सोमवार, 15 सितंबर 2014

बंदी की कगार पर ताप विद्युत गृह

-रिलायंस, जेपी, प्रिज्म सीमेंट ने दबाया कोयला
-विद्युत गृहों को कोयला आपूर्ति में हो रहा खेल
ताप गृहों की स्थिति
ताप विद्युत गृह कोयला खपत प्रतिदिन क्षमता उत्पादन
संजय गांधी पाली 15 हजार टन 3 करोड़ यूनिट 1.99करोड़
अमरकंटक चचाई 5 हजार टन 1 करोड़ यूनिट 66लाख
सारणी 15 हजार टन 3 करोड़ यूनिट 1.55 करोड़
खंडवा 5 हजार टन 1 करोड़ यूनिट 24 लाख
सुलगते सवाल
-यदि ताप विद्युत गृह संयंत्र बदतर स्थिति के कारण परफार्मेंस नहीं दे रहे, तो हर साल करोड़ों का मेंटेनेंस क्या कागजी है?
-अकसर कोयला न होने या कोयला घटिया होने का बहाना कम उत्पादन के लिए प्रबंधन गढ़ता है, तो लायजनर को क्लीन चिट क्यों?
-कम सीवी के कोयले से एनटीपीसी व निजी संयत्रों में 80 फीसदी बिजली उत्पादन, लेकिन एमपीजेपीसी के संयंत्रों में 62 से 66 फीसदी क्यों? -क्या अच्छी ग्रेड का कोयला प्रबंधन बदल लेता है?
- 17 मार्च 2013 से मप्र पावर जनरेशन कंपनी का रियल टाइम डाटा देने वाली बेवसाइट पर पासवर्ड देकर जनता के लिए क्यों बंद किया गया?
-कोल कैलोरिफिक कैलकुलेटर संयंत्रों में क्यों नहीं?
भोपाल। यह सुनकर आपको आश्चर्य होगा की देश के कोयला उत्पादन का 28 प्रतिशत उपलब्ध कराने वाले मप्र के ताप विद्युत गृह कोयले की कमी होने के कारण बंदी की कगार पर पहुंच गए हैं। प्रदेश के बिजली घरों में कोयले का संकट गहराता जा रहा है। एमपी पावर जनरेशन कंपनी ने संकट से निपटने के लिए घरेलू उत्पादन करने वाली कई इकाइयों को बंद कर दिया है, जबकि मांग और आपूर्ति में अंतर पाटने के लिए सेंट्रल ग्रिड और निजी सेक्टर से महंगे दर पर बिजली खरीदी जा रही है। वहीं कोयले की कमी के कारण मेंटनेंस और खराबी के नाम पर सतपुड़ा थर्मल पावर प्लांट की सर्वाधिक तीन इकाइयां बंद हैं। इनमें 62.5 मेगावाट की यूनिट नंबर 1, 200 मेगावाट की यूनिट नंबर 6, 250 मेगावाट की यूनिट नंबर 10 शामिल हैं। इसी प्रकार संजय गांधी थर्मल पावर प्लांट की 210 मेगावाट की इकाइयां बंद हैं। इनमें यूनिट नंबर 1 और 4 शामिल हैं। अमरकंटक थर्मल पावर प्लांट में लगी 120 मेगावाट की यूनिट नंबर 4 लंबे समय से बंद हैं। तीन माह पहले सिंक्रोनाइज हुई सिंगाजी थर्मल पावर प्लांट में लगी यूनिट नंबर 1 फिर से बंद हो गई है। इससे 600 मेगावाट बिजली का उत्पादन प्रभावित हो रहा है। प्रदेश के ताप विद्युत गृहों में कोयले की कमी होने के अलग-अलग तर्क दिए जा रहे हैं। अधिकारियों के अनुसार कोयले की कमी की बड़ी वजह साउथ ईस्टर्न कोल फील्ड लिमिटेड की खदानों पर लोडिंग और प्रदेश के पावर प्लांटों में अनलोडिंग में देरी है। कोयले के रैक पावर प्लांटों में घंटों विलंब से अनलोड होते हैं जिससे रेलवे को हर्जाना देना पड़ रहा है। विलंब के चलते प्रतिमाह आवंटित कोयले की मात्रा भी बिजली उत्पादन में नहीं खप रही है। साथ राज्य सरकार केंद्र को जिम्मेदार मान रही है,जबकि केंद्र का कहना है कि रिलायंस, जेपी, प्रिज्म सीमेंट जैसी कंपनियों ने कोयला दबा रखा है इसलिए मप्र में कोयला संकट उत्पन्न हुआ है। कोयले के संकट के बीच सरकार ने कोयला दबाकर बैठी निजी कंपनियों की पड़ताल शुरू कर दी है। दो दर्जन से अधिक कंपनियों को आवंटित कोल ब्लॉक की समीक्षा की जा रही है। इनमें मप्र में रिलायंस, जेपी गु्रप, प्रिज्म सीमेंट जैसी कंपनियां भी शामिल हैं। केंद्र के राडार में मप्र खनिज विकास निगम के भी दो कोल ब्लॉक शामिल हैं। गौरतलब है कि गत फरवरी माह में कंपनियों को आवंटित कोल ब्लॉक में उत्पादन शुरू नहीं किए जाने पर तत्कालीन केंद्र सरकार ने नाराजगी जाहिर की थी। कंपनियों को नोटिस जारी कर आधा दर्जन से अधिक की बैंक गारंटी राजसात की थी, लेकिन कंपनियों पर फर्क नहीं पड़ा। इस समय कोयले का संकट चरम पर होने से फिर सरकार ने कोल ब्लॉकों की खैर खबर लेने की तैयारी में है। कोल मंत्रालय ने गतदिनों ब्लॉकों की समीक्षा की तो कई विसंगतियां सामने आईं,जिसके कारण मप्र में कोयला संकट उत्पन्न हुआ है। कोल मंत्रालय की समीक्षा में कोल ब्लॉक आवंटन मामले में अब एक नया खुलासा हुआ है। बताया जाता है कि प्रदेश सरकार की अनुशंसा पर जिन कंपनियों को मप्र में कोल ब्लॉक आवंटित किए गए थे उनमें से कईयों ने या ता अभी उत्पादन शुरू नहीं किया है या फिर वे कोयला सप्लाई नहीं कर रही हैं। कोयला मंत्रालय इसके लिए मप्र सरकार की ढुलमुल नीति को दोषी मानता है। निजी कंपनियों को फायदा पहुंचाने कायदे ताक पर कोल मंत्रालय की समीक्षा में कोल ब्लॉक आवंटन मामले में अब एक नया खुलासा हुआ है। मध्य प्रदेश सरकार ने निजी कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए सारे नियम कायदे ताक पर रख दिए। नतीजा ये कि कोयला खनन से होने वाली कमाई का मोटा हिस्सा निजी कंपनी की जेब में जा रहा है। मध्य प्रदेश सरकार ने अमेलिया ब्लॉक की 70 फीसदी हिस्सेदारी उसके हवाले कर दी थी। सरकारी कोल ब्लॉक का मालिकाना हक निजी हाथ में दिए जाने का मामला गंभीर था। ये मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया। सुप्रीम कोर्ट ने निजी कंपनी और राज्य सरकार के बीच समझौते को रद्द करने का फैसला दिया। इसके बाद केंद्र ने मध्य प्रदेश को अमेलिया कोल ब्लॉक के लिए निजी कंपनी के साथ हुए समझैते को रद्द करने के लिए कहा। केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी मध्य प्रदेश सरकार दो साल तक हाथ पर हाथ धरे बैठी रही और दो साल बाद कार्रवाई हुई भी तो नाम मात्र की। एमपी सरकार ने निजी कंपनी के साथ समझौता रद्द नहीं किया बल्कि कोल ब्लॉक में उसकी हिस्सेदारी भर घटा दी। खनिज मंत्री राजेंद्र शुक्ला ने बताया कि जो ज्वाइंट वेंचर कंपनी बनी है उसमें 51 फीसदी शेयर सरकार का है बाकी 49 फीसदी सैनिक माइनिंग कंपनी का तो फिर वो सरकारी ब्लॉक हो गया। आज की तारीख में सरकार का मालिकाना हक है। तमाम सवालों और आरोपों के बावजूद राज्य सरकार अब भी इस मामले में अपनी गलती मानने को तैयार नहीं है। उधर,मप्र के अधिकारियों का कहना है कि चूंकि प्रदेश बिजली संकट से जूझ रहा था तो खनिज निगम ने पॉलिसी बनाई थी कि जो हमको सब्सिडाइज्ड रेट पर बिजली देगा उनको हम कोयला देंगे। उसमें हमारा मध्यप्रदेश इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड भी है। जिस सैनिक माइनिंग कंपनी के साथ अनुबंध हुआ उससे साठ फीसदी कोयला इसी बोर्ड को बीस फीसदी सब्सिडाइज्ड रेट पर मिलेगा। बाकी दो कंपनियां भी प्रदेश को सब्सिडाइज्ड रेट पर बिजली उत्पादन करेंगी, उनको हम कोयला देंगे। यही नहीं, करीब 150 करोड़ रूपए की बकायादार एसीसी सीमेंट ग्रुप की एएमआरएल (एसीसी माइनिंग रिसोर्स डेवलपमेंट लिमिटेड)और जेपी ग्रुप की 3 कंपनियों को बिना वसूली मप्र खनिज विकास निगम ने 50 हजार करोड़ रूपए के 7 कोल ब्लॉक में खनन का अधिकार दे दिया है। निगम और कंपनियों में इतना बड़ा सौदा मात्र एक आश्वासन पर हुआ, जिसमें कंपनियों ने बकाया खनिज राजस्व जमा करने की बात कही थी। इतना ही नहीं, खनन एग्रीमेंट पर दस्तखत के बाद इन कंपनियों ने बकाया चुकाने की जगह प्रदेश सरकार को ठेंगा दिखा दिया। फिलहाल बकाए का ये मामला हाई कोर्ट में है। करोड़ों के बकाएदारों पर हुई अरबों की मेहरबानी दरअसल, केंद्रीय कोयला मंत्रालय ने 2006 से 07 के बीच मप्र खनिज विकास निगम को 9 कोल ब्लॉक आवंटित किए। इनमें दो छत्तीसगढ़ के हैं। कोयला उत्पादन के लिए निगम ने साझा उपक्रम कंपनियों को खोजा। निविदाएं बुलाई गई, जिनमें 140 कंपनियां आई। इन सभी को दरकिनार कर निगम ने खजिन विभाग की करोड़ों की रॉयल्टी के बकायादार एसीसी की एएमआरएल से चार और जेपी ग्रुप की 3 कंपनियों से ज्वाइंट वेंचर एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर किए, जबकि 2 अन्य ब्लॉक के लिए मोनेट इस्पात और सैनिक कोलफील्ड्स से करार किया गया है। जेपी : 124 करोड़ का बकाया इसकी तीन कंपनियां जेपी कोल फील्ड्स, जेपी कोल लि. एवं जेपी माइनिंग एंड मिनरल्स को ब्लॉक मिले। एक झटके में तीनों कंपनियां 35 हजार करोड़ रूपए के कोल भंडार की मालिक बन गर्ई, जबकि कंपनियों की मातृ संस्था जेपी ग्रुप पर रीवा में 114 करोड़ और सीधी व सतना में भी करीब 10 करोड़ की देनदारी बकाया है। एसीसी : 20 करोड़ की देनदारी 2011 में खनिज विभाग कटनी ने विजयराघवगढ़ में स्थापित 20 करोड़ की बकायादार एसीसी सीमेंट को खदानें बंद कराने का नोटिस भेजा था। बकाया तो मिला नहीं, बदले में निगम ने इसकी कंपनी एएमआरएल को 18 हजार करोड़ के चार कोल ब्लॉक दे दिए। इनमें एक छत्तीसगढ़ में है। अब ये कंपनियां मनमानी पर उतर आई हैं। ये कोल इंडिया की गाइड लाइन के अनुसार न तो कोयले का खनन कर रहीं हैं और न ही समय पर सप्लाई। यही नहीं ये कंपनियां अच्छी क्वालिटी का कोयला जमा कर रही हैं और घटिया किस्म का कोयला सप्लाई किया जा हरा है। केंद्र द्वारा निजी कंपनियों को आवंटित 56 ब्लॉकों पर सवाल उठाते हुए कैग ने भी जो गणना की, उसके मुताबिक 1.86 लाख करोड़ राजस्व की क्षति हुई। गणना के अनुसार कोयले की बेस प्राइज 1028 रूपए प्रति टन रखी गई। मप्र खनिज विकास निगम को आवंटित खदानों में 103.5 करोड़ टन कोयला भंडार है। एग्रीमेंट के मुताबिक जेपी ग्रुप को मिले ब्लॉकों में 34.82 करोड़ टन एवं एएमआरएल के चार ब्लॉकों में 18.96 करोड़ टन कोयला अनुमानित है। बेस प्राइज के अनुसार इनसे 50 हजार करोड़ से अधिक का कोयला उत्पादित होगा। बाजार मूल्य पर यह कीमत और ज्यादा होगी। इस मामले में खनिज विभाग के सचिव अजातशत्रु श्रीवास्तव कहते हैं कि एसीसी सीमेंट और जेपी एसोसिएट के खनिज राजस्व बकाया संबंधी मामले हाई कोर्ट में हैं, इसलिए इस विषय पर कुछ भी नहीं कह पाऊंगा। कंपनियों के लिखित आश्वासन के बारे में हाई कोर्ट में सरकार की ओर से पक्ष रखा जाएगा। जेपी को बना दिया मालिक सत्ता के गलियारों के रसूखदार कार्पोरेट घराने जेपी एसोसिएट पर सरकार की मेहरबानी का एक और खुलासा हुआ है। मप्र खनिज विकास निगम ने कंपनी को संयुक्त भागीदार बनाने की बजाय मप्र के सबसे बडे कोल ब्लॉक्स में से एक 12 हजार करोड़ के अमिलिया ब्लॉक का मालिक बना दिया। इसमें जेपी ग्रुप की भागीदारी 51 फीसदी है, जबकि मप्र सरकार के हिस्से में 30 फीसदी का मुनाफा आएगा। भारत के कार्पोरेट इतिहास का यह पहला मामला है जब कोई ज्वाइंट वेंचर कंपनी परिसंपत्ति की मालिक बनी है। ऐसा तभी हो सकता है जब सार्वजनिक क्षेत्र का कोई उपक्रम अपनी भागीदारी को बेच दे, लेकिन मप्र सरकार ने अमिलिया कोल ब्लाक के एग्रीमेंट की मेहरबानी के साथ मालिकाना हक भी जेपी गु्रप को सौंप दिया। निगम को ऐसा करने का अधिकार भी नहीं था। अपने ही हाथों 21 फीसदी भागीदारी के साथ ही मालिकाना हक गंवाने वाली राज्य सरकार को अरबों रूपए का चूना लगना तय है। 19 फीसदी शेयर किसका? अमेलिया कोल ब्लॉक का करार हुए करीब आठ साल बीत चुके हैं लेकिन इस ब्लॉक में 19 फीसदी शेयर किसका है यह रहस्य ही बना हुआ है। सरकार और जेपी ग्रुप के बीच हुए अनुबंध के अनुसार 30 प्रतिशत भागीदारी मप्र खनिज विकास निगम के पास रहेगी। कोल ब्लॉक को विकसित करने में उसे कोई राशि नहीं वहन करनी पड़ेगी। जबकि 51 फीसदी शेयर कंपनी के पास रहेंगे। शेष 19 फीसदी में कौन, इस पर दोनों मौन हैं। 12 हजार करोड़ के कोल ब्लॉक का मालिकाना हक निजी कंपनी को सौंपे जाने पर भारत सरकार ने आपत्ति जताई थी। इसके बाद मप्र खनिज विकास निगम ने दो अन्य कोल ब्लॉक्स डोंगरी ताल दो जिला सिंगरौली और मंडला के लिए जो अनुबंध किए उसमें 51 फीसदी की भागीदारी अपने पास रखी और 49 प्रतिशत जेपी ग्रुप की कंपनियों को दिए। ऐसा ही एसीसी सीमेंट के साथ चार कोल ब्लॉक्स के करार क्रमश: 51 और 49 फीसदी के अनुपात में ही किए गए। इस तरह से हुआ खेल मप्र सरकार की करोड़ों के खनिज राजस्व की बकायादार कंपनी जेपी ग्रुप ने सरकार से सिंगरौली जिले के निगरी में 1000 मेगावॉट उत्पादन क्षमता का थर्मल पॉवर प्लांट लगाने का एमओयू साइन किया था। इसके बाद कंपनी कोल ब्लॉक हासिल करने की जुगत में लग गई। इसी दौरान मप्र सरकार के उपक्रम खनिज विकास निगम को कोल ब्लॉक आवंटित किए गए। सरकार से सांठगांठ कर कंपनी बकाया राशि पटाए बिना 118 मिलियन टन क्षमता वाले 12 हजार करोड़ के अमेलिया कोल ब्लॉक की ज्वाइंट वेंचर बन गई। जनवरी 2006 में हुए करार में सरकार ने 51 फीसदी हिस्सा जेपी गु्रप को सौंपते हुए मालिक ही बना दिया। प्रदेश की दो बड़ी सीमेंट कंपनियों जेपी एसोसिएट और एसीसी सीमेंट के धोखे का शिकार होने के बाद भी राज्य सरकार की उन पर मेहरबानी बरकरार है। मप्र खनिज विकास निगम लिमिटेड से 50 हजार करोड़ के कोल ब्लॉक का ज्वाइंट वेंचर एग्रीमेंट करने वाली करोड़ों की बकायादार इन कंपनियों ने बकाया राशि जमा करने के लिए सरकार से मोहलत मांगी थी। सरकार ने आश्वासन पत्र पर भरोसा कर समय भी दे दिया। इसके बावजूद कोल ब्लॉक एग्रीमेंट के बाद बकाया राशि जमा कराने की जगह कंपनियों ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और स्टे ले लिया। हजारों करोड़ के टर्नओवर वाले जेपी समूह ने रीवा व सीधी में बकाया 61 करोड़ रूपए पटाने में आर्थिक तंगी का हवाला देकर असमर्थता जताई थी। एग्रीमेंट और खदान आवंटन के लिए जेपी के एमडी सनी गौड़ ने जनवरी 2013 में सरकार को अंडरटेकिंग देकर बकाया जमा करने के लिए समय मांगा था। साथ ही कहा था कि कोल ब्लॉक मिलने के बाद जुलाई 2013 तक बकाया किश्तों में जमा करेंगे। लेकिन इससे मुकरते हुए कंपनी हाई कोर्ट चली गई। जेपी ने कोल ब्लॉक एग्रीमेंट और खदानों की पीएल मिलने के बाद बकाया के साथ नियमित रायल्टी का भुगतान भी रोक दिया। लिहाजा इस कंपनी पर रीवा जिले का खनिज राजस्व बकाया बढ़कर 114 करोड़ पहुंच गया। इस मामले में रीवा के जिला खनिज अधिकारी आरएन मिश्र कहते हैं कि जेपी गु्रप द्वारा बकाया चुकाने के लिए अंडरटेकिंग दी गई थी। बाद में रकम नहीं जमा कराई गई अब वसूली पर हाईकोर्ट से स्थगन है। नियमित रायल्टी की राशि के भुगतान लेने के प्रयास किए जा रहे हैं। रीवा में बकाया राशि 114 करोड़ है। एसीसी सीमेंट को दिया था नोटिस कटनी में 20 करोड़ बकाया होने के बाद भी एसीसी ने 4 कोल ब्लॉक और लाइम स्टोन की खदानें ले लीं। 2011 में जिला खनिज अधिकारी कटनी ने 20 करोड़ की बकाया राशि जमा कराने के लिए नोटिस देते हुए लाइम स्टोन की खदानों में खनन पर रोक की चेतावनी दी थी। एसीसी ने राशि पटाने के बजाय हाईकोर्ट में याचिका लगाकर वसूली पर रोक लगाने का आग्रह किया। कटनी के जिला खनिज अधिकारी जितेन्द्र सिंह सोलंकी कहते हैं कि एसीसी सीमेंट पर जो भी बकाया राशि है, उसकी वसूली हाईकोर्ट के आदेश के बाद नहीं की जा रही है। नियमित रायल्टी भुगतान मिल रहा है। विद्युत गृहों की दुर्दशा का जिम्मेदार कौन है? आखिर मप्र के ताप विद्युत गृहों की दुर्दशा का जिम्मेदार कौन है? जवाब एक ही मिलता है,मप्र जनरेटिंग पावर कंपनी के अधिकारी की नीति और नीयत। ताप विद्युत गृहों को निजीकरण की ओर धकेलने वाली एमपीजेपीसी के अधिकारियों की नीति ने ताप विद्युत गृहों को दिवालिया बना दिया है। इसे आंकड़ों की बानगी भी समझा जा सकता है। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि एनटीपीसी व निजी थर्मल पावर संयंत्रों का परफार्मेंस 78 से 82 फीसदी तक दर्ज किया जाता है, जबकि एमपीजेपीसी द्बारा नियंत्रित चार थर्मल पावर संयंत्रों का परफार्मेंस 66 फीसदी दर्ज किया गया । हाल ही में स्वयं सूबे के मुखिया शिवराज सिंह चौहान ने ही पत्र लिखकर कोयला मंत्री पीयूष गोयल से इस बात का खुलासा किया है कि एमपीजेपीसी के संयंत्रों को 5800 कैलोरिफिक वैल्यू (सीवी)का कोयला दिया जा रहा है। आंकड़े बताते हैं कि 10 साल पूर्व वर्ष 2004-05 में एमपीजेपीसी के पावर संयंत्रों का परफार्मेंस 72.5 फीसदी दर्ज किया गया था, जबकि उस दौरान संयंत्रों को कोयला 2700-2900 सीवी का आपूर्ति किया जाता था। इधर लंबे अर्से से 5800 सीवी का कोयला मिलने लगा तो परफार्मेंस घटकर 62 फीसदी में सिमट गया। पावर सेक्टर के एक्सपट्र्स की माने तो डिजायन हीट रेट के सिद्धांत के अनुसार परफार्मेंस यानि बिजली उत्पादन बढऩा चाहिए था, लेकिन तीन गुना महंगा कोयला प्रयोग करने के बाद भी बिजली उत्पादन में आई गिरावट निजीकरण की पृष्ठ भूमि तैयार करने की गहरी साजिश की ओर इशारा करता है,जिसमें मददगार साबित होते नजर आ रहे हैं, मप्र जनरेटिंग पावर के जिम्मेदार अधिकारी । रोजाना फुंक रहा 40 हजार टन कोयला राज्य के एमपीजेपीसी के संयंत्रो में रोजाना औसतन 40 हजार टन कोयला फुंकता है, जिससे मांग के 15 करोड़ यूनिट बिजली के मुकाबले महज 4 करोड़ 55 लाख यूनिट बिजली उत्पादित होती है। इसमे से 10 लाख यूनिट हाइड्र संयंत्रों से पूरी की जाती है। आंकड़े साफ बताते हैं कि तकरीबन आठ करोड़ यूनिट बिजली उत्पादन की क्षमता रखने वाले एमपीजेपीसी के संयंत्रों में पचास फीसदी बिजली ही उत्पादित हो रही है जबकि खर्च चार गुना अधिक किया जा रहा है। क्या कहता है कि डिजायन रेट सिद्धांत डिजायन रेट सिद्धांत के अनुसार 5800 सीवी का कोयला उपयोग होने पर प्रति यूनिट पांच सौ से साढ़े पांच सौ ग्राम कोयला खर्च होना चाहिए, लेकिन संजय गांधी ताप विद्युत गृह में रहस्यमयी अंदाज में 800-850 ग्राम कोयला फूंका जा रहा है। कमोबेश यही स्थिति एमपीजेपीसी के सभी संयंत्रों की है। जाहिर है कि तीन गुने महंगे कोयले की खपत करने वाले संयंत्रों में 25 फीसदी कोयला अतिरिक्त फुंक रहा है। सिर्फ संजय गांधी ताप विद्युत गृह में रोजाना लगभग तीन करोड़ का तीन हजार टन कोयला कुप्रबंधन के कारण अतिरिक्त जला दिया जाता है। जाहिर है कि एमपीजेपीसी पर कोयला भुगतान का जो 966 करोड़ का कर्ज चढ़ा है, वह इसी कुप्रबंधन का परिणाम है, जिसकी रिकवरी एमपीजेपीसी के अधिकारियों व लायजनर्स से होनी चाहिए, लेकिन कोयले की कालिख ऊपर से नीचे तक पुती होने के कारण जिम्मेदार वास्तविकताओं से मुंह मोड़कर न केवल आकड़ों की बाजीगरी कर रहे हैं, बल्कि निजीकरण की शतरंजी बिसात भी बिछा रहे हैं, ताकि कुप्रबंधन , अधिक लागत व कम उत्पादन के चलते संयंत्र बंद हों और निजी कंपनियों का पावर सेक्टर पर कब्जा जमाने का मार्ग प्रशस्त हो सके। ढाई करोड़ रोजाना लास, आब्जर्वेशन पर सारणी भले ही सरकार पावर सेक्टर में आत्मनिर्भरता का दम भरे, लेकिन आंकड़े बताते हैं कि सारणी ताप विद्युत गृह ढाई करोड़ रोजाना के कामर्शियल लास पर चल रही है, जिसके चलते इसे जबलपुर मुख्यालय ने यहां के कोयला व तेल खपत व डिक्लेयर्ड कैपासिटी को आब्जर्वेशन में ले रखा है, बावजूद इसके यहां की स्थितियों में कोई सुधार नहीं आया है। नीति और नीयत कसौटी पर विद्युत ताप गृहों के संचालन में अधिकारियों की नीति और नीयत का अंदाजा महज इस बात से लगाया जा सकता है कि रोजाना करोड़ों का तीन हजार टन कोयला अतिरिक्त फंूकने वाले संजय गांधी समेत अन्य ताप संयंत्रों में महज चंद लाख का आने वाला कोल कैलोरिफिक कैलकुलेटर तक नहीं है, जिससे यह मापा जा सके कि संयत्र में कितने कैलोरी का कोयला फंका जा रहा है। जानकार मानते हैं कि ऐसा होने पर कोयले की कैलोरी का भ्रम फैलाकर बिजली उत्पादन प्रभावित करने वाले एमपीजेपीसी के जिम्मेदारों की कलई खुल सकती है। मुनाफे के लिए घटिया कोयले की सप्लाई सरकार के तमाम प्रयासों के बावजूद प्रदेश के ताप विद्युत गृहों में घटिया किस्म का कोयला सप्लाई किया जा रहा है। लाइजनर और अधिकारियों की मिलीभगत से हो रहे इस गोरखधंधे से जहां विद्युत उत्पादन कम हो रहा है वहीं लाइजरन खुब मुनाफा कमा रहे हैं। अभी हालही में संजय गांधी ताप विद्युतगृह में ऐसा ही मामला सामने आया है। उमरिया जिले के पाली बिरसिंहपुर स्थित संजय गांधी ताप विद्युतगृह में कोयले का गोरखधंधा वर्षों से चल रहा है। अक्सर बंद रहने वाली इकाइयों व अनुपात के विपरीत हाईग्रेड कोयले के इस्तेमाल के लिए पहले ही बदनाम इस ताप विद्युतगृह में कोयले की रैकों में चल रहे खेल का सनसनीखेज मामला प्रकाश में आया है। लायजनर नायर एंड संस की देखरेख में 29 जून को जो रैक आई उसकी 59 बोगियों में से 17 में कोयला क्षमता से कम था। इस रैक से लोवर ग्रेड (जी-10,11) कोयले की आपूर्ति की गई थी। लायजनर नायर एंड संस ने जिस रैक से आपूर्ति की, उसकी 59 बोगियों की सीसी वैल्यू (कैरिग कैपासिटी यानि वहन क्षमता) 58 एमटी है लेकिन उनमें से 17 बोगियों में वहन क्षमता से कम कोयला लादा गया। उदाहरण के लिए रैक के पहले बॉक्स एन में 41.74 एमटी, बॉक्स-एन क्रमांक-24 में 38.26 एमटी, बॉक्स एन क्रमांक-45 में 38.38 एमटी कोयला लादा गया। जाहिर है कि इनमें अंडरलोड सस्ते कोयले की आपूर्ति की गई। इसके बावजूद प्रबंधन ने इस पर कोई आपत्ति दर्ज नहीं कराई। 29 जून को आई रैक की बोगी क्रमांक-1, 16,1 7,19, 20,21, 22, 24, 28,30, 31,40,42,43,44,45 और 50 में कोयला क्षमता से कम पाया गया। पावर सेक्टर के जानकारों की मानें तो लाइजनर ऐसा केवल सस्ते कोयले की आपूर्ति में करते हैं। जानकार बताते हैं कि लो-ग्रेड कोयला जहां 1400 से 1600 रूपए के बीच आता है,वहीं हाईग्रेड कोयले की कीमत संयंत्र पहुंचकर 4200 से 5000 रूपए प्रति टन हो जाती है। ... तो यू होता है खेल हाईग्रेड कोयले के इस्तेमाल पर राज्य सरकार पहले ही चिंता जता चुकी है। लेकिन संजय गांधी ताप विद्युतगृह प्रबंधन को इससे कुछ लेना-देना नहीं है। कोयला आपूर्ति से इसका अंदाजा मिलता है। 30 जून तक संजय गांधी ताप विद्युतगृह 5.33 लाख एमटी कोयला आवंटित हुआ। विद्युतगृह इसमें से सिर्फ 4.02 लाख एमटी ही उठा सका। आवंटित कोयला 133 रैकों में आना था लेकिन माह के अंतिम दिन तक 101 रैक ही पहुंच सकी। इसके बावजूद मुनाफे का गणित जून-2014 की अप्रूव्ड रेल प्रोग्रामिंग को दरकिनार कर निकाल लिया गया। संजय गांधी ताप विद्युत गृह में जून महीने में भी आवंटित कोयले का पूरा उठाव नहीं हो पाया है। इस मामले में जब मुख्य अभियंता एके टेलर से चर्चा की गई तो उन्होंने इस बारे में तत्काल कोई बात करने से यह कहकर इंकार कर दिया कि वे अभी इस बारे में कुछ नहीं कह सकते। संजय गांधी ताप विद्युत गृह को माह जून के लिए पांच लाख तीस हजार मीट्रिक टन कोयले का आवंटन प्राप्त हुआ था। जबकि 29 जून की शाम तक सिर्फ चार लाख मैट्रिक टन कोयला ही उठाया जा सका है। शेष एक लाख तीस हजार मैट्रिक टन कोयला लेप्स हो गया। इस तरह आया कोयला जून 2014 के लिए आवंटित पांच लाख 33 हजार मैट्रिक टन में से 101 रैक में सिर्फ चार लाख टन कोयला ही आ पाया था। जबकि इस कोयले की ढुलाई कुल 133 रैक में की जानी थी। तात्पर्य यह है कि अभी 32 रैक कोयला और ढोया जाएगा, तब कोयले का आवंटन पूरा उठ पाएगा। सामान्य तौर पर यहां प्रतिदिन तीन से चार रैक कोयला ही उतर सकता है। जून में 60 प्रतिशत हायर ग्रेड का कोयला पूरा उठा लिया गया था। इस कोयले को उठाने के लिए अस्सी रैक लगाए गए थे। तात्पर्य यह है कि लो ग्रेड का कोयला सिर्फ 21 रैक में ही लाया गया। 40 प्रतिशत लोवर ग्रेड का कोयला कोरबा एरिया से उठाया जाता है। ये कोयला सस्ता पड़ता है जिसकी वजह से बिजली तैयार करने में लागत कम आती है लेकिन हायर ग्रेड का कोयला उठाने के चक्कर में लोवर ग्रेड का कोयला छोड़ दिया गया है। ...तो न रहेगी बिजली की ज्योति अटल संजय गांधी ताप विद्युतगृह प्रबंधन की तरह ही प्रदेश के अन्य तापगृहों की भी कोयला उठाव के मामले में यही स्थिति है। जहां संजय गांधी ताप विद्युतगृह प्रबंधन सवा लाख मीट्रिक टन कोयले का उठाव नहीं कर सका, वहीं खंडवा के नवनिर्मित ताप विद्युतगृह आवंटित कोयले का पचास फीसदी भी नहीं उठा पा रहा है। ऐसे में बिजली का बनना ही सवालों में घिर गया है। आंकड़े गवाह हैं कि चार विद्युत तापगृहों में कुल 3512.5 मेगावाट उत्पादन की क्षमता है जबकि इन दिनों डिमांड 6600 मेगावाट तक पहुंच जाती है। बावजूद इसके कोयले की कमी या इंफ्रास्ट्रक्चर ध्वस्त होने का बहाने महज 1800 से 2000 मेगावाट बिजली ही बन रही है। ये लक्षण प्रदेश में बिजली के आने वाले बुरे दिनों की ओर संकेत करते हैं। अमरकंटक ताप विद्युत केन्द्र चचाई में 120 मेगावाट क्षमता की चार नंबर इकाई की टरबाइन तकनीकी खराबी की वजह से बंद है। टरबाइन की वायरिग में जटिल समस्या आ गई है। अधिकारियों-कर्मचारियों का इसमें हाथ बताया जा रहा है। विद्युत तापगृहों की कार्यप्रणाली पर अंकुश लगाने के बजाय इलेक्ट्रिसिटी जनरेटिंग सेंटर की कोशिश यह जताने की है ताप इकाइयां लो-डिमांड के कारण बंद हुई हैं जबकि सूत्र बताते हैं कि इन्हें जेसीसी के आदेश के बाद बंद किया गया है। आदेश में कहा गया है कि प्रदेश में बिजली की मांग नहीं हो रही है जो किसी के भी गले नहीं उतर सकती हालांकि इसे सिद्ध करने के लिए आंकड़ों की जादूगरी की जा रही है। किसी काम का नहीं था हाईग्रेड कोयला आखिर प्रदेश सरकार की कुभकर्णी नींद तब टूटी जब ताप विद्युतगृहों पर 966 करोड़ से अधिक का कर्ज चढ़ गया। कोयला संकट के बहाने से जब-तब बंद रहने वाली ताप विद्युत इकाइयों पर भारी-भरकम बकाया सामने आने के बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कोयला मंत्री को पत्र लिखा। इसमें संजय गांधी ताप विद्युतगृह को दिए जा रहे हाईग्रेड कोयले (5800 कैलोरिफिक वैल्यू) का आवंटन कम करने की मांग की गई है। गौरतलब है कि वर्ष 2008-09 में हाईग्रेड कोयले का आवंटन प्रतिशत 12.6 फीसदी से बढ़ाकर 61 फीसदी किया गया था। नतीजतन संजय गांधी ताप विद्युतगृह में बिजली उत्पादन की लागत 1.21 रुपए बढ़ गई थी। पत्र में कहा गया है कि 61 फीसदी हाईग्रेड कोयला आपूर्ति की वजह से मप्र पावर जनरेटिंग कंपनी पर अतिरिक्त कर्ज बढ़ गया है। इस कारण बिजली उपभोक्ताओं के ऊपर भार बढ़ रहा है। तो क्या कर रहे थे लायजनर विगत दिवस संजय गांधी ताप विद्युतगृह की दो इकाइयां कोयले की कथित कमी के कारण बंद हो गई जबकि सूत्रों का कहना है कि प्रबंधन के पास सात दिनों तक के लिए तकरीबन 1.18 लाख टन का ग्राउंड स्टाक मौजूद है। यदि यह सही है तो उसे प्रबंधन उपयोग लाए बगैर इकाइयां बंद कैसे कर सकता है? और यदि कोयला गुणवत्तापूर्ण नहीं है तो जनरेटिंग कंपनी का लायजनर क्या कर रहा है? उल्लेखनीय है कि मप्र इलेक्ट्रिसिटी जनरेटिंग कंपनी ने गुणवत्तापूर्ण कोयले की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए लाखों रुपए खर्च कर लायजनर नियुक्त किए हैं। हालांकि हो उल्टा रहा है। जब से लायजनर नियुक्त हुए हैं, तब से न तो कोयले का उठाव सही ढंग से हो रहा है और न ही गुणवत्तापूर्ण कायले की आपूर्ति हो रही है। जब लंबे अर्से से हाईग्रेड 5800 सीवी कोयले की आपूर्ति हो रही थी, तो लाखों का भुगतान पाने वाले लायजनर नायर एंड संस क्या कर रहे थे? यह सवाल मुख्यमंत्री के चिट्ठी लिखने के बाद उठना लाजिमी हो गया है। सीएम के पत्र में बताया गया है कि दिए गए 5800 सीवी के हाईग्रेड कोयले के उपयोग की अनुशंसा ही नहीं थी। संजय गांधी ताप विद्युत गृह के लिए 2800 से 3200 सीवी का कोयला ही उपय़ुक्त है क्योंकि यहां का बॉयलर डिजायन 2700 सीवी के आसपास ही है। यह तथ्य सामने आने के बाद लायजनर की भूमिका सवालों में घिर गई है। उत्पादन 75 मिलियन मिलता है 17 मिलियन देश के कोयला उत्पादन का 28 प्रतिशत प्रदेश की धरती से हर साल राष्ट्र को उपलब्ध कराया जाता है। यह मात्रा लगभग 75 मिलियन टन है, लेकिन प्रदेश के बिजली प्लांटों के लिए 17 मिलियन टन कोयला भी प्रदेश को केंद्र सरकार नहीं दे रही है। प्रदेश में बिजली उत्पादन का मुख्य स्रोत कोयला ही है। बिजली प्लांटों के लिए कोयला केंद्र सरकार उपलब्ध कराती है। कोल इंडिया लिमिटेड यह मात्रा तय करती है। प्रदेश के बिजली प्लांटों के लिए केंद्र सरकार ने लगभग 17 मिलियन टन कोयला आपूर्ति का कोटा तय किया है, लेकिन पिछले चार सालों से प्रदेश को लगभग 13-14 मिलियन टन कोयला ही मिल पा रहा है। कोयले की आवंटित मात्रा उपलब्ध कराने के लिए 2009 में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सारणी से कोयला यात्रा भी निकाली थी। मप्र के कोयला उत्पादन में भारी कमी के आसार पुरानी खदानों के बंद होने और नये कोल ब्लॉकों में उत्पादन शुरू न होने से राज्य में कोयले के उत्पादन में भारी कमी होने जा रही है। उत्पादन में होने वाली यह संभावित कमी राज्य सरकार के लिए चिंता का विषय बन गई है क्योंकि खनन से मिलने वाली कुल रॉयल्टी में कोयले का हिस्सा 60 फीसदी होता है। देश की 55 प्रतिशत बिजली कोयले से बनती है और इसका दस प्रतिशत 'एनर्जी कैपिटलÓ के नाम से मशहूर सिंगरौली जिले से आता है। सिंगरौली जिले में कई कोयला खदानें है। इसमें से सबसे बड़े कोल रिजर्व वाली झिंगुरदाह खदान जल्द ही बंद होने वाली है। एनसीएल की गोरबी खदान में भी कोयला कम बचा हुए है। प्रदेश के सिंगरौली की सभी खुली खदानेंं है, यहां के अलावा प्रदेश की ज्यादातर खदाने भूमिगत है और काफी पुरानी है। प्रदेश में फिलहाल कोल इंडिया की तीन सहायक कंपनियां एनसीएल, एसईसीएल और डब्ल्यूसीएल की कुल छह खदानें है। दूसरी ओर प्रदेश के नये कोल ब्लॉकों में अभी तक कोल उत्पादन शुरू नहीं हुआ है तथा अगले दो सालों तक उनके शुरू होने की कोई संभावना भी नहीं है। प्रदेश में विभिन्न पॉवर कंपनियों को 22 कोल ब्लॉक आवंटित किए गए है, जिनका अनुमानित कोल भंडार 3100 मिलियन टन का है। ये ब्लॉक सिंगरौली, शहड़ोल, उमरिया, अनूपपुर और छिंदवाड़ा में है। जिन कंपनियों को यह आवंटित किए गए है उनमें रिलायंस एनर्जी लिमिटेड, एस्सार पॉवर, मध्य प्रदेश राज्य खनिज निगम, राष्ट्रीय खनिज विकास निगम, जेपी एसोसिएटस, एसीसी लिमिटेड शामिल है। आज की स्थितियों को देखते हुए तय माना जा रहा है कि जब तक नए कोल ब्लॉकों में उत्पादन शुरू नहीं होगा, प्रदेश में कुल कोयला उत्पादन नहीं बढ़ेगा। ऐसी स्थिति में राज्य को कोयले से होने वाली रॉयल्टी में भी कमी आएगी।

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