गुरुवार, 26 सितंबर 2013

मप्र के जलसंसाधन विभाग में 5000 करोड़ रुपये का घोटाला

भोपाल। प्रदेश में भ्रष्टाचार और घोटालों से घिरी के भाजपा सरकार की किरकिरी बने भाजपा नेता और खनिज कारोबारी सुधीर शर्मा पर सीबीआई का फंदा कसता जा रहा है। वहीं दूसरी तरफ प्रदेश में जलसंसाधन विभाग में 5000 करोड़ रुपये का घोटाला सामने आया है। ऐन चुनावी वक्त पर भाजपा सरकार को ये मामले परेशानी में डाल सकते है। कांग्रेस भाजपा को घेरने के लिए पूरी तरह कमर कस चुकी है। नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने शिवराज सरकार पर जल संसाधन विभाग में पांच हजार करोड़ रूपये के घोटाले का आरोप लगाया है। श्री सिंह ने कहा कि चुनाव के लिए पैसा एकत्रित कर मतदाता प्रभावित करने के लिए शिवराज सिंह चौहान ने सभी निर्माण विभागों को ताबड़तोड़ टेंडर जारी करने के निर्देश दिए हैं, जिसमें सभी नियम-कानूनों को ताक में रख दिया गया है। प्रतिपक्ष श्री सिंह ने कहा कि अपने आप को ईमानदार कहने वाले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान , उनके चहेते प्रमुख सचिव जल संसाधन आर.एस. जुलानिया पांच हजार करोड़ के टेंडर अपने-अपने ठेकेदारों के उपक्रत करने के अभियान में लगे हैं। जिसके एवज में करोड़ों रूपये का लेन-देन हो गया है। बगैर किसी तकनीकी सलाह और प्रक्रिया को पूरी किए बिना लगभग 3000 करोड़ की स्वीकृति आदेश भी जारी कर दिए गए हैं। नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने कहा कि जल संसाधन विभाग की योजनाओं का निर्माण एक अत्यंत तकनीकी विषय है। योजना प्रारंभ करने के लिए एक लंबी नेता तकनीकी प्रक्रिया से किसी भी प्रोजेक्ट से गुजरना पड़ता है। इसके अंतर्गत परियोजनाओं का विस्तृत यांत्रिकी तथा जियो टेक्नीकल सर्वेक्षण तथा अन्वेषण करना होता है। इस सर्वेक्षण के आधार पर ही जल संसाधन विभाग की बड़ी योजनाओं की उपयोगिता और उनका क्रियान्वयन सुनिश्चित किया जा सकता है जबकि वर्तमान में ताबड़तोड़ ठेके देने के लिए योजनाओं को मात्र जियोलाजिकल सर्वे आफ इंडिया के नक्शों पर संभावनाओं के आधार पर बांध तथा नहरों की लाइन अंकित कर प्रस्ताव तैयार किए गए है जिनका कोई तकनीकी आधार नहीं है। इसमें सबसे गंभीर मुद्दा यह है कि ये सभी अधिकांश प्रस्ताव मूल रूप ये अंकित विभाग के तकनीकी अधिकारियों के द्वारा तैयार न करते हुए प्रदेश के बाहर के बड़े ठेकेदारों की सलाह एवं परामर्श पर तैयार किए गए है। विभाग के अधिकारियों ने झूठे आंकड़ों के आधार पर तैयार किए गए प्रस्तावों पर हस्ताक्षर किए हैं। नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि नियमानुसार किसी भी प्रोजेक्ट के लिए विभागीय स्तर पर दस्तावेजीकरण एवं लागत निकालकर टेंडर आमंत्रित किए जाते थे, लेकिन इसमें ठीक इसके उलट निविदा की टर्न की प्रक्रिया अपनाई गई जिसमें विभाग को पूरी तरह मुक्त कर ठेकेदारों की मर्जी के मुताबिक निविदाएं जारी की गई। जिसमें टेंडर मंजूर होने के बाद प्रोजेक्ट की डीपीआर स्वयं ठेकेदार द्वारा बनाई जाएगी। जिसके आधार पर वह मनमर्जी से काम करेगा। श्री सिंह ने बताया कि जल संसाधन विभाग ने न केवल तकनीकि प्रक्रिया को अनदेखा किया बल्कि प्रोजेक्ट के पूर्व न तो भूअर्जन की कार्यवाही की और न ही सेक्शन 4-6 के अंतर्गत नोटिस जारी किए गए। यहां तक की निर्माण कार्य का नक्शा तक तैयार नहीं किया गया। नहरों और बांधो को बनाने की योजना नक्शे पर तो बना ली लेकिन जमीन कहां और कौन-सी है इसका पता न तो विभाग को है न ही ठेकेदार को। नेता प्रतिपक्ष श्री अजय सिंह ने कहा कि कांग्रेस शासन में टर्न की प्रक्रिया के प्रकरण प्रस्तुत किए गए थे जिसे तत्कालीन सरकार ने अमान्य कर दिया था, क्योंकि इस प्रक्रिया से योजना की उपयोगिता और व्यवहारिकता अनिश्चित होती है, भ्रष्टाचार पनपता है और प्रदेश को गंभीर आर्थिक क्षति होती है। नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने कहा कि विभाग से प्राप्त की गई जानकारी के अनुसार प्रदेश के बाहर हैदराबाद की एक कंपनी प्रमुख भूमिका निभा रही है। वह मंत्रालय में बैठकर प्रस्ताव तैयार कर अधिक से अधिक लाभ प्राप्त कर रही है। अभी तक इस कंपनी को टर्न की प्रक्रिया के तहत जल संसाधन विभाग और एनव्हीडीए ने एक हजार करोड़ से अधिक के कार्य आवंटित कर दिए गए तथा इतनी ही राशि के कार्य उसे देने की तैयारी है। इन सभी प्रकरणों में अत्यंत महत्वपूर्ण विषय यह है कि भारत सरकार के द्वारा जो दिशा निर्देश सिंचाई योजनाओं को प्रारंभ करने के पूर्व अपनाए जाना चाहिए उसकी पूर्ण रूप से अवेहलना की जा रहीं है। जैसे- 1. केन्द्रीय जल आयोग भारत सरकार ने योजनाओं की निविदा आमंत्रित करने से पूर्व प्रोजेक्ट रिपोर्ट तैयार करने की प्रक्रिया निर्धारित की है जिसका पालन शून्य है। 2. निविदा जारी होने से पूर्व प्रभावित तथा लाभान्वित जनता की सुनवाई आवश्यक है। जिसके लिए भारत सरकार के स्पष्ट दिशा निर्देश है। इसका कोई पालन नहीं किया गया। 3. जल संसाधन विभाग की बड़ी योजनाओं में आवश्यक है कि निर्माण प्रारंभ करने से पूर्व पर्यावरण तथा प्रभावित वन के प्रस्ताव तैयार कर स्वीकृति प्राप्त करें। चूंकि परियोजनाओं का वास्तवविक सर्वेक्षण किया ही नहीं किया गया है अत: पर्यावरण के नियमों के उल्लंघन तथा वास्तविक रूप से प्रभावित न भूमि का आकलन नहीं हो सका। इस प्रकार इन सभी प्रकरणों में वन संरक्षण अधिनियम 1980 का स्पष्ट उल्लंघन किया गया है। जिसमें दोषी अधिकारियों के जेल जाने तक का प्रावधान है। 4. भारत सरकार ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल का गठन इस कारण किया है कि विकास से जुड़ी योजनाओं में वन एवं पर्यावरण के कारण विलंब न हो जबकि मध्यप्रदेश सरकार नियमों का उल्लंघन कर योजनाओं के निर्माण में बाधा पहुंचाने की कर रहीं है, क्योंकि उसे योजनाओं से अधिक कमीशन की चिंता हंै। नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने कहा कि इस पूरे मामले में भ्रष्टाचार की बू जो पूरे विभाग में फैल गई है कि नहर एवं बांध निर्माण के बड़े-बड़े टेंडर निकाले जा रहे हैं। इसके कारण प्रदेश के ठेकेदार बाहर हो गए है। ऐसा जानबूझकर इसलिए किया गया ताकि बाहर के ठेकेदार ही इन ठेकों को लें। ये ठेकेदार जो गुजरात, आंध्रप्रदेश और तमिलनाडु राज्यों के है। इनसे बड़ी रकम वसूलने की सांठगांठ हुई है। खनिज घोटाले ने सरकार के सारे रिकार्ड तोड़े प्रकरण क्रमांक एफ-2-57-13 की सुनवाई के लिए 31 अगस्त को नोटिस जारी किया गया और तीन सितम्बर को सुनवाई रख दी। मामला सतना जिले का है। तीन सितम्बर को सुनवाई की गई जिसमें तीन में से मात्र एक कंपनी उपस्थित हुई और मंत्री राजेंद्र षुक्ला ने रिलायंस के पक्ष में फैसला भी दे दिया। जिसे सचिव खनिज साधन ने मानने से इंकार कर दिया । मंत्री जी ने बहुत प्रयास किया और सचिव जब नहीं माने तो 19 सितम्बर को फिर सुनवाई लगा दी लेकिन जिस कंपनी को दिया था उसका इतना दबाव था कि सुनवाई स्थगित कर दी गई ।सरकार खनिज लीज आंवटन का अधिकार मई 2012 में कलेक्टरों को दिया लेकिन चुनाव आते ही 29 मार्च, 2013 में कलेक्टरों से अधिकार वापस ले लिया इसका मतलब साफ है कि खनिज मंत्री ने भ्रष्टाचार के लिए यह किया है। तीन दिन में निपटाई 128 खनन स्थलों की फाइलें प्रदेश के खनिज विभाग की कार्यप्रणाली में अचानक चौंकाने वाली तेजी दिखाई दी है। खदानों के लीज, सर्वे और नवीनीकरण आवेदन निपटाने का काम रफ्तार से चल रहा है। खुद खनिज मंत्री राजेंद्र शुक्ल रात-रात तक प्रकरणों की सीधी सुनवाई कर रहे हैं। सामान्य तौर पर एक माह में अधिकतम 10-15 सुनवाई करने वाले महकमे ने महज तीन दिन में ही 128 खनन स्थलों की फाइलें निपटा दीं। चुनाव आचार संहिता प्रभावी होने से पहले काम निपटाने की इस तत्परता पर सवाल उठ रहे हैं। उल्लेखनीय है कि मप्र में खदान लीज और इसके प्रोसेसिंग लाइसेंस को जारी करने की प्रक्रिया कैग भी सवाल उठा चुका है। कैग रिपोर्ट के अनुसार 2007 से 2011 के दरम्यान विभाग की अनियमितताओं के कारण प्रदेश को 2350 करोड़ रूपए के राजस्व का नुकसान हुआ है। इस नुकसान का कारणों में कैग ने बताया कि विभाग द्वारा खनिज नियमों का सही तरीके से पालन न होना, रायल्टी का कम आकलन और वसूली में लापरवाही है। 3 सितंबर को 33 खनन स्थलों पर खदान आवंटन के लिए कुल 226 आवेदक वल्लभ भवन की लिस्ट में थे। अनुमानत: 4 से 5 मिनट भी एक आवेदक को सुना गया हो तो सभी आवेदकों को निपटाने में 15 से 18 घंटे सुनवाई लाजमी है। इसी प्रकार 20 अगस्त को यदि 400 में से आधे आवेदकों को ही लगातार सुना गया हो तो भी 13-15 घंटे लगे होंगे। ऐसी ही तमाम व्यावहारिक विसंगतियों ने शंकाओं को जन्म दिया है। प्रदेश के 135 से अधिक खनन स्थलों के लिए लीज और नवीनीकरण के औसतन 10 आवेदन आते हैं। हर आवेदन को देखना, ड्राफ्ट बनाना, प्रोसेस में लगाना और फिर आवेदनों को छांटना कठिन काम है। लीज और सर्वे संबंधित दस्तावेजों को क्रॉस चेक करना और लीज देने की शर्तो सहित डीड तैयार करने की प्रक्रिया 20 से अधिक पेजों की हैै। ऐसे एक आवेदन के दस्तावेज तैयार करने में 3-4 दिन लगते हैं। व्यापमं द्वारा पीएमटी घोटाले को दबाया जा रहा है पीएमटी घोटाले में बड़े लोगों के नाम आने के बाद मामले की जॉच धीमी कर दी गई है। मुख्यमंत्री ने आला अफसरों से जांच बहुत गहराई से न करने का कहा हैं। मेरी जानकारी है की दो दिन पूर्व इंदौर हाईकोर्ट ने परीक्षा नियंत्रक पंकज त्रिवेदी को आरोपी न बनाए जाने पर पुलिस को फटकार लगाई है। पीमएटी द्वारा पिछले पांच साल में एडमीषन लेने वाले छात्रों की जानकारी नही दी जा रही है । इसमें अधिकतर प्रदेश के बाहर के छात्र है जिनके जाति प्रमाण पत्र भी फर्जी बने है। इसमें प्रदेश के छात्रों के साथ छलावा हुआ है। रियो-टिंटो घोटाला रियो-टिंटो को प्रास्पैक्टिव लायसेंस के तहत कौन सी भूमि से कितना हीरा है इसकी जांच करने हेतु अनुमति प्रदान की गई थी। जब उत्खनन हेतु भूमि दी जाती है तो किस खसरे की कितनी भूमि है यह स्पष्ट उल्लेखित होता है। परंतु रियो-टिंटो को जो भूमि दी गई उसकी कोई सीमा निर्धारित नहीं की गई और रियो-टिंटो पूरे क्षेत्र में जांच करने की आड़ में अनधिकृत रूप से माइनिंग कर रहा है। रियो-टिंटो को जो अनुमति दी गई थी उसमें स्पष्ट रूप से उल्लेखित था कि किसी भी स्थिति में पेड़ों को नहीं काटा जाएगा परंतु रियो-टिंटो द्वारा अवैधानिक रूप से बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटाई की गई है। जिसके संबंध में माननीय उच्च न्यायालय के समक्ष पहल एनजीओ द्वारा याचिका प्रस्तुत की गई थी जिस पर माननीय उच्च न्यायालय द्वारा स्थगन आदेष 20.08.2013 को दिया गया। रियो-टिंटो द्वारा जो प्रोसेसिंग प्लांट लगाया गया है वह आदिवासी की भूमि पर लगाया गया है। यह भूमि आदिवासी को कृषि हेतु शासन ने पट्टे पर दी है। परंतु रियो-टिंटो ने उस भूमि के किराए पर लेकर प्रोसेसिंग प्लांट लगवा दिया। इसके अतिरिक्त रियो-टिंटो ने कई आदिवासियों पर दबाव डालकर उन्हें धोखे में रखकर जमीन खरीद ली और उस पर भी अवैधानिक रूप से प्रास्पैक्टिव लायसेंस की आड़ में अवैध उत्खनन किया जा रहा है और बड़े पैमाने पर हीरे निकाले जा रहे है। शिकायत बहुत की गई परंतु उस पर अधिकांष अधिकारियों द्वारा कोई कार्यवाही नहीं की गई परंतु उमाकांत उमराव एवं राजेश बहुगुणा ने कार्यवाही की तो उन्हें हटा दिया गया। और ऐसे बन गया एक टीचर 3000 करोड़ का मालिक! 3000 करोड़ का साम्राज्य खड़ा करने वाले कभी शिक्षक रहे खनिज कारोबारी सुधीर के खिलाफ कालेधन के मामले में चल रही सीबीआई की जांच-पड़ताल में नये खुलासे हुए हैं। सीबीआई को पुख्ता सबूत मिले हैं कि सुधीर की कंपनी एसआर ने खनिज विभाग के अफसरों को घूस दी थी। इसके अलावा वर्ष, 2008 में मप्र भाजपा के चुनावी अभियान आपरेशन विजय को भी फंडिंग की गई थी। इस खुलासे के बाद मप्र की राजनीति में एक बार फिर भूचाल आ गया है। प्रदेश की भाजपा सरकार की किरकिरी बने भाजपा नेता और खनिज कारोबारी सुधीर शर्मा पर सीबीआई का फंदा कसता जा रहा है। सीबीआई को पुख्ता सबूत मिले हैं कि सुधीर की कंपनी एसआर फेरो ने आईबीएम(इंडियन ब्यूरो आफ माइंस) के अफसर को रिश्वत दी थी। यह अफसर नागपुर में पदस्थ था। इस मामले में भोपाल सीबीआई यूनिट ने प्राथमिकी दर्ज की है। आयकर विभाग की रिपोर्ट में सीबीआई को बताया गया है कि आईबीएम के अधिकारियों को सुधीर की कंपनी से पैसा दिया गया था। सीबीआई ने इन तथ्यों को गहरी पड़ताल के बाद एसआर फेरो के खिलाफ बुधवार को प्राथमिकी दर्ज की है। बताया जाता है कि सीबीआई मुख्यालय दिल्ली के कुछ अफसर पिछले दिनों भोपाल आए थे। यहां उन्होंने आयकर विभाग की अन्वेषण विंग के अफसरों के साथ इस मामले में लंबी बातचीत की थी। जानकारी के मुताबिक, नागपुर में पदस्थ आईबीएम के अफसरों को सुधीर की कंपनी ने घूस दी थी। इन अफसरों ने सुधीर की खदानों की सेटेलाइट मैपिंग की थी। भाजपा की चुनावी अभियान को भी की थी फंडिंग सुधीर शर्मा की जो 42 पेज की एप्रेजल रिपोर्ट आयकर विभाग को मिली थी, उसके 32 नंबर पेज पर प्रदेश भाजपा के वर्ष, 2008 के चुनावी अभियान आपरेशन विजय को भी फंडिंग करने का खुलासा हुआ है। सुधीर शर्मा की कंपनी एसआर ने चुनाव के लिए पैसा दिया था। इस मामले के खुलासे के बाद एक बार फिर मध्यप्रदेश की राजनीति में भूचाल की स्थिति बन गई है। दो मंत्रियों पर भी लग चुका है रिश्वत का आरोप प्रदेश के खनिज मंत्री राजेंद्र शुक्ल और उच्च शिक्षा मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा द्वारा इन दो बड़े कारोबारियों से घूस लिए जाने के आरोपों के बाद मप्र में सियासी बवाल मच गया था । जुलाई में एक मीडिया रिपोर्ट में बताया गया था कि कारोबारियों दिलीप सूर्यवंशी और सुधीर शर्मा के यहां एक साल पहले आयकर विभाग ने छापा मारा था। इस छापे में एक डायरी बरामद हुई है, जिसमें घूस लिए जाने का जिक्र है। ये दस्तावेज आयकर विभाग ने सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय को पहले ही दे दिए हैं। इसको लेकर कांग्रेस ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और दोनों मंत्रियों से इस्तीफा मांगा था। वहीं दोनों मंत्रियों ने इन आरोपों को झूठा बताते हुए इसे कांग्रेस की राजनीतिक साजिश करार दिया था। नेता प्रतिपक्ष ने एक बयान में कहा कि छापों के तत्काल बाद कांग्रेस विधायक दल ने इस संबंध में 11 सवाल मुख्यमंत्री से पूछे थे, लेकिन एक का भी जवाब नहीं दिया गया। सुधीर का दबदबा आयकर छापों के बाद सुधीर शर्मा को शासकीय उपक्रम 'क्रिस्पÓ का अध्यक्ष बना दिया गया था। नेता प्रतिपक्ष ने मीडिया को विधानसभा का 28 जनवरी 2011 का कार्यवाही विवरणदिया था, जिसमें छापों से जुड़े दोनों कारोबारियों का जिक्र था।

1 टिप्पणी: