गुरुवार, 26 सितंबर 2013

2 साल में 1500 करोड़ की काली कमाई सरेंडर

भोपाल। मप्र में लगातार काली कमाई और टैक्स चोरों का आंकड़ा बढ़ रहा है। प्रदेश में वर्ष 2011-12 में आयकर छापे की कार्रवाई में काली कमाई सरेंडर का आंकड़ा 390 करोड़ रुपए था। यह वर्ष 2012-13 में 720 करोड़ पहुंच गया है। वहीं लोकायुक्त और इओडब्लयू ने दो वर्ष में करीब 400 करोड की अवैध कमाई का भंडाफोड किया है। भ्रष्टाचार के खिलाफ राष्ट्रीय परिदृश्य में सार्वजनिक मंचों पर भाजपा भले अण्णा हजारे के सुर में सुर मिलाती नजर आए लेकिन उसके अपने राज्य मध्य प्रदेश में यह लाइलाज नासूर बन चुका है। पार्टी अपने मंत्रियों और पदाधिकारियों को तो लगातार सबक दे रही है कि वे कोटा-परमिट, मकान-दुकान, खदान से दूर रहें पर नौकरशाही की मुश्कें कसना राज्य सरकार के लिए भी बेहद मुश्किल भरा साबित हो रहा है। भ्रष्टाचार का नजारा यह है कि भ्रष्ट अरबपति अफसरों और करोड़पति क्लर्को, बाबुओं, चपरासियों में एक-दूसरे को पछाडऩे की होड़-सी चल रही है। मध्य प्रदेश में आयकर, लोकायुक्त और ईओडब्ल्यू ने पिछले दो सालों में करीब दो सौ से ज्यादा जगह छापे मारे और करीब 1500 करोड़ रुपये की काली कमाई उजागर की है। आयकर अन्वेषण महानिदेशक मप्र-छग अमरेंद्र कुमार तिवारी के अनुसार इस साल मप्र-छग में कुल 720 करोड़ रुपए छापे की कार्रवाई में सरेंडर हुए हैं। इस आंकड़े में और इजाफा भी हो सकता है। कई मामलों में अभी जांच जारी है। इस रकम में सबसे ज्यादा 320 करोड़ रुपए रियल एस्टेट के कारोबारियों से सरेंडर हुए हैं जिनमें इंदौर और भोपाल के कारोबारियों पर हुई कार्रवाई शामिल है। तिवारी ने बताया कि इस वित्तीय वर्ष में मप्र-छग के 16 ग्रुप पर विभाग ने छापे की कार्रवाई को अंजाम दिया था। जहां से 17 करोड़ की नकद रकम को सीज किया गया है वहीं 8.75 करोड़ के जेवरात भी बरामद किए गए हैं। इसके साथ विभाग ने कार्रवाई में 26 करोड़ की संपत्ति भी जब्त की है। इसके अलावा विभाग ने आयरन सेक्टर से 250 करोड़ और शराब कारोबार से 100 करोड़ सरेंडर कराया है। तिवारी ने बताया कि कुछ मामलों में अभी जांच चल रही है जिससे आने वाले दिनों में यह राशि का ग्राफ बढ़ सकता है। भ्रष्टाचार का नजारा यह है कि भ्रष्ट अरबपति अफसरों और करोड़पति क्लर्को, बाबुओं, चपरासियों में एक-दूसरे को पछाडऩे की होड़-सी चल रही है। लोकायुक्त संगठन द्वारा पिछले ढाई वर्ष में प्रदेश में 203 रिश्वतखोर अधिकारी-कर्मचारियों को पकड़ा। 81 के यहाँ छापामार कार्रवाई कर 103 करोड़़ की संपत्ति जब्त की है। इन सरकारी आंकड़ों से मध्यप्रदेश में भ्रष्टाचार की स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है, जिसे लेकर विपक्ष ने सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी पर हमले तेज कर दिये हैं। सूबे में लोकायुक्त पुलिस और आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (ईओडब्ल्यू) ने भ्रष्टाचार की शिकायतों के मद्देनजर पिछले दो साल में 67 सरकारी कारिंदों के ठिकानों पर छापे मारकर करीब 348 करोड़ रुपये की काली कमाई जब्त की। इन कारिंदों में चपरासी, क्लर्क, अकाउन्टेन्ट और पटवारी से लेकर भारतीय प्रशासनिक सेवा के बड़े अफसर शामिल हैं। प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इंदौर के क्षेत्र क्रमांक एक के भाजपा विधायक सुदर्शन गुप्ता के विधानसभा में उठाये गये सवाल पर यह जानकारी दी थी। गुप्ता ने मुख्यमंत्री के हालिया जवाब के हवाले से बताया कि प्रदेश में पिछले दो साल के दौरान लोकायुक्त पुलिस ने 52 सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों के ठिकानों पर छापे मारे। वहीं ईओडब्ल्यू ने 15 अधिकारियों और कर्मचारियों के ठिकानों पर छापेमारी की। उन्होंने सरकारी आंकड़ों के आधार पर बताया कि दोनों जांच एजेंसियों के छापों में इन 67 सरकारी कारिंदों के ठिकानों से करीब 348 करोड़ रुपये की रकम जब्त की गयी। भाजपा विधायक गुप्ता ने पूछा कि प्रदेश सरकार भ्रष्टाचार के आरोप झेल रहे इन कारिंदों के खिलाफ क्या कार्रवाई कर रही है तो मुख्यमंत्री ने बताया कि शासन के निर्देश हैं कि लोकायुक्त संगठन और ईओडब्ल्यू के छापों के बाद संबंधित लोक सेवक को मैदानी तैनाती (फील्ड पोस्टिंग) से हटाकर कहीं और स्थानांतरित किया जाये या महत्वपूर्ण दायित्वों से मुक्त किया जाये। उधर, प्रदेश के प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस की मानें तो लोकायुक्त पुलिस और ईओडब्ल्यू की कार्रवाई से बड़े मगरमच्छ अब भी बचे हुए हैं। प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता नरेंद्र सलूजा ने कहा, सूबे में क्लर्क और पटवारी जैसे अदने कर्मचारियों के ठिकानों पर इन जांच एजेंसियों के छापों में करोड़ों रुपये की मिल्कियत उजागर हो रही है। इससे बड़े नौकरशाहों और मंत्रियों की काली कमाई का अंदाजा लगाया जा सकता है।Ó उन्होंने दावा किया, 'वर्ष 2013 में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले प्रदेश की भाजपा सरकार के इशारे पर छोटे कर्मचारियों के ठिकानों पर लगातार छापेमारी की जा रही है, ताकि बड़े अधिकारियों में भय का माहौल बनाया जा सके और उनसे मोटा चुनावी चंदा वसूल किया जा सके। प्रदेश के लोकायुक्त पीपी नावलेकर कहते हैं कि लोकायुक्त संगठन द्वारा पिछले ढाई वर्ष में प्रदेश में 203 रिश्वतखोर अधिकारी-कर्मचारियों को पकड़ा। 81 के यहाँ छापामार कार्रवाई कर 103 करोड़़ की संपत्ति जब्त की है। संगठन की नजरों में कोई भी बड़़ा या छोटा नहीं है। शिकायत मिलने पर सभी श्रेणी के अफसर व कर्मचारियों पर कार्रवाई की जा रही है। प्रदेश में कर्नाटक जैसे मामले सामने नहीं आए हैं। उन्होंने कहा कि छोटे स्तर के अधिकारियों पर कार्रवाई करने का मतलब यह नहीं है कि प्रथम श्रेणी के अफसरों पर कार्रवाई नहीं होती है। आम आदमी निचले स्तर के अफसर व कर्मचारी द्वारा किए जा रहे भ्रष्टाचार से परेशान है। यही शिकायतें भी अधिक आती हैं। प्रारंभिक स्तर पर परीक्षण के बाद ही कार्रवाई की जाती है। मध्यप्रदेश गले-गले तक भ्रष्टाचार में डूबा हुआ है। राज्य के नौकरशाह से लेकर पटवारी तक किसी न किसी रूप में भ्रष्टाचार की परिधि में आकर खड़े हो चुके है। पिछले दिनों उज्जैन नगर निगम के एक चपरासी के घर मिली करोड़ों की संपत्ति और अब मंदसौर के एक सब इंजीनियर के घर बरामद हुए करोड़ों रू. सरकार के इतिहास को बयान कर रहे है। लूट का यह सिलसिला वर्ष 1998 के बाद से बहुत तेजी से आगे बढ़ा है। सरकारी योजनाओं की सभी कमजोरियों का पहले लाभ उठाकर हर स्तर पर कमीशन खोरी का धंधा तेजी से जारी है। एक अनुमान के अनुसार भ्रष्टाचार की अब तक वसूली गई रकम को यदि सरकार इन अधिकारी, कर्मचारियों से बाहर निकाल दे तो मध्यप्रदेश को अपने विकास कार्यो के लिए आने वाले बीस सालों तक किसी टैक्स की जरूरत नही रहेगी। आम आदमी पर प्रतिदिन लगने वाले टैक्स और सरकारी खजाने में प्रतिदिन पड़ रही डकैती का अनुपात कुछ ऐसा है कि विकास की गतिविधियां सिर्फ कागजों तक सीमित होकर रह गई है। प्रदेश में केंद्र और राज्य के बजट से अरबों की योजनों और कार्यक्रम चल रहे हैं, विश्वबैंक और डीएफआइडी पोषित योजनाओं ने भी सरकारी विभागों के खजाने भर रखे हैं। तीन सालों में आयकर विभाग उन सभी स्त्रोत और माध्यमों का खुलासा कर चुका है जहां ब्लैक से व्हाइट का खेल चलता है, लिहाजा अब उन स्त्रोतों और माध्यमों को छोड़कर किसी दूसरे तरीके से इसे ठिकाने लगाने के लिए मंथन में यह गठजोड़ जुटा है। यह गठजोड़ अब तक पैसा कमाने के नए-नए तरीकों को खोजने में व्यस्त रहता था लेकिन अब इसे बचाने की जुगत में जुटा हुआ है। आयकर विभाग की आंखों में धूल झोंकने के नए-नए तरीके ईजाद किए जा रहे हैं। करोड़पति चपरासी और क्लर्को के राज्य में आला अधिकारियों के हाल यह है कि उनके यहां छापा मारने पर पैसा गिनने के लिए मशीनों का इस्तेमाल करना पड़ता है। भ्रष्टाचार के खिलाफ मोर्चा खोलने वाली राज्य और केंद्र सरकार की एजेंसियों ने पिछले तीन साल के दौरान करीब एक हजार करोड़ रुपये की काली कमाई उजागर की है। इन विभागों के छापों से यह बात सामने आई है कि सरकारी दफ्तरों का सारा अमला भ्रष्टाचार में डूबा है। अफसरों के पास नगदी और सोना रखने के लिए जगह नहीं है। कोई अपनी काली कमाई बिस्तर में छिपा रहा है तो किसी ने बैंक लॉकर नोटों से भर रखे हैं। मध्यप्रदेश में भ्रष्टाचार की एक-एक कहानी धीरे-धीरे सामने आने लगी है। राज्य सरकार के सबसे निचले स्तर के कर्मचारियों के पास से करोड़ो रूपये की बरामदगी का सिलसिला जारी है। राज्य के प्रमुख सचिव से लेकर पटवारी तक सरकारी कर्मचारी इन दिनों करोड़पति बन चुके है। अनुमान के अनुसार पिछले दस वर्षो के दौरान मध्यप्रदेश में पचास हजार करोड़ से अधिक की हेराफेरी सरकारी खजाने में की गई है। मध्यप्रदेश को एक सुशासन देने का दावा करने वाली सरकार इस भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने में असफल रही है। इंदौर में परिवहन विभाग के एक मामूली बाबू रमण धूलधोए के यहां छापा मारने पहुंची ईओडब्लू की टीम की आंखें तब फटी की फटी रह गईं, जब उसे करोड़ों की बेनामी संपत्ति मिली। इंदौर में परिवहन विभाग के एक मामूली बाबू रमण धूलधोए के यहां छापा मारने पहुंची ईओडब्लू की टीम की आंखें तब फटी की फटी रह गईं, जब उसे करोड़ों की बेनामी संपत्ति मिली। क्लर्क रमण धूलधोए के यहां से 75 करोड़ रुपये की काली कमाई उजागर हुई। इसमें एक किलो सोने के जेवरात, पचास बीघा जमीन पर आलीशान फार्म हाउस समेत कई और मकान और लक्जरी गाडिय़ां शामिल हैं। 15 दिसंबर को मंदसौर के सब इंजीनियर शीतल प्रसाद पांडे के विकानों पर मारे गए लोकायुक्त के छापे में बारह करोड़ की काली कमाई सामने आई। उज्जैन नगर निगम का चपरासी नरेन्द्र देशमुख पंद्रह करोड़ रुपये का मालिक निकला। देशमुख भले ही चपरासी के पद पर कार्यरत हो, लेकिन उसने जमीन में करोड़ों रुपये निवेश कर रखे थे। वह जलगांव में एक होटल में बराबर का भागीदार भी पाया गया। इसके अलावा 12 नवंबर को हरदा के सब-रजिस्ट्रार माखनलाल पटेल के इंदौर के तीन ठिकानों पर मारे गए छापे में तीन करोड़ की काली कमाई का खुलासा हुआ। उज्जैन में परिवहन विभाग के एक इंस्पेक्टर सेवाराम खाडेगर के यहां दस करोड़ की संपत्ति का पाया जाना भी पुलिस टीम को चकरा देने वाला था। परिवहन ऐसा कमाऊ विभाग है जिसमें सिपाही तक की नियुक्ति मुख्यमंत्री सचिवालय की मंजूरी के बगैर नामुमकिन होती है। भ्रष्टाचार की यह कथा अंतहीन है। पिछली 31 दिसंबर को आयकर महकमें ने अनुपातहीन संपत्ति के मामले में कुछ आइएएस अफसरों और कॉलेज चलाने वाले शिक्षा संस्थानों को नौ सौ करोड़ रुपये टैक्स वसूली के नोटिस जारी किए हैं। लोकायुक्त में लंबित प्रकरण मुख्यमंत्री, राज्य के मंत्रीगण, विधायक सहित पटवारी स्तर तक के अधिकारियों एवं कर्मचारियों को अपने गिरफ्त में ले रहे है। इसके बाद भी सरकार का दावा है कि भ्रष्टाचार से दूर स्वच्छ प्रशासन देने के उसके प्रयास कामयाब रहे है। एक अनुमान के अनुसार भ्रष्टाचार की अब तक वसूली गई रकम को यदि सरकार इन चोर अधिकारी, कर्मचारियों से बाहर निकाल दे तो मध्यप्रदेश को अपने विकास कार्यो के लिए आने वाले बीस सालों तक किसी टैक्स की जरूरत नही रहेगी। आम आदमी पर प्रतिदिन लगने वाले टैक्स और सरकारी खजाने में प्रतिदिन पड़ रही डकैती का अनुपात कुछ ऐसा है कि विकास की गतिविधियां सिर्फ कागजों तक सीमित होकर रह गई है। करोड़पति चपरासी और क्लर्को के राज्य में आला अधिकारियों के हाल यह है कि उनके यहां छापा मारने पर पैसा गिनने के लिए मशीनों का इस्तेमाल करना पड़ता है। भ्रष्टाचार के खिलाफ मोर्चा खोलने वाली राज्य और केंद्र सरकार की एजेंसियों ने पिछले तीन साल के दौरान करीब एक हजार करोड़ रुपये की काली कमाई उजागर की है। इन विभागों के छापों से यह बात सामने आई है कि सरकारी दफ्तरों का सारा अमला भ्रष्टाचार में डूबा है। अफसरों के पास नगदी और सोना रखने के लिए जगह नहीं है। कोई अपनी काली कमाई बिस्तर में छिपा रहा है तो किसी ने बैंक लॉकर नोटों से भर रखे हैं। आयकर विभाग की गोपनीय रिपोर्ट के मुताबिक मप्र-छग में पिछले एक साल में सौ कंपनियों के नाम सामने आए हैं जिन्होंने सात हजार करोड़ से अधिक रुपए को ब्लैक मनी से व्हाइट में बदल दिया है। ये कंपनियां बड़े ग्रुप की काली कमाई को कैश में लेकर उन्हें लोन या शेयर कैपिटल के रूप में चेक से लौटा रही हैं। ये आंकड़े असेसमेंट में पकड़े गए हैं। विभागीय अधिकारियों का मानना है कि इनसे कई गुना अधिक मामलों में तो फर्जी कंपनी की पड़ताल ही नहीं हो पाती। यदि किसी रियल इस्टेट ग्रुप को अपनी सौ करोड़ की काली कमाई बिना आयकर चुकाए वैध करनी है तो वे शहर में फायनेंस, इन्वेस्टमेंट,मार्केटिंग के नाम पर चल रहे ग्रुप ऑफ कंपनीज से संपर्क करते हैं। कर्ताधर्ताओं के पास बड़ी संख्या में कागजी कंपनी और उनके बैंक अकाउंट होते हैं। इन कंपनियों में डायरेक्टर ड्रायवर,चौकीदार जैसे लोगों को बनाकर उन्हें लिस्टेड करा लिया जाता है। रियल इस्टेट ग्रुप से सौ करोड़ रुपए कैश में लेकर कई कागजी कंपनियों के माध्यम से उतनी कीमत के कई अकाउंट पेयी चैक रियल इस्टेट ग्रुप को दे दिए जाते है। यह चैक रियल इस्टेट ग्रुप खाते के माध्यम से कैश करा लेता है। बुक्स ऑफ अकाउंट में इसकी इंट्री लोन के रुप में दर्शायी जाती है जिससे उस पर आयकर की देनदारी नहीं होती। कमीशन के रूप में रियल इस्टेट को दो करोड़ रुपए कर्ताधर्ताओं को देने पड़ते है लेकिन उनके आयकर के तीस करोड़ रुपए बच जाते है। अग्रवाल कोल कॉपरेरेशन ने अपनी कमाई में शामिल हिंदुस्तान कॉन्टिनेंटल व ऑप्टीमेट टेक्सटाइल इंडस्ट्रीज कंपनियों के शेयर केपिटल गेन से इनकम टैक्स में छूट मांगी। विभाग को शक होने पर दोनों कंपनियों को उनके दिए गए पते इंदौर, मंदसौर, मुंबई और जबलपुर में ढूंढा। न तो कंपनी मिली और न ही नोटिस की तामीली हुई। इनकम टैक्स अपीलेट ट्रिब्यूनल ने आखिरकार यह माना कि दोनों की कंपनी बोगस है और कोल कॉरपोरेशन ने गलत ढंग से शेयर केपिटल गेन के माध्यम से खुद की ही काली कमाई को वैध करने का प्रयास किया है। 496 भ्रष्ट अधिकारियों पर लोकायुक्त कार्रवाई की तलवार मध्यप्रदेश में भ्रष्टाचार की एक-एक कहानी धीरे-धीरे सामने आने लगी है। राज्य सरकार के सबसे निचले स्तर के कर्मचारियों के पास से करोड़ो रूपये की बरामदगी का सिलसिला जारी है। राज्य के प्रमुख सचिव से लेकर पटवारी तक सरकारी कर्मचारी इन दिनों करोड़पति बन चुके है। अनुमान के अनुसार पिछले दस वर्षो के दौरान मध्यप्रदेश में पचास हजार करोड़ से अधिक की हेराफेरी सरकारी खजाने में की गई है। मध्यप्रदेश को एक सुशासन देने का दावा करने वाली सरकार इस भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने में असफल रही है।

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