गुरुवार, 9 जुलाई 2015

कोयला खदानों की नीलामी : कालिख ही कालिख

मप्र को खोद 12 लाख करोड़ कमाएगा कंगाल जेपी और दगाबाज रिलायंस
कोल ब्लॉक के ई ऑक्सन में करोबारी घरानों की सांठगांठ
कोल ब्लॉक आवंटन में ग्रीन ट्रिब्यूनल की आपत्ति दरकिनार
किस राज्य को कितनी होगी आमदनी
राज्य आमदनी (करोड़ रुपए में)
राज्य वार्षिक 30 साल
मध्य प्रदेश 842.27 35,587.52
महाराष्ट्र 67.47 1,601.12
पश्चिम बंगाल 350.58 11,203.03
छत्तीसगढ़ 1,971 33,679.33
झारखंड 486.3 12,622.02
ओडिशा 143.4 515.52
भोपाल। यूपीए के शासनकाल में कोयले की कालिख से खरबों रूपए कमाने वाली कंपनियों ने एनडीए सरकार को भी अपने फांस में ले लिया है। इस बार भी कोयले ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा सारे आवंटन रद्द कर दिए जाने के बाद अब दोबारा से उन कोयला खदानों की नीलामी शुरू हो गई है। कोयला खदानों के आवंटन से लाखों करोड़ रुपए मिलने की बात की जा रही है। यह सही भी है। कई सारी खदानों की नीलामी सफलतापूर्वक हो चुकी है, खूब सारा पैसा भी मिल रहा है। लेकिन कोयला तो आखिर कोयला है, सो विवाद यहां भी पैदा हो गया है। दरअसल, कई खदानों की नीलामी में ऐसे तथ्य सामने आए हैं, जिसमें कंपनियों और अधिकारियों की मिलीभगत से कोयला खदानों का आवंटन किया गया है। जहां तक मप्र का सवाल है तो यहां 90,000 करोड़ के कर्ज में डूबा जेपी ग्रुप और इंवेस्टर्स समिट में 50,000 करोड़ के निवेश की घोषणा करने के बाद भी निवेश नहीं करने वाला रिलायंस समूह अब यहां की धरती को खोदकर अपना खजाना भरेंगे। इसके लिए ये दोनों और कुछ अन्य कारोबारी घरानों ने आपसी तालमेल से मप्र की कोल ब्लॉक को हथियाने में सफलता पाई है। मप्र की 29 कोयला खदानों सहित देशभर की 214 कोयला खदानों की 30 वर्ष के लिए ई-नीलामी हो रही है। मप्र सरकार को अपनी 25 कोयला खदानों के लिए प्रति वर्ष करीब 842.27 करोड़ रूपए मिलेंगे। इस तरह 30 साल में प्रदेश सरकार को 35,587.52 करोड़ रूपए की आय होगा। वहीं एक अनुमान के अनुसार कंपनियां इन 30 साल में इन कोल ब्लॉक से करीब 12 लाख करोड़ कमाएंगी। हालांकि अभी कोल ब्लॉक आवंटन की प्रक्रिया चल रही है। लेकिन जिस तरह की विसंगतियां आवंटन में सामने आ रही हैं, उससे लगता है की एक बार फिर से आवंटन रद्द हो जाएगा।
देश के सबसे बड़े घोटाले के बाद सुप्रीम कोर्ट ने जिन 214 कोल ब्लॉक के आवंटन रद्द कर दिए थे, केंद्र सरकार ने एक बार फिर से उनकी नीलामी शुरू कर दी है। देश में कोल ब्लॉक के आवंटन के लिए ई-नीलामी प्रक्रिया अपनाई जा रही है। इसके पीछे सरकार का तर्क है कि इससे नीलामी की प्रक्रिया पूरी तरह पारदर्शी होगी। लेकिन कोयला मंत्रालय के अधिकारियों से सांठगांठ कर कारोबारी घरानों ने अपनी पसंद के कोल ब्लॉक आपस में बांट लिया है। कारोबारी घरानों ने केंद्र सरकार की इस पारदर्शी प्रक्रिया को अपना हथियार बना लिया है और आपसी सामंजस्य से अपनी पहुंच और सुविधा के अनुसार कोल ब्लॉक की बोली लगा रहे हैं और उन्हें पा रहे हैं। सरकार को अब तक हुई 67 कोयला ब्लॉक की नीलामी से चार लाख करोड़ रुपए मिलने का अनुमान है। इनमें नीलामी राशि, रॉयल्टी राशि व अपफं्रट भुगतान शामिल हैं।
कोल ब्लाकों का लेने के लिए बड़े-बड़े औद्योगिक घराने बोली लगा रहे हैं। नए प्रावधान के तहत मप्र की 29 कोयला खदानों की नीलामी से राज्य सरकार को रॉयल्टी और नीलामी प्रक्रिया के जरिए 35,587.52 करोड़ रुपए का रेवेन्यू मिलेगा। 35,587.52 करोड़ रुपए देकर कंपनियां मप्र को मनमाने ढ़ंग से खोदने की तैयारी में लग गई हैं। केंद्र सरकार का दावा है कि नीलामी से होने वाला रेवेन्यू का फायदा या तो राज्यों को मिलेगा या फिर सस्ती बिजली की दर के रूप में भारत की जनता को मिलेगा। मध्यप्रदेश का नंबर कोल आवंटन व लाभ की सूची पांचवे स्थान पर है। कोयला मंत्रालय 31 मई तक 83 कोल ब्लॉकों की नीलामी या आवंटन कर देगी। इनमें से 40 ब्लॉकों की नीलामी की जाएगी, जबकि 43 ब्लॉकों का आवंटन होगा। इन 83 ब्लॉकों में से 56 ब्लॉक पावर सेक्टर के लिए रिजर्व रखे गए हैं, जबकि शेष ब्लॉक आयरन, स्टील, सीमेंट जैसे अन्य सेक्टरों को मिलेंगे।
गौरतलब है कि केंद्र सरकार रद्द हुए 214 कोल ब्लॉकों की ई-नीलामी में दो तरह की रणनीति है। इसमें पावर कंपनियों के लिए रिजर्व ऑक्शन की प्रक्रिया अपनाई जा रही है। जबकि आयरन, स्टील और सीमेंट सेक्टर के लिए ब्लॉक का आवंटन फारवर्ड बिडिंग के जरिए किया जा रहा है। कोयल मंत्रालय को उम्मीद है कि 214 ब्लॉकों की नीलामी से प्राप्त होने वाला राजस्व पहले के 7 लाख करोड़ रुपए के अनुमान के पार चला जाएगा। हालांकि, विशेषज्ञों ने कोल ब्लॉक हासिल करने के लिए कंपनियों की ओर एग्रेसिव बिडिंग पर चिंता जताई है। उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा 214 कोल ब्लॉक आवंटन को निरस्त करने का फैसला सुनाए जाने के बाद प्रदेश को लगभग 1500 करोड़ का फटका लगा। इसमें राज्य खनिज विकास निगम ने अपनी ज्वाईंट वेंचर कंपनियों के साथ मिलकर 10 कोल ब्लॉक को डेवलप करने में लगभग 1000 करोड़ रूपए खर्च किए थे। ऐसे में सरकार को लगभग 400 और ज्वाईंट वेंचर कंपनियों (जेपी सीमेंट, एसीसी सीमेंट, मॉनिट और सैनिक कंपनी) को 600 करोड़ का झटका लगा। वहीं एस्सार और हिंडाल्कों को ज्वाईंट वेंचर प्रोजेक्ट महान कोल ब्लॉक और अन्य कंपनियों के आवंटन निरस्त होने से लगभग 500 करोड़ का फटका लगा है। अब कोल ब्लाक के आवंटन की नई प्रक्रिया शुरू होने से एक बात तो यह है की मप्र को जो 1500 करोड़ का फटका लगा है उसकी भरपाई नहीं हो सकती है।
मप्र की खदानों पर जेपी, रिलायंस, अडानी, एस्सार, की नजर
देश के कोयला उत्पादन का 28 प्रतिशत प्रदेश की धरती से हर साल राष्ट्र को उपलब्ध कराया जाता है। यह मात्रा लगभग 75 मिलियन टन है। इसलिए मप्र की 29 खदानों के लिए जेपी, रिलायंस, अडानी, एस्सार, जीएमआर, वेदांत और आदित्य बिड़ला ग्रुप प्रयासरत हैं। बताया जाता है की अपनी प्राथमिकता और सहुलियतों के आधार पर इन औद्योगिक घरानों ने अपने में ही खदानों का वितरण कर लिया है। ताकि ई-नीलामी प्रक्रिया में न तो अधिक रकम की बोली लगानी पड़े और न ही किसी तरह की अन्य असुविधा हो। इसी प्रक्रिया के तहत मप्र की पहली कोयला खादान रिलायंस का मिली। अनिल अंबानी के नेतृत्व वाली रिलायंस सीमेंट को मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में सियाल घोघरी कोल ब्लॉक मिला है। हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड (एचजेडएल) और ओसीएल आयरन एंड स्टील को पछाड़ उसने यह ब्लॉक हासिल किया है। ब्लॉक में 2.93 करोड़ टन का भंडार है। इसी तरह जेपी सीमेंट कॉर्पोरेशन को भी मध्य प्रदेश में कोयला खान हासिल हुई है। कोयला ब्लॉकों की नीलामी के दूसरे चरण में जेपी सीमेंट को अमलिया नार्थ और मंडला साउथ कोयला खदान मिली है। अमलिया नार्थ कोयला ब्लॉक अनुमानत: 2,473 करोड़ रुपए में मिला है। पहले यह कोयला ब्लॉक एमपी सीमेंट माइनिंग कॉर्पोरेशन को आबंटित किया गया था। मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में मांडला साउथ ब्लॉक के लिए आंध्र सीमेंट्स, गोदावरी पावर ऐंड इस्पात लि., हिंदुस्तान जिंक लि., जेपी सीमेंट कॉर्पोरेशन व रिलायंस सीमेंट कंपनी दौड़ में थीं। इस ब्लॉक में 1.33 करोड़ टन के भंडार का अनुमान है। जयप्रकाश सीमेंट कॉर्पोरेशन कोयला खदान नीलामी के मांडला साउथ कोल फील्ड के लिए सफल बोलीदाता रहा। बताया जाता है कि मप्र की अधिकांश खदानों के लिए जेपी और रिलायंस ने अपनी दावेदारी मजबूत की है। इसलिए अन्य कारोबारी घराने इनके लिए कम बोली लगाएंगे। इसके पीछे एक वजह यह भी बताई जा रही है कि प्रदेश के कोल ब्लॉक में निजी कंपनियां 30 करोड़ टन कोयले के भंडार को दबाकर बैठी हैं। भारत सरकार के कोयला मंत्रालय ने पूर्व में रिलायंस, जेपी, प्रिज्म सहित आधा दर्जन कंपनियों को नोटिस जारी कर पूछा था कि उनके द्वारा लिए गए कोल ब्लॉक में कोयले का उत्पादन कब शुरू किया जाएगा। इस पर कंपनियों ने कोई जवाब नहीं दिया था। उसके बाद वर्ष 1993 से 2009 के बीच भारत सरकार के कोयला मंत्रालय द्वारा आवंटित 29 कोल ब्लॉकों में से 25 का आवंटन रद्द हो गया था। तभी से इन कोल ब्लॉक में कोयला दबा कर रखा गया है, जिसका सरकार के पास कोई रिकार्ड नहीं है। इनमें से तीन कोल ब्लॉक रिलायंस के अल्ट्रा मेगा पॉवर प्रोजेक्ट सासन के भी शामिल हैं।
जेपी पर कई नेताओं और अधिकारियों का हाथ
करीब 90,000 करोड़ के कर्ज में डूबे होने के बाद जेपी समूह ने अपने कई मुनाफे वाले प्रोजेक्ट बेचकर जैसे-तैसे बैंकों का मुंह बंद किया है। अभी भी ग्रुप की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। ऐसे में ग्रुप द्वारा कोल ब्लॉक के लिए बोली लगाना सवाल खड़े कर रहा है। जब इसकी पड़ताल की गई तो यह बात सामने आई है कि जेपी ग्रुप में केंद्र और राज्य के कुछ मंत्रियों और अधिकारियों का पैसा लगा है। इनसे मिली राशि के आधार पर ही ग्रुप प्रदेश की लगभग आधे से अधिक कोल ब्लॉक के लिए नीलामी प्रक्रिया में शामिल हो रहा है। उल्लेखनीय है कि सरकारों की मेहरबानी और बैंकों से कर्ज के दम पर जेपी ग्रुप जितनी तेजी से सीमेंट, इंफ्रा, रियल एस्टेट, पावर कोराबार में उभरा अब उतनी ही तेजी से यह ग्रुप कंगाल हो रहा है। ऐसे में ग्रुप को नेताओं और अफसरों का साथ मिला है। मप्र खनिज विकास निगम से सांठगांठ कर 38 हजार करोड़ से अधिक के कोल ब्लॉक हथियाने वाली कंपनी जेपी एसोसिएट का रसूख सरकार के सभी विभागों पर भारी पड़ता रहा है। गौरतलब है कि अफसरों की लापरवाही के कारण प्रदेश के खनिज विभाग को पिछले सात वर्ष में अरबों रूपए से अधिक का झटका लगा है। यह खुलासा नियंत्रक महालेखापरीक्षक (कैग) की रिपोर्ट में भी हुआ है। रिपोर्ट में इस बात का खुलासा किया गया है कि खनिज साधन विभाग द्वारा रॉयल्टी निर्धारण के मामलों की जांच और रॉयल्टी की कम वसूली, अनिवार्य भाटक व ब्याज के अनारोपण के कई मामले प्रकाश में आए हैं। ज्ञातव्य है कि जेपी गु्रप और एसीसी सीमेंट पर 150 करोड़ से अधिक खनिज राजस्व बकाया है। इसके बाद भी मप्र सरकार के उपक्रम राज्य खनिज विकास निगम ने 50 हजार करोड़ के कोयला भंडार वाले सात कोल ब्लॉकों का ज्वाइंट वेंचर एग्रीमेंट कर लिया था। इस खुलासे के बाद सरकार से लेकर कार्पोरेट हलकों तक हड़कंप मचा गया था। लेकिन धीरे-धीरे यह मामला शांत हो गया और फाइलों में दब गया।
ग्रीन ट्रिब्यूनल की आपत्ति दरकिनार
कोल ब्लॉक आवंटन में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने पर्यावरण स्वीकृति में गड़बड़ी को लेकर कुछ कोल ब्लॉक के लिए आपत्ति लगाई थी, लेकिन उन्हें भी कोल ब्लॉक आवंटन के योग्य मान लिया गया है। 'छत्तीसगढ़ बचाओÓ आंदोलन के संयोजक आलोक शुक्ला ने बताया कि एनजीटी ने जिन कोल ब्लॉक की पर्यावरण स्वीकृति पर आपत्ति की है, पर केंद्र सरकार कोल ब्लॉक की नीलामी के लिए 10 फीसदी राशि भी जमा करा चुकी है। ऐसे में यदि कोल ब्लॉक की नीलामी हो जाएगी तो सरकार को पर्यावरण स्वीकृति दिलानी पड़ेगी। इस बार कोल ब्लाक का आवंटन 12 दिसंबर, 2014 को लोक सभा में पारित कोयला खनन विशेष (विशेष प्रावधान) बिल 2014 के आधर पर किया जाएगा। यह बिल कोयला खनन (विशेष प्रावधान) अध्यादेश 2014 के स्थान पर लाया गया है जिसे केन्द्र सरकार ने अक्टूबर 2014 में प्रस्तुत किया था, ताकि रद्द किए गए कोयला ब्लाक की बोली लगाई जा सके। विदित है कि वह अध्यादेश 24 सितंबर 2014 को सुप्रीम कोर्ट के आदेश से लाया गया था, जब संप्रग और राजग सरकारों द्वारा पिछले कुछ वर्षों में विभिन्न पूंजीपतियों और कुछ सार्वजनिक कंपनियों को आवंटित किए गए 214 कोयला ब्लाक को रद्द कर दिया गया था।
राज्यों पर अंकुश...निजीकरण को बढ़ावा
केद्र सरकार द्वारा नए अध्यादेश के तहत किए जा रहे कोल ब्लाक आवंटन की प्रकिया से पिछले 30 वर्षों से कोयला ब्लॉकों की बंदरबाट का सिलसिला अब अंतत: खत्म हो गया है। कोयला मंत्रालय के उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक कोयला ब्लॉकों के आवंटन में अभी तक सबसे बड़ी भूमिका राज्य सरकारें निभाती थीं। बड़ी कंपनियों को कोयला ब्लॉक देने की सिफारिश राज्यों की तरफ से आती थी। उस पर विचार-विमर्श के बाद केंद्र मुहर लगाता था। केंद्र के स्तर पर यह भी नहीं देखा जाता था कि उस कोयला ब्लॉक की जरूरत वहां है या नहीं। इस वजह से कुछ राज्यों के पास उनकी जरूरत से कई गुना ज्यादा कोयला ब्लॉक मिल गए थे। दूसरी तरफ कुछ राज्यों को उनकी जरूरत के मुताबिक भी कोयला ब्लॉक नहीं मिलते थे। इस खाई को पाटने के लिए मोदी सरकार ने हर राज्य में अगले 30 वर्षों के दौरान कोयले की जरूरत का अध्ययन करने का फैसला किया है। यह अध्ययन कोयला मंत्रालय के तहत गठित की गई एक उच्चस्तरीय समिति करेगी। इस अध्ययन के आधार पर ही राज्यों को उनकी मांग के मुताबिक कोयला ब्लॉक दिया जा रहा है। कोयला ब्लॉक आवंटन की नीति अभी तक कोयला उत्पादन करने वाले राज्यों के पक्ष में हुआ करती थी। लेकिन, कोयला मंत्रालय ने जो अध्ययन करवाया है उससे हर राज्य को उसकी जरूरत के मुताबिक ही कोयला मिलेगा। रॉयल्टी मिलने से कोयला उत्पादक राज्यों को सर्वाधिक फायदा होने का रास्ता पहले ही सरकार साफ कर चुकी है। सुप्रीम कोर्ट की तरफ से रद्द किए गए कोयला ब्लॉकों की खुली निविदा से नीलामी करने के फैसले के बारे में सरकार पहले ही कह चुकी है कि जो भी राशि प्राप्त होगी, वह पूरी तरह से राज्यों को जाएगी। देश में कोयला का खनन सीएमएन अधिनियम और एमएमडीआर अधिनियम के तहत किया जाता है। 1970 के दशक में जब इंदिरा गांधी की सरकार ने कोयला खनन के काम को पूंजीपतियों से लेकर, अपने हाथों में ले लिया था, तो उस समय सीएमएन अधिनियम को लागू किया गया था। एमएमडीआर अधिनियम के तहत, खनन करने के अधिकार को आवंटित करने के प्राधिकरण राज्य सरकारें हैं। 1972 में कोकिंग कोयला खदानों का राष्ट्रीकरण हुआ, उसके बाद 1973 में गैर कोकिंग कोयला खदानों का राष्ट्रीकरण हुआ। कोयला खदान राष्ट्रीकरण अधिनियम (सी.एम.एन.), जो 1976 में लागू हुआ, उसके तहत लोहा और इस्पात का उत्पादन करने वाले पूंजीपतियों को छोड़कर, बाकी पूंजीपतियों के लीज रद्द कर दिए गए। लोहा और इस्पात का उत्पादन करने वाले पूंजीपतियों को सिर्फ उस काम के लिए कोयला का खनन करने की इजाज़त दी गई। कोयला खनन के निजीकरण की प्रक्रिया 1992 में शुरु हुई, जब कोल इंडिया और सिंगारेनी के लिए कोलियरीज के 143 कोयला ब्लाक, जिनका प्रयोग नहीं हो रहा था, निजी पूंजीपतियों को अपने प्रयोग के लिए खनन करने के उद्देश्य से सौंपे गए। लोहा और इस्पात के अलावा, बिजली के उत्पादन को भी अंतिम उद्देश्य में शामिल करते हुए, इस अधिनियम को 1993 में संशोधित किया गया। मार्च 1996 में सीमेंट तथा जुलाई 2007 में कोयला गैस उत्पादन व कोयला तरलीकरण को भी निर्धारित अंतिम में जोड़ा गया। फरवरी 2006 में इन सभी अंतिम उद्देश्यों के साथ, कोयला खनन में 100 प्रतिशत विदेशी प्रत्यक्ष पूंजीनिवेश की इजाजत दी गई। एमएमडीआर अधिनियम का सितंबर 2010 में संशोधन किया गया, ताकि सभी खनिजों के खनन के लिए बोली लगाई जा सके। फरवरी 2012 में संप्रग सरकार ने कोयला खदानों की बोली लगाने की सूचना दे दी। बीते दिनों में जब-जब सीएमएन अधिनियम में संशोधन करने के प्रयास किये गए थे, तब-तब लोगों ने तथा कोयला खनन मजदूरों ने उसका सख्त विरोध किया था। अप्रैल 2000 में सीएमएन अधिनियम को बदलने के लिए एक बिल राज्य सभा में पारित किया गया था परन्तु उसे पास नहीं किया जा सका।
इस समय, कोयला क्षेत्र का निजीकरण दो तरीकों से किया जा रहा है। कोल इंडिया के शेयर क्रमश: बड़े पूंजीपतियों को बेचे जा रहे हैं। मोदी सरकार ने हालही में कोल इंडिया के और शेयर बेचे हैं। दूसरी ओर, निजी क्षेत्र की कंपनियों को पहली बार अपने प्रयोग के लिए कोयले का खनन करने की इजाजत दी जा रही है, और इस नए 2014 के बिल के कानून बन जाने से, निजी कपंनियों को अपने प्रयोग के लिए तथा दूसरों को बेचने के लिए, खनन करने की इजाजत मिल गई है। कोयला, पेट्रोलियम, गैस, इत्यादि, ये हमारे देशवासियों के लिए ऊर्जा के प्रमुख स्रोत हैं। हमारे देश में बिजली उत्पादन का अधिकांश भाग कोयले पर आधारित है। मेहनतकश लोगों की बड़ी संख्या आदि जैसे खाना पकाने, घरेलू उपभोग के लिये कोयले का इस्तेमाल करती है। पेट्रोलियम और गैस क्षेत्र को पहले ही बड़े पूंजीपतियों के मुनाफों के लिए खोल दिया गया है। अब कोयला क्षेत्र को भी खोला जा रहा है, जिससे कोयला व बिजली की कीमतें अवश्य बढ़ेंगी। कोयला मंत्रालय ने कोयला खदानों की बोली लगाने के लिए कोयला खदान (विशेष प्रावधान) नियम, 2014 की घोषणा कर दी है। कोयला खदान के मजदूर और ट्रेड यूनियन कोयला क्षेत्र के निजीकरण का विरोध कर रहे हैं। 24 नवंबर को हड़ताल करने का प्रस्ताव तब वापस लिया गया था क्योंकि केन्द्र सरकार ने यह आश्वासन दिया था कि बिल को संसद में लाने से पहले ट्रेड यूनियनों के साथ वह सलाह-मशविरा करेगी। परन्तु सरकार ने मजदूरों के प्रतिनिधियों से कोई बातचीत नहीं की और लोकसभा में अपने बहुमत के बल पर, इस बिल को पास करवा दिया। इसके विरोध में मजदूरों और ट्रेड यूनियनों ने कोयला क्षेत्र के निजीकरण और विराष्ट्रीकरण का विरोध कर करते हुए 6 से 10 जनवरी तक हड़ताल भी की।
इस तरह हो रहा है कोल ब्लॉक नीलामी का खेल
देश में कोयले की खदानों की नीलामी का खेल किस तरह हो रहा है, इसका एक मामला छत्तीसगढ़ में सामने आया जो इस बात का संकेत है कि कोयले की कालिख ही ऐसी है कि लाख चतुराई करें, तो भी एक-दो धब्बे लगने तय हैं। इस बार भी कोयले ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया है। कोयला तो आखिर कोयला है, सो विवाद यहां भी पैदा हो गया है। मामला गारे पाल्मा खदान के आवंटन और फिर उसे रद्द करने का है। यह आवंटन जिंदल पॉवर को हुआ था। कारण बोली कम लगना है, लेकिन यह सरकारी तर्क है। इसे दूसरे नजरिए से देखें, तो कई तथ्य ऐसे हैं, जिन पर गौर करने की जरूरत है। कई ऐसे सवाल हैं, जिनका जवाब अभी तक नहीं मिला है। और, अगर जवाब मिल जाए, तो शायद भ्रष्टाचार के नए तरीके और नए पन्ने एक बार फिर देश की जनता के सामने आएंगे।
छत्तीसगढ़ की गारे पाल्मा 4/2-3 कोयला खदान की नीलामी रद्द की जा चुकी है। 19 फरवरी, 2015 को इस खदान की सबसे बड़ी बोली जिंदल पॉवर लिमिटेड ने लगाई थी। बाकायदा जिंदल पॉवर लिमिटेड को इस खदान का आवंटन भी हो गया, लेकिन इस बीच इस आवंटन को लेकर कुछ सवाल शुरू हो गए। मसलन, जहां अन्य कंपनियों ने इस तरह की कोयला खदानें 1,000 रुपए प्रति टन की बोली लगाकर ली थीं, वहीं जिंदल को गारे पाल्मा 4/2-3 खदान बेस प्राइस 100 रुपए से मात्र आठ रुपए अधिक पर मिल गई। इस तथ्य को थोड़ा और सरल तरीके से समझने की जरूरत है। शिड्यूल-2 में शामिल कोयला खदानों की बोली लगाने के लिए सरकार ने प्रति टन 100 रुपए का बेस प्राइस रखा था। यानी कोई भी कंपनी इससे कम की बोली नहीं लगा सकती थी। एक महत्वपूर्ण तथ्य यह भी ध्यान में रखने लायक है कि कोयले की यह खदान अनुसूची-दो (शिड्यूल-2) में शामिल थी। यानी इसका इस्तेमाल बिजली उत्पादन के लिए किया जाना था। अब इस अनूसूची में शामिल कोयला खदानों की नीलामी जीतने वाली कंपनियों के मूल्य पर ध्यान दें। तोकीसुड उत्तरी खदान एस्सार पॉवर एमपी लिमिटेड ने 1,010 (प्लस 100 रुपए बेस प्राइस) रुपए की बोली लगाकर हासिल की यानी कोयला का मूल्य हुआ 1,110 रुपए प्रति टन। ट्रांस दामोदर खदान दुर्गापुर प्रोजेक्ट्स लिमिटेड ने 840 रुपए प्रति टन की बोली लगाकर हासिल की। जेपी वेंचर्स लिमिटेड ने अमेलिया उत्तरी खदान 612, जीएमआर छत्तीसगढ़ ने तालाबीरा-1 खदान 378 रुपए और सीईएससी ने सरिसाटोली खदान 370 रुपए प्रति टन की बोली लगाकर जीती। लेकिन, सबसे अहम और दिलचस्प बोली लगी गारे पाल्मा 4/2-3 खदान की। इसे मात्र आठ रुपए प्रति टन (प्लस 100 रुपए बेस प्राइस यानी मात्र 108 रुपए प्रति टन) की बोली लगाकर जिंदल पॉवर लिमिटेड ने हासिल कर लिया।
अब सवाल है कि गारे पाल्मा मामले में ऐसा क्या हुआ कि मात्र आठ रुपए प्रति टन की बोली लगाकर जिंदल पॉवर ने उक्त खदान हासिल कर ली? जाहिर है, यह एक ऐसा सवाल है, जिस पर विवाद होना तय था। सो हुआ। मीडिया में रिपोर्ट आई, तो सरकार ने इस पर कदम उठाने की बात कही। अंत में कदम यह उठाया गया कि तत्काल प्रभाव से सरकार ने गारे पाल्मा 4/2-3 का आवंटन रद्द कर दिया। यह अलग बात है कि जिंदल ने सरकार के इस कदम का विरोध करते हुए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है। अदालत ने अभी इस मामले में स्टे भी दे दिया है। कोयला मंत्रालय ने आवंटन रद्द करने के बारे में यह कहा कि इस कोयला खदान की बोली कम थी। फिर सवाल पैदा होता है कि यह बोली कम थी या फिर बोली जानबूझ कर कम लगाई गई थी और अगर जानबूझ कर, सोच-समझ कर बोली कम लगाई गई थी, तो इसके लिए दोषी कौन है? सवाल यह भी है कि नीलामी में शामिल अन्य कंपनियों ने बोली लगाई भी या नहीं या सिर्फ जिंदल ने ही बोली लगाई और बाकी कंपनियां चुपचाप बैठी रहीं? बोली न लगाने वाली कंपनियां कौन हैं? क्या सरकार ऐसी कंपनियों से भी पूछताछ करेगी? ऐसे बहुत सारे सवाल हैं, जिनका जवाब सामने आना चाहिए। वैसे इन सारे सवालों पर सरकार अब तक चुप है।
108 बनाम 1,110 रुपए की असली कहानी
वैसे यह जानना दिलचस्प होगा कि 108 रुपए प्रति टन कोयले की असली कहानी क्या है? यह संभव कैसे हुआ और क्यों हुआ? पूरी कहानी कुछ यूं है। छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जि़ले में गारे पाल्मा कोयला खदान है। कोयला मंत्रालय ने पावर यूज के लिए शिड्यूल-2 में छह कोयला खदानें शामिल की थीं। इनमें गारे पाल्मा 4/2-3 के अलावा तालाबीरा-1, सरिसाटोली, ट्रांस दामोदर, अमेलिया उत्तरी और तोकीसुड उत्तरी शामिल हैं। इन सभी कोयला खदानों की ई-नीलामी समय पर हो गई। तालाबीरा खदान 478, सरिसाटोली खदान 470, ट्रांस दामोदर खदान 940, अमेलिया उत्तरी 712, तोकीसुड उत्तरी 1,110 और गारे पाल्मा 4/2-3 108 रुपए प्रति टन की अंतिम बोली पर नीलाम हो गई। अब आप खुद अंदाजा लगाइए कि एक ही काम यानी बिजली उत्पादन के लिए एक ही शिड्यूल में शामिल खदानों के मूल्य में कितने का अंतर है। 108 रुपए बनाम 1,110 रुपए। यानी एक ही तरह का कोयला कहीं 1,110 रुपए प्रति टन बिका, तो कहीं 108 रुपए। ध्यान देने की बात है कि 108 रुपए प्रति टन कोयला गारे पाल्मा 4/2-3 का बिका, जिसे जिंदल पॉवर लिमिटेड ने खरीदा। 19 फरवरी, 2015 को गारे पाल्मा खदान की नीलामी हुई। इस खदान की नीलामी में हिस्सा लेने के लिए छह कंपनियां क्वॉलीफाइड हुई थीं। इनमें भी अकेले जिंदल पॉवर लिमिटेड के तीन बिड थे। तीन अन्य कंपनियां थीं, अडानी पॉवर महाराष्ट्र लिमिटेड, जीएमआर छत्तीसगढ़ एनर्जी लिमिटेड और जिंदल इंडिया थर्मल पावर लिमिटेड। लेकिन, इस खदान के लिए बोली लगाई सिर्फ एक कंपनी ने। वह कंपनी थी, जिंदल पॉवर लिमिटेड। अडानी पॉवर महाराष्ट्र लिमिटेड ने इनिशियल प्राइस ऑफर (आईपीओ) में 501 रुपए प्रति टन का प्राइस कोट किया था, लेकिन उसने बोली में हिस्सा नहीं लिया। जीएमआर छत्तीसगढ़ एनर्जी लिमिटेड ने आईपीओ में कोई प्राइस कोट नहीं किया और न नीलामी में बोली लगाई। जिंदल इंडिया थर्मल पॉवर लिमिटेड ने आईपीओ में 505 रुपए का प्राइस कोट किया था, लेकिन अंत में वह भी बोली लगाने की प्रक्रिया से अलग रही।
इस तरह पूरी बोली प्रक्रिया में बचे केवल तीन बिड। यानी जिंदल पॉवर लिमिटेड (64849), जिंदल पॉवर लिमिटेड (65465) और जिंदल पॉवर लिमिटेड (65476)। इनमें जिंदल पॉवर लिमिटेड (65465) ने आईपीओ में 452 रुपए का प्राइस कोट किया था, वहीं जिंदल पॉवर लिमिटेड (65476) ने आईपीओ में 451 रुपए का प्राइस कोट किया था, लेकिन अंत में इन दोनों ने भी बोली में हिस्सा नहीं लिया। अब बची जिंदल पॉवर लिमिटेड (64849)। इसने आईपीओ में 450 रुपए प्रति टन का प्राइस कोट किया था। 19 फरवरी को जब नीलामी शुरू हुई, तब बाकी कंपनियों ने बोली नहीं लगाई और अकेले जिंदल पॉवर लिमिटेड (64849) ने बोली लगाते हुए 108 रुपए प्रति टन (इसमें बोली सिर्फ आठ रुपए की ही लगी, क्योंकि 100 रुपया बेस प्राइस था) के हिसाब से यह खदान हासिल कर ली। गौरतलब है कि गारे पाल्मा 4/2-3 खदान का रिजर्व अधिक है (कोयला अधिक है)। फिर भी इसके लिए इतनी कम बोली लगी और बाकी की अन्य कंपनियों ने बोली ही नहीं लगाई। एक और महत्वपूर्ण तथ्य यह कि 19 फरवरी को सुबह 11 बजे इसकी नीलामी प्रक्रिया शुरू हुई और 12 बजकर 21 मिनट पर खत्म भी हो गई। यानी यह नीलामी दो घंटे से भी कम चली। दूसरी ओर तालाबीरा-1 जैसी खदान के लिए सुबह 11 बजे से रात आठ बजे तक नीलामी प्रक्रिया चली और उसे ओजीएमआर छत्तीसगढ़ ने 100 रुपए बेस प्राइस पर 378 रुपए की बोली लगाकर कुल 478 रुपए प्रति टन के हिसाब से हासिल किया था। आखिर गारे पाल्मा मामले में ऐसा क्या हुआ था कि नीलामी प्रक्रिया महज दो घंटे में खत्म हो गई। जाहिर है, इस सवाल के पीछे कोई न कोई कहानी तो जरूर छिपी हुई है। अब इसका जवाब कब सामने आता है, यह देखने वाली बात होगी।
कंपनियों में आपसी सांठगांठ
ध्यान देने की बात यह है कि इस बार पॉवर सेक्टर की कोयला खदानों की नीलामी प्रक्रिया काफी आक्रामक थी। एक-एक खदान के लिए कई-कई कंपनियों ने घंटों तक बोली लगाई। ऐसे में गारे पाल्मा 4/2-3 के लिए सिर्फ एक कंपनी द्वारा बोली लगाना संदेह तो पैदा करता ही है। यह समझ से परे है कि आखिर बाकी कंपनियों ने बोली क्यों नहीं लगाई? छोटे रिजर्व वाली खदानों से जहां सरकार को ज़्यादा से ज़्यादा पैसा मिला है, वहीं गारे पाल्मा 4/2-3 (जिसका रिजर्व बहुत अधिक है) के लिए इतना कम पैसा क्यों मिला? तालाबीरा-1 खदान जीएमआर छत्तीसगढ़ को मिली और यह खदान उसकी कोयला जरूरत को 5.45 फ़ीसदी ही पूरा करती है, लेकिन जीएमआर ने गारे पाल्मा 4/2-3 के लिए इनिशियल प्राइस ऑफर में शून्य रुपया प्राइस कोट किया था और वह नीलामी प्रक्रिया में भी शामिल नहीं हुई। सवाल है कि क्या उसे और कोयले की जरूरत नहीं थी? क्या गारे पाल्मा जीएमआर छत्तीसगढ़ के लिए महत्वपूर्ण नहीं थी? अगर उसे गारे पाल्मा खदान मिल जाती, तो उसकी कोयला जरूरत आसानी से पूरी हो सकती थी, लेकिन फिर भी उसने नीलामी प्रक्रिया से बाहर रहना क्यों जरूरी समझा?
इसी तरह गारे पाल्मा 4/2-3 खदान की नीलामी में अगर अडानी पॉवर महाराष्ट्र लिमिटेड ने हिस्सा लिया होता और उसे यह खदान मिल जाती, तो उसकी कोयला जरूरत का 93 फीसदी हिस्सा पूरा हो सकता था। और, अगर जिंदल इंडिया थर्मल पॉवर लिमिटेड ने नीलामी में हिस्सा लिया होता, तो उसकी कोयला ज़रूरत का 98 फीसदी हिस्सा पूरा हो सकता था। अब सवाल है कि ऐसा क्या हुआ कि इन कंपनियों ने अपनी जरूरत पूरी करने के बजाय जिंदल पॉवर लिमिटेड के लिए यह कोयला खदान छोड़ दी? वह भी ऐसा तब हुआ, जब इन कंपनियों को मालूम था कि नीलामी प्रक्रिया में हिस्सा न लेने पर उनकी जमानत राशि, जो करोड़ों में थी, जब्त हो जाएगी। सवाल यह भी है कि क्या इसके लिए इन कंपनियों के बीच अंदरखाने कोई समझौता हुआ था? वैसे सरकार ने अब तक यह तो नहीं कहा है कि इस सबके पीछे ऐसा कुछ हुआ है, जो कायदे से नहीं होना चाहिए था। लेकिन, सरकार ने यह जरूर माना कि इस मामले में उचित कार्रवाई की जाएगी। फिलहाल तो सरकार ने आवंटन रद्द कर दिया है, लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या उस राज से पर्दा उठेगा कि आखिर जिंदल पॉवर लिमिटेड के अलावा बाकी तीन कंपनियों ने अपनी जरूरत को दरकिनार रखते हुए नीलामी प्रक्रिया में हिस्सा क्यों नहीं लिया? जाहिर है, अगर सरकार इस मामले की पूरी जांच कराए, तो ऐसे कई राज खुल सकते हैं, जो भ्रष्टाचार के नए तरीकों को सामने लाएंगे। ऐसे तरीके, जो एक ईमानदार प्रक्रिया अपनाए जाने के बाद भी भ्रष्टाचार के नए रास्ते बना देते हैं। इस मामले के सामने आने के बाद एक बार फिर से कई अन्य खदानों की नीलामी की जांच शुरू हो गई है। इसमें मप्र की भी पांच कोयला खदानें हैं।
बिजली के नाम पर खदानों का औने-पौने दामों में आवंटन
जिन कोयला खदानों की नीलामी प्रक्रिया शुरू हुई है, उनमें से अब तक कई खदानों का आवंटन किया जा चुका है। छत्तीसगढ़ की गारे पाल्मा 4/2-3 खदान जिंदल पॉवर लिमिटेड (जेपीएल) ने 108 रुपए प्रति टन की सबसे कम बोली पर हासिल की। पॉवर सेक्टर के लिए सुरक्षित खदानों की बोली कम इसलिए है, क्योंकि सरकार ने उनकी अंतिम विक्रय सीमा निर्धारित कर दी थी। उसके पीछे सरकार ने यह दलील दी थी कि अगर इन सुरक्षित कोयला खदानों की अंतिम विक्रय सीमा निर्धारित नहीं की गई, तो बिजली उत्पादन का खर्च बढ़ जाएगा और बिजली महंगी हो जाएगी। लेकिन, जिंदल पॉवर लिमिटेड (जेपीएल) को आवंटित की गई खदान सरकार के इस दावे को संदेह के घेरे में ला खड़ा करती है और कई सवालों को भी जन्म देती है। पहला यह कि क्या बिजली के नाम पर राष्ट्रीय संसाधनों को औने-पौने दामों में बांटने के बावजूद जनता को सस्ती बिजली मिल रही है? दूसरा यह कि गारे पाल्मा 4/2-3 खदान केवल 108 रुपये प्रति टन की बोली पर क्यों नीलाम हुई, जबकि उससे कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर स्थित गारे पाल्मा 4/5 खदान अब तक की सबसे महंगी बोली पर नीलाम हुई और अन्य सुरक्षित खदानों पर भी इससे काफी ऊंची बोली लगी है, जैसे तोकीसुड उत्तरी खदान 1,110 रुपए प्रति टन की बोली पर नीलाम हुई और एस्सार पॉवर लिमिटेड को मिली। जेपीएल को मिली गारे पाल्मा 4/2-3 की कुल क्षमता 155 मिलियन टन है, जो नीलामी के लिए रखी गई किसी भी खदान से अधिक है। वहीं गारे पाल्मा खदानों का कोयला सबसे उत्तम गुणवत्ता वाला है, तो उसे पॉवर सेक्टर के इस्तेमाल के लिए ही क्यों सुरक्षित रखा गया? क्या पॉवर सेक्टर के लिए कम गुणवत्ता वाली खदानों को नहीं रखा जा सकता था? साथ ही इन खदानों के दो अन्य दावेदारों अडानी पॉवर और ओजीएमआर का बोली से हट जाना भी संदेह पैदा करता है।
अल्ट्रा मेगा पावर प्रॉजेक्ट से जुड़े एक कोल ब्लॉक रद्द
इसी तरह एक और विवादित कोयला खदान का आवंटन रद्द कर दिया गया है। 8 मई को सरकार ने अनिल अंबानी ग्रुप के मप्र के सासन अल्ट्रा मेगा पावर प्रॉजेक्ट से जुड़े एक कोल ब्लॉक को रद्द करने का फैसला किया है। सरकार का यह फैसला सुप्रीम कोर्ट के उस विचार के मुताबिक होगा जिसमें अन्य प्लांटों के लिए इस प्रकार की यूनिटों से अधिक कोयले के कमर्शियल इस्तेमाल पर लगाम लगाने के लिए कहा गया है। इस विचार में अन्य प्लांटों के लिए 4,000 मेगावाट प्रॉजेक्ट के अन्य खानों के कोयले के उपयोग करने पर भी मना किया गया है। इस आदेश में रिलायंस पावर के सासन प्रॉजेक्ट को शूरू में दी गई खास व्यवस्था को भी खत्म किया गया है। इससे रिलायंस को 21,000 करोड़ रुपए के अपने चित्रांगी पॉवर प्रॉजेक्ट को आरंभ करने में मदद मिली है। सरकारी सूत्रों ने बताया कि कोयला, बिजली एवं ऊर्जा मंत्री पीयूष गोयल ने सासन के तीन खानों में से एक के आवंटन को अस्वीकृत करने और शेष खानों से अतिरिक्त कोयले के इस्तेमाल की अनुमित समाप्त करने को भी मंजूरी दी। एक सरकारी अधिकारी ने बताया, सरकार का नजरिया है कि इस निर्णय में संलिप्त पक्षों पर ध्यान न देकर राष्ट्रीय हित के लिए नियमों का सख्ती से पालन किया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले वर्ष 25 अगस्त को व्यवस्था दी थी कि यूएमपीपी को जो कोयला भंडारों का आवंटन किया गया है उसका इस्तेमाल सिर्फ यूएमपीपी के लिए ही किया जाएगा और कोयला मंत्रालय के एक सीनियर अधिकारी ने बताया कि यह फैसला पिछले वर्ष अगस्त में सुप्रीम कोर्ट के ऑर्डर के मद्देनजर लिया गया है। सरकार ने अतिरिक्त कोयले के इस्तेमाल के लिए रिलायंस पावर को दिए गए अधिकार को वापस लेने का फैसला किया है। छत्रसाल कोयला भंडार के आवंटन को रद्द कर दिया क्योंकि यह सरप्लस है और मोहर एवं मोहर अमलोहरी कोयल भंडारों में कोयला का इस्तेमाल सासन युएमपीपी तक ही सीमित रहेगा।
गड़बड़ी की छाया 8 की नीलामी रोकी
मोदी सरकार ने इतनी सावधानी बरती, फिर भी कोयला ब्लाकों के आवंटन में कुछ न कुछ गड़बड़ी निकली जा रही है। कोयला ब्लॉक नीलामी प्रक्रिया में भी कुछ अनियमितता के संकेत मिले हैं। लिहाजा केंद्र ने आठ कोयला ब्लॉकों में नीलामी प्रक्रिया को फिलहाल स्थगित कर दिया है। इनमें से कुछ ब्लॉकों का आवंटन दोबारा रद किए जाने के भी आसार हैं। कोयला मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक कुछ कोल ब्लॉकों की नीलामी प्रक्रिया की जांच नए सिरे से की जा रही है। सूत्रों के मुताबिक सरकार को आठ कोयला ब्लॉकों को लेकर संदेह इसलिए हुआ है कि इनके लिए निर्धारित सीमा से महज दो रुपए प्रति टन ज्यादा की बोली लगा कर इन्हें हासिल किया गया है। इसमें झारखंड स्थित तारा माइंस का आवंटन भी शामिल है। इस ब्लॉक को जिंदल पावर ने हासिल किया था। लेकिन अब सरकार पूरी प्रक्रिया की छानबीन के बाद ही इसके आवंटन पर फैसला करेगी।
सूत्रों के मुताबिक शिड्यूल-3 के 5 ब्लॉक्स की बोलियों की भी दोबारा समीक्षा की जाएगी। इस बात का ध्यान रखा जाएगा की बोलियां किस भाव पर और किस वक्त लगाई गईं थी? 5 कोल ब्लॉक्स में तारा कोल ब्लॉक शामिल है, जिसकी बोली जिंदल पावर ने 126 रुपए प्रति टन पर जीती थी। इसमें वृंदा, सासाई कोल ब्लॉक भी शामिल, जिसे ऊषा मार्टिन ने 1,804 रुपए प्रति टन पर जीता था। सरकार मेरल कोल ब्लॉक की भी समीक्षा करेगी जिसे तिरुमला इंडस्ट्रीज ने 727 रुपए प्रति टन पर जीता था। साथ-साथ डुमरी कोल ब्लॉक की समीक्षा की जाएगी। यह ब्लॉक हिंडाल्को ने 2,127 रुपए प्रति टन पर जीता था। समीक्षा में मंडला कोल ब्लॉक भी शामिल होगा, जिसे जेपी सीमेंट ने 1,852 रुपए प्रति टन पर जीता था। ----------------------

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