बुधवार, 30 जून 2010

मप्र को अंधेरे में धकेलने कीसाजिश

मध्य प्रदेश इन दिनों बिजली संकट दिन पर दिन गहराता जा रहा है। यहां कि विद्युत उत्पादन इकाईयों को केन्द्र सरकार द्वारा न तो समय पर और न ही अच्छी किस्म का कोयला मुहैैया कराया जा रहा है जिससे कई उत्पादन इकाईयां बंद पड़ी है। ऐसे में केन्द्र सरकार यहां बन रही महेश्वर नर्मदा जल परियोजना पर भी आंख तरेरे हुए हैं। केन्द्र सरकार की नीयत को तो देखकर ऐसा लगता है जैसे वह मध्यप्रदेश को अंधेरे में धकेलने की साजिश कर रही है।
महेश्वर नर्मदा जल परियोजना के निर्माण का मामला इतना तूल पकड़ गया है कि इसको लेकर केंद्र और मध्य प्रदेश सरकार में जमकर तनातनी चल रही है। यहां तक कि बिना सोचे समझे और तथ्यों को जाने बगैर प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने परियोजना से प्रभावित लोगों के पुनर्वास को लेकर इस पर आगे काम बंद करने के निर्देश दे दिए थे। हालांकि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर बाद में काम चालू करा दिया गया। लेकिन प्रधानमंत्री के इस दुस्साहस पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भड़क उठे हैं। उन्होंने प्रधानमंत्री को मध्यप्रदेश के विकास के प्रति अनुदार और संवेदनहीन बताया। लेकिन, सच्चाई मुख्यमंत्री को भी मालूम है। नर्मदा बचाओ आंदोलन से जुड़े कार्यकर्ताओं को सरकारी तंत्र की तुलना में इस क्षेत्र की समस्याओं की कहीं ज़्यादा अच्छी समझ है। वे इन समस्याओं के समाधान के व्यवहारिक तरीके भी जानते हैं, लेकिन भाजपा सरकार से उनके संबंध अच्छे नहीं हैं। इसीलिए सरकार उनकी सुनना नहीं चाहती है। आंदोलन की नेता मेधा पाटकर को तो मुख्यमंत्री एवं भाजपा के बड़े नेता प्रदेश और विकास विरोधी ठहरा चुके हैं, इसीलिए अब सरकारी अफसर उनकी बातों पर ध्यान देना जरूरी नहीं समझते, लेकिन जनता को राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है। उसे तो अपनी समस्याओं से मतलब होता है।
मध्य प्रदेश में बिजली और पानी का संकट है, इसीलिए राज्य सरकार अपने जल संसाधनों का भरपूर उपयोग करना चाहती है। वह नदी जल का उपयोग सिंचाई और बिजली दोनों के लिए करना चाहती है। फिर नर्मदा जल के उपयोग का भी सवाल है। नर्मदा प्राधिकरण के पंचाट के अनुसार, मध्यप्रदेश अभी तक अपने हिस्से के जल का उपयोग नहीं कर पाया है। सरकार की सुस्ती एवं लापरवाही के चलते अगले दस सालों में भी मध्य प्रदेश अपने हिस्से के नर्मदा जल का उपयोग नहीं कर पाएगा। ऐसे में गुजरात और महाराष्ट्र को नर्मदा के पानी के उपयोग का अधिकार मिल जाएगा।
गुजरात ने तो प्राधिकरण के फैसले के दिन से ही नर्मदा जल के अधिकतम उपयोग के लिए तैयारी शुरू कर दी थी और अब वह नर्मदा का पानी कच्छ के मरुस्थल तक ले जाने की स्थिति में आ गया है। फिर भी मध्य प्रदेश की ओर से नर्मदा जल के उपयोग के लिए अच्छी शुरुआत हो रही है, लेकिन जल्दबाजी में जो कुछ हो रहा है, उससे सरकार अपने लिए नई-नई समस्याएं पैदा कर रही है।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह को पत्र लिखकर बताया है कि नर्मदा की महेश्वर परियोजना से प्रतिदिन 7.2 लाख यूनिट बिजली पैदा होगी, जबकि राज्य की औसत खपत 1,000 लाख यूनिट प्रतिदिन है। इससे स्पष्ट है कि महेश्वर से राज्य की बिजली खपत का एक प्रतिशत से भी कम अंश प्राप्त होगा। फिर भी इसे अत्यंत महत्वपूर्ण और उपयोगी बताया जा रहा है।
केन्द्र सरकार का आरोप है कि बिजली उत्पादन के लिए राज्य सरकार ने महेश्वर परियोजना से विस्थापित होने वाले 61 गांवों के 70 हजार से अधिक परिवारों के पुनर्वास कार्यों को पूरा कराने पर विशेष ध्यान नहीं दिया। यही कारण है कि परियोजना से विस्थापित होने वाले ग्रामीण अपने अस्तित्व की लड़ाई लडऩे के लिए राजनेताओं और राजनीतिक दलों पर कोई भरोसा नहीं कर रहे हैं। वे नर्मदा बचाओ आंदोलन के झंडे तले अपनी आवाज उठा रहे हैं।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने चालाकी का परिचय देते हुए सरकार के लिए समर्थन जुटाने का भी प्रयास किया। उन्होंने कहा कि महेश्वर परियोजना से इंदौर शहर को प्रतिदिन 300 मिलियन लीटर पानी मिल सकेगा और 2024 तक की पानी की जरूरत इससे पूरी हो सकेगी, लेकिन विस्थापितों के पुनर्वास के बारे में मुख्यमंत्री खुलकर कुछ नहीं बोलते। या यूं कहें कि बोलने से बचना चाहते हैं।
नर्मदा बचाओ आंदोलन के नेता आलोक अग्रवाल एवं चितरूपा पालित ने एक नया गले उतरने लायक तर्क छोड़ा है कि मुख्यमंत्री परियोजना के निर्माण कार्य में लगे पूंजीपति ठेकेदारों के हितों की ज़्यादा चिंता कर रहे हैं। इसीलिए वह नर्मदा आंदोलन और यहां तक कि अपनी मर्यादा भूलकर देश के प्रधानमंत्री के खिलाफ भी नासमझी भरे बयान खुलकर दे रहे हैं। आलोक एवं चितरूपा ने राज्य सरकार पर आम जनता की अपेक्षा निजी परियोजनकर्ता के हितों की चिंता किए जाने का आरोप लगाते हुए दावा किया कि परियोजनकर्ता को 400 करोड़ रुपये की गारंटी इस शर्त पर दी गई थी कि उसकी होल्डिंग कंपनी द्वारा मध्य प्रदेश औद्योगिक विकास निगम से लिए गए पैसे वापस करने होंगे। जबकि गारंटी मिलने के बाद कंपनी द्वारा दिए गए 55 करोड़ रुपये के 20 चेक बाउंस हो गए। निगम द्वारा कंपनी के खिलाफ 20 आपराधिक प्रकरण भी कायम किए गए। उन्होंने कहा कि इसके बावजूद कंपनी से न तो जनता का पैसा वापस लिया गया और न ही आज तक गारंटी रद्द की गई। चितरूपा पालित ने कहा कि परियोजनकर्ता ने विद्युत मंडल एवं नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण की 130 करोड़ रुपये की संपत्तियों का पैसा पिछले 14 सालों में आज तक सरकार को नहीं दिया। परियोजनकर्ता के अनुसार, उक्त संपत्तियां अब उनके नाम पर हो गई हैं। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार जवाब दे कि बिना पैसा लिए उक्त संपत्तियां परियोजनकर्ता के नाम कैसे हो गईं? उन्होंने पर्यावरण मंत्रालय के आदेश का पालन करते हुए प्रभावितों का संपूर्ण पुनर्वास किए जाने, परियोजनकर्ता को दी गई गारंटी रद्द करने, विद्युत मंडल एवं नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण की संपत्तियों का पैसा परियोजनकर्ता से वसूलने और विद्युत क्रय समझौता रद्द करने की मांग की है।
मध्य प्रदेश की महेश्वर, पेंच परियोजनाओं और कोयले के ब्लाक के दोहन पर रोक लगाने पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने केंद्र सरकार पर और विकास विरोधी होने के आरोप लगाए हैं तथा इसे प्रदेश को अंधेरे में धकेलने की साजिश बताया। उनका कहना है कि कहा कि महेश्वर परियोजना के निर्माण कार्य पर रोक लगाने का कोई कारण नहीं है। इस बारे में वह पहले ही केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री को पत्र लिख चुके हैं। अब लगता है कि वन मंत्रालय कांग्रेस पार्टी और नर्मदा बचाओ आंदोलन के दबाव में काम कर रहा है। यदि महेश्वर परियोजना पर काम बाधित नहीं होता तो जून 2010 में जल विद्युत परियोजना की पहली इकाई शुरू हो सकती थी, लेकिन रोक लग जाने से प्रदेश में 400 मेगावाट बिजली की कमी होगी और इसके लिए केंद्र सरकार ही जिम्मेदार होगी। उन्होंने कहा कि पेंच की दो ताप विद्युत इकाइयों को पानी देने से रोका गया है, इससे भी बिजली उत्पादन में कमी आएगी।
कांग्रेसी मुख्यमंत्री की इन दलीलों को व्यर्थ बताते हुए कहते हैं कि महेश्वर परियोजना का काम वैसे भी धीमी गति से चल रहा है। फिर पुनर्वास कार्य में तो सरकार ने कोई सक्रियता दिखाई नहीं, जबकि परियोजना की शर्त यही थी कि निर्माण कार्य के साथ-साथ विस्थापितों के पुनर्वास का काम भी पूरा कर लिया जाएगा, लेकिन अभी तक केवल एक गांव में पुनर्वास पैकेज लागू हो पाया है। पांच गांवों में पैकेज मान लेने के बाद भी पुनर्वास कार्य शुरू नहीं हुए। यदि मुख्यमंत्री की बात मान ली जाए तो बिना पुनर्वास के यदि जून में महेश्वर की पहली इकाई चालू होती है, तो आगामी बरसात में परियोजना के डूब क्षेत्र में 50 से ज्यादा गांव बिना पुनर्वास के ही डूब जाएंगे, इसकी चिंता मुख्यमंत्री को नहीं है।
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुरेश पचौरी का कहना है कि मुख्यमंत्री ने केंद्र सरकार को यह भरोसा दिलाया था कि महेश्वर परियोजना से प्रभावित अंतिम व्यक्ति का पुनर्वास होने तक बांध में पानी का भराव नहीं किया जाएगा, लेकिन शायद वह अपनी बात भूल गए। उन्होंने विस्थापितों को उचित पुनर्वास देने का अपना वायदा पूरा नहीं किया और अब वह परियोजना को जल्द पूरा करके 60 गांवों में बसे 70 हजार से ज़्यादा परिवारों को भगवान भरोसे छोडऩा चाहते हैं। अपनी गलतियों और कमजोरियों के लिए केंद्र को जिम्मेदार बताना भाजपा की फितरत है।

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