शनिवार, 10 जुलाई 2010

आखिर सालों बाद क्यों जागा जमीर?

पाटी विद द डिफरेंस का नारा देने वाली भाजपा अब पार्टी विद इन डिफरेंस होती जा रही है। दिल्ली से लेकर भोपाल तक पार्टी संगठन में अनुशासनहीनता की घटनायें आये दिन बढ़ती जा रही हैं। आज हालात यह हैं कि अनुशासनहीन नेताओं के दबाव में आकर उन्हें महत्वपूर्ण जिमेदारियां सौंपी जा रही है। लिहाजा पार्टी में प्रेशर पॉलिटिक्स
शुरू हो गयी
है। मध्य प्रदेश भाजपा में तो स्थिति और भी दयनीय है। स्वर्णिम मध्य प्रदेश बनाने में लगे प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान के राज में ऐसा लगता है जैसे भ्रष्टाचार यहां आचार-विचार का एक आवश्यक अंग बन गया है... मंत्रियों, नेताओं के साथ ही नौकरशाह, अधिकारी, कर्मचारी इसे बढ़ावा देने में पीछे नही है.. सरकार भ्रष्टाचार के मामले में आये दिन बदनाम हो रही है...।
भाजपा नेताओं कि माने तो बदनामी का दंश झेल रही मप्र सरकार का जमीर जाग गया है और वह अब किसी भी दोषी को बख्शेगी नहीं। प्रदेश के दागी मंत्रियों पर कार्रवाई की जमीन तैयार हो गई है। रतलाम में प्रदेश भाजपा कार्यसमिति की बैठक में मुख्यमंत्री को कार्रवाई की छूट दे दी गई है। पार्टी महासचिव और प्रदेश प्रभारी अनंत कुमार ने सरकार को फ्री हैंड देते हुए कहा है कि वे दागी मंत्रियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए स्वतंत्र हैं। केंद्रीय नेतृत्व उनके साथ है।
शायद यही कारण है कि जिस तरह कहानियां खत्म होने से पहले कई मोड़ लेती हैं, उसी तरह शिवराज कबीना के हाईप्रोफाइल मंत्री अनूप मिश्रा की कहानी का भी हश्र हो गया है। यानी केंद्रीय नेतृत्व की धमकी के साथ ही सरकार के साथ उनका भी जमीर जाग गया और उन्होंने अपना इस्तीफा आधे मन से दे दिया। इस्तीफा दिया या उनसे लिया गया यह तो शिवराज सिंह चौहान या स्वयं अनूप मिश्रा ही बता सकते हैं। हालांकि भाजपा सूत्रों की माने तो उन्हें बचाने के लिए जितने प्रयास हुए, उतने ही प्रयास उन्हें मंत्री पद से विदा करने के भी हुए। यानि दोनों तरफ से जोर बराबर का ही लगा।
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के भांजे होने के नाते श्री मिश्रा की गिनती प्रदेश भाजपा के कद्दावर नेताओं में होती है। उनके इस्तीफे की खबर से राजधानी भोपाल के राजनीतिक और प्रशासनिक हलकों से लेकर दिल्ली तक खलबली मच गई। इसके साथ ही अन्य दागी मंत्रियों के भविष्य को लेकर कयास और अटकलों का दौर भी चल पड़ा। लेकिन पार्टी ने यह कह कर अटकलों पर विराम लगा दिया कि मिश्रा ने इस्तीफा देकर नैतिकता का परिचय दिया है। यदि यह बात मान भी ली जाए तो क्या और मंत्रियों में नैतिकता नहीं है कि बड़े-बड़े भ्रष्टाचार के आरोप लगने के बाद भी मंत्रियों ने इस्तीफा नहीं दिया। इससे ऐसा लगता है कि अनूप मिश्रा ने किसी न किसी दवाब में इस्तीफा दिया है, और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने उसे आनन-फानन में स्वीकार कर लिया। आखिर अनूप मिश्रा का इस्तीफा स्वीकार करने का मापदंड क्या है? यदि थाने में दर्ज एफआईआर को ही आधार बनाया गया है तो क्या यह उचित है।
सरकार के प्रवक्ता डा. नरोत्तम मिश्रा ने भी खुद स्वीकार किया किकेवल आरोप लगने से कोई दोषी नहीं हो जाता। जिस दिन ग्वालियर जिले के बेलागांव में गोली बारी की घटना से भीकन कुशवाहा नामक युवक की मौत हुई, उस दिन अनूप मिश्रा उज्जैन में अधिकारियों की बैठक ले रहे थे। यदि यह माना जाए कि अनूप मिश्रा ने हत्या का षडयंत्र रचा है तो अभी उस मामले की जांच चल रही है। फिर भी इस्तीफा क्यूं।
यदि शिकायत को ही आधार बनाकर इस्तीफा लिया गया है तो वाणिज्य व उद्योग मंत्री कैलाश विजयवर्गीय तथा आदिम जाति कल्याण मंत्री कुंवर विजय शाह ने नैतिकता के आधार पर इस्तीफा क्यों नहीं दिया। इस तरह अनूप के त्यागपत्र ने शिवराज कैबिनेट के दूसरे दागी मंत्री और 100 करोड़ के जमीन घोटाले में लोकायुक्त जांच का सामना कर रहे कैलाश विजयवर्गीय की भी परेशानी बढ़ा दी है। पार्टी में खुली धड़ेबाजी के बीच विजयवर्गीय पर नैतिकता के नाते मंत्री पद छोडऩे का दबाव बनने लगा है। विपक्ष ने भी घोटालों की लंबी फेहरिस्त के आधार पर घेराबंदी तेज कर दी है। निगाहें अब आलाकमान से फ्रीहैंड ले चुके मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान और प्रदेशाध्यक्ष प्रभात झा पर है। लोगों का सीधा सवाल यह है कि जब बिना जांच महज एफआईआर के आधार पर मिश्रा से त्यागपत्र मांगा जा सकता है तो विजयवर्गीय मामले में जांच रिपोर्ट का इंतजार क्यों? विजयवर्गीय पर इंदौर के महापौर से प्रदेश के मंत्री रहते कई विवादित निर्णय लेने और चहेतों को फायदा पहुंचाने का आरोप है। उनसे जुड़े घपले घोटालों की फेहरिश्त बहुत लंबी है।
श्री विजयवर्गीय पर आरोप है कि इंदौर जिले के नंदा नगर में सुगनी देवी कालेज से लगी जमीन रमेश मेंदोला की समिति को दिलाने में मदद की। रमेश मेंदोला कैलाश विजयवर्गीय के सबसे खास मित्र हैं। इसी तरह आदिम जाति कल्याण मंत्री विजय शाह पर उनकी मैनेजर की पत्नी ने आरोप लगाया था कि पति मंत्री के साथ रात बिताने के लिए दवाब डालता है। खंडवा कोतवाली में महिला ने शपथ पत्र के साथ शिकायत की थी, लेकिन पुलिस ने महिला के पति के खिलाफ प्रताडऩा का मामला दर्ज कर लिया, लेकिन मंत्री के खिलाफ शिकायत दर्ज नहीं की गई।
शिकायत को ही आधार बनाकर यदि इस्तीफा लिया जाना है तो लोकायुक्त जांच में घिरे आधा दर्जन मंत्रियों से भी इस्तीफा ले लेना चाहिए। इस मामले में पंचायत व ग्रामीण विकास मंत्री गोपाल भार्गव की रतलाम तथा आदिम जाति कल्याण मंत्री विजयशाह की हाल ही में ग्वालियर में की गई टिप्पणी गौर करने लायक है कि जांच पूरी होने के पहले केवल शिकायत के आधार पर किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। श्री भार्गव ने तो यहां तक कहा कि यदि शिकायत कार्रवाई का आधार है तो पूरा मंत्रालय खाली हो जाएगा।
इसी तरह विधायक कमल पटेल और अशोक वीर विक्रम सिंह की पत्नी विधायक आशारानी को पार्टी से निलंबित करने की भी पटकथा तैयार की जा रही है। श्री पटेल हत्या के षडयंत्र के मामले में जेल में हैं, जबकि विधायक आशारानी सिंह नौकरानी तिज्जी बाई की मौत के मामले में फरार हैं। सूत्रों का कहना है कि इंदौर के विधायक रमेश मेंदोला के मामले को लेकर भी हाईकमान गंभीर है। जेल में बंद इंदौर के सबसे बड़े भू माफिया बाबी छावड़ा के साथ श्री मेंदोला की दोस्ती के संबंध में हाईकमान को अवगत कराया गया है।
लेकिन यह पूरा प्रहसन सिर्फ शिवराज सिंह चौहान सरकार के ताकतवर होने से वाबस्ता नहीं है, बल्कि हाल के दिनों में ही भाजपा संगठन की ताकत में इजाफा होने का ज्यादा बड़ा और पुख्ता सबूत है।
पार्टी के अंदरखाने बताते हैं कि नवागत प्रदेशाध्यक्ष प्रभात झा ने दागी मंत्रियों को कबीना से बाहर का रास्ता दिखाने के लिए कई बार परोक्ष-अपरोक्ष तौर पर सत्ता साकेतों पर दबाव डाला था। पार्टी में शुचिता के आग्रह को लेकर उन्होंने लंबे समय से दिल्ली में हाईकमान का मानस बदलने का प्रयास भी जारी रखा था। इसका असर रतलाम में प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में पहले ही दिन नजर भी आ गया, जब मप्र के प्रभारी और राष्ट्रीय महासचिव अनंत कुमार ने मुख्यमंत्री को दागी मंत्रियों और विधायकों पर कड़ी कार्रवाई करने को कह डाला और उन्हें फ्री हैंड भी दे दिया। जाहिर है गेंद चतुराई से शिवराज के पाले में डाल दी गई थी।
साफ नजर आया कि पूरे मामले की स्क्रिप्ट काफी पहले ही लिख दी गई थी। इसके बाद यह साफ हो गया था कि अब अनूप मिश्रा को मंत्री पद से विदा करने की पूरी जाजम बिछ चुकी है। लेकिन अनूप अकेले ही नहीं है जो नैतिकता की चपेट में आते हैं। पार्टी के पास कुछ समय तक यह तर्क है कि उनके खिलाफ मामले जांच में विभिन्न स्तरों पर हैं और वे सिविल किस्म के मामले हैं। लेकिन बचाव की यह रणनीति भाजपा के कितने काम आएगी यह आने वाला समय में ही साफ हो पाएगा। क्योंकि आरोपों के कटघरे में खड़े मंत्रियों की सूची में अजाक मंत्री विजय शाह, कैलाश विजयवर्गीय, नरोत्तम मिश्रा, नागेन्द्रसिंह आदि कई नाम हैं।
मिश्रा के इस्तीफे की खबर आई पार्टी नेताओं के एक बड़े वर्ग ने इस मुद्दे पर सत्ता व संगठन में शीर्ष पदों पर बैठे लोगों की घेराबंदी कर दी। इन लोगों ने मिश्रा का तकाजा देते हुए कहा कि अगर घटना के समय बेलगांव में न होने के बावजूद मिश्रा से इस्तीफा लिया गया तो विजयवर्गीय के खिलाफ जांच हो रही है फिर भी उन्हें क्यों बख्शा जा रहा है? उन्हें न हटाने के लिए मुख्यमंत्री पर क्या किसी का दबाव है? इंदौर में अपनी मर्जी के मुताबिक पार्टी चलाने के लिए विजयवर्गीय ने खुद को हमेशा संगठन से ऊपर माना। संगठन पर उनके दबदबे के चलते पार्टी नेतृत्व चाह कर भी उनका बाल बांका नहीं कर पाया। लोकसभा चुनाव के दौरान उन्होंने पार्टी की अधिकृत प्रत्याशी सुमित्रा महाजन के खिलाफ जिस तरह खुली बगावत की और अपने कट्टर समर्थक विधायक रमेश मेंदोला को आगे कर पार्टी को परेशानी में डाला वह किसी से छिपा नहीं। सब कुछ साफ होने के बाद भी कैलाश-मेंदोला का कुछ नहीं बिगड़ा। तमाम सबूतों के बावजूद जिम्मेदार लोग इनके खिलाफ कार्रवाई की हिम्मत नहीं जुटा पाए। संगठन के इसी लचर रवैये ने उनके हौंसले बुलंद किए।
उधर लोक स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा मंत्री अनूप मिश्रा ने इस्तीफे के बाद चुप्पी साध ली है जिसके कारण राजनीतिक गलियारों में कयासों को दौर शुरू हो गया है। अब वे दिल्ली जाकर पार्टी के वरिष्ठ नेताओं से मिलेंगे। शिवराज मंत्रिमंडल से त्यागपत्र देने के बाद मिश्रा अपने सिपहसालारों से लगातार मंथन कर रहे हैं। राजनैतिक प्रेक्षक मानते हैं कि यह तूफान आने के पहले का सन्नाटा है। प्रेक्षकों का मानना है कि अनूप मिश्रा चुप बैठने वाले नेताओं में नहीं है।
दागियों के मामले में कुलीनों का कुनबा कही जाने वाली भाजपा में खंदक की लड़ाई शुरू हो गई है। स्वास्थ्य मंत्री अनूप मिश्रा के त्यागपत्र के बाद संगठन में दागी कौन? इस सवाल को लेकर नेता भी बंटे हुए हैं। भाजपा की साख पर बट्टा लगाने वालों पर कार्रवाई के प्रदेश प्रभारी राष्ट्रीय महासचिव अनंत कुमार के निर्देश और मुख्यमंत्री समेत नौ मंत्रियों के विरुद्ध चल रही जांच में लोकायुक्त पीपी नावलेकर द्वारा ढिलाई न बरतने की बात के बाद भाजपा में सफाई अभियान छिडऩे की चर्चा गर्म है। लोकायुक्त के दायरे में आए मंत्री मुख्यमंत्री से लेकर संगठन तक सफाई दे रहे हैं। विजयवर्गीय सहित अन्य दागियों के मामले में मुख्यमंत्री से लोकसभा की नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज और राष्ट्रीय महासचिव नरेंद्र सिंह तोमर ने चर्चा की। सीएम हाउस में हुई इस बातचीत में प्रदेशाध्यक्ष प्रभात झा भी शामिल हुए। इसके बाद तोमर और माखन सिंह ने भी अलग से चर्चा की। इधर संसदीय कार्य मंत्री नरोत्तम मिश्रा संगठन और मुख्यमंत्री के बीच संपर्क सूत्र बने हुए थे।
भाजपा के ही वरिष्ठ नेता इसे प्रदेश संगठन के साथ ही प्रदेश भाजपा के लिए भी ठीक नहीं मानते। इनका मानना है कि प्रदेश भाजपा के साथ ही केन्द्रीय भाजपा संगठन तक सरे आम भाजपा संविधान की धज्जियां उड़ा रहे हैं। राजनीतिक विलेश्कों का यह भी मानना है कि पहले भाजपा के पदाधिकारी कम संसाधनों में ज्यादा कार्य करते थे लेकिन अब भाजपा में भी बदलाव आया है और पदाधिकारी ज्यादा आरामतलब हो गये हैं। सत्ता का स्वाद का स्वाद चख लेने के बाद पार्टी कार्यकर्ता और नेता विचारों के लिए त्याग के बजाय स्व हित में भोगविलास के संसाधन जुटाने में सक्रिय हैं। यही कारण है कि पार्टी को दान दातव्य में मिले धन को भाजपा पदाधिकारी मुक्त हाथों खर्च करने से भी गुरेज नहीं कर रहे हैं। लेकिन प्रदेश भाजपा ने संविधान को दरकिनार कर यहां अपना ही संविधान लागू होता दिखता है।
मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में दोबारा भारतीय जनता पार्टी की सरकार को बने एक साल का अरसा बीत चुका है और इस पंचवर्षीय में सरकार विकास कार्य और नई घोषणायें करने की स्थिति मे नहीं लगती। प्रदेश में पूर्व से संचालित एवं घोषित योजनायें ही इतनी है कि उनके संचालन के लिये प्रदेश सरकार के पास खजाने में पर्याप्त धन नहीं है। अनेक केंद्र द्वारा संचालित योजनाओं में एवं मदों में प्रदेश सरकार को जो अंशदान देना होता है वह भी सरकार देने की स्थिति में नहीं है। प्रदेश सरकार द्वारा पूर्व के कार्यकाल में घोषित की गई जननी सुरक्षा योजना, कन्यादान योजना, दीनदयाल उपचार योजना, लाडली लक्ष्मी योजना, सायकल वितरण योजना जैसी अनेकों जनहितकारी योजनाओं के लिये सरकार को धन उपलब्ध कराना भी मुश्किल पड़ रहा है। आगामी कार्यकाल सरकार को केवल प्रदेश की जनता को लोक लुभावने वायदों पर ही गुजारना है। इसी कार्यशैली का परिचय देते हुये प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान मध्यप्रदेश को स्वर्णिम प्रदेश बनाने के लिये संकल्प ले चुके है और इस दिशा में वे हर मंच से लच्छेदार भाषण जनता को पिला रहे है यह सच है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जमीन से जुडे हुये नेता है और वे जनता के दुख दर्दों को भली भांति जानते है। जनता की दुखती नब्ज पर हाथ रखने की उनमें कला है। स्वर्णिम प्रदेश बनाने की उनकी मंशा में कोई शंका नही की जा सकती परंतु यह मंशा उनकी अपनी व्यक्तिगत हो सकती है। इस सच्चाई से इंकार नहीं किया जा सकता और इससे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भली भांति परिचित भी है कि उनके अपने मंत्रिमंडल में शामिल अनेक मंत्री भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरे हुये है और इन मंत्रियों पर आरोप कोई मनगढंत भी नहीं है हालांकि इन्हें मंत्रिमंडल में मजबूरियों के चलते शामिल किया गया है। अनेक मंत्री विधायक भ्रष्टाचार में पैर से लेकर सिर तक आरोपित है। इन मंत्री विधायकों के भरोसे स्वर्णिम मध्यप्रदेश का निर्माण मुख्यमंत्री कैसे करेंगे यह समझ से परे है?
भाजपा की सफलता का रहस्य उसकी सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की विचारधारा में नहीं था बल्कि उसकी चरित्र आधारित राजनीति में था। श्यामा प्रसाद मुखर्जी, पं.दीनदयाल उपाध्याय और अटल बिहारी वाजपेयी की लोकप्रियता और आकर्षण के मूल में वही चारित्रिक शक्ति थी जो आज संभवत: भाजपा के किसी नेता के पास नहीं है। अपनी सारी रणनीतिक क्षमताओं के बावजूद न तो प्रमोद महाजन ही जनता के हृदय में स्थान पा सके और न ही अरूण जेतली। इसके विपरीत उमा भारती जैसे नेता आज भी लोगों की आस्था के केंद्र में हैं। इसका कारण बहुत ही स्पष्ट है। उदाहरण के लिए हम देख सकते हैं कि जब आडवाणी के मुख्य सारथी अरूण जेतली अपने व्यक्तिगत अहम के कारण कोप भवन मे बैठे हुए थे, ठीक उसी समय उमा भारती भाजपा द्वारा पूर्व में अपमानित होने के बावजूद आडवाणी के चुनाव प्रचार के लिए खुद आगे आयीं। ये दोनों उदाहरण दोनों की नेताओं की प्राथमिकताओं को स्पष्ट करने क लिए पर्याप्त हैं। कहना होगा कि अरूण जेतली के लिए उनका व्यक्तिगत कद पार्टी के हित से ज्यादा महत्वपूर्ण है जबकि उमा भारती के लिए आज भी भाजपा का हित ज्यादा महत्वपूर्ण है।
ठीक से कोई कुछ नहीं कह पा रहा है, लेकिन एक अजीब सी खामोशी पार्टी में तैर रही है। कोई नहीं समझ पा रहा है कि रतलाम में प्रदेश भाजपा कार्यकारिणी की बैठक में दागियों को न बख्शने के अनंत कुमार के तीर का असली निशाना कौन है। कोई छोटा है या बड़ा? कई अदद निगाहें कहीं इतिहास खंगाल रही हैं, तो कहीं लोकायुक्त का रिकॉर्ड। इतना जाहिर है कि सिर्फ अनूप मिश्रा के लिए खुद गडकरी और अनंत कुमार को रतलाम आने की जरूरत नहीं थी। फिर इसका मकसद क्या था? देखते चलिए।

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