शनिवार, 6 मार्च 2010

मेरी बीवी बिकाऊ है!

महाभारत में सब कुछ हारने के बाद युधिष्ठिर को अपनी बीवी दांव पर लगाना तो सबने सुना है, परन्तु इस अकाल की स्थिति में किसान इस परिस्थिति को महसूस कर रहा है और बुंदेलखंड के किसान आज गरीबी के कारण अपनी पत्नी बेचने को मजबूर हैं।
देह जीवाओं की नगरी के लिए मशहूर उज्जैन का अभिशाप इन दिनों बुंदेलखण्ड के किसानों पर पड़ रहा है। कभी खेती किसानी के दम पर कमाए रुपयों को लेकर उज्जैन में देह जीवाओं के साथ मौज-मस्ती करने आने वाले किसान आज भंवर जाल में फंसे हुए हैं।
कर्ज में डूबे बुंदेलखंड के किसान अपनी पत्नियों का सौदा कर रहे हैं, कुछ पैसे लेकर तो कुछ स्टांप पेपरों पर अंगूठा लगा कर। इनका दाम 4,000 से लेकर 12,000 में लगाया जा रहा है। जितना सुन्दर चेहरा उतना ज्यादा मूल्य। स्टांप पेपरों पर विवाह अनुबंधन लिखा होता है। 23 वर्षीय कुंती को उसके पति ने अपने कर्जदार हरिप्रसाद 40, को बेच दिया है। पेपरों पर यह अंकित होता है की खरीदने वाला अकेला है तथा उसकी कोई पत्नी नहीं है।

बुंदेलखंड में जमीन की तरह ही इंसान भी सूखते जा रहे हैं। सूखा सिर्फ खेत ही नहीं संवेदनाएं भी सुखा रहा है। इस क्षेत्र में इंसान की इंसान के लिए इज्जत कोई मायने नहीं रखती। इस बेबसी, इस घुटन की सबसे खौफनाक शिकार हुई हैं बुंदेलखंड की महिलाएं। जिसे कोख से जन्मा उसकी परवरिश के लिए अपने शरीर का सौदा कर रही हैं महिलाएं, जिस परिवार में ब्याही गईं उसे पालने के लिए स्टांप पेपर पर बिक रही हैं महिलाएं। बुंदेलखंड को पांच साल के सूखे ने कितना बर्बाद किया है ये सब जानते हैं लेकिन स्टांप पेपर पर बिक रही महिलाओं की दिल दहला देने वाली हकीकत से कम ही लोग वाकिफ है। सूखे और भुखमरी की मार झेल रहे इस इलाके के लोगों ने पहले जानवर बेचे, फिर जमीन बेची अब बारी है औरतों के नीलाम होने की।
शुरुआत पुलिस स्टेशन में गुमसुम बैठी सविता (बदला हुआ नाम) से। सविता को किसी और ने नहीं बल्कि उसके पति ने ही बेच दिया। कीमत लगाई आठ हजार रुपए। सौदा पक्का करने और इस सौदे को कानूनी दर्जा दिलाने के लिए वो बाकायदा खरीदार के साथ कोर्ट भी पहुंचा लेकिन सविता वहां से भाग निकली।

सविता कहती है- उसने हमें बेच दिया है। पहले तो अच्छी तरह रखा लेकिन अब परेशान किया तो हम मायके चले गये तो पंचों ने फैसला कराया और उसके साथ पहुंचा दिया। फिर उसने झूठा दिलासा दिया और यहां ले आकर बेच दिया। पुलिस अधिकारी आरके सिंह ने बताया कि एक आदमी गुलाब इस महिला को लेकर शादी के लिये लाया था। इसके पति ने इसको गुलाब को बेच दिया था।

सविता बुंदेलखंड की उन हजारों औरतों में से एक है जिनका सौदा खुद अपनों ने ही कर डाला। बुंदेलखंड में भूख दो पाटों में बंट गई है। परिवार के लिए दो जून रोटी की भूख और औरतों के जिस्म की बोली लगाने वाले सौदागरों की भूख। पांच साल से सूखे की मार झेल रहे बुंदेलखंड में औरतें मजबूर हो रही हैं अपने शरीर को बेचकर परिवार का पेट पालने के लिए। स्टांप पेपर की आड़ में जिस्म के सौदागर इसका जमकर फायदा उठा रहे हैं। कीमत चार से 12 हजार रुपए। कानून से बचने के लिए कचहरी में वकीलों की मौजूदगी के सामने स्टांप पेपर पर खरीद-फरोख्त हो रही है। औरतों का सौदा करने वालों ने इसे नाम दिया है विवाह अनुबंध। एक ऐसा विवाह जिसमें न अग्नि है, न फेरे हैं, न सप्तपदी है बस दस रुपए के कागज के टुकड़े पर शादी का एग्रीमेंट और बिक गई औरत।
शादी के ऐसे ही एक एग्रीमेंट के मुताबिक पहले से ही शादीशुदा कुंती की हरिप्रसाद नाम के शख्स से दोबारा शादी हो रही है। कुंती की उम्र महज 23 साल है जबकि हरिप्रसाद लगभग उसकी दुगनी उम्र 40 साल का है। कुंती के दस्तखत को देखें तो ये भी साफ हो जायेगा उससे एक अक्षर भी सही से नहीं लिखा गया। कहना मुश्किल है कि कुंती नाम की महिला ने स्टांप पर खुद साइन किया या फिर उससे कहा गया कि सोचे-समझे बिना कुछ भी उकेर दो। इसी स्टांप पेपर पर ये भी लिखा है कि कुंती ने ये फैसला बिना किसी डर के किया।
वकील कालीचरण बताते हैं कि वो दस रुपये के स्टांप पर एक कंप्रोमाइज लिख दिया जाता है कि क्योंकि हम वयस्क हैं और हमारी पत्नी नहीं है इसलिये हम शादी कर रहे हैं। तो फिर जिसने खरीदा है वहीं उसे बेच देता है, इस तरह एक नहीं लाखों मामले हैं यहां पर। ये भी जरूरी नहीं कि जिसने एक बार औरत खरीदी, वो उम्रभर उसे अपने साथ रखे। कुछ दिनों पहले मध्य प्रदेश के नेवाड़ी थाने की पुलिस ने ऐसी ही तीन औरतों को दोबारा बिकने से बचाया। झांसी के गुरसराय थाने में बंद है सुखिया। उसने एक बूढ़े आदमी को बेरहमी के काट डाला लेकिन चेहरे पर अफसोस के कोई भाव नहीं। उसने ये अपराध किया अपनी इज्जत बचाने के लिए। सुखिया की मानें तो उसके पति ने गांव के दबंग सूदखोर से कुछ पैसे उधार लिए थे। इन पांच सालों में ब्याज चुकाते-चुकाते खेत और जानवर बिक गए। अब बारी थी सुखिया की। सूदखोर उसके पति पर लगातार ये दबाव बना रहा था कि या तो ब्याज दो या फिर सुखिया। सुखिया ने कहा- मैंने कर्जा लिया था और वो पैसा मांगने आया था। उसने कहा कि पैसे नहीं दो तो अपनी इज्जत दो। फिर हमने उसका गला दबा दिया और काट डाला।
बुंदेलखंड के गांवों में दबंग सूदखोर अब गरीब किसानों से इसी तरह वसूली कर रहे हैं। बगौली गांव का कालीचरण भी जब ब्याज के पैसे नहीं चुका पाया तो साहूकार ने उसकी बीवी को उठा लिया। कालीचरण कहता है कि हमने तीस हजार कर्ज लिया था। नहीं दे पाये तो साहूकार हमारी औरत को ले गया। पहले जेवर ले गया और कहा कि कर्जा पूरा हो जायेगा। कुछ ऐसा ही हाल दलपत का भी है। बीमारी के इलाज के लिए पांच साल में वो सूदखोर से 80 हजार रुपए कर्ज ले चुका है। घर बिकने के बाद अब बारी उसकी पत्नी की है। सूदखोर से हार चुका ये शख्स अब आत्महत्या करना चाहता है।
सूखे के चलते अपना सब कुछ गंवा चुके काशीराम ने 80 साल की उम्र में 13 हजार रुपये कर्ज लिया। आखिर बिटिया की शादी जो करनी थी। अब सूदखोर 20 हजार रुपये की मांग कर रहा है। घर में अन्न का एक दाना नहीं। पांच साल के सूखे ने आंख के आंसू भी सुखा दिए हैं। अब फिक्र है घर की इज्जत की।
किसान धनीराम कहता है-वास्तव में किसी की औरत अच्छी है तो उसे कर्जा आसानी से मिल जाता है। उसे कोई दिक्कत नहीं होती है। इज्जत लुटा कर सब काम आसानी से हो जाता है। बुंदेलखंड के लगभग हर गांव में, हर कस्बे में काशीराम, धनीराम या दलपत जैसे लोगों की भरमार है। घर में खाने के बर्तन खाली हैं। बच्चों के शरीर पर कपड़े नहीं हैं। सब कुछ बिक चुका है या गिरवी जा चुका है। लाखों लोग सूदखोरों के जाल में फंसते जा रहे हैं और बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं।
कुछ महीने पहले झांसी पुलिस ने जिस्मफरोशी के एक अड्डे पर छापा मारा। बरामद हुई 19 साल की संगीता। पूछताछ में उसने जो कहानी सुनाई लोगों के पांव तले जमीन खिसक गई। पांच साल से जारी सूखे ने संगीता को इस धंधे की आग में झोंक दिया। सूखे के चलते बर्बाद हुए परिवार को सहारा देने के लिए वो मुंबई आई थी। पंद्रह सौ रुपए महीने की नौकरी का भरोसा था। लेकिन दलालों ने नौकरी के बजाय देह व्यापार की मंडी में ला बैठाया। वो बताती है-35 हजार रुपये में बात हुई थी लेकिन हमें एक भी रुपया नहीं मिला है। बांबे में कुछ पैसा भेजते हैं लेकिन किसे मिलता है नहीं पता। कुछ पैसा मुझे मिलता है। दिन में दो तीन लोग आते हैं और रात में भी आते हैं। एक महीने का कांट्रैक्ट हुआ था।
दिल दहला देने वाली ऐसी ही हकीकत है 16 साल की मासूम मीनू की। उसके गर्भ में बच्चा पल रहा है, लेकिन भविष्य का कोई ठिकाना नहीं। पुलिस ने उसे तब पकड़ा जब वो दलालों के चंगुल में थी। गरीबी और भुखमरी से निजात पाने के लिये इस लड़की ने घर की देहरी से पांव क्या निकाले, वो देह व्यापार के दलदल में जा गिरी। मीनू कहती है-वो लड़का स्टेशन पर मिला था। कहा कि होटल में चलो सुबह चली जाना। रात में उसने गलत काम किया। बच्चा मेरे गांव के एक आदमी का है।
पेट की आग ने इस इलाके को क्या से क्या बना डाला है। ऐसे ही एक बदनाम इलाके में नजर आईं ग्राहकों का इंतजार करती महिलाएं। गैर-सरकारी संगठनों की मदद से हमारे कैमरे के सामने आई पार्वती के परिवार में तीन बच्चे हैं। पति बीमार है और खेत कब के बिक चुके हैं। घर का चूल्हा-बर्तन भी सूना है। बच्चों को बचाने के लिये पार्वती ने देह व्यापार में उतरने का कड़ा फैसला किया। ये कहानी किसी एक की नहीं। यहां तो हर कोई पार्वती जैसी ही है।
यकीन करना मुश्किल है पर सच्चाई यही है। पुलिस भी है और सरकार भी लेकिन यहां कोई सुनवाई नहीं। औरत एक है लेकिन उसकी पीड़ाएं अनंत। कभी वो घर का चूल्हा जलाने के लिए बिकती है कभी एक रोटी जुगाडऩे के लिए। कौन कहता है कि इस देश में औरत और मर्द बराबर हैं।
वहीं झांसी के कमिश्नर ने फिर वही रटी-रटाई बात कही। बुंदेलखंड में महिलाओं को बचाने के लिए सख्त कदम उठाया जाएगा। टीपी पाठक कहते हैं -जो आत्मसम्मानी है वो ऐसी परिस्थिति में भी जी रहा है और ऐसी कल्पना करना कि सभी ऐसा करेंगे, मैं ऐसा मानने को तैयार नहीं हूं। अगर कहीं ऐसी दिक्कत है तो आप भी जरूर बताइये हम देखेंगे।
कुछ स्वयं सेवी संगठन देह व्यापार के दलदल में धंस चुकी औरतों और सूदखोरी के जाल में फंसे किसानों को बचाने की कोशिश कर रहे हैं। बुंदेलखंड किसान मोर्चा के अध्यक्ष गौरी शंकर कहते हैं कि सरकारी सहायता पूरी नहीं हो रही है। हमारी अपील है स्वयंसेवी संस्थाओं से और ऐसे लोगों से जो मदद कर सकते हैं, वो आगे आयें, यहां के किसानों की मदद करें।

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