भारत जिस तेजी से विश्व के मानचित्र पर ताकतवर बनता जा रहा है उसी तेजी से यह अंदरुनी तौर पर खोखला होता जा रहा है। हमारे देश के खोखलेपन की एक अहम वजह यह भी है कि केंद्र और राज्य में महत्वपूर्ण पदों पर गलत लोग बैठे हुए हैं। प्रशासनिक मशीनरी सही लोगों का चयन तभी संभव हो सकेगा, जब चयन प्रक्रिया का आधार गुणवत्ता और उत्कृष्टता हो।
राज्यों में प्रशासनिक दक्षता की खराब गुणवत्ता के पीछे मैदानी और सचिवालय स्तर के अफसरों के तबादले की नीति भी है, जिसका इस्तेमाल राजनीतिक औजार के रूप में किया जाता है। यह पद्धति राजनेताओं के अनुरूप हो सकती है, लेकिन यह जनता के हित में कतई नहीं है। इसी कारण प्रशासन सुशासन न होकर कुशासन बन जाता है। हमारे तंत्र की इस कमी को कोई समझे या न समझे हमारे नौकरशाह भलीभांति समझते हैं,यही कारण है कि एक कुशल प्रशासक बनने की मंशा रखने के बावजुद भी ये मार्केटिंग एक्सपर्ट (पदों की खरीद-फरोख्त में माहिर)बनने में लगे हुए हैं।
केंद्रीय सतर्कता आयुक्त के चयन में जिस तरह की प्रक्रिया अपनाई गई, उससे एक बार फिर यह साबित हुआ कि सरकार की दिलचस्पी सुप्रशासन में नहीं है। न जाने इस ढर्रे में कैसे सुधार होगा। समझ ही नहीं आता कि सुधारों की शुरुआत कहां से होती है। यह तो सभी जानते हैं कि सरकार अपने 'भरोसेमंदÓ अधिकारियों को सेवानिवृत्ति के बाद अच्छा सा ओहदा देकर पुरस्कृत करती है। यह भी सर्वविदित है कि सीबीआई, आईबी, चुनाव आयोग या इस जैसे ही महत्वपूर्ण महकमों में सरकार यह सुनिश्चित करने का भरसक प्रयास करती है कि उचित व्यक्ति ही शीर्ष पदों पर आसीन हों। हमारे तंत्र की बुनियादी खामी यह है कि आम तौर पर सरकार महत्वपूर्ण पदों के लिए ऐसे व्यक्तियों का चयन करना पसंद करती है, जो 'आज्ञाकारीÓ हों।
उदहारण स्वरूप छत्तीसगढ को ले तो हम पाते हैं कि मध्य प्रदेश से अलग हुए इस राज्य को गरीब राज्यों की श्रेणी में गिना जाता है लेकिन यहां के नौकरशाह करोड़ों-अरबों के आसामी हैं। यह राज्य के विकास या संपन्नता को परिलक्षित नहीं करता है बल्कि नौकरशाहों की मार्केटिंग क्षमता को दर्शाता है।
छत्तीसगढ़ विकास के मामले में आज भले ही देश के अग्रिम पंक्ति के राज्यों में गिना जा रहा है, लेकिन वहां विकास की अभी भी जरूरत है। किसी भी राज्य के विकास की अवधारणा वहां की सरकार की होती है लेकिन उसके क्रियान्वयन का जिम्मा वहां की नौकरशाही का होता है। छत्तीसगढ़ में विकास का दौर चल रहा है अत वहां काम और भ्रष्टाचार दोनों चरम पर है। ऐसे में वहां के कुछ आईएएस काम तो कुछ भ्रष्टाचार के कारण राज्य से मुंह मोड़ रहे हैं। बड़ी शिकायत ये है कि अफसरशाही में अव्वल माने जाने वाले आईएएस अधिकारियों को अगर प्रतिनियुक्ति (दिल्ली) पर भेजा जाए तो वे जुगाड़-तंत्रÓ के सहारे काडर में वापस नहीं जाना चाहते। नए बैच के आईएएस में भी छत्तीसगढ़ में नियुक्ति के प्रति उत्साह में भारी कमी देखने को मिल रही है।
एक तरफ विकास को आतुर छत्तीसगढ़ में सरकार हवा के पंख लगाकर उड़ रही है वहीं दूसरी तरफ योग्य अधिकारी राज्य से बाहर जा रहे हैं। आईएएस सुलेमान, आईबी चहल, बिमल जुल्का, विनय शुक्ला और एसके राजू ने काडर बदलवाने में सफलता पाई,वहीं उज्जैन की कलेक्टर एम गीता छत्तीसगढ़ काडर बदलने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा रही हैं। एम गीता को 1997 में मध्यप्रदेश काडर मिला। उसी आधार पर इलाहाबाद बैंक में कार्यरत उनके पति ने अपना स्थानांतरण मध्यप्रदेश करा लिया। छत्तीसगढ़ बना तो उन्हें वहां जाने को कहा गया। पब्लिक सेक्टर के इलाहाबाद बैंक में इस तरह से एक ही बार स्थानांतरण का प्रावधान है, इसलिए पारिवारिक बिखराव को देखते हुए उन्होंने डीओपीटी को मध्यप्रदेश काडर बहाल करने की अर्जी दी थी। सुनी-अनसुनी होने के कारण पहले कैट और अब सुप्रीम कोर्ट के सामने मामला रखा है।
डीओपीटी में इन दिनों विभिन्न राज्यों के काडर-रिव्यू में जुटा हुआ है। माना जा रहा था कि कानून-व्यवस्था में छत्तीसगढ़़ की विषम परिस्थितियों को देखते हुए मांग के अनुसार आईएएस और आईपीएस की संख्या बढ़ाने पर केंद्र राजी हो जाएगा, पर ऐसा होता दिख नहीं रहा। सूबे में आईपीएस की कुल संख्या फिलहाल 81 है, इसे बढ़ाकर राज्य सरकार ने 111 आईपीएस के पदों की अनुशंसा की थी। इसके उलट केवल 103 आईपीएस के पदों की स्वीकृति पर डीओपीटी ने मुहर लगाई। ऐसा ही कुछ आईएएस के पद के लिए भी होने की संभावना है। सूत्रों ने बताया कि राज्य सरकार ने मौजूदा आईएएस की संख्या 135 को बढ़ाकर 155 करने की गुजारिश की है। चार नए संभागों में कलेक्टर, कमिश्नर के अलावा कुछ नए सीओ और चुनिंदा मंत्रालयों में विशेष सचिव के पद सृजित किए जाने का फार्मूला बनाया गया है। सूबे के लिए आईएएस काडर-रिव्यू का काम पूरा हो गया। सूत्रों ने बताया कि अंतिम मुहर के लिए फाइल कैबिनेट सचिवालय भेज दी गई है। डीओपीटी की संस्तुति में माना जा रहा है कि आईएएस की कुल संख्या 150 रखी गई है। इसके साथ राज्य सरकार के मसविदे का हवाला देते हुए कैबिनेट सचिवालय को अलग से नोट भेजा गया है कि अगर उचित लगे तो संख्या बढ़ाई भी जा सकती है।
राज्य सरकार की चिंता इस बात पर भी है कि शैलेश पाठक और राजकमल को आईएएस से इस्तीफा दिए लंबा समय बीत जाने के बाद भी डीओपीटी राज्य के आईएएस में उनके नामों को भी गिनता है जिससे बिना वजह दो पदों का घाटा राज्य सरकार को उठाना पड़ता है। शैलेश पाठक आईसीआईसीआई में और राजकमल अंतर्राष्ट्रीय कंपनी मैकेन्जी में उच्च पदों पर काम कर रहे हैं। दोनों को इस्तीफा तकरीबन 5 वर्षो से डीओपीटी में लंबित है।
उधर छत्तीसगढ़ में कार्यरत अधिकांश आईएएस अफसरों पर भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे हैं भारतीय प्रशासनिक सेवा के इन अधिकारियों की विवादास्पद छवि के चलते जनता के करोड़ों रुपए डकारे जा रहे हैं। पदों का दुरुपयोग खुलेआम किया जा रहा है। छत्तीसगढ़ में जिस तरह से लूट-खसोट मची है वह भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों के दामन में एक बदनुमा दाग बनकर सामने आने लगा है और एक बारगी तो सीधे सरकार से गठजोड़ दिखाई देने लगा है। हालत यह है कि बेहिसाब संपत्ति के मालिक इन अफसरों पर अंकुश लगाने में सरकार पूरी तरह विफल है। सर्वाधिक चर्चित अफसरों में इन दिनों बाबूलाल अग्रवाल का नाम सबसे ऊपर है। अन्य अफसरों में विवेक ढांड का नाम भी सामने आया है। कहा जाता है कि रायपुर के इस अफसर ने अपने पद का दुरुपयोग स्वयं के दुकान सजाने व गृहनिर्माण मंडल के बंगले को रेस्ट हाउस के लिए किराए से देने का है।
यही नहीं मालिक मकबूजा कांड में फंसे नारायण सिंह को किस तरह से पदोन्नति दी जा रही है यह किसी से छिपा नहीं है जबकि सुब्रत साहू पर तो धमतरी कांड के अलावा भी कई आरोप है। दूसरे चर्चित अफसरों में सी.के. खेतान का नाम तो आम लोगों की जुबान पर चढ गय़ा है। बारदाना से लेकर मालिक मकबूजा के आरोपों से घिरे खेतान साहब पर सरकार की मेहरबानी के चर्चे आम होने लगे हैं। ताजा मामला जे. मिंज का है माध्यमिक शिक्षा मंडल के एमडी श्री मिंज पर रायपुर में अपर कलेक्टर रहते हुए जमीन प्रकरणों में अनियमितता बरतने का आरोप है। सरकारी जमीन को बड़े लोगों से सांठ-गांठ कर गड़बड़ी करने के मामले में उन्हें नोटिस तक दी जा चुकी है। एम.के. राउत पर तो न जाने कितने आरोप हैं जबकि अब तक ईमानदार बने डी.एस. मिश्रा पर भी आरोपों की झड़ी लगने लगी है। अजय सिंह, बैजेन्द्र कुमार, सुनील कुजूर तो आरोपों से घिरे ही है। आरपी मंडल के खिलाफ तो स्वयं भाजपाई मोर्चा खोल चुके हैं लेकिन वे भी महत्वपूर्ण पदों पर जमें हुए हैं। जबकि अनिल टूटेजा पर तो हिस्ट्रीशिटरों के साथ पार्टनरशिप के आरोप लग रहे हैं। कहा जाता है कि देवेन्द्र नगर वाले इस शासकीय सेवा से जुड़े अपराधी को हर बार बचाने में अनिल टुटेजा की भूमिका रहती है।
अधिकांश आईएएस की करतूतों का कच्चा चि_ा सरकार के पास है आश्चर्य का विषय तो यह है कि जब भाजपा विपक्ष में थी तब इनमें से अधिकांश अधिकारियों की करतूत पर मोर्चा खोल चुकी है लेकिन सत्ता में आते ही इनके खिलाफ कार्रवाई तो दूर उन्हें महत्वपूर्ण पदों से नवाजा गया। बताया जाता है कि आईएएस और मंत्रियों के गठजोड़ की वजह से करोड़ों रुपए इनके जेब में जा रहा है। यहां तक कि जांच रिपोर्टों को भी रद्दी की टोकरी में डाल दिया गया है। बहरहाल छत्तीसगढ़ में बदनाम आईएएस अफसरों का जमावड़ा होता जा रहा है और सरकार भी इनकी करतूत पर आंखे मूंदे है।
उधर प्रदेश के आदिवासी अधिकारियों में असंतोष की चिंगारी एक बार फिर नजर आने लगी है। आदिवासी बहुल छत्तीसगढ़ में एक भी स्थानीय आईएएस कलेक्टर के रूप में पदस्थ नहीं है। राज्य सेवा के 8-10 अधिकारियों को विगत वर्षों में आईएएस अवार्ड तो हुआ पर उन्हें शासन ने कलेक्टर बनाना मुनासिब नहीं समझा। आधिकांश आदिवासी आईएएस अफसर लूप लाइन में डाल दिए गए हैं।
लूप में पड़े ये अधिकारी गाहे-बगाहे अपना दर्द बयान कर ही जाते हैं। ये अधिकारी चाहते हैं कि सरकार उन्हें मेन लाइन में रखे और सरकार उनकी सुनने को तैयार नहीं दिखती। वैसे, इन पंक्तियों के लिखे जाने तक प्रदेश में आदिवासी वर्ग से एक कलेक्टर तैनात हैं। दूसरे मनोहर सिंह परस्ते, जो म.प्र. के डिंडोरी के हैं, लेकिन प्रदेश के अधिकारी जिलाधीश जैसे पद के लिए योग्य नहीं माने जा रहे हैं। न सिर्फ आईएएस बल्कि आईपीएस के स्थानीय अधिकारी स्वयं को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं। आदिवासी वर्ग के आईएस अफसरों को सबसे ज्यादा दुख इस बात का भी है कि आदिवासी वर्ग के मंत्री और विधायक भी उनके लिए लॉबिंग नहीं कर रहे हैं।
इन अफसरों का कहना है कि जिन कलेक्टरों का प्रदर्शन स्तरीय नहीं रहा उन्हें प्रभावशाली प्रभारी दिया गया है, इनका कहना है कि दागी और विवादित अफसरों पर भी सरकार मेहरबान है, पर सीधे-सरल भूमिपुत्र आईएएस अफसर सर उपेक्षित हैं। इन अधिकारियों का कहना है कि सरकार उनकी काबिलियत पर या तो भरोसा नहीं है या वह स्थानीय लोगों को मौका नहीं देना चाहती। आदिवासी वर्ग के आईएस जी.एस धनंजय आदिमजाति कल्याण विभाग में संचालक हैं, जे.मिंज पाठ्यपुस्तक निगम में, एम डी है। एन.एस. मंडावी हस्त शिल्प विभाग में तैनात हैं। डीडी सिंह उद्योग विभाग में संयुक्त सचिव, एसपी शोरी संपदा विभाग में, रामसिंह ठाकुर दुग्ध संघ में, एम डी है जेवियर तिग्गा लोसेआ के सचिव और अमृत सलखो स्वास्थ्य में उपसचिव हैं। टोप्पो ही ऐसे अधिकारी हैं जो रायपुर संभाग के कमिश्नर हैं।
इन अधिकारियों का दर्द है कि राज्य सेवा में चयनित होने के बाद उन्होंने अनेक महत्वपूर्ण दायित्वों का कुशलतापूर्वक निर्वाह किया है फिर आईएस अवार्ड होने के बाद उन्हें फील्ड में अच्छी पोस्टिंग नहीं हुई। मौका क्यों नहीं दिया जा रहा है। ले-दे कर बीपीएस नेताम को कलेक्टर बनाया गया था पर उन्हें कहीं टिककर काम भी नहीं करने दिया गया उनका कार्यकाल भी पूरा नहीं हो पाया। ऐसे आदिवासी अधिकारियों की फेहरिस्त लंबी है जिन्हें प्रशासनिक फेरबदल पर अकारण और बिना किसी शिकायत के हटा दिया जाता है। जबकि प्रदेश में ऐसे अधिकारियों की सूची भी खासी लंबी है जो विवादों में रहे, जिनके खिलाफ गंभीर आरोप लगते रहे और जिन पर भ्रष्टाचार के छींटे हैं आज वे जिला कलेक्टर बने हुए हैं या महत्वपूर्ण विभागों में पदस्थ हैं। आदिवासी वर्ग के आईएएस अफसरों में व्याप्त यह असंतोष नाराजगी का रूप ले रहा है। कमोवेश यही स्थिति स्थानीय आईपीएस अधिकारियों की भी है। वे भी अपनी उपेक्षा से और अच्छी पोस्टिंग नहीं मिलने से नाराज चल रहे हैं। आईपीएस अधिकारियों की नाराजगी मुख्यालय से भी चार है। सुगबुगाहट है कि स्थानीय आईएएस और आईपीएस संगठित होने की कोशिश कर रहे हैं।
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