मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार मंत्रियों की दुर्दशा के लिए हमेशा याद की जाएगी। मंत्रियों के रूप में जो भाजपा नेता लालबत्ती का 'सुख' भोग रहे हैं, उनसे ज्यादा दु:खी मंत्री शायद ही किसी सरकार में अब तक रहे हों। दरअसल कुछेक नौकरशाहों के इशारों पर चल रही इस सरकार में मंत्री होने के मायने बदल गए हैं। मंत्री होने का मतलब मुख्यमंत्री के सहयोगी होने के अलावा किसी विभाग के मुखिया होने का भी है, जो अपने विभाग की नीतियों, कार्यक्रमों के निर्माण के साथ-साथ इनका क्रियान्वयन भी कराता है। मौजूदा सरकार में भी यही सब हो रहा है, लेकिन इसके बावजूद अधिकतर मंत्री परेशान हैं। मंत्री पद सरकार में जो रुतबा इन मंत्रियों का रहा है, अब उसके लिए दिग्गज कहे जाने वाले मंत्री भी तरस रहे हैं। सुशासन के लिए विकेंद्रीकृत शासन व्यवस्था की बात करने वाली शिवराज सरकार में उच्च स्तर पर सत्ता केंद्रीकृत होती जा रही है। चार-पांच मंत्रियों को छोड़कर किसी मंत्री को फ्री हैण्ड नहीं है। विभागों के प्रशासनिक मुखिया यानी प्रमुख सचिव और सचिव, अपने मंत्री को बगल में रखकर सीधे मुख्यमंत्री और उनके सचिवालय के अफसरों से डील कर रहे हैं। करें भी क्यों न, मुख्यमंत्री को भी मंत्रियों के बजाए सीधे अफसरों से मुखाबित होना जो रास आता है। 'मंत्री नाम के और अफसर काम के' के फण्डे पर काम कर रही शिवराज सरकार में मंत्री वाकई सिर्फ नाम के रह गए हैं। अभी तक यह पीड़ा सिर्फ राज्यमंत्रियों की थी, लेकिन अब कई कैबिनेट मंत्री भी इसे भोग रहे हैं, जिन्हें थोड़ी-बहुत तवज्जो मिली हुई उनके सामने 'यस बॉस' का राग अलापने की शर्त या कहें मजबूरी है।
शिवराज सरकार में मुख्यमंत्री के अलावा 19 कैबिनेट, 3 राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) और 9 राज्यमंत्री हैं। इनमें सबसे वरिष्ठ और अनुभवी मंत्री नगरीय प्रशासन एवं विकास मंत्री बाबूलाल गौर हैं। शिवराज से पहले मुख्यमंत्री की संभालने वाले गौर को इस सरकार का सबसे दबंग मंत्री माना जाता था और वे अपने हिसाब से मंत्रिपरिषद की बैठकों सहित बैठकों और आयोजन में जाया करते थे, लेकिन इन दिनों उनकी हालत भी खराब है। उनके पर भी धीरे-धीरे कतरने की तैयारी की जा रही है। अब यह देखा जा रहा है कि अब तक मुख्यमंत्री से मिलने उनके कक्ष में जाने से बचने वाले गौर साहब अब आए दिन मंत्रालय की पांचवीं मंजिल पर स्थित मुख्यमंत्री के कक्ष में आते-जाते देखे जाते हैं। हालांकि दूसरे कैबिनेट मंत्रियों की तुलना में वे अभी भी बेहतर स्थिति में हैं, क्योंकि मुख्यमंत्री ने अब तक उनके विभाग के कामकाज में सीधे हस्तक्षेप शुरू नहीं किया है। नगरीय प्रशासन एवं विकास की योजनाओं और कार्यक्रमों की समीक्षा अब तक गौर साहब ही कर रहे हैं और अपने हिसाब से इन्हें क्रियान्वित करवा रहे हैं।
बस खुश रहो, क्योंकि मंत्री हो
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने मंत्रिमंडल में जिन भाजपा विधायकों को शामिल है वे मंत्री पद की शपथ लेते वक्त काफी खुश और खुद को गौरवान्वित महसूस कर रहे थे, लेकिन इन्हें क्या पता था कि उन्हें कागजों पर मंत्री बनाया जा रहा है। नौकरशाहों के भरोसे और उसी के मार्गदर्शन में काम कर रहे मुख्यमंत्री चौहान ने मंत्रियों को पंगु सा बना दिया है। मंत्री सिर्फ इस बात से खुश रह सकते हैं कि उनके नाम के आगे मंत्री शब्द लिखा जा रहा है। सरकारी बंगला, लालबत्ती कार, 10-15 लोगों का स्टाफ मिला हुआ है और बाबू-चपरासियों पर हुक्म चलाने की आजादी है। इससे ज्यादा सोचने की किसी मंत्री को इजाजत नहीं है। चार-पांच ही ऐसे मंत्री हैं, जिन्हें अपने हिसाब से कामकाज करने का फ्री हैण्ड मिला हुआ है, लेकिन ये भी एकतरफा नहीं है। मुख्यमंत्री और उनके सचिवालय के साथ बेहतर तालमेल, समन्वय और 'सेटिंग' के कारण वे फिलहाल अपने विभागों के राजा बने हुए हैं। बाकी किसी कैबिनेट मंत्री को इतनी आजादी नहीं है कि वह अपने विभाग में कोई फैसला अपने आप ले ले। मजेदार बात यह है कि पहले तो सरकार ही मंत्री को इतना आगे नहीं बढऩे देते कि वह इस तरह की कोई बात भी कर पाए। यदि किसी ने ऐसा कर भी लिया तो होशियार अफसर पहले ही मुख्यमंत्री और उनके सचिवालय के अधिकारियों के कान फूंक देते हैं। इसके बाद मंत्री की हिम्मत नहीं होती कि वह अपनी जुबान खोले।
ऐसे हैं मंत्रियों के हाल
राघव जी : राघव जी के पास वित्त, योजना एवं आर्थिक सांख्यिकीय, बीस सूत्रीय क्रियान्वयन और वाणिज्य कर विभाग हैं। मुख्यमंत्री के साथ इनकी पटरी इसलिए बैठी हुई है कि ये विभाग काफी बड़े होते हुए भी इनमें बहुत ज्यादा गुंजाइश नहीं है। वित्त विभाग साल भर बजट बनाने और बांटने में लगा रहता है। योजना एवं आर्थिक सांख्यिकीय तथा बीस सूत्रीय क्रियान्वयन बेदम विभाग है और वाणिज्यिक कर विभाग तय फारमेट में काम करता है। इसलिए मुख्यमंत्री और उनके
सचिवालय ने इन विभागों को राघवजी के भरोसे ही छोड़ रखा है। वही इनकी कभी-कभार समीक्षा कर लेते हैं। हालांकि इन विभागों में से वित्त और वाणिज्यिक विभाग के अधिकारी सीधे मुख्यमंत्री और उनके सचिवालय के संपर्क में रहते हैं, इसलिए कई मामलों में इन्हें भी मंत्री जी की जरूरत नहीं होती।
जयंत मलैया : जयंत मलैया को फ्री हैण्ड मिला हुआ है, लेकिन इसके लिए उन्हें भी मुख्यमंत्री और उनके सचिवालय के अधिकारियों के सामने 'यस बॉस' कहना जरूरी है। शायद इसी शर्त पर मुख्यमंत्री और उनके अधिकारियों ने अब तक उनके विभागों में ज्यादा हस्तक्षेप शुरू नहीं किया है। सैकड़ों इंजीनियरों वाले जल संसाधन विभाग में इंजीनियरों के ट्रांसफर-पोस्टिंग फिलहाल मंत्री जी के इशारों पर ही रहे हैं। आवास एवं पर्यावरण विभाग जैसे विभाग को भी मलैया ही पूरी तरह डील कर रहे हैं। उनको मिली इस स्वतंत्रता के पीछे कहा जाता है कि वे समय-समय पर मुख्यमंत्री और उनके अफसरों से तालमेल बैठाते रहते हैं। मुख्यमंत्री को विश्वास में ले रखा है, इसलिए मुख्यमंत्री उन पर मेहरबान हैं।
कैलाश विजयवर्गीय : इस सरकार के सबसे दबंग और तेजतर्रार मंत्री माने जाने वाले कैलाश विजयवर्गीय भी अब 'न्यूट्रल' हो गए हैं। अब तक 'शिवराज भाई' कहकर मुख्यमंत्री को संबोधित करने वाले कैलाश की भी अब पलट गई है। मुख्यमंत्री को खुश रखना कितना जरूरी है, ये उन्हें भी समझ में आ गया है। खजुराहो ग्लोबल इंवेस्टर्स मीट की सफलता के बहाने उन्होंने मुख्यमंत्री को अपने बंगले पर बुलाकर उन्हें रात्रि भोज कराया। यह सिर्फ भोज नहीं था, बल्कि शिवराज को कैलाश का सेल्यूट भी था। इसे सेल्यूट के बाद मुख्यमंत्री ने उनके प्रति और नरमी दिखाई है। उनका रुतबा फिलहाल बरकरार है। लेकिन इतना जरूर है कि अब तक एकतरफा विभाग चलाने वाले कैलाश भी अब ठण्डे पड़े हैं। मुख्यमंत्री और उनके अधिकारियों को खुश रखना कितना जरूरी है, ये वे भी समझ गए हैं। हालांकि मुख्यमंत्री के अधिकारियों से वे दोस्ताना व्यवहार रखते हैं, लेकिन उनके नजदीकी बताते हैं कि इसी दोस्ती ने उनके पर कतरने से बचाए हैं।
गोपाल भार्गव : पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री गोपाल भार्गव को मुख्यमंत्री का सबसे विश्वस्त माना जाता है। इसलिए उन्हें उनके विभाग में कामकाज के पूरी तरह से छूट मिली हुई है। इस विभाग में करीब आधा दर्जन आईएएस अधिकारियों की टीम है, लेकिन ये टीम अपने मंत्री को साइट लाइन करने की हिम्मत नहीं जुटा पाती। मुख्यमंत्री आवास मिशन और मुख्यमंत्री ग्रामीण सड़क योजना जैसे प्रमुख योजनाओं का जिम्मा इसी विभाग पर है, लेकिन इसके बावजूद मुख्यमंत्री भार्गव के कामकाज में ज्यादा हस्तक्षेप नहीं करते। विभाग की समीक्षा बैठकें भी बिना मंत्री के नहीं होती। भार्गव ने मुख्यमंत्री को साध रखा है और वे उनकी गुड लिस्ट में हैं।
सरताज सिंह : भाजपा के वरिष्ठ नेता और अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे सरताज सिंह को भी मुख्यमंत्री ने सम्मान दे रखा है। वन विभाग की कमान उनके हाथ में है और ज्यादातर काम वे अपने हिसाब से करते हैं। हालांकि कुछेक मामलों में मुख्यमंत्री सचिवालय का सीधा हस्तक्षेप है, लेकिन इसमें भी मंत्री की नाराजगी जैसी कोई बात नहीं है। आईएफएस अधिकारियों के तबादलों के दौरान उन्हें पूरी तवज्जो दी जा रही है और इससे वे खुश भी हैं। हालांकि उनकी गलतबयानी को लेकर मुख्यमंत्री ने नाराजगी जताई, लेकिन इसे ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया गया।
नरोत्तम मिश्रा : संसदीय कार्य विभाग के बाद आवास विभाग का जिम्मा मिलने के बाद मुख्यमंत्री ने नरोत्तम मिश्रा को थोड़ा महत्व दिया। नरोत्तम भी 'यस बॉस' कहते-कहते मुख्यमंत्री की गुड लिस्ट में शामिल हो गए हैं और उन्हें सरकार का अधिकृत प्रवक्ता बनाकर काम से लगाया गया। वैसे उनके दोनों विभागों में ज्यादा करने के लिए ज्यादा कुछ नहीं है, लेकिन नरोत्तम की वफादारी को देखते हुए सरकार में उन्हें तवज्जो मिल रही है। प्रवक्ता होने के नाते सभी विभागों को आदेश जारी कर कहा गया कि वे जो जानकारी मांगें उन्हें तुरंत उपलब्ध कराई जाए। इस सीमित भूमिका में भी वे खुद मुख्यमंत्री के सामने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करना चाह रहे हैं, ताकि आगे चलकर उन्हें अच्छे विभाग के साथ फ्री हैण्ड भी मिल सके।
विजय शाह : पूरी तरह से मुख्यमंत्री के रहमोकरम हैं। 'यस बॉस' करते-करते यह भी सिर्फ मंत्री पद का सुख भोग रहे हैं। आदिम जाति कल्याण और अनुसूचित कल्याण विभाग तो वैसे ही इस सरकार में हाशिये पर हैं, लेकिन केंद्र से मिलने वाला करोड़ों का बजट और राज्य का बजट मिलाकर यह विभाग मलाईदार हो गया है। इसलिए मुख्यमंत्री सचिवालय इसके कामकाज पूरी निगाह रखता है। वनवासी सम्मान यात्रा और अनुसूचित जनजाति एवं परंपरागत वन निवासी अधिनियम के क्रियान्वयन में मंत्री को व्यस्त रखा गया है।
उमाशंकर गुप्ता : सरकार में मुख्यमंत्री के बाद गृह मंत्री को दूसरा सबसे ताकतवर माना जाता है, लेकिन गृह मंत्री उमाशंकर गुप्ता इस सरकार में बहुत कुछ होते हुए कुछ भी नहीं हैं। वे अपने विभाग में सिर्फ नाम के मंत्री हैं। गृह विभाग में उनके कहने और चाहने पर कुछ भी नहीं होता। इस विभाग को पूरी तरह से मुख्यमंत्री और उनके अधिकारियों ने अपने नियंत्रण में ले रखा है। इसके लिए मुख्यमंत्री सचिवालय में आईपीएस अधिकारी सरबजीत सिंह को सचिव बनाकर बैठाया गया है। आईपीएस अधिकारियों के तबादलों और प्रमोशन में मंत्री की रत्ती भर भी नहीं चलती। इस विभाग में मंत्री के साथ ही प्रमुख सचिव भी सिर्फ नाम के हैं। हाल ही में विभाग के प्रमुख सचिव राजन एस. कटोच इन्हीं सब परिस्थितियों के चलते केंद्र में जा चुके हैं। उनकी जगह खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग के प्रमुख सचिव अशोक दास को प्रमुख सचिव बनाकर सरकार ने सबको चौंका दिया है। दास को शांत और सौम्य व्यवहार का अफसर माना जाता है, जबकि गृह विभाग ऐसे अफसरों के बस की बात नहीं है। गृह मंत्री की उपेक्षा का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि उन्हें अपनी पसंद के अधिकारी को अपना निज सहायक बनवाने के लिए एक साल का समय लग गया।
नागेंद्र सिंह : नागौद के राजपरिवार से आने वाले नागेंद्र सिंह को लोक निर्माण विभाग में काम करने के लिए फ्री हैण्ड मिला है, लेकिन इस हकीकत को खुद मंत्रीजी ही बयां कर चुके हैं। 16 नवंबर को सतना में एक आमसभा में उन्होंने साफ कह दिया कि वे अपने इस विभाग और इसके अधिकारियों से खासे परेशान हैं। अफसर उनकी सुनते नहीं हैं। दरअसल इस विभाग में जितने भी अफसर रहे उन्हें मुख्यमंत्री के चाहने पर ही कुर्सी मिली। इसलिए इनकी प्रतिबद्धताएं अपने मंत्री से ज्यादा मुख्यमंत्री के प्रति है। चूंकि नागेंद्र सिंह पढ़े-लिखे और तेजतर्रार अफसर हैं, इसलिए वे थोड़ा-बहुत काम अपने हिसाब से कराने में सफल हो गए। वरना उनकी स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं है। इस बात को उन्होंने खुद स्वीकार कर लिया है।
गौरीशंकर बिसेन : तेजतर्रार लोक स्वास्थ्य एवं सहकारिता मंत्री गौरीशंकर बिसेन अपने विभागों में अपने हिसाब से काम कर रहे हैं। उन्हें इस सरकार का खुशकिस्मत मंत्री कहा जा सकता है, जिनके मामले में न तो मुख्यमंत्री और न ही उनके अधिकारी ज्यादा दखल देते हैं। हाउंसिंग सोसायटी के घपलों के मामलों में जरूर मुख्यमंत्री ने सहकारिता विभाग के अफसरों को तलब किया, लेकिन इसमें भी मंत्री को पूरी तवज्जो दी गई। हालांकि अपनी सक्रियता से बिसेन ने भी मुख्यमंत्री को खुश कर रखा है, इसलिए उन्हें फ्री हैण्ड दिया गया है।
देवड़ा, जगन्नाथ, पारस : जेल एवं परिवहन मंत्री, जगदीश देवड़ा, श्रम मंत्री जगन्नाथ सिंह और खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार पारस चंद्र जैन सिर्फ नाम के मंत्री हैं। देवड़ा का परिवहन विभाग सीधे मुख्यमंत्री संभालते हैं और जेल की तरफ कोई देखना नहीं चाहता। यही हाल श्रम विभाग का है, इसलिए मंत्री लालबत्ती में बैठकर खुश हो लेते हैं। नागरिक आपूर्ति विभाग पर मुख्यमंत्री सचिवालय का सीधा नियंत्रण है, पारस चंद्र जैन भी राजधानी में कम ही दिखाई देते हैं।
अर्चना, रंजना : स्कूल शिक्षा मंत्री अर्चना चिटनीस विभाग में अपने अंदाज में काम करती हैं, लेकिन सर्वशिक्षा अभियान और माध्यमिक शिक्षा अभियान जैसे राष्ट्रीय कार्यक्रमों के क्रियान्वयन के कारण मुख्यमंत्री विभाग की समीक्षा कभी-कभी खुद भी कर लेते हैं। शिक्षकों और अध्यापकों की लंबी फौज वाले इस विभाग में वैसे मंत्री को फ्री हैण्ड है, लेकिन इसके लिए उन्हें भी मुख्यमंत्री को विश्वास में लेना पड़ा। महिला एवं बाल विकास राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार रंजना बघेल तो पूरी तरह से मुख्यमंत्री के रहमो करम हैं। यही वजह है कि वे चाहते हुए भी काई काम खुद नहीं करती। हर छोटे-बड़े निर्णय लेने से पहले मुख्यमंत्री को अवगत कराकर वे अपनी वफादारी का परिचय देती हैं। अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग के मामले और घपलेबाजों को बचाने के लिए मुख्यमंत्री को भी सहमत कर लेने की कला उनमें है।
राजेंद्र शुक्ला : खनिज एवं ऊर्जा राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) राजेंद्र शुक्ला भी 'यस बॉस' कहते हुए अपना काम चला रहे हैं। कहने को उनके पास खनिज और ऊर्जा जैसे अहम विभाग हैं, लेकिन मुख्यमंत्री ने इन दिनों दोनों विभागों में अपने विश्वस्त और होशियार अफसरों को बैठा रखा है, जो मंत्री को दाएं-बाएं देखने तक नहीं देते। खनिज विभाग के सचिव एसके मिश्रा हैं और ऊर्जा सचिव मो. सुलेमान। ये दोनों अफसर मुख्यमंत्री के बेहद करीबी हैं। मंत्री की बजाय सीधे मुख्यमंत्री से ही मुखातिब होते हैं।
हार्डिया की लॉटरी लगी : सरकार के 9 राज्यमंत्रियों में लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्यमंत्री महेंद्र हार्डिया की लॉटरी लगी हुई है। वे एकमात्र ऐसे राज्यमंत्री हैं, जिनके पास करने के लिए कुछ काम है। अनूप मिश्रा के इस्तीफे के बाद मुख्यमंत्री ने इस विभाग में किसी कैबिनेट मंत्री की नियुक्ति करने की बजाए इसे अपने पास रखा। हार्डिया राज्यमंत्री होने के नाते फिलहाल अधिकांश काम संभाल रहे हैं। बाकी के 8 राज्यमंत्री फुर्सत में हैं।
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