गुरुवार, 9 जुलाई 2015

10 साल तक भूखंड खाली तो हजार रु. रोज जुर्माना

एक जून से भवन निर्माण न करने वाले बीडीए के भूखंड मालिकों को झटका, जुर्माने की दरें भी तय
भोपाल। शासन के निर्देशानुसार अब बीडीए अपने भूखंडों पर भवन निर्माण नहीं करने वाले लीजधारकों से तगड़ा जुर्माना वसूल करेगा। 10 साल तक जितने भी भूखंडों पर किसी तरह का कोई निर्माण नहीं किया गया, उनसे अब एक जून से हजार रुपए रोज की दर से जुर्माना लिया जाएगा। भोपाल विकास प्राधिकरण की संपदा शाखा द्वारा ऐसे तमाम लीजधारकों की योजनावार सूची बनाई जा रही है, जिन्हें नोटिस थमाए जाएंगे। साथ ही 4 वर्ष के भीतर निर्माण न करने वालों के लिए भी सालाना जुर्माने की राशि तय की गई है। शासन ने लगभग दो साल पहले प्राधिकरणों के लिए नए व्ययन नियम बनाकर लागू किए, जिसमें भूखंडों के आवंटन की शर्तों को और कड़ा कर दिया, जिसमें लॉटरी या पहले आओ, पहले पाओ की प्रक्रिया को भी समाप्त कर दिया गया और अब आवंटन सिर्फ टेंडर या खुली नीलामी के जरिए ही किया जा सकता है।
वहीं जुर्माने यानी कंपाउंडिंग के लिए भी शासन ने प्राधिकरण को निर्देश दिए थे कि वह बोर्ड संकल्प इस संबंध में पारित कर सकता है। लिहाजा जब प्राधिकरण में राजनीतिक बोर्ड काबिज नहीं था और अफसरों का बोर्ड था, तब कम्पाउंडिंग की राशि निर्धारित की गई थी, जिसे संकल्प के जरिए पारित कर शासन को भिजवाया गया। अभी पिछले दिनों आवास एवं पर्यावरण मंत्रालय ने इसकी मंजूरी प्राधिकरण को दे दी, जिसके अनुसार अब लगभग 10 साल तक आवंटित भूखंड पर किसी भी तरह का निर्माण न करने पर जुर्माने की राशि आरोपित की जा सकेगी, जो कि एक हजार रुपए रोज रहेगी और आगामी एक जून से यह दर लागू कर दी जाएगी। इस दर के अनुसार महीने में 30 हजार रुपए और साल के 365 हजार यानी 3 लाख 65 हजार रुपए तक भारी-भरकम जुर्माना आवंटिती को चुकाना पड़ेगा।
प्राधिकरण का कहना है कि चूंकि वह भूखंड इसलिए आवंटित करता है, ताकि समयसीमा में निर्माण हो सके, लेकिन शहर में प्राधिकरण की संपत्तियां कई लोग निवेश के लिए भी खरीदते हैं। यही कारण है कि कई योजनाओं में सैकड़ों की संख्या में अभी भी भूखंड खाली पड़े हैं। इसके साथ ही प्राधिकरण ने यह भी तय किया है कि भूखंड का कब्जा देने के 4 साल के भीतर अगर भवन निर्माण स्वीकृत मानचित्र के अनुसार नहीं किया जाता है तो इसके लिए भी आवंटन निरस्त किया जा सकता है या फिर बदले में सालाना जुर्माने की राशि वसूल की जाएगी। इसके लिए प्राधिकरण ने कमजोर आय वर्ग यानी ईडब्ल्यूएस के भूखंडों पर सालाना 3 हजार रुपए, अन्य आवासीय भूखंडों पर 5 हजार रुपए और व्यावसायिक एवं अन्य उपयोग के भूखंडों जिनमें पीएसपी, शैक्षणिक एवं स्वास्थ्य अथवा मास्टर प्लान में निर्धारित अन्य उपयोग शामिल हैं, के भूखंडों पर 10 हजार रुपए साल का जुर्माना वसूल किया जाएगा। साथ ही जिन भूखंडों की लीज डीड हो चुकी है और उसके भी 6 साल बाद तक निर्माण नहीं किया गया है, यानी भूखंड के कब्जा देने के 4 साल बाद और लीज डीड के 6 साल बाद यानी कुल 10 साल तक अगर कोई निर्माण नहीं किया गया तो फिर हजार रुपए रोज के हिसाब से जुर्माना वसूल किया जाएगा। एक जून से यह जुर्माना लागू हो जाएगा। लिहाजा ऐसे तमाम आवंटितों की सूची तैयार की जा रही है और योजनावार संबंधित अधिकारियों से इन आवंटनों की रिपोर्ट भी मांगी जा रही है, ताकि जुर्माना राशि की वसूली शुरू की जा सके।
कानूनी तौर पर गलत है निर्णय
जिन आवंटनों में निर्माण कार्य शुरू करने की अवधि निर्धारित नहीं है, उन आवंटनों के विरुद्ध प्राधिकरण का यह निर्णय गैर कानूनी रहेगा। यहां तक कि प्राधिकरण के स्वयं के पास ही योजना के अनेक भूखंड खाली पड़े हैं और अधिग्रहण नियम के अनुसार योजनाओं का संपूर्ण होना और प्लॉटों की बिक्री आवश्यक है, लेकिन प्राधिकरण ने भी उन प्लॉटों की बिक्री नहीं की। यहां तक कि प्राधिकरण अपने खाली प्लॉटों पर निगम को संपत्ति कर नहीं चुका रहा है, जबकि नगर निगम पूरे शहर में खाली भूखंडों का संपत्ति कर वसूल कर रहा है।
हाईराइज कमेटी के साथ एनओसी का झमेला होगा दूर
वहीं दूसरी तरफ चौपट पड़े रियल एस्टेट कारोबार को पटरी पर लाने के लिए मुख्यमंत्री ने एक बार फिर कॉलोनाइजरों-बिल्डरों को आश्वासनों का झुनझुना थमाया है। हाईराइज कमेटी को खत्म करने के साथ ही नजूल, सीलिंग व प्राधिकरण की एनओसी का झमेला भी समाप्त होगा और ये एनओसी वेबसाइट में दर्ज रिकॉर्ड के आधार पर आसानी से दी जाएगी। 30 मीटर तक ऊंची इमारतों के लिए दो एफएआर के प्रावधानों का महीनों से अटका आदेश भी जल्द जारी होगा और पूर्व इंदौर कलेक्टर द्वारा जारी किया गया मिसल बंदोबस्त का फरमान भी मुख्यमंत्री ने गलत माना, जिसमें 1959 से पहले के भी रिकॉर्ड जमीन मालिक से मांगे जा रहे थे। अब नगर निगम द्वारा मंजूर किए जाने वाले नक्शे भवन अधिकारियों के डिजिटल सिग्नेचर से ही मंजूर होंगे।
राजधानी सहित पूरे प्रदेश का रियल एस्टेट कारोबार जबर्दस्त मंदी का शिकार है। मध्यप्रदेश सरकार की अडिय़ल और बेतुकी नीति के चलते कारोबारी हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं और कई मर्तबा मुख्यमंत्री से लेकर विभागीय मंत्री तमाम आयोजनों में रियल एस्टेट कारोबार को राहत देने की घोषणाएं कर चुके हैं। इसी कड़ी में कल क्रेडाई के बैनर तले हुए आयोजन में फिर बिल्डरों और कॉलोनाइजरों को मुख्यमंत्री ने उनकी सभी लम्बित मांगों को जल्द पूरा करने का भरोसा दिलाया है। पिछले दिनों मुख्यमंत्री ने भोपाल में ही इज ऑफ डुइंग बिजनेस के सेमिनार में यह घोषणा की थी कि हाईराइज कमेटी को विलोपित किया जा रहा है, मगर अभी तक इस आशय के आदेश जारी नहीं किए गए। कल मुख्यमंत्री ने स्पष्ट कहा कि जल्दी ही इसके आदेश जारी कर दिए जाएंगे। अब हाईराइज कमेटी में संभागायुक्त नहीं रहेंगे, बल्कि निगमायुक्त उसके अध्यक्ष होंगे और प्राधिकरण के सीईओ को भी शामिल किया गया है।
वेबसाइट पर देखी जा सकेगी एनओसी
इसी तरह नजूल, सीलिंग से लेकर प्राधिकरण की एनओसी बार-बार मांगी जाती है। इसके लिए आवेदक को सारे दस्तावेज राजस्व विभाग द्वारा ही जारी किए जाते हैं और प्रदेश सरकार 1996 में ही सीलिंग समाप्त कर चुकी है और इसकी अंतिम सूची वर्ष 2000 में तैयार कर ली गई थी। लिहाजा राजस्व विभाग सीलिंग और नजूल की जमीनों की सूची, खसरे नंबर और क्षेत्रफल के साथ वेबसाइट पर प्रकाशित कर दे तो सीधे ही इसे देखा जा सकता है
30 मीटर की उंचाई पर दो एफएआर का प्रावधान शीघ्र
इसी तरह पिछले दिनों 30 मीटर तक ऊंचाई वाले हाईराइज यानी बहुमंजिला इमारतों के लिए ये प्रावधान किया था कि बिना हाईराइज कमेटी में जाए 30 मीटर तक की अनुमति सीधे निगम अथवा पंचायत से मिल जाएगी, मगर इसके लिए दो एफएआर लागू नहीं किया और पिछले कई महीनों से यह आदेश अटका पड़ा है। इस पर मुख्यमंत्री के साथ-साथ मौजूद प्रमुख सचिव और आयुक्त ने आश्वस्त किया कि दो एफएआर का आदेश जल्द जारी कर दिया जाएगा,
नजुल एनओसी के लिए नहीं देखेंगे बंदोबस्थ रिकार्ड
इधर पूर्व इंदौर कलेक्टर ने मिसल बंदोबस्त का भी एक आदेश जारी किया था, जिसमें बंदोबस्त रिकार्ड 1925 से दस्तावेजों की छानबीन करने की बात कही, जबकि नियमों में ही स्पष्ट है कि 1959 से पहले के दस्तावेजों को नहीं मांगा जा सकता है। इस विसंगति का खुलासा अग्निबाण ने ही प्रमुखता से किया था। इस पर मुख्यमंत्री ने भी सहमति जताई कि 1959 से पहले के दस्तावेजों को नहीं मांगा जाना चाहिए।
निगम की लीज का मुद्दा जल्द हल होगा
इसी तरह एक मुद्दा नगर निगम की लीज से संबंधित भी उठाया गया। 2010 से सभी तरह के भूखंडों की लीज के नामांतरण और नवीनीकरण के प्रकरण अटके पड़े हैं। कई मर्तबा शासन को प्रतिवेदन दे दिया बावजूद इसके स्थानीय अधिकारियों द्वारा एक भी प्रकरण नहीं किया गया। इस पर निगम नगरीय प्रशासन आयुक्त विवेक अग्रवाल ने स्पष्ट कहा कि लीज की नई पॉलिसी जल्द प्रकाशित की जा रही है।
एफएआर बढ़ा दें तो सस्ते हो जाएंगे आवास
क्रेडाई के राष्ट्रीय अध्यक्ष गीतांबर आनंद ने कहा कि एफएआर ही अत्यंत कम है, जिसके चलते इंदौर-भोपाल जैसे प्रमुख शहरों में अभी भी निर्मित मकानों या फ्लैटों की कीमतें ज्यादा हैं, क्योंकि जमीन की कीमतें लगातार बढ़ रही हंै। जिस तरह गुडग़ांव-नोएडा जैसे शहरों में सरकार ने तीन एफएआर कर दिया, जिसके कारण कीमतों में कमी भी आई, उसी तरह यहां भी एफएआर बढ़ाया जाना चाहिए, जिससे वर्टीकल ग्रोथ भी शहरों को मिलेगी। इंदौर में ही मास्टर प्लान में अधिकतम दो एफएआर का प्रावधान है, जिसे बढ़ाकर कम से कम तीन एफएआर किया जाना चाहिए, जिससे फ्लैटों की कीमतें और कम हो जाएंगी।
डिजिटल सिग्नेचर से ही मंजूर होंगे नक्शे
शासन ने सिंगल विंडो सिस्टम भी लागू किया है, जिसके चलते नगर तथा ग्राम निवेश में आवेदन लेना बंद कर दिए और यह काम नगर निगम के कॉलोनी सेल को सौंप दिया है। वहीं नगर निगम द्वारा ऑनलाइन नक्शों की मंजूरी का दावा तो किया जाता है, मगर जोड़-तोड़ के लिए सारा काम मैन्युअल ही होता है। आयुक्त विवेक अग्रवाल ने स्पष्ट कहा कि अब इंदौर नगर निगम में भी डिजिटल सिग्नेचर से ही नक्शे मंजूर होंगे और इसकी तैयारी लगभग पूरी कर ली गई है। सभी भवन अधिकारियों के डिजिटल सिग्नेचर तैयार करवाए जा रहे हैं और अब वाकई ऑनलाइन नक्शे मंजूर होंगे ताकि इसमें होने वाले भ्रष्टाचार को समाप्त किया जा सके। अभी शासन ने 2400 स्क्वेयर फीट तक के नक्शे बिना निगम के आर्किटेक्ट की सहायता से मंजूर करवाने का आदेश जारी किया है, अब उसी तर्ज पर सभी तरह के बड़े नक्शे भी ऑनलाइन ही मंजूर होंगे।
तय भू उपयोग में डायवर्शन की जरूरत नहीं
मध्यप्रदेश भू राजस्व संहिता 1959 की धारा 172 में भूमि के उपयोग में परिवर्तन के अधिकार अनुविभागीय अधिकारी राजस्व को दिए गए थे, मगर मास्टर प्लान आने के बाद यह तय हो गया कि जिस जमीन का भू उपयोग निर्धारित किया गया है, उसी के अनुरूप अनुमति मिलेगी। इस संबंध में 2008 के बाद 2013 में भी राजस्व विभाग ने सभी कलेक्टरों को यह आदेश दिए थे कि डायवर्शन के लिए अलग से कोई अनुज्ञा अपेक्षित नहीं है। बावजूद इसके डायवर्शन जारी है, जबकि निर्धारित भू उपयोग के मुताबिक आवेदक को सिर्फ लिखित सूचना दी जाना चाहिए ताकि निर्धारित दर के अनुसार भू व्यपवर्तन शुल्क का निर्धारण हो सके और वह राशि उसके द्वारा जमा कराई जा सके। डायवर्शन की जगह आवेदक को सिर्फ लैंड यूज सर्टिफिकेट ही लगाना होगा, जिसके आधार पर प्रीमियम व कर का निर्धारण संबंधित एसडीओ द्वारा किया जाएगा। --------------

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें