गुरुवार, 26 सितंबर 2013

मध्यप्रदेश मनरेगा में 2083 करोड़ का भ्रष्टाचार

भोपाल। केंद्र सरकार की महात्मा गांधी राष्टीय रोजगार योजना में खुलकर भ्रष्टाचार किया गया है। केवल कागजों पर कुओं,तालाब और स्टॉप डैम का निमार्ण हुआ है। प्रारंभिक आंकलन में मध्यप्रदेश में 2838 करोड़ का गोलमाल किया गया है। इतनी बडी रकम के भ्रष्टाचार में सरपंच से लेकर बडे अधिकारियों तक की मिलीभगत है। कागजों पर ही कुआ खुदा मध्यप्रदेश में शुरू हुई कपिलधारा योजना के तहत खोदे गए 2.5 लाख कुओं में से ज्यादातर कुएं खोदे ही नहीं गए। प्रस्तावित स्थलों का जब जांच के दौरान मुआयना किया गया तो वहां कागजों में कपिलधारा योजना के तहत कुओं का निर्माण पूर्ण बताया गया है। लेकिन जांच अधिकारी यह देखकर चौक गए कि कागजों में खुदे कुएं, खेत में थे ही नहीं। 53 लाख झूठे जॉबकार्ड यहां भ्रष्टाचार का आलम यह है कि मनरेगा के तहत मध्य प्रदेश में 53 लाख झूठे जॉबकार्ड बनाए गए हैं। इस बात की आशंका केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल पूर्व में ही जता चुके थे। मनरेगा के तहत बने झूठे जॉबकार्ड का हवाला देते हुए उन्होंने कहा था कि 53 लाख झूठे जॉबकार्ड बने हैं, मगर किसी के खिलाफ कार्रवाई नहीं की गई है। इससे नुकसान किसका और फायदा किसे हुआ है, इसे आसानी से समझा जा सकता है। बड़वानी में काम करने वाली सामाजिक कार्यकर्ता माधुरी कृष्णास्वामी बताती हैं कि मनरेगा में मजदूरों को एक तो आधा-अधूरा पैसा बांटा जाता है और उस पर भी यह उन तक छह महीने के बाद तक पहुंचता है. करोड़ों की राशि की उपयोगिता प्रमाण पत्र नहीं भेजा गया मनरेगा योजना में भ्रष्टाचार कम होने का नाम नहीं ले रहा है। केंद सरकार द्वारा 2006 में लागू की गई इस योजना में मप्र में शुरू से ही भ्रष्टाचार के मामले सामने आते रहे हैं। ताजा मामला सीएजी की संस्था महालेखाकार (एजी) की रिपोर्ट से हुए खुलासे का है, जिसमें एजी कार्यालय ने प्रदेश में करोड़ों के भ्रष्टाचार के साथ ही प्रशासनिक व्यय में मनमानी सहित केंद्र से मांगी गई राशि को खर्च नहीं कर पाने का खुलासा किया है। साथ ही उपयोगिता प्रमाण पत्र के नाम पर भी किए गए भ्रष्टाचार को सार्वजनिक किया है। रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में करोड़ों की राशि की उपयोगिता प्रमाण पत्र केंद्र को नहीं भेजी गई, वहीं कुछ मामलों में वास्तविक खर्च से अधिक राशि की उपयोगिता प्रमाण पत्र भेजी गई है। यह खुलासा आरटीआई के तहत प्राप्त एजी रिपोर्ट के बाद हुआ है। यह रिपोर्ट वर्ष 2011 -2012 की है। इस निरीक्षण प्रतिवेदन को तैयार कर ग्वालियर कार्यालय ने फरवरी 2013 में उचित कार्रवाई के लिए मप्र मनरेगा परिषद को भेजा था, लेकिन उस पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। रिपोर्ट की मानें तो मप्र में मनरेगा की स्थिति काफी बदहाल है। यही नहीं इसको लेकर प्रदेश सरकार और निगरानी के लिए कार्यरत मनरेगा परिषद की कार्यप्रणाली पर भी सवाल खड़े हुए हैं। रिपोर्ट में सामने आए भ्रष्टाचार के नमूने -रिपोर्ट के अनुसार मनरेगा परिषद ने योजना की उचित मॉनिटरिंग नहीं की, जिस कारण मजदूरों को योजना का लाभ नहीं मिला। 8 जिलों में मजदूरी और सामग्री के लिए निर्धारित अनुपात में व्यय का पालन न करते हुए सामग्री पर 40 प्रतिशत से ज्यादा राशि 16263.27 लाख रुपए खर्च की गई। -मनरेगा परिषद ने उचित बजट प्रस्ताव न बनाते हुए केंद्र सरकार से करोड़ों की राशि की और उसे खर्च ही नहीं किया। रिपोर्ट के अनुसार परिषद् द्वारा बनाया गया बजट तथ्यों पर आधारित न होकर अवास्तविक और आधारहीन रूप से तैयार किया गया था। इसके कारण वर्ष 2011-12 के अंत तक करीब 191492.51 लाख रुपए की राशि शेष रही। -मनरेगा योजना के तहत मजदूरी का भुगतान बेहद विलंब 90 दिनों के बाद 7 लाख 37 हजार 688 मजदूरों को रुपए 85887.91 लाख रुपए किया गया। -मनरेगा परिषद ने शासकीय और अशासकीय संस्थाओं को विशेष प्रयोजनों के लिए 64.37 लाख रुपए की जो राशि अग्रिम दी थी, उसका समायोजन नहीं किया। परिषद ने इन संस्थाओं से उपयोगिता प्रमाण पत्र भी नहीं लिया। -वर्ष 2011-12 में 30 जिलों ने प्रशासनिक व्यय 6 प्रतिशत से अधिक किया, जो की करीब 3850.21 लाख रुपए ज्यादा खर्च किया। रिपोर्ट के अनुसार इस कारण योजना का उचित क्रियान्वयन नहीं हो सका। -मनरेगा परिषद ने वर्ष 2011-12 का वास्तविक उपयोग से अधिक राशि का उपयोगिता प्रमाण पत्र केंद्र सरकार को जारी कर दिया। यह राशि 11903.89 लाख रुपए थी। -ग्रामीण विकास मंत्री और मनरेगा आयुक्त के गृह जिलों में बुंदेलखंड पैकेज की राशि का सदुपयोग नहीं हुआ। अनावश्यक सरकारी धन को अवरुद्ध रखा गया, जिससे गरीब हितग्राहियों का पलायन नहीं रुका। इससे अन्य जिलों की स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। 5 साल से नहीं हुई गवर्निंग बॉडी की बैठक प्रदेश में मनरेगा परिषद की गवर्निंग बॉडी की बैठक पिछले पांच सालों से नहीं हुई। बॉडी के अध्यक्ष स्वयं मुख्यमंत्री हैं, जबकि प्रदेश के मुख्य सचिव परिषद् की कार्यकारणी सभा के प्रमुख हैं और उन्होंने कभी भी उपरोक्त अनियमितताओं पर रोक नहीं लगाई। 97 प्रतिशत मजदूरों को समय पर भुगतान नहीं प्रदेश में अब ताजा मामला मजदूरों को समय पर मजदूरी नहीं देने का है। इसमें 97 प्रतिशत मजदूरों को समय पर मजदूरी देने की बात सामने आई है। ये आंकड़े बताते हैं कि ज्यादातर जिलों मे मजदूरों को भुगतान बहुत ही कम हो रहा है। आलम यह है कि भिंड में तो मात्र 1 प्रतिशत ही मजदूरी का भुगतान हुआ है। विभाग की लापरवाही पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के अधिकारियों की लापरवाही के कारण मनरेगा के समस्त कार्य ठप हैं। इसका कारण सरकार द्वारा 1 अप्रैल 2013 से मनरेगा योजना के तहत सभी भुगतान के लिए इलेक्ट्रानिक फंड मैनेजमेंट सिस्टम (ईएफएमएस) लागू किया था।यह व्यवस्था बहुत अच्छे उद्देश्य के तहत पारदर्शिता के लिए लायी गई है, लेकिन भ्रष्ट अधिकारियों के षडय़ंत्र के कारण इस योजना को लागू होने के फौरन बाद यह चौपट हो गई, जिससे प्रदेश के लाखों गरीब मजदूरों को उनकी मजदूरी का भुगतान नहीं हो पा रहा है। ऐसे में कई मजदूरों के घरों में चूल्हें नहीं जल पा रहे हैं। फिर भी नहीं की कार्रवाई बताया जाता है कि मनरेगा के तहत ईएफएमएस से मजदूरी भुगतान का कार्य ठप होने की जानकारी विभागीय अमले की थी, लेकिन फिर भी विभाग द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की गई और सिस्टम की खामी को दूर करने का प्रयास नहीं किया गया। मंत्री बने मजदूर! मनरेगा ने गरीबों को फायदा पहुंचाया हो या नहीं, लेकिन भ्रष्टाचारियों की कमाई का रास्ता जरूर खोल दिया है। मध्यप्रदेश के रीवा में मनरेगा के मजदूरों की लिस्ट में कई राज्यों के मुख्यमंत्री और कई दिग्गज लोग शामिल हैं यानी मजदूरों के नाम और किसी की तस्वीर लगा कर दलालों ने करोड़ों का फर्जीवाड़ा किया। शायद आपको भरोसा ना हो, लेकिन रीवा में बने मनरेगा के स्मार्टकार्ड बता रहे हैं कि गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी रीवा में मनरेगा के तहत मजदूरी कर रहे हैं। इतना ही नहीं पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ के सीएम रमन सिंह का भी यहां जॉब कार्ड है। राजनेता विद्याचरण शुक्ल और उद्धव ठाकरे के नाम से भी यहां मनरेगा मजदूर के लिए जॉब कार्ड बना है। मनरेगा के ये जॉब कार्ड होश उड़ाने वाले हैं, लेकिन भ्रष्टाचारियों का क्या, तस्वीर नेता की और नाम किसी मजदूर का। ये कारनाम एक जॉब कार्ड बनाने वाली एक निजी एजेंसी का है। इस घोटाले को लेकर संदेह के घेरे में फीनो नाम की एक निजी एजेंसी है। करोडों रुपए का फर्जीवाड़ा हो गया, लेकिन रीवा के जिस यूनियन बैंक ऑफ इंडिया के जरिए इसका भुगतान हुआ, उसे कानों-कान इसकी खबर नहीं हुई। अब बैंक के अधिकारी इस मामले में सारा दोष फीनो एजेंसी पर डाल कर पल्ला झाड़ते नजर आए। अधिकारियों को कहना है कि उनके पास जॉब कार्ड मुंबई से बनकर आते हैं, उनका इसमें कोई लेना-देना नहीं है। हालांकि बैंक अधिकारियों का ये तर्क गले से नीचे नहीं उतरता। लेकिन यह साफ है कि मनरेगा योजना पर पलीता लगाते हुए ग्रामीण विकास और फिनो के एजेंटो ने जमकर राशि डकारी है। अब जब यह महा घोटाला सामने आया है, तो प्रशासन ने भी चुप्पी साध ली है। सरकार को सीबीआई से जांच करानी चाहिए प्रदेश में मनरेगा की स्थिति अत्यंत दयनीय है। यहां पर व्यापक स्तर पर भ्रष्टाचार चल रहा है। सबसे गंभीर बात यह है कि मनरेगा परिषद जिस पर निगरानी और कार्रवाई का जिम्मा है, जब वह ही उदासीन है, तो मनरेगा में भ्रष्टाचार कैसे रुक सकता है। एजी की रिपोर्ट में बड़े खुलासे हुए हैं। अब सरकार को इसकी सीबीआई से जांच कराना चाहिए। -अजय दुबे, सदस्य, राज्य स्तरीय विजिलेंस एंड मॉनिटरिंग समिति, पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग, मप्र शासन

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें