रविवार, 7 फ़रवरी 2016

चहेते दागदारों को क्लीनचीट और प्रमोशन का उपहार

मध्य प्रदेश में पीएमओ के आदेश दरकिनार
400 भ्रष्ट अफसरों को मिल रहा सरकार का साथ
प्रदेश में फेल हुआ केंद्र का भ्रष्ट नौकरशाहों की सफाई का अभियान
भोपाल। पिछले 18 माह से नौकरशाही का चरित्र बदलने की कवायद में जुटी केंद्र सरकार स्वच्छ भारत अभियान के बाद केंद्र अब स्वच्छ नौकरशाही अभियान भी शुरू करने जा रही है। इसके लिए प्रधानमंत्री कार्यालय ने सभी राज्यों से भ्रष्ट नौकरशाहों की सूची मांगी है। कई राज्यों की सूची पहुंच गई है, जिसमें से सरकार की निगाह अभी लगभग 125 अधिकारियों पर है। वहीं मप्र सरकार सूची देने में पिछले छह माह से आज-कल कर रही है। मप्र सरकार के आज-कल के चक्कर आधा दर्जन दागी नौकरशाह रिटायर हो चुके हैं। जबकि आलम यह है कि मप्र के 400 से अधिक अधिकारियों-कर्मचारियों के खिलाफ लोकायुक्त में मामला दर्ज है, वहीं 104 लोग ऐसे हैं जिन्हें न्यायालय से भ्रष्टाचार सहित अन्य मामलों में सजा हो चुकी है, लेकिन वे जमानत लेकर नौकरी कर रहे हैं। ऐसे अफसरों की सूची पीएमओ को भेजने की बजाय प्रदेश सरकार चहेते अफसरों को क्लिनचिट देने में जुट गई है।
छह माह बाद भी नहीं भेजी सूची
भ्रष्टाचार करके भी लम्बे अर्से तक लाभ के पदों पर काबिज रहने वाले नौकरशाहों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए पीएमओ ने कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) के माध्यम से सभी राज्यों से भ्रष्ट अफसरों की सूची मांगी थी। कई राज्यों ने तो सूची भेज दी है लेकिन मप्र सरकार आनाकानी कर रही है। जब डीओपीटी का इस संदर्भ में पहला पत्र आया था तब राज्य सरकार ने कहा था कि यहां कोई भी ऐसा भ्रष्ट अफसर नहीं है जिसके खिलाफ कार्रवाई करने की अनुशंसा की जाए। उसके बाद दो और पत्र आए लेकिन राज्य सरकार ने जवाद देना मुनासिब नहीं समझा। जबकि इस दौरान नौकरशाही में भ्रष्टाचार को खत्म करने की मुहिम के तहत केंद्र सरकार उन सभी प्रशासनिक अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने की तैयारी कर रही है, जो सालों से अपने पद का दुरुपयोग करते हुए भ्रष्टाचार में लिप्त हैं और अपनी जिम्मेदारियों का अनुपालन नहीं कर रहे हैं, फिलहाल सरकार की निगाह अभी लगभग 125 अधिकारियों पर टिक चुकी है और इनके खिलाफ कार्रवाई की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। इनमें भारतीय राजस्व सेवा (आईआरएस), भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस), भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के अधिकारी शामिल हैं। सबसे बड़ी संख्या भारतीय राजस्व सेवा के अधिकारियों की है, चिन्हित अधिकारियों के नामों की एक सूची राज्य सरकारों के साथ भी साझा की गई है। भ्रष्टाचार में लिप्त इन अधिकारियों के खिलाफ जल्द ही कार्रवाई शुरू की जाएगी। भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने के साथ ही उन्हें स्वेच्छा से सेवानिवृत्ति लेने के निर्देश दिए जा सकते हैं। यह भी माना जा रहा है कि प्रधानमंत्री कार्यालय जल्द ही इन भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ डीओपीटी को कार्रवाई करने का आदेश दे सकती है। लेकिन मप्र से सूची नहीं पहुंच पाने के कारण फिलहाल इसमें यहां का एक भी अफसर नहीं है।
पीएमओ के आदेश दरकिनार कर क्लिनचिट
प्रदेश सरकार की भ्रष्टाचार के मामले में जीरो टारलेंस की नीति थोथी साबित हो रही है। ऐसे मामलों में सरकार की रुचि आला अफसरों पर कार्रवाई करने की जगह उन्हें क्लीनचिट देने में ज्यादा रहती है। यही वजह है कि प्रदेश में बीते कुछ सालों में एक दर्जन से अधिक आईएएस अफसरों को ऐसे मामलों में क्लीनचिट दी जा चुकी है। ऐसे ही एक मामले में राज्य सरकार ने भिंड के तत्कालीन कलेक्टर रहे एस सुहैल अली हो हाल ही में क्लीनचिट देकर उन्हें पदोन्नत कर दिया गया है। उन पर नियम विरुद्ध 13 लाख की दरी खरीदी के घोटाले का आरोप था। इसी तरह से एक अन्य आईएएस अफसर रमेश थेटे को भी पत्नी को अपेक्स बैंक से 25 लाख का लोन दिलाने के मामले में सरकार क्लीनचिट देकर पदोन्नत कर चुकी है। आईएएस अफसरों के प्रति राज्य सरकार की मेहरबानी हमेशा से रही है। इस मामले में कुछ अफसरों पर कार्रवाई जरूर अपवाद रही है। जिसमें डॉ. राजेश राजौरा, शशि कर्णावद के मामले शामिल हैं।
आयकर छापे की जद में आए डॉ. राजेश राजौर को न्यायालय से लडऩे के बाद प्रमोशन दिया गया। पहले उनकी डीई क्लीयर की गई और बाद में पीएस के पद पर प्रमोट किया गया। 82 बैच के एसआर मोहंती के खिलाफ एमपीएसआईडीसी मामले में सुप्रीम कोर्ट से राहत मिली हुई है, जबकि इस मामले में एमपी राजन तथा अजय आचार्य की भूमिका कम नहीं आंकी जा सकती, परंतु सरकार ने मोहंती को सशर्त दो प्रमोशन दिए। लालटेन खरीदी घोटाले के आरोपों में फंसी 81 बैच की आईएएस अजिता वाजपेयी पांडे रिटायर हो चुकी हैं, परंतु इनके मामले में पहले तो सरकार ने डीओपीटी अभियोजन की अनुमति मांगी और बाद में क्लीनचिट दे दी, जब डीओपीटी से अभियोजन की अनुमति मिली तो उसे माना नहीं गया। दवा खरीदी घोटाले में लोकायुक्त ने तत्कालीन पीएस एमएम उपाध्याय, अलका उपाध्याय, डॉ. राजेश राजौरा सहित अन्य पर प्रकरण दर्ज किए गए थे, लेकिन बाद में इन्हेें भी लोकायुक्त ने क्लीयर कर दिया। रतलाम के तत्कालीन कलेक्टर रहे विनोद सेमवाल के मामले में उन्हें हाल ही में सुप्रीम कोर्ट से राहत मिली है, मगर सरकार उन्हें जमीन आवंटन मामले में पहले ही क्लीनचिट दे चुकी है जिसके बाद ही प्रमोट किया गया। यही नहीं राज्य सरकार की लापरवाही का ही नतीजा है कि आरोप सिद्ध होने के बाद भी के सुरेश को रिटायर हो गए और उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हो सकी। तत्कालीन प्रमुख सचिव के. सुरेश को रिटायरमेंट के दिन चेन्न्ई पोर्ट के मामले में आरोप पत्र देने के लिए दिल्ली से डीओपीटी के अधिकारी आए थे। आरोप पत्र लेने से इंकार करने पर कार्मिक विभाग ने भोपाल कलेक्टर निशांत बरबड़े के माध्यम से उनके बंगले पर आरोप पत्र चस्पा करवाया था। इधर, आरोप पत्र लेने से पहले ही तत्कालीन प्रमुख सचिव सुरेश दोपहर में ही प्रभार मुक्त हो गए थे। इसके चलते उन्हें आरोप पत्र जारी करने का मामला नियम-कायदों में उलझ गया। इस तरह के मामलों को देखते हुए ही डीओपीटी ने केंद्रीय मंत्रालय और सभी राज्यों को इस मामले में विस्तृत निर्देश जारी किए हैं। उल्लेखनीय है कि इसके पहले तत्कालीन प्रमुख सचिव एमए खान को भी रिटारयमेंट वाले दिन एक साथ 5 मामलों में आरोप पत्र थमाया गया था।
क्लीनचिट पाने वाले अफसर
सीधी के तत्कालीन कलेक्टर सुखवीर सिंह तथा सीईओ चंद्रशेखर बोरकर द्वारा जेट्रोफा का उत्पादन बढ़ाने मनरेगा की राशि से लगभग 60 लाख की राशि से इंजेक्शन खरीदी के मामले में शुरू हुई डीई समाप्त कर प्रमोशन दिया गया, जबकि छिंदवाड़ा के तत्कालीन कलेक्टर निकुंज श्रीवास्तव एवं सीईओ बीएम शर्मा के विरुद्ध 13 करोड़ की गेती-फावड़ा खरीदी मामले में सीबीआई से लेकर केंद्रीय विकास मंत्रालय तक पहुंची शिकायतों के पहले ही क्लीनचिट दे दी गई थी। इसके बाद भिंड के तत्कालीन कलेक्टर एस सुहैल अली को 13 लाख की दरी पूर्व में निर्धारित संस्था की अपेक्षा दूसरी संस्था से खरीदी के मामले में प्रारंभ की गई डीई समाप्त करने के बाद प्रमोशन दिया गया। राज्य प्रशासनिक सेवा से आईएएस बनने के मामले में सुरेंद्र उपाध्याय तथा अरुण कुमार तोमर की डीई समाप्त कर आईएएस प्रमोट किया गया। रमेश थेटे के खिलाफ लोकायुक्त ने उज्जैन के अपर कमिश्नर रहने के दौरान कलेक्टर के आदेश को बदलने के 25 प्रकरणों में मामला दर्ज किया। साथ ही अपेक्स बैंक से 25 लाख का लोन लेने के मामले में जांच शुरू की गई, मगर बाद में क्लीनचिट देकर प्रमोट किया। कई अफसर ऐसे हैं जिनकी जांच लंबित हैं। राज्य शिक्षा केंद्र में लगभग 9 करोड़ की नियम विरुद्ध खरीदी के आरोपों में फंसे एमके सिंह के विरुद्ध अभी विभागीय जांच लंबित है जिसके कारण 85 बैच के होने पर भी अभी यह सचिव बने हुए हैं। इसके अलावा कुछ गड़बडिय़ों के आरोप में 89 बैच के अधिकारी विनोद कुमार को भी प्रमोट नहीं किया गया है, इनके विरुद्ध भी डीई चल रही है। 98 बैच के आईएएस कामता प्रसाद राही पर भी मनरेगा की राशि में लगभग 16 लाख की गड़बड़ी के आरोपों में डीई चल रही है। जबकि उमरिया के तत्कालीन कलेक्टर रहे एसएस कुमरे के विरुद्ध स्वाईल कंजर्वेसन के लिए निर्धारित बजट से अधिक 6 करोड़ की राशि आवंटन के मामलेे में विभागीय जांच लंबित है, परंतु ये 22 दिसंबर 2010 से चिकित्सा शिक्षा में ही उपसचिव बने हुए हैं और इस दौरान उनके विरुद्ध कई आरोप भी लगे। साथ ही 2000 बैच के सुरेंद्रपाल सिंह सालूजा के विरुद्ध मामला लंबित है। उधर स्टेट प्रोटोकाल अधिकारी रहे आरपी मिश्रा का मामला भी अभी उलझा हुआ है जिसके कारण इन्हें प्रमोशन का लाभ नहीं मिल सका। वहीं सरकार ने अभी तक केवल शशि कर्णावत के खिलाफ कार्रवाई करने का कदम उठाया है। 99 बैच के आईएएस एवं छिंदवाड़ा की तत्कालीन सीईओ शशि कर्णावत के विरूद्ध स्टेशनरी खरीदी में जिला सत्र न्यायालय में आरोप सिद्ध होने के बाद सरकार ने उन्हें निलंबित करने के साथ ही शासकीय सेवा से बर्खास्त करने की अनुशंसा डीओपीटी से की है। न्यायालय ने इनके विरुद्ध जुर्माना भी लगाया। केवल हाईकोर्ट ने जुर्माना कम किया। इन्हें सरकार और न्यायालय के खिलाफ आरोप-प्रत्यारोप लगाने की सजा मिली है।
रिटायरमेंट के बाद राकेश साहनी काट रहे चांदी
बिना टेंडर के हुई 1770 करोड़ रुपए की बिजली खरीदी घोटाले में फंसे प्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव राकेश साहनी पर सरकार मेहरबान किसी से छुपी नहीं है। सेवानिवृत्ति के बाद पहले सरकार ने सलाहकार बनाया, फिर राज्य नियामक आयोग के अध्यक्ष के पद पर रहे। जनवरी 2015 में यहां का कार्यकाल पूरा होने के बाद सरकार ने साहनी का दोबारा पुनर्वास करते हुए नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण का अध्यक्ष बना दिया। अब सरकार ने साहनी का वेतन बढ़ाने के लिए नियम बदल दिए। इसके चलते अब उन्हें हर माह 54 की जगह 85 हजार 200 रुपए वेतन मिलेगा। यही नहीं साहनी को उपकृत करने के लिए उनकी सेवा शर्तों में बदलाव किया गया है। जबकि एनवीडीए में चेयरमेन के पद पर साहनी की नियुक्ति पहले से ही विवादों में है। इस संबंध में हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से जवाब मांगा है। न्यायाधीश राजेन्द्र मेनन व जस्टिस एके सेठ की युगलपीठ ने एक जनहित याचिका पर हाईकोर्ट ने सरकार से पूछा है कि नियमों के खिलाफ जाकर साहनी की नियुक्ति कैसे की गई है। इस मामले में कोर्ट ने मुख्य सचिव, जल संसाधन के प्रमुख सचिव, एनवीडीए के प्रमुख सचिव को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। याचिकाकर्ता पीजी नाजपांडे ने हाईकोर्ट में दलील दी थी कि मुख्य सचिव के पद से सेवानिवृत्त होने के बाद सरकार ने साहनी को राज्य विद्युत नियामक आयोग का चेयरमेन बनाया था। वे इस पद पर फरवरी 2015 तक रहे। इसके बाद उन्हें एनवीडीए में चेयरमेन बनाया गया है। जबकि विद्युत नियामक अधिनियम 2003 की धारा 89 की उपधारा 5 के तहत नियामक आयोग से सेवानिवृत्त पदाधिकारी को आगामी 2 साल तक किसी ऐसे उपक्रम में नियुक्त नहीं किया जा सकता, जिसका कमर्शियल एक्टिविटी (वाणिज्यिक गतिविधियों) के लिहाज से नियामक आयोग से किसी तरह का जुड़ाव रहा हो। याचिकाकर्ता ने कहा है कि एनवीडीए में इन्द्रा सागर और सरदार सरोवर सहित कई हायड्रल प्रोजेक्टों में बिजली उत्पादन हो रहा है। इनकी दरें नियामक आयोग तय करता है। ऐसी स्थिति में साहनी की नियुक्ति अवैध है।
डीओपीटी ने तरेरी आंख
आईएएस अफसरों के खिलाफ अनुशासनात्मक सहित अन्य मामलों में चल रही जांच को राज्य सरकार द्वारा अपने स्तर पर दबाकर रखने को लेकर डीओपीटी ने गंभीरता से लिया है। डीओपीटी ने सख्त लहजे में कहा है कि राज्य सरकार हर हाल में भ्रष्टाचार के मामले की शुरुआत होने के तीन माह के अंदर डीओपीटी को जानकारी दे। लोकायुक्त, ईओडब्ल्यू सहित अन्य जांच एजेंसी द्वारा यदि किसी आईएएस अफसर के खिलाफ कोई रिपोर्ट दी जाती है तो उसकी जानकारी भी तत्काल डीओपीटी के सिंगल विंडो में तत्काल दी जाए। इस संबंध में डीओपीटी के संचालक दिवाकर नाथ मिश्रा ने मप्र के मुख्य सचिव को पत्र लिखकर कहा है कि अक्सर देखने में आता है कि अफसर के रिटायरमेंट के ऐन पहले उनके खिलाफ विभागीय और अनुशासनात्मक मामलों की जानकारी दी जाती है। इससे उन पर कार्रवाई करने में काफी परेशानी होती है। नियमानुसार यदि किसी अधिकारी को सेवा में रहते हुए आरोप पत्र जारी नहीं किया जाता है तो रिटायरमेंट के बाद उस पर कार्रवाई नहीं की जा सकती है। ऐसी स्थिति से बचने के लिए बेहतर है कि अधिकारी के रिटायरमेंट से एक साल पहले उनके मामलों की जानकारी डीओपीटी को भेज दी जाए। संचालक मिश्रा ने यह भी कहा कि इस तरह के मामलों की हर माह रिपोर्ट भेजने की व्यवस्था भी करें, जिससे संबंधित अधिकारी पर समय रहते कार्रवाई की जा सके। मिश्रा ने कहा है कि यदि किसी अधिकारी की जांच शुरू होने के बावजूद डीओपीटी को जानकारी नहीं भेजी जाती है तो संबंधित अधिकारी के खिलाफ लापरवाही के मामले में कार्रवाई की जाए। राज्य सरकार के एक वरिष्ठ अफसर ने बताया कि कार्रवाई करने के मामले में राज्यों से ज्यादा लापरवाही डीओपीटी के अधिकारी करते हैं। उन्होंने बताया कि बर्खास्त आईएएस जोशी दंपत्ति के मामले में केंद्र सरकार को काफी पहले प्रकरण बनाकर भेजा था, लेकिन उन्हें रिटायरमेंट से एक माह पहले बर्खास्त किया गया। इसी तरह तत्कालीन प्रमुख सचिव के सुरेश के पूरे मामले की जानकारी भी तीन माह पहले भेजी जा चुकी थी, उन्हें भी डीओपीटी ने ठीक रिटायरमेंट वाले दिन आरोप पत्र भिजवाया।
भ्रष्ट अफसरों से सरकार नहीं वसूल पाई 110 करोड़
एक तरफ प्रदेश सरकार जीरो टालरेंस की बात करती है वहीं दूसरी तरफ निर्माण कार्यों और खरीदी के कामों में भ्रष्टाचार कर सरकार को नुकसान पहुंचाने वाले भ्रष्ट अफसरों पर सरकार मेहरबान है। ऐसे अफसरों पर भ्रष्टाचार के आरोप प्रमाणित होने के बाद भी सरकार इनसे 110 करोड़ रुपए की वसूली नहीं कर पाई है। इनसे वसूली के लिए कलेक्टरों को आरआरसी जारी करने के लिए भी सरकार निर्देशित कर चुकी है। भ्रष्टाचार के यह गंभीर मामले लोक निर्माण विभाग, जल संसाधन, लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग, ग्रामीण यांत्रिकी सेवा और विद्युत यांत्रिकी से संबंधित हैं। इनके द्वारा सड़क, भवन, जलाशय समेत अन्य कार्यों में व्यापक अनियमितता की गई है। राज्य शासन के पास पहुंची शिकायतों के बाद जीएडी ने इसकी जांच सीटीई (मुख्य तकनीकी परीक्षक, सतर्कता) से कराई है, जिसमें यह भ्रष्टाचार प्रमाणित हुआ है। सरकार द्वारा भ्रष्टाचार के मामलों में न सिर्फ वसूली के आदेश जारी किए गए हैं बल्कि ऐसे लोगों को जेल की सलाखों तक पहुंचाने के लिए भी समय समय पर निर्देश जारी किए जाते हैं। इसके बावजूद अफसरशाही की मेहरबानी सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचा रही है। निर्माण कार्यों की जांच के लिए शासन की प्रमुख एजेंसी सीटीई को जांच के रिकार्ड उपलब्ध नहीं कराने के मामले पहले ही सामने आ चुके हैं। जानकारी के अनुसार, सरकार को सबसे अधिक 88.30 करोड़ रूपए नर्मदा घाटी विकास, लोक निर्माण से विभाग 11.38 और जल संसाधन विभाग 4.71 रूपए वसूलने हैं। लेकिन सरकार भ्रष्टों पर इस कदर मेहरबान है कि उनके खिलाफ कार्रवाई करना तो दूर उनसे वसूली भी नहीं की जा रही है।
जिनके नौ ग्रह बलवान उसके क्या कहने...!
कुछ विशेष प्रकार के लोगों के बारे में कहा जाता है कि उनके नौ ग्रह हर पहर में बलवान रहते हैं और ऐसे लोगों से अच्छे पहलवान भी पंगा लेने में कतराते हैं। लेकिन बलवान नौ ग्रहों के मालिक नौकरशाहों को सरकार भी अपने फायदे का साधन समझती हैं। ऐसे नौकरशाह जिन्होंने साम, दाम, दंड और भेद में श्रेष्ठता के साथ अपनी काबिलियत सिद्ध की है सरकार ने उन्हें हाथों-हाथ लिया है। सेवाकाल में इजाफे का फायदा पाने वाले नौकरशाहों को किसी प्रकार का कोई तनाव नहीं होता है। वे जो कुछ भी करते हैं, वो सरकार को खुश करने के लिए ही तो करते हैं। उनको वेतनवृद्धि, क्रमोन्नति, पदोन्नति, गोपनीय प्रतिवेदन, विभागीय या अन्य कोई जांच, अनुशासनिक कार्रवाई आदि किसी भी तरह की चिंता नहीं सता पाती क्योंकि, सेवाकाल में तो उनके नौ ग्रह और ज्यादा बलवान हो जाते हैं। नौ ग्रह बलवान वाले कुछ नौकरशाहों ने दो-दो बार सेवाकाल में इजाफा करवाने का परचम लहरा के दिखाया भी है। बताया जाता है कि जिन विभागों में बड़े-बड़े काम ठेके पर होते हैं, उन विभागों के बलवान नौकरशाह सरकार को अतिप्रिय होते हैं। इन विभागों में पदस्थापना संबंधी कार्य में बारह मास चांदी कटती रहती है। निचले स्तर के अधिकारी उच्च स्तर के पद पर अतिरिक्त प्रभार लेने के लिए बड़ी भेंट चढ़ाते हैं। प्रतिनियुक्तियों व पदोन्नतियों में भी खासा लेन-देन होता है। तबादले तो दैनिक क्रिया के समान रोजाना चलते रहते हैं, जिनसे प्रतिदिन आवक बनी रहती है। बलवान नौ ग्रह वाले जिन बड़े अधिकारियों ने पदस्थापना संबंधी कार्यों (उच्च पद का अतिरिक्त प्रभार, तबादला, पदोन्नति, प्रतिनियुक्ति आदि) को उद्योग बनाकर तथा अन्य कारनामों से सरकार में बैठे लोगों को खुश किया है, वे फिर से दांव-पेंच दिखाने में जुटे हुए हैं। मजे की बात यह है कि बलवान नौ ग्रहों के मालिक ऐसे नौकरशाहों से उनकी संपत्ति का हिसाब-किताब भी पूछने वाला कोई नहीं होता।
भ्रष्टाचार की कमाई छिपाने में माहिर नौकरशाही
भ्रष्टाचार में लिप्त सरकारी कर्मचारी और अधिकारी काली कमाई छिपाने में माहिर हैं। भ्रष्टाचार पर निगरानी रखने वाली एंटी करप्शन ब्यूरो (एसीबी) भी इस कमाई को उजागर करने में खास कामयाब नहीं हो पाई। यही कारण है कि रंगे हाथ रिश्वत लेने व पद के दुरूपयोग के कई मामले दर्ज करने वाली एसीबी आय से अधिक सम्पत्ति के मामले तलाशने में कमजोर रही। एक वर्ष में ऐसे दो दर्जन मामले ही सामने आ सके हैं। इसके विपरीत जगजाहिर है कि भ्रष्टाचार सरकारी तंत्र में किस कदर छाया हुआ है। आय से अधिक सम्पत्ति का मामला दर्ज करने से पहले एसीबी सम्बंधित अधिकारी की सम्पत्ति की जानकारी जुटाती है। यह भी जुटाया जाता है कि सम्पत्ति कब और किसके नाम से खरीदी गई। इसके बाद उसके वेतन से तुलना की जाती है। एसीबी में वर्ष 2014 में दर्ज 460 मामलों में से इनकी संख्या 26 ही रही। इसके विपरीत रंगे हाथ रिश्वत लेने के मामलों की संख्या बहुत अधिक है। 12 माह में 40 सरकारी विभागों के 262 लोगों को रंगे हाथ पकड़ा गया। इनमें 56 राजपत्रित अधिकारी तो 206 अराजपत्रित अधिकारी शामिल हैं। इसी तरह पद के दुरूपयोग के 26 विभागों के 172 कर्मचारियों के खिलाफ मामले दर्ज किए गए। जांच में यह तथ्य सामने आया है कि नौकरशाह परिवार के बजाय दूसरों के नाम से जमीन खरीदते हैं। एसीबी से बचने के लिए ही ऐसा किया जाता है। मप्र में कई नौकरशाहों ने ऐसा किया है। प्रदेश के आईएएस अफसरों में से अधिकांश के पास बेपनाह चल और अचल संपत्ति है। हालांकि हर साल जब प्रदेश के आईएएस अफसर अपनी संपत्ति का ब्यौरा देते हैं तो अपनी अधिकांश नामी और बेनामी संपत्ति को छुपा जाते हैं। प्रदेश के नौकरशाह पिछले कई साल से करीब 22,000 क रोड़ की संपत्ति का विवरण छुपा जाते हैं। वर्ष 2013 में पीएमओ ने जब विभिन्न स्रोतों से इसकी जांच कराई तो यह तथ्य सामने आया कि मप्र के अफसर केंद्र और राज्य सरकार ने विभिन्न योजनाओं के लिए मिलने वाले बजट में जमकर घपलाबाजी कर रहे हैं। इन नौकरशाहों ने अपनी अवैध कमाई का बड़ा हिस्सा खेती, रियल स्टेट, बड़ी-बड़ी कंपनियों और ठेकों में निवेश कर रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार भष्ट अफसरों ने प्रदेश की राजधानी भोपाल, इंदौर, होशंगाबाद, ग्वालियर, जबलपुर में खेती की जमीन तो सतना, कटनी, दमोह,छतरपुर और मुरैना में बिल्डर व खनन माफिया के पास करोड़ों रुपए का निवेश किया है। वहीं प्रदेश के बाहर मुंबई, दिल्ली, गुडग़ांव, हिमाचल प्रदेश, ओडिशा, पंजाब, शिमला, असम, आगरा के साथ ही विदेशों में ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, सिंगापुर, दुबई, मलेशिया, बैंकॉक, कनाडा, लंदन में भी संपत्ति जुटाई है।
वरिष्ठ नौकरशाहों के सेवाकाल की समीक्षा होगी
नौकरशाहों को भारतीय शासन की रीढ़ माना जाता है। यही वजह है कि हर सरकार अपने पसंदीदा और चहेते अफसरों को मनचाहे मंत्रालय और विभागों का मुखिया बनाती है। लेकिन मोदी सरकार के एक ताजा आदेश ने नौकरशाहों की नींद उड़ा दी है। केंद्र सरकार के डीओपीटी ने एक आदेश जारी किया है, जिसके तहत अब वरिष्ठ नौकरशाहों के सेवाकाल की समीक्षा के बाद भ्रष्टाचार में लिप्त तथा निष्क्रिय रहने वाले अधिकारियों को अनिवार्य सेवानिवृति दी जा सकती है। यह कोई नया कानून अथवा आदेश नहीं है, बल्कि सिविल सेवा में इस तरह का प्रावधान पहले से ही है, लेकिन इसका उपयोग नहीं किया जाता है। मोदी सरकार ने तय किया है कि इस नियम को सख्ती से लागू किया जाए। डीओपीटी द्वारा जारी आदेश में ऐसे अफसरों की समीक्षा की जाएगी, जिनकी सेवा को 30 वर्ष पूरे हो चुके हैं या फिर जिनकी उम्र 50 वर्ष हो चुकी हो।
समीक्षा रिपोर्ट में जो अफसर खरा नहीं उतरेगा उसे जनहित में सेवामुक्त कर दिया जाएगा या फिर अनिवार्य सेवानिवृति दे दी जाएगी। इससे उन नौकरशाहों में बेचैनी बढ़ गई है, जो अपने दायित्व का निर्वहन सही तरीके से नहीं कर रहे हैं। गौरतलब है कि विदेश सचिव सुजाता सिंह ने भी पिछले वर्ष सेवानिवृति ले ली थी। इसके बाद इसी साल फरवरी में गृह सचिव अनिल गोस्वामी को भी सारधा घोटाले में दखल की वजह से अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी थी। हालांकि यह चिंता भी जताई कि इस आदेश का उपयोग राजनीति के लिए नहीं होना चाहिए। वरना अच्छा काम करने वाले लोगों की सिस्टम में कमी हो सकती है। डीओपीटी ने एक नोटिस जारी किया है कि तीस साल की ड्यूटी या 50 साल की उम्र पार करने के बाद अधिकारी के प्रमोशन के लिए परफॉर्मेंस रिव्यू किया जाएगा और फेल होने पर उनकी छुट्टी कर दी जाएगी। नोटिस के मुताबिक सालाना अप्रेजल में फेल होने पर अधिकारी को तीन महीने का नोटिस देकर रिटायर कर दिया जाएगा। ये नोटिस सभी राज्यों के मंत्रालयों को भेजा गया है। सभी विभागों से ऐसे अधिकारियों की पहचान कर उनके समय से पहले रिटायरमेंट का प्रस्ताव भेजने को भी कहा गया है। नौकरशाहों को ज्यादा जवाबदेह बनाने के लिए हाल ही कैबिनेट सचिव पीके सिन्हा की अध्यक्षता में बैठक हुई थी। इसमें एक ऐसे सिस्टम की बात कही गई थी, जिसके तहत बोझ बन रहे अफसरों की छुट्टी कर दी जाए। विभागों से ऐसे अधिकारियों को अनिवार्य रूप से रिटायरमेंट के लिए मूल नियम एफआर 56-जे के प्रावधानों को लागू करने को कहा गया है।
पूर्व केंद्रीय गृह सचिव आरके सिंह कहते हैं, ये होना आवश्यक है। जिसके बारे में गंभीर शिकायत है उसको निकाला जाए। ये सराहनीय कदम है। इसका फायदा सिस्टम को साफ करने में होगा। इस प्रकार के कदम से जो ईमानदार अफसर हैं उन्हें कोई डर नहीं, लेकिन जो भ्रष्ट हैं उन्हें सोचना होगा। इस नियम के तहत सरकार को ए और बी ग्रेड के ऐसे कर्मचारियों को जनहित में जरूरी होने पर रिटायर करने का पूरा अधिकार है, जो 35 साल की उम्र से पहले सेवा में आए हों और 50 साल की आयु पूरी कर चुके हों। नियमों के मुताबिक, 55 साल की उम्र पार कर चुके सी ग्रेड के किसी भी कर्मचारी को समय से पहले रिटायर किया जा सकता है, लेकिन कार्रवाई तभी की जाएगी जब अधिकारी पर भ्रष्टाचार या अप्रभावी होने का संदेह है। हालांकि इस ओर कार्रवाई सिर्फ उन्हीं अधिकारियों के खिलाफ की जा सकेगी, जिनकी वार्षिक वेतनवृद्धि कुछ साल से रोक दी गई हो और जिन्होंने पांच साल से कोई प्रमोशन नहीं पाया हो।
भ्रष्ट अफसरों की फिर से बनेगी कुंडली
बताया जाता है की डीओपीटी की फटकार के बार प्रदेश सरकार एक बार फिर से भ्रष्ट अफसरों की कुंडली बना रही है, ताकि केंद्र के कड़े रूख के बाद यह जानकारी भेजी जा सके। लोकायुक्त से मिली जानकारी के अनुसार, वर्तमान समय में मप्र में विभिन्न विभागों में कई अफसर सहित 104 लोग ऐसे हैं जिन्हें न्यायालय से भ्रष्टाचार सहित अन्य मामलों में सजा हो चुकी है, लेकिन वे जमानत लेकर नौकरी कर रहे हैं। लोकायुक्त ने इस संदर्भ में मुख्यमंत्री को एक पत्र भी भेजा है और अपने पत्र के साथ 400 ऐसे भ्रष्ट अधिकारियों की सूची भी सौंपी है, जिनके खिलाफ अभियोजन की अनुमति लंबित है या चालान दाखिल हो जाने के बाद भी उन्हें निलंबित नहीं किया गया है। जिसमें सबसे अधिक राजस्व विभाग के 27 अधिकारी शामिल हैं। इसके अलावा पंचायत व ग्रामीण विकास और गृह विभाग के 13-13, स्कूल शिक्षा- 10, पीएचई- 9, कृषि-7, नगरीय विकास एवं पर्यावरण- 5, वन- 5, महिला एवं बाल विकास-4, ग्रामोद्योग-3, ऊर्जा- 2, श्रम- 2, आदिम, अजा-2, सहकारिता-2, खनिज- 1, सामाजिक न्याय-1, खाद्य विभाग- 1 और पीडब्ल्यूडी का 1 अधिकारी शामिल है।

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