धर्म किसी एक या अधिक परलौकिक शक्ति में विश्वास और इसके साथ-साथ उसके साथ जुड़ी रिति, रिवाज़, परम्परा, पूजा-पद्धति और दर्शन का समूह है। यदि आज पृथ्वी पर धर्म का पालन होता है, तो वह भी भक्त और उसकी भक्ति के कारण। भक्त है, तो भक्ति है, भक्ति है, तो भगवान है। कलियुग में साधु-संत को भगवान का रूप माना जाता है लेकिन अपने भक्तों कि अंध भक्ति का फायदा उठाकर कुछ साधु-संतों ने ऐसा कृत्य कर डाला है कि भगवान-भक्त की परंपरा को संदेह की नजरों से देखा जाने लगा है। धर्म चाहे हिन्दू हो या फिर इस्लाम या ईसाइयत, सभी मेें ऐसे संत, मौलवी और पादरियों की भरमार है जिन्होंने धर्म के नाम पर लोगों को ठगा नहीं हो। भारत सहित पूरा विश्व इन दिनों एक ऐसे संक्रमणकाल से गुजर रहा है जहां एक धर्म दूसरे धर्म के प्रति संदेह की नजर से देख रहा है। भारत में जहां इसी माह अयोध्या बनाम बाबरी मस्जिद प्रकरण का फैसला आने वाला है, वहीं अमेरिका में कुरान जलाने की घोषणा से बवाल मचा हुआ है ऐसे में ऋषि-मुनियों और साधु संतो की धरती पर एक बार फिर बाबाओं ने धर्म को धंधे में तब्दील हो जाने का प्रमाण दिया है।
ताजा मामला सुधांशु महाराज, आसाराम बापू, दाती महाराज, स्वामी सुमनानंद आदि से जुड़ा है। एक टीवी चैनल ने स्टिंग ऑपरेशन के जरिये आसाराम बापू, सुधांशु महाराज और दाती महाराज समेत पांच नामी बाबाओं की पोल खोली है। देश के कई मशहूर धर्म गुरु एक बार फिर नंगे हो गए। जिन लोगों की पोल खोली गई है उनमें अपने आपको सिद्ध और अवतार तक बताने वाले धर्म गुरु शामिल है। देश में साढ़े तीन सौ से ज्यादा आश्रम चलाने वाले आसाराम बापू अपने हरिद्वार के आश्रम में कहते हैं कि चंबल के डाकू तक उनके यहां आ कर छिपते हैं और पुलिस वालों की हत्या करते हैं फिर भी किसी की हिम्मत नहीं कि आश्रम में घुस कर किसी को पकड़ ले जाए। अमेरिका में धोखाधड़ी के एक बड़े आरोप में फंसी बताई गई एक युवती को आसाराम डंके की चोट पर शरण देने का प्रस्ताव रखते हैं। बापू ने इस महिला को अपना काला धन सफेद करने के रास्ते भी बताए। मगर काले सफेद की हेरा फेरी में असली उस्ताद सुधांशु महाराज को माना जा सकता है। सुधांशु महाराज ने तो मॉरीशस में जमा अरबो डॉलर का काला धन भारत लाने के रास्ते भी जानते हैं और कमीशन मिलने पर बताने के लिए भी तैयार है। सुधांशु महाराज का आश्रम पश्चिमी दिल्ली के नजफगढ़ में है। लेकिन वे जासूस रिपोर्टरों की टीम से मनाली आश्रम में मिले और मॉरीशस से पैसा लाने का पूरा इंतजाम करने का आश्वासन दिया। यह भी कहा कि सारा पैसा मेरे आश्रम के जरिए ही आएगा।
टीवी चैनलों पर पागलो की तरह चीखने चिल्लाने वाले शनि के उपासक होने का दावा करने वाले मदन महाराज उर्फ दाती गुरुदेव ने दक्षिणी दिल्ली के छतरपुर इलाके में विराट और भव्य आश्रम बना रखा है। एक व्यापारी परिवार के कल्याण के लिए दाती महाराज नाम के इस संत ने उपहारों के तौर पर पंद्रह लाख रुपए मांग लिए। एक हैं महाराज महर्षि स्वामी सुमनानंद सरस्वती। उन्होंने कई प्रधानमंत्रियों और बड़े अफसरो से पहचान होने का दावा कर के बड़े बड़े टेंडर पास करवाने का प्रस्ताव रखा और कमीशन मांगा।
ये स्वामी जी दिल्ली छावनी में एक बड़े सेना अधिकारी के साथ मिले थे। सुमनानंद ने 150 करोड़ के टेंडर के लिए बीस प्रतिशत कमीशन मांगा जिसमें से एक प्रतिशत एडवांस था। लोगों को आध्यात्म का रास्ता समझाने वाले इस कमीने सुमनानंद ने एक काली कार, एक तगड़ा ड्राइवर और एक आयातित बेबले एंड स्कॉट पिस्तौल भी मांगी। यह भी अपराधियों को संरक्षण देने का दावा कर रहे है।
एक बाबा हैं तांत्रिक भैरवानंद जिनकों महाकाल के नाम से भी जाना जाता है। दावा करते है कि बहुत सारे प्रधानमंत्रियों और राष्ट्रपतियों से न सिर्फ उनकी पहचान है बल्कि वे सब उनके चरण छूते रहे हैं। मांग पर महाकाल उर्फ भैरवानंद एक तांत्रिक क्रिया करने को तैयार हो गए जिससे व्यापारी बन कर गए संवाददाताओं के एक दुश्मन को तंत्र साधना द्वारा जान से मारना था। कुटिल हंसी हंसते हुए महाकाल ने कहा कि तंत्र से मारने में हत्या का मुकदमा भी नहीं चलता। इन बाबाओं को कौन सी सजा दी जाएगी पता नहीं मगर ये पहले भी नंगे होते रहे है। इस देश में बाबा होना एक सफल कारोबार बन गया है और अब के बाबा इतने हाईटेक हो गए हैं कि जवाब नहीं। इसीलिए समझ में आता है कि च्रंदास्वामी जैसे बाबाओं का जमाना इतनी जल्दी कैसे खत्म हो गया।
एक बाबा हुआ करते थे स्वामी सदाचारी। उनसे बड़ा दुराचारी अब तक दूसरा नहीं देखा गया। असली नाम था विनोदानंद झा और एक जमाने में चंद्रास्वामी के रसोईए थे। वही से खुद बाबा बनने की इच्छा प्रकट हुई तो दिल्ली के डिफेंस कॉलोनी में एक विधवा महिला के घर पर कब्जा कर के आश्रम बना लिया। इस महिला ने बाद में सदाचारी पर बलात्कार और संपत्ति हड़पने का आरोप भी लगाया। सदाचारी इतने बड़े कलाकार थे कि अनपढ़ होने के बावजूद उसने अपनी एक जीवनी हिंदी में छपवा रखी थी जिसके लेखक के तौर पर अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन का नाम था। बताया जाता था कि यह अंग्रेजी किताब का हिंदी अनुवाद है। इस किताब के अनुसार रीगन बाबा के भक्त थे। वैसे सामान्य ज्ञान के पन्ने के पन्ने देशों की राजधानियों के नाम सहित छाप दिए गए थे और कहा गया था कि सदाचारी के आश्रम यहां यहां यानी पूरी दुनिया में है। सदाचारी कभी स्कूटर पर चलते हुए देखे जाते थे, फिर उन्हें मसर्डीज में घूमते और हैलीकॉप्टर में उड़ते भी देखा गया और अंत में तो उन्हें एक खटारा स्कूटर पर घूमते हुए देखा गया, तब वह तिहाड़ जेल से जमानत पर छूटे थे।
एक कापलिक बाबा हैं। जन्म से बंगाली हैं और इंसान की खोपड़ी में रख कर खाना खाते हैं। दावा करते हैं कि अमेरिका की एक बहुत बड़ी मल्टीनेशनल बैंक में सीईओ थे और वहां से छोड़ कर तांत्रिक साधना शुरू की। अब बड़े कॉरपोरेट हाउसों के घोषित दलाल है और जहाजों में घूमते हैं, पांच सितारा होटलों में रुकते हैं और फटाफट अंग्रेजी बोल कर ग्राहक पटाते हैं। एक मूर्ख दिखने वाला बंगाली जो खुद कोलकाता के किसी सरकार विभाग में कर्मचारी हैं, शिष्य और सचिव की तरह उनके साथ घूमता हैं मगर सौदे की बाते बाबा स्कॉच पीते हुए और डनहिल सिगरेट सुलगाते हुए खुद करते हैं। बाबा को कई सौदे करते मैेंने भी देखा है।
भारत में जनता हर काम का जिम्मेदार ईश्वर को मानती है और ईश्वर के देवदूतों की तरह इन बाबाओं पर भरोसा करती है। यह बाबा इतने बड़े खिलाड़ी होते हैं कि सारे पाप कर के भी पतली गली से निकल जाते हैं। हत्या से ले कर बलात्कार तक के और धोखाधड़ी से ले कर ठगी तक के मामलों में अभियुक्त बनने वाले इन बाबाओं पर जनता अब भी भरोसा करती हैं और उनके पांव पखारने में परहेज नहीं करती। कापलिक बाबा तो सरेआम यह भी कहते हैं कि उन्होंने देश में एक लाख गरीब बच्चों को गोद लिया हुआ है और उनके भोजन और पढ़ाई की व्यवस्था के लिए वे छोटी मोटी दलाली कर लिया करते है। ऐसे दलालों की तो पूजा की जानी चाहिए। पर यह भक्त पर निर्भर करता है कि यह पूजा वह हाथ जोड़ करेगा या अपनी.......से।
आजकल बाबाओं का नेटवर्क काफी व्यापक हो गया है। नित्य आनंद करने वाले नित्यानंद के सेक्स टेप प्रसारित होने के बाद पता चला कि वे खदानों का धंधा भी करते हैं। भीमानंद उर्फ इच्छाधारी बाबा तो देश में लड़कियों का सबसे बड़ा दलाल बन कर सामने आया। पता नहीं इतना बड़ा दलाल कॉमनवेल्थ के इंतजाम में शामिल क्यों नहीं किया गया? प्रतिभा में वह सुरेश कलमाड़ी से कम नहीं है। बाबाओं और स्वामियों और तांत्रिकों के जाल में सब तरफ से हारी हुई जनता फंसती है और इस जनता और इसके समाज की पराजय के लिए समाज चलाने वाले जिम्मेदार हैं और उनकी जिम्मेदारी इस बात की भी है कि जो नंगे हो गए हैं उन्हें जेल के कपड़े क्यों नहीं पहनाए जाते? देश के प्रख्यात योग गुरू बाबा राम देव सहित कई ऐसे संत और धर्माचार्य ऐसे भी हैं जिनपर अब तक आपत्तिजनक लांछन तो नहीं लगे लेकिन वह बेदाग भी नहीं है। बाबा राम देव आर्युवेदिक औषधियों के निर्माण में जानवरों की हड्डियों की मिलावट को लेकर जहां चर्चा में आए वहीं अपनी राजनैतिक महात्वाकांक्षा के लिए स्वगठित राष्ट्रीय स्वाभिान दल द्वारा आगामी चुनावों में एक साथ सभी सीटों में प्रत्याशी उतारने को लेकर भी चर्चा में है। इतना ही नहीं उन पर देश के धन का विदेशों में निवेश करने के मामले सहित कई राज्यों में अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर शासकीय भूमियों को हड़पने के लिए भी जाने जाते हैं। तथाकथित इन संतो के कृत्यों को यदि दरकिनार कर दिया जाय तो समाज में साधु अपने आप में एक आदर्श होता है, जो कि स्वल्पतम साधनों से अपनी आवश्यकताओं को पूरा करता हुआ आत्मसाधना और लोकहित में अपने को समर्पित करता हुआ चलता है। इतिहास में कुछ ऐसी घटनाएं भी मिलती हैं, जब देश का शासक एक संत के बदले में अपना सारा राज्य देने को तैयार था।
साधु संतों और ऋषियों ने आध्यात्मिक चेतना के संवाहक के रूप में समस्त विश्व को सदा उपकृत किया है। उनका त्याग, बलिदान, महान् तपस्या, नि:स्वार्थ सेवा और सत्य-अहिंसा की साधना समस्त मानव-समाज के लिए हमेशा एक महान प्रेरणा बनकर रही है। वे समाज के लिए चाहे कुछ भी न करें किन्तु एक महान उद्देश्य में संलग्न उनका व्यक्तित्व अपने आप में समाज की एक महान सेवा है। इस प्रकार के वर्ग की कल्पना मानव-समाज के अभ्युदय और नि:श्रेयस के लिए हुई है और आज भी उसकी उतनी ही आवश्यकता है। यह ध्यातव्य है कि उन लोगों का एक बहुत बड़ा समूह-जो कि साधना की दृष्टि से नहीं, केवल पेट भरने की दृष्टि से अथवा धर्म और साधु के पवित्र नाम से समाज के लोगों को ठगने में सक्रिय है। हमारे देश में लोगों की धर्म पर अथाह आस्था है या यह कह सकते हैं कि धार्मिकता हमारी पहचान है। शायद हमारे सीधे-साधे लोगों की इसी असीम भक्ती को बाबाओं और स्वामियों ने समझा और फैला दिया भक्ति के नाम पर मायाजाल। लेकिन अब लगता है कि भगवान के नाम पर लोगों को पाठ पढ़ाकर अपना सम्राज्य स्थापित करने वाले इन्हीं बाबाओं पर भगवान की नजर टेढ़ी हो गई है। हाल ही में रह-रहकर ऐसी घटनाएं घट रही हैं जिनसे यह प्रतीत होता है कि स्वयं भगवान अब लोगों को स्वामियों से दूर रहने की हिदायत देना चाहते हैं। जब हम भगवान में भक्ती रखते हैं तो हमें यह भी समझना होगा की जो हो रहा है उसके पीछे कोई न कोई कारण जरूर छिपा है। श्रीमद भागवत् गीता में भगवानश्रीकृष्ण कहते हैं-
यदा-यदा ही धर्मस्य,ग्लानिर्भवतिभारत।
अभ्युत्थानमअधर्मस्य,तदात्मानमसृजाम्यहम।।
अर्थात् जब-जब इस धरती पर धर्म की हानि होगी, तब-तब मैं जन्म लूंगा। उत्तरप्रदेश के प्रतापगढ़ में संत कृपालु महाराज के आश्रम में जिस तरह से गरीबों की मौत का हुआ ताड़व इसकी बानगी है। इस पर यही कहा जा सकता है कि साधू-संतों पर गृह-नक्षत्र जरा भी मेहरबान नहीं हैं। कृपालु महाराज के आश्रम में विगत वर्ष उनकी पत्नी की बरसी आयोजन किया जा रहा था जिसमें बड़ी संख्या में गरीब लोग खाना खाने के लिए आए हुए थे लेकिन उन्होंने यह नहीं सोचा था कि मौत की भूख उन्हें बुला रही है। इतना बड़ा आयोजन करने वाले कृपालु महाराज के आश्रम में सुरक्षा व्यवस्था के नाम पर सब शून्य था। उनके अपने सुरक्षाकर्मी ही यहां पर थे जबकि भीड़ हजारों की संख्या में थी लेकिन भगदड़ मचने पर गरीब लोगों की भूख अंदर ही रह गई।
गुरू गोविंद दोऊ खड़े, काके लागू पाए... बलिहारी गुरू आपने जिन गोविंद दियो बताए... लोग गुरू दीक्षा लेते है, गुरू को पूजते है ताकि उन्हें प्रभु मिलन की राह मिल सकें.... पर गुरू, साधु संतों की धर्म की आड़ में छिपी असली दुकानदारी आए दिन उजागर होने से जहां समाज की की अंधविश्वसनीयता पर प्रश्र चिन्ह खड़ा करता है वहीं हमारी आस्था को भी कठघरे में खड़ा करता है। फिर चाहे भारत के असंख्य लोगों की आस्था वाले मंदिर तिरुपति बालाजी मंदिर में हो रहा भ्रष्टाचार क्यों न हो।
भारत के सबसे संपन्न मंदिरों में शुमार किए जाने वाले तिरुपति बालाजी मंदिर को संचालित करने वाले प्रबंधकों को पिछले दिनों एक बिल्कुल अलग ही समस्या का सामना करना पड़ा। दरअसल ट्रस्ट ने मंदिर की संपत्ति को चोरों से सुरक्षित रखने के लिए बीमा कराने का विचार किया तो आभूषणों की वास्तविक कीमत पता की गई तो मालूम चला कि मंदिर प्रबंधन के पास उपलब्ध करीब 20 टन सोना और हीरों के आभूषणों की बाजार कीमत 52 हजार करोड़ रुपये है। स्वाभाविक तौर पर इतनी अधिक संपत्ति का बीमा करना किसी भी कंपनी के लिए आसान काम नहीं था। हालांकि, इसकी एवज में मंदिर को भी कंपनी को हर वर्ष अच्छी-खासी किश्त बैंक को देनी पड़ती। फौरी तौर पर ट्रस्ट को इसकी जरूरत इसलिए पड़ी थी, क्योंकि एक पुजारी ने आभूषणों के इस भंडार से 520 ग्राम का हार चुराकर उसे गिरवी रखा और बदले में मिली रकम अपनी बेटी की शादी में खर्च कर दी। उधर देश की एक मशहूर साप्ताहिक पत्रिका की पड़ताल में यह भी मामला सामने आया है कि भारत के सर्वाधिक संपन्न
इस धार्मिक प्रतिष्ठान में भ्रष्टाचार और अनियमितत्ताओं के आरोप के चलते मंदिर प्रबंधन संदेह के साये गहरा रहे हैं। और आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री कोंजेटी रोसैया ने वर्तमान न्यासी मंडल का कार्यकाल खत्म होने के साथ ही तीन आईएएस अधिकारियों का एक विशिष्ट प्राधिकरण बना दिया।
अगर हम देश भर में फैले विभिन्न धर्मो के प्रार्थना स्थलों, मठों आदि के पास जमा अकूत दौलत का आकलन करें तो अंदाजा लगा सकते हैं कि इन सभी धर्मस्थलों की संपत्ति यदि एकत्र कर दी जाए तो उसमें कितने ही स्कूल या अस्पताल खोले जा सकते हैं। हालांकि इन मठों के पास मौजूद सारी संपत्तियों का विवरण एकत्र करना आसान नहीं होगा। यहां तक की हमारी सरकारों को भी पता नहीं होगा कि इन आस्था के केंद्रों में कितनी अकूत संपदा संचित है। वर्ष 2001 की जनगणना के मुताबिक इस देश में स्कूलों की तुलना में मंदिरों अथवा प्रार्थना स्थलों की संख्या कहीं ज्यादा है। यहां तक कि कारखानों एवं मकानों की तुलना में भी प्रार्थना स्थलों की तादाद तेजी से बढ़ रही है। एक अनुमान के मुताबिक अकेले गुजरात राज्य में मकानों एवं कारखानों की तुलना में धर्मस्थलों की निर्माण दर कहीं ज्यादा है। 15 साल पहले वहां 95 हजार धर्मस्थल थे तो वर्ष 2007 आते-आते यह संख्या बढ़कर एक लाख 77 हजार तक पहुंच गई अर्थात हर दिन तककरीबन 20 और साल में 7000 नए धर्मस्थल वहां बन रहे हैं।
आर्यसमाज के प्रणेता स्वामी दयानंद सरस्वती के बचपन की एक कहानी की काफी चर्चा होती है। दयानंद जब 12 साल के थे तब शिवरात्रि की रात उन्होंने देखा कि भगवान को चढ़ाए गए लड्डू को चूहा खाए जा रहा है, तभी उन्हें भगवान की शक्ति पर अविश्वास होने लगा कि वह जब अपनी रक्षा नहीं कर पा रहा है तो हमारी क्या करेगा? ऐसे कई सवाल उनके जेहन मे आने लगे फिर एक दिन उन्होंने मूर्तिपूजा पर भी सवाल उठाया? कुछ समय पहले वैष्णो देवी के मंदिर की संपत्ति पर भी सवाल उठा था, हालांकि वहां का चढ़ावा सरकार की निगरानी में होता है। यह प्रश्न अहम है कि इस धर्म निरपेक्ष देश की सरकार को क्या यह जिम्मेदारी नहीं लेनी चाहिए कि धर्मस्थलों की व्यवस्था की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले? यह भी मुद्दा है कि क्या इतनी बड़ी और अकूत संपदा जो किसी की निजी नहीं है, बल्कि सार्वजनिक है तो उसे निजी हाथों में दिया जाए अथवा उसका लाभ आम जनता को कैसे मिले?
शिरडी के आश्रम के पास भी काफी संपत्ति है और यहां तक कि वहां बन रहे हवाई अड्डे के लिए भी धर्मस्थान की तरफ से ही ज्यादातर राशि दी जानी है। इसी तरह देशभर के ढ़ेरों धर्मस्थल ऐसे हैं जो करोड़ों के मालिक हैं। दिल्ली सिक्ख गुरुद्वारा प्रबंधक समिति के अध्यक्ष परमजीत सिंह सरना ने भी घोषित किया कि बंगला साहिब गुरुद्वारा के दीवारों पर सोने की परत लगाया जाएगा। इसके लिए लगने वाले 125 किलो सोने की व्यवस्था भी की जा चुकी है। इसके अलावा उन्होंने दिल्ली के कई गुरुद्वारों को पूरी तरह एयरकंडीशन करने की भी बात कही। सुविधाओं से लकदक करके तथा संपत्ति का प्रदर्शन करते ये धर्मस्थल आस्था का केंद्र कैसे बन जाते हैं यह विचारणीय प्रश्न है। शिष्यगण तथा आशीर्वाद लेने वाले भक्तों में कभी यह प्रश्न क्यों नहीं कांैधता कि चढ़ावे की संपत्ति को जनकल्याण के काम में क्यों नहीं लगाना चाहिए?
कल्पना करें कि एक स्कूल के संचालन के लिए तीन करोड़ रुपये का इंतजाम किया जाए तो तिरुपति बालाजी मंदिर के पास जमा 52 हजार करोड़ रुपयों से लगभग 17 हजार अच्छे स्कूल चलाए जा सकते हैं। इस तरह यहां लाखों ऐसे नौनिहाल तैयार किए जा सकते हैं जो न केवल इस देश, बल्कि यहां के जनता के भविष्य को भी बेहतर ढंग से संवारने में अपनी बड़ी भूमिका निभा सकते हैं। अवैध धर्मस्थलों का मुद्दा भी हमारे देश में गंभीर है। धर्म के नाम पर कीमती जमीन पर कब्जा करना तथा सार्वजनिक उपयोग के स्थान पर भी मंदिर या प्रार्थनास्थल खड़ा कर उसका निजी उपयोग करना आज एक व्यवसाय बनता जा रहा है।
सुप्रीम कोर्ट ने कुछ समय पहले सभी राज्य सरकारों को इन अवैध धर्मस्थलों की गणना करने का निर्देश दिया था। कुछ राज्यों के आंकड़े अखबारों में कभी-कभी प्रकाशित किए भी जाते हैं। हालांकि, इसमें भी बहुत बड़ा घोटाला है कि अधिकतर आस्था केंद्रों को गणना में शामिल ही नहीं किया गया है। हाल में बिहार सरकार ने भी 5 सितंबर, 2010 को घोषित किया कि बिहार में 16,834 अवैध धर्मस्थल हैं। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि इनकी वास्तविक संख्या हजारों में नहीं, बल्कि लाखों में होगी। यह बात किसी एक छोटे इलाके के सर्वेक्षण के आधार पर भी कहीं जा सकती है।
सूचना के अधिकार कानून का सहारा लेकर पिछले दिनों दिल्ली के एक सामाजिक कार्यकर्ता ने यह जानना चाहा था कि दिल्ली में कितने अवैध प्रार्थनास्थल हंै? इसके जवाब में पुलिस महकमे से लेकर म्युनिसिपल कारपोरेशन तक ने यही बताया कि उनके इलाके में ऐसा कोई धर्मस्थल नहीं है। अगर इन जवाबों को सही माना जाए तो राजधानी दिल्ली में महज इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के पास एक अवैध प्रार्थना स्थल है। दिल्ली का साधारण निवासी भी बता सकता है कि हर इलाके में सड़क के किनारे, पार्क या अपार्टमेंट में या बिजली दफ्तर आदि में कितनी बड़ी संख्या में अवैध प्रार्थना स्थल हैं। हालांकि, हर व्यक्ति को अपनी आस्था पर अमल करने का पूरा अधिकार है। संविधान में प्रदत्त धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार के भी यही मायने हैं, लेकिन सार्वजनिक स्थलों का अतिक्रमण कर बनाए जाने वाले प्रार्थना स्थलों के पीछे महज आस्था का तत्व नहीं दिखता। अक्सर हम इसके पीछे कुछ निहित स्वार्थो को होते देखते हैं। ऐसे प्रार्थना स्थल निर्माताओं के लिए सोने की मुर्गी की तरह साबित होते हैं, जिनसे उन्हें एक नियमित आमदनी मिलती रहती है।
मुख्य सड़कों पर या सरकारी जमीन पर बने ऐसे धार्मिक ढांचे शहर के विकास के रास्ते में भी सबसे बड़ी बाधा बनते हैं। सार्वजनिक स्थानों पर अतिक्रमण करके बनाए गए प्रार्थना स्थलों के कुछ प्रबंधकों ने सरकार से उल्टे यह मांग भी किया कि उन्हें मुआवजे के तौर पर दूसरी जमीन दी जाए। ग्रेटर हैदबाद में म्युनिसिपल कारपोरेशन की 3,042 वर्ग गज जमीन मस्जिदों ने घेरी है, 750 वर्ग गज जमीन चर्चो ने और 7,492 वर्ग गज जमीन पर मंदिरों ने कब्जा जमाया है। इस तरह देश के बाकी हिस्सों और शहरों में भी न जाने कितनी ही जमीनों पर इनका अनधिकृत कब्जा है। हालांकि, इस बारे में यह भी सच है कि प्रशासन के स्तर पर परोक्ष-अपरोक्ष सहयोग मिले बिना अतिक्रमण कर पाना इनके लिए संभव नहीं है। जिस तरह की स्थितियां हमारे देश में हैं उससे तो यही प्रतीत होता है कि सरकारें और प्रशासन इन पर कोई नियंत्रण नहीं बना पाएंगी, क्योंकि वे इसे अपने फायदे में तथा जनसमर्थन हासिल करने के लिए हथियार के तौर पर उपयोग करती हैं।
राजनीतिक पार्टियों को देखें तो कईयों के लिए धर्म ही सियासत का उपकरण है और जनता के बीच जाने का माध्यम है। ऐसी पार्टियां जो खुद को सेक्युलर विचारों पर चलने का दावा करती हैं वे अक्सर धर्म के सामाजिक या राजनीतिक संचालन में हस्तक्षेप या पुरजोर विरोध नहीं कर पाती हैं। यह तो रही भारत की बात जबकि विदेशों में भी धर्म को धंधा को या फिर आतंकवाद का रूप दिया जा रहा है।
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