मंगलवार, 21 मार्च 2017

हाउसिंग बोर्ड ने उड़ाई 400 परिवारों की नींद

2,80,00,00,000 रूपए हड़पकर चैन की बंसी बजा रहा बोर्ड
भोपाल। मध्यप्रदेश सचमुच में अजब है गजब है। एक तरफ मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ऐलान करते फिर रहे हैं कि उनकी सरकार प्रदेश की धरती में जन्म लेने वाले हर एक उस व्यक्ति को जमीन देगी, जिनके पास रहने के लिए मकान नहीं है। पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री गोपाल भार्गव घोषणा करते हैं कि मध्यप्रदेश में प्रधानमंत्री (ग्रामीण) आवास योजना में अतिरिक्त लक्ष्य के अंतर्गत 6 लाख 33 हजार 351 आवासों का निर्माण किया जायेगा। प्रदेश में यह किसी भी आवास योजना में सर्वाधिक आवासों का निर्माण है। यह आवास निर्माण पूर्व में जारी ग्रामवार लक्ष्य के अतिरिक्त निर्मित किए जाएंगेे। दोनों घोषणाएं प्रदेश के आमजन के लिए खुशी का संदेश लेकर आई हैं। लेकिन क्या यह खुशी बरकरार रह पाएगी? यह सवाल इसलिए उठ रहा है कि सर्व सुविधायुक्त आशियाने का हवाई सपना दिखाकर मप्र हाउसिंग बोर्ड ने 400 परिवारों से 2,80,00,00,000 रूपए हड़प लिया है। प्रभावितों में आईएएस, आईपीएस, नेता, पत्रकार और अन्य रसूखदार हैं। रोटी, कपड़ा और मकान एक आम व्यक्ति की जररूत है। रोटी-कपड़े का जुगाड़ तो वह जैसे-तैसे कर लेता है लेकिन, मकान एक बड़ी समस्या है। महंगाई के कारण शहरी इलाकों में तो मध्यमर्गीय परिवार के लिए स्वयं का मकान बनवाना मुश्किल होता जा रहा है। प्रदेश में आवासों की कमी की समस्या को हल करने के लिए वर्ष 1972 में हाउसिंग बोर्ड की स्थापना की गई थी। लेकिन बोर्ड में बाबू राज होने के कारण आज स्थिति यह हो गई है कि बोर्ड की आवासीय योजनाओं पर से लोगों का भरोसा उठ गया है। बोर्ड के बाबू राज का खामियाजा राजधानी की सबसे महंगी आवासीय योजना कीलनदेव, महादेव और तुलसी टॉवर के आवंटी उठा रहे हैं। इनमें प्रदेश के दो डीजीपी नंदन दुबे और सुरेंद्र सिंह, कई जज और कई आईएएस, आईपीएस हैं। ज्ञातव्य है कि बोर्ड ऑफिस और तुलसी नगर में 2010 में हाउसिंग बोर्ड ने तीन प्रोजेक्ट लांच किए थे। कीलनदेव, महादेव और तुलसी टॉवर नाम से लांच परियोजना में बोर्ड द्वारा सर्व सुविधायुक्त आशियाने का सपना दिखाया गया और लोगों से 7 लाख पंजीयन शुल्क लेकर जल्द ही आवास मुहैया कराने का वादा किया गया। लेकिन बोर्ड के अधिकारी भू-माफिया की तरह लोगों से किस्त पर किस्त लेते रहे और उस रकम से ऐश करते रहे। आज छह साल बाद बोर्ड 400 लोगों से 70-70 लाख रूपए ले चुका है, लेकिन ये तीनों परियोजना अभी भी अधर में हैं। गलती किसी की दंड किसी को मध्यप्रदेश हाउसिंग बोर्ड में मकानों की कीमत बढ़ाने का दंडनीय अपराध तत्कालीन आयुक्त, अफसर और इंजीनियरों ने मिलकर किया लेकिन दंड मिला हितग्राहियों को-जिन्होंने 16 प्रतिशत से लेकर 22 प्रतिशत तक ब्याज भुगता और प्रोजेक्ट में देरी के कारण आज तक ब्याज भुगतते हुए बोर्ड के चक्कर काट रहे हैं। हाउसिंग बोर्ड में मकान बुक कराने वाले ज्यादातर सरकारी और प्राइवेट नौकरी वाले हितग्राही होते हैं। जिनकी आमदनी का स्रोत वेतन, जीपीएफ और लोन आदि है। हाउसिंग बोर्ड का प्रोजेक्ट लोन लेकर बुक कराया जाता है। जो लोन बैंक से लिया है उस पर तो ब्याज चढ़ता ही है, हाउसिंग बोर्ड भी किस्त समय पर न देने की स्थिति में 14 प्रतिशत ब्याज वसूलता है। वहीं हितग्राही के जमा पैसे पर 7 प्रतिशत ब्याज देता है, लेकिन हितग्राही की कमर उस वक्त टूटती है, जब ऊंची ब्याज दरों पर लोन चुका रहे हितग्राही को यह फरमान सुनाया जाता है कि कलेक्टर गाइडलाइन के कारण जमीनों के दाम बढऩे से प्रोजेक्ट की कीमत दोगुनी हो चुकी है। लेकिन वह हाउसिंग बोर्ड से टकरा नहीं सकता। क्योंकि हाउसिंग बोर्ड सरकारी भू-माफिया है क्योंकि कोई भी रियल स्टेट का धंधा घाटे का नहीं होता। तत्कालीन आयुक्त अफसरों की मिलीभगत से प्रोजेक्ट की बुकिंग तो ले ली परंतु आवश्यक अनुमतिया बगैर इस प्रोजेक्ट को चालू करना और आवंटियों से बुकिंग अमाउंट लेकर धोखाधड़ी हुई है। आवंटी कहते हैं कि यह चार सौ बीसी नहीं तो क्या है सरकारी एजेंसी समझकर हमने सरकार को पैसा दिया है और पैसे दिए हुए 7 साल हो गए हंै यह एक क्रिमिनल सजा के बराबर है। कीलनदेव और तुलसी में काम अधूरा शिवाजी नगर में विकसित हो रहे तुलसी टॉवर, कीलनदेव और महादेव में से महादेव परिसर मामूली कामों को छोड़कर पूर्ण हो गया है। जबकि कीलनदेव और तुलसी टावर में आधे के लगभग काम बचा हुआ है। तीनों परियोजनाएं बोर्ड ने 2010 में लांच की थीं। बोर्ड ने अपने विज्ञापन में 24 से 36 माह के बीच प्रोजेक्ट्स पूरे कर देने का भरोसा ग्राहकों को दिलाया था। बोर्ड ने 72 माह से ज्यादा समय में महादेव परिसर का काम पूरा किया। इस परिसर में 10 प्रतिशत के लगभग का काम अभी भी बाकी है। बोर्ड के वायदे के विपरीत 77 माह का वक्त दो अन्य परिसरों (कीलनदेव और तुलसी टॉवर) को लेकर बीत चुका है। ये कब पूरे हो पायेंगे? इसकी एक सुनिश्चित तारीख दे पाने में बोर्ड असमर्थ है। परिसरों में 400 के लगभग परिवारों ने अपने घर बुक किये। तुलसी टॉवर में 100 फ्लैट, कीलनदेव प्रोजेक्ट में 196, महादेव अपार्टमेंट में 96 फ्लेट्स हैं। आलम यह है कि वर्ष 2010 में लॉन्च यह प्रोजेक्ट तीन साल यानी 2013 में पूरा हो जाना चाहिए था। उस समय महादेव अपार्टमेंट के 96 फ्लैट्स की कीमत 28 से लेकर 60 लाख रुपये के बीच रखी गई थी। इसी तरह कीलन देव टॉवर में 196 फ्लैट्स की कीमत 35 से 70 लाख रुपये और तुलसी टॉवर में भव्य 100 फ्लैट्स की कीमत 65 से 85 लाख के बीच रखी गई थी। लेकिन 3 साल से अधिक का समय बीत जाने के बाद भी उन्हें नहीं बताया जा रहा है कि आखिर कब तक उन्हें उनके आवास सौंपे जाएंगे। जबकि अनुमान से 40 प्रतिशत ज्यादा पैसे का भार उपभोक्ताओं पर थोपा जा चुका है। अपने घर का सपना प्रत्येक व्यक्ति देखता है। सपना देखने वाला जीवन भर की कमाई घर खरीदी में लगाता है। उपरोक्त प्रोजेक्ट में घर बुक करने वालों के साथ भी यही स्थिति है। घर का सपना देखने वाले बोर्ड द्वारा बुकिंग के वक्त तय की गई कीमत का पूरा अंश बोर्ड को जमा कर चुके हैं। बोर्ड ने घर देते वक्त महादेव अपार्टमेंट में 40 फीसदी के लगभग कीमतें बढ़ा दीं। कीमतों में अनाप-शनाप और तथाकथित नियमों का हवाला देकर बोर्ड द्वारा की गई वृद्धि ने लोगों के सपने को चकनाचूर कर दिया है। बोर्ड के फैसले के विरोध में महादेव परिसर के कुछ खरीददार कोर्ट गये हैं। बोर्ड की जो भी योजना शुरू होती है वह समय पर पूरी नहीं होती है। जब योजना पूरी होती है तो उपभोक्ताओं से तय मूल्य से 50 प्रतिशत से अधिक तक की वसूली भी की गई है। ऐसे कई मामले न्यायालय और बोर्ड के अधीन विचाराधीन हैं। रिवेरा का फैसला आते ही 10 साल से अधिक का समय लग गया। कीलनदेव टॉवर और तुलसी टॉवर के फ्लेटों में बुकिंग करने वालों को भी कीमतें बढ़ाने का आधा-अधूरा नोटिस बोर्ड भेज चुका है। कितनी कीमत बढ़ाई जा रही है? इसका खुलासा नहीं किया गया है। खरीददारों में हड़कंप और भारी निराशा का भाव है। 400 परिवार हो रहे परेशान प्राइवेट बिल्डर और भू-माफिया से ठगे जाने के डर से लोगों को हाउसिंग बोर्ड से काफी उम्मीद थी। सरकारी एजेंसी और मौके की जगह को देखते हुए प्रोजेक्ट में घर पाने के लिए जमकर होड़ मची थी। लॉटरी के जरिए आवंटन होना था। किस्मत ने जिसका साथ दिया उसे घर अलॉट हो गया। जिनके नामों की लॉटरी खुली उन्होंने भरपूर जश्न मनाया। जश्न मनाने वाले आज जार-जार आंसू बहा रहे हैं। दरअसल, छह सालों में हाउसिंग बोर्ड महज महादेव टावर का काम ही पूरा कर पाया है। हालांकि, कुछ काम आज भी महादेव परिसर में बचे हुए हैं। कुल 92 घरों में 2010 में घर बुक करने वाले चार-पांच लोगों ने ही सशर्त रजिस्ट्रयां कराई हैं। असल में महादेव परिसर में बुकिंग के वक्त की राशि में 40 फीसदी से ज्यादा दाम बोर्ड ने बढ़ा दिये हैं। लेटलतीफी खुद बोर्ड ने की और कीमतों में वृद्धि का बोझ ग्राहकों के सिर फोड़ा। प्रोजेक्ट लांच के वक्त तय की गई पूरी-पूरी कीमत चुका देने वाले कीलनदेव और तुलसी टावर के ग्राहकों के हाल बेहद बुरे हैं। असल में इन परियोजनाओं में अभी 50 फीसदी काम बाकी है। लेकिन 16 दिसंबर को निर्माण कंपनी एमबीएल का ठेका निरस्त होने से काम बीच में ही लटक गया है। हालांकि बोर्ड के सूत्रों का कहना है कि कंपनी ने फिर से काम शुरू करने की मंसा जाहिर की है। इस संदर्भ में अधिकारियों से चर्चा हो रही है। उपभोक्ताओं पर कई तरह के डाले गए भार उपभोक्ताओं का कहना है कि प्लाट या मकान का मूल्य निर्धारण सूची देखें तो यह साफ हो जाता है कि हाउसिंग बोर्ड की योजनाओं में प्लाट खरीदने वालों को कई और ऐसे भुगतान करने पड़ते हैं जिसके लिए वे सीधे तौर पर जिम्मेदार नहीं हैं। उदाहरण के लिए योजनाओं में जो प्लाट या मकान अनबिके रह जाते हैं उनमें लगने वाले संपत्तिकर, ब्याज के भुगतान की वसूली तो दूसरे उपभोक्ताओं में समान रूप से वितरित कर ही दी जाती है। बड़ा हास्यास्पद तथ्य यह है कि योजनाओं के दौरान होने वाले कानूनी विवाद में हुए खर्च की भरपाई भी उस उपभोक्ता से ही की जाती है जिसका उस कानूनी विवाद से कोई लेना-देना नहीं है। हाउसिंग बोर्ड जमीन अधिग्रहण से लेकर उसको विकसित करने के दौरान सुपरवीजन चार्ज की वसूली तो करता ही है कंटनजेंसी के नाम पर भी एक अच्छी खासी राशि का डाका उपभोक्ताओं की जेब पर डाला जाता है। लागत मूल्य का 30 से 40 प्रतिशत तक जहां पहले ही वसूल लिया जाता है। वहीं बोर्ड की योजना के विज्ञापन में लगने वाले भारी-भरकम खर्चे की वसूली भी उपभोक्ताओं से ही की जाती है। खामियाजा हम क्यों भुगतें तुलसी टॉवर, कीलनदेव और महादेव अपार्टमेंट के आवंटी विगत दिनों हाउसिंग बोर्ड के दफ्तर पहुंचे और बोर्ड चेयरमैन कृष्णमुरारी मोघे व कमिश्नर नीतेश व्यास को व्यथा सुनाई। इन्होंने पूछा कि जब प्रोजेक्ट का काम बोर्ड की गलती से पिछड़ा है तो इसका खामियाजा हम क्यों भुगतें? बोर्ड बैठक में कीलनदेव व तुलसी अपार्टमेंट की कीमत मौजूदा कलेक्टर गाइडलाइन पर फ्रिज करने का प्रस्ताव आना था, लेकिन विरोध के चलते इसे टाल दिया गया। संचालक मंडल की बैठक में तय हुआ कि बोर्ड अपनी महत्वपूर्ण योजनाओं में अब ग्रीन बिल्डिंग कंसेप्ट लागू करेगा। इसके लिए केंद्र सरकार की एजेंसी ग्रिहा से अनुबंध किया जाएगा। बैठक के बाद मोघे ने संचालक मंडल के अन्य सदस्यों के साथ अनौपचारिक चर्चा की। बोर्ड मेंबर आवंटियों की मांग से सहमत नजर आए, लेकिन हल नहीं निकल सका। तीनों अपार्टमेंट के आवंटी 2013 की गाइडलाइन पर रेट फ्रिज करने की मांग कर रहे थे। महादेव अपार्टमेंट आवंटी एसोसिएशन के चेयरमैन डॉ. अशोक चड्ढा और कीलनदेव एसोसिएशन के अमित जैन सहित करीब पचास आवंटी अपने परिवार के साथ बोर्ड मुख्यालय पहुंचे थे। आवंटियों ने मोघे से कहा कि 2010 में लॉन्च योजना के लिए 2012 में वर्क ऑर्डर जारी हुआ। साफ है कि इसे लेट होना तय था। उधर बोर्ड के अधिकारियों का कहना है कि महादेव अपार्टमेंट 2015 में ही बनकर तैयार हो गया था। सारी अनुमतियां 2015 में ही ले ली गईं थीं। नई गाइडलाईन के अनुसार महादेव अपार्टमेंट के लिए जो नीति तय की गई है उससे आवंटियों को 15 लाख रुपए की राहत मिली है। जबकि महादेव के संदर्भ में डॉ. अशोक चड्ढा ने आरटीआई में जानकारी मांगी तो 90 दिन हो गए, लेकिन अभी तक जानकारी नहीं दी गई है। अब 8 महीने बाद मिल पाएगा पजेशन इसके पहले आवंटी आयुक्त नीतेश व्यास से मिलने पहुंचे। उन लोगों ने पूछा कि आखिर हमें अपना मकान कब मिलेगा। इस पर व्यास ने कहा कि नई एजेंसी जल्द ही काम शुरू करेगी। इसके लिए टेंडर निकाला जा रहा है। लेकिन वे यह नहीं बता सके कि बोर्ड आवंटियों को उनके फ्लेट्स कब तक सौंपेगा। हाउसिंग बोर्ड के कीलनदेव और तुलसी टॉवर्स का जितना काम बचा हुआ है, उसे पूरा करने के अब फिर से टेंडर होंगे। दोबारा टेंडर फाइनल होने के 8 महीने के बाद ही बोर्ड लोगों को फ्लैट्स के पजेशन दे सकेगा। हाउसिंग बोर्ड ने टेंडर की प्रक्रिया शुरू कर दी है। दोनों टॉवरों का दोबारा मूल्यांकन हो चुका है। शार्ट टर्म में बोर्ड एक से अधिक कंपनियों को काम दिया जा सकता है। जिन्हें कम से कम 8 महीने के भीतर काम पूरा करना होगा। हाउसिंग बोर्ड के उपायुक्त एसके मेहर ने बताया दोबारा मूल्यांकन में प्रोजेक्ट की लागत में कोई अंतर नहीं आया है। पहले की लागत पर ही अगले ठेके के टेंडर डाले जाएंगे। काम भी जल्दी पूरा कराएंगे। सांसत में कीलनदेव और तुलसी के आवंटी हाउसिंग बोर्ड शिवाजी नगर में निर्माणाधीन महादेव अपार्टमेंट में 6 साल पहले की गई बुकिंग के मुकाबले चालीस फीसदी अधिक राशि वसूल रहा है। फ्लैट बुक करने वालों को नोटिस जारी किए गए हैं। बोर्ड का तर्क है कि रिवेयरा टाउनशिप के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए निर्देशों को आधार मानकर नई कीमतें तय की गईं हैं। बुकिंगधारियों का कहना है कि स्वतंत्र बंगलों व फ्लैट के लिए एक नीति कैसे लागू की जा सकती है। दरअसल, रिवेयरा टाउनशिप में बंगलों की कीमतों में बेतहाशा वृद्धि के खिलाफ यहां के खरीदारों ने बोर्ड के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट तक कानूनी लड़ाई लड़ी थी। बोर्ड प्रोजेक्ट पूरा होने पर उस वर्ष की कलेक्टर गाइड लाइन के आधार पर कीमत वसूलता था। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद खरीददारों को उनके द्वारा पूर्व में जमा राशि पर ब्याज का लाभ देने और बुकिंग वाले वर्ष की कलेक्टर गाइड लाइन से निर्माण वर्ष तक 10 प्रतिशत चक्रवृद्धि ब्याज वसूलने की नीति तय की गई। महादेव आवंटी संघ के अध्यक्ष अशोक चड्ढा कहते हैं कि महादेव अपार्टमेंट के लिए रिवेयरा टाउनशिप की नीति लागू करना समझ से परे है। हमने इसके खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। हाउसिंग बोर्ड के अपर आयुक्त एसके मेहर का दावा है कि महादेव टॉवर में 20 खरीदारों ने रजिस्ट्री करा ली है। इसमें से 2 परिवार रहने भी पहुंच गए हैं। वहीं चड्ढा का कहना है कि महादेव टॉवर में बोर्ड ने बाद में पेंट हाउस बनाए है जिन्हें सीधी बोली के तहत बेचा गया। उन खरीदारों ने रजिस्ट्री कराई है। डॉ. चड्ढा ने कहा जब तक गाइड लाइन से हटकर बढ़ाई गई कीमत वाले मामले का निराकरण नहीं होगा। कोई खरीदार रजिस्ट्री नहीं कराएगा। उधर कीलनदेव अपार्टमेंट सोसायटी के अध्यक्ष अमित जैन ने कहा कि बोर्ड अपनी लापरवाही का पैसा भी हमसे लेने की तैयारी कर रहा है। मई 2010 में हुई लॉटरी के समय दावा किया गया था कि महादेव अपार्टमेंट 24 कीलनदेव 30 और तुलसी अपार्टमेंट 36 महीने में बन कर तैयार हो जाएंगे। लगातार देरी हो रही है। प्रोजेक्ट में हो रही देरी के लिए बोर्ड के अधिकारी और निर्माण एजेंसियां दोषी हैं, लेकिन सजा हमें भुगतनी पड़ रही है। 2013 में पूरा भुगतान लेने के बाद भी बढ़ा दी 40 फीसदी कीमत महादेव आवंती संघ के अध्यक्ष अशोक चड्ढा कहते हैं कि बोर्ड लोगों को सस्ती दरों पर आवास उपलब्ध कराने के लिए बना है, लेकिन वह अपने उद्देश्य से भटक रहा है। वह कहते हैं कि महादेव अपार्टमेंट के आवंटियों से बोर्ड ने 2013 तक फ्लेट्स के सारे भुगतान ले लिए थे, लेकिन उसके बाद भी अभी तक फ्लेट्स नहीं सौंपे गए हैं। उस पर 40 फीसदी कीमत की बढ़ोतरी कर दी गई है। वह कहते हैं कि एक तरफ जहां प्राइवेट बिल्डर बुकिंग के समय तय कीमत पर ही नियत समय के भीतर मकान सौंप रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ बोर्ड जानबूझकर अपने उपभोक्ताओं को परेशान कर रहा है। बोर्ड की इस धोखाधड़ी से परेशान कुछ लोग कोर्ट चले गए हैं। वहीं हाउसिंग बोर्ड के अध्यक्ष कृष्ण मुरारी मोघे कहते हैं कि बोर्ड सुप्रीम कोर्ट और कलेक्टर गाइड लाइन के बाहर नहीं जाएगा। जनता को 80 लाख का फ्लेट 60 लाख में मिल रहा है। बोर्ड यह भी कोशिश कर रहा है कि आवंटियों द्वारा समय पर पैसा नहीं देने पर लिया जाने वाला ब्याज भी कम किया जाए। वह कहते हैं कि सरकार का काम ठेकेदार की वजह से लेट हुआ है। एक आध साल में क्या फर्क पड़ता है। विलंब पर जवाबदेही तय होगी: माया सिंह नगरीय विकास एवं आवास मंत्री माया सिंह ने मध्यप्रदेश गृह निर्माण मण्डल की आवास परियोजना के निर्माण में विलंब होने और समय पर उपभोक्ताओं को आवास नहीं देने पर गहरी नाराजगी व्यक्त की। उन्होंने इसके लिये मण्डल की जवाबदेही तय करने और निर्माण एजेंसी के खिलाफ सख्त कार्यवाही करने को कहा। माया सिंह ने गत दिनों मण्डल की बोर्ड ऑफिस स्थित आवास परियोजना तुलसी, कीलनदेव और महादेव का निरीक्षण किया। उन्होंने तुलसी और कीलनदेव कॉम्पलेक्स का निर्माण अधूरा होने, कार्य की गति धीमी होने पर असंतोष व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि मण्डल की यह जिम्मेदारी थी कि वह निरंतर इन परियोजनाओं की प्रगति का आंकलन करे और तय समय पर लोगों को मकान मिलना सुनिश्चित करे। उन्होंने कहा कि इसमें कोताही की गयी है। श्रीमती सिंह ने इस संबंध में सभी जानकारियों के साथ मण्डल अधिकारियों को तलब किया है। उन्होंने कहा कि वे यह देखेंगी कि इन आवास इकाइयों के निर्माण में किस स्तर पर विलंब हुआ है। श्रीमती सिंह ने कहा कि ठेकेदार द्वारा अगर विलंब किया गया है, तो उसके खिलाफ समय रहते कार्यवाही की जाना चाहिये। मंत्री श्रीमती सिंह ने इस मौके पर उपस्थित आवास इकाइयों के उपभोक्ताओं को आश्वस्त किया कि उन्हें शीघ्र ही न्यायोचित आधार पर आवास का पजेशन दिलवाया जायेगा। नगरीय प्रशासन एवं आवास मंत्री मायासिंह कहती हैं कि मैंने तीनों प्रोजेक्ट का दौरा कर अधिकारियों से चर्चा कर एडीशनल कमिश्नर से रिपोर्ट मांगी थी जो मुझे अभी तक नहीं मिली है। जल्द ही जांच रिपोर्ट मंगाई जाएगी। आवंटियों की समस्या को देखते हुए बोर्ड अध्यक्ष और आयुक्त के साथ संयुक्त बैठक कर समस्या का समाधान निकाला जाएगा। हाउसिंग बोर्ड के कमिश्नर नीतेश व्यास कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के आधार पर ही नई नीति बनाई है। यह बात आवंटियों को बता दी गई है। नई नीति में उन्हें काफी राहत दी गई है। अवैध कालोनी की बुकिंग में फंसे 3000 हाउसिंग बोर्ड एक सरकारी ऐजेंसी है और लोग भरोसा करते हैं कि हाउसिंग बोर्ड की संपत्तियों में किसी भी तरह की गड़बड़ी नहीं होगी, लेकिन ऐसा हो गया। हाउसिंग बोर्ड ने बिना टीएनसीपी परमिशन के अवैध कालोनी का प्रोजेक्ट लांच कर दिया और लगभग 3000 ग्राहकों की बुकिंग भी कर ली। जिस जमीन पर यह प्रोजेक्ट लांच किया गया, हकीकत में वह रिहायशी नहीं बल्कि खेती की जमीन है। यहां मकान बनाना अवैध माना जाता है। समाचार लिखे जाने तक हाउसिंग बोर्ड के पास टीएनसीपी की परमिशन नहीं थी। भोपाल सहित अन्य शहरों में ऐसे ही नौ प्रोजेक्ट के 2873 ईडब्ल्यूएस और एलआईजी फ्लैट्स का निर्माण लैंडयूज में बदलाव की इजाजत लेने के फेर में फंस गए हैं। हाउसिंग बोर्ड ने राजधानी के बैरागढ़ चीचली में गौरव नगर प्रोजेक्ट लॉन्च किया है। इसके तहत 384 ईडब्ल्यूएस और 816 एलआईजी फ्लैट बनाए जाने हैं। इसके लिए करीब डेढ़ साल पहले बुकिंग भी कर ली गई थी, लेकिन अब तक यहां एक ईंट भी बोर्ड नहीं रख पाया। इसके अलावा बड़वानी, कटनी, छिंदवाड़ा, मंडला, मुरैना, रीवा, उमरिया और अनूपपुर में अटल आश्रय योजना के तहत फ्लैट का निर्माण होना है। इन सभी प्रोजेक्ट के लिए मिली जमीन का लैंडयूज अभी भी कृषि है, इसे आवासीय किया जाना है। जब तक लैंड यूज नहीं बदलेगा, तब तक निर्माण शुरू नहीं होगा। प्रोजेक्ट में देरी होगी तो यह समय पर पूरे भी नहीं हो पाएंगे। हाउसिंग बोर्ड के गौरव नगर प्रोजेक्ट के लिए बुकिंग की प्रक्रिया पिछले साल से चल रही है। पिछले साल इस प्रोजेक्ट को बोर्ड ने महाबडिय़ा कला में शुरू किया था। इसके तहत तीन बार आवेदन भी बुलाए गए थे, लेकिन लोगों ने यहां बुकिंग के लिए दिलचस्पी नहीं दिखाई। इसके बाद बोर्ड ने प्रोजेक्ट को बैरागढ़ चीचली में ट्रांसफर कर दिया। अभी इसमें बुकिंग चल रही है। पहले भी गलती कर चुका है बोर्ड हाउसिंग बोर्ड ने वर्ष 2009 में करोंद मंडी के सामने देवकी नगर प्रोजेक्ट लॉन्च किया था। इस प्रोजेक्ट के तहत एलआईजी मकान बनाए जाने थे। इनके लिए 150 लोगों ने बुकिंग भी करा ली थी। बुकिंग के बाद हाउसिंग बोर्ड ने लोगों को बताया था कि जिस जमीन पर प्रोजेक्ट है, वह यातायात लैंडयूज की है। इसके चलते बोर्ड को परमिशन ही नहीं मिल पाई। आखिरकार प्रोजेक्ट निरस्त हो गया। हाउसिंग बोर्ड का सुरम्य परिसर प्रोजेक्ट भी निरस्त हो चुका है। यह प्रोजेक्ट अयोध्या एक्सटेंशन में बनना था, इसमें सिर्फ छह बुकिंग हुई थी। बोर्ड ने प्रोजेक्ट को छह साल पहले लॉन्च किया था। इसके बाद इस प्रोजेक्ट को भी निरस्त कर दिया गया था। प्रोजेक्ट गलत तरीके से बना था। सफेद हाथी बन कर रह गए प्राधिकरण जहां हाउसिंग बोर्ड अपनी लेटलतीफी और लापरवाही के कारण उपभोक्ता परेशान हो रहे हैं वहीं प्रदेशभर के विकास प्राधिकरण भ्रष्टाचार की जद में हैं। प्रदेश के ज्यादातर शहरों के प्राधिकरण अब सफेद हाथी की तरह हो गए हैं। घोटालों से दागदार और कंगाल हो चुके प्राधिकरणों के अस्तित्व पर सवाल उठना लाजिमी है। इंदौर विकास प्राधिकरण (आइडीए) के पास धन की इतनी कमी है कि उसे बाजार से कर्ज लेने की नौबत आ गई है। आम जनता को सस्ती दर पर मकान मुहैया करवाने के लिए काम शुरू किया था लेकिन अचानक ही योजना को ठप कर दिया गया। अब यह जमीन निजी बिल्डरों के हाथ में है। आइडीए के खिलाफ ऐसे 11 मामलों की जांच चल रही है। घोटालों के मामले में भोपाल विकास प्राधिकरण (बीडीए) भी पीछे नहीं है। बागमुगलिया इलाके में बीडीए के अधिकारियों ने 125 एकड़ जमीन को गलत तरीके से अनापत्ति प्रमाणपत्र देकर कब्जा छोड़ दिया। बाद में यहां बिल्डरों ने शॉपिंग मॉल और आवासीय क्षेत्र विकसित करके करोड़ों रु। कमाए। इस मामले की जांच दबा दी गई। ग्वालियर विकास प्राधिकरण (जीडीए) तो अभूतपूर्व घोटालों को अंजाम दे रहा है। जीडीए ने आवासीय कॉलोनियां विकसित करने के लिए सरकारी जमीन का अधिग्रहण किया था। बाद में यह जमीन निजी कॉलोनाइजरों को दे दी गई। ऐसी दो दर्जन से ज्यादा गृह निर्माण समितियों का घोटाला जब सामने आया तो उनकी फाइलें जीडीए से गायब हो गईं। जीडीए ने अनुमान लगाए बिना ही कई इलाकों में मकान-दुकानों का निर्माण करवा दिया, लेकिन यहां इन्हें खरीदार ही नहीं मिल रहे। करोड़ों रु. खर्च करके बनाए गए शॉपिंग मॉल में कोई दुकान नहीं खरीद रहा है। ऐसे में प्राधिकरण की आर्थिक स्थिति लगातार खराब हो रही है। ग्वालियर के ही एक अन्य प्राधिकरण, विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकरण (साडा) ने 200 करोड़ रु. की लागत से 3,000 हेक्टेयर क्षेत्र में नया शहर बसाया है। लेकिन यहां भी उसे खरीदार नहीं मिल रहे। जबलपुर, उज्जैन और देवास के प्राधिकरण भी पैसे की कमी से जूझ रहे हैं और घोटालों के आरोपों से दो-चार हो रहे हैं। प्राधिकरणों की खस्ता हालत पर भोपाल के स्कूल ऑफ प्लानिंग ऐंड आर्किटेक्चर की प्रोफेसर सविता राजे कहती हैं, प्राधिकरण को निगम में मर्ज करने पर केंद्रीकृत काम होगा। अभी समन्वय नहीं होने से योजनाएं कई साल तक अटकी रहती हैं। संविधान के 74वें संशोधन के बाद प्राधिकरणों का अस्तित्व वैसे भी खत्म कर दिया जाना चाहिए था क्योंकि इसके तहत शहरों के विकास की जिम्मेदारी नगरीय निकायों को दी जा चुकी है। इधर आवास की गारंटी की तैयारी एक तरफ एमपी हाउसिंग बोर्ड और विकास प्राधिकरण अपने कर्तव्य में फेल हो रहे हैं वहीं दूसरी तरफ सरकार मप्र में आर्थिक रूप से कमजोर और निम्न आय वर्ग के आवासहीन और जिनके पास आवासीय जमीन भी नहीं है, उनके लिए सरकार आवास गारंटी कानून लाएगी। कानून के दायरे में आने वालों को किफायती दर पर आवास या प्लॉट दिया जाएगा। कानून इसी साल लागू हो सकता है। इसके लिए नगरीय विकास विभाग ने कानून का मसौदा तैयार कर लिया है। इस योजना के लागू होते ही मध्यप्रदेश देश का पहला राज्य होगा जहां आवास गारंटी योजना शुरू होगी। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की पहल पर शुरू होने जा रही इस योजना का लाभ मध्यप्रदेश के मूल निवासियों (राज्य शासन की भेद परिवर्तन की परिभाषा के तहत) को इसका लाभ मिल पाएगा। इस योजना के तहत आवासों का आवंटन दो तरह से किया जाएगा। एक आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए और दूसरा निम्न आय वर्ग के लिए। आर्थिक रूप से कमजोर आय वर्ग वालों के लिए 30 वर्गमीटर में निर्मित तीन लाख रुपए की लागत से बना आवास दिया जाएगा। वहीं निम्न आय वर्ग के लोगों के लिए 45 वर्गमीटर में 6 लाख रुपए की लागत से निर्मित आवास दिए जाएंगे। इस योजना का क्रियान्वयन ग्रामीण क्षेत्रों में पंचायतों के माध्यम से तथा शहरी क्षेत्र में नगर निगम या नगर पालिका के माध्यम से किया जाएगा। इस योजना का प्राधिकृत अधिकारी डिप्टी कलेक्टर होगा। इस योजना के लिए पात्र हितग्राहियों की तलाश की जाएगी। इसके लिए समितियां बनाई जाएंगी। ये समितियां पात्र व्यक्तियों का पंजीयन करेंगी। पात्र परिवार मेंं पति-पत्नी और 25 साल से कम आयु के बच्चे शामिल रहेंगे। अगर परिवार में कोई विधवा या तलाकशुदा है तो उसे भी पात्र माना जाएगा। पात्र परिवार से सस्ती दर पर मकान या प्लॉट के लिए पात्रता के दस्तावेज लिए जाएंगे। ग्रामीण विकास विभाग के अधिकारियों का कहना है कि इसके मसौदे को पूर्व मुख्य सचिव एंटोनी डिसा की अध्यक्षता वाली वरिष्ठ सचिव समिति ने मंजूरी दे दी थी। ज्ञातव्य है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2022 तक सभी आवासहीनों को आवास देने की घोषणा की है। इसके मद्देनजर सभी राज्य सरकारें योजनाएं बना रहीं हैं, पर मध्यप्रदेश ने सबसे पहले मध्यप्रदेश आवास गारंटी कानून बना लिया है। इसमें 2022 तक केंद्र और राज्य सरकार की आवासीय योजनाओं के तहत मकान दिए जाएंगे। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की शुरू से मंशा रही है कि प्रदेश में हर व्यक्ति का अपना मकान हो। इसलिए प्रदेश में केंद्र और राज्य सरकार की तमाम आवास योजनाएं संचालित हैं। हर साल पात्र हितग्राहियों को आवास मुहैया कराए जाते हैं। लेकिन आर्थिक रूप से कमजोर और निम्न आय वर्ग के व्यक्तियों के लिए सरकार ने यह पहल की है। इस योजना से अब शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में सड़कों किनारे झोपड़े और कनात लगाकर रहने वालों को पक्के मकान मिलेंगे। सरकार की इस पहल को अभी से सराहा जा रहा है। निश्चित रूप से मप्र आवास गारंटी योजना अन्य राज्यों के लिए मिसाल बनेगी। इस योजना के तहत पात्र हितग्राहियों की खोज ग्राम उदय और नगर उदय अभियान के दौरान की जाएगी। इस अभियान के तहत दौरे पर जाने वाले अधिकारी इस बात की पड़ताल करेंगे कि उक्त क्षेत्र में कितने आवासहीन लोग हैं। साथ ही आवासों का वितरण भी इस अभियान के दौरान किया जाएगा। जानकारों का कहना है कि प्रदेश के शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में आवासहीन परिवारों की संख्या दो लाख के करीब है। इसमें भी लगभग 65 हजार परिवार ग्रामीण क्षेत्रों में झोपड़े या अन्य किसी व्यवस्था से रह रहे हैं। विभागीय अधिकारियों का कहना है कि इस कानून का सबसे ज्यादा फायदा भोपाल और इंदौर जैसे शहरों में मिलेगा। यहां आज भी कई परिवार ऐसे हैं, जिनके अपने आवास या प्लॉट नहीं है। एक सर्वे में ग्रामीण क्षेत्रों में कानून के दायरे में आने वालों की संख्या 76 हजार और शहरी क्षेत्र में सवा लाख के आसपास आंकी गई थी। बताया जा रहा है कि जनगणना 2011 और सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण के आधार पर पात्र व्यक्तियों की पहचान की जाएगी। इनका बाकायदा सत्यापन भी करवाया जाएगा।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें