गुरुवार, 30 सितंबर 2010

माखनलाल हंगामों की पौधशाला

माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय इन दिनों पत्रकारिता की जगह हंगामों की पौधशाला बनकर रह गया है। कुलपति बीके कुठियाला के आने के बाद से ही माखनलाल में हंगामों की भेंट सा चढ़ गया है। शह-मात के खेल में जहां अध्यापक जुटे हुए हैं वहीं अपने-अपने गुरुओं को गुरु दक्षिणा के रूप में छात्र उनके समर्थन में कभी हंगामा तो कभी भूख हड़ताल कर रहे है।
हालांकि विश्वविद्यालय चर्चा और विवादों में तो यह शुरु से ही रहा है। आज कुछ लोगों की व्यक्तिगत आशा, अपेक्षा और महत्वाकांक्षा के कारण यह विश्वविद्यालय कुछ अधिक चर्चा में है। पूर्व कुलपति अच्युतानंद मिश्र के कार्यकाल पूरा होने और नए कुलपति के लिए नामों की चर्चा ने विश्वविद्यालय को और अधिक चर्चित किया। वर्तमान में विश्वविद्यालय का विवाद अपने चरम पर है। ताजा विवाद रीडर के पद पर कार्यरत पुष्पेन्द्रपाल सिंह को पत्रकारिता विभाग के विभागाध्यक्ष पद से हटाने को लेकर है। उल्लेखनीय है कि पीपी सिंह एक आरोप की जांच के मद्देनजर तात्कालिक तौर पर विभागाध्यक्ष की कुर्सी से हटाया गया था। पत्रकारिता विभाग की एक संविदा शिक्षिका श्रीमती ज्योति वर्मा की शिकायत और महिला आयोग की नोटिस के कारण उन्हें यह कदम उठाना पड़ा है। यह सब निष्पक्ष जांच के लिए जरूरी है। शिकायतकर्ता के अनुसार मांगे जाने पर पीपी सिंह अपने ही खिलाफ दस्तावेज कैसे उपलब्ध करायेंगे। इसलिए जांच होने तक किसी अन्य को विभागाध्यक्ष का दायित्व देना लाजिमी है, लेकिन बाद में उसी महिला ने कुलपति डॉ. बीके कुठियाला और रजिस्ट्रार डॉ. एसके त्रिवेदी पर भी आरोप मढ़ डाले। हालांकि महिला आयोग के हस्तक्षेप के बाद पीपी सिंह को पुन: पदस्थ कर दिया गया है।
दरअसल विवाद का कारण जो बताया जा रहा है वह नहीं, उसके बजाए कुछ और है। दरअसल कुठियाला ने आते ही हिदायत दी कि अध्यापन और शिक्षण का काम करना है तो अपने को अपडेट रखो। कम्प्यूटर सीखो, इंटनेट का इस्तेमाल करो। खुद भी स्वाध्याय करो, छात्रों को भी प्रेरित करो। उन्होंने मंशा जाहिर की इस राष्ट्रीय विश्वविद्यालय को सही में राष्ट्रीय दर्जा दिलाना है। यूजीसी की मान्यता और अनुदान प्राप्त करना है। जरूरत पड़े तो राष्ट्रीय स्तर के ख्याति प्राप्त प्रोफेसर और विशेषज्ञों की सेवाएं प्राप्त की जाए। यह बात वर्षों से एकाधिकार और वर्चस्व स्थापित किए कुछ लोगों को यह सब नागवार गुजरा। अपनी दुकान और एकाधिकार की सत्ता पर खतरा देख कुछ स्वनामधन्य गुरु उठ खडे हुए। 'विश्वविद्यालय खतरे मेंÓ का नारा बुलंद कर दिया गया। कुठियाला के खिलाफ जेहाद छेड़ दिया गया। शुरू से ही विवादों को कई दिशाओं में फैला दिया गया। ताकि कोई भी विवादों की तह तक नहीं जा सके। गौर करें, प्रो. कुठियाला के आने के नाम से ही उनका विरोध शुरु हो गया। उनके विरोध में तरह-तरह की दलीलें पेश की गई। मसलन- कुठियाला संघी हैं, उन्हें पत्रकारिता का कोई अनुभव नहीं है, वे बाहरी हैं। कुलपति बनने की फिराक में लगे कुछ लोगों ने विवि के लिए अपनी मर्जी से योग्यताएं और अनुभव तय करना शुरू कर दिया। कोई कहने लगा मध्यप्रदेश का या भोपाल का कुलपति चाहिए। कोई कहने लगा पत्रकारिता विश्वविद्यालय का कुलपति कोई पत्रकार होना चाहिए। किसी ने नहीं पूछा कि सुमित बोस, शरदचन्द्र बेहार, अरविन्द जोशी और भागीरथ प्रसाद कहां से पत्रकारिता का अनुभव लेकर आए थे। पूर्व कुलपति अच्युतानंद मिश्र भी पीएचडी नहीं थे, लेकिन कइयों को उन्होंने उपाधि प्रदान की। राज्य शासन द्वारा गठित एक समिति ने जब प्रो. कुठियाला का नाम कुलपति के लिए तय कर दिया तो विरोध करने वाले देखते रह गए। बाद में इन्हीं विरोधियों ने सुनियोजित रूप से मीडिया का दुरुपयोग कर कुठियाला का चरित्र हनन करने का प्रयास भी किया। एक संघी की चरित्र हत्या करने के लिए कांग्रेसी, कम्युनिस्ट और समाजवादी सब भाई-भाई हो गए। माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में जारी संघर्ष अब काफी आगे निकल चुका है।
विश्वविद्यालय छात्रों-शिक्षकों व कर्मचारियों के बीच से निकल कर संघर्ष का सिलसिला मीडिया, एनएसयूआई, पत्रकार संगठन, और वामपंथी नेताओं के बीच पहुच गया है। पहले संघ और भाजपा इसे विश्वविद्यालय का मामला समझ कर हल्के में ले रहा था। लेकिन ताजा घटनाक्रम जिसमें श्रमजीवी पत्रकार संघ के शलभ भदौरिया और लज्जाशंकर हरदेनिया ने पीपी सिंह को समर्थन देने की घोषणा की है भाजपा और संरकार के कान खड़े कर दिए हैं। मामले से दूरी बनाकर चल रहे संघ ने भी इसे गंभीरता से लिया है। पीपी सिंह समझौता और संघर्ष की दोतरफा रणनीति अपना रहे हैं। कुलपति कुठियाला भी सधे अंदाज में अपनी चालें चल रहे हैं। अब चुनौती कुठियाला के अस्तित्व को है। पीपी सिंह के साथ उनके कुछ छात्र तो हैं ही। मीडिया में उनके कुछ जातीय और क्षेत्रीय मित्र भी हैं। राजनीति के संघ और भाजपा विरोधी खिलाड़ी भी उनकी मदद के लिए आगे आ खड़े हुए हैं।

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