सरकारी शोषण के खिलाफ हथियार उठाने वाले नक्सली अपनी ही महिला मेंबर्स का यौन शोषण करते हैं। इसका खुलासा किया है पश्चिम बंगाल और झारखंड के जंगलों में कभी एरिया कमांडर रह चुकी शोभा मांडी (23) उर्फ उमा उर्फ शिखा ने। हालांकि इस तरह के खुलासे पूर्व में भी कई महिला नक्सलियों ने किया है। जिससे सामाजिक बराबरी और नैतिकता की बात करने वाले नक्सलियों पर अब बलात्कारी होने का आरोप लगा है। 25-30 लोगों का एरिया कमांडर रही शोभा चार महीने पहले डॉक्टर से इलाज करवाने के बहाने नक्सलियों के चंगुल से निकल भागी।
पश्चिम बंगाल और झारखंड के जंगलों में कभी एरिया कमांडर रह चुकी शोभा मांडी (23) उर्फ उमा उर्फ शिखा ने आपबीती सुनाई। शोभा ने बताया कि नक्सली ग्रुप जॉइन करने के एक साल बाद संतरी के रूप में मुझे झारखंड के जंगल में लगे कैम्प की रखवाली के लिए लगाया गया। एक रात बिकास (हेड,मिलिट्री कमीशन) ने मुझसे पानी मांगा। जब मैं पानी लाने जाने लगी तो वह मेरा हाथ पकड कर मेरे साथ जबर्दस्ती करने लगा। शोभा ने बताया कि जब उसने बिकास से ऐसा करने से मना किया तो वह उसे जान से मारने की धमकी देने लगा। जोर जबर्दस्ती के बाद शोभा टूट गई और बिकास ने उसके साथ रेप किया। यह घटना तब की है जब शोभा 17 साल की थी। शोभा ने कहा कि जितनी भी महिला नक्सली हैं उनमें से अधिकतर महिलाओं का शोषण सीनियर माओवादी करते हैं। उनका कई-कई नक्सली महिलाओं के साथ सेक्सुअल रिलेशन है। अगर कोई महिला गर्भवती हो जाती है तो उनका अबॉर्शन करवा दिया जाता है क्योंकि बच्चों को बोझ समझा जाता है।
7 साल तक नक्सल कैडर रह चुकी शोभा से पूछा गया कि उन्होंने नक्सलवादियों से अलग होने का क्यों मन बनाया? सवाल पर थोडी मायूस शोभा ने कहा कि जिन मुद्दों को लेकर नक्सली लड़ाई लड़ते हैं, उन्हीं मुद्दों के साथ वे अन्याय करते हैं। कैडर की हैसियत से मैं कुछ नक्सली नेताओं की करतूतों को किशनजी से बताती थी। यही बात कुछ कॉमरेडों को पसंद नहीं थी। वे लोग ग्रुप के बाकी सदस्यों को मुझसे बात करने से मना कर देते थे। मैं बिल्कुल अलग-थलग पड़ जाती थी। वे लोग हमेशा मुझे धमकी देते रहते थे।
यह पूछे जाने पर कि वह नक्सली नेताओं को क्यों पसंद नहीं करतीं? शोभा की आंखों में खौफ उतर आया।
इस घटनाक्रम से अब लगले लगा है कि अपने महिला कैडरों के प्रति नक्सलियों का रवैया बदल रहा है? उड़ीसा में हाल में पुलिस के सामने हथियार डालने वाली नक्सली महिलाओं के आरोपों से भी इस तथ्य को बल मिलता है। उन महिलाओं ने विभिन्न नक्सली शिविरों में बड़े नेताओं पर यौन शोषण के आरोप लगाए हैं। उड़ीसा के रायगढ़ जिले की लक्ष्मी पीड़ीकाका हो या क्योंझर जिले की सविता मुंडा, सबके आरोप एक जैसे हैं। नक्सली शिविरों में आए दिन होने वाले यौन शोषण के चलते नक्सली आदर्शों से इन महिलाओं का मोहभंग हो गया है। सीपीआई (माओवादी)के चिल्ड्रेन स्क्वॉड की 17 साल की एक मेंबर ने बताया कि कॉमरेडों ने उसके साथ गैंग रेप करके उसे तड़पता हुआ छोड़ दिया था। वह अचेत अवस्था में गांव वालों को मिली तो उसे तुम्बागड़ा हॉस्पिटल में इलाज के लिए भर्ती कराया गया। इसकी सूचना मिलते ही लातेहार पुलिस भी वहां पहुंच गई और फिर उसने जुल्म की कहानी बयां की सब सन्न रह गए।
उसने बताया कि सब-जोनल कमांडर दिवाकर जी स्क्वॉयड के एक मेंबर बिरेंद्रजी ने संगठन जॉइन करने के कुछ ही दिनों बाद उसके साथ जोर-जबरदस्ती की थी। लड़की ने आगे बताया, मैं पांच साल पहले संगठन के साथ जुड़ी थी लेकिन बाद में इससे अलग होना चाह रही थी। एक बार मैं स्क्वॉड से भाग गई और अपने एक रिश्तेदार के यहां छिप गई। लेकिन कुछ ही महीने बाद सब-जोनल कमांडर चंदन और छोटू बंदूक के बल पर मुझे वापस ले आए। इसके बाद मेबरों ने कई बार मेरे साथ गैंगरेप किया। उसने बताया, मैंने फिर भागने की कोशिश की लेकिन उनलोगों ने पीछा करके मुझे पकड़ लिया। मुझ पर आरोप लगाया गया कि मैं हथियार लेकर भाग रही थी। इनकार करने पर मेरी लाठी-डंडे से जबरदस्त पिटाई की और रेप करने की भी कोशिश की, लेकिन मेरे बेहोश होने के कारण वे चले गए। 17 साल की लक्ष्मी 14 साल की उम्र में संगठन में शामिल हुई थी। वह कहती है, मैं एक उडिय़ा व्यक्ति से शादी करना चाहती थी, लेकिन संगठन के लोग मेरी शादी जबरन छत्तीसगढ़ के एक हिंदी भाषी व्यक्ति से करना चाहते थे। हम दोनों एक-दूसरे की भाषा तक नहीं समझते थे। नेताओं को डर था कि शादी के बाद मैं संगठन छोड़ सकती हूँ।
वह कहती है कि शिविरों में रात को बड़े नेता दुर्व्यव्हार करते थे। लक्ष्मी ने तीन साल के दौरान कई बड़े अभियानों में हिस्सा लिया था। रायगढ़ के पुलिस अधीक्षक अनूप कृष्ण बताते हैं कि लक्ष्मी कई अभियानों में हिस्सा ले चुकी है। पूछताछ के बाद इस मामले में और खुलासा होने की उम्मीद है। झारखंड की सीमा से सटे क्योंझर जिले में हथियार डालने वाली सविता मुंडा की कहानी भी लक्ष्मी से मिलती है। वह बताती है कि शिविरों में हमारा शारीरिक शोषण होता था, मैंने जब संगठन के बड़े नेताओं को इस बात की जानकारी दी तो उन्होंने मुझे मुँह बंद रखने की सलाह दी। उसके बाद ही मैंने सरेंडर करने का फैसला किया। सविता की साथी अंजु मुर्मू को तो यौन शोषण की वजह से दो बार गर्भपात कराना पड़ा। क्योंझर की मालिनी होसा और बेला मुंडा की कहानी भी लगभग ऐसी ही है।
दो-तीन साल में ही नक्सली आदर्शों से इन सबका भरोसा उठ गया। नक्सली शिविरों में महिलाओं की ऐसी हालत तब है जब संगठन में उनकी तादाद सैकड़ों में हैं और वे पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिला कर खतरनाक अभियानों को अंजाम देती रही हैं।अगर इन महिलाओं के आरोपों में जरा भी सच्चाई है तो यह खुलासा नक्सिलयों के लिए घातक साबित हो सकता है। इससे उनकी साख पर बट्टा तो लगेगा ही, ग्रामीण इलाकों में पिछले दिनों में उन्होंने जो जनाधार बनाया है वह भी खत्म हो सकता है।
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