बुधवार, 30 जून 2010

वीपी की राह पर दिग्विजय?

राजा मांडा के बाद अब राजा राघोगढ़ भावावेश में आकर अपनी पार्टी की ऐसी-तैसी करने पर तूले हैं। जिससे लगता है कि दिग्विजय सिंह अब वीपी सिंह बनने के चक्कर में है। 10 जनपथ के सूत्रों की माने तो दिग्गी राजा इनदिनों सोनिया गांधी के सबसे करीबी नेताओं में शामिल है। फिर ऐसी क्या वजह है कि वे लगातार लोकतांत्रिक अंदाज में पार्टी पर अप्रत्यक्ष हमला कर रहे हैं।
ताजा मामला भोपाल गैस त्रासदी को लेकर मचे बवाल का है। अपने राजनीतिक संरक्षक अर्जुन सिंह की वकालत करते हुए दिग्विजय सिंह ने अप्रत्यक्ष रुप से राजीव गांधी पर हमला बोल दिया। उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि यूनियन कारबाइड के पूर्व चेयरमैन वारेन एंडरसन को अमेरिका के दबाव में छोड़ा गया था। उन्होंने खुलकर न बोलने के बजाए संकेतों में बोल दिया कि अमेरिका का दबाव सीधा मध्य प्रदेश सरकार पर तो नहीं आया था, पर अमेरिका ने भारतीय प्रधानमंत्री से ही बातचीत की होगी। इसकी पुष्टि मध्य प्रदेश सरकार के तत्कालीन एक अधिकारी ने भी की है कि रोनाल्ड रीगन ने तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री राजीव गांधी को फोन किया था, तभी वारेन एंडरसन छोड़े गए थे। दिग्विजय सिंह के इस हमले के बाद कांग्रेस हाईकमान सकते में है। क्योंकि यह दिग्विजय सिंह का लगातार दूसरा हमला है। इससे पहले नक्सल नीति को लेकर गृह मंत्री पी चिंदबरम पर उन्होंने हमला किया था। उन्होंने नक्सलियों से निपटने के तौर तरीके पर टिप्पणी की थी और चिंदबरम को एरोगेंट तक कह दिया था। इसके बाद फिर कांग्रेस में हलचल मची थी। दिग्विजय सिंह ने पी चिंदबरम से मिलकर अपने ब्यान पर लीपापोती का प्रयास किया था। लेकिन इन सारों के पीछे खेल क्या है उसपर चर्चा शुरू हो गई है। आखिर दिग्विजय सिंह भी कोई नादान, मूर्ख या बच्चा नहीं है। जो कुछ भी वे बोल रहे है उन्हें पता है वे क्या बोल रहे है और इसका प्रभाव क्या होगा यह भी उन्हें बखूबी पता है। इसके बावजूद वो बोल रहे है। दिग्विजय सिंह कांग्रेस में प्रभावी राजपूत नेता है। मध्य प्रदेश से संबंधित और लंबा राजनीतिक अनुभव है। लंबे अर्से तक मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे है। पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह से उनकी साम्यता काफी है। वे पिछले कुछ समय से दलित, आदिवासी, मुस्लिम और पिछड़ों के हितों में ब्यान देते नजर आ रहे है। ठीक वीपी सिंह के मुस्लिम प्रेम की तरह ही उन्होंने आजमगढ़ दौरा किया। वहां जाकर बाटला हाउस एनकाउंटर पर प्रश्न उठाया। साथ ही यह बोल दिया कि जल्द ही राहुल गांधी आजमगढ़ का दौरा करेंगे। जबकि राहुल गांधी के दौरे की जानकारी न तो कांग्रेस को थी न ही खुद राहुल गांधी को। दिग्विजय सिंह की वीपी सिंह से एक और साम्यता है। वे वीपी सिंह की तरह ही राजपूत है और उन्हीं की तरह एक रियासत के राजा भी। वीपी सिंह मांडा के राजा थे तो दिग्विजय सिंह राघोगढ़ के राजा है। अंतर बस यही है कि यह रियासत मध्य प्रदेश में है तो एक रियासत उतर प्रदेश में है। दोनों नेताओं को कांग्रेस के संगठन और प्रशासन का लंबा अनुभव है। दिग्विजय सिंह अगर मध्य प्रदेश मे लंबे समय मुख्यमंत्री रहे तो वीपी सिंह भी उतर प्रदेश में मुख्यमंत्री रहे और केंद्र में मुख्यमंत्री रहे। मुद्दों को लेकर भी दोनों नेताओं में साम्यता है। वीपी सिंह ने आर्थिक मुद्दों पर राजीव गांधी की सरकार को घेर लिया था और वे खुद उस सरकार में मंत्री थे। दिग्विजय सिंह भी संगठन में रहते हुए सरकार की आर्थिक नीतियों को ही घेर रहे है। जिस तरह से नक्सल अभियान पर सरकार की नीतियों को राजा ने घेरा है, वो एक तरह से पी चिंदबरम की प्रो कारपोरेट नीति का खुला विरोध है। अब भोपाल गैस त्रासदी के अभियुक्त एंडरसन को लेकर जिस तरह से दिग्विजय सिंह ने हमला बोला वह हमला सीधे राजीव गांधी पर है।
कांग्रेसी हल्कों में इस बात की जोरदार चर्चा है कि दिग्विजय सिंह ने कांग्रेस के कई राजपूत नेताओं को अपने पाले में कर रखा है। हालांकि दिग्विजय सिंह वीपी सिंह की तरह फकीर की इमेज में नहीं है पर राजपूत नेताओं से उनकी प्रियता काफी है। दिग्विजय सिंह मृदुभाषी है और कहा जाता है कि दिग्गी राजा का काटा पानी भी नहीं मांगता। इसलिए दिग्गी राजा के इस ब्यान के कई अर्थ है, उनका ब्यान कोई नादानी है। उधर दिग्गी राजा के इस ब्यान के बाद कांग्रेसी ब्राहम्ण सोनिया गांधी को यह समझाने में लग गए है कि रियासती राजाओं को ज्यादा तव्वजो देना खतरे से खाली नहीं। कभी भी हमला हो सकता है। विश्वनाथ प्रताप सिंह भी रियासती थे। राजीव गांधी को इस तरह से मारा कि सता में दुबारा नहीं आ पाए। अर्जुन सिंह रियासती थे, सोनिया गांधी के नियंत्रण में चलने वाली सरकार को पांच साल तक परेशान रखा। कभी ओबीसी आरक्षण को लेकर तो कभी अल्पसंख्यकों के मुद्दों पर। दिग्विजय सिंह भी रियासती है। ये भी अल्पसंख्यक,ओबीसी, आदिवासी, नक्सल जैसे मसलों पर अपनी ही सरकार को घेर रहे है। आने वाले दिनों में अच्छे संकेत तो नहीं दिखते। अब देखना यह है कि ब्राहम्ण नेताओं की दिग्विजय के खिलाफ चलाई जा रही मुहिम क्या गुल खिलाती है।

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