सोमवार, 2 नवंबर 2015

मंत्री-अफसर में तकरार, पीए चला रहे सरकार

मंत्रियों के निजी स्टाफ की नाफमानी से बिगड़े हालात
भोपाल। मप्र में पिछले छह माह से विकास की गति सुस्त पड़ी है। इसकी वजह मंत्रियों की उनके विभाग के प्रमुख सचिव और सचिवों से पटरी नहीं बैठना है। इस संदर्भ में कई कबीना मंत्रियों ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान से मिलकर अधिकारियों के कारनामों की शिकायत की। कुछ मंत्रियों ने तो मुख्यमंत्री से यहां तक कह दिया कि यदि उनके विभाग में यही अधिकारी जमे रहें, तो उन्हें विजन 2018 को पूरा करने में दिक्कत होगी। वहीं प्रशासनिक अधिकारी भी सरकार से खुश नजर नहीं आ रहे हैं। अधिकारियों का कहना है कि विभागीय व्यवस्था से अंजान मंत्री अपना आदेश विभाग पर जबरदस्ती थोपाना चाहते हैं। वहीं मंत्री और अफसरों की तकरार का फायदा मंत्रियों का स्टाफ उठा रहा है। शिवराज मंत्रिमंडल के सदस्यों के स्टाफ की नाफरमानी के कारण कई योजनाएं मूर्त रूप नहीं ले पा रही हैं। इसके कारण मंत्रियों की परफार्मेंस खराब हो रही है। यही नहीं अपने स्टाफ के मोहफांस में फंसे कई मंत्री विभाग के प्रमुख सचिव को भी महत्व नहीं दे पा रहे हैं। इसका परिणाम यह हो रहा है की कई प्रमुख सचिव बिना मंत्री के अनुमोदन और अनुशंसा के ही योजनाओं का खाका तैयार कर रहे हैं और मुख्य सचिव या मुख्यमंत्री को रिपोर्ट दे रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि संगठन और संघ ने भी शिवराज सरकार के दूसरे कार्यकाल में कई बार प्रदेश के नौकरशाहों और मंत्रियों के निजी स्टाफ के खिलाफ मुख्यमंत्री से शिकायत की थी। जिसके बाद 21 दिसम्बर, 2013 को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जब अपनी कैबिनेट का गठन किया तो उन्होंने मंत्रियों को हिदायत दी थी कि वे अपने स्टाफ में अच्छे लोगों को रखें ताकि पिछली बार की तरह पार्टी और सरकार की छवि धूमिल न हो। लेकिन एक भी मंत्री ने मुख्यमंत्री की हिदायत नहीं सुनी और अपने चहेते लोगों को स्टाफ में रख लिया। ये वे लोग हैं जिनके बारे में कहा जाता है कि प्रदेश में सत्ता किसी की भी हो, चाहे जो मंत्री बने इनकी सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ता। अपने मैनेजमेंट से ये सरकार में अपना रसूख कायम रखते हैं। एक तो करैला ऊपर से नीम चढ़ा वाली कहावत इन पर खरी उतर रही है। यानी पहले से ही विवादित (करैलानुमा) इन अफसरों को ऐसे मंत्रियों (नीमनुमा )का साथ मिल गया है जिससे सरकार की छवि दागदार हो रही है। सरकार के कामकाज में पारदर्शिता और स्वच्छता की वकालत के बीच मंत्रियों के निज सचिव, निज सहायक और विशेष सहायक जब-तब भ्रष्टाचार और अनियमितता को लेकर सुर्खियां बटोरते रहे हैं। भाजपा संगठन की नजर भी इस मामले में कुछ विशेष सहायकों पर टेढ़ी है, जिनके खिलाफ गंभीर मामलों में लोकायुक्त और ईओडब्ल्यू में प्रकरण दर्ज है। प्रदेश में तीसरी बार भाजपा की सरकार बनने के बाद मंत्रियों के निजी स्टाफ में पदस्थ होने वाले अधिकारियों एवं कर्मचारियों के बारे में संगठन ने गाइडलाइन जारी की थी। लेकिन अधिकांश मंत्रियों ने उसका पालन नहीं किया। मुख्यमंत्री के निर्देशों को दरकिनार कर वरिष्ठ मंत्री बाबूलाल गौर, जयंत मलैया, गोपाल भार्गव, नरोत्तम मिश्रा, गौरीशंकर बिसेन, कुसुम मेहदेले, यशोधरा राजे सिंधिया एवं भूपेंद्र सिंह अपनी पसंद के पुराने कर्मचारियों को निजी स्टाफ में रखने में कामयाब रहे।
इनके विभाग में प्रमुख सचिव पर भारी निजी स्टाफ
मध्यप्रदेश के मंत्रियों में से कुछ को तो सत्ता में रहने का अच्छा खासा अनुभव है और उनमें भी कुछ ऐसे हैं जो नए हैं, लेकिन उनके स्टाफ में मंत्री के यहां रहने की हर काबिलियत मौजूद है। मंत्री स्टाफ की यही काबिलियत शिवराज सिंह की जीरो टालरेंस नीति को धता बता रही है। सूचना है कि लगभग सारे मंत्रियों के पास अरसे से ऐसा स्टाफ मौजूद है जो कोई भी शासन हो मंत्री के निकट पहुंचने की जुगाड़ जमा ही लेता है। इसे यूं भी समझ सकते हैं कि मंत्री स्वयं ही अनुभवी स्टाफ की तलाश करते हैं जो मंत्री बंगलों से लेकर उनके निजी स्टाफ में रहने का अनुभव रखते हों। यह अनुभव बहुत काम का है और यही कारण है कि मंत्रियों के यहां जमें इन अनुभवियों को डिगाने का साहस किसी का नहीं है। 5-5, 10-10 वर्षों से मंत्रियों के अग्रणी मोर्चे पर तैनात यह धुरंधर बीच में ही काम निपटाने के माहिर हैं और कुछ तो इस चालाकी से काम कर डालते हैं कि मंत्रियों को भी भनक नहीं लगती। कहने का तात्पर्य यह है कि कुछ मंत्रियों को उनके स्टाफ के कारण परेशानी भी उठानी पड़ी है, लेकिन इन्हें बदलें तो बदलें कैसे। मुख्यमंत्री ने कुछ समय पहले जीएडी को निर्देशित किया था कि मंत्रियों के पीए, पीएस की नियुक्ति बहुत सोच-समझकर होनी चाहिए। जीएडी ने भी कई छन्ने लगाने की कोशिश की, लेकिन ये इतने सूक्ष्मजीवी हैं कि हर छन्ने से बाहर आ गए। जहां शिवराज सरकार के दूसरे कार्यकाल में कुछ मंत्रियों और उनके स्टाफ की करतूतों के कारण सरकार की छवि दागदार हुई थी, वहीं इस बार भी कई मंत्रियों ने अपने कुछ पुराने अफसरों पर विश्वास जताया है। आलम यह है कि कुछ मंत्रियों के निज या विशेष सहायक तो बरसों से जमे हुए हैं। इनमें से कई तो रिटायर होने के बाद भी एक्सटेंशन के आधार पर मंत्रीजी के निजी स्टाफ में जगह बनाए हुए हैं। इससे भाजपा में शुद्धिकरण के सारे प्रयास विफल हो रहे हैं। बताया जाता है कि मध्यप्रदेश में इन दिनों मंत्रियों और उनके स्टाफ की करतूतों को लेकर उच्च स्तर पर जबरदस्त बवाल मचा है।
नाथ और जुलानिया पर भारी पड़ रहे वर्गीस और महिपाल
जल संसाधन, वित्त एवं वाणिज्यिक कर, योजना, आर्थिक एवं सांख्यिकी मंत्री जयंत मलैया काफी अनुभवी और सलिकेदार मंत्री हैं। वे अपने विभागों में समन्वय बनाकर काम करने पर विश्वास रखते हैं। लेकिन उनका निजी स्टाफ विभाग के वरिष्ठ अफसरों के साथ सामंजस्य नहीं बैठा पा रहा है। इस कारण वित्त विभाग के अपर मुख्य सचिव अजय नाथ और जल संसाधन विभाग के प्रमुख सचिव राधेश्याम जुलानिया अपने को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं। बताया जाता है कि इन्होंने मंत्री से उनके निजी स्टाफ की शिकायत भी की है। लेकिन स्टाफ अपने रूख पर कायम है। दरअसल, मलैया के स्टाफ में शामिल पीपी वर्गीस और महिपाल सिंह मंत्रीजी के नूर हैं। 28 जून 2004 को तात्कालीन मुख्यमंत्री उमा भारती के मंत्रिमंडल में जब जयंत मलैया को नगरीय प्रशासन एवं विकास मंत्री बनाया गया तब से लेकर आज तक महिपाल सिंह मंत्रीजी के सारथी बने हुए हैं। वहीं पीपी वर्गीस एक दशक से ज्यादा समय से वित्त मंत्री के स्टाफ में हैं। यहीं से रिटायर हो गए। अब दो साल से एक्सटेंशन पर काम संभाले हुए हैं। सारे अहम काम वर्गीस ही करते हैं। इन दोनों अफसरों का मंत्री पर इतना प्रभाव है कि विभाग के प्रमुख सचिव या अन्य अफसरों की दाल भी इनके आगे नहीं गलती है।
राय के बिना भार्गव के यहां पत्ता भी नहीं हिलता
मलैया की ही तरह पंचायत और ग्रामिण विकास मंत्री गोपाल भार्गव केडी कुकरेती और आरके राय की तिकड़ी के आगे बड़े-बड़े अफसर पानी भरते हैं। 28 जून 2004 को हुए मंत्रिमंडल के पुनर्गठन के बाद एक जुलाई 2004 को गोपाल भार्गव को जब कृषि एवं सहकारिता विभाग का उत्तरदायित्व सौंपा गया तब से ही ये दोनों अधिकारी इनके साथ हैं। आलम यह है कि रिटायर होने के बाद भी मंत्री कुकरेती का मोह नहीं छोड़ पा रहे हैं। कुकरेती की पदस्थापना के लिए मंत्री ने सरकार से नियमों में बदलाव भी करवाए। पहली बार संविदा नियुक्ति के रिटायर्ड अफसर को मंत्री का विशेष सहायक बनाने के लिए बाकायदा कैबिनेट में प्रस्ताव पारित किया गया। इसी तरह आरके राय इतने पॉवरफुल हैं कि मंत्री इनके बिना फैसले नहीं लेते हैं। 1982 बैच की आईएएस अरुणा शर्मा पंचायत और ग्रामिण विकास की अपर मुख्य सचिव हैं और वे मंत्री के स्टाफ को अपने पास फटकने नहीं देती हैं। लेकिन मंत्री का स्टाफ एमपीआरआरडीए की सीईओ अलका उपाध्याय, पंचायत राज आयुक्त रघुवीर श्रीवास्तव, स्मिता भारद्वाज, हेमवती वर्मन, विभाष ठाकुर पर अपना प्रभाव कायम रखने की कोशिश करता रहता है जिस कारण अंदरूनी टकराव चलता रहता है।
पांच प्रमुख सचिवों से पावरफुल राजपूत
पशुपालन, उद्यानिकी एवं खाद्य प्रसंस्करण, मछुआ कल्याण एवं मत्स्य विकास कुटीर एवं ग्रामोद्योग, विधि एवं विधायी कार्य, लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी मंत्री कुसुम महदेले के विभाग के पांच प्रमुख सचिवों पर उनके चहेते कोमल राजपुत भारी पड़ रहे हैं। इस कारण मंत्री और अफसरों में दूरी बनी हुई है। आलम यह है कि पशुपालन विभाग के प्रमुख सचिव प्रभांशु कमल, मछुआ कल्याण तथा मत्स्य विकास विभाग की प्रमुख सचिव सलीना सिंह, कुटीर एवं ग्रामोद्योग विभाग, उद्यानिकी एवं खाद्य प्रसंस्करण प्रमुख सचिव प्रवीर कृष्ण, मत्स्य पालन एवं मछुआ कल्याण विभाग प्रमुख सचिव अरूण तिवारी और विधि एवं विधायी कार्य विभाग प्रमुख सचिव विरेन्दर सिंह का मंत्री से लगभग अबोला है। मंत्री अफसरों से अधिक कोमल राजपुत पर विश्वास करती हैं। उल्लेखनीय है कि मंत्री कुसुम मेहदेले और कोमल राजपूत का साथ करीब ढाई दशक पुराना है। जब मेहदेले 1990 में पहली बार मंत्री बनी तब से अब तक राजपूत का साथ बना हुआ है। कुसुम मेहदेले के विभागों की लंबी फेहरिस्त है। इस कारण राजपूत अधिक पावरफुल हैं। मंत्री भले ही चुप रहें लेकिन राजपूत हर जगह हस्तक्षेप करते हैं या यूं कह सकते हैं कि विधि-विधायी, पशुपालन, उद्यानिकी एवं खाद्य प्रसंस्करण, मछुआ कल्याण एवं मत्स्य विकास, कुटीर एवं ग्रामोद्योग जैसे पांच महकमे का वे स्वयं को मुखिया मानते हैं। इस कारण वे कई बार विभागीय प्रमुख सचिवों के ऊपर हावी होने की कोशिश करते हैं। ऐसे में राजपूत के व्यवहार की खीज प्रमुख सचिव मंत्री पर निकालते हैं। जिससे विभाग में काम प्रभावित होते हैं। विभाग की नब्ज पर कोमल सिंह राजपूत की अच्छीखासी पकड़ है। किसी सिरफिरे ने राजपूत की प्रापर्टी की फोटो खींचकर ऊपर तक शिकायत कर डाली है, लेकिन मंत्री महोदया को इससे कोई मतलब नहीं है। कहने वाले तो कथित रूप से यह भी कहते हैं कि राजपूत ने पिछली बार मंत्री जी की पार्टनरशिप में दुकान भी खोलकर रखी थी। इसी कारण से राजपूत वह भी कोमल के आदेश भी नहीं हुए हैं।
लोक निर्माण में तू डाल-डाल मैं पात-पात
लोक निर्माण विभाग में तो मंत्री सरताज सिंह और प्रमुख सचिव प्रमोद अग्रवाल में तू डाल-डाल मैं पात-पात चल रहा है। बताया जाता है कि प्रमुख सचिव की कड़क मिजाजी की गाज ठेकेदारों, भ्रष्ट अफसरों और इंजीनियरों पर लगातार गिर रही है। इससे विभाग में हड़कंप मचा हुआ है। प्रमुख सचिव का यह आक्रामक रूख मंत्री और विभाग के अन्य अधिकारियों को पसंद नहीं आ रहा है। उसमें मंत्री का निजी स्टाफ भी शामिल है। इसका परिणाम यह हो रहा है कि सड़कों, पुल-पुलियों तथा भवनों के निर्माण कार्यो में भ्रष्टाचार करने वाले लोक निर्माण विभाग के इंजीनियरों को पहले निलंबित किया जाता है और कुछ दिन के बाद बहाल भी कर दिया जाता है। खासकर विभाग के प्रमुख सचिव प्रमोद अग्रवाल द्वारा फील्ड में किए गए दौरे के समय निर्माण कार्यो में मिली गड़बडिय़ों के चलते उन्हें तत्काल निलंबित करने के निर्देश दिए जाते हैं और बाद में आरोप पत्र देने के स्थान पर बहाल कर दिया जाता है। यह खेल काफी समय से चल रहा है। यहां तक कि मुख्यमंत्री के गृह जिले में सरकार को लगभग 21 करोड़ का चूना लगाने वाले ठेकेदार का मामला सामने आने के बाद छह इंजीनियरों को निलंबित किया गया, मगर कुछ समय बाद ही उनकी बहाली भी कर दी गई। प्रदेश में चल रहे सड़कों, पुल- पुलियों तथा भवनों के निर्माण कार्यो में होने वाली गड़बडिय़ों पर नजर रखने का काम चीफ इंजीनियर, अधीक्षण यंत्री और कार्यपालन यंत्री को करना चाहिए, मगर इनकी ठेकेदारों से मिलीभगत रहती है, जिसके कारण भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिल रहा है। विभाग के प्रमुख सचिव प्रमोद अग्रवाल की सख्ती तो दिखाई दे रही है, परन्तु निलंबित किए जाने वाले इंजीनियरों की कुछ समय बाद ही बहाली पर भी सवाल उठ रहे हैं।
महारानी को पानी पिला रहे सुलेमान
अपने रौबदार व्यक्तित्व के कारण अच्छे-अच्छों को सबक सीखाने वाली महारानी यानी उद्योग मंत्री यशोधरा राजे की उनके विभाग के प्रमुख सचिव मोहम्मद सुलेमान से नहीं बन रही है। दरअसल, सुलेमान भी अपने तरीके से काम करने के लिए जाने जाते हैं। ऐसे में मंत्री उनसे जो अपेक्षा करती हैं वे उस पर खरे नहीं उतरते हैं। यही नहीं विभाग के आयुक्त वीएल कांताराव भी मंत्री को लगातार गुमराह कर रहे हैं। इसके पीछे वजह बताई जा रही है कि यशोधरा से अधिक उनके निजी स्टाफ के फरमान से ये दोनों अफसर परेशान रहते हैं। दरअसल, यशोधरा अपना सारा विभागीय कार्य अपने पीए एमसी जैन के मार्फत करवाती हैं। यशोधरा राजे और एम सी जैन का साथ एक दशक से ज्यादा समय का है। राजे के यहां जमे हुए जैन ही महाराज को झेल पाते हैं बाकी कोई पीए, पीएस उनके यहां जाना पसंद नहीं करता कारण साफ है कि मंत्री किसी भी तरीके के स्टाफ के कारण अपनी बदनामी सहन नहीं कर सकती है।
खाद्य नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता संरक्षण विजयशाह के यहां वर्षों से जमे हुए गुना कलेक्टोरेट के बाबू जेके राठौर के हाथ में सबकुछ है। अपने खासमखास लोगों की पैरवी करने में मंत्री किस सीमा तक जा सकते हैं इसका श्रेष्ठ उदाहरण ज्ञान सिंह द्वारा की गई वह सिफारिश है जिसमें उन्होंने किसी एमएल आर्य को तैनात करने के लिए चि_ी भेजी थी। डिप्टी कलेक्टर एमएल आर्य सजायाफ्ता हैं उन पर अनियमितता का आरोप लग चुका है, लेकिन मंत्री महोदय को इससे क्या मतलब। गुलाब भुआड़े शिक्षा मंत्री पारस जैन के पसंदीदा हैं। भुआड़े कांग्रेस शासन में महेंद्र सिंह कालूखेड़ा और पूर्व उपमुख्यमंत्री जमुनादेवी के स्टाफ में भी रहे।
पारस जैन और भूतड़ा से कई अफसर नाराज
पूर्व खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति राज्यमंत्री पारस जैन शकर एवं दाल खरीदी के मामले के बाद अब फोर्टिफाइड आटे को लेकर गंभीर आरोपों से घिरे थे। इनके विशेष सहायक राजेंद्र भूतड़ा ने मंत्री जी के नाम पर ठेकेदारों और अफसरों से जमकर वसूली की थी। एक खाद्य निरीक्षक द्वारा आत्महत्या किए जाने को लेकर उसकी पत्नी ने भूतड़ा पर तबादले के लिए रिश्वत लेने के आरोप लगाए थे। इंस्पेक्टर के परिजनों ने मंत्री पर आरोप लगाए। भूतड़ा को कुछ माह पहले मुख्यमंत्री के निर्देश पर हटाया गया था।
ये भी हैं चर्चा में
कृषि मंत्री गौरीशंकर बिसेन और शिव हरोड़े की जोड़ी भी चर्चा में है। हरोड़े करीब सात साल से बिसेन के पीए हैं। उमाशंकर गुप्ता यूं तो सख्त, ईमानदार और दबंग मंत्री होने का ढिंडोरा पीटते हैं, लेकिन उनके यहां जाने से स्टाफ भी झिझकता है। शायद उनकी दबंगई से लोग भय खाते होंगे पर नरोत्तम मिश्रा की उदारता का कोई ओर छोर नहीं है। वीरेन्द्र पाण्डेय स्वास्थ्य मंत्री नरोत्तम मिश्रा के विश्वसनीय हैं, पिछले 10 वर्षों से मंत्री दफ्तर संभाल रहे हैं और सरकार ने उनके आदेश भी नहीं किए। परंतु वे ही सर्वेसर्वा हैं। उनके घर पर सबेरे से ही डॉक्टरों की लंबी कतार लग जाती है। इन्हें मंत्री से ज्यादा वजनदार माना जाता है। पीए के साथ ही राजनीतिक सलाहकार का भी काम करते हैं।
कई विभागों के पीए,पीएस तो इतने जुगाडू या यूं कहें कि पॉवरफुल हैं कि मंत्री बदलते रहते हैं लेकिन वे नहीं बदले। और जब पीए, पीएस नहीं बदले तो सीएम का जीरो टालरेंस कैसे संभव होता। हुआ भी यही। मैनेजमेंट के माहिर इन अफसरों ने जैसा चाहा मंत्रियों ने वैसा ही किया। जिसका परिणाम यह हुआ की कई मंत्रियों को चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। इसमें विनोद सूरी का नाम सबसे बदनाम रहा है। पूर्व मंत्री करण सिंह वर्मा की नैय्या डुबाने वाले विनोद सूरी शेजवार को भी पहले हार का मुंह दिखा चुके हैं। क्योंकि मंत्री के व्यवहार से ज्यादा उसके स्टाफ का व्यवहार अच्छा होना चाहिए। उसके प्रत्यक्ष उदाहरण विनोद सूरी हैं जो कइयों बार मंत्री के स्टाफ में रहे परंतु मंत्री एक टर्म से ज्यादा पूरा नहीं कर पाए। इस बार भी उन्होंने शेजवार के यहां गोटी बिछाने का प्रयास किया था, लेकिन उनकी दाल नहीं गल सकी। बसंत बाथरे वन मंत्री डॉ गौरीशंकर शैजवार के स्टाफ में। कांग्रेस सरकार के दौरान वे तत्कालीन पीएचई मंत्री दीपक सक्सेना के साथ रहे। भाजपा सरकार में भी नागेंद्र सिंह के पीए रहे। ऐसे ही राजघराने की मंत्री माया सिंह के यहां पर विजय शर्मा को पदस्थ किया है वह अनूप मिश्रा, श्यामाशरण शुक्ल और मोतीलाल वोरा के यहां भी कार्य कर चुके हैं। आखिर माया सिंह को विजय शर्मा ही क्यों पसंद आए। अंतर सिंह आर्य के यहां राजीव सक्सेना नामक बाबू मंत्री का खास हैं, लेकिन अब बैलेंस बनाने के लिए सेंधवा से कोई ज्ञान सिंह आर्य भी पधार गए हैं। सुनने में आया है कि ये मंत्री के रिश्तेदार हैं। अंतर सिंह ने तो पिछली बार स्वेच्छानुदान की सारी राशि रिश्तेदारों को ही दिलवा दी थी, जिसमें एक विशेष सहायक की विशेष भूमिका थी। इसी प्रकार रामपाल सिंह के यहां पर भी दिलीप सिंह नामक एक अनुभवी की तैनाती हुई है जो कभी नागेंद्र सिंह के स्पेशल सेक्रेटरी हुआ करते थे। उन पर पीडब्ल्यूडी में रहते हुए अनियमितता का आरोप भी लगा है। दिलीप सिंह ब्रजेन्द्र प्रताप सिंह के साथ भी रहे।
ऐसे में जन विश्वास की कसौटी पर खरे उतरने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को कुछ ज्यादा ही सचेत होना पड़ेगा। सत्ता के चाल, चरित्र और चेहरे को और साफ सुथरी छवि प्रदान करने के लिए शिवराज को सबसे पहले अपने मंत्रियों की एक विश्वसनीय टीम बनानी होगी। यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है कि मुख्यमंत्री की ईमानदार छवि के कारण ही भाजपा राज्य में तीसरी बार सत्ता में लौटी है और इसी विश्वसनीयता को बनाए रखने के लिए उनमें जनहित की नीतियों एवं कार्यक्रमों को अमलीजामा पहनाने के लिए समुचित बदलाव लाने का संकल्प साफ झलकता है। फिलहाल तो नौकरशाही की जो तस्वीर नजर आती है, वह प्रशासनिक दृष्टिï से ज्यादा उत्साहजनक नहीं है। अफसरों एवं प्रशासनिक अमले में फैला भ्रष्टाचार ऐसा रोग है जो राज्य को सेहत को बेहतर बनाने तथा इसे खुशहाली का टानिक देने की सरकार की तमाम कोशिशों को निगल रहा है और इसके बावजूद सरकारी आंकड़ेबाजी से सरकार को भ्रमित किया जा रहा है। समीक्षा बैठक भर से काम चलने वाला नहीं है बल्कि जब तक ईमानदार अफसरों को पुरस्कृत करने तथा बेईमान अफसरों को दंडित करने का अभियान नहीं चलेगा तब तक राज्य की प्रगति में बेईमान अफसरशाही रोड़ा बनी रहेगी।

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