बुधवार, 30 जून 2010

मामा की 'मेहरबानियोंÓ को कलंकित करते अनूप

अटल बिहारी वाजपेयी की जिंदगी में विवाद और अपवाद तो बहुत आये मगर कलंक का सामना उन्हे अब करना पड़ रहा है। इस कलंक का नाम अनूप मिश्रा है। अनूप मिश्रा भाजपा के नेता हैं पार्टी के बड़े पदों पर रह चुके हैं और मामाजी का नाम जितना अनूप मिश्रा ने भुनाया है उतना तो और किसी ने नही भुनाया होगा। अटलजी के पूर्वजों और वंशजों में अनूप मिश्रा बहुत ताकतवर माने जाते हैं और अटलजी कहते हों या न कहते हों, अटलजी की परावर्तित आभा उनपर पड़ी हुई है इसलिए जब भाजपा को ताकत मिलती है तो उसमें अनूप मिश्रा की भागीदारी हमेशा हो जाती है।
अपना परिवार अटलजी ने कभी नहीं बसाया लेकिन उनकी बहुतों पर कृपा होती रही है। उनमें से कुछ पात्र थे और ज्यादातर अपात्र थे। अपात्रों की इस सूची में अचानक अनूप मिश्रा का नाम मेरिट लिस्ट में आ गया है। अनूप मिश्रा ने माल काटा, अपने आपको राष्ट्रीय नेता के तौर पर स्थापित करने की कोशिश की, मामाजी प्रधानमंत्री बने तो अनूप मिश्रा नेहरू युवा केंद्र के उपाध्यक्ष के तौर पर केंद्र के उपमंत्री का दर्जा पाकर दिल्ली में विराज गये। यहां के उनके कामों पर इतना विवाद हुआ और हिसाब किताब में इतनी गड़बड़ हुई कि आखिरकार रजिस्टर ही गायब करने पड़े। जल्दी ही अनूप मिश्रा को एहसास हो गया कि उनके अंदर मामाजी यानी अटल बिहारी वाजपेयी जैसे राजनेता और राजनायक बनने की क्षमता नहीं है। अगर अपने दम पर राजनीति करते तो शायद नगर निगम पार्षद भी नहीं होते। अब अटलजी का नाम जुड़ा है तो भाजपा और सत्ता जब भी करीब आते हैं तो अनूप मिश्रा की गाड़ी पर लाल बत्ती लग जाती है। यह जानने के लिए बहुत ज्ञानी होने की जरुरत नहीं है कि राजनैतिक प्रताप और महिमा बहुत क्षणभंगुर होती है। अनूप मिश्रा जैसे लोकल नेता भी इसे जानते हैं। अटल जी का परिवार में रहने का हमेशा से आग्रह रहा है और ग्वालियर की शिंदे की छावनी की तंग गलियों में प्रधानमंत्री रहने और उसके बाद भी उनका काफिला नहीं जा सकता था। इसलिए वे अनूप मिश्रा के यहां ही ठहरते थे। अनूप मिश्रा को इस बात ने भी बहुत ताकत दी। अब बूढ़े होने लगे हैं और कारोबार का शौक लग गया है। अनूप मिश्रा जानते हैं कि आज की तारीख में शिक्षा से अच्छा कोई कारोबार नहीं है। इसलिए उन्होंने एक बड़ा कॉलेज खोला और वह भी ग्वालियर के पास एक गांव में खोला।
अब कॉलेज को विश्वविद्यालय बनवाना था और इसके लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के नियमों के अनुसार ज्यादा जमीन चाहिए थी तो बेला गांव की जमीन पर कब्जा किया गया। गांव और कॉलेज के बीच से जो मुख्य रास्ता जाता है उस पर चाहरदीवारी बनने लगी और इसके लिए बड़ी-बड़ी मशीने आ गयीं। गांव के लोगों को पता लगा तो पूरा गांव विरोध करने के लिए जमा हो गया। तब जाकर अनूप मिश्रा के बेटे साले और भाई ने बताया कि उन्होंने तो पूरा गांव सरकार से लीज पर ले लिया है। गांव वाले मानने को तैयार नहीं थे। गांव के सारे लोग महिला पुरुष बच्चे और बूढ़े जमा हो गये थे और इनके आगे नेतृत्व करने के लिए बीस साल का बारहवीं क्लास का भीकम सामने आया और उसने महाबली अनूप मिश्रा के गिरोह से सवाल करने की हिम्मत की। पहले तो उसे धक्के मारे गये मगर फिर अचानक भीकम के माथे पर पिस्तोल अड़ा कर गोली दाग दी गयी। उसका भेजा जमीन पर बिखर गया। एक दिन बाद ही परिवार में शादी थी और अचानक शादी का माहौल शोक में बदल गया।
पहले गोलियां हवा में चलाई गयीं थी मगर गांव वाले जब नहीं डरे तो फिर जान लेने का फैसला किया गया। ज्ञान, चरित्र और एकता पर जोर देने वाली पार्टी के मंत्रीजी का पूरा खानदान शराब में धुत था। मौत आयी और इसके बाद भी पुलिस खामोश थी क्योंकि अब मारने वाले सीधे मुख्यमंत्री और भाजपा के सबसे बड़े नेता अटल बिहारी वाजपेयी का नाम ले रहे थे।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान उस समय लंदन से दिल्ली की उड़ान में थे। पुलिस वाले रिपोर्ट तक नहीं लिख रहे थे। लाश जमीन पर पड़ी थी। गांव वाले रो-रो कर थक गये थे। मुख्यमंत्री के आधी रात से कुछ पहले भोपाल उतरने के पंद्रह मिनट के भीतर एफआईआर दर्ज हो गयी। शिवराज सिंह चौहान स्वंयसेवक हैं और नाम की धौंस में नहीं आते। अनूप मिश्रा के परिवार ने इस बार जो किया वह तो अक्षम्य है ही, एनडीए की सरकार के दौरान तो अनूप ने बकायदा एक काउंटर खोल रखा था जहां केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों से काम करवाने के बदले बकायदा वसूली की जाती थी। कम लोग जानते हैं कि बाबू लाल गौर को जब मुख्यमंत्री पद से हटाया गया तो अनूप मिश्रा भी मुख्यमंत्री बनने के दावेदारों में से थे। मगर अटलजी जानते थे कि उनके भांजे की असली औकात क्या है इसलिए उन्होंने किसी से कुछ नहीं कहा। स्थिर मन वाले और काम करना जानने वाले शिवराज सिंह मुख्यमंत्री बने।
अटल जी की तबियत ठीक नहीं है मगर भोपाल और मध्यप्रदेश के दूसरे इलाकों में बहुत सारे लोग ऐसे मिल जाएंगे जिनके सामने अनूप मिश्रा अटल जी के दिल्ली के घर का नंबर लगाते हैं और उनके सचिव जिंटा से लंबी बात करके कहते हैं कि मैंने मामाजी से बात कर ली है। जो लोग दुनियादारी की असलियत नहीं जानते वो जरूर प्रभावित हो जाते हैं। अनूप मिश्रा की दुकानदारी चलती रहती है। वैसे आपकी जानकारी के लिए जनता को दवाइयों की आपूर्ति के लिए केंद्र सरकार से जो कोष मध्यप्रदेश के स्वास्थ्य विभाग को गया था, उसके हिसाब में बड़ी गड़बड़ी है। स्वास्थ्य मंत्री अनूप मिश्रा हैं जो अब शिक्षा के धन कुबेर होना चाहते हैं। अनूप मिश्रा ने जो किया और उनके परिवार के लोगों ने जो लाश गिराई, उम्मीद है कि अटलजी के जीवन इतिहास में यह बात हाशिए पर भी दर्ज नहीं की जाएगी। अटलजी का नाम इस्तेमाल करके बहुत लोगों ने दुकानदारी चलाई है मगर भांजे अनूप ने तो बाकायदा डाका ही डाल दिया।

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