दिनेश शाक्य
चंबलघाटी से डाकुओ का खात्मा होने के बाद बडे बडे इनामी डाकू महानगरो मे रोजी रोटी की तलाश मे डेरा जमाना शुरू कर के अपना गुजारा करने मे लग गये लेकिन पुलिस के लंबे हाथो से बच नही पा रहे है।
बडे बडे महानगरो मे डाकूओ के काम करने का खुलासा तब हुआ जब उत्तार प्रदेश की इटावा पुलिस ने करीब 17 हजार रूपये के इनामी डाकू महेन्द्र सिंह परिहार को पकडने का दावा किया है महेंद्र सिंह 2006 मे मध्यप्रदेश के मुरैना मे एक मुठभेड मे मारे गये जगजीवन डाकू गैंग का खूखांर डाकू रहा है। इसी साल 23 मई को जगजीवन के गुरू रहे प्रेमदास को इटावा पुलिस ने गुजरात राज्य मे एक मंदिर मे पुजारी बन कर अपना गुजारा करने के दौरान पकडा था प्रेमदास पर भी करीब 18 हजार रूपये का इनाम था।
बचपन मे जगजीवन को अपने हाथो से गोद मे खिलाने वाले उसके गुरू प्रेमसिंह ने उसको तीन राज्यो मे आतंकी डकैत बनाने मे खासा योगदान किया है लेकिन उसके कई साथियो के साथ मध्यप्रदेश मे 15 मार्च 2006 को मारे जाने के बाद प्रेमसिंह उत्तार प्रदेश के इटावा जिले से पलायन करके गुजरात के पालनपुर मे एक मंदिर मे साधु बन कर लोगो की सेवा करने मे जुट गया।
चंबल के खूखांर बीहडो मे लंबे समय तक बुरे काम करने के बाद अपने आप को बचाने के लिये उसने भले हर साधु का भेष धारण कर लिया हो लेकिन पुलिस की निगाह से वो बच नही सका।जी हां ,बात हो रही है उत्तार प्रदेश ,राजस्थान और मध्यप्रदेश मे आतंक के बलबूते पर लंबे समय तक राज करने वाले मारे गये खूंखार डकैत जगजीवन परिहार के गुरू प्रेम सिंह उर्फ प्रेमदास उर्फ प्रेमबाबा की।बचपन मे जगजीवन को अपने हाथो से गोद मे खिलाने वाले उसके गुरू प्रेमसिंह ने उसको तीन राज्यों मे आतंकी डकैत बनाने मे खासा योगदान किया है लेकिन उसके कई साथियो के साथ मध्यप्रदेश मे 15 मार्च 2005 को मारे जाने के बाद प्रेमसिंह उत्तार प्रदेश के इटावा जिले से पलायन करके गुजरात के पालनपुर मे एक मंदिर मे साधु बन कर लोगो की सेवा करने मे जुट गया।उघर उत्तार प्रदेश के इटावा मे पुलिस इसकी खोज मे लगी रही लेकिन कामयाबी नही मिल सकी कामयाबी तब मिली जब जगजीवन के ही एक रिश्तेदार ने पुलिस को प्रेमसिंह के बारे मे जानकारी दी तब पुलिस प्रेमसिंह को पकडने मे कामयाब हुई।
दस हजार रूपये के इस इनामी डकैत ने अपराघ की शुरूआत 1980 मे चंबल के खूंखार आत्मसर्मिपत डाकू मलखान सिंह गैंग से की थी। मध्यप्रदेश की सीमा पर बसे बिठौली गांव मे तब मलखान सिंह के गैंग की आवाजाही जोरदारी से हुआ करती थी इसी के चलते प्रेमसिंह मलखान गैंग मे शामिल होकर अपराघिक बारदातो को करने मे जुट गया जब मलखान सिंहने सर्मपण किया उसके बाद प्रेमसिह भी पकडा गया और उसे 4 साल की सजा हुई।
इसी के बाद प्रेमसिंह ने गुजरात का रूख कर लिया और जब जगजीवन ने अपने आतंक का बोलबाला दिखाना शुरू किया तो प्रेमंसिंह गुजरात से इटावा आकर जगजीवन की मदद करता रहा। इसके बाद 2004 मे सबसे पहला मामला पुलिस मुठभेड यानि धारा 307 मे प्रेमसिंह के खिलाफ इटावा जिले के बिठौली थाने मे दर्ज हुआ,फिर जालौन जिले मे कई अपराघिक मामले दर्ज किये लेकिन पुलिस की पकड से प्रेमसिंह दूर ही रहा इसी लिये फरारी के चलते उत्तार प्रदेश पुलिस ने प्रेमसिंह को जिंदा या मुर्दा पकडने के लिये दस हजार रूपये का इनाम घोषित किया।
इटावा जिले की वैदपुरा पुलिस द्वारा गिरतार किए गए जगजीवन परिहार गिरोह के शातिर इनामी सदस्य की यदि मानी जाए तो उसने अपने दो भाईयों को खोने के बाद खुद को चंबल के बीहड़ों के हवाले किया था। इस डकैत की मानें तो बीहड़ फिलहाल डकैतों से खाली है और उसने कुख्यात दस्यु सरगना जगजीवन परिहार की मौत पर उठ रहे सवालों पर भी यह कह कर विराम लगा दिया कि जगजीवन परिहार मारा जा चुका है। लेकिन उसके पास इस सवाल के जबाब नहीं हैं कि आखिर जगजीवन परिहार के अत्याधुनिक हथियार कहां हैं? इस गिरतार डकैत ने बताया कि जातिगत भावना भी उसके डकैती जीवन का अहम हिस्सा थी।
कभी बीहड़ों में बंदूकों सहित अत्याधुनिक हथियारों से खेलने वाला बिठौली थाना क्षेत्र के ग्राम बंसरी निवासी मेम्बर सिंह को 33 वर्षीय यह पुत्र महेंद्र सिंह उर्फ सोबरन सिंह परिहार जगजीवर परिहार का खासा विश्वसनीय था। इस डकैत बताया कि उसने कुख्यात सलीम गूर्जर के साथ यदि कम से कम पंद्रह बार मुठभेड़ की हैं तो पुलिस के साथ मोर्चा लेने में भी उसे कोई हिचक नहीं रही है। महेंद्र की गिरतारी के लिए जालौन पुलिस भी ढाई हजार रुपये का पुरस्कार घोषित कर चुकी है।
पुलिस की आंखों में धूल झौंक कर फिलहाल वह दिल्ली, गाजियाबाद, मुरादनगर जैसे शहरों में नमकीन का कारीगर बनकर काम कर रहा था। वह ग्वालियर से इटावा होकर मैनपुरी की ओर जा रहा था कि छिमारा तिराहा पर टैंपों से उसका उतरना भर गुनाह बन गया और वह पुलिस के हत्थे चढ़ गया।
गुनाहों की दुनिया महेंद्र को विरासत में मिल र्गइं थीं। गांव में मकरंद सिंह परिहार के साथ चली रंजिश ने महेंद्र के समूचे परिवार के संस्कार ही बदल डाले थे। महेंद्र के बड़े भाई सूरज की वर्ष 1999 में हत्या क्या हुई कि हत्यारों से बदला लेने के लिए उसके दूसरे भाई जितेंद्र ने बंदूक उठा ली। जितेंद्र पुलिस मुठभेड़ में गोलियों का शिकार हुआ तो दारोमदार महेंद्र ने संभाल लिया और उसके बाद से लगातार वह पुलिस के साथ लुकाछिपी का खेल खेलता रहा।
डकैत बनने के पीछे जातिवादी मानसिकता के बारे में वह बताता है कि सलीम गूर्जर ने गांव के रामवरत के बेटे असरोत की पकड़ कर ली थी। डेढ़ लाख रुपये फिरौती की रकम तय होने के बाद भी सलीम ने यह कह दिया था कि ठाकुर है इसलिए इसे किसी कीमत पर नहीं छोड़ेगें। महेंद्र की मध्यस्थता भी जब असरोत की रिहाई न कर सकी तो उसने सलीम से बदला लेने के लिए जगजीवन की शरण ले ली। सलीम से कई बार आमने-सामने गोलियां चलने वाले इस दुबले-पतले महेंद्र के कलेजे का जगजीवन भी कायल था।
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