सोमवार, 13 दिसंबर 2010
मौत का मार्ग बना गुटखा
कभी कपड़ा उद्योग फिर चमड़ा निर्यात के क्षेत्र में दुनिया के मानचित्र पर अपनी जगह बनाने वाला कानपुर शहर आज पान मसाला, गुटखा और तंबाकू के कारोबार के लिए देश भर में जाना जाता है। साठ के दशक में बादशाही नाका, हालसी रोड निवासी चुन्नी लाल शुक्ला ने देश के अंदर पहला ब्रांडेड पान मसाला बादशाह पसंदके नाम से शुरू किया। इसको खाने वाले और पुराने जानकार बताते हैं कि इसकी गुणवत्ता इतनी श्रेष्ठ थी कि दो दाना खाने के बाद पूरे दिन केवड़़ा रूह, चंदन और इलायची की सुगंध मुंह से आती रहती थी। गुटखा कारोबार पर तकरीबन बीस साल तक बादशाह पसंद का एकछत्र राज्य रहा। जानकार बताते हैं कि चुन्नी लाल शुक्ल गुणवत्ता के लिए इतने जागरूक थे कि कभी भी मुनाफे के लिए समझौता नहीं किया। कंपनी को लगातार घाटा होता रहा और अंतत: वह बंद हो गई। आज उनका परिवार भुखमरी के दिन झेल रहा है।
बादशाह पसंद कंपनी के बंद होने के बाद पान बहार, दिल पसंद, डनहिल, पान पराग, कुमार, कमला पसंद, सर, गोवा, श्याम बहार, राजश्री, विमल और शिखर सरीखे कई छोटे उत्पाद बाजार में आ गए। 1988-89 तक पान मसाला 100 ग्राम के टीन के डिब्बे में आता था। उस समय तक इसमें तंबाकू नहीं मिली होती थी। आज भी पुराने ब्रांड का पान मसाला खाने वाले अलग से तंबाकू मिलाकर उसे खाते हैं। यही नहीं, कुछ कंपनियों ने तो पान मसाले के पाउच के साथ ही छोटा सा तंबाकू का भी पाऊच जोड़़कर मार्केटिंग शुरू की । वर्ष 1989-90 में पहली बार गुटखा के रूप में एक रुपए वाला पाऊच कुमार के नाम से बाजार में आया। पाऊच में आने के बाद ही इस उद्योग में क्रांति आ गई। मुनाफे को पंख लग गए। जेब में रखने और खाने में सहूलियत होने के नाते कुमार के बाद पान पराग और उसके बाद सबने अपनी पाउच पैकिंग बाजार में उतार दी। इस क्रांति का श्रेय यू-फ्लैक्स के मालिक अशोक चतुर्वेदी को दिया जा सकता है। वही पहली बार सिंगापुर के व्यापार मेले से पाउच बनाने की मशीन लाए थे। कुमार पान मसाला वालों को पाउच बनाकर उन्होंने ही दिया था। इस पाउच के आने के बाद इस उद्योग को ऐसे पंख लगे कि आकाश की ऊंचाई भी कम पड़ऩे लगीं क्योंकि पाउच के आने के बाद गुटखा गरीब की जेब के भीतर पहुंच गया। वर्ष 1989-90 से आज तक अशोक चतुर्वेदी इस उद्योग के बेताज बादशाह बने हुए हैं। इनकी बिना मर्जी के इस उद्योग और केंद्रीय एक्साइज विभाग में पत्ता भी नहीं हिलता है।
इस उद्योग में अशोक चतुर्वेदी की दखल इससे भी समझी जा सकती है कि जब सेंट्रल बोर्ड फॉर एक्साइज एंड कस्टम के चेयमरैन एस.के. सिंहल ने 2007 में गुटखा बनाने पर कंपाउंड लेवी लगाई और एक मशीन पर गुटखा उत्पादों को साढ़़े बारह लाख की ड्यूटी देनी पड़़ी तो गुटखा उत्पादकों ने अशोक चतुर्वेदी की ही शरण गही। पहले मशीन की एमआरपी पर तकरीबन साठ फीसदी यानी 30 से 35 फीसदी गुटखा उत्पादक प्रति गुटखा एक्साइज ड्यूटी लगाया करते थे। इस दर से एक मशीन पर 25 हजार से दो लाख तक की ड्यूटी बनती थी जो बढ़़ कर साढ़़े बारह लाख जा पहुंची। इससे ऊबरने में अशोक चतुर्वेदी गुटखा मालिकों के तारनहार बने। मिल बैठ कर यह तय किया गया कि भले ही सरकार ने कंपाउडिंग कर दी हो लेकिन अधिक पाउच बनाने वाली मशीनें लगाकर मुनाफा बढ़़ाया जाए। ऐसी मशीनें लाई गईं जो एक मिनट में साढ़़े छह सौ पाउच बनाने लगीं जबकि पहले की मशीनें एक मिनट में सिर्फ 87 पाउच ही बना सकती थीं। नतीतन, केंद्र सरकार की साढ़़े बारह लाख ड्यूटी लगाकर इस कारोबार पर अंकुश लगाने की योजना फ्लाप हो गई। पर सरकार चुप बैठने वाली नहीं थी। नतीजतन, पाउच लैमिनेटरों के यहां डीआरआई ने छापेमारी शुरू की। छापेमारी में इस कारोबार का नया गणित उनकी समझ में आया। पता चला कि यहां सारा का सारा कारोबार दो नंबर में होता है। न कोई एक्साइज ड्यूटी, न कोई वैट। लैमिनेटरों के यहां छापे के बाद सच्चाई सामने आते ही पान मसाला उत्पादकों के यहां ताबड़़तोड़़ छापेमारी हुई। करोड़़ों के उत्पाद शुल्क की चोरी का खुलासा हुआ। करोड़़ों की ड्यूटी लगाने के बाद इन्हें जेल भेजा जाने लगा। डीआरआई की इस कार्रवाई से पान मसाला उद्योग में हड़़कंप मच गया। इससे बचाव व गुटखा कारोबार पर अपनी पकड़़ बनाए रखने के लिए देश के दस बड़़े पान मसाला उत्पादकों ने जी-10 नाम से एक संगठन बना डाला। भरोसेमंद सूत्रों की मानें तो 90 के दशक में जब इस कारोबार पर किसी की नजर नहीं थी तब गुटखा उत्पादकों ने अपनी अकूत कमाई जमीन के धंधे में लगाई। काले धन को ठिकाने लगाने के लिए जमीन का कारोबार सबसे मुफीद माना जाता है। जब भारत में जमीन के कारोबार में उछाल आया तो गुटका कारोबारियों की हैसियत भी खूब बढ़़ी। शायद ही ऐसा कोई बड़़ा शहर हो जहां गुटखा कारोबारियों की कोई अचल संपत्ति न हो। सूत्र बताते हैं कि कई गुटखा कारोबारियों की पांच-सात करोड़़ रुपए सालाना की आमदनी सिर्फ किराए से है। जमीन की बढ़़ी कीमतों ने इनमें से कई कारोबारियों को सौ से हजार करोड़़ रुपए तक का मालिक बना दिया। गुटखा कारोबारियों ने किस तरह अकूत कमाई की है यह इनके रहन-सहन से साफ उजागर होती है। इनके परिवार के कई सदस्य एनआरआई बन बैठे। साल के सौ दिन दुबई और तमाम यूरोपीय देशों में गुजारना इनकी जीवनशैली का हिस्सा है। घूमने की इनकी पसंदीदा जगह फिलीपींस है जहां यौन संबंधों पर कोई प्रतिबंध नहीं है। इनके यहां होने वाली शादियों व अन्य उत्सव स्वप्नलोक जैसे हैं। बालीवुड की मशहूर फिल्म अभिनेत्रियां इनके छोटे-छोटे उत्सवों की मेहमान होती हैं। कैटरीना कैफ, रवीना टंडन, प्रियंका चोपड़़ा को अपने यहां उत्सवों में बुलाने के लिए गुटका कारोबारी करहसुप्रीम कोर्ट ने गुटखा और पान मसाला की प्लास्टिक पाउच में बिक्री पर प्रतिबंध लगाने का फैसला सुनाया है। फैसला स्वागत योग्य है लेकिन इससे तंबाकू के उपयोग, उससे होने वाली स्वास्थ्य हानि और बढ़़ते खतरनाक रोगों में कोई कमी आ जाएगी ऐसा नहीं लगता। सर्वोच्च न्यायालय ने कागज के पैकेट में बेचे जाने वाले सिगरेट को अपने इस फैसले से बाहर रखा है। जाहिर है इससे यह सवाल उठेगा कि प्लास्टिक ज्यादा खतरनाक है या तंबाकू?
आजादी की लड़़ाई के दौरान नशाबंदी को सबसे अहम मुद्दा मानने वाले महात्मा गांधी और अन्य समाजकर्मियों की लगातार कोशिशों का नतीजा ढाक के तीन पात ही निकला। पूर्ण नशाबंदी लागू नहीं हो पाई और निकट भविष्य में ऐसी कोई संभावना भी नहीं दिखती। सर्वोच्च न्यायालय के इस ताजा फैसले का निष्कर्ष यह है कि तंबाकू को प्लास्टिक पाउच में न बेचा जाए बेशक उसे कागज के पाउच में बेचें। सिगरेट लॉबी चूंकि ताकतवर है इसलिए इसके गिरेबान तक किसी कानून का हाथ नहीं पहुंचता। शराब की तो बात ही न करें। तथाकथित सभ्य समाज में स्टेट्स सिंबल बन चुके सिगरेट और शराब अब एक अलग इज्जत प्राप्त कर चुके हैं।
बहरहाल तंबाकू के खतरे को नजरअंदाज करना न सिर्फ भयानक होगा बल्कि आत्मघाती भी होगा। तंबाकूजनित कुछ आंकड़़ों पर भी गौर कर लें। विश्व स्वास्थ्य संगठन का आंकड़़ा कहता है कि 1997 के मुकाबले वर्ष, 2005 तक तंबाकू निषेध कानूनों के लागू करने के बाद वयस्कों में तंबाकू सेवन की दर में 21 से 30 प्रतिशत की कमी आई थी, लेकिन इसी दौरान हाईस्कूल जाने वाले 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में तंबाकू का सेवन 60 प्रतिशत बढ़़ गया था। अमेरिकन कैंसर सोसायटी का आंकड़़ा है कि प्रत्येक 10 तंबाकू उपयोगकर्ता में से 9 महज 18 वर्ष की उम्र से पहले तंबाकू का सेवन शुरू कर चुके होते हैं। दुनिया में होने वाली हर 5 मौतों में से एक मौत तंबाकू की वजह से होती है। तंबाकू जनित रोगों में सबसे ज्यादा मामले फेफड़़े और रक्त से संबंधित रोगों के हैं जिनका इलाज न केवल महंगा बल्कि जटिल भी है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि सन 2050 तक 2.2 अरब लोग तंबाकू या तंबाकू उत्पादों का सेवन कर रहे होंगे। इस आकलन से अंदाजा लगाया जा सकता है कि तंबाकू के खिलाफ कानूनी और गैर सरकारी अभियानों की क्या गति है और उसका क्या हश्र है। प्रत्येक 8 सेकेंड में होने वाली एक मौत तंबाकू और तंबाकू जनित उत्पादों के सेवन से होती है। फिर भी तंबाकू के उपभोग में कमी न होना मानव सभ्यता के लिए एक गंभीर सवाल है। तंबाकू के बढ़़ते खतरे और जानलेवा दुष्प्रभावों के बावजूद इससे निपटने की हमारी तैयारी इतनी लचर है कि हम अपनी मौत को देख तो सकते हैं लेकिन उसे टालने की कोशिश नहीं कर सकते। यह मानवीय इतिहास की एक त्रासद घटना ही कही जाएगी कि कार्यपालिका, विधायिका तथा न्यायपालिका की सक्रियता के बावजूद स्थिति नहीं संभल रही। क्या तंबाकू के खिलाफ इस जंग में हमें हमारी नीयत ठीक करने की जरूरत नहीं है?आज गुटखा माउथफ्रेशनर के लिए एक आम नाम बन गया है। इसमें तंबाकू, सुपारी के साथ कई अन्य खतरनाक पदार्थों को बारीक कर प्लास्टिक पाउच में बेचा जाता है। गुटखे के सेवन से मुख कैंसर के अलावा एक और गंभीर बीमारी होती है जिसे ओरल सबम्यूकस फायब्रोसिस कहते हैं। इस बीमारी में मुंह में तंतु एक फीते की तरह बढ़़ता है, जिससे म्यूकस अपना लोच खो देता है और मुंह खोलने की क्षमता कम हो जाती है। कभी-कभी तो ऐसा होता है कि मुंह पूरी तरह बंद हो जाता है जिसे बाहरी युक्ति द्वारा खोला जाता है। कैंसर को मुंह में पनपने के लिए यह बीमारी बहुत ज्यादा जिम्मेदार होती है लेकिन इस बीमारी के बारे में जानकारी कम ही है। गुटखा न चबाने वालों की तुलना में गुटखा लेने वाले लोगों में इस बीमारी का खतरा 400 गुणा ज्यादा होता है।
भारत में पान मसाला का उपयोग माउथ फ्रेशनर की तरह होता है। पान मसाला में मुख्य रूप से सुपारी, खैर, इलाइची, चूना और कई तरह के खूशबू देने वाले कुदरती पदार्थ मौजूद होते हैं। गुटखा पान मसाला का ही एक रूप है जिसमें तंबाकू को पान के फ्लेवर के साथ चबाया जाता है। भारत में पान को लोग भोजन के बाद खाते थे। ऐसा माना जाता था कि इसमें पाचनकारी गुण पाए जाते हैं लेकिन बदलते जीवनशैली के साथ पान की जगह गुटखा ने ले ली है जो स्वाभाविक रूप से एक आदत सी बन जाती है। पान मसाला की पैठ 8.6 प्रतिशत की दर से शहरों में और 6.6 फीसदी की दर से ग्रामीण इलाकों में बढ़़ रही है।
तंबाकू में मौजूद निकोटिन का असर पूरी बॉडी पर पड़़ेगा। इससे पेट और गले का कैंसर हो सकता हैआपकी सेहत का राज छिपा है आपके दांतों में। अगर आपके दांत तंदुरुस्त नहीं हैं तो समझिए बॉडी भी तंदुरुस्त नहीं। युवाओं में गुटखा खाने का चलन बढ़़ता जा रहा है जिसका नतीजा दांतों और मसूढ़़ों को भुगतना पड़़ता है। लगातार गुटखे के सेवन से सबम्यूकस फाइब्रोसिस हो जाता है जिससे मुंह खुलना बंद हो जाता है। मुंह नहीं खुलेगा तो दांतों और मसूड़़ों की सफाई कैसे होगी। मुंह नहीं खुलना कैंसर से ठीक पहले के लक्षण हैं।
आजकल युवा 12 से 13 साल की उम्र में गुटखा खाना शुरू कर देते हैं जिससे उनके दांत अध़ेड़ लोगों की तरह घिस जाते हैं। दांतों पर लगा इनेमल घिस जाता है और दांत संवेदनशील बन जाते हैं। दांतों के पेरिओडोंटल टिश्यू (दांत की हड्डी) क्षतिग्रस्त हो जाते हैं और दांत ढीले हो जाते हैं। भारत में 70 फीसदी लोग तंबाकू का सेवन करते हैं। दांतों की गंदगी और नियमित साफ-सफाई न होने के कारण 700 तरह के बैक्टीरिया खून में पहुंच जाते हैं जो दिल की बीमारी का कारण बनते हैं। लगातार तंबाकू के इस्तेमाल से दांत का रंग भी काला हो जाता है। तंबाकू को लगातार मुंह में रखने से गाल का वह हिस्सा गल जाता है जहां तंबाकू रहता है। तंबाकू में मौजूद निकोटिन और चूना गाल के टिश्यूज को जला देता है यह टिश्यू जलकर कैंसर का कारण बन जाते हैं। शारीरिक रूप से कमजोर युवाओं पर गुटखेका असर सबसे ज्यादा पड़़ता है। संतुलित खान-पान न होने से गुटखा इन युवाओं में जहर का काम करता है। लगातार गुटखे के सेवन से दांतों के जरिए युवाओं में मुंह का कैंसर, पेट का कैंसर और दिल की बीमारी हो जाती है।सुप्रीम कोर्ट ने प्लास्टिक के छोटे-छोटे पाउचों में गुटखे और पान मसाले की बिक्री पर अगले मार्च से रोक लगाने का फैसला सुनाकर देश की गुटखा और पान मसाला लॉबी को जोरदार झटका दिया है। कभी अपने स्वाद और गुणवत्ता के जरिए लोगों के बीच अपनी पहचान बनाने वाले पान मसाला उत्पादों की पहचान अब इन छोटे पाउचों तक सिमट कर रह गई है। 20 वर्ष पहले जो पान मसाला टिन के छोटे डिब्बों में देश के अमीरों की शान था वह अब इन पाउचों की बदौलत देश के गरीबों की जेब तक पहुंचा और महज 20 वर्षों में इसके अधिकांश कारोबारी अरबपति बन बैठे। बताया जाता है कि पूर्व नौकरशाह नीरा यादव के साथ भूमि घोटाले में जेल में बंद कारोबारी अशोक चतुर्वेदी प्लास्टिक पाउच निर्माण के बादशाह हैं।
ओरल सबम्यूकल फायब्रोसिस का खतरा 400 गुणा ज्यादा
सुप्रीम कोर्ट ने प्लास्टिक के छोटे-छोटे पाउचों में गुटखे और पान मसाले की बिक्री पर अगले मार्च से रोक लगाने का फैसला सुनाकर देश की गुटखा और पान मसाला लॉबी को जोरदार झटका दिया है। कभी अपने स्वाद और गुणवत्ता के जरिए लोगों के बीच अपनी पहचान बनाने वाले पान मसाला उत्पादों की पहचान अब इन छोटे पाउचों तक सिमट कर रह गई है। 20 वर्ष पहले जो पान मसाला टिन के छोटे डिब्बों में देश के अमीरों की शान था वह अब इन पाउचों की बदौलत देश के गरीबों की जेब तक पहुंचा और महज 20 वर्षों में इसके अधिकांश कारोबारी अरबपति बन बैठे। बताया जाता है कि पूर्व नौकरशाह नीरा यादव के साथ भूमि घोटाले में जेल में बंद कारोबारी अशोक चतुर्वेदी प्लास्टिक पाउच निर्माण के बादशाह हैं।
तंबाकू उत्पादित पदार्थों
से होने वाले खतरे
दांतों पर असर
लकवा की आशंका
सभी तरह के कैंसर
महिलाओं में समय से पहले बुढ़़ापा और प्रजनन शक्ति का ह्रास
पुरुषों में इरेक्टाइल डिसफंक्शन
पेप्टिक अल्सर
डिपेंशिया
लगातार गुटके के इस्तेमाल से दांत समय से पहले ढीले व कमजोर हो जाएंगे
पेरिओडोंटल टिश्यू क्षतिग्रस्त होंगे जो कैंसर का कारण बने सकता है
तंबाकू के इस्तेमाल से बैक्टीरिया दांतों में अपनी जगह बना लेंगे जिससे दांत गल सकते हैं
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