सोमवार, 29 नवंबर 2010

बीहड़ से खत्म हो रहा डाकुओं का राज

मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के लिए हमेशा सिरदर्द रहे बीहड़ में धीरेधीरे डाकुओं का राज खत्म हो रहा है और यहां पर तोजी से हालात बदल रहे हैं। हालांकि दस्यु उन्मूलन के लिए अभी और समय लगेगा, किन्तु वषोर्ं तक आतंक का पर्याय रहे बुंदेलखंड और चंबल अंचल में विगत एक दशक से धीरेधीरे डकैत समस्या अंत की ओर ब़ रही है। बीहड़ में अपनी सत्ता चलाने वाले दस्यु सरगनाओं को उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश पुलिस ने मार गिराकर जहां राहत की सांस ली है वहीं यहां के निवासियों की सोच में बदलाव देखा गया है। उत्तर प्रदेश पुलिस ने डाकुओ की पनाहगाह चम्बल घाटी में निर्भय गुर्जर, शिवकुमार उर्फ ददुआ, जगजीवन परिहार, अंबिका पटेल उर्फ ठोकिया जैसे कुख्यात डाकुओं का सफाया किया है वहीं मध्य प्रदेश पुलिस ने भी ग्वालियरचंबल इलाके में करीब एक दशक तक आतंक मचाने वाले गडरिया गैंग का सफाया किया। इस गिरोह के मुखिया रामबाबू और दयाराम डकैत को शिवपुरी पुलिस ने मार गिराकर राहत की सांस ली है।

कहना न होगा कि ग्वालियरचंबल सहित बुंदेलखंड से धीरेधीरे खूंखार डकैतों के सफाये के बाद राहत की सांस ज्यादा दिनों तक रह सकी और अब उसके सामने सवोर्च्चता कायम करने को लेकर छोटेछोटे गिरोहों में मची होड़ ने एक और चुनौती खड़ी कर दी है। बुंदेलखंड और चंबल अंचल में वषोंर्ं तक आतंक का पर्याय रहे दस्यु सरगना निर्भय, ददुआ परिहार और ठोकिया को तो मार गिराया गया, मगर उसके बाद विगत दो वषोर्ं में उन्हीं बीहड़ों में कई छोटेछोटे गिरोह सिर उठा चुके हैं और ये गिरोह पूर्व में मारे गए डकैत सरगनाओं से आगे निकलने की होड़ मे लग गए हैं। हालांकि नए गिरोह जनशक्ति और हथियारों के मामले में पूर्व के दस्यु गिरोहों से बहुत पीछे हैं, किन्तु उनके इरादे आतंक का एकछत्र राज कायम करने के ही हैं। यूपी में करीब 36 गिरोह हैं, जो पुलिस के लिए अभी नहीं तो आगे चलकर बड़े सिरदर्द साबित हो सकत्ो हैं। वहीं मध्य प्रदेश में भी इनकी संख्या कम नहीं है। दस्यु सरगना ठोकिया के मारे जाने के बाद इस गिरोह का विभाजन हो गया और गुटों में लड़ाई चल रही है कि ठोकिया का असली उत्तराधिकारी कौन है। अगर समय रहत्ो ऐसे गिरोहों पर अंकुश न लगा तो यह पुलिस के लिए बड़ा सिरदर्द साबित हो सकता है।

दस्यु प्रभावित क्षेत्र ग्वालियर, शिवपुरी, गुना, भिंड, मुरैना, इटावा और आगरा में आजादी के 63 साल बाद भी विकास की बयार कहीं दिखाई नहीं देती। गांवों में न सड़कें है और न ही दूसरी बुनियादी सुविधाएं। उद्योग धंधे और रोजगार के अवसर तो न के बराबर हैं। खेती पर ही लोगों की आजीविका निर्भर है। बिजली की समस्या की वजह से खेतों की सिचाई नहीं हो पाती है। व्यावसायिक शिक्षा की तरफ यहां सरकार ने कभी ध्यान ही नहीं दिया। लोगों के पास सरकारी नौकरी खासकर फौज में भतीर होने के अलावा कोई चारा नहीं है। जमीन बेचकर लोग इसके लिए रिश्वत का इंतजाम करत्ो हैं, जिन्हें नौकरी नहीं मिलती वे अपहरण उद्योग में शामिल हो जात्ो हैं। यहां के युवा अपहरण कर डकैतों को सौंप देत्ो हैं। इसके बदले उन्हें फिरौती की रकम से एक हिस्सा मिल जाता है। यह हिस्सा 10 से 25 फीसदी तक होता है। अपहरण उद्योग से पुलिस को भी कमाई होती है। असलियत यह है कि पुलिस नहीं चाहती की दस्यु समस्या खत्म हो। भ्रष्ट पुलिस वालों के लिए दस्यु समस्या कमाई का जरिया बन हुआ है। पुलिस के कई लोग डाकुओं की मदद करत्ो हैं पुलिस भी मानती है कि उसके महकमें के लोगों द्वारा डाकुओं को मदद मिलती है। यही नहीं कई बार पुलिस की सूचनाएं डाकुओं तक पहुंच गई हैं और अभियान फेल हो गया। इसका सब मामले में कई पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई भी की गई है।

यहां की धरती पर कभी अंग्रेजों और सिंधिया स्टेट के अन्याय के खिलाफ हथियार उठाने वाले बागियों से लेकर मौजूदा समय में अपहरण को उद्योग बनाने वाले डाकुओं की कहानियां बिखरी पड़ी हैं। पुलिस की नजर में ये डकैत बर्बर अपराधी हैं, लेकिन वे अपने इलाके में रॉबिनवुड हैं। अपनी जाति के हीरों हैं, अमीरों से पैसा ऐठना और गरीबों खासकर अपनी जाति के लोगों की मदद करना इनका शगल है, लेकिन दुश्मनों और मुखबिरों के साथ ये ऐसा बर्बर रवैया अपनात्ो हैं कि देखने वालों के दिल दहल जाएं। पुलिस भी मानती है कि जिस जाति का व्यक्ति अपराध कर डाकू बन जाता है उसे उस विशेष जाति समुदाय के लोग अपना हीरो मानने लगत्ो हैं, उसके साथ नायक जैसा व्यवहार करत्ो हैं। यह परंपरा आज की नहीं है, जब से यहां डाकू पैदा हुए तब से चली आ रही है। यही कारण है कि मानसिंह से लेकर दयाराम गडरिया और ददुआ तक अपनी जाति के हीरो रहे। डाकुओं की पैदा करने में प्रतिष्ठा, प्रतिशोध और प्रताड़ना तो कारण हैं ही लेकिन सबसे अहम भूमिका पुलिस की होती है। चंबल के दस्यु सरगनाओं का इतिहास देखें तो डाकू मानसिंह से लेकर फूलन देवी तक सभी लोग अमीरों या रसूख वाले लोगों के शोषण के शिकार रहे हैं और इस शोषण में पुलिस और व्यवस्था ने इनकी बजाय रसूखवालों का ही साथ दिया। ऐसे में ये लोग न्याय की उम्मीद किससे करें। इसके कई उदाहरण है, जिनमें कभी चंबल में पुलिस की नाक में दम करने वाले पूर्व दस्यु सरगना मलखान सिंह भी शामिल हैं। कहा जाता है कि गांव के सरपंच ने मंदिर की जमीन पर कब्जा कर लिया और विरोध करने पर उन्होंने मलखान सिंह के खिलाफ फर्जी केस दर्ज कर जेल भिजवा दिया और फिर विरोध करने वाले मलखान सिंह के एक साथी की हत्या भी कर दी। सरपंच तब के एक मंत्री का रिश्तोदार था जिसके घर पर दरोगा और दीवान हाजिरी बजात्ो थे। ऐसे में वह किससे न्याय मागता। बंदूक उठाने के अलावा उसके पास कोई रास्ता ही नहीं था। जगजीवन परिहार को डकैत बनाने के लिए तो पुलिस ही जिम्मेदार थी। वह पुलिस का मुखबिर था, निर्भय गूजर को मारने के लिए पुलिस ने जगजीवन को हथियार मुहैया कराया और डाकू बना दिया। ऊपर से दबाव या फिर डाकू के पकड़े जाने पर भेद खुल जाने के डर से पुलिस वाले इनका इनकाउंटर कर देत्ो हैं और फिर एक दूसरा गैंग तौयार करवा देत्ो हैं। पुलिस भी मानती है कि इनकाउंटर स्पेस्लिस्ट लोगों की इसमें खास भूमिका होती है। ऐसे लोग जब एक गैंग को मार गिरात्ो हैं तो उनकी अनिरंग बंद हो जाती है। ऐसे में वे दूसरा गैंग तौयार कर देत्ो हैं।

चंबल में डकैत समस्या के पनपने के लिए कहीं न कहीं यहां की प्राकृतिक संरचना भी जिम्मेदार है। चंबल के किनारे के मिट्टी के बड़ेबड़े टीले डाकुओं की छुपने की जगह है, अगर सरकार इन्हें समतल कर लोगों में बांट दे तो इससे न केवल डाकू समस्या पर लगाम लग सकती है, बल्कि लोगों को खेती के लिए जमीन मिल जाएगी, लेकिन टीलों के समतलीकरण की योजना भ्रष्टाचार की वजह से परवान नहीं च़ पा रही है। यही कारण है कि डाकुओं के अलावा अब चंबल में नक्सली भी सक्रिय हो रहे हैं। पुलिस भी यह पता लगाने की कोशिश कर रही है कि नक्सलियों का प्रशिक्षण शिविर कहां चल रहा है। शोषण और बेरोजगारी ही दस्यु समस्या की तरह नक्सल समस्या की भी जड़ है, अगर इस समस्या से निपटना है तो गांवों में विकास की गंगा बहानी हागी। लोगों को शिक्षा के साथ ही रोजगार भी मुहैया कराना होगा, अन्यथा चंबल का दायरा घटने के बजाय पूरे देश को अपनी गिरफ्त में ले लेगा और देशभर में ऐसे बागियों की जमात पैदा हो जाएगी, जो देश के लिए किसी चुनौती से कम नहीं होगी।

1 टिप्पणी:

  1. ... yah sach hai ki iss tarah ki samasyaayen shoshan va shikaar ki parineeti hotee hain ... yadi peedit ko sahee samay par nyaay mil jaaye to iss tarah ki samasyaayen janm naheen lengee ... kintu vartmaan haalaat men aisaa prateet ho rahaa hai ki iss tarah ke kaarnaamen din-va-din badhenge hee ... prasanshameey post !!!

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