सोमवार, 2 नवंबर 2015

सरकार की मेहरबानी चहेते काट रहे चांदी

सरकार की आंख, नाक, कान बने अफसरों से बिगड़ी प्रदेश का कॉडर मैनेजमेंट
भोपाल। मप्र में सरकार की मेहरबानी कुछ अफसरों पर इस कदर बरस रही है कि इससे प्रदेश का कॉडर मैनेजमेंट पूरी तरह बिगड़ता जा रहा है। सरकार की मेहरबानी का आलम यह है कि जहां कुछ अफसरों को तीन-तीन, चार-चार जिलों में कलेक्टरी करने का मौका मिला है वहीं कई अफसर कलेक्टरी की आस में रिटायर हो गए। सरकार की मेहरबानी का फायदा सबसे अधिक प्रमोटी आईएएस उठा रहे हैं। जहां प्रमोटी आईएएस एसके मिश्रा कई वर्षों से सरकार की आंख, नाक, कान बने हुए हैं, वहीं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की मेहरबानी से प्रमोटी आईएएस कवीन्द्र कियावत और उनकी पत्नी जयश्री कियावत लगातार कलेक्टरी का सुख भोग रहे हैं। यही नहीं प्रदेश के 51 जिलों में से अधिकांश जिलों में मंत्रियों-नेताओं ने अपने चहेतों को कलेक्टर बनवा रखा है। वर्तमान समय में 10 संभागों में से 8 में प्रमोटी आईएएस संभागायुक्त हैं वहीं 51 जिलों में से 23 जिलों में सीधी भर्ती से आए आईएएस कलेक्टर हैं, जबकि 28 जिलों में प्रमोटी कलेक्टर बने हुए हैं। मप्र कैडर के सीधी भर्ती से आए एक सीनियर अफसर कहते हैं ऐसा लगता है जैसे प्रदेश में काबिल आईएएस अफसरों का टोटा पड़ गया है। प्रदेश के राजनैतिक और प्रशासनिक हालात के चलते काबिल अफसरों को मौका नहीं दिया जा रहा है। आज हालत यह है कि जिलों के कलेक्टर और आयुक्त पद पर प्रमोट हुए आईएएस अफसर तैनात हैं। जानकारों का कहना है कि प्रदेश में नौकरशाही पर सत्ता का दखल लगातार बढ़ा है। इसके चलते कुछ चुनिंदा अफसरों की चांदी हो गई है। मध्य प्रदेश में नौकरशाहों के लिए अपनी जिम्मेदारी निभाने के साथ-साथ सत्ता के साथ भी संतुलन बनाए रखना पड़ता है। जो इस कला में पारंगत नहीं होते, उन्हें कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। प्रमोटी आईएएस अफसर और आईएएस कैडर के अफसरों के बीच एक द्वंद्व लगातार चलता रहा है। वैसे भी आईएएस कैडर के अफसरों के मुकाबले प्रमोटी आईएएस अफसरों की साख आम लोगों के बीच कम होती है। मामला सिर्फ आईएएस अफसरों तक ही सीमित नहीं है। कमोवेश ऐसी ही स्थिति आईपीएस अफसरों को लेकर भी है।
फील्ड में प्रमोटियों पर सरकार को ज्यादा भरोसा
मुख्यमंत्री के टॉप टेन अफसरों में भले ही सीधी भर्ती के आईएएस की भरमार है, अपना दम दिखाने में राज्य प्रशासनिक सेवा के प्रमोटी आईएएस भी पीछे नहीं रहते, यहीं कारण है कि सरकार के चहेते कलेक्टर-कमिश्नरों की प्रदेश में कमी नहीं है, यह एक ही जिले में कलेक्टर नहीं, बल्कि तीन-चार जिलों में कलेक्टरी कर सरकार में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर मुख्यमंत्री के भी खास बन जाते हैं। इसी का नतीजा है कि आज उज्जैन, सागर, रीवा, भोपाल जैसे महत्वपूर्ण संभागों में कमिश्नरी ही नहीं, बल्कि 28 जिलों में कलेक्टरी भी संभाल रहे हैं। फील्ड में सीधी भर्ती के आईएएस की अपेक्षा अब सरकार प्रमोटी आईएएस अफसरों पर ज्यादा भरोसा कर रही है। प्रदेश में कुछ अफसरों पर सरकार की मेहरबानी का असर यह हो रहा है कि जहां कई अफसर चौथे जिले में कलेक्टरी कर रहे हैं और पांचवें की भी आस पाले हुए हैं, तो कई अफसर ऐसे भी हैं कि आईएएस अवार्ड पा गए, लेकिन कलेक्टरी के लिए अभी भी तरस रहे हैं। इसमें 1998 बैच की उर्मिला शुक्ला प्रमुख उदाहरण हैं। वे 17 वर्ष पहले आईएएस तो बन गईं, पर कलेक्टरी अभी तक नहीं मिली है। इसी तरह 7 अन्य प्रमोटी आईएएस भी कतार में हैं, जिन्हें अभी तक कलेक्टरी नहीं मिली है। इनमें वर्ष 2003 बैच के निसार अहमद, अरुण तोमर, वर्ष 2004 बैच के अशोक शर्मा और अलका श्रीवास्तव और बैच 2005 के डीबी सिंह, राजेश कुमार जैन और अशोक वर्मा का नाम शामिल है। वहीं कई अफसर तो कलेक्टरी मिलने की आस में ही रिटायर हो गए हैं इनमें राजकुमारी सोलंकी और बीके सिंह ऐसे प्रमोटी आईएएस रहे, जो बिना कलेक्टरी किए ही रिटायर हो गए। वहीं मुख्यमंत्री के 10 साल से कार्यकाल में उनके कृपापात्र कई आईएएस ऐसे हैं, जो लगातार कलेक्टरी कर रहे हैं। उनका मोह कलेक्टरी से दूर नहीं हो रहा है। ऐसे में दूसरों के सीने पर सांप लोट रहा है। इससे नौकरशाही में असंतोष की स्थिति निर्मित हो रही है।
इन पर बरस रही सरकार की मेहरबानी
उज्जैन कलेक्टर कवीन्द्र कियावत पर सरकार की मेहरबानी किसी से छुपी नहीं हैं। इनकी मुख्यमंत्री के चहेते अफसर में गिनती होती है। इसी का परिणाम है की सिंहस्थ जैसी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी इनके हवाले है। कियावत ऐसे प्रमोटी अफसरों में शुमार हैं जो लगातार कलेक्टरी का सुख भोग रहे हैं। इससे पहले अनूपपुर, खंडवा और सिहोर कलेक्टर रह चुके हैं। वहीं एक और प्रमोटी जबलपुर कलेक्टर शिवनारायण रूपला पर भी सरकार की मेहरबानी रही है और इन्हें भी चार जिलों में कलेक्टर रहने का सौभग्य मिला है। रूपला सबसे पहले श्योपुर फिर रीवा और सागर कलेक्टर रह चुके हैं। सीधी भर्जी के अफसरों में पी. नरहरि और बी. चन्द्रशेखर बोरकर पर भी सरकार मेहरबान रही है। पी. नरहरि इन्दौर से पहले सिवनी, सिंगरौली और ग्वालियर कलेक्टर रह चुके हैं। वहीं रतलाम कलेक्टर बी. चन्द्रशेखर बोरकर बैतूल, हरदा झाबुआ में कलेक्टरी कर चुके हैं। बताया जाता है कि छिंदवाड़ा कलेक्टर महेश चौधरी पिछले 4 साल से एक ही जगह पर जमे हुए हैं। हालांकि बीच में इलेक्शन कमीशन की सख्ती के कारण चुनाव के दौरान उन्हें कुछ दिन के लिए हटाया गया था, लेकिन पुन: वहीं पदस्थ कर दिया गया है। कई आईएएस ऐसे भी हैं जिन्हें अभी तक तीन जिलों में कलेक्टरी की कमान मिल चुकी है। अगर सरकार की मेहरबानी उन पर ऐसे ही रही तो उनमें से कई चौथी बार भी कलेक्टरी का लाभ प्राप्त कर सकते हैं। एंसे अफसरों में जयश्री कियावत दतिया, झाबुआ और अब धार की कलेक्टर हैं। इनके अलावा नीरज दुबे शहडोल, खंडवा और अब खरगौन, एम.के. अग्रवाल खण्डवा से पहले मुरैना और देवास के कलेक्टर रहे हैं। वहीं संजय गोयल सिहोर, रतलाम और ग्वालियर, एमबी ओझा दतिया, राजगढ़, विदिशा, राहुल जैन छत्तरपुर, और अब रीवा, एके सिंह अशोक नगर, कटनी और अब सागर, संजीव सिंह नरसिंहपुर, छिंदवाड़ा, मंदसौर, केदार शर्मा सीधी, खरगौन और टीकमगढ़ और सुदामा पांडरीनाथ खांडे हरदा, टीकमगढ़ और अब सीहार में कलेक्टर हैं। इस कारण अब यह स्थिति निर्मित हो गई है कि अभी तक 2009 बैच के सीधी भर्ती के अफसरों को जिलों में जाने का मौका नहीं मिल पाया है। उनके दिल में इसको लेकर दिन पर दिन अकुलाहट बढ़ती जा रही है। 2009 बैच के अफसरों में तरुण कुमार पिथरोडे, सोफिया फारुकी, अजय गुप्ता, अविनाश लवानिया, धनराजू एस, प्रियंका दास, अभिषेक सिंह, प्रीति मैथिल, इलियाराजा टी, तेजस्विनी नायक, अमित तोमर, श्रीकांत भनोट आदि के नाम शामिल हैं। इनमें से कुछ अधिकारी जिलों में सीईओ के रूप में पदस्थ हैं तो पिथरोडेÞ व्यापमं, प्रियंका दास नगरीय प्रशासन, अविनाश लवानिया उज्जैन मेला अधिकारी, तेजस्विनी नायक भोपाल नगर निगम आयुक्त आदि पदों पर कार्यरत हैं। इस मामले में इन अधिकारियों ने सीएस से मुलाकात कर कलेक्टर बनाए जाने की मांग की थी, जिस पर सीएस ने यह कहते हुए इंकार कर दिया कि अभी सीनियर अधिकारियों को कलेक्टरी नहीं मिली है, उन्हें मिलने के बाद आपको मौका मिलेगा। जिस तरह कुछ अफसरों को लगातार कलेक्टरी दी जा रही है, उससे प्रशासनिक ढांचा बिगड़ता जा रहा है। इससे आने वाला समय प्रमोटी अफसरों के लिए अच्छा नहीं होगा। क्योंकि अब जो बैच आ रहे हैं, वे बड़े-बड़े हैं। इसलिए अभी तक कलेक्टरी के लिए 50-50 का जो हिसाब चल रहा था, वह आगे जारी नहीं रह सकता। इससे अनुमान लगाया जा रहा है कि अब कलेक्टरी केवल सीधी भर्ती वालों को ही मिलेगी। कलेक्टरी और कमिश्नरी पाने में ही राज्य सेवा के प्रमोटी आईएएस ही आगे नहीं है, बल्कि सरकार द्वारा लिए जाने वाले महत्वपूर्ण निर्णय से लेकर 'मैनेजमेंटÓ जमाने में भी यह अहम भूमिका अदा करते हैं। उज्जैन कमिश्नरी संभाल रहे रवींद्र पस्तौर इसके पहले कमिश्नर जबलपुर, कमिश्नर रीवा, सीईओ मनरेगा परिषद, कलेक्टर पन्ना, मुख्यमंत्री के उपसचिव सहित अनेक पदों पर रह चुके हैं।
यह है सीधी भर्ती के कलेक्टर
सीधी भर्ती के आईएएस में कलेक्टर के रूप में पी नरहरि इंदौर, आईरिन सिंथिया जेपी बुरहानपुर, बी चंद्रशेखर रतलाम, स्वतंत्र कुमार सिंह मंदसौर, नंदकुमारम नीमच, संजय गोयल ग्वालियर, श्रीमन शुक्ला गुना, शिल्पा गुप्ता मुरैना, राहुल जैन रीवा, विशेष गढ़पाले सीधी, कृष्ण गोपाल तिवारी उमरिया, निशांत वरवडे भोपाल, सुदाम पंढरीनाथ खडे सीहोर, भोंडवे संकेत शांताराम होशंगाबाद, ज्ञानेश्वर बी पाटिल बैतूल, विकास नरवाल कटनी, भरत यादव सिवनी, लोकेश कुमार जाटव मंडला, व्ही किरण गोपाल बालाघाट तथा छबि भारद्वाज डिंडौरी में पदस्थ हैं।
पहली बार बने कलेक्टर
अजय सिंह गंगवार बड़वानी, शेखर वर्मा अलीराजपुर, आशुतोष अवस्थी देवास, राजीव शर्मा शाजापुर, नीरज दुबे खरगौन, विनोद कुमार शर्मा आगर-मालवा, राजाभैया प्रजापति अशोकनगर, प्रकाशचंद्र जांगरे दतिया, पन्नालाल सोलंकी श्योपुर, मधुकर अग्नेय भिण्ड, विशेष गढ़पाले सीधी, मुकेश कुमार शुक्ला शहडोल, नरेंद्र सिंह परमार अनूपपुर, कृष्ण गोपाल तिवारी उमरिया, श्रीनिवास शर्मा दमोह, मसूद अख्तर छतरपुर, भोंडवे संकेत शांताराम होशंगाबाद, शिल्पा गुप्ता मुरैना, शशांक मिश्रा सिंगरौली, रजनीश कुमार श्रीवास्तव हरदा, विकास नरवाल कटनी, नरेश पाल कुमार नरसिंहपुर आदि शामिल हैं।
यह भी रह चुके हैं महत्वपूर्ण पदों पर भोपाल कमिश्नर एसबी सिंह एडिशनल कलेक्टर इंदौर, कलेक्टर भिंड, कलेक्टर नीमच, कलेक्टर खंडवा, कमिश्नर ग्वालियर संभाग के बाद भोपाल कमिश्नर बनाए गए, जबकि ग्वालियर कमिश्नर की जिम्मेदारी संभाग रहे केके खरे इसके पहले कलेक्टर अनूपपुर, कलेक्टर सतना रह चुके हैं। सागर के कमिश्नर बनाए गए राजकुमार माथुर पहले भोपाल कलेक्टर, विदिशा कलेक्टर, गृह विभाग के सचिव रह चुके हैं। यानी हमेशा इन्हें अच्छी पोस्टिंग मिलती रही हैं। विदिशा के वर्तमान कलेक्टर एमबी ओझा उसके पहले कलेक्टर राजगढ़, ननि आयुक्त भोपाल, ग्वालियर तथा एडीएम भोपाल रहे हैं। ऐसे ही सतना के कलेक्टर संतोष मिश्रा पहले कलेक्टर अशोकनगर और कलेक्टर बड़वानी रहे हैं। भोपाल कलेक्टर निशांत वरवडे इसके पहले मुख्यमंत्री के उपसचिव और उसके पूर्व होशंगाबाद कलेक्टर रहे हैं।
जूनियर नहीं बन सकेंगे कलेक्टर
राजनीतिक हस्तक्षेप के चलते फील्ड में की जाने वाली कलेक्टर की पोस्टिंग के मामले से तबादला बोर्ड संतुष्ट नहीं है, इसके चलते सीनियर अफसर कलेक्टर बनने से वंचित रह जाते हैं और जूनियर अपनी पोस्टिंग कराने में सफल हो जाते हैं। इससे कॉडर मैनेजमेंट पूरी तरह बिगड़ता जा रहा है। अब इसे सुधारने का बीड़ा तबादला बोर्ड के एक सदस्य ने उठाया है। वैसे सीएस की अध्यक्षता में आईएएस, आईपीएस तथा आईएफएस की पोस्टिंग, प्रमोशन करने सुप्रीम कोर्ट के आदेश से तबादला बोर्ड गठित किया गया है, परंतु पहले की गई गलतियों को सबसे पहले सुधारने का काम किया जाएगा। इसी कारण सीएस ने 2009 बैच के अफसरों को अभी कलेक्टर बनाने से मना कर दिया है। पिछले कुछ सालों से कलेक्टर की पोस्टिंग में राजनीतिक हस्तक्षेप इतना बढ़ा है कि अधिकारियों की सीनियरटी का बिल्कुल ध्यान नहीं रखा गया। जिस भी अफसर की राजनीतिक और प्रशासनिक पहुंच ज्यादा थी, वह कलेक्टर बनने में सफल रहा, इसके कारण अफसरों की नाराजगी भी सरकार को झेलनी पड़ी। लगभग दो महीने पहले ऐसे ही कुछ सीनियर आईएएस राजीव शर्मा, अजय सिंह गंगवार, श्रीनिवास शर्मा, पीएल सोलंकी, नरेंद्र परमार, राजा भैया प्रजापति आदि को कलेक्टर बनाया गया, फिर भी 2003 बैच के प्रमोटी अफसरों में निसार अहमद तथा अरुण कुमार तोमर, वर्ष 2004 बैच में अशोक कुमार शर्मा तथा अलका श्रीवास्तव और वर्ष 2005 बैच के डीबी सिंह, अशोक कुमार वर्मा तथा राजेश कुमार जैन अभी कलेक्टर बनने से वंचित रह गए हैं, जबकि सीधी भर्ती के आईएएस अफसरों में 2008 बैच तक के आईएएस कलेक्टर बने हुए हैं। इनमें 2001 बैच के पी नरहरि से लेकर 2008 बैच के अफसरों में आईरिन सिंथिया जेपी बुरहानपुर, नंद कुमारम नीमच, शिल्पा गुप्ता मुरैना, विशेष गढ़पाले सीधी, कृष्ण गोपाल तिवारी उमरिया, छबि भारद्वाज डिंडौरी, विकास नरवाल कटनी, भरत यादव सिवनी तथा व्ही किरण गोपाल बालाघाट का नाम शामिल है। यानी प्रमोटी आईएएस में जहां 2003 बैच से लेकर 2005 बैच तक के कुछ आईएएस कलेक्टरी पाने से वंचित हैं।
क्या है पोस्टिंग के नियम
आईएएस, आईपीएस तथा आईएफएस की सेवा में आने के बाद किसी भी अधिकारी को एक से दो साल की ट्रेनिंग दी जाती है, उसके बाद राजस्व अधिनियम, पुलिस अधिनियम या फारेस्ट नियमों का ज्ञान अर्जित करने डेढ़ से दो महीने की ट्रेनिंग अलग से होती है। ट्रेनिंग के बाद उसे राजस्व एसडीओ, फारेस्ट एसडीओ तथा डीएसपी आदि के पदों पर दो साल रखा जाता है। इसके बाद अतिरिक्त कलेक्टर, अतिरिक्त एसपी या उपवन मंडलाधिकारी बनाया जाता है, फिर जिला पंचायत में सीईओ के बाद कलेक्टर बनाए जाने का नियम है। यानी प्रशासनिक क्षेत्र में सात से आठ साल का अनुभव पाने के बाद ही कलेक्टरी दी जाती है, मगर कई मामलों में ऐसा नहीं हुआ और कई बार जूनियर अफसरों को कलेक्टर, एसपी बना दिया गया। मुख्य सचिव की अध्यक्षता में गठित तबादला बोर्ड में उस विभाग का पीएस, विभागाध्यक्ष तथा एक अन्य सदस्य रहता है। हाल ही में एमएम उपाध्याय के रिटायर होने के बाद बोर्ड में एसीएस अरुणा शर्मा को सदस्य बनाया गया है। बोर्ड ने सीधी भर्ती के अफसरों के मामले में निर्णय लिया है कि सात साल की सेवा के बाद ही किसी आईएएस को कलेक्टर, एसपी और डीएफओ पदस्थ किया जाएगा और प्रमोटी अफसरों के मामले में तीन साल का फर्क रखा जाएगा। इस तरह की प्रक्रिया पोस्टिंग में कांग्रेस शासन में अपनाई जाती थी, परंतु बीते चार-पांच साल से इन नियमों का जमकर उल्लंघन हुआ है।
अपर कलेक्टरों का नौकरी से मोहभंग
उधर, राज्य प्रशासनिक सेवा के बड़े अधिकारियों का सरकारी नौकरी से मोहभंग होने लगा है। पिछले एक महीने के भीतर तीन अपर कलेक्टरों से जुड़े मामले सामने आ चुके हैं, जिसमें वे भारी तनाव, वरिष्ठ अधिकारियों की प्रताडऩा से तंग आकर इस्तीफे की पेशकश कर चुके हैं। ताजा मामला उज्जैन के अपर कलेक्टर संतोष वर्मा का है, जिन्होंने वेवजह विभागीय जांच और प्रमोशन अटकाने की वजह से नौकरी से इस्तीफा देने का मन बन लिया है। एडीएम संतोष वर्मा ने उज्जैन कलेक्टर कवीन्द्र कियावत की कार्यशैेली पर भी गंभीर सवाल उठाए हैं। एडीएम वर्मा ने अपने बैच के अन्य अधिकारियों से साझा की गई चर्चा में दावा किया है कि कलेक्टर का छोटे अधिकारियों का कोई संरक्षण नहीं है। उन्होंने पिछले महीने उज्जैन में ही अन्य एडीएम नरेन्द्र सूर्यवंशी के साथ पुलिस आरक्षक द्वारा दुव्र्यवहार के मामले को उठाते हुए कहा बताया है कि ऐसे गंभीर मामले में कलेक्टर ने कोई कार्रवाई नहीं की है। यदि राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों का इसी तरह से शोषण होता रहा तो फिर नौकरी छोडऩे के अलावा कोई अन्य रास्ता नहीं बचा है। संतोष वर्मा ने दावा किया है कि जल्द ही वे वीआरएस ले लेंगे। राज्य प्रशासनिक सेवा के अफसरों में इस बात को लेकर हताशा और निराशा है कि उनके प्रमोशन वेवजह रोक लिए गए हैं। मामूली जांच को सालों से अटकाया गया है और उसी की आड़ में प्रमोशन नहीं दिया गया है। वर्मा का मामला भी कुछ ऐसा ही है, खुद वर्मा ने बताया कि अभी तक उन्हें आईएएस अवार्ड हो जाना चाहिए, लेकिन वरिष्ठ अफसरों ने इसे अटकाए रखा है। यदि नौकरी के आखिरी दिनों में आईएएस बने तो फिर क्या मतलब रहा। तब तक दवाब और तनाव में भी साल बीतेंगे। इससे तो बेहतर है कि व्हीआएस ले लिया जाए। उल्लेखनीय है कि ग्वालियर के पदस्थ संयुक्त कलेक्टर विवेक श्रोतीय भी विभागीय जांच अटकाने को लेकर नौकरी से इस्तीफा दे चुके हैं। उनके इस्तीफे का मामला सामने आने के बाद सरकार ने आनन-फानन में उनकी दो विभागीय जांच समाप्त कर दी। उनके खिलाफ एक विभागीय जांच और बची है। हालांकि अभी तक सरकार ने उनका इस्तीफा मंजूर नहीं किया है। श्रोतीय ने भी वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा विभागीय जांच के नाम पर उनकी पदोन्नति रोके जाने के आरोप लगाए थे। उल्लेखनीय है कि श्रोतीय भी उज्जैन नगर निगम में आयुक्त रह चुके हैं।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें