देश समेत दुनियाँ के जाने-माने उद्योगपतियों की मौजूदगी ने खजुराहो निवेशकों के सम्मेलन में मध्यप्रदेश में नई सुबह लाने का सच्चा पैगाम दे दिया। ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट-2 के कुल निवेश के करारनामों की तादाद 107 और रकम की मात्रा दो लाख 35 हजार 966 करोड़ रूपये हो गई। आज विविध उद्योगों के 57 करारनामों में 39 हजार 115 करोड़ रूपये, ऊर्जा के 15 करारनामों में 76 हजार 80 करोड़ रूपये, खाद्य प्रसंस्करण के सात करारनामों में 534 करोड़ रूपये, स्वास्थ्य के दो करारनामों में 400 करोड़ रूपये और नवीनीकृत ऊर्जा के चार करारनामों में एक हजार 200 करोड़ रूपये लगाए जाने की रजामंदी हो गई। सरकार और उसके कारिंदों ने इस इरादे का खुलासा भी अच्छे से कर दिया कि करारनामों की तकरीबन रोज़ाना ही मानीटरिंग की जाएगी ताकि उद्योगों की तयशुदा वक्त में स्थापना हो जाए और प्रदेश तथा यहाँ के लोगों को वास्तविकता की अनुभूति जल्द से जल्द हो जाए। लेकिन ठीक इसके उलट अनिल धीरू भाई अंबानी समूह (एडीजी) के चेयरमैन अनिल अंबानी खजुराहो निवेश सम्मेलन में शिव और उनके राज को मूर्ख बनाकर चले गए।
जिस तरह भाजपा ने कुछ साल पहले देश के आम चुनाव में शाइनिंग इंडिया व फीलगुड का फर्जी नारा देकर चुनाव हारा था उसी तर्ज पर अब प्रदेश में शाइनिंग एमपी के आकर्षक बोर्ड टांगे जा रहे हैं। मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान की प्रदेश व इन्दौर को अव्वल बनाने की नेकनीयती में तो कोई शक-शुभा नहीं है मगर मैदानी हकीकत इन तमाम दावों के ठीक उलट नजर आती है। खजुराहो समिट के बड़े भारी निवेश में सवा 2 लाख करोड़ से अधिक के 107 एमओयू यानी करार निवेशकों के साथ किए जाने के साथ मुख्यमंत्री के साथ अनिल अंबानी ने प्रदेश में 75 हजार करोड़ निवेश करने का दावा करते हुए हर घंटे ढाई करोड़ के निवेश का जो आंकड़ा परोसकर जबर्दस्त मीडिया में सुर्खियां बटोरी उसकी असली हकीकत यह है कि अनिल अंबानी ने खजुराहो में कोई नया करार किया ही नहीं, बल्कि इन्दौर में 2007 में ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट में जो पचास हजार करोड़ का करार किया था, उसी को बढ़ाकर 75 हजार करोड़ का कर दिया। इतना ही नहीं 25 साल तक अनिल अंबानी से प्रदेश सरकार 20 से 25 पैसे प्रति मिनट महंगी बिजली खरीदेगी जिससे अंबानी 10 से 15 हजार करोड़ रुपये अतिरिक्त कमाएंगे। प्रदेश शासन के वित्त विभाग ने इस लूट पर आपत्ति दर्ज कराई थी मगर पिछले दिनों कैबिनेट ने इसे मंजूरी दे दी।
बड़े लोगों के बड़े खेल... यह बात रिलायंस पर सबसे सटीक साबित होती है। प्रदेश का कोई छोटा-मोटा बिल्डर या कालोनाइजर अगर कुछ फायदा उठा लेता है तो अखबारों की सुर्खियां बन जाती हैं, लेकिन दूसरी तरफ बड़े निवेशक हजारों करोड़ रुपये का गोलमाल कर लेते हैं, लेकिन इसे शहर और प्रदेश की तरक्की से जोड़कर प्रचारित किया जाता है। अभी खजुराहो में जितने भी करार हुए, वे सब प्रदेश के प्राकृतिक संसाधनों की लूट खसोट यानी माइनिंग से जुड़े हुए हैं। इस पूरी समिट में सबसे बड़ी खबर अनिल अंबानी की मौजूदगी ने बनाई, जिसमें 75 हजार करोड़ रुपये के भारी-भरकम निवेश के दावे किए गए, जिसकी असलियत यह है कि इन्दौर में 26 व 27 अक्टूबर 2007 को खजुराहो की तर्ज पर ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट आयोजित की गई थी और उसमें अनिल अंबानी ने 50 हजार करोड़ रुपये का एमओयू साइन किया था, जिसमें शासन के 3960 मेगावाट अल्ट्रा पावर प्रोजेक्ट के अलावा चितरंगी तहसील सीधी जिले के एक अन्य मेगा थर्मल पावर स्टेशन के साथ चार बड़े सीमेंट के संयंत्र लगाने, जिनकी क्षमता 5 मिलियन टन हर साल होगी, वहीं सीधी जिले में एयरपोर्ट व एयर स्ट्रीप के विकास के साथ ही भोपाल में एक तकनीकी इंस्टिट््यूशन खोला जाना था। जिसके लिए खजुराहो समिट के दो दिन पूर्व प्रदेश शासन अनिल अंबानी की संस्था को भोपाल एयरपोर्ट के पास 110 एकड़ जमीन धीरूभाई अंबानी कॉलेज के लिए आवंटित कर चुका है। वहीं समिट में 75 हजार करोड़ रुपये के जिस निवेश का दावा किया गया, उसमेंं कोई नया करार नहीं हुआ, बल्कि लगने वाले सीमेंट प्लांटों की क्षमता को दोगुना करने और आठ हजार मेगावाट के बिजली संयंत्रों के पुराने करारों की क्षमता बढ़ाकर उसे 12 हजार मेगावाट से अधिक करने का निर्णय लिया गया है। मगर प्रचारित इस तरह हुआ मानो अनिल अंबानी ने 75 हजार करोड़ रुपये का कोई नया करार सरकार से किया हो।
इस पूरे मामले की एक और बड़ी हकीकत यह है कि आने वाले 25 सालों तक प्रदेश सरकार की एमपी पावर ट्रेडिंग कंपनी जो बिजली रिलायंस से खरीदेगी, वह काफी महंगी होगी। अभी 5 अक्टूबर को शिवराज कैबिनेट ने दो कंपनियों रिलायंस पावर और एस्सार पावर से बिजली खरीदने का 25 सालों का करार किया है। अनिल अंबानी के रिलायंस पावर से पहले 2 रुपये 70 पैसे और एस्सार से 2 रुपये 95 पैसे प्रति यूनिट की दर तय की गई थी। मगर बाद में निगोसिएशन के पश्चात 2 रुपये 45 पैसे प्रति यूनिट की दर फायनल की गई। इतना ही नहीं रिलायंस ने सीधी जिले के सासन अल्ट्रा पावरमेगा प्रोजेक्ट के लिए आवंटित कोलब्लाक से अपने अन्य चितरंगी पावर प्रोजेक्ट के लिए भी कोयला प्राप्त करने की मंजूरी पहले केन्द्र शासन से और फिर राज्य से प्राप्त कर ली। इसी आधार पर प्रदेश के वित्त विभाग ने यह तर्क दिया कि चूंकि रिलायंस पावर को बाहर से कोयला नहीं खरीदना पड़ेगा और वह प्रदेश से ही कोयला लेकर बिजली बनाएगा, लिहाजा परिवहन के साथ अन्य खर्चों में कमी होगी। इसलिए जनता को दी जाने वाली बिजली की दर 20 से 25 पैसे प्रति यूनिट तक और कम होना चाहिए। यह भी उल्लेखनीय है कि मात्र 1 पैसे प्रति यूनिट की अगर कमी की जाती है तो 25 सालों में लगभग 700 करोड़ रुपये की बचत एमपी पावर ट्रेंिडंग कंपनी को होती। इस लिहाज से 20 से 25 पैसे प्रति यूनिट बिजली रिलायंस पावर और एस्सार पावर से खरीदने के निर्णय से 10 से 15 हजार करोड़ रुपये का फायदा इन निजी कंपनियों को पहुंचाया गया। वित्त विभाग ने अपनी आपत्ति में रिलायंस पावर को जमीन देने के अलावा अन्य सुविधाओं का उल्लेख करते हुए प्रति यूनिट बिजली की दरों में कमी लाने का सुझाव दिया था, लेकिन अनिल अंबानी की तगड़ी ऊपरी पकड़ के चलते वित्त विभाग की इन आपत्तियों को दरकिनार करते हुए पिछले दिनों शिवराज कैबिनेट ने 25 सालों तक बिजली खरीदी का निर्णय ले लिया। अभी मध्यप्रदेश की जनता वैसे ही महंगी बिजली से हलाकान है और आने वाले दिनों में बिजली तो भरपूर निजी संयंत्रों के कारण मिलेगी, लेकिन उसके दाम इतने अधिक होंगे कि आम आदमी को दिन में ही तारे नजर आने लगेंगे।
अभी तक रिलायंस पावर के तीन साल पूर्व किए गए प्रोजेक्ट के लिए जमीन उपलब्ध नहीं हो सकी है। दरअसल शासन को रिलायंस पावर को 3879 हेक्टेयर जमीन अधिग्रहित कर उपलब्ध कराना है, जिसमें 1179 हेक्टेयर जमीन निजी, 445 हेक्टेयर सरकारी और 2255 हेक्टेयर जमीन वन भूमि है। लिहाजा इस अल्ट्रा मेगा पावर प्रोजेक्ट के बदले 10 लाख से अधिक पेड़ों को काटना भी पड़ेगा। वहीं सैकड़ों परिवारों को विस्थापित किया जाना है। हालांकि वन भूमि का मामला उच्चस्तरीय है और इसके लिए केन्द्र सरकार के पर्यावरण मंत्रालय की अनुमति भी लगेगी। उल्लेखनीय है कि अभी हजारों करोड़ रुपये के वेदांता ग्रुप को पर्यावरण विभाग ने किसी कारण अनुमति नहीं दी।
खजुराहो समिट में 75 हजार करोड़ रुपये के निवेश का दावा अनिल अंबानी द्वारा किया गया। हालांकि इस संबंध में कोई करार नहीं हुआ, क्योंकि तीन साल पहले ही इन्दौर में अनिल अंबानी खुद पचास हजार करोड़ रुपये का करार कर चुके हैं। इस 12 पेजी करार 100 रुपये के स्टाम्प पेपर पर किए गए है। 26 अक्टूबर 2007 को तत्कालीन वाणिज्यिक व उद्योग तथा रोजगार विभाग के प्रमुख सचिव अवनी वैश्य जो कि वर्तमान में प्रदेश शासन के मुख्य सचिव हैं, ने खुद रिलायंस पावर लिमिटेड के साथ उक्त करार किया था और अनिल अंबानी की ओर से डायरेक्टर बिजनेस डेवलपमेंट जेपी चालासानी ने इस करार पर हस्ताक्षर किए। इस करार में सीधी के सासन और चितरंगी के दोनों पावर प्लांटों के अलावा चार सीमेंट फैक्ट्रियों को खोलने, भोपाल में तकनीकी इंस्टिट््यूशन जिसकी जमीन अभी खजुराहो समिट के दो दिन पूर्व भोपाल एयरपोर्ट के पास आवंटित की गई। 26 अक्टूबर 2007 को किए गए इस इन्दौरी करार के वक्त भी खजुराहो की तरह अनिल अंबानी मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान के साथ मौजूद थे, जिसका उल्लेख भी उक्त करार में किया गया है।
मध्यप्रदेश में भाजपा की सरकार अभी तक 9 निवेश सम्मेलन आयोजित कर चुकी है। खजुराहो समिट में दो लाख 36 हजार करोड़ के 107 करार करना बताए, जिसमें इन्दौर का क्रिस्टल आईटी पार्क भी शामिल है, जिसमें साफ्टवेयर टेक्नोलाजी आफ इंडिया को दिया गया, जिसका सबसे पहले खुलासा अभी पिछले दिनों अग्रिबाण ने ही किया था। खुजराहो समिट के पूर्व जो 8 निवेश सम्मेलन हुए, उनमें कुल मिलाकर पौने पांच लाख करोड़ रुपये के एमओयू यानी करार किए गए और वास्तविक धरातल पर मात्र 58 हजार करोड़ रुपये का निवेश ही हो पाया है। यहां तक कि इन्दौरी ग्लोबल मीट में 102 करार सवा लाख करोड़ रुपए के किए गए थे और इनमें से मात्र 13 हजार करोड़ का निवेश हुआ है। चूंकि ज्यादादर एमओयू रियल स्टेट यानी होशियार जमीनी कारोबारियों ने कर लिए, जिनकी पोलपट्टïी भी उजागर की गई और ये सारे करार अंतत: कागजी ही साबित हुए। हालांकि मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान लगातार प्रयासरत हैं अधिक से अधिक निवेश जुटाने में, लेकिन मैदानी हकीकत इसके विपरीत ही नजर आती है।
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