शुक्रवार, 26 नवंबर 2010

सेना सो रही है, सरकार नशे में

आदर्श सोसाइटी घोटाले के तार लखनऊ से जुड़े हैं. मुंबई और लखनऊ के इस लिंक को अगर गहराई से खंगाला जाए तो मुंबई के आदर्श सोसाइटी घोटाले से बड़ा घोटाला मध्य कमान मुख्यालय लखनऊ में खुलेगा. आदर्श घोटाला प्रकरण को गौर से देखें तो आप पाएंगे कि घोटाला करने वाले अधिकारियों का लखनऊ से मुंबई-पुणे का तारतम्य लगातार बना है. इसे बनाए रखने में रक्षा संपदा सेवा (डिफेंस इस्टेट सर्विस) के महानिदेशक बालशरण सिंह ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. अभी रिटायर होने के पहले तक वह अपनी हरकतों से बाज नहीं आए. पुणे छावनी की मुख्य कार्यकारी अधिकारी रैशेल कोशी को हटाकर उनकी जगह भेजे गए बी ए ध्यालन हों या ध्यालन को पुणे बुलाकर उनकी जगह लखनऊ में स्थापित की गई भावना सिंह हों या आदर्श सोसाइटी भूमि हस्तांतरण में चाबी की भूमिका अदा करने वाले आर सी ठाकुर हों, ये सब उसी थैली के चट्टे-बट्टे हैं, जो सेना की छवि पर बट्टा लगाते हैं.


मध्य कमान मुख्यालय लखनऊ से लेकर दक्षिण कमान मुख्यालय मुंबई-पुणे तक रक्षा संपत्ति सेवा में तैनात अधिकारी लैंड ग्रैबर्स (जमीन हड़पने वाले) का काम कर रहे हैं. आदर्श हाउसिंग सोसाइटी के अस्तित्व में आने से लेकर सोसाइटी का सदस्य बनाने तक की प्रक्रिया में जो अनियमितताएं हुईं, उनमें वही अधिकारी सक्रिय भूमिका में रहे, जो मध्य कमान मुख्यालय में रहते हुए सेना की अचल संपत्ति गिरवी रख चुके हैं. आदर्श सोसाइटी में बाहरी लोगों को सदस्यता देने पर बवाल मचा हुआ है, लेकिन मध्य कमान मुख्यालय का सैन्य क्षेत्र नेताओं, दलालों और संदेहास्पद किस्म के बाहरी लोगों को दे दिए जाने के बावजूद हर तऱफ चुप्पी सधी है. सेना के क्षेत्र में मॉल बन चुके हैं और असैनिक इमारतें बन रही हैं. यहां तक कि सैन्य क्षेत्र की प्लॉटिंग कर उसे आम लोगों के हाथों बेचा जा रहा है. सैन्य क्षेत्र की एक विवादास्पद कोठी को मुख्यमंत्री मायावती के जन्मदिन पर गिफ्ट देने की तैयारियां चल रही हैं. जबकि प्रदेश की सत्ता संभालते ही मुख्यमंत्री ने सैन्य क्षेत्र की एक अन्य आलीशान कोठी पहले ही कब्जे में ले ली थी. बहरहाल, मध्य कमान की सैन्य संपत्ति का कबाड़ा करने की वीभत्स तस्वीर देखने से पहले हम यह देखें कि सेना मुख्यालय में डिफेंस इस्टेट सर्विस के डीजी बालशरण सिंह ने लखनऊ छावनी के सीईओ बी ए ध्यालन को पुणे पदस्थापित करने के लिए किस तरह सैन्य आदर्शों की ऐसी-तैसी कर दी. दरअसल सैन्य आदर्शों की फज़ीहत इसलिए की गई कि उलट-पुलट में माहिर ध्यालन के पुणे पहुंचने से आदर्श घोटाले में फजीहत होने से उन्हें निजात मिलने की उम्मीद थी. इंडियन डिफेंस इस्टेट सर्विस के अफसर बी ए ध्यालन ने पिछले महीने ही पुणे छावनी परिषद के सीईओ का पदभार ग्रहण किया.

ध्यालन को इस पद पर जबरन आसीन कराया गया. यह भी कह सकते हैं कि पुणे छावनी परिषद की सीईओ रैशेल कोशी को जबरन हटाया गया. महानिदेशक को इसकी भनक मिल चुकी थी कि आदर्श हाउसिंग सोसाइटी का मायाजाल बिखरने वाला है, लिहाज़ा ध्यालन को पुणे लाना ज़रूरी है. रैशेल कोशी अपनी ईमानदार छवि के लिए जानी जाती हैं. कोशी के रहते हुए इस मामले में बचाव का कोई रास्ता नहीं मिलता. महानिदेशक बालशरण सिंह ने पांच अक्टूबर को रैशेल कोशी को हटाने और ध्यालन को लाने का आदेश जारी किया, जबकि कोशी का छह महीने का टेन्योर बाकी था. महानिदेशक को 31 अक्टूबर को रिटायर हो जाना था, लेकिन उन्हें रैशेल कोशी के वहां रहते हुए घोटाले में फंसने का अंदेशा सता रहा था, लिहाज़ा रिटायर होने के तीन दिन पहले उन्होंने ध्यालन को पुणे छावनी परिषद के सीईओ पद पर बैठाकर ही दम लिया. ध्यालन को मुंबई सर्किल में वर्ष 2007 में बेहतरीन सेवा के लिए सेना की तरफ से प्रशस्ति पत्र दिया जा चुका है. उसी काल में कोलाबा का आदर्श सोसाइटी घोटाला भी परिपक्व हो रहा था. ध्यालन पर घोटाले और अनियमितताओं के जो मामले चल रहे थे, उन्हें दरकिनार कर रक्षा संपदा सेवा शाखा उनका प्रशस्ति गान करती रही. ध्यालन को बेहतरीन सेवा के लिए प्रशंसा तब मिली, जब उन पर चंडीगढ़ के कार्यकाल के दरम्यान पंचायतों के सर्विस चार्ज में अनियमितता करने का मामला सामने आया. वित्तीय अनियमितता के गंभीर आरोपों की चार्जशीट इसी साल खारिज हुई और इसी साल आदर्श घोटाला भी उजागर हुआ. आरोप खारिज करने के पीछे तर्क यह दिया गया कि संबंधित राशि 30 लाख रुपये से कम है. ध्यालन के ख़िला़फ ऐसे कई मामले चल रहे हैं. एक स्टिंग ऑपरेशन में रंगे हाथों पकड़े जाने के बाद ध्यालन काफी कुख्यात हुए. दक्षिणी कमान के किरकी सैन्य क्षेत्र में भी अनियमितताएं करने के कारण उनका काफी नाम है. आपका ध्यान दिलाते चलें कि ध्यालन के रहते हुए पुणे में सेना की जमीन पर मा़फियाओं का क़ब्ज़ा हुआ है और रक्षा संपत्ति सेवा के तीन अधिकारियों के ख़िला़फ सीबीआई की जांच भी चल रही है.

आप स्थिति की गंभीरता इस बात से ही समझ सकते हैं कि ध्यालन को पुणे छावनी परिषद के सीईओ पद पर लाने के खिलाफ दक्षिणी कमान के जनरल अफसर कमांडिंग इन चीफ (जीओसी इन सी) लेफ्टिनेंट जनरल प्रदीप खन्ना ने थलसेना अध्यक्ष जनरल वी के सिंह को पत्र लिखा और सख्त आपत्ति दर्ज कराई. किसी कमान के सेना कमांडर आम तौर पर रक्षा संपत्ति सेवा के प्रशासनिक मामलों में तब तक दखल नहीं देते, जब तक कोई अत्यंत गंभीर मामला न हो. लेफ्टिनेंट जनरल खन्ना ने सेनाध्यक्ष को लिखे पत्र में कहा है कि पुणे कैंटोंमेंट जैसे सबसे संपन्न छावनी क्षेत्र में संदेहास्पद चरित्र के व्यक्ति की इस तरह पोस्टिंग ग़लत इरादों से की गई. कोशी को हटाया जाना शीर्ष अधिकारी द्वारा अपने पद का बेजा इस्तेमाल है. पुणे छावनी के सीईओ को डिफेंस इस्टेट सर्विस का वरिष्ठतम अधिकारी माना जाता है, जो रियल इस्टेट के मामले निबटाने के लिए अधिकृत होता है. उल्लेखनीय है कि सेना के पास सात हज़ार वर्ग किलोमीटर से अधिक ज़मीन है. सेना के तीनों अंगों के पास कुल मिलाकर 17.3 लाख एकड़ ज़मीन है. कुल 17.3 लाख एकड़ भूमि में से 13.79 लाख एकड़ ज़मीन अकेले थलसेना के पास है. वायुसेना के पास महज़ 1.51 लाख एकड़ और नौसेना के पास 0.37 लाख एकड़ ज़मीन है. देश के 19 राज्यों की 62 छावनियों में ही दो लाख एकड़ ज़मीन है. इस ज़मीन के इस्तेमाल का अधिकार भी सेना के पास ही है, जिसका बेजा इस्तेमाल कर सुकना या आदर्श जैसे घोटाले किए जाते हैं. दिल्ली में प्रधानमंत्री आवास के निकट वायुसेना के संतुष्टि शॉपिंग कॉम्प्लेक्स को लेकर जो अनियमितताएं की गईं, उन्हें महालेखाकार ने भी रेखांकित किया. यह घोटाला एयरफोर्स वाइव्स वेलफेयर एसोसिएशन ने किया था.

आदर्श घोटाले को अंजाम देने वालों ने लखनऊ में रहते हुए मध्य कमान की अचल संपत्ति का क्या कबाड़ा किया, उसकी बानगी देखिए. जब देश आज़ाद हुआ था, उस समय मध्य कमान मुख्यालय लखनऊ के पास 13 कैंपिंग ग्राउंड थे. आज लखनऊ मुख्यालय के पास केवल सात कैंपिंग ग्राउंड रह गए. बाक़ी के छह कैंपिंग ग्राउंड कहां गए, इसका जवाब सेना के पास नहीं है. आधिकारिक तौर पर पूछें तो संवेदनशील सैन्य मसला बताता हुआ रटा-रटाया इंकार वाला जवाब मिलता है. लेकिन सेना के इस इंकार से ज़मीन का सत्य नहीं छिपने वाला. मध्य कमान मुख्यालय के छावनी क्षेत्र में उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती, बसपा नेता डॉ. अखिलेश दास, कांग्रेस नेता प्रमोद तिवारी (उनके समधी के नाम पर), सत्ता के खास नौकरशाह प्रदीप शुक्ला एवं उनकी पत्नी आराधना शुक्ला, समाजवादी पार्टी के नेता एवं विधायक रघुराज प्रताप सिंह, बसपा नेता एवं व्यापारी सुधीर हलवासिया समेत कई अन्य नेताओं, नौकरशाहों और दलालों को कैंट की बड़ी-बड़ी कोठियां और कोठियों के साथ ज़मीन के भव्य हिस्से कैसे मिले? सेना के किस क़ानून के तहत बाहरी लोगों को सैन्य क्षेत्र की ये कोठियां हासिल हुईं? इसका जवाब किसी के पास नहीं है. मुख्यमंत्री मायावती को कैंट में मिले घर को आलीशान बनाने के लिए सैन्य क्षेत्र के क़ानूनी प्रावधानों को ताक पर रखकर हरे पेड़ काटने और पत्थर लगवाने की इजाज़त क्यों और किसने दी? डिफेंस इस्टेट महकमा इस पर मौन है, लेकिन इसके पीछे किस तरह की डीलिंग हुई और सैन्य इलाक़े में नए-नए वाशिंदे कैसे आ गए, इसकी वजहें लोग जानते हैं.

अब तो प्रदेश सरकार के एक ताक़तवर मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी भी सैन्य क्षेत्र की एक विवादास्पद कोठी पर क़ब्ज़ा जमा चुके हैं और उसे 15 जनवरी को मुख्यमंत्री के जन्मदिन पर गिफ्ट करने की तैयारियां कर रहे हैं. कैंट इलाक़े के 12 थिमैया रोड स्थित इस कोठी की कहानी भी कम रोचक-रोमांचक नहीं है. मध्य कमान के जीओसी इन सी रहते हुए लेफ्टिनेंट जनरल डी एस चौहान ने 2002-2003 में सेना के बूते इस कोठी पर ज़बरन क़ब्ज़ा जमा लिया था. सैन्य इतिहास में पहली बार किसी जीओसी इन सी की पत्नी श्रीमती मीरा चौहान, ब्रिगेड कमांडर संजीव मदान, ब्रिगेडियर ए के श्रीवास्तव समेत कई अन्य सैनिकों पर डकैती, दूसरे के मकान पर ज़बरन क़ब्ज़ा, आपराधिक घुसपैठ और साठगांठ का लखनऊ में मुक़दमा दर्ज हुआ था. लेफ्टिनेंट जनरल डी एस चौहान रास्ते से हट गए और रिटायर भी हो गए. उसी विवादास्पद कोठी को औने-पौने भाव में ख़रीद कर नसीमुद्दीन सिद्दीकी उसमें फिट होने की गुपचुप जुगत में लगे हुए हैं. क़ानून को ठेंगे पर रखकर चलने वाले इन नेताओं को यह भी पता है कि 12 थिमैया रोड स्थित उस कोठी का मालिकाना हक चौतऱफा विवाद के घेरे में है. बहरहाल, लखनऊ मुख्यालय के अतिरिक्त भी आप जहां कहीं देखें, सेना की ज़मीन पर अवैध क़ब्ज़ा है. कानपुर, गोरखपुर, मेरठ, वाराणसी, फैजाबाद, इलाहाबाद सब तऱफ सेना की ज़मीनों पर नेता, मा़फिया, दलाल या पूंजीपति काबिज हैं. सेना की ज़मीन पर बिल्डिंग्स, शॉपिंग कॉम्प्लेक्स वग़ैरह ताल ठोके खड़े हैं तो सेना के अंदरूनी क्षेत्र में कोठियों की लूट मची है. लखनऊ में सेना के पास ट्रांस गोमती राइफल रेंज में 195 एकड़, अमौसी सेना क्षेत्र में 185 एकड़, कुकरैल राइफल रेंज में सौ एकड़, बख्शी का तालाब में 40 एकड़ और मोहनलालगंज क्षेत्र में 22 एकड़ ज़मीन है, लेकिन यह आंकड़ा केवल सेना के दस्तावेजों तक ही सीमित है. ज़मीनी असलियत भयावह है. इनमें से अधिकांश ज़मीनों पर अवैध क़ब्ज़ा है. सेना कहती है कि क़ब्ज़ा है, जबकि असलियत यह है कि इसके पीछे सेना एवं रक्षा संपदा सेवा के अधिकारियों का भ्रष्टाचार है. लखनऊ में सुल्तानपुर रोड पर सेना की फायरिंग रेंज के बड़े हिस्से की प्लॉटिंग हो गई और ज़मीनें बिक भी गईं. आवास विकास परिषद ने गोसाईंगंज थाने में प्रॉपर्टी डीलरों के ख़िला़फ 30 जुलाई 2010 को मुक़दमा भी दर्ज कराया, लेकिन दुस्साहस यह है कि ज़मीन से आवास विकास परिषद के उस बोर्ड को उखाड़ फेंका गया, जिस पर लिखा था कि यह सेना की फायरिंग रेंज की ज़मीन है. सेना के दस्तावेज बताते हैं कि लखनऊ में ट्रांस गोमती राइफल रेंज की 90 एकड़ ज़मीन और अमौसी में पांच एकड़ ज़मीन पर भूमा़फियाओं का क़ब्ज़ा है. कुकरैल में तो सेना की 23 एकड़ ज़मीन पर बाकायदा बड़ी इमारतें और दुकानें बन चुकी हैं. छावनी से बाहर सेना की क़रीब छह सौ एकड़ ज़मीन प्रदेश सरकार से विवाद में फंसी हुई है. कहीं पर आवास विकास परिषद से लफड़ा है तो कहीं सीधे सरकार से क़ानूनी भिड़ंत चल रही है. कानपुर में सेना की ज़मीन पर अलग-अलग इलाक़ों में छह बस्तियां बसी हुई हैं. कानपुर शहर के वार्ड नंबर एक में भज्जीपुरवा, लालकुर्ती, गोलाघाट, पचई का पुरवा जैसी कई बस्तियां बसी हैं. बंगला नंबर 16 और बंगला नंबर 17 की ओर जाने वाले दो इलाक़ों में पिछले साठ सालों से अवैध बस्तियां बसी हुई हैं, लेकिन उन्हें हटाने की किसी को फुर्सत नहीं है. इन बस्तियों में पक्के मकान तक बन चुके हैं. पक्की सड़कें हैं, बिजली कनेक्शन है और बाकायदा राशनकार्ड है. कानपुर छावनी क्षेत्र में बना आलीशान स्टेटस क्लब सैन्य संपत्ति की अनियमितताओं का क्रूर गवाह है. स्टेटस क्लब का स्टेटस आज एक भव्य होटल की तरह है. दो दर्जन से अधिक पंच सितारा सुविधाओं वाले कमरे, विशाल वातानुकूलित हॉल और क्लब के मालिक विकास मल्होत्रा की इससे हो रही अंधाधुंध कमाई किसके बूते पर हो रही है? सैन्य क्षेत्र में यह क्लब कैसे अस्तित्व में आया और इसकी एवज में किसने क्या-क्या पाया, इसका जवाब सामने आना तो अभी बाकी है. गोरखपुर में गगहा बाज़ार स्थित सेना के कैंपिंग ग्राउंड की 33 एकड़ ज़मीन में से क़रीब दस एकड़ ज़मीन पर क़ब्ज़ा हो चुका है. गोरखपुर के ही सहजनवा, महराजगंज ज़िले के पास रनियापुर और नौतनवां में सेना की ज़मीनों पर अवैध क़ब्ज़े हैं.

इलाहाबाद शहर में सेना के परेड ग्राउंड की क़रीब 50 एकड़ ज़मीन क़ब्ज़े में है. यहां अवैध बस्तियां आबाद हैं. 32 चैथम लाइंस, 6 चैथम लाइंस और न्यू कैंट में भी सेना की ज़मीन पर अवैध क़ब्ज़े हैं. मेरठ छावनी क्षेत्र तो मॉल, शॉपिंग कॉम्प्लेक्स एवं सिविल कॉलोनी में तब्दील हो चुका है. केंद्र सरकार ने यह फैसला किया है कि आदर्श सोसाइटी घोटाला प्रकरण की सीबीआई से जांच कराई जाएगी. सीबीआई तमाम कोणों से मामले की जांच करेगी. इस बात की भी जांच होगी कि सेना की ज़मीन सोसाइटी को कैसे मिल गई और फिर इसमें लखनऊ कनेक्शन उजागर होगा. रक्षा संपत्ति महकमे में कोलाबा डिवीज़न में काम करने वाले अधिकारी आर सी ठाकुर की आदर्श मामले में सक्रिय-संदेहास्पद भूमिका से पर्दा हटेगा और तब लोगों को यह भी पता चलेगा कि लखनऊ छावनी में तीसरे दर्जे के मामूली कर्मचारी की अप्रत्याशित विकास यात्रा कैसे और किन-किन रास्तों से पूरी हुई. तब यह भी पता चलेगा कि लखनऊ छावनी की मौजूदा सीईओ भावना सिंह पुणे से लखनऊ कैसे आईं, कानपुर में स्टेटस क्लब कैसे बना, किन अधिकारियों के कार्यकाल में बना, इलाहाबाद छावनी में विवादास्पद भर्तियां कैसे हुईं, बरेली इंजीनियरिंग कॉलेज से किस अधिकारी के क्या संबंध हैं, सेना के इलाक़े में कुकुरमुत्ते की तरह नेता-दलाल कैसे आबाद हुए, विजिलेंस एवं अन्य एजेंसियों में जो दर्जनों जांचें साजिशी कोशिशों से रुकी पड़ी हैं, उनका क्या हुआ… वग़ैरह-वग़ैरह…

आदर्श घोटाले पर कौन रहा है मौन?
मध्य कमान मुख्यालय में सैन्य संपत्ति की किस तरह लूट मची है, उसकी छोटी, लेकिन भयावह तस्वीर दिखाई है चौथी दुनिया ने. इस पर भी रक्षा मंत्री बोलेंगे कि उन्हें मध्य कमान में चल रहे घोटालों के बारे में कुछ नहीं पता. आपको यह भी बता दें कि रक्षा मंत्री ए के एंटनी को दो महीने पहले ही आदर्श सोसाइटी को लेकर हुए घोटाले की जानकारी दे दी गई थी, लेकिन घोटाला सार्वजनिक तौर पर उजागर होने के बावजूद रक्षा मंत्रालय यही कहता रहा कि उसे इस मामले की कोई भनक नहीं थी. दरअसल मुंबई के आरटीआई एक्टिविस्ट योगाचार्य आनंद जी ने दो महीने पहले ही रक्षा मंत्री को पत्र लिखकर आदर्श सोसाइटी घोटाले की जानकारी दे दी थी और उनसे कुछ ज़रूरी जानकारियां भी मांगी थीं. योगाचार्य को रक्षा मंत्री ने कोई जानकारी तो नहीं दी, बल्कि उल्टा चुप्पी ही साध गए. आदर्श घोटाला योगाचार्य आनंद जी के कारण उजागर हुआ. मीडिया ने उनसे ही सारी सूचनाएं लीं, पर उन्हें ही हाईलाइट नहीं किया. सब अपने-अपने स्वार्थों में लगे रहे. आनंद जी सूचना के अधिकार के ज़रिए जुहू के आईपीएस अफसर हाउसिंग सोसाइटी घोटाले का पता कर रहे थे. उसी दरम्यान एक अधिकारी ने आदर्श घोटाले के बारे में उन्हें भनक दे दी. बस फिर क्या था, योगाचार्य आदर्श के पीछे पड़ गए. सूचना के अधिकार के तहत दस्तावेज हासिल करने में उन्हें एड़ी-चोटी का जोर लगाना पड़ा और महीनों जद्दोजहद करने के बाद उन्हें कामयाबी हासिल हुई. मीडिया ने उनसे सूचनाएं लेकर मामला तो उजागर किया, लेकिन योगाचार्य को हाशिए पर रख दिया. बहरहाल, आदर्श सोसाइटी घोटाले का लब्बोलुबाव यह है कि करगिल युद्ध के शहीदों के परिवार और उनकी विधवाओं के पुनर्वास के बहाने खड़ी की गई आदर्श सोसाइटी घोटाले का केंद्र बन गई. कोलाबा की यह ज़मीन सेना ने शांताक्रूज़ राइफल रेंज की ज़मीन के बदले में ली थी. राइफल रेंज की ज़मीन 1950 में ही वेस्टर्न एक्सप्रेस हाइवे बनाने के लिए दे दी गई थी. उसके बदले सेना को कोलाबा की ज़मीन हासिल हुई थी. आदर्श सोसाइटी के चीफ प्रमोटर आर सी ठाकुर और रक्षा संपदा सेवा के अधिकारियों ने इसके जरिए घोटाले का रास्ता खोलने में सक्रिय भूमिका अदा की और जिस क्षेत्र से भी विरोध खड़ा हो सकता था, उसके अलमबरदारों को सोसाइटी का सदस्य बनाकर मुंह बंद कर दिया गया. ऐसे मुंह बंद सैन्य अधिकारियों, नौकरशाहों, नेताओं एवं दलालों की सूची देखने में लंबी जरूर है, लेकिन आदर्श अपार्टमेंट की 31 मंजिली ऊंचाई से कम है. महाराष्ट्र सरकार की अधिसूचना और महाराष्ट्र को-ऑपरेटिव सोसाइटी एक्ट-1960 के मुताबिक, जिन लोगों की डोमिसाइल न बदली हो, उन्हें सोसाइटी का सदस्य नहीं बनाया जा सकता. यानी मुंबई में कम से कम 15 साल की लगातार रिहाइश. लेकिन इस नियम की खूब धज्जियां उड़ाई गईं और बाहरी लोगों को फ्लैट एलॉट किए गए. पूर्व थल सेनाध्यक्ष जनरल एन सी विज और जनरल दीपक कपूर ऐसे ही लोगों में शामिल हैं. विज और कपूर दोनों ने महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख को पत्र लिखकर आदर्श सोसाइटी में सदस्य बनाए जाने का आग्रह किया. विज का पत्र 18 जून 2008 को लिखा गया और कपूर का पत्र 19 जून 2008 को. जनरल कपूर ने तो अपने ऑफिशियल लेटरहेड (नंबर- 17622/डीके/डीओ) का इस्तेमाल करने से भी परहेज नहीं किया. जनरल विज ने भी नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी के ऑफिशियल लेटरहेड पर अपना पत्र (नंबर-13710/एनसीवी/डीओ) लिखा. इन दोनों पत्रों को पहले तो खारिज कर दिया गया, लेकिन 17 दिसंबर 2008 को दोबारा आग्रह पत्र भेजा गया. और इस बार स्पेशल केस मानते हुए इजाज़त मिल गई. ऐसा ही कई अन्य सेनाधिकारियों, नेताओं, उनके रिश्तेदारों, नौकरशाहों और दलालों के लिए हुआ. सोसाइटी में घर पाने के लिए सब एक ही लाइन में खड़े हो गए.

जनरल कपूर का दागदार इतिहास और लखनऊ
आदर्श हाउसिंग सोसाइटी में अपने लिए फ्लैट बुक कराने वाले पूर्व थलसेना अध्यक्ष जनरल दीपक कपूर जब वर्ष 2005 में नॉर्दर्न कमांड में जीओसी इन सी थे तो सेना के अंडे, कपड़े एवं अनाज वगैरह बेचकर खा गए थे. उनके बाद जीओसी इन सी बने लेफ्टिनेंट जनरल एच एस पनाग ने कपूर के घोटाले की जांच शुरू की तो उनका तबादला लखनऊ कर दिया गया. घोटालेबाज़ों का यह लखनऊ प्रेम महज संयोग नहीं है. किसी ईमानदार अधिकारी को शंट करना हो तो उसे लखनऊ भेज दिया जाता है और किसी भ्रष्ट अधिकारी को तरक्की देकर लखनऊ से प्राइम पोस्टिंग पर भेज दिया जाता है. लेफ्टिनेंट जनरल पनाग को सेनाध्यक्ष बनने से रोक दिया गया और ध्यालन को प्रशस्ति पत्र दे दिया गया. जूनियर कमीशंड अफसर की बेटी से बलात्कार करने वाले अधिकारी मेजर रैना को जेल से छुड़ाकर उसे न केवल सेना में बहाल कर दिया जाता है, बल्कि तरक्की देकर उसे बाहर पोस्टिंग दे दी जाती है. सेना में भर्ती के लिए आए 55 बच्चों के सीवर में डूबकर मरने के बावजूद प्रभारी मेजर को कुछ नहीं होता, क्योंकि उसका पिता आतंकियों को हथियार सप्लाई करने के मामले में आरोपी होता है.

कहां लापता हो गया शहीद स्‍थल
यह जो आप कॉलोनी की तस्वीर देख रहे हैं, यह सेना की ज़मीन थी और इस पर शहीद स्थल बना था. शहीद सैनिकों की स्मृति में यहां स्तंभ बन चुका था, शिलालेख वगैरह भी लग गए थे, सौंदर्यीकरण का कुछ काम बाक़ी था, लेकिन अचानक काम थम गया. लोग यहां शहीदों को श्रद्धांजलि देने की बाट ही जोहते रह गए. अचानक एक दिन शहीद स्तंभ ध्वस्त कर दिया गया. शिलालेख वग़ैरह ग़ायब कर दिए गए और सेना की इस ज़मीन पर कॉलोनी शक्ल लेने लगी. फिर कुछ दिनों के बाद गेट पर गोमती इन्क्लेव का बोर्ड भी लग गया, फ्लैट्स भी बन गए और लोगों को एलॉट भी हो गए. यह आदर्श घोटाले जैसा घोटाला है कि नहीं?

भावना के पर कतरे, डीजी का लखनऊ दौरा स्थगित
आदर्श घोटाले की सीबीआई जांच की सरगर्मी यह है कि रक्षा संपदा महकमे के नए महानिदेशक अशोक हरनाल ने सबसे पहले मध्य कमान मुख्यालय लखनऊ की छावनी परिषद की सीईओ भावना सिंह के पर कतर डाले. महानिदेशक की इस कार्रवाई से ही आदर्श घोटाले का मुंबई टू लखनऊ लिंक जाहिर हो गया. भावना सिंह को हालांकि लखनऊ में रक्षा संपदा का उप निदेशक बनाया गया है, लेकिन सीईओ और उप निदेशक के अधिकार में जो फर्क है, उसे सेना के अधिकारी से लेकर आम कर्मचारी तक जानते हैं. विशेष ध्यान देने की बात यह है कि रक्षा संपदा के महानिदेशक अशोक हरनाल लखनऊ आने का कार्यक्रम भी बना चुके थे, लेकिन अचानक उन्होंने भावना सिंह को सीईओ के पद से हटाकर लखनऊ दौरे का अपना कार्यक्रम भी स्थगित कर दिया.

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