बुधवार, 1 सितंबर 2010

कोख का बेखौफ सौदा

आधुनिक जीवनशैली,महंगे शौक ,धन और सैर-सपाटे की चाह में भारत के लड़़के शुक्राणु और लड़कियां अंडाणु बेचने में जरा भी हिचक नहीं कर रहे तो कुछ लड़कियां ऐसी भी हैं जो पैसे के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं। वहीं इस आधुनिक भारत में एक ऐसा भी वर्ग है जो अनछुई युवतियों से ही शादी करने की चाह रखता है भले ही उसका चरित्र कितना ही कलंकित क्यों न हो।
हमारे देश पहले में बिन व्याही मॉं बनना समाज के लिए कलंक की बात थी आज भी है लेकिन अब चंद रुपयों की खातिर लड़कियां घर से महीनों दूर रहकर कोख किराए पर देने जैसा जोखिम भरा काम कर रही हैं। विज्ञान में इन्हें सरोगेट मदर कहा जाता है। एक इस काम के लिए इश्तहार देता है और दूसरा तत्काल तैयार हो जाता है। सुनने में यह बात अविश्वनीय लगे लेकिन मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से लेकर दिल्ली तक व्यवसाय धड़ल्ले से चल निकला है। टेस्ट ट्यूब बेबी सेंटर की सुख सुविधाएं भी कुवांरियों को मॉं बनने के लिए आकर्षित कर रही हैं। सरोगेसी के मामले में राजधानी मेट्रोसिटी की तरह बढ रहा है। आलम यह है कि यहां यूपी, बिहार, महाराष्ट्र और आंध्रप्रदेश तक से दंपत्ती सरोगेट मदर की तलाश में आ रहे हैं।
चौंकाने वाली बात यह है कि इन परिवारों को सामने अविवाहित लड़कियां भी बड़ी संख्या में आ रही हैं, जो पैसों की खातिर बिन व्याहे मॉं बनने को भी तैयार हैं। अपना पूरा भविष्य दांव पर लगाने तैयार कुछ ऐसी ही कुछ लड़कियों से जब सेंटर स्टाफर बनकर बातचीत की गई तो कई बातें बड़ी बेबाकी से सामने रखीं। उनका सीधा कहना है कि भविष्य की कोई गारंटी नहीं है। आज हमें कुछ महीनों में ही दो लाख रुपए तक मिल रहे हैं, वो भी बगैर कोई गलत कदम उठाए तो फिर इसमें हर्ज क्या है। राजधानी में बीई की पढ़ाई कर रही इंदौर की शिल्पा (परिवर्तित नाम) कहती है कि पापाजी की डेथ हो चुकी है। मॉं भी मानसिक रूप से अस्वस्थ हैं। दो भाई हैं जिन्हें मुझसे कोई सरोकार नहीं है। पढ़ाई के लिए तो पापा ने भेजा था। हमने एज्यूकेशन लोन लिया था। पापा मेरे नाम कुछ फिक्स डिवाजिट भी किए थे। दो साल पहले पापा की डेथ हो गई, तब से मैं सारे फैसले खुद ही ले रही हूं। अपने भविष्य को लेकर ही मैं फ्लैट लेना चाहती हूं। लिहाज उसने सरोगेट मदर बनकर फ्लैट के लिए रुपए जुटाने का फैसला किया है। बैतूल की तान्या (परिवर्तित नाम) भोपल में रिसेप्शनिस्ट है। वह चाहती है उसकी खुद की कार हो, लेकिन परिवारिक परिस्थितियां और सेलरी से यह सपना पूरा नहीं हो सकता। तान्या ने कार लेने के लिए अब सरोगेट मदर बनने का रास्ता चुना है। मिसरौद की विभा (परिवर्तित नाम) की बचपन में शादी हो गई। गौने से 3 महीने पहले ही पति ने दूसरी शादी कर ली। अब वह आत्मनिर्भर होना चाहती है, लेकिन इसमें गरीबी आड़े आ रही है। विभा ने इसके लिए सरोगेट मदर बनने का रास्ता चुना।
रायसेन की भूमि (परिवर्तित नाम) के माता-पिता की मृत्यु हो गई। अब वह गोविन्दरपुरा के एक ऑफिस में रिशेपनिस्ट है। उसे प्यार में धोखा मिला अब भूमि ने आत्मनिर्भर होने के लिए सरोगेट मदर बनने का निर्णय लिया है। जब उससे यह पूछा गया कि क्या उसे ऐसा करने में समाज से डर नहीं लगता है तो उसने कहा कि जब मुझे भूख लगती है तो कोई पुछने नहीं आता ऐसे में डरे किससे। क्या उस समाज से डरूं जिसके डर से इन दिनों कई लड़कियां सर्जरी की मदद से कौमार्य हासिल कर रही हैं। यहां तक कि कुछ तो डॉक्टर से वर्जिनिटी सर्टिफिकेट भी मांगती हैं। शादी के वक्त लड़की का गोरा रंग, दुबला शरीर और ऊंचा कद तो मायने रखता ही है, पर हमारे समाज में सबसे ज्यादा जरूरी है उसका अनछुई होना। शादी की रात ही यह जान कर कि दुलहन वर्जिन नहीं है, अपनी पत्नी को तलाक दे देना कोई नई बात नहीं है। या यह जानने के बाद कि पत्नी का कभी किसी और से भी संबंध रहा है, उसे शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताडि़त करना भी कोई नई बात नहीं है। अपने सपनों में अनगिनत लड़कियों को नोचता हुआ, चीरता हुआ यह शरीफ मर्द आंचल में ढंकी बीवी की ख्वाहिश करता है। शादी से पहले किसी के साथ शारीरिक संबंध बनाया तो आप बदचलन हैं। आपका करैक्टर आपकी वर्जिनिटी पर आधारित है। हमारे देश में औरत की वर्जिनिटी को उसकी इज्जत कहा जाता है। शायद इसीलिए कोई वहशी किसी लड़की से बलात्कार करता है तो वह आत्महत्या कर लेती है। अगर लड़की ऐसा न भी चाहे तो समाज उसके साथ इतनी हिकारत से पेश आता है कि उसके सामने कोई चारा नहीं होता।
कुछ लड़कियों से जब यह पूछा कि अगर बिन व्याहे मॉं बनने के बात समाज के सामने आ जाती है तो फिर आपके भविष्य का क्या होगा। इसके जवाब में सभी का एक जैसा नजरिया था, कि फैसला हमारा अपना है इसलिए वे भविष्य की हर परेशानी के लिए भी पूरी तरह से तैयार हैं।
टेस्ट ट्यूब बेबी सेंटर के एक संचालक कहते हैं कि कोख किराए से देने वाली महिलाओं का आंकड़ा बढऩे के पीछे वजह इनके लिए उपलब्ध मार्केट है। वहीं उच्चवर्ग की महिलाएं अपने फिगर को मेंटेन रखने, गर्भपात होने से पैदा होने वाली परेशानियों से बचने सरोगेट मदर की मदद लेना ज्यादा बेहतर समझती हैं। ये महिलाएं झूठी मेडिकली परेशानियों का बहाना बनाकर इस सरोगेट मदर्स का सहारा लेने की भरसक कोशिश करती हैं। वे कहते हैं कि गर्भधारण का अनुभव प्रमाणसहित होना जरूरी है। इसके लिए विवाहित होने की बाध्यता नहीं है। अविवाहित लड़िकयां भी गर्भधारण का अनुभव होने पर सरोगेट मदर बन सकती हैं। विवाहिता के पति की अनुमति जरूरी है। अविवाहिता और तलाकशुदा के लिए केवल उसकी अपनी मर्जी ही काफी है। जबकि तलाक के लंबित मामलों में महिला कोख किराए पर नहीं दे सकती। महिला को ऐसी कोई बीमारी न हो जिसके बच्चे में स्थानांतरित होने की संभावना हो और उसकी उम्र 21 से 45 साल के बीच हो।
यह तो रही कोख किराए पर देने वालों की दास्तान। यही कुछ हाल है शुक्राणु और अंडाणु बेचने वालों का। बताया जाता है कि बेहतर गुणवत्ता वाले शुक्राणु और अंडाणुओं की विदेशों में अच्छी-खासी कीमत मिल रही है। नीली आंखों वाली लड़़कियों के अंडाणुओं की कीमत सबसे अधिक है। वहीं उच्च वर्ण, गोरा रंग और लंबाई वाले लड़़कों के शुक्राणुओं का बाजार तेजी पकड़़ रहा है। वैसे देश के महानगरों में भी इसका चलन जोर पकड़़ रहा है, लेकिन फर्टीलिटी टूरिज्म के जरिए विदेशों में निशुल्क घूमने-फिरने और रहने का बोनस पैकेज युवाओं को ज्यादा लुभा रहा है। दिल्ली-एनसीआर के कई प्रजनन केंद्रों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि उनके यहां दिल्ली विश्वविद्यालय की कई लड़़कियां अपने अंडे का दान करने आती हैं और बदले में उनको अच्छी रकम भी मिल जाती है। ब्रिटेन जैसे देशों में भारतीय युवाओं के शुक्राणु और अंडाणु देने के एवज में 30 हजार डॉलर तक मिल रहे हैं। वैसे ब्रिटेन में शुक्राणु और अंडाणु दान करने वाले लोगों को अब 800 पौंड देने का प्रावधान किया है। लेकिन ब्रिटिश दंपतियों में भारतीय नस्ल के बढ़़ते क्रेज को देखते हुए इसकी कीमत इससे कहीं ज्यादा है । ह्युमन फर्टीलिटी एंड एम्ब्रियोलॉजी ऑथरिटी (ब्रिटेन) ने वीर्य दान करने वालों को अब ज्यादा भुगतान करने का प्रावधान किया है । इसके मुताबिक अब वीर्य दाताओं को 800 पौंड (लगभग एक लाख रुपए) मिलेंगे। पहले इसके एवज में वहां महज 250 पौंड का भुगतान किया जाता था। ब्रिटेन जैसे देशों में महिलाओं में बांझपन व पुरुषों में नपुंसकता दर ज्यादा होने की वजह से उनके अंडाणु और शुक्राणु इनविट्रो फर्टीलिटी तकनीक (आईबीएफ) के लिए उपयुक्त नहीं रहे हैं। चूंकि भारत एक सम-शीतोष्ण देश है इसलिए यहां के युवा प्रजनन के लिए अधिक उपयुक्त माने जाते हैं। लेडी हार्डिंग अस्पताल में स्त्री एवं प्रसूती विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. सीमा सिंघल के कहना है कि विज्ञान के विकास ने मां-बाप बनने की संभावनाओं को बढ़़ाया है। इसकी वजह से लोग किसी भी कीमत पर अपनी सूनी गोद को हरी करना चाहते हैं। इसके एवज में वे को भी कीमत चुकाने को तैयार होते हैं, और लाभ उठाने वाले इसका लाभ उठाते हैं । इसके लिए आचार संहिता चाहिए, जो अभी नहीं है ।
आज दुनिया दो गुटों में बंट गई है। पहला वह , जो काफी हद तक तालिबानी व्यवस्था का समर्थक है। मजे की बात यह कि ये लोग खुद भी नहीं जानते कि इनकी शख्सियत कितनी दोहरी है। ये इस्लामिक फतवों के विरोधी हैं पर टीवी सीरियलों में हर वक्त साड़ी में लिपटी , पल्लू सर पर ओढ़े , रोती - सिसकती नायिका को आदर्श गृहणी मानते हैं। चार लोगों के बीच बुरके को औरत की आजादी का दुश्मन बताने वाले खुद अपनी बहुओं को घूंघट में ढांक कर रखते हैं। बेटी के कॉलेज से दस मिनट लेट घर आने पर सवालों की झड़ी लगा देने वाले भी नकाब को औरत पर जुल्म मानते हैं। दूसरी तरफ वे लोग हैं जिन्हें महिला सशक्तिकरण सिर्फ मिनी स्कर्ट में नजर आता है। इन्हें लगता है छोटे कपड़े और प्री - मैरिटल सेक्स को सपोर्ट करना ही प्रगतिशील विचारधारा है। अपने करियर को महत्त्व देने वाली महिलाओं को करियर बिच पुकारने वाले समाज में अगर कोई लड़की 18 साल की उम्र में पढ़ाई छोड़ , शादी करके मां बन जाती है तो उसे डेडिकेटेड वाइफ कहा जाता है। नकाब ओढ़ कर कांफरेंस रूम में मीटिंग करती हुई औरत को ये बैकवर्ड मानते हैं।
नारियां अब पढ़-लिख कर और अपने पैरों पर खड़े होकर स्वतंत्र हो रही हैं। वे विवाह के पीछे निहित विडंबनाओं एवं पुरुष की धूर्तताओं को समझने लगी हैं। मंगलकामना के लिए बनाए गये तमाम यातनामूलक आचारों के खोखलेपन को समझने लगी हैं। जन्म-जन्मांतर के झूठे संबंधों के निर्वाह की प्रक्रिया में इस जन्म को नरक बना देने के विधान को चुनौती देने लगी हैं। देश-विदेश में जागृत स्त्री-विमर्श नारी को उसकी मानवीय अस्मिता के प्रति सचेत कर रहा है। अत: अब दाम्पत्य जीवन में टकराहटें होने लगी हैं, तलाक की संख्या बढ़ती जा रही है। वैवाहिक संबंध टूट रहे हैं सो टूट रहे हैं। अब अनेक स्वावलंबी लड़कियां विवाह से विमुख भी हो रही हैं। वे कुछ करना चाहती हैं, कुछ बनना चाहती हैं किन्तु उन्हें लगता है कि वैवाहिक जीवन उनकी भावी प्रगति के मार्ग में व्यवधान बन जायेगा। उनकी अस्मिता दबा दी जायेगी और पुरुष तथा उसके लोगों की ताडऩा तो सहनी ही पड़ेगी। कुछ पुरुषों में भी विवाह के प्रति उदासीनता लक्षित हो रही है। वे भी परिवार के उत्तरदायित्वों से मुक्त होकर स्वतंत्र जीवन बिताना चाहते हैं। विवाह की अनिवार्यता के साथ जो धार्मिकता जुड़ी थी, उसकी व्यर्थता का बोध उन्हें होने लगा है। अत: लग रहा है कि विवाह प्रथा चरमरा रही है।
मुझे लगता है कि विवाह-प्रथा का आधार बहुत मजबूत है, उसकी परिकल्पना के पीछे बहुत गहरा चिंतन और मूल्य-दृष्टि है। आज भी इसका कोई सही विकल्प लक्षित नहीं होता। विवाह न करके मुक्त जीवन बिताना किसी भी व्यक्ति का निजी अधिकार है। लेकिन यदि सभी लोग मुक्त जीवन बिताने लगे तो सृजन परंपरा ही समाप्त हो जायेगी या जो सृजन होगा वह लावारिस होगा। जब तक हमारे समाज का मिजाज नहीं बदलता, ऐसा सृजन नाजायज माना जाएगा और अनाथालयों की शोभा बढ़ाता रहेगा। हां, यदि स्त्री-पुरुष छाती ठोक कर उस सृजन को अपना घोषित करते हैं और हमारी समाज व्यवस्था तथा कानून व्यवस्था में उसकी सम्मानपूर्ण जगह बनती हो तो कोई हर्ज नहीं। बन पायेगी क्या? तो मुझे नहीं लगता कि थोड़ी बहुत चरमराहट के बावजूद विवाह प्रथा समाप्त होगी। आवश्यकता इस बात की है कि इसकी मूल परिकल्पना की पहचान कर इसमें आयी कुरीतियों, विषमताओं और गंदगी को दूर किया जाए। यह पशुता से मनुष्यता की ओर आने वाली संस्कृति यात्रा की महत्वपूर्ण देन है। यह स्वयं पशुता के लक्षणों से भर जाये, निश्चय ही यह बहुत पीड़ादायक स्थिति है।

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