रविवार, 7 फ़रवरी 2016

मौत के साए में घुट-घुट कर जी रहा पीथमपुर

विनोद उपाध्याय
जनवरी की 10 तारीख को जब जल संरक्षण एवं जल संवर्धन के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए मप्र के सबसे बड़े औद्योगिक क्षेत्र पीथमपुर में 'गुड मॉर्निंग धारÓ इवेंट आयोजित किया जा रहा था और उसमें स्कूली बच्चों ने पर्यावरण जागरूकता पर मैराथन रैली निकाली, ठीक उसी दिन औद्योगिक क्षेत्र के पास के गांव तारपुरा के लोग लगातार दूषित हो रहे भूमिगत जल पर चिंता जाहिर कर रहे थे। आलम यह था की जहां दिखावे और कागजी खानापूर्ति के लिए जल संसाधन तथा लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग द्वारा सरकारी फंड पर आयोजित इस इवेंट को सफल बनाने के लिए पूरा सरकारी महकमा और औद्योगिक संगठन लगा हुआ था, वहीं इस औद्योगिक क्षेत्र के कचरे से तबाह हो रहे तारपुरा के लोगों की सूध लेने वाला कोई नहीं था। इस गांव के लोग आज भी राह ताक रहे हैं कि शासन-प्रशासन का कोई नुमाइंदा उनके गांव आए और बदबू माहौल, आंखों में जलन पैदा करने वाले वातावरण, दूषित पानी और संक्रमित हवा से बचने का उपाय सुझाए। लेकिन इस बार ही नहीं बल्कि वर्षों से यहां के लोग यह आस लगाए बैठे हैं कि औद्योगिक कचरे को जलाने के दौरान रामकी एनवायरो इंजीनियर्स के संयंत्र से होने वाले प्रदूषण से मुक्ति दिलाने कोई न कोई तो जरूर आएगा। यहां के लोगों को अपनी समस्या के समाधान की आस उस समय जगी थी जब तात्कालीन केंद्रीय वन और पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश 10 जुलाई 2010 को पीथमपुर स्थित घातक अपशिष्ट निपटान संयंत्र का निरीक्षण करने पहुंचे थे। तख्तियां थामे गांववालों ने रमेश को घेर लिया और उनसे इस संयंत्र को बंद करने की मांग करने लगे। इनमें बड़ी संख्या में महिलाएं भी थीं। नाराज भीड़ के सवालों से घिरे रमेश ने भी माना था कि एक आबाद गांव के पास घातक कचरे का निपटारा करने वाले संयंत्र का संचालन चिंता का विषय है और इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। लेकिन उसके बाद भी न तो यहां कचरे का निष्पाद रूका और न ही लोगों की सुध लेने कोई पहुंचा।
प्रदेश में निकलने वाले औद्योगिक कचरे को निष्पादित करने के लिए वर्ष 2005-06 में भष्मक स्थापित करने की बात उठी थी। इसके बाद पीथमपुर के फेस-2 सेक्टर-3 के प्लॉट नंबर 104 पर भष्मक की स्थापना की गई। जानकारों का कहना है कि पीथमपुर में हैदराबाद की रामकी एनवायरो इंजीनियर्स एमपी वेस्ट मैनेजमेंट प्रोजेक्ट कंपनी की वॉटर (प्रिवेंशन एंड कंट्रोल ऑफ पॉलूशन) एक्ट 1974 की धारा (25/26) और एयर (प्रिवेशन एंड कंट्रोल ऑफ पॉलूशन) एक्ट 1971 की धारा 21 के अंतर्गत स्थापना की गई है। कंपनी के भस्मक में पीथमपुर की लगभग 120 कंपनियों जिनमें 300 से 400 टन कचरा प्रतिमाह खतरनाक कचरा निकालता है अलावा मप्र की लगभग 500 कंपनियां (मप्र के अन्य औद्योगिक नगरों से भी 300-400 टन कचरा निकलता है।) सूचीबद्ध हैं, जो अपना औद्योगिक कचरा नष्ट करने के लिए भेजती हैं। लेकिन जिन मापदंडों के आधार पर इस भष्मक की स्थापना की गई उस पर वह खरा नहीं उतरा। इसका परिणाम यह हो रहा है कि तारपुरा के साथ ही इसके आसपास के 8 गांवों के लोग प्रदूषण की चपेट में आ गए हैं। जिनमें सिटोलिया, छोटी धन्नड़, बड़ी धन्नड़, गवला, माचल, भंवरगढ़, बजरंगपुर और बेटमा और छोटा बेटमा शामिल है। ये सभी गांव भष्मक के 4-5 किलोमीटर के दायरे में हैं ग्रामीणों का कहना है कि जब भी भष्मक में खतरनाक कचरा जलाया जाता है उसकी बदबू से गांव में रहना मुश्किल हो जाता है।
आरोप हैं कि कंपनी इन खतरनाक कचरों को जलाने के अलावा डंप कर देती है। बरसात के दिनों में गड्ढे में भरे पड़े खतरनाक कचरे का रसायन पानी में घुल जाता है और भूमिगत जल में जा मिलता है। इससे आसपास के गांवों का पानी लगातार दूषित होता जा रहा है। 2014 में कंपनी के ही एक पूर्व कर्मचारी होशंगाबाद निवासी शाहबाज खान ने खुलासा करते हुए कहा था कि कंपनी परिसर में लैंडफिल साइट में सीधे हानिकारक अपशिष्ट डंप किया जा रहा है। कंपनी में सुपरवाइजर रहे खान ने बताया था कि कंपनी के भष्मक में कचरा जलाने की प्रक्रिया काफी महंगी होती है इसलिए कंपनी प्रशासन द्वारा कचरों को भस्मक में जलाने की बजाय लैंडफिल साइट में सीधे में दफन करने पर जोर दिया जाता है। यही नहीं कंपनी बिना रिकार्ड मेंटेन किए उद्योगों से खतरनाक कचरा ले लेती है और उनका निष्पादन करती है। इसकी उन्होंने केंद्रीय पर्यावरण और वन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, मप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, इंदौर कलेक्टर और पीथमपुर ऑटो क्लस्टर लिमिटेड से भी शिकायत की थी। लेकिन इसको रोकने के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया। वहीं पीथमपुर में यूनियन कार्बाइड के खतरनाक अपशिष्ट के निपटान का लंबे समय से विरोध कर रहे लोकमैत्री संगठन के गौतम कोठारी कहते हैं कि एमपीपीसीबी के निरीक्षण के दौरान कई कमियां पाई गई हैं लेकिन कंपनी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई है। दरअसल, औद्योगिक क्षेत्र पीथमपुर में जब से औद्योगिक कचरे को जलाने के लिए रामकी एनवायरो इंजीनियर्स का संयंत्र लगाया गया है तभी से यहां के तारपुरा सहित करीब 9 गांवों का पानी लगातार दूषित होता जा रहा है। इस कारण लोगों को जलजनित कई बीमारियां हो रही हैं। यही नहीं अब तो इंदौर के लोगों पर भी खतरा मंडराने लगा है, क्योंकि इससे यशवंत सागर का पानी प्रदूषित होगा जो सारा इंदौर पीता है। पीथमपुर औद्योगिक संगठन के अध्यक्ष और जन संगठन लोक मैत्री के प्रमुख गौतम कोठारी कहते हैं, पीथमपुर स्थित रामकी एनवायरो इंजीनियर्स का संयंत्र इंडस्ट्रियल वेस्ट मैनेजमेंट के लिए है। दरअसल, संयंत्र से कुछ ही दूरी पर रिहायशी इलाका और इंडस्ट्रियल क्लस्टर है। 2008 में परीक्षण के नाम पर कंपनी में भोपाल की यूनियन कर्बाइड का 40 टन कचरा पीथमपुर में गुपचुप तरीके से ठिकाने लगवाया था। इसके गंभीर परिणाम हुए थे। इलाके की फसल चौपट हो गई थी और दूषित पानी से स्थानीय लोगों को चर्मरोग की शिकायतें होने लगी थीं। 2010 में कंपनी पर धावा बोला था पीडि़तों ने पीथमपुर औद्योगिक क्षेत्र में करीब 1500 की आबादी वाले एक गुमनाम से गांव तारपुरा के निवासियों का जीवन आज पूरी तरह नारकीय हो गया है। तारपुरा से करीब 500 मीटर दूर इस घातक कचरा निपटान संयंत्र में गोपनीय ढंग कई तरह के प्रतिबंधित कचरों का निष्पादन किया जा रहा है। गांववासियों की शिकायत है कि इससे न केवल गांव का पर्यावरण बूरी तरह दूषित हो रहा है बल्कि इसके प्रभाव से कई प्रकार कई बीमारियां भी फैल रही हैं। ग्रामवासियों की बार-बार की शिकायत के बाद जब कंपनी ने कचरा निष्पादन की व्यवस्था दुरूस्त नहीं किया तो उन्होंने 8 जुलाई 2010 को भीड़ ने उन दो वाहनों को रोककर नुकसान पहुंचाया, जो इस संयंत्र में एक टेक्सटाइल फैक्टरी का कचरा ले जा रहे थे। इसके दो दिन बाद यानी 10 जुलाई को केंद्रीय वन और पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश को गांववालों के जबर्दस्त विरोध का सामना करना पड़ा, जब वह पीथमपुर स्थित घातक अपशिष्ट निपटान संयंत्र का निरीक्षण करने पहुंचे। तख्तियां थामे गांववालों ने रमेश को घेर लिया और उनसे इस संयंत्र को बंद करने की मांग करने लगे। इनमें बड़ी संख्या में महिलाएं भी थीं। बहरहाल, खुद तात्कालीन वन और पर्यावरण मंत्री ने भी माना था कि एक आबाद गांव के पास घातक कचरे का निपटारा करने वाले संयंत्र का संचालन चिंता का विषय है और इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। तात्कालीन केंद्रीय मंत्री के साथ हुए दुव्र्यवहार के बाद स्थानीय विधायक नीना वर्मा के साथ ही भाजपा विधायक सुदर्शन गुप्ता और कांग्रेस विधायक महेंद्र सिंह कालूखेड़ा ने भी रामकी इन्वायरो कंपनी के भस्मक (इंसीनरेटर) से हो रहे प्रदूषण को लेकर मध्य प्रदेश विधानसभा में एक ध्यानाकर्षण प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान आशंका व्यक्त की थी कि भस्मक में खतरनाक रसायन जलाना खतरनाक है। विधायकों का कहना है कि यह संयंत्र घनी आबादी वाले इलाके में है और इसके नजदीक ही सैनिक छावनी भी है। भाजपा की विधायक नीना वर्मा ने तो यहां तक कहा कि अगर हादसा होता है तो उसकी जिम्मेदारी सरकार अथवा मंत्री लेंगे। इन विधायकों का कहना है कि रामकी संयंत्र में कचरा नष्ट किए जाने से इंदौर के यशवंत सागर तालाब को खतरा है। उन्होंने कहा कि संयंत्र से निकलने वाले दो नाले नदी से आकर मिलते हैं और नदी का पानी यशवंत सागर में जाता है, जहां से इंदौर के एक हिस्से में सालभर जलापूर्ति की जाती है। विधायकों की मांग थी कि इस संयंत्र में सुरक्षा के इंतजाम नहीं हैं लिहाजा इस संयंत्र को पीथमपुर के अलावा किसी अन्य स्थान पर स्थापित किया जाना चाहिए। वर्मा का कहना है कि संयंत्र के करीब ही तारापुर बस्ती है, इतना ही नहीं सैनिक छावनी भी संयंत्र से ज्यादा दूर नहीं है। उन्हें आशंका है कि कचरा नष्ट करने के दौरान रिसने वाली जहरीली गैस से बड़ा हादसा हो सकता है। इसी मुद्दे को लेकर तात्कालीन पर्यावरण मंत्री जयंत मलैया से वर्मा की नोक झोंक भी हुई थी। इस दौरान वर्मा ने सवाल किया कि अगर हादसा होता है तो क्या उसकी जिम्मेदारी सरकार अथवा मंत्री जयंत मलैया खुद लेंगे। वर्मा ने बताया कि 26 जून 2010 को कचरा जलाने के दौरान रिसी गैस से मजदूरों को जलन, उल्टी व चक्कर आने की शिकायत हुई और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा था। उन्हें आशंका है कि इसी तरह ज्यादा मात्रा में जहरीली गैस के रिसाव से बड़ा हादसा भी हो सकता हैं, लिहाजा इस संयंत्र को बंद किया जाना चाहिए। मलैया कहते हैं कि वर्ष 2003 मे उच्चतम न्यायालय ने खतरनाक अपशिष्ट के प्रबंधन के लिए 'कॉमन ट्रीटमेंट स्टोरेज डिस्पोजल फेसिलिटीÓ बनाने के निर्देश दिए थे। उसी का पालन कर 'मेसर्स रामकी इन्वायरो इंजीनियर्स हैदराबादÓ को काम सौंपा गया। पीथमपुर औद्योगिक संगठन की मानें तो 'रामकीÓ लगातार प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मानकों की अनदेखी कर रहा है। इससे 400 उद्योगों को अपने रासायनिक कचरे के निष्पादन में परेशानी होती रही है। इससे निपटने के लिए प्रदेश में वैकल्पिक व्यवस्था के लिए महाराष्ट्र के भस्मक संंयंत्र के मॉडल को अपनाया जा सकता है। महाराष्ट्र के नागपुर में डीआरडीओ ने प्लाजा टेक्नोलॉजी बेस्ड भस्मक संयंत्र लगाया है। यह तकनीक ईको-फेंडली है। इसमें कचरे के निपटान में होने वाला उत्सर्जन भी बेहद कम होता है। पीथमपुर औद्योगिक संगठन अध्यक्ष डॉ. गौतम कोठारी ने बताया, शासकीय भस्मक संयंत्र लगाने के लिए शासन को सुझाव दिया है। कंपनी में नियमानुसार नहीं लगा है एमईई केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने कंपनी को मल्टी इफैक्ट इवेपोरेटर (एमईई) प्लांट लगाने के निर्देश दिए थे। लेकिन रामकी मेें करोड़ों रुपए की लागत से लगने वाले एमईई प्लांट के स्थान पर सामान्य स्प्रे ड्रायर से वैकल्पिक रूप से काम चलाया जा रहा है। प्लांट लगाने के अलावा कंपनी कचरे को जलाने के लिए प्रदूषण बोर्ड को अपनी योजना से संतुष्ट नहीं कर पाई है। उसके बावजुद कंपनी के भस्मक में कचरा भस्म किया जा रहा है। मध्यप्रदेश सरकार ने भले ही प्रदेश की जनता की चिंता करते हुए राज्य प्रदूषण मंडल की स्थापना की हो। लेकिन ऐसा नहीं लग रहा है कि यह मंडल जनता के हितों की रक्षा करने में अपने कर्तव्यों का निर्वाहन कर रहा है। राज्य में स्थापित उद्योगों और प्रदूषण मंडल के अधिकारियों की सांठ-गांठ के चलते राज्य में उद्योगों द्वारा प्रदूषण फैलाया जा रहा हैं। लेकिन यह सिवाय कागजी खाना पूर्ति के कोई ठोस कार्रवाई नहीं कर पा रहा है। लगता है कि प्रदेश शासन और यह प्रदूषण मंडल तभी जागेगा जब राज्य में एक और यूनियन कार्बाइट जैसी घटना घटित हो जाए। रामकी उद्योग जिसका काम प्रदेश के उद्योगों से निकलने वाले कचरों को नष्ट करने के लिए स्थापित की गई हैं। उक्त कंपनी को राज्य शासन के आदेश द्वारा प्रदेश के कई उद्योगों से लाखों रूपए अग्रिम भुगतान जहरीले कचरे को नष्ट कराने के लिए कराया गया है। राज्य सरकार द्वारा विकास के नाम पर प्रदेश में उद्योगों की स्थापना करने की भरपूर कोशिश की जा रही है, लेकिन इसके बावजूद भी यह उद्योग अपने आसपास के रहवासियों के लिए प्रदूषण फैला रहे हैं। कार्रवाई के नाम पर प्रदूषण मंडल सिवाय नोटिसी कार्रवाई के अलावा कोई ठोस कार्रवाई नहीं करता है। क्योंकि इसी तरह के नोटिस मिलने के बाद उद्योगपति प्रदूषण मंडल के अधिकारियों से सांठ-गांठ कर लेते हैं? मामला कुछ भी हो लेकिन प्रदूषण मंडल बोर्ड पर प्रतिवर्ष जनता की कमाई का करोड़ों रुपए खर्च करने के बावजूद भी नतीजा शून्य ही नजर आता है। तभी तो प्रदेश के उद्योगों द्वारा किया जा रहा दूषित जल व वायु का उत्सर्जन रुकने का नाम नहीं ले रहा हैं। पीथमपुर इंडस्ट्री एसोसिएशन के अध्यक्ष गौतम कोठारी कहते हैं कि हमने शुरू से ही इंस्पेक्शन रिपोर्ट देखी है। उसमें कई खामियां हैं। उसे देखकर लगता है कि रामकी खतरनाक कचरे को नष्ट करने में सक्षम नहीं है। पीथमपुर की 120 कंपनियों से निकलता है खतरनाक रसायन पीथमपुर के तीनों सेक्टर में स्थित 120 कंपनियों से जो खतरनाक रसायन और ठोस कचरा निकालती हैं उनको जलाकर भष्म किया जाता है। इनमें प्लास्टिक से लेकर कपड़ा बनाने और लोहा गलाने वाली कंपनियां भी हैं। घाटा बिल्लौद में नेशनल स्टील, मांडव डिस्टलरी और रुचि सोया के अलावा कई कंपनियां हैं, जिनसे वेस्ट निकलता है। कई कंपनियों के वेस्ट में खतरनाक रसायन भी होते हैं। इन खतरनाक रसायनों वाले वेस्ट को भी कंपनी में लापरवाही के साथ भस्म किया जाता है। जिन बड़ी कंपनियों का वेस्ट रामकी में जलाया जा है उनमें सेक्टर-1 की इंडो-बोरेक्स, मेडीलक्स, नाकोड़ाश्री, सोनिक बायोकेम, राज राजेंद्र प्रचालर, खरितक प्लास्टिलाइजर, महाले मिगमा, सिनकाम इंडस्ट्रीज हैं। वहीं सेक्टर-2 की महाले मिग्मा, एवटेक, पेनासोनिक, कपिल स्टील, पावरएज, प्रकाश सॉलवेक्स, गुजरात अंबुजा, दिव्यज्योति, राहुल ऑर्गेनिक तथा सेक्टर-3 की त्रिवेणी वायर, पीईवी लॉयड इंसुलेशन, घड़ी डिटर्जेंट, आरएसपीएल, आरती केमिकल, कॉर्पोरेशन, रिपनटेक्स, अनंत स्टील, शिवानी स्टील, राठी स्टील, मोयरा स्टील जैसे लोहा उद्योग, प्रतिभा सिंटेक्स, रिटस्पिन, विक्रम डिटर्जेंट और सेज की लगभग 20 से अधिक कंपनियां शामिल हैं। बताया जाता है कि जब जून 2008 में यूनियन कार्बाइड का कचरा पीथमपुर में दफन कर दिया गया तो उस कचरे के दफन करने के बाद उसके समीप स्थित मंदिर के कुएं का पानी काला पड़ जाना और समीप बसे गांव तारपुर के लोगों द्वारा उस पानी का उपयोग बंद कर दिया जाना इसके दुष्परिणाम का ठोस सबूत है। संदेह के घेरे में भस्मक जानकार बताते हैं कि रामकी एनवायरो इंजीनियर्स लिमिटेड की मध्यप्रदेश वेस्ट मैनैजमेंट साईट के भस्मक में कई खामियां हैं। जब पीथमपुर की कंपनियों से निकला कचरा भस्म करने पर यहां का पर्यावरण इस कदर प्रदूषित हो रहा है कि आसपास के गांवों के लोगों का जीवन नारकीय हो गया है, ऐसे में अगर यूनियन कार्बाइड का कचरा भस्म किया जाएगा तो उसके परिणाम तो निश्चित रूप से जानलेवा हो जाएंगे। तकनीकी दृष्टि से कई ऐसी बातें सामने आती है, जो इस भस्मक पर संदेह उत्पन्न करती हैं। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा इस भस्मक में मल्टीइफेक्ट इवेपोरेटर लगाने के निर्देश दिए गए थे, किन्तु मध्यप्रदेश के आवास एवं पर्यावरण मंत्रालय के अधिकारियों ने इस आधार पर यह नहीं लगाने की पैरवी की क्योंकि ऐसा करने से इस भस्मक की लागत बढ़ जाती। दूसरी ओर मध्यप्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय कार्यालय धार द्वारा 27 जून 2006 को जारी पत्र क्रमांक 8963 से यह बात जाहिर होती है कि सिक्योर्ड लैंडफिल में क्ले कंपेक्शन 1000 एमएम के निर्धारित मानदण्ड के स्थान पर 600 एमएम में किया गया। स्थान के चयन पर सवाल केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की गाईड लाईन के अनुसार किसी भी वेस्ट मैनेजमेंट साईट से 500 मीटर की परीधि में किसी भी प्रकार का रहवासी क्षेत्र नहीं होना चाहिए। रामकी प्रबंधन द्वारा अपने साईट से तारपुर नामक गांव की दूरी 500 मीटर से अधिक बताई जाती रही है, जबकि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के इन्दौर कार्यालय ने आरंभ से ही यह चिन्हित कर लिया था कि साईट से तारपुर गांव की दूरी 100 मीटर से भी कम है। बोर्ड द्वारा निरीक्षण के दौरान यह भी इंगित किया गया था कि कार्य प्रारंभ करने से पहले मध्यप्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से कोई डिजाईन व ले आउट प्रमाण प्रस्तुत कर स्वीकृति नहीं ली गई, जबकि खतरनाक अवशिष्ट (प्रबंधान व हस्तालन) नियम 1989 (संशोधन मई 2003) के अनुसार ऐसा किया जाना जरूरी था। मध्यप्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के तत्कालीन सदस्य सचिव ने 24 दिसम्बर 2005 के पत्र क्र. 661 के माध्यम से वेस्ट मैनेजमेंट साईट के अंतर्गत पीथमपुर औद्योगिक क्षेत्र के ए, बी, सी, डी और ई ब्लॉकों को चिन्हित करते हुए निर्देशित किया था कि ब्लॉक ए व सी की रहवासी क्षेत्र से पांच सौ मीटर से कम दूरी होने के आधार पर सिक्योर्ड लैंडफिल स्थगित रखा जाए व बी, डी और ई ब्लाक में कार्य किया जा सकता है। किन्तु इसका उल्लंघन करते हुए ब्लॉक ए में लैंडफिल का निर्माण किया गया, जो तारपुर ग्राम के अत्यन्त निकट है। जिस पहाड़ी पर लगे भस्मक में कचरे को जलाया जाता है, उसके नजदीक तारपुर नामक गांव है। इस भस्मक से 2 किलोमीटर की दूरी पर इन्दौर की सीमा लगती है। यहां से 8-10 किलोमीटर पर इन्दौर व महू की आबादी प्रारंभ हो जाती है। यह स्पष्ट है कि पीथमपुर मध्यप्रदेश एक बड़ा औद्योगिक क्षेत्र है, जहां हजारों औद्योगिक इकाइयां स्थापित है। औद्योगिकरण के कारण यहां मजदूरों की बस्तियां बड़े पैमाने पर विकसित हुई है और करीब पांच लाख मजदूर यहां निवास करते हैं। जबकि इन उद्योगों के प्रबंधकों के आवास इन्दौर शहर में है। इस दशा में इस कचरा भस्म करने से होने वाले प्रदूषण का सर्वाधिक दुष्परिणाम पीथमपुर के मजदूरों को भी भुगतना पड़ रहा है। यही कारण है कि उद्योगों के प्रबंधक वर्ग द्वारा खतरनाक कचरों को यहां नष्ट किए जाने का आज तक विरोध नहीं किया गया, दूसरी ओर रोजी-रोटी के संघर्ष में जूझ रहे श्रमिकों को इसकी कोई जानकारी नहीं दी गई है। यहीं नहीं खतरनाक कचरे का निष्पादन करने के लिए केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के विशेषज्ञ भी मौके पर मौजूद नहीं रहते है। इससे जहरीले रसायन के रिसाव का खतरा बना रहता है। ऐसे में डायोक्सिन और फ्यूरन जैसे खतरनाक रसायनों की निगरानी करने वाला कोई नहीं है। प्रोयोगिक परिक्षण में 7 में से 6 बार पीथमपुर के लोगों को खतरनाक मात्रा में डायोक्सीन लगी चुकी है। यह रसायन धार और इंदौर शहर के लोगों की जान भी खतरे में डाल सकता है। इस वजह से लोगों को लीवर, किडनी, ब्रेन, स्किन पर विपरीत असर पड़ रहा है और इससे कैंसर जैसी घातक बीमारी भी होगी। उल्लेखनीय है कि कचरा जलाने वाली फैक्ट्री यशवंत सागर डेम के कैचमेंट एरिया में आती है, जिसका पानी इंदौर में पीने के लिए सप्लाई किया जाता है। नाले में बह रहे रसायन में लग जाती है आग पीथमपुर क्षेत्र के उद्योगों से कितना खतरनाक रसायन निकलता है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि यहां के प्रीतिनगर में एक नाले में अचानक आग लग जाती है। इस नाले में फैक्ट्रियों से निकलने वाला रसायन बहता है। 19 अक्टूबर 2015 को यहां चौथी बार आग लगी थी। लोगों का आरोप है कि प्रदूषण नियंत्रण अधिकारी से लेकर धार एसडीएम, कलेक्टर तक सब कंपनी से निकलने वाले गंदे पानी पर चुप्पी साधे हुए हैं। नाले में तीली फेंकने पर ही पानी जलता है। पिछले बार जो आग लगी थी उस पर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के स्थानीय अधिकारी लोकेन्द्र त्रिवेदी ने रिपोर्ट दी थी जिसमें कंपनी को उन्होंने क्लीन चिट दे दी। कहां जाएगा प्रदेश का खतरनाक कचरा ? दूसरे राज्यों के खतरनाक कचरे के प्रबंधन को लेकर राज्य और केन्द्र सरकार एक ओर जहां खींच-तान में लगी है, वहीं हर साल एक लाख साठ हजार मेट्रिक टन से भी अधिक खतरनाक कचरा पैदा कर रहे मध्यप्रदेश के वैज्ञानिक और अधिकारियों को इसके प्रबंधन की चिंता ही नहीं है। हैजारडस वेस्ट मैनेजमेंट के लिए तीन साइट्स को बनाने के सुप्रीम कोर्ट को दिए गए आश्वासन के 7 साल बाद भी अभी तक प्रदेश में एक ही ऐसी साइट तैयार हो पाई, जहां खतरनाक कचरे का प्रबंधन किया जाता है । हर साल लाखों टन खतरनाक कचरा सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड से मिले आंकड़ों के मुताबिक, हर साल प्रदेश से करीब 1 लाख 67 हजार 889 मेट्रिक टन कचरा निकलता है। जिसमें 34,943 टन डिस्पोज करने योग्य, करीब 1 लाख 27 हजार मेट्रिक टन कचरा रिसाइकल करने योग्य होता है, जबकि 5037 मेट्रिक टन कचरे को केवल इनसीनिरेटर में ही डिस्पोज किया जा सकता है । अगर वास्तविक स्थिति की बात करें तो खतरनाक कचरा प्रबंधन के लिए एक मात्र साइट पीथमपुर में भी इनसीनिरेटर पूरी तरह से चालू हालत में नहीं है। सूत्रों के मुताबिक, साइट के डवलप हो जाने के बाद 2006 में शुरू हो जाने वाल इनसीनिरेटर की विर्किंग भी मई महीने में ही शुरू हो पाई है। सिर्फ एक ही कंपनी को ठेका मप्र प्रदेश में हजारों की संख्या में औद्योगिक कंपनियां चलाई जा रही हैं, इसके बावजूद पिछले 10 सालों से प्रदेश में सिर्फ एक ही कंपनी (रैमकी इनविरो इंजीनियरिंग लिमिटेड) को खतरनाक कचरा प्रबंधन का चार्ज प्रदेश सरकार द्वारा दिया गया है। भोपाल के पास भी चिन्हित थी साइट सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड से प्राप्त रिपोर्ट के मुताबिक मप्र में 3 स्थानों भोपाल, जबलपुर और पीथमपुर को खतरनाक कचरा प्रबंधन के लिए साइट्स तैयार करने के लिए चिन्हित किया गया था, जबकि अभी तक सिर्फ एक ही साइट (पीथमपुर) को डेवलप किया गया । सवाल यह उठता है कि करीब 7 साल पहले चिन्हित तीन साइट्स में से पीथमपुर को ही डेवलप करने के लिए क्यों चुना गया, जबकि गैस त्रासदी के बाद यूका से निकलने वाले खतरनाक कचरे का प्रबंधन उस समय में भी चिंता का गंभीर विषय था। वहीं अब सरकार द्वारा यूका के खतरनाक कचरे के प्रबंधन के लिए करीब 300 करोड़ रुपए की राशि सैंक्शन की है। यह कचरा प्रबंधन साइट अगर भोपाल में होती तो जाहिर सी बात है कि प्रबंधन में इतनी ज्यादा धनराशि खर्च नहीं करनी पड़ती। भविष्य की प्लानिंग में 9 साइट्स और मध्यप्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड एक ओर जहां एक ही साइट को डेवलप कर लेने के बाद खतरनाक कचरा प्रबंधन की समस्या को लेकर संतुष्ट है, वहीं सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड ने रिपोर्ट में साफ किया है कि प्रदेश में औद्योगिक विकास को देखते हुए आगामी सालों में नौ अन्य स्थानों सतना, छिंदवाड़ा, खरगौन, भिंड, गुना, बैतूल, नरसिंगपुर, झाबुआ और देवास को भी खतरनाक कचरा प्रबंधन साइट बनाने के लिए चिन्हित किया है। जावड़ेकर ने बढ़ाई राज्य सरकार की मुश्किल यूनियन कार्बाइड का जहरीला कचरा जलाने को लेकर केंद्रीय वन एवं पर्यावरण राज्य मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने नया पेंच फंसा दिया है। उन्होंने धार जिले के पीथमपुर के स्थान पर कहीं और जलाने की वैकल्पिक व्यवस्था करने का बयान देकर राज्य शासन की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। शासन जहरीले कचरा को नष्ट करने के लिए पिछले 12 साल से प्रयासरत है। पीथमपुर में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर कचरा जलाने की कार्रवाई की जा रही है। सुप्रीम कोर्ट ने पीथमपुर स्थित रामकी इनवायरो के इंसीनरेटर में कचरा जलाकर खत्म करने केन्द्र सरकार को निर्देश दिए हैं। अदालत के डायरेक्शन पर ही केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने यूनियन कार्बाइड का दस टन कचरा जलाने का ड्राय रन भी कर लिया है और केंद्र सरकार को रिपोर्ट पेश की है कि कचरा जलाने से आम जीवन पर कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ेगा, लिहाजा शेष बचा 340 मीट्रिक टन कचरा जलाया जा सकता है। केन्द्र सरकार शीघ्र ही इस रिपोर्ट को सुप्रीम कोर्ट में पेश करने वाली है लेकिन वन एवं पर्यावरण मंत्री के बयान से नई समस्या खड़ी हो गई है। विभाग के अफसर जावड़ेकर के बयान को लेकर चकित भी हैं। दबी जुबान से कहा जा रहा है कि जब मामला सब जुडीशियल है तो ऐसे में केंद्रीय मंत्री का कचरा अन्यत्र जलाने की बात करना कहां तक उचित है? गौरतलब है कि यूनियन कार्बाइड का कचरा जलाने के लिए राज्य शासन 15 साल से प्रयासरत है लेकिन पूरी सफलता नहीं मिल पाई है। सबसे पहले गुजरात में कचरा भेजने के लिए फाइलें चलीं थीं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री हुआ करते थे तब इस बात के लिए सहमति हो गई थी कि अंकलेश्वर के इंसीनरेटर में कचरा जलाने में कोई आपत्ति नहीं है। राज्य शासन ने आदेश भी पारित कर दिए थे लेकिन प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के एक सदस्य सचिव के मना करने पर कचरा नहीं भेजा गया। राज्य सरकार ने फिर महाराष्ट्र में कचरा जलाने के लिए हाथ-पैर मारे लेकिन यहां भी सफलता नहीं मिली। चेन्नई में जलाने के भी किए गए प्रयास सफल नहीं हो सके। आखिरकार मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचने के बाद तय हुआ कि धार जिले के पीथमपुर में नष्ट किया जाएगा। पीसीबी ने की थी पीथमपुर की सिफारिश जहरीले कचरे को पीथमपुर स्थित रामकी इनवायरो के इंसीनरेटर में जलाकर खत्म करने की सिफारिश केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने की थी। कारखाने से नमूने के तौर पर 10 मैट्रिक टन कचरा ले जाकर उसे जलाने का ट्रायल भी बोर्ड दो मर्तबा कर चुका है। दोनों ही बार केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट को कचरा जलाने से पीथमपुर के पर्यावरण पर दुष्प्रभाव पर असर नहीं होने की रिपोर्ट भेजी है। ---------------

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें