गुरुवार, 26 सितंबर 2013

6 साल...2000 करोड़ स्वाहा... कुपोषण जस का तस

मप्र में 68,000 से ज्यादा बच्चे अति कुपोषित भोपाल। प्रदेश में कुपोषण दूर करने के लिए मप्र सरकार ने 6 साल में 2000 करोड़ रूपए खर्च कर दिए हैं,लेकिन कुपोषण जस का तस है। हालात यह है कि सरकार कुपोषण दूर करने का जितना प्रयास कर रही है कुपोषण उतना ही फैल रहा है। वर्तमान में प्रदेश में कम वजन वाले बच्चों की तादाद दोगुनी हो गई है। वहीं 68 हजार से ज्यादा बच्चे अति कुपोषित हो गए हैं। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पिछले कुछ समय से राज्य भर में जन आशीर्वाद यात्रा जैसे अभियानों के जरिए अपनी सरकार की उपलब्धियां गिनाने में लगे हैं। लेकिन दूसरी ओर उनकी सरकार को खुद यह स्वीकार करना पड़ा है कि राज्य में हजारों बच्चे कुपोषण और दूसरी वैसी बीमारियों की जद में आकर जान गंवा रहे हैं, जिनसे उन्हें आसानी से बचाया जा सकता है। ये चौंकाने वाले आंकड़े वर्ष 2007 से 2013 तक केंद्र और राज्य एकीकृत बाल विकास परियोजना के पूरक पोषण आहार कार्यक्रम की हकीकत बयां करते हैं। कार्यक्रम के छह साल के आंकड़ों की पड़ताल में सामने आया कि प्रदेश में 15 लाख बच्चे कुपोषित हैं। करीब सवा लाख मासूम मौत के मुहाने पर हैं। ताजा स्थिति ने प्रदेश के माथे पर लगा कुपोषण का कलंक और गहरा दिया है। जमीनी हकीकत बताती है कि कुपोषण इसलिए बढ़ा, क्योंकि यहां पोषण आहार बनाने से लेकर बांटने तक की पूरी प्रक्रिया भ्रष्ट तंत्र और माफिया के कब्जे में है। सालाना 400 करोड़ होता है खर्च केंद्र और राज्य एकीकृत बाल विकास परियोजना के पूरक पोषण आहार कार्यक्रम में 6 माह से 3 साल के बच्चों और गर्भवती महिलाओं के लिए सालाना लगभग 400 करोड़ रूपए खर्च किया जाता है, लेकिन वजनदार कोई दूसरा हो रहा है। प्रदेश में अभी 1.19 लाख बच्चे अति कुपोषित हैं। वर्ष 2007 में 6.79 लाख वजन किया गया था। इनमें से करीब 50 हजार बच्चे अति कुपोषित मिले थे। जबकि 2013 में 6.98 लाख बच्चों का वजन किया गया। इनमें अति कुपोषित 1.19 लाख मिले। यानी 68 हजार से ज्यादा बच्चे अति कुपोषित निकले। श्योपुर में बीते साल अगस्त-सितम्बर में 23 मासूमों ने कुपोषण से दम तोडा था। घटना से आहत एशियाई मानवाधिकार आयोग ने आपत्ति जताते हुए प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को कड़ा पत्र लिखा था। राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग ने दौरा भी किया था, लेकिन नौनिहालों की सेहत के लिए सरकार प्रभावी कदम नहीं उठा पाई। व्यवस्था पर ठेकेदार हावी सरकार के उपक्रम एमपी स्टेट एग्रो के पास पोषण आहार की जिम्मेदारी थी। इसके बाद वर्ष 2005-06 में एग्रो कॉर्पोरेशन ने संयुक्त उपक्रम से दो कंपनियों (ठेकेदार) को ठेका दे दिया, जो आहार सप्लाई करती हैं। यह उस प्रदेश की हालत है, जहां कुपोषित बच्चों के संरक्षण के लिए केंद्रीय योजनाओं के अलावा, मध्यप्रदेश में भी बच्चों के बेहतर स्वास्थ्य की दृष्टि से 30 योजनाएं चल रही हैं। जिनका मकसद मां और बच्चे की जीवन-रक्षा के लिए उत्तम सेवाएं देना है। लेकिन ये दावे कितने कागजी हैं, इसकी तसदीक खुद स्वास्थ्य मंत्री ने कर दी है। गरीब के लाचार व मासूम नौनिहाल उपचार की आधुनिक सुविधाओं व बेहतर तकनीकी तरीकों के बावजूद स्वास्थ्य केंद्रों की देहरी पर दम तोड़ रहे हैं। एक साल में 21000 बच्चों की मौत जनवरी 2012 से 31 दिसंबर 2012 तक मरने वाले बच्चों की यह संख्या 21,418 है। इन मौतों में 6 साल से कम के 20,086 और 6 से 12 आयु वर्ग के 1332 बच्चे शामिल हैं। कुपोषण और उसके प्रभाव से शरीर में अनायास पैदा हो जाने वाली बीमारियों से प्रदेश में औसतन 58 बच्चे रोजाना प्राण गंवा रहे हैं। कुपोषण की सहायक बीमारियों में निमोनिया, हैजा, बुखार, खसरा, तपेदिक,डायरिया, रक्तअल्पता और चेचक शामिल हैं। ये हालात पिछले पांच साल से बद् से बद्तर होते जा रहे हैं। प्रदेश में सबसे बद्तर स्थिति सतना जिले में है। जबकि यहां यूनिसेफ द्वारा चलाए जा रहे सीक न्यूबोर्न केयर यूनिट में ही 2010 में केवल चार माह के भीतर 117 नवजात शिशु मौत की गोद में समा गए थे। पिछले साल इस जिले में कुपोषण से 2001 बच्चों के मरने का सरकारी आंकड़ा आया है। जाहिर है, हालात सुधरने की बजाय विकराल हुए हैं। सतना के बाद दूसरे नंबर पर बैतूल जिला है, जहां इसी अवधि में 1071 बच्चे मरे। इसके बाद तीसरे नंबर पर छतरपुर जिला आता है, जहां 1012 बच्चों की मौतें हुईं। 60 फीसदी बच्चे कम वजन के मध्यप्रदेश, कुपोषण से मरने वाले बच्चों की संख्या में ही अव्वल नहीं है, औसत से कम वजन के बच्चे भी यहां सबसे ज्यादा हैं। यहां पांच साल से कम उम्र के 60 फीसदी बच्चे सामान्य से कम वजन के हैं। जबकि ऐसे बच्चों का राष्टीय औसत 425 फ़ीसदी है। प्रदेश के अनुसूचित जाति के बच्चों का तो और भी बुरा हाल है। ऐसे 71 फीसदी बच्चे सामान्य से कम वजन के हैं, जबकि ऐसे बच्चों का राष्टीय औसत 545 प्रतिशत है। प्रदेश के शहरी इलाकों में ऐसे बच्चों की संख्या 513 प्रतिशत है, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में 627 प्रतिशत है। केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री कृष्णा तीरथ की ओर से लोकसभा के इसी बजट-सत्र में पेश किए गए ये आंकड़े प्रदेश के नौनिहालों का हाल बयान करने के लिए काफी हैं। यह जमीनी हकीकत, राष्टीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-तृतीय की रिपोर्ट में दर्ज आंकड़ों से सामने आई है। ये हालात तब हैं, जब प्रदेश में ब्रिटेन के अंतरराष्ट्रीय विकास विभाग के सहयोग से, उसी की मर्जी के मुताबिक करीब ढाई सौ पोषण पुनर्वास केंद्र चल रहे हैं। इसके अलावा नवजात शिशुओं को कुपोषण मुक्ति के लिहाज से प्रदेश के छह जिला चिकित्सालयों में यूनिसेफ की मदद से एसएनसीयू चलाए जा रहे हैं। जल्दी ही यह सुविधा प्रदेश के आो जिलों में विस्तार पाने जा रही है। गैर सरकारी संगठन भोजन का अधिकार अभियान और स्पंदन के सर्वे भी इस बात की पुष्टि करते हैं कि मध्यप्रदेश में कुपोषण के हालात दिन-प्रतिदिन खतरनाक होते जा रहे हैं। कुपोषित बच्चों की यादा संख्या उन जिलों में है, जो आदिवासी बहुल हैं और जो आसानी से शोषण का शिकार हो जाते हैं। आधुनिकता व शहरीकरण का दबाव, बड़े बांध और वन्य-प्राणी अभयारण्यों के संरक्षण की दृष्टि से बड़ी संख्या में विस्थापन का दंश झेल रही ये जनजातियां कुपोषण व भूख की गिरफ्त में हैं। इस कारण इनकी आबादी घटने के भी आंकड़े 2011 की जनगणना में सामने आए हैं। सरकार अकसर हकीकत पर पर्दा डालने की दृष्टि से बहाना बनाती है कि ये मौतें कुपोषण से नहीं बल्कि खसरा, डायरिया अथवा तपेदिक से हुई हैं। लेकिन ये बेतुकी दलीलें हैं। कुपोषण और कुपोषणजन्य बीमारियां अल्पपोषण से ही शिशु-शरीर में उपजती हैं। यहां गौरतलब यह भी है कि राय में आज भी करीब 4225 आदिवासी बस्तियों में लोग समेकित बाल विकास योजना के लाभ से वंचित हैं। इस पर भी हैरानी यह है कि यादातर आदिवासी बस्तियों में मौजूद प्राथमिक स्वास्थ्य व आंगनबाड़ी पोषण-आहार केंद्र महीनों खुलते ही नहीं हैं। यही हाल प्राथमिक और मायमिक विद्यालयों में बांटे जाने वाले मयान्ह भोजन का है। इस पर भी विसंगति है कि स्वास्थ्य के मद में सरकार एक व्यक्ति पर साल भर के लिए महज 125 रुपए खर्च करती है। इन जिलों की हालत खराब जिला गंभीर बच्चे कम वजन वाले बच्चे भोपाल 21.0 55.80 प्रतिशत सतना 26.40 67.10 प्रतिशत बड़वानी 35.50 65.10 प्रतिशत उमरिया 25.60 66.60 प्रतिशत अलीराजपुर 29.50 60.80 प्रतिशत डिंडोरी 24.20 61.70 प्रतिशत मंत्री का अलग राग कुपोषण सामान्य बच्चों में 60 से घटकर 52, कुपोषित में 21 से 19.4 और अति कुपोषित बच्चों में 16.6 से घटकर 8.3 प्रतिशत हुआ है। मैं अभी प्रगति से असंतुष्ट हूं। लगातार प्रयास जारी हैं। पूरक पोषण आहार के वितरण की व्यवस्था में भी सुधार की जरूरत है। - रंजना बघेल, महिला एवं बाल विकास मंत्री

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