोसायटी, भोपाल टेक्निकल एंड ट्रेनिंग सेंटर, भोपाल स्कूल ऑफ साईंस, भोपाल सेल्सस सोसायटी, बाल प्रगति एवं महिला शिक्षा संस्थान, अविनाश, ऑडियो विजिवल प्रोजेक्ट, सचिदानंद हॉस्पिटल, आसरा सामाजिक कल्याण समिति, एरिया एजुकेशन कमेटी, अद्र्ध आदिवासी विकास संघ, नागरथ चेरिटेबल पुष्पकुंज हॉस्पिटल, पार्टीसिपेट्री रिसर्च एंड इन्वेंसन इन, संवाद, सदर मिशन प्राइमरी स्कूल, साइकोन शिक्षा एंव ग्रामीण विकास समिति, भोपाल एसडीए इंग्लिश स्कूल, श्री अरबिंदो एंड मदर वनिता एमपॉवरमेंट ट्र्स्ट, चेतना मंडल, सोशल इकोनोमिक विलेजर्स एडवांसमेंट, तुलसी मानव कल्याण सेवा संस्थान, क्रिश्चन एनडेवर हॉस्टल, लोक कल्याण समिति, बीसीएम इंटरनेशनल, शांतिपुर लेप्रोसी हॉस्पिटल, सानिध्य, पी. नाथूराम चौबे महिला समिति, आधार सेवा केंद्र, दा गोस्पल सेंट्रल चर्च, राजीव गांधी प्राथमिक शिक्षा मिशन, खरूना चिल्ड्रन हॉस्टल, डब्ल्यूएमई ऑफ डग्लस मेमोरियल चिल्ड्रन होम, मासी उच्चतर विद्यालय, चंबल पर्यावरण सोसायटी, अमरजेंसी रिलीफ कमेटी, भारत सेवक समाज, क्रिश्चन बॉयज हॉस्टल, नव सर्वोदय विकास समिति, खुरई टेक्निकल एजुकेशन सोसायटी, केंसर केयर ट्रस्ट एंड रिसर्च फाउण्डेशन, तोलाबी चैरीटेबल ट्रस्ट, महर्षि महेश योगी वेदिक विश्व विद्यालय, वॉकेशनल ट्रेनिंग इंसिट्यूट स्कूल, सदाशिव शांति शिक्षा समिति, अनुसूचित जाति/ जनजाति कल्याण संघ, मोमिन वेलफेयर एजुकेशन सोसायटी, जनसेवा शिक्षा समिति, शिव शिक्षा समिति चुरहट, मध्यप्रदेश आदिवासी बाल महिला कल्याण समिति, खादी ग्रामोद्योग सेवा आश्रम, हेल्थ एजुकेशन एंड डेवलपमेंट प्रोजेक्ट, महिला जागरण समिति, सतपुड़ा इंटीग्रेटेड रूरल डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट, नव क्रांति शिक्षा समिति, मसीही माध्यमिक विद्यालय, कृषक महिला समाज पानधुक्रा, एसोशिएशन फार कंप्रेसिंव रूरल असिसटेंस, कैथोलिक संस्थान जसपुर अग्रिकोण परीक्षेत्र, लुथरन होस्टल, आदिवास विकास एवं प्रशिक्षण संस्थान,सरस्वती महिला कल्याण, कांग्रेगेशन ऑफ सिस्टर ऑफ द एडोरेशन ऑफ द ब्लेस्ड सिस्टर्स, गजेंद्र शिक्षा प्रसार समिति, सैन्ट जॉर्ज कांवेंट इंग्लिस स्कूल, महाकोशल महिला शिक्षा समिति, महिला कौशल शिक्षा समिति, जयशक्ति ट्रस्ट सागर, किशन सेवा समिति, संजय बाल सेवा, उद्योग मंडल गोहारा, आश्रय सर्विस फार रूरल पूर, द नागपुर, लतहारन मिशन ऑफ सोल्यूशन, शर सयैद एजूकेशनल एण्ड शोसल वेलफेयर सोसायटी, योगा रिसर्च इंन्सट्यूट, नेशनल भोपाल डास्टर रिलाफ आर्गनाइजेशनशन, सृजन वेलफेयर सोसायटी, पर्यावरण सुधार समिति, सेंटर फॉर एंटरप्रीनरशिप डवलपमेंट एम. पी. झरनेश्वर महिला विकास एण्ड शिक्षण समिति, ग्रामीण विकास परिषद, फेडरेशन ऑफ एम.पी. वूमेन एण्ड चाइल्ड वेलफेयर एजेंसीज, महारनी लक्ष्मी बाई भोपाल जन कल्याण समिति, मीडिया सेंटर इंटर नेशनल हाउस, नव आदर्श शिक्षा एण्ड ग्रामीण विकास समिति, एम.पी. सिस्टर सोसायटी, संदेश मिशन हॉस्पिटिल,बंजा बामिया डबलपमेंट प्रोजेक्ट, जनहित सेवा केंद्र, कस्तूरबा वनवासी कन्या आश्रम, एम.पी. पस्तोरस कॉर्नफ्रेंस, श्री शांति शिशु मंदिर समिति, स्कॉट मेमोरियल वूमेन होस्टल, सरस्वती सेंट्रल अकादमी एजूकेशनल सोसायटी, वोल्यूनटरी एण्ड डवलपमेंट सोसायटी, भोपाल डॉयोसेेस भ्लेज डवलपमेंट प्रोग्राम, केनेडियन प्रेसवाइटेरियन, मिशनरी कमेटी, मानव विकास विज्ञान केंद्र, हॉयर एजूकेशन लायब्रेरी प्रोजेक्ट, विश्वास कल्याण समिति, आदर्श शिशु बिहार, प्यारे लाल गुपता समिति ल्यूपिन मानव कल्याण एवं शोध संस्थान, नई किरन महिला परिषद आदि। केवल कमाई के लिए गठन देश में एनजीओ का गठन केवल कमाई के लिए होता है। मध्य प्रदेश के संदर्भ में बात करें तो यहां के करीब 500 एनजीओ ने पिछले 5 साल में करीब 5,34,57,02,196 रूपए की विदेशी सहायता पाई है। जिनमें आधे से अधिक की कार्य प्रणाली संदेह के घेरे में है। संदेहास्पद एनजीओ की जांच चल रही है। अभी तक आईबी की जांच में जिन एनजीओ की गतिविधियां संदेहास्पद मिली है उनके खिलाफ कार्रवाई की गई है। वर्ष 2012 में ऐसे ही 92 एनजीओ के फॉरेन कंट्रीब्यूशन रजिस्ट्रेशन एक्ट (एफसीआरए) लाइसेंस को रद्द कर दिया था। वहीं वर्ष 2014 में 1 एनजीओ पर बैन लगा था। जबकि 2016 में सरकार ने 250 एनजीओ पर बैन लगाया है। सरकार द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट के अनुसार, 2010-2011 में मप्र के 468 एनजीओ को 1456495900.11 रूपए विदेशी सहायता के रूप में मिली थी। इसी प्रकार वर्ष 2011-2012 में 474 एनजीओ को 1547493703.80 रूपए, वर्ष 2012-2013 में 363 एनजीओ को 1660899947.66, वर्ष 2013-2014 में 54 एनजीओ को 249535061.58 रूपए, वर्ष 2014-2015 में 78 एनजीओ को 4687550425.25 रूपए मिले हैं। इन रूपयों का कहां और किस उद्देय से खर्च किया गया है उसमें कई विसंगतियां सामने आई हैं। जिससे एनजीओ संदेह के घेरे में हैं। दरअसल, एनजीओ कमाई का सबसे बड़ा जरिया बन गया है। यही कारण है कि पिछले दो दशक में हमारे देश में एनजीओ की संख्या तेजी से बढ़ी है। एक आंकड़े के अनुसार, देश में बीस लाख से अधिक एनजीओ सोसायटीज रजिस्ट्रेशन एक्ट, ट्रस्ट एक्ट आदि में पंजीकृत हैं। इनमें सक्रिय रूप से काम करने वाले संगठनों की संख्या, पंजीकृत संख्या के मुकाबले काफी कम है। जबकि समाज सेवा के लिए दिए जा रहे पैसों का गलत इस्तेमाल करने वाले गैर-सरकारी संगठन बड़ी संख्या में हैं। अब तक कई बड़े और जाने-माने गैर-सरकारी संगठनों द्वारा विदेशी चंदे के दुरुपयोग के मामले सामने भी आ चुके हैं। इनमें से एक है नर्मदा बचाओ आंदोलन। रेवा सेवा भक्त मंडल के अध्यक्ष बलराम पटेल कहते हैं कि नर्मदा के नाम पर बहुत कुछ हो रहा है। नर्मदा स्वच्छता पर काम पर करने वाले एनजीओ की मॉनीटरिंग होनी चाहिए। नर्मदा बचाओ आंदोलन कहां है तथाकथित तौर पर नर्मदा बचाओ आंदोलन नर्मदा के संरक्षण के लिए काम करने वाला सबसे बड़ा हितैषी है। अब जब नर्मदा और उसके आसपास के पर्यावरण को बचाने के लिए सरकार खुद मैदान में उतरी है तो आंदोलन कहां है? दरअसल, नर्मदा बचाओ आंदोलन का यह 30 साल से अधिक समय से चल रहा आंदोलन विकास में बाधक के रूप में देखा जा रहा है। दरअसल, नर्मदा बचाओ आंदोलन तब उभरा जब नर्मदा घाटी विकास परियोजना के तहत नर्मदा और उस की सहायक नदियों पर 30 बड़े, 135 मध्यम और 3,000 छोटे बांधों के निर्माण की योजना तैयार हुई। उस समय, कई प्रदर्शनकारी समूह, छात्र गुट, गैर सरकारी संगठन और अंतर्राष्ट्रीय तंत्र पहले से ही तीन बांध प्रभावित राज्यों, मध्यप्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र में सक्रिय थे। उनमें से ही एक गुजरात का युवा समूह था, छात्र युवा संघर्ष वाहिनी, जिसने पीडि़तों को अच्छा पुनर्वास पैकेज दिलाने के लिए सरकार को बाध्य किया, साथ ही वे इस बात को भी सुनिश्चित करते रहे कि सरकार अपने वादे पर बरकरार रहे। वहीं मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के कुछ ऐसे समूह दिखाई दिए जो पहले अच्छे मुआवजे की मांग कर रहे थे, लेकिन बाद में इस तरह की परियोजनाओं को पूरी तरह बंद करने की बात करने लगे। यह समूह थे, नर्मदा घाटी नवनिर्माण समिति (मध्य प्रदेश) और नर्मदा घाटी धरनग्रस्ठा समिति (महाराष्ट्र)। बाद में इनका आपस में विलय हो गया और वर्ष 1989 में इसने नर्मदा बचाओ आंदोलन का रूप ले लिया। जब बांध के निर्माण पर रोक लगाने की बात कही जा रही थी, तब इस समूह ने कृषि, बिजली और पीने के पानी की समस्या से निपटने के लिए कुछ विकासात्मक विकल्प भी प्रस्तावित किए। पर यह विरोध सिर्फ बांध का नहीं अपितु उस प्रणाली का भी था जो जवाबदेही से कतराती थी। जवाबदेही विश्व बैंक की परियोजना के दावों पर और जवाबदेही सरकार की उसके प्रभावों पर। मेधा पाटेकर के नेतृत्व में आंदोलन सबसे पहले सरदार सरोवर बांध के विरोध के साथ शुरू हुआ लेकिन जल्दी ही महेश्वर, इंदिरा सागर, ओंकारेश्वर, मान, बेड़ा, गोई और जोबट जैसे छोटे-छोटे बांधों का भी विरोध होने लगा। इन लोगों ने संघर्ष और पुनर्निर्माण या संघर्ष और नवनिर्माण के सिद्धांत को अपनाया। और इस विचारधारा ने इस आंदोलन की रुपरेखा तैयार कर इसकी नींव खड़ी की। लेकिन आंदोलन को लेकर लोगों की जो अवधारणा थी वह वास्तविकता के बिल्कुल विपरीत थी। आंदोलन में जानी-मानी हस्तियों का आना घट गया, बड़ी संख्या में एकजुट लोग आंदोलन से अलग होने लगे और देखते ही देखते वह अडिग सा प्रतीत होने वाला आंदोलन कमजोर पडऩे लगा। दरअसल, आंदोलन द्वारा विदेशों से फंड लेकर परियोजनाओं के विरोध की बात सामने आने लगी। इससे आंदोलन से प्रतिष्ठित लोग दूर होने लगे। अब जब सरकार ने नर्मदा नदी की सुध लेनी शुरू की है तो आंदोलन सहित अन्य एनजीओ को लगने लगा है कि अब उनकी दुकान छिनने वाली है। इसलिए वे सरकार के इस कार्यक्रम में शामिल नहीं हो रहे हैं। नर्मदा बचाओ आंदोलन की अमूल्य निधि के अनुसार नर्मदा के पानी को सबसे अधिक सरकार ने प्रदूषित किया है। नर्मदा को बर्बाद करने के लिए जिम्मेदार सरकार अब कौन सा मेवा पाने की चाहत रखती है? नर्मदा को 165 बांधों से बांधकर तालाबों में परिवर्तित करने वाली सरकार नदी रूप को समाप्त करने पर अमादा है। नमामि देवी नर्मदे यात्रा मात्र दिखावा है। वहीं नर्मदा बचाओ आंदोलन की मेधा पाटकर ने नर्मदा सेवा यात्रा पर सवाल उठाया है। उनका कहना है कि यह यात्रा नर्मदा को बचाने के लिए नहीं, बल्कि अपने खास उद्योगपति मित्रों को पर्यटन का ठेका और सभी संसाधनों का मेवा सौंपने के लिए निकाली जा रही है। ज्ञात हो कि राज्य सरकार ने अमरकंटक से 11 दिसंबर को 144 दिन की सेवा यात्रा शुरू की है। यह यात्रा लगभग 1100 गांव से होकर गुजरेगी और 3,350 किलोमीटर का रास्ता तय करेगी। इस यात्रा का समापन 11 मई 2017 को अमरकंटक में ही होगा। इस यात्रा के दौरान जगह-जगह गोष्ठी, जनसंवाद, परिचर्चाएं आयोजित की जा रही हैं। मुख्य यात्रा में गांवों से निकलने वाली उप यात्राएं इसमें शामिल हो रही हैं। नर्मदा के घाटों पर आरती हो रही है। सरकारी तौर पर इस बात के दावे किए जा रहे हैं कि नर्मदा सेवा यात्रा को भारी जन समर्थन मिल रहा है। यही कारण है कि इस यात्रा के दौरान अब तक पांच हजार से ज्यादा किसान अपने खेतों में पौधरोपण की सहमति दे चुके हैं, वहीं लगभग सात हजार पौधे लगाए भी जा चुके हैं। नर्मदा नदी के आसपास के जंगलों की वीरानी और नदी का थमा प्रवाह हर नर्मदा प्रेमी को विचलित कर देता है, अगर वास्तव में यह वीरान जंगलों में हरियाली लौटी और नर्मदा का प्रवाह पूर्ववत हुआ तो उसे यात्रा की सफलता के तौर पर गिना जाएगा। नर्मदा के सेवक संत भैया जी सरकार कहते हैं कि नर्मदा की सफाई करने, नर्मदा सेवा समितियां बनाने, अवैध उत्खनन रोकने के लिए मैंने अभियान शुरू किया था। इसके लिए मैंने जगह-जगह सभाएं की और सरकारी को उनकी कमियां बताईं। प्रदेश सरकार ने मेरे अभियान को गंभीरता से लिया और अब नर्मदा सेवा यात्रा शुरू की है। मैं सीएम शिवराज सिंह चौहान द्वारा शुरू की गई सेवा यात्रा के साथ हूं और हमेशा रहूंगा। विकास में रोड़े बने एनजीओ आईबी की रिपोर्ट के अनुसार विदेशों से करोड़ों रुपए का फंड लेकर कुछ एनजीओ भारत की खराब तस्वीर विदेशों में प्रस्तुत कर रहे हैं। प्रधानमंत्री कार्यालय को भेजी गई आईबी रिपोर्ट में विदेशी अनुदान प्राप्त करने वाले स्वयंसेवी संगठनों को देश की आर्थिक सुरक्षा के लिए खतरनाक करार देते हुए यहां तक कहा गया है कि जीडीपी में दो से तीन फीसदी की कमी के लिए यह एनजीओ जिम्मेदार हैं। केंद्र में मोदी सरकार का गठन होने के बाद से ही जिस तरह यह रिपोर्ट सामने आई उससे यह स्पष्ट है कि उसे पहले ही तैयार कर लिया गया होगा। आश्चर्य नहीं कि उसे जानबूझ कर दबाए रखा गया हो। एनजीओ को विदेशी सहायता लेने के लिए विदेशी सहायता नियामक कानून (एफसीआरए) के तहत गृह मंत्रालय से अनुमति लेनी होती है। इसके लिए एनजीओ को बताना पड़ता है कि विदेशी मदद का उपयोग सामाजिक कार्यों के लिए किया जाएगा। आईबी की रिपोर्ट से साफ है कि कुछ एनजीओ विदेशी सहायता का उपयोग सामाजिक कामों के लिए न कर देश आईबी की रिपोर्ट प्रधानमंत्री कार्यालय को तीन जून 2014 को सौंपी गई। हकीकत यह है कि अपने देश में गैर-सरकारी संगठन बनाना एक कारोबार बन गया है। अधिकांश संगठन ऐसे हैं जो बनाए किसी और काम के लिए जाते हैं लेकिन वह करते कु छ और हैं। शायद उनकी ऐसी ही गतिविधियों को देखते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने कुछ समय पहले यह कहा था कि 90 फीसदी एनजीओ फर्जी हैं और उनका एकमात्र उद्देश्य पैसा कमाना है। पुलिसकर्मियों से अधिक एनजीओ ! एनजीओ का धंधा कितना चोखा है इसका अंदाजा इसी से लगाया जाता सकता है कि देश मेें पुलिसकर्मियों की संख्या से अधिक तो एनजीओ हैं। केंद्र सरकार की ऐसे स्वयं सेवी संगठनों यानि एनजीओ पर तीखी नजर है, जो कागजों पर जन सेवा करके सरकारी कोष का दुरुपयोग करती आ रही है। हालांकि सरकार समय-समय पर ऐसी संस्थाओं को जांच के बाद काली सूची में डालने की सतत कार्यवाही करती आर रही है। केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों की योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए एनजीओ का सहारा भी लिया जाता है। जो अवैध कमाई का जरिया-सा बन गया है। दिलचस्प पहलू यह भी है कि कैग भी एनजीओ के पंजीकरण पर अपनी रिपोर्ट में सवाल खड़ा कर चुकी है। वहीं केंद्रीय जांच एजेंसी ने हाल ही में देश के भीतर एनजीओ की भारी संख्या को लेकर सवाल सुप्रीम कोर्ट को एक रिपोर्ट सौंपी है। सीबीआई की इस रिपोर्ट में 20 राज्यों और 7 केंद्र शासित प्रदेशों का ब्योरा जुटाने की बात कही गई है, जहां 22 लाख 45 हजार 655 एनजीओ काम कर रहे हैं। यह भी संभावना जताई गई है कि एनजीओ की वास्तविक संख्या इससे भी काफी अधिक हो सकती है, क्योंकि इस रिपोर्ट में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना, ओडिशा, कर्नाटक और तमिलनाडु जैसे राज्यों के एनजीओ शामिल नहीं हैं। रिपोर्ट में शािमल एनजीओ में से 2 लाख 23 हजार 478 ने सोसायटी रजिस्ट्रार के पास अपना रिटर्न दाखिल किया है, जो करीब दस प्रतिशत आंका जा सकता है। यानि ऐसी संस्थाएं 10 प्रतिशत से भी कम अनुदान और खर्चे को लेकर बैलेंस शीट का ब्योरा जमा करवाते हैं। एक अनुमान के अनुसार 1.25 अरब की आबादी वाले भारत में औसतन 535 लोगों पर एक एनजीओ है, जबकि गृह मंत्रालय के आंकड़ों की माने तो देशभर में एक पुलिसकर्मी के हिस्से में 940 लोग आ रहे हैं। संसद के पिछले सत्र के दौरान एनजीओ को लेकर उठे सवालों में सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री थांवर चंद गहलोत ने भी स्वीकार किया था एनजीओ सरकारी फंड में हेरफेर कर अपना बैंक बैलेंस बढ़ाने की गतिविधियों में लिप्त हैं जिन पर नकेल कसने के लिए सरकार ने कवायद शुरू कर दी है। उनके अनुसार सरकारी धन का दुरुपयोग करने वाली एनजीओ के 26 मामले सामने आए थे, जिनमें से जांच के बाद चार एनजीओ को काली सूची मेें डाल दिये गए हैं और सरकार ऐसे एनजीओ को दंडित करने की तैयारी भी कर रही है। असली परिक्रमा तब होगी जब बड़े गुनहगारों पर गाज गिरेगी एक तरफ नमामि देवी नर्मदे यात्रा से एनजीओ गायब हैं और दूसरी तरफ विपक्ष और नर्मदा बचाओ आंदोलन इसे राजनीतिक यात्रा मान रहा है। नर्मदा बचाओ आंदोलन और आप के नेता आलोक अग्रवाल कहते हैं कि सरकार नर्मदा के नाम पर राजनीति कर रही है। अमरकंटक से शुरू हुई नमामि देवी नर्मदे यात्रा मई 2017 तक नर्मदा के किनारे स्थित जिन 1100 गांवों से होकर गुजरेगी वे सभी अवैध खनन की चपेट में हैं। रसूखदारों ने इन गांवों को एक तरह से अपने कब्जे में ले रखा है। आलम यह है कि खनन से गांवों की आबोहवा खराब हो रही है। पर्यावरण दुषित हो रहा है। अगर कभी गांव वाले अवैध खनन का विरोध करते हैं तो उन्हें इसका खामियाजा भी उठाना पड़ता है। इस काम में स्थानीय प्रशासन भी माफिया के साथ देता है। इसका परिणाम यह हो रहा है कि मिलीभगत से हर साल हजारों करोड़ रूपए की अवैध रेत नर्मदा की गोद से निकाली जा रही है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पर नर्मदा नदी के प्रति दोहरा मापदंड रखने का आरोप लगाया है। यादव ने कहा है कि एक ओर 'नर्मदा सेवा यात्राÓ के नाम पर स्वच्छता की बात की जा रही है, वहीं दूसरी ओर सत्तारूढ़ दल भारतीय जनता पार्टी से जुड़े कई रसूखदार लोग नर्मदा के अवैध खनन से लाभान्वित हो रहे हैं। नर्मदा पर आस्था रखने वाले चीख चीखकर कहते रहे कि नर्मदा के कई घाटों पर मशीनों से रेत का खुलेआम अवैध उत्खनन किया जा रहा है। पूरा गोरखधंधा रसूखदारों के इशारे पर चल रहा है। लेकिन प्रशासन मौन होकर देख रहा है। खनिज माफिया ने हाइवा और डंपरों की आवाजाही के लिए नर्मदा नदी के बीच में सड़क बना ली है। इससे नर्मदा का प्रवाह रुक गया है। घाटों का अस्तित्व खतरे में यात्रा जिन क्षेत्रों से गुजर रही है उन क्षेत्रों में अवैध खनन के कारण कई घाटों का अस्तित्व खत्म होने की कगार पर पहुंच गया है। चौंकाने वाली बात यह है कि जिम्मेदारों को इसकी खबर नहीं है। अधिकारी गहरी नींद में सो रहे हैं। रेत माफिया अवैध खनन कर मनमाने दाम पर रेत बेचकर चांदी काट रहे हैं। सूत्रों की मानें तो विभागीय अधिकारियों को एक बड़ा हिस्सा खनन माफिया पहुंचा रहे हैं। जिसके चलते उन पर कार्रवाई करना तो दूर अधिकारी नजर तक नहीं डालते। माइनिंग विभाग के आंकड़ों पर गौर किया जाए तो यहां अवैध खनन के मामले कम ही दर्ज होते हैं। टारगेट पूरा करने के लिए केवल अवैध परिवहन के मामले दर्ज किए जाते हैं। इस संबंध में विभागीय अधिकारियों का कहना है कि अदालत में अवैध खनन साबित करने में परेशानी होती है। इसलिए अवैध परिवहन के मामले ही बनाए गए हैं। एनजीटी के नियमों के मुताबिक नदी के अंदर से रेत खनन पर प्रतिबंध लगाया गया है। इसके तहत कोई भी खननकर्ता नदी के पानी से रेत नहीं निकाल सकता। चूंकि नर्मदा राष्ट्रीयकृत नदी है इसलिए इसकी संरचना से कोई छेड़छाड़ नहीं कर सकता। इसके बाद भी खनन माफिया ने बीच नदी तक रे प बना लिए हैं। पिपरिया घाट में रेत माफिया ने नदी की बीच धार में रेम्प बना लिया है। इससे रे प से वाहन बीच नदी तक पहुंच जाते हैं। जहां पानी में खड़ी पोकलेन मशीन नदी से रेत निकालकर वाहनों में भर देते है। दिन दहाड़ चल रहे इस अवैध खनन पर अधिकारी चुप्पी साधे बैठे हैं। बेलखेड़ा के पास सुनाचर घाट में रेत खदान स्वीकृत नहीं है। इसके बाद भी खनन माफिया यहां रेत खनन करने में जुटे हुए हैं। नदी के बीच से नाव में भरकर रेत निकाली जाती है। जिसके लिए स्थानीय मजदूरों का प्रयोग किया जाता है। पकड़े जाने पर सारी जिम्मेदारी मजदूरों पर छोड़ दी जाती है। नर्मदा बचाओ आंदोलन की मेधा पाटकर ने एनजीटी कोर्ट में यह हलफनामा दे कर धार जिला खनिज अधिकारी को कटघरे में खड़ा कर दिया कि वे अमीरों को गरीब बताकर कम जुर्माने पर उनकी गाडिय़ा छोड़ रहे हैं। इधर अधिकारी यह सफाई देते नजर आए कि उन्होंने न्यायालय के आदेशानुसार ही कार्रवाई की है।

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