बुधवार, 22 दिसंबर 2010

मप्र के राजाओं पर मेहरबानी क्यों

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2 जी स्पैक्ट्रम मामले में कंट्रोलर एण्ड ऑडिटर जनरल ऑफ इंडिया (कैग) की जिस रिपोर्ट ने केंद्र सरकार को वर्तमान कार्यकाल के अब तक के सबसे बड़े संकट का सामना करना पड़ रहा है, इसी तरह की रिपोर्ट कैग हर साल मप्र सरकार के घपले-घोटालों पर भी देता रहा है। लेखों के विश्लेषणों पर आधारित इस आलोचनात्मक रिपोर्ट को परिपाटी मानकर न तो सरकार ने कभी घोटालों के दोषियों पर कोई कार्रवाई की और न ही विधानसभा में विपक्ष पार्टियों ने कभी इस मुद्दे पर सरकार को घेरा। पिछले साल 31 मार्च 2009 को आई कैग की रिपोर्ट में केवल वाणिज्यिक कर, राज्य उत्पादन शुल्क, मोटर वाहन कर, मुद्रांक शुल्क एवं पंजीयन फीस, भू-राजस्व के 2 लाख 96 हजार 745 प्रकरणों में 2 हजार 342 से अधिक की गड़बड़ी उजागर की गई थी।
राज्य विधानसभा के बजट सत्र में हर साल कैग की रिपोर्ट रखी जाती है। इस रिपोर्ट का पटल पर रखा जाना, प्रदेश में महज औपचारिकता बनकर रह गया है। रिपोर्ट में उजागर की जाने वाली अनियमितताओं पर सरकार यह कहकर बचती रही कि यह रिपोर्ट एक सामान्य प्रक्रिया है और सरकार ने गड़बडिय़ों की गुंजाइश नहीं छोड़ी है। जबकि हकीकत यह है कि हर साल रिपोर्ट में घपले-घोटालों की राशि बढ़कर सामने आती है। राज्य में विभिन्न विभागों खासकर राजस्व वसूली विभाग करारोपण और जुर्माने की वसूली में हर साल सरकार को करोड़ों का चूना लगा रहे हैं। सालों पुरानी वसूली की फाइलें धूल खा रही हैं और ब्याज के साथ अब रकम हजारों करोड़ तक पहुंच गई है। अफसरों की एक नहीं कई लापरवाहियों का फायदा व्यापारियों ने उठाया और कर अपवंचन करके करोड़ों की चपत लगाई।
यहां भी हावी अफसशाही
कैग ने अपने प्रतिवेदनों में बार-बार इस बात को साफ किया है कि विभागों के प्रमुख सचिव और सचिव ऑडिट आपत्तियों पर कोई जवाब नहीं देते। कैग की टिप्पणियों से साफ होता है कि बार-बार रिमाइंडर के बाद भी अफसरों के कान पर जूं नहीं रेंगती। कैग की रिपोर्ट में कहा गया है कि कमियों, चूकों और अनियमितताओं में सुधार के लिए कार्रवाई करने में अधिकारी विफल रहे हैं। कैग ने यह भी सिफारिशें की कि निरीक्षण प्रतिवेदनों और कंडिकाओं का उत्तर नहीं भेजने वाले अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जाए और इन्हीं से राजस्व हानि की वसूली भी हो। हर साल कैग की इस तरह की ढेरो सिफारिशें आती हैं, लेकिन सरकार रिपोर्ट को ठीक से पढ़ती तक नहीं है। प्रदेश में अधिकारी भी बेखौफ होकर इसलिए भ्रष्टाचार कर रहे हैं कि रिपोर्ट का कोई माई-बाप नहीं है।
बजट के साथ बढ़ा भ्रष्टटाचार
कैग की पिछले पांच सालों की रिपोर्ट से यह भी साफ होता है कि जिस तरह से राज्य सरकार का बजट हर साल बढ़ता जा रहा है उसी तरह भ्रष्टाचार की रकम भी बढ़ रही है। वर्ष 2003 से सरकार का बजट महज दस हजार करोड़ के आसपास होता था। तब भ्रष्टाचार के इतने अधिक मामले सामने नहीं आए, लेकिन इसके बाद से लगातार हर साल लगातार बजट बढ़ता चला गया है। मौजूदा वित्तीय वर्ष में सरकार का बजट 50 हजार करोड़ का आंकड़ा छू चुका है। हर साल बढ़ रहे बजट से भ्रष्टाचार की रकम बढ़ी और यही कारण है कि मौजूदा सरकार में भ्रष्टाचार के आए दिन एक से बढ़कर एक मामले सामने आ रहे हैं। कैग की रिपोर्ट में उन गड़बडिय़ों की तरफ ध्यान दिलाया गया है, जो तीन चार साल पहले हुई हैं। हाल ही में हुई गड़बडिय़ों पर जब कैग अपनी रिपोर्ट देगा, तब रिपोर्ट के आंकड़े वाकई में चौंकाने वाले होंगे। हो सकता है कि सुशासन और पारदर्शी प्रशासन की बात करने वाली सरकार के लिए भ्रष्टाचार के इन आंकड़ों का सामना करना मुश्किल हो जाए।
वसूली और निर्माण में सबसे ज्यादा गड़बड़
तीन सालों की कैग की रिपोर्ट बताती है कि प्रदेश में राजस्व वसूली और निर्माण कार्य करने वाले विभागों में सबसे ज्यादा गड़बडिय़ां हैं। वसूली विभाग उचित करारोपण नहीं करते हुए सरकार को चूना लगाते हैं तो निर्माण कार्य विभाग दोगुनी लागत काम कराने को आतुर रहते हैं। सिंचाई परियोजनाओं, बांधों और भवनों के निर्माण में सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार सामने आया है। कई मामलों में रिकार्ड ही संधारित नहीं हुआ तो कई जगह तय सीमा से ज्यादा खर्च कर किया गया। कर वसूली वाले विभागों में एक नहीं अनेक तरह की गड़बडिय़ां सामने आती हैं। सबसे ज्यादा लापरवाही बकाया वसूली होने में बरती जाती है।
नाम की लोक लेखा
विधानसभा की सबसे सशक्त लोक लेखा समिति पर कैग की रिपोर्ट और उसकी सिफारिशों पर काम की जवाबदारी है, लेकिन मप्र विधानसभा में लोक लेखा समिति केवल नाम मात्र की ही रह गई है। समिति का अध्यक्ष विपक्ष के किसी वरिष्ठ सदस्य को बनाया जाता है। तेरहवीं विधानसभा में कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक डॉ. गोविंद सिंह इसके अध्यक्ष हैं। विधानसभा का दो साल कार्यकाल बीत चुका है, लेकिन समिति ने कैग की किसी रिपोर्ट पर कार्रवाई के लिए सरकार को बाध्य नहीं किया। सैकड़ों लंबित कंडिकाओं की सुनवाई और इनके निराकरण के लिए समिति ने कभी उचित पहल नहीं की।
रिपोर्ट पर बहस की परंपरा भी बंद
नियमानुसार विधानसभा में कैग की रिपोर्ट आने के बाद इस पर बहस होनी चाहिए, लेकिन मप्र विधानसभा में हर साल आने वाली रिपोर्ट पर सालों से कोई बहस नहीं हुई। आमतौर पर कैग की रिपोर्ट के आधार पर विपक्ष सरकार से सवाल-जवाब करता है, लेकिन मप्र में कमजोर और गुटबाजी में बंटे विपक्ष ने कभी रिपोर्ट को खोलकर नहीं देखा।
भ्रष्टटाचार के मुद्दे में भी रिपोर्ट नहीं
तेरहवीं विधानसभा में विपक्ष शिवराज सरकार को मुख्यत: भ्रष्टाचार के मुद्दे पर घेरता रहा है, लेकिन इसमें कैग द्वारा उजागर की गई वित्तीय खामियों और गड़बडिय़ों का कभी विपक्ष ने सहारा नहीं लिया। कैग की रिपोर्ट सरकार को कटघरे में खड़ा करने के लिए काफी है, लेकिन विपक्षी पार्टियां खुद रिपोर्ट पर ज्यादा गंभीर नहीं है। इससे साबित होता है कि प्रदेश में अपार भ्रष्टाचार के बीच भले ही चाहे इस मुद्दे से सदन को गूंजा दिया जाए, लेकिन हकीकत में सभी एक ही थाली के चट्टे-बट्टे हैं।
जनवरी 10 में जारी रिपोट बची राशि नहीं दी वापस
नियमानुसार व्यय करने वाले विभागों को बचत के प्रत्याशित होने पर तुरंत अनुदानों/विनियोगों अथवा उसके भागों को वित्त विभाग को समर्पित करना चाहिए। लेकिन विभिन्न विभागों ने 47 मामलों में 2344.09 करोड़ रुपए समर्पित नहीं किए। 45 अन्य मामलों में 2490 करोड़ समर्पित नहीं किए।
ये हैं कर वसूलने वाले विभागों के घपले
ऐसे लगाया सरकार को चूना
वाणिज्यिक कर विभाग
- व्यावसायियों द्वारा प्रतिभूति जमा करने के लिए वैधानिक प्रावधान की कमी के परिणामस्वरूप 2.18 करोड़ की हानि।
- 15.70 लाख रुपए की राशि के इन्वेन्टरी रिबेट तथा इनपुट टैक्स क्रेडिट का गलत लाभ लिया।
- फेब्रिक, शक्कर, तंबाकू उत्पादों पर कर के अनारोपण के कारण 50.73 लाख रुपए के राजस्व की हानि हुई।
- कम कर विक्रयों से 5.57 करोड़ कर कर तथा 6.61 लाख के ब्याज नहीं मिला।
- कर मुक्त विक्रय की गलत कटौती से 1.80 करोड़ की कर हानि।
- कर मुक्ति की गलत छूट से 1.09 की हानि।

उत्पाद शुल्क
- विदेशी शराब, बीयर, स्पिरिट के निर्यात, परिवहन के सत्यापन प्रतिवेदन नहीं मिलने से 13.47 करोड़ का शुल्क नहीं मिला।
- आरक्षित मूल्य के गलत निर्धारण से 3.03 करोड़ रुपए की हानि।
- स्पिरिट तथा विदेशी मदिरा का निवर्तन न किए जाने से 1.28 करोड़ की हानि।

वाहनों पर कर
- 4851 वाहनों पर 7.46 करोड़ रुपए का जुर्माने सहित 18.59 करोड़ के कर का भुगतान न वाहन स्वामियों ने किया, न ही विभाग ने मांगा।
- ऑल इंडिया परमिट वाहनों से 47.22 लाख का टैक्स और 25.65 लाख का जुर्माना नहीं वसूला।
- विलेखों को उन पर आरोपणीय उचित शुल्क के निर्धारण के लिए लोक अधिकारियों को प्रस्तुत नहीं किए जाने से 5.59 करोड़ का स्टाम्प शुल्क कम मिला।
खनिज में गड़बड़ी
वर्ष 2008-09 में खनिज राजस्व से जुड़े रिकार्ड की जांच में 333.73 करोड़ की गड़बड़ी सामने आई। 9 जिलों में अक्टूबर 2008 से 2009 के बीच पता चला कि 65 खनिज पट्टों के मामलों में सड़क विकास कर का निर्धारण नहीं करने से 93.56 करोड़ की वसूली नहीं हुई। अनूपपुर में मार्च 2009 में पता चला कि साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लि. सोमना, जमुना कोतमा, गोविंदा, मीरा और भद्रा क्षेत्रों में अप्रैल 2007 से मार्च 2008 में 2.76 करोड़ कम मिले। इसी तरह के कई मामलों में जिलों में खनिज अधिकारियों ने वसूली नहीं की और पट्टाधारकों पर जुर्माना लगाने से भी बचते रहे।
2009 का वित्तीय प्रतिवेदन
गड़बड़ी और कैग की राय
- वर्ष 2008-09 तक कल 21486.13 करोड़ के अनुदानों तथा ऋणों के उपयोगिता प्रमाणपत्र राज्य सरकार द्वारा जारी करना अपेक्षित था। संबंधित इकाइयों तथा राज्य सरकार को मामले की सूचना के बाद भी 47 निकायों ने लेखा की प्रस्तुति में विलंब किया। मार्च 2009 तब 8.45 करोड़ रुपए के सरकारी धन के दुर्विनियोग, गबन आदि के कुल 966 प्रकरण मुख्य रूप से सरकार से वसूली अथवा अपलेखन के आदेश प्रतीक्षित होने के कारण लंबित थे। कैग के मतानुसार इन सभी कमियों से विभागों के अंतर्गत आंतरिक नियंत्रण में कमी तथा राज्य सरकार प्रभावी नियंत्रण सामने आया।
- वित्त प्रबंधन एवं बजटीय नियंत्रण के मामले में कैग ने कहा कि वर्ष के दौरान 8352 करोड़ रुपए की बचत, कुल बजट प्रावधान का 17 प्रतिशत थी, तथापि राज्य सरकार द्वारा दोषपूर्ण बजट तैयारी, अप्रभावी वित्तीय प्रबंधन तथा व्यय पर अप्रभावी बजट नियंत्रण प्रकट हुआ। वर्ष के दौरान प्राप्त 4628 करोड़ रुपए का एक अनुपूरक प्रावधान 8352 करोड़ रुपए की बचत की दृष्टि से आवश्यक नहीं था। वित्तीय नियमों तथा राज्य सरकार के अनुदेशों का उल्लंघन कर जारी किए गए 287.44 करोड़ रुपए के समर्पण/पुनर्नियोग की मंजूरियां दोषपूर्ण थीं।

पिछले साल 1070 करोड़ की चपत
वित्तीय वर्ष 2007-08 में कैग ने अपनी रिपोर्ट में मध्यप्रदेश सरकार की कर और शुल्क वसूली में एक साल में करीब 1070 करोड़ रुपए की कर हानि का खुलासा किया था।
कैग ने मुद्रांक एवं पंजीयन शुल्क तथा खनिज मामलों की पांच साल की समीक्षा भी की। खनिज में 395 करोड़ रुपए की हानि हुई। रिपोर्ट में खनिज उत्खनन के आंकड़ों का अन्य विभागों के साथ प्रति सत्यापन न होने पर प्रतिकूल टिप्पणी की गई।
महालेखाकार मौसुमी रॉय भट्टाचार्य ने बताया था कि मप्र में खनिज राजस्व के मामले में काफी कमियां सामने आई हैं। रायल्टी का पांच प्रतिशत सड़क विकास के लिए जमा कराना होता है, लेकिन ऐसा नहीं किया गया। उन्होंने रिपोर्ट का उल्लेख करते हुए बताया कि इसमें कर, ब्याज, शास्ति आदि के अनारोपण ओर कम आरोपण से संबंधित दो समीक्षाओं समेत 55 कंडिकाएं शामिल हैं, जिनमें 623.43 करोड़ रुपए की राशि शामिल है।
रिपोर्ट में क्या था खास
- वर्ष 2006-07 के 25,694.28 करोड़ की तुलना में वर्ष 2007-08 में कुल राजस्व प्राप्तियां 30,688.73 करोड़ रुपए, इसमें 48 फीसदी राज्य कर राजस्व 12,017.64 करोड़ तथा कर के अलावा राजस्व 2738.18 करोड़ रुपए वसूले, शेष 52 प्रतिशत केंद्र सरकार से राज्यांश 10,203.50 करोड़ रुपए तथा सहायता अनुदान 5,729.41 करोड़ रुपए मिले, 2007-08 के दौरान 4,48,574 मामलों में 1,079.85 करोड़ रुपए के राजस्व का अवनिर्धारण।
कम आरोपण और हानि
वाणिज्यिक कर
- पात्रता प्रमाण पत्र निरस्त न किए जाने से बंद इकाइयों से 75.34 करोड़ रुपए कर वसूली नहीं हुई।
- कर न लगाने और कम लगाने से 43.36 लाख राजस्व और 6.46 लाख रुपए ब्याज नहीं मिला।
- गलत छूट देने से 6.20 करोड़ रुपए की हानि। पंजीयन न करने से 2.07 करोड़, गलत दर के कारण 2.26 करोड़ रुपए कम मिले।
- प्रवेश कर में 36.28 लाख का नुकसान।

उत्पाद शुल्क
- विदेशी मदिरा का निर्यात सत्यापन वक्त पर न होने तथा अन्य वजहों से 6.30 करोड़ नहीं मिले।
वाहनों पर टैक्स
- 4228 वाहनों पर 26.37 करोड़ रुपए का भुगतान न तो किया गया न विभाग ने मांगा।
- लाइफ टैक्स की बाकी राशि नहीं वसूलने से 54.92 करोड़ का नुकसान।
- वाहन मालिकों ने गलत दर से टैक्स दिया, विभाग को 63.98 करोड़ रुपए कम मिले।
- अन्य राज्यों के वाहनों पर टैक्स न लगाने से 25.53 लाख रुपए की कम वसूली।
मनोरंजन शुल्क
- केवल संचालकों तथा होटल मालिकों से वसूली नहीं करने से 32.57 लाख राजस्व नहीं मिला।
- सिनेमाघरों पर टैक्स नहीं लगाने से 20.49 लाख रुपए का नुकसान।
भू-राजस्व : डायवर्शन लगान नहीं वसूलने, कुर्की का निराकरण न करने आदि से 5.4 करोड़ रुपए राजस्व नहीं मिला।
वन : इमारती लकड़ी के कम उत्पादन से 73.02 लाख रुपए राजस्व हानि।
विद्युत शुल्क : निरीक्षण फीस नहीं वसूलने और नियम तोडऩे वालों पर दंड न लगाने से 1.77 करोड़ रुपए का नुकसान।
खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति : कर्ज भुगतान न किए जाने से 21.15 लाख रुपए के राजस्व की हानि।
ये हैं पांच साल की समीक्षा का नतीजा :
- मुद्रांक शुल्क एवं पंजीयन फीस में 82.8 करोड़ रुपए का नुकसान।
- खनिज प्राप्तियों में 394.81 करोड़ रुपए की हानियां।
बचत पत्र डाकघर से वसूल नहीं किए गए
पिछले साल जुलाई में जारी हुई रिपोर्ट में प्रदेश की योजनाओं के क्रियान्वयन सहित लेखा-जोखा वर्ष 2007-08 को लेकर सीएजी ने अपनी रिपोर्ट जारी की थी। रिपोर्ट में बच्चों के पोषण स्तर में सुधार के लिए लागू की गई मध्यान्ह भोजन योजना को पूरी तरह फेल बताया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि योजना के तहत प्राथमिक कक्षाओं में बच्चों को आकर्षित नहीं किया जा सका है। इसके अलावा जरूरी 3.68 करोड़ रुपए का भुगतान नहीं हो पाना भी योजना की असफलता का कारण बताया गया है।
सीएजी ने और कहां जताई आपत्ति
सीएजी ने प्रदेश की जिन और योजनाओं पर आपत्ति जताई है, उनमें प्रमुख रूप से जल ग्रहण विकास कार्यक्रमों का क्रियान्वयन, आदिवासी उपयोजना के तहत अधोसंरचना का विकास, नर्मदा, ताप्ती कछार में सिंचाई सुविधाएं, महिला व बाल विकास विभाग में आंतरिक नियंत्रण प्रणाली सहित पीएचई, शालेय शिक्षा विभाग, नर्मदा घाटी विभागों की प्रमुख योजनाएं भी हैं।
मनरेगा के अमल में खामी
भोपाल। राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना में देश में सबसे आगे होने का दावा करने वाली मध्यप्रदेश सरकार की पोल भी कैग की रिपोर्ट ने खोली। रिपोर्ट में इस योजना में अनेक खामियां गिनाते हुए कहा गया कि सभी पंजीकृत परिवारों को एक सौ दिन का जहां रोजगार उपलब्ध नहीं कराया जा सका, वहीं अवयस्कों को भी जाब कार्ड में शामिल कर लिया गया है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि दो फरवरी 2006 से 18 जिलों में लागू इस योजना के तहत सभी पंजीकृत परिवारों को सौ दिन का रोजगार उपलब्ध नहीं कराया गया। अपात्र कार्यों को क्रियान्वित करने से कार्य अपूर्ण पड़े थे, निधियों को जारी करने में देरी और मजदूरों में भुगतान में देरी करने के प्रकरण भी सामने आए। रिपोर्ट के अनुसार कुछ प्रकरणों में जाब कार्ड पर परिवार के सदस्यों के फोटो चिपकाने में देरी हुई थी, जबकि अवयस्कों को भी जाब कार्ड में शामिल कर लिया गया। रोजगार देने के लिए कोई वार्षिक कार्ययोजना अलग से तैयार नहीं की गई। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि रोजगार मांग एवं रोजगार प्रदाय पंजी या तो संधारित नहीं की गई अथवा अपूर्ण रूप से संधारित की गई थी, जिसके कारण वास्तविक रूप से रोजगार की मांग एवं रोजगार प्रदाय का पता नहीं किया जा सकता था। मस्टर रोलों की समीक्षा में पाया गया कि जाब कार्ड में अवस्यकों को रोजगार दिया गया था।
मुख्यमंत्री के खिलाफ टिप्पणी भी कर चुका है सीएजी
पिछले साल विधानसभा में पेश सीएजी की रिपोर्ट में पहली बार प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ टिप्पणी की गई है, जबकि अमूमन गड़बडिय़ों पर टिप्पणी सरकारी विभागों या अफसरों पर होती हैं। सीएजी की सिविल रिपोर्ट में बाण्ड बीओटी के तहत निजी क्षेत्र को दिए गए कटनी बायपास के बारे में कहा गया कि ठेकेदार ने गलत स्थान पर टोल नाका स्थापित किया, जिससे बायपास का उपयोग न करने वालों को भी टोल टैक्स देना पड़ा। इस बारे में जनता ने मुख्यमंत्री को शिकायत की, परंतु टोल नाके के स्थान पर कोई बदलाव नहीं किया गया।
लाड़ली लक्ष्मी योजना में भी गड़बड़ी
(जुलाई 2009)
सीएजी ने मप्र सरकार की सबसे पॉपुलर लाड़ली लक्ष्मी योजना के नाम पर मची लूट को भी रेखांकित किया था। सीएजी अपनी रिपोर्ट में योजना में गंभीर वित्तीय अनियमितताओं सहित अपात्र हितग्राहियों को मदद पहुंचाने का खुलासा कर चुका है। रिपोर्ट के अनुसार बच्ची की जन्मतिथि में हेराफेरी सहित परिवार नियोजन सुनिश्चित किए बगैर करीब एक करोड़ आठ लाख रुपए का भुगतान कर दिया गया।

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