सोमवार, 29 मार्च 2010

अब क्या करेंगी दीदी ?

उमा भारती यानी भारतीय राजनीति का वह चेहरा जो स्वयं अपनी बर्बादी की दास्तां समय-समय पर लिखती रहती हैं। उन्हें आज तक किसी से डर नहीं लगा लेकिन उनसे सभी डरते हैं। कारण है उनका जिददीपन। उमा भारती यानी दीदी ने अपनी ही बनायी पार्टी भारतीय जनशक्ति से इस्तीफा दे दिया है. 24 मार्च को पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष संघप्रिय गौतम को लिखे पत्र में उमा भारती ने लिखा है कि वे स्वास्थ्य कारणों से पार्टी की जिम्मेदारियों को नहीं निभा पा रही हैं इसलिए वे पार्टी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे रही हैं.

अपने इस्तीफे में उमा भारती ने लिखा है कि अपने स्वास्थ्य की स्थितियों, पार्टी के अध्यक्ष पद की जिम्मेदारियों एवं आत्मचिंतन, आत्मनिरीक्षण की जरूरतों के हिसाब से संतुलन बिठाने में बेहद तनाव और बोझ का अनुभव कर रही हूं और पार्टी के अध्यक्ष पद की जिम्मेदारियों के साथ न्याय भी नहीं कर पा रही हूं. इसलिए मैं अपने को भारतीय जनशक्ति के अध्यक्ष पद एवं उससे जुड़ी जिम्मेदारियों से मुक्त कर रही हूं ताकि संपूर्ण स्थितियों के बारे में ठीक से आत्मनिरीक्षण, आत्मचिंतन कर सकूं एवं स्वास्थ्य लाभ कर सकूं.
उमाश्री भारती ने भारतीय जनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष पद से त्यागपत्र दिया है। उन्होंने भाजश छोडी है, अथवा नहीं यह बात अभी साफ नहीं हो सकी है। गौरतलब होगा कि 2005 में भाजपा से बाहर धकिया दिए जाने के बाद अपने ही साथियों की हरकतों से क्षुब्ध होकर उमाश्री भारती ने भारतीय जनशक्ति पार्टी का गठन किया था। उमाश्री ने उस वक्त भाजपा के शीर्ष नेता एल.के.आडवाणी को आडे हाथों लिया था। कोसने में माहिर उमाश्री ने भाजपा का चेहरा समझे जाने वाले अटल बिहारी बाजपेयी को भी नही ंबख्शा था। उमाश्री के इस कदम से भाजपा में खलबली मच गई थी। चूंकि उस वक्त तक उमाश्री भारती को जनाधार वाला नेता (मास लीडर) माना जाता था, अत: भाजपाईयों के मन में खौफ होना स्वाभाविक ही था।


उमाश्री को करीब से जानने वाले भाजपा नेताओं ने इस बात की परवाह कतई नहीं की। उमाश्री ने 2003 में मध्य प्रदेश विधान सभा के चुनावी महासमर का आगाज मध्य प्रदेश के छिन्दवाडा जिले में अवस्थित हनुमान जी के सिद्ध स्थल जाम सांवरी से किया था। जामसांवरी उमाश्री के लिए काफी लाभदायक सिद्ध हुआ था, सो 2005 में भी उमाश्री ने हनुमान जी के दर्शन कर अपना काम आरम्भ किया। उमाश्री का कारवां आगे बढा और भाजपाईयों के मन का डर भी। शनै: शनै: उमाश्री ने अपनी ही कारगुजारियों से भाजश का उभरता ग्राफ और भाजपाईयों के डर को गर्त में ले जाना आरम्भ कर दिया।


कभी चुनाव मैदान में प्रत्याशी उतारने के बाद कदम वापस खीच लेना तो कभी कोई नया शिगूफा। इससे उमाश्री के साथ चलने वालों का विश्वास डिगना आरम्भ हो गया। पिछले विधानसभा चुनावों में भाजश कार्यकर्ताओं ने उमाश्री को चुनाव मैदान में कूदने का दबाव बनाया। राजनैतिक विश्लेषकों का मानना है कि एसा इसलिए किया गया था ताकि भाजश कम से कम चुनाव तक तो मैदान में डटी रहे। कार्यकर्ताओं को भय था कि कहीं उमाश्री फिर भाजपा के किसी लालीपाप के सामने अपने प्रत्याशियों को वापस लेने की घोषणा न कर दे। 2008 का मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव उमाश्री भारती के लिए आत्मघाती कदम ही साबित हुआ। इस चुनाव में उमाश्री भारती अपनी कर्मभूमि टीकमगढ से ही औंधे मुंह गिर गईं। कभी भाजपा की सूत्रधार रहीं फायर ब्राण्ड नेत्री उमाश्री भारती ने इसके बाद 2009 में हुए लोकसभा चुनाव में फिर एक बार भाजपा द्वारा उनके प्रति नरम रूख मात्र किए जाने से उन्होंने लोकसभा में अपने प्रत्याशियों को नहीं उतारा।


भारती का राजनैतिक इतिहास देखने पर साफ हो जाता है कि उनके कदम और ताल में कहीं से कहीं तक सामंजस्य नहीं मिल पाता है। वे कहतीं कुछ और हैं, और वास्तविकता में होता कुछ और नजऱ आता है। गुस्सा उमाश्री के नाक पर ही बैठा रहता है। बाद में भले ही वे अपने इस गुस्से के कारण बनी स्थितियों पर पछतावा करतीं और विलाप करतीं होंगी, किन्तु पुरानी कहावत अब पछताए का होत है, जब चिडिया चुग गई खेत से उन्हें अवश्य ही सबक लेना चाहिए।


मध्य प्रदेश में उनके ही दमखम पर राजा दिग्विजय सिंह के नेतृत्व वाली दस साला सरकार को हाशिए में समेट पाई थी भाजपा। उमाश्री भारती मुख्य मन्त्री बनीं फिर झण्डा प्रकरण के चलते 2004 के अन्त में उन्हें कुर्सी छोडनी पडी। इसके बाद एक बार फिर नाटकीय घटनाक्रम के उपरान्त वे पैदल यात्रा पर निकल पडीं। मीडिया में वे छाई रहीं किन्तु जनमानस में उनकी छवि इससे बहुत अच्छी बन पाई हो इस बात को सभी स्वीकार कर सकते हैं।


अबकी बार उमाश्री भारती ने अपने द्वारा ही बुनी गई पार्टी के अध्यक्ष पद से त्यागपत्र दिया है। उन्होंने कार्यकारी अध्यक्ष संघप्रिय गौतम को त्यागपत्र सौंपते हुए कहा है कि वे स्वास्थ्य कारणों से अपना दायित्व निभाने में सक्षम नहीं हैं, सो वे अपने आप को समस्त दायित्वों से मुक्त कर रहीं हैं, इतना ही नहीं उन्होंने बाबूराम निषाद को पार्टी का नया अध्यक्ष बनाने की पेशकश भी कर डाली है। उमाश्री की इस पेशकश से पार्टी में विघटन की स्थिति बनने से इंकार नहीं किया जा सकता है, क्योंकि वे चाहतीं तो संघप्रिय गौतम पर ही भरोसा जताकर उन्हें अध्यक्ष बनाने की पेशकश कर देतीं।


उधर भाजपा ने अभी भी उमाश्री भारती के मामले में मौन साध रखा है। यद्यपि भाजपा प्रवक्ता तरूण विजय का कहना है कि उन्हें पूरे मामले की जानकारी नहीं है, फिर भी भाजपा अपने उस स्टेण्ड पर कायम है, जिसमें भाजपा के नए निजाम ने उमाश्री भारती और कल्याण सिंह जैसे लोगों की घर वापसी की संभावनाओं को खारिज नहीं किया था। कल तक थिंक टेंक समझे जाने वाले गोविन्दाचार्य से पूछ पूछ कर एक एक कदम चलने वाली उमाश्री के इस कदम के मामले में गोविन्दाचार्य का मौन भी आश्चर्यजनक ही माना जाएगा।

यह बात सही है कि उमा भारती का स्वास्थ्य ठीक नहीं है और वे अपने घुटने की परेशानी से जूझ रही हैं. लेकिन इस्तीफे का कारण स्वास्थ्य कारण तो बिल्कुल नहीं है. भले ही उमा भारती इस्तीफे के लिए स्वास्थ्य कारणों और आत्मनिरीक्षण का हवाला दे रही हैं लेकिन सच्चाई यह है कि उनके भाजपा में जाने की कवायद पूरी हो चुकी है. इसीलिए जब भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी घोषित की जा रही थी तो उपाध्यक्ष के दो पदों को खाली रखा गया था. उन दिनों उमा भारती संघ के शीर्ष नेताओं और नितिन गडकरी से मेल मुलाकात कर रही थीं. उन्हें कह दिया गया था कि आपका भाजपा में आना तय है. इसीलिए कई मौकों पर उमा भारती भाजपा कार्यक्रमों में उपस्थित रहीं और संकेत दिया कि अब वे भाजपा के साथ हैं. उमा भारती के समर्थक लंबे समय से यह कोशिश कर रहे थे कि उमा भारती भाजपा में वापस आ जाएं क्योंकि उनके समर्थकों का मानना है कि उमा भारती मास लीडर हैं और उनकी एक राष्ट्रीय छवि है. अगर वे भाजपा में वापस लौटती हैं तो उनको भी फायदा होगा और भारतीय जनता पार्टी को भी लाभ पहुंचेगा.

भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी भी उमा भारती के वापसी को हरी झण्डी दे चुके हैं और आडवाणी के खास एस गुरूमूर्ति ही भाजपा और उमा भारती के बीच वार्ताकार की भूमिका निभा रहे थे. अब इस बात की संभावना है कि अगले दो तीन दिनों में उमा भारती के भाजपा में वापसी की विधिवत घोषणा होगी और उन्हें पार्टी के उपाध्यक्ष पद की जिम्मेदारी दे दी जाएगी. उमा भारती की वापसी को लेकर नितिन गडकरी ने भी प्रयास किया है क्योंकि नितिन गडकरी को लग रहा है कि अगर नयी टीम में उन्हें अपनी स्थिति को कमजोर नहीं होने देना है तो उमा भारती ही बेहतर विकल्प हो सकती हैं. इस बात की प्रबल संभावना है कि 27 को संघ की कुरुक्षेत्र में होनेवाली प्रतिनिधि सभा के आस पास उमा भारती के भाजपा में शामिल होने और उन्हें नयी जिम्मेदारी देने की घोषणा कर दी जाए.

उमा भारती की वापसी भाजपा की इंदौर कार्यकारिणी के वक्त ही प्रस्तावित थी लेकिन ऐन वक्त पर फैसला वापस ले लिया गया. और भाजपा की नयी कार्यकारिणी घोषित करने के बाद वापसी की घोषणा करने का फैसला किया गया.

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें