सोमवार, 15 सितंबर 2014

मोस्ट करप्ट अफसरों की कुंडली बना रहा पीएमओ

10 साल के भ्रष्टाचार का हिसाब-किताब जुटाने में जुटी सरकार
-पीएम मोदी की हिट लिस्ट में मप्र कैडर के दो अफसरों सहित 34 आईएएस शामिल
-4619 आईएएस अफसरों में से 1476 के भ्रष्टाचार की हो रही जांच
-पिछले 10 साल में 157 आईएएस पर दर्ज हुए हैं भ्रष्टाचार के मामले
-71 की जांच कर रही सीबीआई vinod upadhyay
भोपाल। कांग्रेस नीत यूपीए सरकार के 10 साल के शासनकाल में हुए 38 घोटालों के साथ ही प्रदेशों में हुए बड़े घोटालों की फाइलें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्देश पर खुलनी शुरू हो गई है। इन तमाम घोटालों के सूत्रधार रहे नौकरशाहों की कुंडली पीएमओ द्वारा बनाई जा रही है। केंद्र के साथ ही विभिन्न राज्यों में पदस्थ 4619 आईएएस अफसरों में से 1476 द्वारा किए गए भ्रष्टाचार से संबंधित फाइलें खंगाली जा रही है। सबसे पहले केंद्र में हुए भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारियों लिस्ट तैयार की गई है। पहली लिस्ट में यूपीए सरकार के शासनकाल के मोस्ट करप्ट 34 अफसर मोदी सरकार के निशाने पर आए हैं। इसमें से दो अफसर मप्र कैडर के हैं। अगर पिछले दस साल का रिकार्ड देखें तो इस दौरान 157 आईएएस अधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार का मामला दर्ज किया गया है, जिसमें से 71 की जांच सीबीआई कर रही है। अपने तीन माह के शासनकाल में मोदी सरकार ने अभी तक कोई बड़ी उपलब्धि भले ही हासिल न की है,लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भ्रष्टाचार के खिलाफ एक्शन लेना शुरू कर जनता को भविष्य के लिए शुभ संकेत जरूर दिया है। भ्रष्टाचार के खात्मे और सुशासन देने का वादा कर सत्ता में आई मोदी सरकार ने अब भ्रष्ट अधिकारियों की एक लिस्ट तैयार कर ली है। लिस्ट में उन अधिकारियों के नाम शामिल है जिन पर यूपीए सरकार के 10 साल के शासनकाल में भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे। ये 34 अधिकारी विभिन्न मंत्रालयों और सरकारी विभागों में कार्यरत बताए जा रहे है। कांग्रेस के राज्यपालों को हटाने के बाद अब मोदी सरकार कांग्रेस शासनकाल में जमकर भ्रष्टाचार करने वाले अधिकारियों की फाइल निपटाने में लगी है। मोदी सरकार की इस सूची से अधिकारियों में हडकंप मचा हुआ है तो वहीं भ्रष्टाचार के आरोप में फंसे अफसरों को बुरे दिन का भय सता रहा है। यूपीए सरकार के 10 साल के शासनकाल में सरकार से लेकर अधिकारियों तक भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे।
पीएमओ और डीओपीटी बना रहा सूची हाल ही में प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ ) और डिपार्टमेंट ऑफ पर्सनेल ऐंड ट्रेनिंग (डीओपीटी) के अधिकारियों की मीटिंग में भ्रष्टाचार का यह मसला उठा था। बताया गया कि अफसरों के खिलाफ विजिलेंस जांच भी शुरू हुई, लेकिन अचानक रहस्यमयी तरीके से जांच रुकने लगीं। पीएमओ ने डीओपीटी से ऐसे करीब 200 केसों की रिपोर्ट 31 अगस्त तक मांगी है। इसमें बताना होगा कि जांच हुई, तो उसमें क्या मिला और जांच रुकी, तो किस वजह से। गौरतलब है कि नियुक्ति की कैबिनेट कमिटी के प्रमुख प्रधानमंत्री हैं और तमाम ट्रांसफर-पोस्टिंग में अंतिम फैसला उन्हीं का होता है। ऐसे में पीएमओ अफसरों का पूरा ब्योरा रख रहा है। सबसे बड़ी बात यह है की केंद्र के विभिन्न मंत्रालयों में पिछले 10 साल में पदस्थ रहे अधिकारियों के साथ ही प्रदेशों में पदस्थ रहे उन सभी आईएएस की फाइल खंगाली जा रही जो घोटालों में आरोपी बनाए गए हैं। बताया जाता है कि 1476 अधिकारियों में से सबसे अधिक उत्तर प्रदेश के हैं,जबकि दूसरे स्थान पर महाराष्ट्र के और तीसरे स्थान पर मप्र के अफसर हैं। पिछले तीन साल में देश भर में 39 आईएएस, 7 आईपीएस समेत अब तक 54 नौकरशाह विभिन्न मामलों में दोषी पाए जा चुके हैं जबकि 260 से अधिक नौकरशाहों के खिलाफ मुकदमें चल रहे हैं। यह आकड़े 2010 से लेकर 6 अगस्त 2014 तक के हैं। इनमें ज्यादातर मामले भ्रष्टाचार से जुड़े हैं। 6 अगस्त तक भारतीय प्रशासनिक सेवा के 19, भारतीय पुलिस सेवा के 3 और संबद्ध केन्द्रीय सेवाओं के 67 अधिकारियों के खिलाफ जांच लंबित है। इसके अलावा भारतीय प्रशासनिक सेवा के 154, भारतीय पुलिस सेवा के 15 और अन्य संबद्ध केंद्रीय सेवाओं के 102 अधिकारियों के खिलाफ 180 मामलों में मुकदमें चल रहे हैं।
भ्रष्टों पर मुकदमा करने के लिए एसवीएस अब सीबीआई को भ्रष्ट नौकरशाह पर केस चलाने के लिए उनके आकाओं की अनुमति के लिए वर्षों इंतजार नहीं करना पड़ेगा। सिंगल विंडो सिस्टम (एसवीएस) के तहत किसी भी आईएएस या आईपीएस के खिलाफ भ्रष्टाचार से सम्बंधित मुकदमा दर्ज करने की अनुमति सिर्फ भारत सरकार के कार्मिक प्रशिक्षण विभाग से मिलेगी। किसी भी राज्य में कार्यरत नौकरशाहों के लिए अनुमति सम्बंधित राज्य के मुख्य सचिव देंगे वो भी तीन महीने के भीतर, अगर अनुमति नहीं मिलती है तो फिर कार्मिक प्रशिक्षण विभाग भारत सरकार उस पर फैसले लेगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने मंत्रिमंडल में उपरोक्त प्रस्ताव को हरी झंडी दी है और इसपर त्वरित गति से काम शुरू करने को कहा है।
सरकारी संरक्षण में भ्रष्ट अधिकारियों की संख्या बढ़ी पीएमओ और डीओपीटी की अब तक की पड़ताल में यह बात सामने आई है कि यूपीए शासनकाल में सरकारी संरक्षण में भ्रष्टाचार की राह चलने वाले अफसरों की संख्या बढ़ती गई। साल 2012 में ऐसे अधिकारियों की संख्या तीन गुना से भी ज्यादा बढ़ गई। ये वे भ्रष्ट अधिकारी हैं जिनके खिलाफ जांच पूरी कर सीबीआई आरोप पत्र दाखिल करना चाहती थी, लेकिन यूपीए सरकार ने इसके लिए जरूरी अनुमति नहीं दी। इसके बाद सीबीआई ने 31 दिसंबर 2012 को ऐसे भ्रष्ट अधिकारियों की सूची जारी की, जिनमें उनकी संख्या बढ़कर 99 हो गई। ये सभी अधिकारी कुल 117 मामलों में फंसे हुए थे। लेकिन सीबीआई द्वारा सूची जारी कर देने भर से भ्रष्ट अधिकारियों को मिल रहा सरकारी संरक्षण कम नहीं हुआ। सीबीआई की ताजा सूची में ऐसे भ्रष्ट अधिकारियों की संख्या बढ़कर 165 हो गई है। इन 165 अधिकारियों के खिलाफ कुल 331 केस दर्ज हैं, जिनकी जांच पूरी हो चुकी है। यदि भ्रष्ट अधिकारियों और उनके खिलाफ दर्ज मामलों का अनुपात निकाला जाए तो एक भ्रष्ट अधिकारी औसतन भ्रष्टाचार के दो मामलों में लिप्त है। जांच एजेंसी को ठेंगा दिखाने वाले भ्रष्ट अधिकारियों में कस्टम व एक्साइज विभाग के अधिकारी अव्वल हैं। 165 अधिकारियों की सूची में अकेले कस्टम व एक्साइज विभाग के 70 अधिकारी हैं।
5 साल में 25,840 भ्रष्ट अफसरों पर मामला केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) में वर्ष 2009 से लेकर 2013 तक 25,840 अधिकारियों के खिलाफ शिकायत पहुंची। जिनकी जांच में ये दोषी पाए गए और सीवीसी ने इनके विभागों को कार्रवाई करने का निर्देश दिया था। लेकिन कई विभागों ने भ्रष्ट अफसरों के प्रति नरम रवैया अपनाया। खास कर विदेश मंत्रालय और ओएनजीसी समेत कई सरकारी संस्थानों द्वारा भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ नरमी बरतने पर सीवीसी ने नाराजगी जताई। सीवीसी ने कहा कि भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ उचित कार्रवाई नहीं होने से अन्य अफसरों के हौसले भी बुलंद होंगे। सीवीसी द्वारा वर्ष 2013 के लिए तैयार की गई रिपोर्ट के मुताबिक गत वर्ष 17 मामलों में संबंधित संस्थानों ने भ्रष्ट अधिकारियों को दंडित नहीं किया या हल्की-फुल्की कार्रवाई कर छोड़ दिया। इनमें चार दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए), तीन रेल मंत्रालय, दो-दो दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) व ओएनजीसी के अधिकारी शामिल हैं। इसके अलावा केंद्रीय लोक निर्माण विभाग, दिल्ली जल बोर्ड, एलआइसी हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड, विदेश मंत्रालय, एसबीआइ और भारतीय मानक ब्यूरो के एक-एक भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ भी पक्षपाती रवैया अपनाया गया।
ईडी ने अफसरों का ब्योरा मांगा प्रवर्तन निदेशालय (ईडी)ने मप्र के करीब 70 अधिकारियों-कर्मचारियों सहित देशभर के करीब 2,455 अधिकारियों-कर्मचारियों के यहां मारे गए छापे का विवरण और संपत्ति की जानकारी मांगी है। ईडी मुख्यालय ने लोकायुक्त पुलिस संगठन से आय से अधिक संपत्ति के मामलों में 20 लाख रुपए से ज्यादा की संपत्ति के प्रकरणों की जानकारी उपलब्ध कराने को कहा है। ईडी ने पिछले तीन साल की यह जानकारी मांगी है। मप्र में सभी संभागीय लोकायुक्त इकाइयों द्वारा पिछले तीन साल में भ्रष्ट अफसर तथा कर्मचारियों के यहां की गई छापों की कार्यवाही की जानकारी एकत्र कराई गई है। करीब 70 अधिकारियों की करोड़ों रुपए की आय से अधिक के ये मामले शीघ्र ही ईडी को सौंपे जाने हैं। इनमें कई चर्चित मामले भी शामिल हैं। ईडी इन मामलों में अर्जित संपत्ति के स्रोत के बारे में नोटिस जारी कर संबंधितों से स्पष्टीकरण लेगी। संतोषजनक जवाब नहीं आने पर ईडी द्वारा अधिकारी-कर्मचारी की आय से अधिक संपत्ति अटैच कराई जाएगी।
अफसरों की संपत्ति पर लोकपाल की नजर केंद्रीय लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम की नजरें भारतीय प्रशासनिक सेवा के सभी अधिकारियों पर गड़ी हैं। अधिकारियों को एक अगस्त तक स्थिति के मुताबिक संपत्ति का संशोधित ब्योरा 15 सितंबर से पहले वेबसाइट पर अपलोड किया जाएगा। वहीं राज्य सरकार ने भी अपने समूह क, ख और ग कार्मिकों को अपनी सपंत्ति का ब्योरा प्रति वर्ष 31 जुलाई की स्थिति के मुताबिक 31 अगस्त तक उपलब्ध कराने के निर्देश दिए हैं।
सोशल साइट व सूचना पट्ट पर लिखा जाएगा भ्रष्ट अधिकारियों का ब्यौरा भ्रष्टाचार के खिलाफ सरकार सख्ती के साथ ही भ्रष्टाचार करने वाले अधिकारियों का ब्यौरा विभाग की बेवसाइट से लेकर फेसबुक जैसी सोशल साइट पर भी डालने की तैयारी कर रही है। हालांकि इसमें पुराने मामलों को अपलोड नहीं किया जाएगा। हालांकि अभी पीएमओ और डीओपीटी के बीच इस पर विचार-विमर्श चल रहा है। उधर,भ्रष्टाचार रोकने और भ्रष्टाचारियों को सार्वजनिक रूप से शर्मिंदा करने की मुहिम के तहत महाराष्ट्र एंटी करप्शन ब्यूरो (एसीबी)ने तो सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक पर पेज बनाने की तैयारी शुरू कर दी है, जिस पर रिश्वत लेने वालों के फोटो डाले जाएंगे। एसीबी महानिदेशक प्रवीण दीक्षित ने बताया, भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी मुहिम तेज करने और ऐसे लोगों तक पहुंचने के लिए हम फेसबुक का मंच इस्तेमाल करने की योजना बना रहे हैं। एसीबी के प्रमुख प्रवीण दीक्षित ने भ्रष्टाचारियों पर नकेल कसने के लिए सरकारी दफ्तरों के बाहर एसीबी की मोबाइल वैन भी खड़ी करनी शुरू की है। ताकि लोगों तक पहुंचा जा सके और उनसे संवाद स्थापित किया जा सके। ऐसा होने से ज्यादा से ज्यादा लोग भ्रष्टाचार से जुड़ी अपनी शिकायतें एसीबी तक पहुंचा सकेंगे।
फेसबुक के जरिए ज्यादा लोगों तक पहुंचने की कवायद हालांकि एसीबी पहले भी भ्रष्ट अधिकारियों की फोटो अपनी वेबसाइट पर लगाती रही है, पर वह सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक के जरिए ज्यादा लोगों तक पहुंचना चाहती है। कई बार देखा गया है कि एक बार रिश्वत लेते पकड़े गए लोग जब दोबारा नौकरी पर आते हैं तो फिर घूसखोरी में लग जाते हैं। एसीबी के मुताबिक उनका यह निर्णय रिश्वतखोरी की घटनाओं को रोकने में मदद करेगा। एसीबी अधिकारियों का कहना है कि हम युवाओं से इस साइट को देखने को भी कहेंगे, ताकि भ्रष्ट अधिकारियों की फोटो उनके बच्चों तक भी पहुंचे और उन्हें यह पता लगे कि उनके अभिभावक कौन सा काम करते हैं। फोटो के साथ वेबसाइट पर यह भी लिखा जाएगा कि आरोपी अधिकारी कितने रुपए की रिश्वत लेते पकड़ा गया है और छानबीन के दौरान आरोपी के घर से कितने गहने व कितने नकद रुपए बरामद हुए हैं। एसीबी ने इस वर्ष 16 अगस्त तक भ्रष्टाचारियों को पकडऩे के लिए 744 व्यूह रचे, जो पिछले वर्ष की तुलना में 114 फीसद अधिक है। इस दौरान 1009 सरकारी कर्मचारियों और उनके सहयोगियों को गिरफ्तार किया। गत वर्ष इसी अवधि के दौरान एसीबी ने 344 व्यूह रचे, जिनमें 452 लोगों को गिरफ्तार किया था।
अभी तक एक भी अफसर ने नहीं दिया चल संपत्ति का ब्योरा अखिल भारतीय सेवाओं के लिए सम्पत्ति घोषणा को लेकर आए नए नियमों से प्रदेश के आईएएस, आईपीएस और आईएफएस अधिकारियों में बेचैनी है। करीब एक माह का वक्त गुजरने के बावजूद प्रदेश के किसी भी अधिकारी ने अभी तक अपनी चल सम्पत्ति का विवरण दाखिल नहीं किया है। यही नहीं प्रदेश के 309 आईएएस अफसरों में से 21 ने अभी तक अपनी अचल संपत्ति का विवरण नहीं दिया है। उन्हें सम्पत्ति का विवरण देने के लिए 15 सितंबर तक का समय दिया गया है। लोकपाल एवं लोकायुक्त अधिनियम 2013 के नए नियम लागू होने से पहले तक अखिल भारतीय सेवा के अधिकारियों को खुद की सम्पत्ति का विवरण देना होता था। यह विवरण 31 दिसम्बर को आधार बनाकर प्रस्तुत किया जाना था।
पीएमओ दो मिश्र का जलवा
नौकरशाही पर निगाह रखने के लिए प्रधानमंत्री ने दो मिश्र के हाथ में कमान दे रखी है। इनमें से एक हैं पीके मिश्र। मोदी ने अपने करीबी इस अधिकारी को प्रधानमंत्री कार्यालय फिट करने के लिए पहली बार अतिरिक्त मुख्य सचिव के पद का सृजन भी किया है। 1972 बैच के पूर्व आईएएस अधिकारी पीके मिश्र अब नृपेंद्र मिश्र का साथ दे रहे हैं। नृपेंद्र को प्रधानमंत्री का मुख्य सचिव नियुक्त किया गया है। इन महत्वपूर्ण पदों पर बैठने वाले इन अधिकारियों के बारे में ये चर्चाएं तेज हैं कि मोदी इन दोनों में काम का बंटवारा आखिऱ किस तरह करेंगे। मजेदार रूप से इन दोनों अधिकारियों में मोदी को सीधे रिपोर्टिंग के अलावा एक और बात कॉमन है और वह यह है कि दोनों ही विनियामक संस्थाओं में रह चुके हैं। जहां नृपेंद्र मिश्र ट्राई के प्रमुख रह चुके हैं, वहीं पीके मिश्र गुजरात इलेक्ट्रिसिटी रेगुलेटरी कमीशन के चेयरमैन रह चुके हैं। विनियामक संस्थाओं में रह चुके इन अधिकारियों के इतिहास के आधार पर यह कहा जा सकता है कि प्रधानमंत्री की गवर्नेंस स्टाइल नौकरशाहों द्वारा ही चलाई जाएगी और मोदी के गवर्नेंस एजेंडा में इन दोनों अधिकारियों की काफी महत्वपूर्ण भूमिका रहेगी।

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