घोटालेबाज़ कर्मचारियों को संरक्षण देने और उन्हें बचाने में ग़ाजिय़ाबाद के तत्कालीन जि़ला जज आर एस चौबे का नाम सबसे अव्वल है. न्यायाधीश स्तर के ऊंचे अधिकारी और घोटाला करने वाले सामान्य स्तर के कर्मचारी आशुतोष अस्थाना की मिलीभगत के तमाम कागज़़ी प्रमाण पुलिस को भी मिले और सीबीआई को भी. दस्तावेज बताते हैं कि ट्रेजऱी प्रभारी आशुतोष अस्थाना, कर्मचारी मोहन सिंह बिष्ट, रामाशीष, इंद्रबहादुर, कलुआ, सत्यपाल के गैंग में जि़ला जज आर एस चौबे शामिल थे. अस्थाना का इक़बालिया बयान कहता है कि जि़ला जज आर एस चौबे और कार्यवाहक जज अरुण कुमार ट्रेजऱी प्रभारी आशुतोष अस्थाना से हर महीने खर्चे के लिए 30 से 35 हज़ार रुपये मांगा करते थे. कार्यवाहक जि़ला जज अरुण कुमार प्राय: 50 हज़ार से ढाई लाख रुपये मांग लेते थे. इसके अलावा जज अरुण कुमार के परिवार वालों की तफ़रीह के लिए गाडिय़ों की व्यवस्था भी की जाती थी. आशुतोष अस्थाना ये गाडिय़ां त्यागी ट्रैवल्स के ज़रिए उपलब्ध कराता था. जज अरुण कुमार की बेटी की शादी में टाटा सूमो और ट्?वेटा, क्वालिस जैसी चार गाडिय़ों का इंतज़ाम आशुतोष अस्थाना ने किया था. इसके अलावा शादी में पानी-बिजली और अतिथियों के कलकत्ता से आने-जाने की व्यवस्था भी अस्थाना ने ही की थी. अस्थाना ने जज अरुण कुमार की बिटिया की शादी में नकद दो लाख रुपये इसके अतिरिक्त दिए थे. ग़ाजिय़ाबाद के तत्कालीन जि़ला जज आर पी मिश्रा ने तो हद ही कर दी. उन्होंने ही सरकारी कोषागार के प्रभारी आशुतोष अस्थाना को बुलाकर कहा कि चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों का जीपीएफ एकाउंट ट्रेजऱी में नहीं होता और न उसका कोई रिकॉर्ड एजी ऑफिस में होता है. जज आर पी मिश्रा ने अस्थाना को रास्ता दिखाया कि किसी के भी नाम से वहां से पैसा निकाला जा सकता है.
सरकारी धन की लूट का यह वाकई आश्चर्यजनक कथानक है. जज साहब के लखनऊ में गोमती नगर स्थित निर्माणाधीन घर पर बोरिंग कराने से लेकर सबमर्सिबल पंप लगाने और बिजली की फिटिंग कराने तक का खर्च जीपीएफ एकाउंट से भरा गया. पीएफ स्कैम में सबसे पहले नपने वाले जजों में ए के सिंह का नाम शुमार है, जिन्हें सुप्रीमकोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश केजी बालाकृष्णन के आदेश पर इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज पद से हटाया गया था. ए के सिंह के बाद ग़ाजिय़ाबाद के जि़ला जज बने आर एस चौबे ने तो बढ़-चढ़ कर घोटालेबाज़ों को संरक्षण दिया और पीएफ घोटाले की राशि से मौज उड़ाई.
अस्थाना का इक़बालिया बयान हैरत से भर देने वाला है. वह कहता है कि जि़ला जज का मासिक खर्च 40-50 हज़ार के बीच होता है, लेकिन वे अपने खाते से इतनी राशि कभी नहीं निकालते. उनका सारा खर्च कोर्ट के कर्मचारियों को वहन करना होता है. आर पी मिश्रा ने तो जि़ला जज के पद पर नियुक्त होते ही पीएफ एकाउंट से अतिरिक्त धन की अवैध निकासी शुरू करा दी. जज आर पी मिश्रा ने अपने बेटे का एडमिशन ग़ाजिय़ाबाद के एक प्रबंधन कॉलेज में कराया और दो साल तक उसकी फीस जीपीएफ एकाउंट से भरी जाती रही. जज साहब की लखनऊ के गोमती नगर स्थित कोठी पर लकड़ी का सारा काम न्यायालय के बढ़ई कर्मचारी अनोखेलाल से कराया गया, लेकिन डेढ़ लाख रुपये का बिल जीपीएफ एकाउंट से भरा गया. रिटायरमेंट के बाद भी जज साहब छह महीने तक सरकारी आवास में विराजमान रहे और उनका खर्च जीपीएफ एकाउंट के पैसे से उठाया जाता रहा. ग़ाजिय़ाबाद के सिटी इलेक्ट्रॉनिक्स से जज आर पी मिश्रा के लिए टीवी, फ्रिज, वाशिंग मशीन वग़ैरह लाई गई, जिसका बिल जीपीएफ एकाउंट से भरा गया. जज साहब और उनके परिवार के कपड़े व अन्य सामान घंटाघर स्थित मंगलदीप स्टोर व रेमंड शोरूम से, जेवरात वग़ैरह दीपाली ज्वैलर्स के यहां से और राशन चड्?ढा स्टोर्स से खऱीदा जाता था. गाडिय़ों का इंतज़ाम त्यागी ट्रैवल्स से और गोविंदपुरम स्थित आशु स्टूडियो से फोटोग्राफी एवं वीडियोग्राफी का काम होता था. इसका खर्च जीपीएफ एकाउंट से वहन किया जाता था. जज साहब के घर की क्रॉकरी व ट्रांसपोर्ट वग़ैरह का भुगतान अमीचंद को जीपीएफ एकाउंट से निकाले गए चेक व धन से ही किया गया. यहां तक कि उनके रिटायरमेंट के बाद ट्रक से उनका सामान लखनऊ भेजने की व्यवस्था भी अमीचंद ने ही की, जिसका भुगतान भी जीपीएफ एकाउंट से किया गया. जज आर पी मिश्रा को उक्त खर्चों के अलावा प्रति माह डेढ़ लाख रुपये भी जीपीएफ एकाउंट से दिए जाते थे और इसके लिए चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी के नाम पर भारी धनराशि निकाले जाने के फजऱ्ी कागज़़ातों पर भी जज आर पी मिश्रा आंख मूंदकर हस्ताक्षर कर दिया करते थे.
जज आर पी मिश्रा के रिटायर होने के बाद जज नियुक्त हुए आर एस त्रिपाठी भी उसी ढर्रे पर चल पड़े. उनके परिवार के खर्चे के लिए प्रतिमाह 50-60 हज़ार रुपये जीपीएफ एकाउंट से निकाल कर दिए जाते थे. जज त्रिपाठी के लिए भी ग़ाजिय़ाबाद के सिटी इलेक्ट्रॉनिक्स से दो टीवी, फ्रिज, विंडो और स्प्लिट एसी, वाशिंग मशीन, बड़े वोल्टेज वाला स्टेबिलाइजऱ, कैमरा, एक्जॉस्ट फैन, पेडस्ट्रल फैन, सीलिंग फैन और इनवर्टर वग़ैरह खरीद कर दिए गए. मंगलदीप स्टोर से जज साहब एवं उनके परिवार के लिए कपड़े और जेवरात, अंबेडकर रोड स्थित टच पावर से क़ीमती मोबाइल फोन और बढ़ई अनोखेलाल से कऱीब डेढ़ लाख रुपये के फर्नीचर बनवाए गए, जिसका सारा खर्चा जीपीएफ एकाउंट से भरा जाता रहा. जज साहब के बेटे-बेटी और परिवार के अन्य सदस्य अक्सर दिल्ली घूमने आते और जीपीएफ एकाउंट के बूते तफ़रीह कर चले जाते. त्यागी ट्रैवल्स का अनाप-शनाप बिल जीपीएफ एकाउंट के पैसे से भरा जाता. दस्तावेज यह भी कहते हैं कि जज आर एस त्रिपाठी को तीन से चार लाख रुपये नकद प्रति माह जीपीएफ एकाउंट से निकाल कर दिए जाते रहे. आर एस त्रिपाठी इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश भी बने. अब रिटायर हो चुके हैं. जज आर एस त्रिपाठी के रिटायरमेंट के बाद जि़ला जज बने आर पी यादव ने आशुतोष अस्थाना के अभूतपूर्व काम को देखते हुए उसे तऱक्क़ी दे दी. जज आर पी यादव का घरेलू खर्च 15 से 20 हज़ार रुपये ही था, जो जीपीएफ एकाउंट से ही भरा जाता था. जज साहब के घर के लिए सिटी इलेक्ट्रॉनिक्स से एसी, टीवी, फ्रिज एवं वाशिंग मशीन खरीदी गई. जज साहब की पत्नी के लिए मंगलदीप से जेवरात और जज साहब के लिए टच पावर से क़ीमती मोबाइल फोन खरीदे गए, जिसका खर्च आशुतोष अस्थाना ने वहन किया. जज आर पी यादव के सरकारी आवास और उनके वकील बेटे निखिल यादव के इलाहाबाद आवास पर फर्नीचर के काम पर जो डेढ़-दो लाख रुपये का खर्च आया, वह भी जीपीएफ एकाउंट से भरा गया. इसके अलावा जज साहब के बेटे निखिल के लिए भी टीवी, फ्रिज, एसी, कपड़े और ज्वेलरी वग़ैरह खरीदी गई, जिसका भुगतान भी उसी जीपीएफ एकाउंट से किया गया, जिसे जजों ने टकसाल समझ लिया था. आर पी यादव इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश भी बने. अब रिटायर हो चुके हैं. जज आर पी यादव के बाद जि़ला जज के रूप में आर एन मिश्रा पधारे. आर एन मिश्रा के स्थानांतरण के बाद ए के सिंह जि़ला जज बनकर आए. छानबीन के दस्तावेज बताते हैं कि ए के सिंह और उनका परिवार अच्छे कपड़े पहनने और घूमने-फिरने का शौक़ीन था. लिहाज़ा यह शौक़ जीपीएफ एकाउंट से पूरा किया गया. उन्हीं तयशुदा दुकानों से टीवी, फ्रिज, एसी, कैमरे, पंखे, मिक्सी वग़ैरह खरीदे गए. इसके अलावा कमल स्टोर और रमते राम स्टोर से जज साहब के लिए फर्नीचर, आलमारी, ड्रेसिंग टेबल खरीदे गए. मंगलदीप, रेमंड और विंदल से महंगे कपड़े खरीदे गए और इन सबका भुगतान उसी तरह किया गया, जैसे अन्य जजों के लिए किया जाता रहा. जज साहब की शौक़ीनी का हाल यह था कि महंगे जिमनैजियम में एक्सरसाइज़ करने, महंगा मसाज कराने, वेट लॉस एवं परिवार की महिला सदस्यों के ब्यूटी ट्रीटमेंट का जो डेढ़ लाख रुपये का बिल आया, वह भी जीपीएफ एकाउंट से अवैध तरीक़े से निकाले गए धन से भरा गया. जज ए के सिंह के सहारा इंडिया में काम करने वाले बेटे अभिषेक गौतम के नोएडा सेक्टर 52 स्थित आवास का तीन साल तक किराया इसी जीपीएफ एकाउंट से भरा जाता रहा. इसके अलावा जज साहब के साहबजादे के लिए पल्सर मोटरसाइकिल और कंप्यूटर वग़ैरह भी जीपीएफ एकाउंट के पैसे से ही खरीद कर दिए गए. अभिषेक गौतम के इलाहाबाद बैंक एकाउंट में 36,500 रुपये का चेक जमा कराया गया, वह इन सब खर्चों के अतिरिक्त है. खूबी यह है कि वह चेक जीपीएफ एकाउंट का है.
सरकारी धन की लूट का यह वाकई आश्चर्यजनक कथानक है. जज साहब के लखनऊ में गोमती नगर स्थित निर्माणाधीन घर पर बोरिंग कराने से लेकर सबमर्सिबल पंप लगाने और बिजली की फिटिंग कराने तक का खर्च जीपीएफ एकाउंट से भरा गया. पीएफ स्कैम में सबसे पहले नपने वाले जजों में ए के सिंह का नाम शुमार है, जिन्हें सुप्रीमकोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश केजी बालाकृष्णन के आदेश पर इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज पद से हटाया गया था. ए के सिंह के बाद ग़ाजिय़ाबाद के जि़ला जज बने आर एस चौबे ने तो बढ़-चढ़ कर घोटालेबाज़ों को संरक्षण दिया और पीएफ घोटाले की राशि से मौज उड़ाई. उनके लिए तयशुदा दुकानों और शोरूम से विलासिता के वे सारे सामान खरीदे गए, जो अन्य जजों और उनके परिवारों के लिए खरीदे गए थे. टीवी, फ्रिज, एसी, कंप्यूटर, मोबाइल फोन, लैपटॉप, क्रॉकरी, कपड़े, जेवरात सब कुछ. जज साहब के इलाहाबाद स्थित आवास पर न्यायालय के बढ़ई अनोखेलाल ने साल भर तक रह कर काम किया. घोटाले की रकम से जज साहब के घर में शीशम की क़ीमती लकड़ी के फर्नीचर, सोफे, ड्रेसिंग टेबल, डबल बेड वग़ैरह तैयार कराए गए. ग़ाजिय़ाबाद के आरडीसी स्थित मार्डिया जिम में कसरत करने और त्यागी ट्रैवल्स की गाडिय़ों पर घूमने-फिरने के अलावा जज साहब प्रति माह चार से पांच लाख रुपये भी वसूल लिया करते थे.
पीएफ घोटाले के मुख्य अभियुक्त आशुतोष अस्थाना ने अपने इक़बालिया बयान में कहा भी कि घोटाला कर्मचारियों के नाम पर किया गया, लेकिन घोटाले की राशि का 80 फीसदी हिस्सा जजों ने खा लिया. महज़ 20 से 25 फीसदी हिस्सा ही कर्मचारियों तक पहुंचा. जजों ने घोटाला करने का नायाब तरीक़ा निकाला, लेकिन देश की सत्ता और न्यायिक व्यवस्था ने इस नायाब तरीक़े को और उधेडऩे के बजाय उसे नजऱअंदाज़ कर दिया. घोटाले का घिनौना सच यह है कि जजों के आधिकारिक दौरों पर होने वाला आलीशान खर्च भी जीपीएफ घोटाले की रकम से ही किया जाता रहा. ग़ाजिय़ाबाद के अतिरिक्त मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी (एसीजेएम) हमीदुल्ला नजारत के प्रभारी भी थे और उन्होंने आशुतोष अस्थाना के साथ मिलकर पीएफ की राशि से मौज उड़ाई. इसी राशि से उनके मासिक व्यय का भुगतान होता रहा, जो प्रति माह 10 से 15 हज़ार रुपये हुआ करता था. नवयुग मार्केट से उन्होंने गीजर, पंखे वग़ैरह भी खरीदवाए, जिसका भुगतान पीएफ घोटाले की राशि से हुआ. नजारत प्रभारी रहे जयशील पाठक हस्ताक्षर करने के एवज में प्रतिमाह ढाई लाख रुपये नकद लिया करते थे. इसके अलावा 30 से 40 हज़ार रुपये घरेलू खर्चे में जाते थे. पाठक के लिए टीवी, फ्रिज, आलमारी, जेवरात, कपड़े के अतिरिक्त उनकी बिटिया की मेरठ में पढ़ाई का खर्चा भी जीपीएफ घोटाले की राशि से ही भरा जाता था. 60 हज़ार रुपये के पर्दे के कपड़े और कऱीब इतने के ही फर्नीचर का भी भुगतान अस्थाना ने ही किया था. त्यागी ट्रैवल्स से तफ़रीह के लिए ली गई गाडिय़ों और नागपुर तक सामान पहुंचाने का भाड़ा भी घोटाले के धन से ही भरा गया. अतिरिक्त जि़ला जज व नजारत प्रभारी रहे सी के त्यागी पर 10 हज़ार रुपये प्रतिमाह खर्च किया जाता था. इसके अलावा त्यागी ट्रैवल्स से हमेशा इस्तेमाल में लाई जाने वाली गाडिय़ों का भाड़ा भी अस्थाना द्वारा ही भरा गया. अपर जि़ला जज एवं नजारत प्रभारी आर सी सिंह के घरेलू खर्च के बतौर प्रति माह 20 हज़ार रुपये का भुगतान जीपीएफ एकाउंट से किया जाता था. इसके अलावा जज साहब दो लाख रुपये नकद प्रति माह वसूला करते थे. त्यागी ट्रैवल्स की गाडिय़ों का तफ़रीह के लिए इस्तेमाल और अस्थाना द्वारा उसका भुगतान तो जजों का चलन बन गया था. अपर जि़ला जज और नजारत प्रभारी रहे चंद्रप्रकाश का घरेलू खर्च 30 हज़ार रुपये प्रतिमाह था, जो पीएफ घोटाले की राशि से भरा जाता था. घोटाले के पैसे से इनके लिए भी सिटी इलेक्ट्रॉनिक्स से टीवी, फ्रिज, एसी, कैमरे, टचपावर से क़ीमती मोबाइल फोन, मंगलदीप से क़ीमती जेवरात, क्रॉकरीज़ और कपड़े वग़ैरह खरीदे गए. जज साहब का तबादला होने पर उनका जो सामान लखनऊ और इलाहाबाद के आवासों तक पहुंचवाया गया, उसका खर्चा भी आशुतोष अस्थाना ने जीपीएफ एकाउंट से भरा. नजारत प्रभारी रहे आर ए कौशिक को 30 हज़ार रुपये प्रतिमाह का घरेलू खर्चा दिया जाता था. मुफ्त का फर्नीचर, टीवी, फ्रिज, एसी, वाशिंग मशीन और तफ़रीह के लिए त्यागी ट्रैवल्स की गाडिय़ां तो जैसे जजों के लिए बपौती बन गई थीं. आर ए कौशिक को भी ये भ्रष्ट सुविधाएं मिलीं और जीपीएफ घोटाले की राशि से उसका भुगतान हुआ. अतिरिक्त जि़ला जज दीपक कुमार श्रीवास्तव को घोटाले की राशि से 25 हज़ार रुपये प्रति माह घरेलू खर्चे के लिए दिए जाते थे. अमीचंद की तरफ़ से जज साहब के लिए क़ीमती फर्नीचर लखनऊ भिजवाए गए. जज साहब के घूमने-फिरने के लिए त्यागी ट्रैवल्स की गाडिय़ां तो तैयार रहती ही थीं, जिसका खर्च जीपीएफ एकाउंट उठाता था. अपर जि़ला जज अली जामिन को घोटाले की राशि से 25 हज़ार रुपये प्रति माह घरेलू खर्च के लिए दिए जाते थे. इसके अतिरिक्त भी जज साहब अस्थाना से नकद वसूला करते थे. कूलर, पंखे, गीजर वग़ैरह की खरीद भी घोटाले की राशि से ही हुई और तफ़रीह के लिए इस्तेमाल में लाई गई त्यागी ट्रैवल्स की गाडिय़ों का भाड़ा भी उसी से भरा गया. तबादला होने पर घर का सामान भी अमीचंद की गाड़ी से भिजवाया गया, जिसका भुगतान अस्थाना ने किया. अपर जि़ला एवं सत्र न्यायाधीश श्रीप्रकाश का घरेलू खर्च भी मुख्य अभियुक्त आशुतोष अस्थाना द्वारा उठाया जाता था.
श्रीप्रकाश की खासियत यह थी कि लेखा विभाग के बिलों पर साइन करने के लिए वह ढाई लाख रुपये नकद लिया करते थे. फर्नीचर, डबल बेड, सोफे, आलमारी व बरेली तबादला होने पर सामान पहुंचवाने का खर्च सब जीपीएफ घोटाले की राशि से ही पूरा हुआ. जज डी एस त्रिपाठी जब ग़ाजिय़ाबाद न्यायालय में आहरण और वितरण (ड्राइंग एंड डिसबर्सिंग) अधिकारी थे, तब प्रतिमाह एक लाख रुपये नकद लिया करते थे. घरेलू खर्चा, टीवी, फ्रिज, एसी, वाशिंग मशीन, क्रॉकरीज़ और तफ़रीह के लिए गाडिय़ां इसके अतिरिक्त हैं. डी एस त्रिपाठी बाद में इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज भी बने और अब रिटायर हैं. ग़ाजिय़ाबाद कोर्ट के डीडीओ रहे आर पी शुक्ला को प्रतिमाह 2 लाख रुपये नकद दिए जाते थे. घरेलू खर्च के रूप में मिलने वाले 25 हज़ार रुपये इसके अतिरिक्त थे. इन्हें भी टीवी, फ्रिज, लैपटॉप, मोबाइल फोन वग़ैरह खरीद कर दिए गए और तफ़रीह के लिए त्यागी ट्रैवल्स की गाडिय़ां, जिसका भुगतान जीपीएफ घोटाले की राशि से किया गया. ग़ाजिय़ाबाद की अपर सत्र न्यायाधीश श्रीमती साधना जौहरी 25 हज़ार रुपये मासिक के घरेलू खर्च के अलावा दो लाख रुपये नकद प्रति माह लिया करती थीं. इनके घर पर लगे क़ीमती फर्नीचर और तफ़रीह के लिए मिली गाडिय़ों का खर्चा भी पीएफ घोटाले की राशि से ही भरा जाता रहा. अपर जि़ला जज एवं डीडीओ रहे सुभाष चंद्र निगम को प्रतिमाह दो लाख रुपये और प्रतिमाह 25 हज़ार रुपये घरेलू खर्च के बतौर दिए जाते थे. अपर जि़ला जज एवं डीडीओ रहे सुभाष चंद्र अग्रवाल को प्रति माह डेढ़ से दो लाख रुपये और 25 हज़ार रुपये प्रतिमाह घरेलू खर्च के लिए दिए जाते थे. अपर जि़ला जज एवं पूर्व डीडीओ उज्जवला गर्ग को 15 हज़ार रुपये प्रति माह घरेलू खर्च के लिए दिए जाते थे. इसके अलावा त्यागी ट्रैवल्स की गाडिय़ों के इस्तेमाल का खर्च भी अस्थाना वहन करता था. अपर जि़ला जज एवं पूर्व डीडीओ अशोक कुमार चौधरी घोटाले की राशि से प्रति माह दो लाख रुपये नकद लिया करते थे. इसके अलावा उन्हें 25 हज़ार रुपये प्रति माह घरेलू खर्च के लिए भी मिलते थे. इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस सुशील हरकोली जब ग़ाजिय़ाबाद में तैनात थे, उस समय जि़ला जज आर एन मिश्रा के कहने पर आशुतोष अस्थाना ने जस्टिस हरकोली को प्रोजेक्टर और स्क्रीन व क़ीमती मोबाइल फोन खरीद कर दिए. इसके अलावा समय-समय पर क़ीमती क्रॉकरीज़ और स्कॉच की बोतलें भी भेंट में दी जाती थीं. इन सभी का भुगतान घोटाले की राशि से ही होता था.
इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस अंजनी कुमार जब ग़ाजिय़ाबाद में तैनात थे, तब जि़ला जज आर एस चौबे के कहने पर आशुतोष अस्थाना की ओर से अंजनी कुमार को क़ीमती घरेलू सामान, बॉम्बे डाइंग की चादरें और तौलिए व क्रॉकरीज़ वग़ैरह खरीद कर दिए जाते रहे. उन्हें भी सिटी इलेक्ट्रॉनिक्स से एलसीडी टीवी, होम थिएटर, पत्नी और बेटे को मोबाइल फोन खरीद कर दिए गए. जज साहब के बेटे के ग़ाजिय़ाबाद आने पर उन्हें तफ़रीह के लिए महंगी लक्जऱी टैक्सी मंगा कर दी जाती थी, जिसका भुगतान पीएफ एकाउंट से ही किया जाता था. जीपीएफ घोटाले के मुख्य अभियुक्त आशुतोष अस्थाना ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस तरुण अग्रवाल के नोएडा सेक्टर 14-ए स्थित आवास संख्या ए-5 में महंगे विंडो और स्प्लिट एसी लगवाए थे. इसके अलावा जस्टिस अग्रवाल के लिए त्यागी ट्रैवल्स से महंगी लक्जऱी गाडिय़ां भी भेजी जाती थीं, जिनका भुगतान पीएफ घोटाले की राशि से ही हुआ करता था. जीपीएफ घोटाले के मुख्य अभियुक्त आशुतोष अस्थाना ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस वी एम सहाय को टच पावर से खरीद कर महंगा मोबाइल फोन तो दिया ही, साथ ही जज साहब के ससुर पूर्व न्यायाधीश विष्णु सहाय को भी एक महंगा मोबाइल सेट खरीद कर दिया. उत्तराखंड हाईकोर्ट के जस्टिस जे सी एस रावत को जीपीएफ घोटाले की राशि से खरीदे गए टीवी, एसी, फ्रिज एवं कई अन्य सामान दिए गए. उनके गोविंदपुरम स्थित आवास (संख्या ए-350) में क़ीमती फर्नीचर लगाए गए और इसके अलावा टीनशेड, लोहे की ग्रिल, खिड़की एवं बरामदा बनाने का काम हुआ, जिसका भुगतान घोटाले की राशि से किया गया. इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस ओ एन खंडेलवाल के घर पर भी पीएफ घोटाले की राशि से खरीदे गए टीवी, फ्रिज, एसी, ओवन एवं पंखे लगे. उन्हें क़ीमती क्रॉकरीज़, बॉम्बे डाइंग की चादरें और तौलिए भी दिए जाते रहे. जस्टिस खंडेलवाल के बेटे के घर पर कऱीब सवा लाख रुपये का फर्नीचर का काम हुआ, जिसका भुगतान घोटाले की राशि से ही हुआ. पीएफ घोटाले की राशि से ही त्यागी ट्रैवल्स की महंगी लक्जऱी कारें तफ़रीह के लिए इस्तेमाल होती रहीं. उल्लेखनीय है कि जस्टिस ओ एन खंडेलवाल इलाहाबाद हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल भी रहे हैं. इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस एवं रजिस्ट्रार जनरल रहे स्वतंत्र सिंह को त्यागी ट्रैवल्स की महंगी लक्जऱी कारें तफ़रीह के लिए दी जाती रहीं और उनके बेटे के गुडग़ांव स्थित आवास पर कऱीब सवा लाख रुपये का लकड़ी का काम कराया गया, जिसका भुगतान घोटाले की राशि से किया गया. सुप्रीमकोर्ट के जस्टिस तरुण चटर्जी के कहने पर उनके रिश्तेदार एवं कोलकाता हाईकोर्ट के जस्टिस पी के सामंत के लिए आईएफबी सीओवाई की फ्रंट लोडिंग मशीन और सैमसंग की लार्ज स्क्रीन टीवी यहां से खरीद कर कलकत्ता भिजवाई गई. ग़ाजिय़ाबाद कोर्ट का कर्मचारी श्रवण कुमार यह सामान लेकर ट्रेन से कलकत्ता गया और उसे जस्टिस सामंत के सुपुर्द करके वापस आया. इसका भुगतान पीएफ घोटाले की राशि से किया गया. इलाहाबाद हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश एवं सुप्रीमकोर्ट के जस्टिस तरुण चटर्जी के घर में घरेलू सामान भेजे जाते थे. क्रॉकरीज़ और फर्नीचर भी दिए गए. अमीचंद के यहां से 50 हज़ार रुपये की क्रॉकरीज़ और राजकमल फर्नीचर से आलमारी और बेड वग़ैरह यहां से कलकत्ता भेजे गए. जस्टिस तरुण चटर्जी के बेटे अनिरुद्ध चटर्जी को पायनियर कंप्यूटर से सवा लाख रुपये का सोनी लैपटॉप खरीद कर दिया गया. इसके अलावा अनिरुद्ध को क़ीमती मोबाइल फोन और कपड़े भी खरीद कर दिए गए. स्वाभाविक है, इन सबका भुगतान भी पीएफ घोटाले की राशि से ही हुआ.
ग़ाजिय़ाबाद के तत्कालीन जि़ला जज आर एन मिश्रा के आदेश पर रेलवे मजिस्ट्रेट डी सी सिंह की बिटिया की शादी में टीवी, फ्रिज, एसी एवं अन्य सामान दिए गए. इन सामानों की खरीद पीएफ घोटाले की राशि से ही हुई थी. ग़ाजिय़ाबाद के तत्कालीन जि़ला जज आर एस चौबे के आदेश पर रेलवे मजिस्ट्रेट अनिल कुमार सिंह को दो एयर कंडीशनर खरीद कर दिए गए. एसी पीएफ घोटाले के धन से ही खरीदे गए थे. ग़ाजिय़ाबाद कोर्ट के वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी गौरी शंकर सिंह के हाथ में प्रति माह 50 हज़ार रुपये पहुंचते थे. इसके अलावा इनके घर घरेलू सामान भी पहुंचाए जाते थे. हार्ट अटैक पडऩे पर नोएडा के मेट्रो हॉस्पिटल में ऑपरेशन का साढ़े तीन लाख रुपये का खर्च भी पीएफ घोटाले की राशि से ही पूरा किया गया. गौरी शंकर सिंह तृतीय वर्ग के कर्मचारियों से ज़बरन वसूली करने के लिए भी कुख्यात रहे हैं, क्योंकि इन वर्ग के कर्मचारियों का तबादला करने का उन्हें अधिकार था. आशुतोष अस्थाना ने पीएफ घोटाले की रकम में गौरी शंकर सिंह को वर्ष 2006 में 80 हज़ार और 50 हज़ार रुपये का चेक भी दिया था, जो उसके खाते में जमा किया गया था.
कैसे कैसे जज
जज कोर्ट की कुर्सी, मेजें, पंखे, कूलर, बल्ब सब बेचकर खा गएज्एक दो जज नहीं, बल्कि जजों की पूरी टोली, जिन्होंने मामूली कर्मचारियों के पीएफ एकाउंट से जालसाज़ी कर निकाले गए करोड़ों रुपयों से अपने घरों के लिए सामान खरीदा, एसी-कूलर लगवाए, टैक्सियों पर पैसे फूंके, बच्चों की फीस भरवाई, हवाई जहाज के टिकट कटवाए और तमाम अय्याशियां कीं, घर के लिए सब्जियां तक खरीदवाईंज् इसके अलावा कोर्ट की खरीदारी के नाम पर भी करोड़ों रुपये खा गए. यह उन लोगों के भ्रष्टाचार की निकृष्ट हरकतें हैं, जो देश की न्यायिक व्यवस्था चलाते हैं. जी हां, संदर्भ ग़ाजिय़ाबाद के पीएफ घोटाले का है. देश में जैसा अन्य घोटालों का हुआ, वैसा ही हश्र पीएफ घोटाले का भी होगा. यहां घोटाला उजागर होता है तो जांच होती है और जांच होती है तो उसमें कुछ खास नहीं पाया जाता. खास उनके साथ होता है, जिनका भविष्य खा लिया जाता है और खास उसके लिए होता है, जो जजों के साथ मिलीभगत कर उन्हें ऐश कराने के लिए घोटाला कर सरकारी कोषागार से पैसे निकालता है, पकड़ा जाता है और जेल में ही मार डाला जाता है.
न्यायाधीश सरकारी खज़ाने को लूटते रहे, अपने और घरवालों के महंगे शौक़ पूरे करते रहे. और जब बात खुली तो इस लूट के राज़दार की संदेहास्पद स्थितियों में मौत हो जाती है. अब सवाल यह है कि चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया को क्या सीबीआई की जांच पर भरोसा है? अगर नहीं तो क्या वह कोई न्यायिक जांच बैठाएंगे और अगर भरोसा है तो इसकी कार्रवाई इतनी तेज़ी से हो, जिससे देश की जनता को लगे कि न्यायपालिका न्याय के लिए प्रतिबद्ध है.
आप याद करें, अरबों रुपये के शेयर घोटाले में गिरफ़्तार हर्षद मेहता भी जेल में ऐसी ही संदेहास्पद स्थितियों में मौत का शिकार बना था और शेयर घोटाला न्यायिक व्यवस्था की अंधी सुरंग जैसे पेट में ग़ायब हो गया. भारत के लोगों को ऐसे ही न्याय मिलता है. जजों ने कर्मचारियों की भविष्य निधि के करोड़ों रुपये डकार लिए. मामला सीबीआई की जांच तक पहुंचा. जांच के बाद सीबीआई की चार्जशीट पर जब सुनवाई शुरू हुई, तब मीडिया का ध्यान फिर से पीएफ घोटाले की तरफ़ गया. सीबीआई को कुछ जजों के खिलाफ़ सबूत मिला तो कुछ के खिलाफ़ नहीं मिला. सीबीआई का हाल सब जानते हैं. देश के सारे संवेदनशील मामलों की ऐसी-तैसी करने के लिए ही अब सीबीआई को बीच में लाया जाता है. आज तक किसी भी महत्वपूर्ण मामले में सीबीआई किसी नतीजे तक नहीं पहुंची. पहले सीबीआई राजनीतिक इस्तेमाल के दबाव में काम करती थी. अब सीबीआई खुद सियासी धार देख कर अपना तेल बहाती है. सीबीआई ने पीएफ घोटाला मामले में जब चार्जशीट दाखिल की तो उसमें उस व्यक्ति की आरोपित हत्या का जि़क्र नहीं था, जिसका इक़बालिया बयान सीबीआई जांच का आधार बना. जिस मुख्य अभियुक्त की गिरफ़्तारी से देश के सामने पीएफ घोटाला ब्यौरेवार उजागर हो सका, उसे सुनियोजित तरीक़े से रास्ते से हटा दिया गया, इस पर सीबीआई ने ध्यान क्यों नहीं दिया? मुख्य अभियुक्त के रास्ते से हटने से कितने जज बेलाग बच गए? या मुख्य अभियुक्त के जि़ंदा रहने से कितने जजों के खिलाफ़ और कच्चा चि_ा मिलता? ये सवाल सामने हैं, पर देश के लोग इन सवालों का जवाब जानते हैं. मीडिया ने भी इस पर ध्यान नहीं दिया.
बहरहाल, इसी न्यायिक व्यवस्था से जुड़ी अधिकारी हैं श्रीमती रमा जैन, जिन्होंने पीएफ घोटाले का पर्दाफ़ाश किया और अभियुक्तों के खिलाफ़ एफआईआर दर्ज कराई. फिलहाल, श्रीमती जैन फर्रुखाबाद की अतिरिक्त जि़ला एवं सत्र न्यायाधीश ह श्रीमती जैन की तहरीर पर ही मुख्य सरकारी खज़ांची (सेंट्रल ट्रेजऱी) आशुतोष अस्थाना समेत ग़ाजिय़ाबाद कोर्ट में तीसरी श्रेणी के 13 कर्मचारियों, चतुर्थ श्रेणी के 30 कर्मचारियों और 39 बाहरी व्यक्तियों के खिलाफ़ ग़ाजिय़ाबाद के कविनगर थाने में एफआईआर दर्ज हुई और छानबीन में यह पता चला कि अभियुक्तों ने ग़ाजिय़ाबाद कोषागार के पीएफ एकाउंट में लूट मचा रखी थी. जजों से औपचारिक सहमति पाकर ट्रेजऱी प्रभारी आशुतोष अस्थाना ने फजऱ्ी दस्तावेज बनवा-बनवा कर करोड़ों रुपये लूटे. अंधी लूट का हाल यह था कि जो कर्मचारी नहीं था, उसने भी फजऱ्ी दस्तावेजों पर पीएफ एकाउंट से पैसा निकालने की मंजूरी ले ली और अनाप-शनाप तरीक़े से पैसे निकाले. सीबीआई और पुलिस दोनों की छानबीन में यह भेद खुलकर दस्तावेजों में दर्ज हो गया कि जजों एवं न्यायिक अधिकारियों के उकसाने पर ही फजऱ्ी चतुर्थ वर्गीय कर्मचारी के नाम पर बिल तैयार कराया जाता था, उस पर बाक़ायदा जज साहबानों के हस्ताक्षर होते थे और उसे सरकारी कोषागार भेजा जाता था. वहां से बिल पास होने के बाद संबधित कर्मचारी के खाते में पैसा जमा हो जाता था. वह पैसा जजों की अय्याशियों पर खर्च होता था और कर्मचारी भी मौज उड़ाते थे. जजों ने क़ानून की भी ऐसी तैसी करके रख दी.
जांच की प्रक्रिया शुरू होने के बाद भी अभियुक्तों को बचाने की ग़ैर क़ानूनी कोशिशें कीं. घोटालेबाज़ कर्मचारियों की अवैध संपत्ति की जांच करने वाली पुलिस टीम को दिग्भ्रमित किया. जांच में न केवल असहयोग किया, बल्कि जांच की दिशा मोडऩे की भी कोशिश की. यहां तक कि घोटाले का पर्दाफ़ाश करने वाली ग़ाजिय़ाबाद कोर्ट की सतर्कता अधिकारी एवं सीबीआई की विशेष न्यायाधीश श्रीमती रमा जैन का ही तबादला करा दिया गया.
घोटाले के घेरे में जज
सुप्रीम कोर्ट: जस्टिस तरुण चटर्जी (रि.)
कोलकाता हाईकोर्ट: जस्टिस पीके सामंत
उत्तराखंड हाईकोर्ट: जस्टिस जेसीएस रावत इलाहाबाद हाईकोर्ट: जस्टिस तरुण अग्रवाल (उत्तराखांड हाईकोर्ट स्थानांतरित), जस्टिस वीएम सहाय, जस्टिस सुशील हरकोली (झारखंड हाईकोर्ट स्थानांतरित), जस्टिस अंजनी कुमार (रि.), जस्टिस अजय कुमार सिंह (रि.), जस्टिस आरएन मिश्रा, जस्टिस ओएन खंडेलवाल (रि.), जस्टिस डी एस त्रिपाठी (रि.), जस्टिस आरएस त्रिपाठी (रि.), जस्टिस आरपी यादव (रि.), जस्टिस स्वतंत्र सिंह (रि.).
लोअर कोट्?र्स
1. अशोक के चौधरी, अतिरिक्त जि़ला जज, ग़ाजिय़ाबाद.
2. सुभाष चंद्र अग्रवाल, प्रशासनिक जज, महोवा.
3. अली जामिन, अतिरिक्त जि़ला जज, वाराणसी (मऊ के वर्तमान जि़ला जज).
4. दीपक श्रीवास्तव, अतिरिक्त जि़ला जज, ग़ाजिय़ाबाद.
5. अखिलेश दुबे, चीफ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट, ग़ाजिय़ाबाद.
6. हिमांशु भटनागर, अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, मथुरा.
7. हमीदुल्ला, एडिशनल चीफ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट, ग़ाजिय़ाबाद.
8. अनिल कुमार सिंह, रेलवे मजिस्ट्रेट, ग़ाजिय़ाबाद.
9. आरपी मिश्रा, जि़ला जज (रि.), ग़ाजिय़ाबाद.
10. आरएस चौबे, जि़ला जज (रि.), ग़ाजिय़ाबाद.
11. अरुण कुमार, अतिरिक्त जि़ला जज (रि.), ग़ाजिय़ाबाद.
12. साधना चौधरी, अतिरिक्तजि़ला जज (रि.), बाराबंकी.
13. चंदर प्रकाश, जि़ला जज (रि.), बाराबंकी.
14. आरसी सिंह, जि़ला जज (रि.), एटा.
15. सीके त्यागी, अतिरिक्त जि़ला जज (रि.), ग़ाजिय़ाबाद.
अस्थाना की संदेहास्पद स्थितियों में मौत : जांच बेनतीजा
सुप्रीमकोर्ट ने अस्थाना की संदेहास्पद मौत की न्यायिक जांच का आदेश दिया था, लेकिन उस जांच का क्या नतीजा निकला, किसी को भी नहीं मालूम. यहां तक कि अस्थाना की लाश की विसरा रिपोर्ट सीबीआई के सुपुर्द किए जाने का आदेश उत्तर प्रदेश सरकार को दिया गया था, लेकिन उसका भी कोई निष्कर्ष नहीं निकला. आ़खिरकार सीबीआई को कहा गया कि वह एम्स से अस्थाना की लाश की पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट की जांच कर इस बारे में अदालत को अवगत कराए, लेकिन अस्थाना की मौत का मसला रहस्य के गर्त में ही दबा रह गया. सीबीआई ने घोटाले के मामले में जजों से पूछताछ की, लेकिन अस्थाना की मौत पर किसी से बात करने या उस संदेहास्पद स्थितियों में मौत पर कोई बयान जारी करने से सीबीआई साफ़ बच गई. अजीबोगरीब बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट ने अस्थाना की लाश का अंतिम संस्कार करने से रोक तब लगाई, जब आनन-फानन उसकी लाश का अंतिम संस्कार कर दिया गया था. अस्थाना की पत्नी सुषमा अस्थाना को शाम के पांच बजे जेल से बाहर निकाला गया, जबकि उसके पहले ही अस्थाना की लाश का पोस्टमॉर्टम भी निपटा दिया गया. साढ़े छह बजते-बजते अस्थाना की लाश फूंक डाली गई. अस्थाना की पत्नी चिल्ला-चिल्ला कर कहती रही कि उसके पति की हत्या की गई है. देश के क़ानून मंत्री वीरप्पा मोइली भी अस्थाना की मौत पर हतप्रभ रह गए. उन्होंने सार्वजनिक तौर पर कहा कि ऐसे नाजुक समय में अस्थाना की मौत शॉकिंग है और इसकी गहराई से जांच होनी चाहिए और गहराई से जांच का नतीजा यह निकला कि अनैतिक धन से जज और जजों के परिवार मौज करते रहे. [चौथी दुनिया से साभार]
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें