गुरुवार, 9 जुलाई 2015

सस्ती बिजली का सपना दिखा मप्र को 1147 करोड़ के घाटे में डाला रिलायंस पॉवर ने

कंपनी ने 7 राज्यों को लगाया 3058 करोड़ का चूना
राज्यों को इस तरह हुआ घाटा
राज्य एमयू घाटा (करोड़ में)
मध्यप्रदेश 2868 1147
पंजाब 1147 459
उत्तरप्रदेश 956 382
दिल्ली 860 344
हरियाणा 860 344
राजस्थान 765 306
उत्तराखंड 191 76
कुल घाटा 7647 3058
भोपाल। मप्र में जिन कंपनियों के बलबुते मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 24 घंटे बिजली देने का वादा किया था, वहीं अब मप्र में अंधेरे का कारण बनने लगी हैं। उनमें से एक रिलायंस पावर ने तो ऐसा खेल खेला है कि न केवल मप्र में बल्कि अन्य छह प्रदेशों को भी अरबों रूपए का चूना लगाया है। मप्र सहित कई राज्यों में महंगा बिजली उत्पादन और महंगी बिजली के खेल के पीछे रिलायंस पॉवर है। रिलायंस पावर लिमिटेड ने मध्यप्रदेश स्थित सासन अल्ट्रा मेगा पावर प्रोजेक्ट (यूएमपीपी)के प्लांट को ठप रखकर 7 राज्यों को चूना लगाया गया है। सब कुछ जानते हुए सरकारों का मौन समझ से परे है। सासन पॉवर प्लांट से बिजली नहीं मिलने के चलते मप्र, पंजाब, उप्र, दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान और उत्तराखंड को महंगी बिजली खरीदना पड़ रही है। दूसरे सासन के नाम पर आवंटित कोयले को रिलायंस अपने चितरंगी प्रोजेक्ट में ले जाना चाहता है, जहां से वह महंगी बिजली बेच सकेगा। अगस्त 2013 से अब तक प्रदेश 1147 करोड़ का घाटा उठा चुका है। ऑल इंडिया पॉवर इंजीनियर्स फेडरेशन ने इस मामले को पूरे देश के सामने लाने का फैसला किया है, जो जल्दी ही बड़े आंदोलन के रूप में दिखेगा।
7 राज्यों को हुए नुकसान का मुद्दा उठाया
ऑल इंडिया पॉवर इंजीनियर्स फेडरेशन ने केंद्रीय ऊर्जा मंत्री को लिखे पत्र में रिलायंस पॉवर के सासन प्लांट से कम उत्पादन के चलते 7 राज्यों को हुए नुकसान का मुद्दा उठाया है। गौरतलब है कि सासन प्लांट की पहली इकाई में अगस्त 2013 में कमर्शियल ऑपरेशन शुरू हुआ था। तब से अभी तक इसकी एक भी इकाई सतत् 95 प्रतिशत क्षमता पर नहीं चलाई गई। आरोप है कि ऐसा जान-बूझकर किया जा रहा है, ताकि बाद में बचे कोयले को चितरंगी के मर्चेंट पॉवर प्लांट में उपयोग में लाया जा सके। अधिक मुनाफा कमाया जा सके। जानकारी है कि इस कंपनी को भारत सरकार द्वारा आवश्यकता से अधिक क्षमता का कोल रिजर्व आवंटित किया जा चुका है।
अब तक लगभग 3058 करोड़ रुपए का नुकसान
इस गड़बड़ी के चलते 7 राज्यों को अब तक लगभग 3058 करोड़ रुपए का नुकसान हो चुका है, क्योंकि उक्त बिजली न मिलने से ये राज्य अन्य स्रोतों से महंगी बिजली खरीद रहे हैं। इसमें मप्र को सबसे ज्यादा 1147 करोड़ रुपए का घाटा हुआ है। इस पत्र के माध्यम से ऑल इंडिया पॉवर इंजीनियर्स फेडरेशन ने मांग की है कि क्षमता का 95 प्रतिशत उत्पादन करने के लिए उक्त फर्म को नोटिस दिया जाए और 95 प्रतिशत उत्पादन न कर पाने की स्थिति में शेष कोयले का आवंटन कोल इंडिया को दिया जाए। साथ ही पूरे प्रकरण पर ऑल इंडिया पॉवर इंजीनियर्स फेडरेशन द्वारा श्वेत-पत्र भी जारी किया गया है। उल्लेखनीय है कि सरकार के दबाव और औद्योगिक जगत में छिछालेदर के बाद आखिरकार 22 अप्रैल 2015 को रिलायंस पावर ने 3960 मेगावाट क्षमता वाले सासन पावर प्रोजेक्ट की छठी यूनिट भी शुरू हो गई। इसके साथ ही 3960 मेगावाट क्षमता वाले इस प्लांट ने कॉमर्शियल आपरेशन भी शुरू कर दिया। कंपनी ने दावा किया है कि पावर परचेज अग्रीमेंट के अनुसार तय हुई अवधि से एक साल पहले प्लांट ने कॉमर्शियल आपरेशन करना शुरू कर दिया। कंपनी ने इसे अपनी उपलब्धि बताया है। अब रिलायंस पॉवर लिमिटेड कुल क्षमता बढ़कर 5945 मेगावाट हो गई है, जिसमें 5760 मेगावाट थर्मल और 185 मेगावाट रिन्यूअबल एनर्जी पर आधारित है। सासन अल्ट्रा मेगा पॉवर प्रोजेक्ट विश्व की सबसे बड़ी इंटीग्रेटिड पॉवर प्लांट और कोल माइन प्रोजेक्ट है और इसमें कुल 27000 करोड़ रुपए का निवेश किया गया है। लेकिन इस कंपनी ने जिस तरह समय-समय पर अपने प्लांट को ठप कर सरकारों को चूना लगाया है, उसके खिलाफ किसी भी सरकार ने अभी तक कोई भी कड़ा कदम नहीं उठाया है।
जानबूझकर कम बिजली उत्पादन कर रहा रिलायंस
बिजली संकट से जूझते कई प्रदेश को और संकट में डालने के लिए जिम्मेदार मानते हुए ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन ने रिलायंस पावर की सासन परियोजना के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है। केंद्रीय ऊर्जा मंत्री और मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, उत्तराखंड, पंजाब, राजस्थान और दिल्ली के मुख्य मंत्रियों को पत्र लिखकर फेडरेशन ने दावा किया है कि रिलायंस जानबूझकर सासन परियोजना से कम बिजली का उत्पादन कर रहा है। ऐसा इसलिए किया जा रहा है जिससे सभी सरकारें बिजली संकट से बचने के लिए रिलायंस के दूसरे पावर प्लांटों से महंगी दरों पर बिजली खरीदें। मप्र के अलावा यूपी को सासन से कम बिजली मिलने के चलते लगभग पांच सौ करोड़ की चपत लगी है। ऐसे में इस नुकसान की वसूली रिलायंस से की जानी चाहिए और सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए। दरअसल, सासन अल्ट्रा मेगा पावर प्रोजेक्ट प्रतिस्पर्धात्मक बिडिंग के जरिए रिलायंस को दिया गया था। 16 अगस्त 2013 को सासन की पहली परियोजना चली। फेडरेशन के अध्यक्ष शैलेंद्र दुबे का कहना है कि 16 अगस्त 2013 से 31 मार्च 2015 तक मात्र 65.42 फीसदी प्लांट लोड फैक्टर पर यह परियोजना चली, जबकि एनटीपीसी और अन्य समान प्लांट 95 फीसदी पीएलएफ पर चल रहे हैं। ऐसे में 95 फीसदी से कम पीएलएफ के चलते राज्यों को 7,647 मिलियन यूनिट कम बिजली मिली। फेडरेशन ने दावा किया कि कम बिजली मिलने के कारण मध्य प्रदेश, पंजाब, यूपी, दिल्ली राजस्थान, हरियाणा और उत्तराखंड को लगभग तीन हजार करोड़ रुपए से अधिक का नुकसान हुआ है। इतने भारी नुकसान के बावजूद किसी भी प्रदेश के मुख्यमंत्री ने मामले में आपत्ति नहीं की। फेडरेशन ने अब राज्य सरकारों से प्रभावी कदम उठाने की मांग की है जिससे बिजली संकट से ग्रस्त प्रदेशों को राहत मिल सके।
1.19 प्रति यूनिट की दर पर मिलनी है बिजली
सासन परियोजना से 1.19 रुपए प्रति यूनिट की दर पर राज्यों को बिजली मिलनी है, जिसमें पहले वर्ष की दर मात्र 70 पैसे प्रति यूनिट है। फेडरेशन के अध्यक्ष शैलेंद्र दुबे कहते हैं कि इतनी सस्ती दर पर बिजली मिलने पर राज्यों को ज्यादा बजट अतिरिक्त बिजली खरीद के लिए नहीं खर्च करना पड़ेगा। लेकिन सासन में कम उत्पादन और सप्लाई की वजह से राज्यों को लगभग पांच रुपए प्रति यूनिट की दर पर बाजार से बिजली खरीदनी पड़ रही है। कम उत्पादन की वजह से राज्यों को करीब 7,647 मिलियन यूनिट कम बिजली मिलने के कारण राज्यों को तीन हजार करोड़ रुपए से अधिक की क्षति हुई है। करार के अनुसार, सासन बिजली घर से पैदा होने वाली कुल बिजली में मप्र को 37.5 फीसदी, पंजाब को 15 फीसदी, यूपी को 12.5 फीसदी, दिल्ली को 11.25 फीसदी, हरियाणा को 11.25 फीसदी, राजस्थान को 10 फीसदी और उत्तराखंड को 2.5 फीसदी बिजली मिलती है। 16 अगस्त 2013 से 31 मार्च 2015 तक यूपी को 95 फीसदी से कम बिजली मिलने के कारण 955.88 मिलियन यूनिट का नुकसान हुआ, जिसका मूल्य 382 करोड़ रुपए है।
महंगी दरों पर खरीदनी पड़ रही बिजली
रिलायंस के सासन पावर प्लांट से सस्ती दरों पर बिजली नहीं मिल पाने की वजह से यूपी को रिलायंस की ही रोजा परियोजना से लगभग छह रुपए प्रति यूनिट पर बिजली खरीदना पड़ रही है। यदि इसे आधार माना जाए तो सासन से 70 पैसे प्रति यूनिट की बिजली नहीं मिल पाने पर होने वाली क्षति पांच सौ करोड़ रुपए से अधिक की है। ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन ने मांग की है कि केन्द्र सरकार रिलायंस को नोटिस दे कि यदि 95 फीसदी पीएलएफ पर प्लांट न चलाया गया तो कोयला ब्लॉक का आवंटन घटा कर शेष कोयला कोल इंडिया लिमिटेड को सरकारी बिजली घरों के उपयोग के लिए दे दिया जाएगा। फेडरेशन ने यह भी मांग की है कि सातों राज्यों का एक मॉनिटरिंग ग्रुप बनाया जाए, जो सासन से जानबूझ कर किए जा रहे कम उत्पादन की जांच करे और रिलायंस से दंड वसूलने का प्रस्ताव दे।
रिलायंस के चलते हो रहा बिजली संकट
आल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन ने मध्य प्रदेश की सासन परियोजना से कम बिजली मिलने से होने वाली क्षति की भरपाई रिलायंस से कराने की मांग की है। साथ ही कठोर कार्यवाही के लिए सरकारों से प्रभावी हस्तक्षेप करने की अपील की है। फेडरेशन ने आरोप लगाया है कि कम टैरिफ होने से रिलायंस जान-बूझकर सासन बिजलीघर की इकाई नहीं चला रहा है जो अत्यंत गंभीर मामला है। पत्र में बताया गया है कि करार के मुताबिक बिजली न मिलने से प्रदेश को महंगी दर से बिजली खरीदनी पड़ी। इससे अकेले उत्तर प्रदेश को 41 करोड़ रुपए की चपत लगी है। फेडरेशन के सेक्रेटरी जनरल शैलेंद्र दुबे ने पत्र लिखकर प्रभावी हस्तक्षेप की अपील की है। पत्र में उन्होंने लिखा है कि रिलायंस की सासन परियोजना से यूपी, एमपी, पंजाब, दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान और उत्तराखंड को बिजली मिलनी है। करार के अनुसार पहले वर्ष में मिलने वाली बिजली का मूल्य मात्र 69.80 पैसे प्रति यूनिट है। सासन की पहली इकाई चार माह विलंब से 16 अगस्त, 2013 को चली है। आंकड़ों के अनुसार 16 अगस्त से 24 अक्तूबर तक सासन की इकाई से 27.72 प्रतिशत प्लांट लोड फैक्टर (पीएलएफ) पर मात्र 288.922 मिलियन यूनिट बिजली पैदा हुई। जबकि 100 प्रतिशत पीएलएफ पर इकाई चलाने से 1042.272 मिलियन यूनिट बिजली पैदा होनी चाहिए थी। दुबे ने बताया कि कम उत्पादन होने से प्रदेशों को इस अवधि में आवंटन से कम बिजली मिली है।
प्रोजेक्ट शुरू होने से पहले लग चुका है 1252 करोड़ का चूना
रिलायंस पावर के स्वामित्व वाले सासन पावर लिमिटेड के सासन प्रोजेक्ट के शुरू होने से पहले ही मप्र सरकार को 1252 करोड़ का चूना लग चुका है। भारत के महालेखा परीक्षक ने भी गत वर्ष रिलायंस पावर के स्वामित्व वाले सासन प्रोजेक्ट के लिए अवांछित सहयोग देने पर पर्यावरण मंत्रालय की खिंचाई की थी। अब कैग ने बताया है, कि इस प्रोजेक्ट को 15 माह देरी से प्रारंभ किए जाने के कारण मध्यप्रदेश को 1252 करोड़ रुपए अधिक चुकाकर बिजली खरीदनी पड़ी है।
मध्यप्रदेश की जमीन पर सासन प्रोजेक्ट बनाया जा रहा था उस वक्त कैग ने कई कमियां निकाली थीं और बताया था कि किस तरह वन संरक्षण नियम 1980 का उल्लंघन इस 1384.96 एकड़ प्रोजेक्ट को स्थापित करने में किया गया था। अब नए सिरे से कैग की रिपोर्ट में बताया गया है कि जो बिजली इस प्रोजेक्ट से 70 पैसे प्रति यूनिट मिल सकती थी। उसे 3.50 रुपए प्रति यूनिट की दर से लगातार 15 महीने खरीदकर उपभोक्ताओं को दिया गया। इस प्रकार 447.14 करोड़ यूनिट बिजली पर प्रति यूनिट 2.80 पैसे का अधिक भुगतान करना पड़ा। जिससे 1252 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है।
20 हजार करोड़ रुपए के इस प्रोजेक्ट की क्षमता 3960 मेगावाट बिजली उत्पादन की है, इसमें 6 इकाईयां लगी हुई हंै और प्रत्येक इकाई 660 मेगावाट बिजली पैदा करने में सक्षम है। इसमें से मप्र को प्रत्येक इकाई से 247 मेगावाट बिजली मिलती है और कुल 1482 मेगावाट बिजली वर्ष 2012 से ही मिलनी थी, लेकिन यह बिजली अगस्त 2013 से तकरीबन 15 माह विलंब से मिली और घाटा हो गया। हालांकि पावर मैनेजमेंट कंपनी इसे घाटा नहीं मानती। कंपनी के अधिकारियों का कहना है कि पहले यह इकाई मई 2012 में चालू होने का अनुमान था, लेकिन केंद्र सरकार द्वारा जमीन आवंटन में विलंब होने के कारण उत्पादन में देरी हुई इसलिए प्रोजेक्ट पिछड़ गया। महंगी दर पर बिजली खरीदने के अलावा प्रदेश सरकार के पास कोई विकल्प नहीं था। याद रहे कि सासन प्रोजेक्ट अनिल अंबानी के स्वामित्व वाले समूह ने बनाया है। पहले यह पावर फाइनेंस कार्पोरेशन की पूर्णता स्वामित्व वाली सब्सिडरी हुआ करता था, बाद में इसे रिलायंस पावर लिमिटेड को ट्रांसफर किया गया। वन अधिनियम 1980 के अनुसार इस तरह के प्रोजेक्ट बनाने के लिए जो वन भूमि अधिग्रहित की जाती है। उसके एवज में उतनी ही गैर वन भूमि वन विभाग को देनी पड़ती है ताकि वहां जंगल फिर से लगाया जा सके। उस समय मप्र के प्रमुख सचिव ने एक सर्टिफिकेट जारी करते हुए कहा था कि सीधी जिले में सरकार के पास कोई गैर वन भूमि नहीं है। इस सर्टिफिकेट को आधार बनाकर सासन पावर लिमिटेड अधिग्रहित भूमि के एवज में गैर वन भूमि देने से बच गया। कैग ने इस करतूत को उस समय ही पकड़ लिया था, लेकिन लीपापोती कर दी गई। देखा जाए तो इस प्रोजेक्ट के कुछ किलोमीटर के दायरे में ही वह भूमि दी जानी चाहिए थी, जिस पर वृक्षारोपण किया जा सकता है। कैग का कहना है, कि न तो सरकार न ही मंत्रालय ने वन अधिनियम के प्रावधानों को लागू करवाने में कोई रुचि दिखाई जिसके चलते इस प्रोजेक्ट में भूमि का घालमेल हुआ। बहरहाल देरी किसी भी कारण से हुई हो, सासन प्रोजेक्ट में समय पर बिजली न मिल पाने के कारण प्रदेश सरकार को जो राजस्व हानि हुई है, उसकी वसूली क्या संभव है देखा जाए तो इसमें किसी को भी दोषी नहीं ठहराया जाएगा, क्योंकि सभी अपना गला बचाने में माहिर हैं। जहां तक रिलायंस जैसी कंपनियों का प्रश्न है, उन्हें शासन का वरदहस्त पहले से ही प्राप्त है इसलिए उनका कुछ बिगड़ता नहीं है।
21 माह तक महंगी बिजली खरीदना पड़ा मप्र को
अगस्त 2013 से लेकर 22 अप्रैल 2015 तक प्रोजेक्ट की 5 इकाईयों से उत्पादन हो रहा है। इसका मतलब यह कि लगभग 660 मेगावाट बिजली मप्र सरकार को महंगे मोल की खरीदनी पड़ी। यह पहला अवसर नहीं है जब मप्र में रिलायंस की यह परियोजना विवादों में आई है, इससे पहले भी नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने छत्रसाल कोल माइन से कोयला निकालने के रिलायंस पावर के निर्णय को चुनौती दी थी। जिस जल्दबाजी में बिजली प्राप्त करने के लिए ऐसे बड़े प्रोजेक्ट्स को मानकों का उल्लंघन करते हुए अनापेक्षित सहयोग प्रदान किया जा रहा है। उससे प्रदेश का अहित ही होता है। इतना होने के बावजूद भी निर्धारित कोटे की बिजली भी प्रदेश को नहीं दी जाती है।
इधर, सेंट्रल ट्रिब्यूनल ने औद्योगिक केंद्र विकास निगम (एकेवीएन) की अपील खारिज करते हुए सेज इकाइयों को 42 करोड़ की राशि वापस लौटाने के आदेश दिए हैं। यह राशि एकेवीएन द्वारा वर्ष 2010 से 2012 के बीच इकाईयों से बिजली के बिलों में वसूली गई थी। पीथमपुर स्थित विशेष आर्थिक प्रेक्षत्र की बिजली व्यवस्था एकेवीएन द्वारा देखी जाती है। इसके लिए एकेवीएन को निर्धारित कोटे के अनुसार बिजली रियायती दरों पर दी जाती है। एकेवीएन को प्रतिवर्ष बिजली की दरें विद्युत नियामक आयोग से तय करवाना होती है। निगम अफसरों द्वारा दो वर्षों तक औसत आधार पर दरें बढ़ा कर बिलिंग की जाती रही। इसके बाद एआरआर आयोग के समक्ष पेश की गई। सुनवाई के बाद आयोग ने अधिक वसूली गई राशि वापस लौटाने के आदेश दिए।
परचेस एग्रीमेंट का उल्लंघन
पावर रेगुलेटर सेंट्रल इलेक्ट्रिसिटी रेगुलेटरी कमीशन (सीईआरसी) ने कहा था कि यह प्रोजेक्ट ऑपरेशनल नहीं है। उसके मुताबिक, इसने 2013 तक तय टेस्टिंग मानकों को पूरा नहीं किया था। सासन यूएमपीपी 4,000 मेगावाट कैपेसिटी वाला प्लांट है। इसकी 600 मेगावाट की पहली यूनिट कमर्शियल तौर पर ऑपरेशनल है। इसे इंडिपेंडेंट इंजीनियर (आईटी) ने 30 मार्च 2013 को सर्टिफाई किया था। इसे प्रोक्योरर और सासन पावर ने अप्वाइंट किया था। इसे सभी 14 प्रोक्योरर ने लिखित में माना था। वहीं, रेगुलेटर ने कंपनी को यूनिट की नए सिरे से टेस्टिंग के लिए कहा है। उसका कहना है कि तभी इस प्लांट को फॉर्मल तौर पर ऑपरेशनल घोषित किया जाएगा। रेगुलेटर के मुताबिक, कंपनी ने पावर परचेज एग्रीमेंट की शर्तों के हिसाब से काम नहीं किया है। रेगुलेटर ने अपने ऑर्डर में कहा है कि यह पता चला है कि सासन पावर लिमिटेड (एसपीएल) ने डब्ल्यूआरएलडीसी की ईमेल (30 मार्च 2013) में पावर परचेज एग्रीमेंट (पीपीए) के तहत सुझाए गए वाजिब कदम उठाने के बजाए 31 मार्च 2013 को एक यूनिट का कमर्शियल ऑपरेशन शुरू कर दिया। उल्लेखनीय है कि सासन अल्ट्रा मेगा पावर प्रोजेक्ट को लेकर कैग ने पर्यावरण मंत्रालय की कड़ी खिंचाई की थी। कैग का कहना था कि पर्यावरण मंत्रालय ने रिलायंस पावर लिमिटेड के इस प्रोजेक्ट को गैर वाजिब रियायतें दी हैं। कैग ने संसद में पेश अपनी रिपोर्ट में कहा था कि मुख्य सचिव द्वारा जारी एक अनुचित सर्टिफिकेट के आधार पर पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने रिलायंस पावर को 1,384.96 हेक्टेयर गैर-वनीय भूमि मुहैया न कराने की छूट दे दी थी। हालांकि, रिलायंस पावर ने कैग के इस अवलोकन से असहमति जताई थी। इस कंपनी ने कहा था कि 4,000 मेगावाट के सासन अल्ट्रा मेगा पावर प्रोजेक्ट के लिए वन भूमि अधिग्रहीत करते वक्त उसे कोई भी रियायत नहीं दी गई थी।
एक कोल ब्लॉक को रद्द किया
सरकार ने अनिल अंबानी ग्रुप के सासन अल्ट्रा मेगा पावर प्रॉजेक्ट से जुड़े एक कोल ब्लॉक को रद्द करने का निर्णय लिया है। सरकार का यह फैसला सुप्रीम कोर्ट के उस निर्देश के अनुसार है जिसमें अन्य प्लांटों के लिए इस प्रकार की यूनिटों से अधिक कोयले के कमर्शल इस्तेमाल पर रोक लगाने के लिए कहा गया है। इस निर्णय में अन्य प्लांटों के लिए 4,000 मेगावाट प्रॉजेक्ट के अन्य खानों के कोयले के इस्तेमाल से भी मना किया गया है। इस आदेश में रिलायंस पावर के सासन प्रॉजेक्ट को आरंभ में दी गई खास व्यवस्था को भी समाप्त किया गया है। इससे रिलायंस को 21,000 करोड़ रुपए के अपने चित्रांगी पॉवर प्रॉजेक्ट को शुरू करने में मदद मिलती।
हाल ही में कंपनी ने 36,000 करोड़ रुपये के तिलैया प्रॉजेक्ट को भी रद्द कर दिया जबकि कृष्णपट्टम प्रॉजेक्ट पर कोयल के निर्यात मूल्य के बहुत ही ज्यादा बढ़ जाने के कारण कोई खास प्रगति नहीं हुई है। एक सरकारी अधिकारी ने बताया, सरकार का नजरिया है कि इस निर्णय में संलिप्त पक्षों पर ध्यान न देकर राष्ट्रीय हित के लिए नियमों का सख्ती से पालन किया जाए। संसद की पीएसी ने भी अतिरिक्त कोयले के इस्तेमाल के बारे में उल्लेख किया था। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल 25 अगस्त को व्यवस्था दी थी कि यूएमपीपी को जो कोयला भंडारों का आवंटन किया गया है उसका इस्तेमाल सिर्फ यूएमपीपी के लिए ही किया जाएगा और कोयले के कमर्शल इस्तेमाल की अनुमति नहीं दी जा सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने कई कंपनियों को आवंटित कोयला खानों को रद्द कर दिया। सुप्रीम कोर्ट की व्यवस्था ने कोयला मंत्री को यूएमपीपी से जुड़े खानों पर फिर से गौर करने के लिए प्रेरित किया।
कोयला मंत्रालय के एक सीनियर अधिकारी ने बताया, यह निर्णय पिछले साल अगस्त में सुप्रीम कोर्ट के ऑर्डर के मद्देनजर लिया गया है। सरकार ने अतिरिक्त कोयले के इस्तेमाल के लिए रिलायंस पावर को दिए गए अधिकार को वापस लेने का निर्णय किया है। छत्रसाल कोयला भंडार के आवंटन को रद्द कर दिया क्योंकि यह सरप्लस है और मोहर एवं मोहर अमलोहरी कोयल भंडारों में कोयला का इस्तेमाल सासन युएमपीपी तक ही सीमित रहेगा।
मप्र में अपना कारोबार समेटने में जुटी रिलायंस इंडस्ट्री
मध्यप्रदेश को उद्योग के सब्जबाग दिखाकर रिलायंस गु्रप चंपत होने का प्रयास कर रहा है। केंद्र सरकार ने कोल ब्लॉक आवंटन निरस्त कर दिए तो रिलायंस सरकारी खजाने में जमा 9.51 करोड़ की धरोहर राशि वापस लेने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रही है। फाइल सीएम सचिवालय से चलकर रैवेन्यू विभाग तक पहुंच चुकी है और रिलायंस के कर्मचारी बार-बार सीएम सचिवालय से लेकर रैवेन्यू विभाग तक फाइल के बारे में पूछताछ कर रहे हैं। मध्यप्रदेश में कुछ भी हो सकता है।
मध्यप्रदेश में अरबों लगाने का झांसा देकर सरकार से जमीन लेने वाली रिलायंस इंडस्ट्री अब अपना कारोबार समेट रही है और सरकार के पास जमा पैसा भी वापस चाहती है। रिलांयस ने सिंगरौली जिले के ग्राम मोहर अमरोटी में 125 हैक्टेयर जमीन कोयला उत्खनन के लिए ली थी लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद केंद्र सरकार ने कोल ब्लॉक आवंटन निरस्त कर दिया, अब यह जमीन रिलायंस के किसी काम की नहीं है। इसलिए रिलायंस सरकार को यह जमीन लौटाना चाहती है पर सवाल यह उठता है कि रिलांयस से जमीन वापस लेना तभी संभव है जब वहां कोई सरकारी प्रोजेक्ट आ रहा हो।
मध्यप्रदेश सरकार तो वैसे भी निजीकरण को बढ़ावा दे रही है इसलिए वह इस प्रोजेक्ट में हाथ नहीं डाल सकती। रिलायंस को जमीन से मतलब नहीं है, जमीन उसे मिले तो उसका लैंडबैंक मजबूत ही होगा लेकिन रिलायंस की चालाकी यह है कि वह सरकारी खजाने में जमा 9.51 करोड़ की धरोहर राशि वापस लेना चाहती है। इसके लिए रिलायंस के कर्मचारी मंत्रालय के चक्कर काट रहे हैं। रिलायंस का मकसद दोनोंं होथों में मिठाई रखने का है- रुपया वापस मिल जाए और जमीन भी सुरक्षित रहे। अब देखना यह है कि रिलायंस को लाभ पहुंचाने के लिए सरकार अपने ही नियमों को ताक में रखती है अथवा नहीं। वर्ष 2007 में जब अगस्त माह में रिलायंस पावर लिमिटेड ने सासन पावर लिमिटेड का अधिग्रहण किया था, उस समय केंद्र में यूपीए सरकार ने बिना आवश्यक प्रक्रिया अपनाए कई बड़े औद्योगिक घरानों को कोल ब्लॉक आवंटित कर दिए थे। रिलायंस जो 4 हजार मेगावॉट का विशाल पावर प्रोजेक्ट मध्यप्रदेश के शासन में चला रहा है, उसके लिए कोयले की आपूर्ति हेतु उसने भी बोली लगाई थी लेकिन अब जिस खदान के लिए बोली लगाई गई उसमें 5 इकाइयों से 3 हजार से अधिक मेगावॉट के करीब विद्युत उत्पादन हो रहा है। ऐसी स्थिति में प्लांट को अधिक उत्पादन के लिए कोयले की जरूरत कोल ब्लॉक से ही पूरी हो सकती है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के रुख के बाद कोयला मिलना संदिग्ध हो गया है। इसलिए रिलायंस सिंगरौली में ली गई जमीन में रुचि नहीं दिखा रही। दरअसल रिलायंस की 4 हजार मेगावॉट बिजली में से कुछ बिजली मध्यप्रदेश को अत्यंत रियायती दरों पर मिल सकती है। इसीलिए मध्यप्रदेश में रिलायंस को इतनी रियायत दी जा रही है। लेकिन यह रियायत राज्य सरकार को महंगी पड़ सकती है।
धीरूभाई अंबानी यूनिवर्सिटी बनाने से इंकार
भोपाल के अचारपुरा गांव में बनने वाली धीरूभाई अंबानी यूनिवर्सिटी से अचानक इंकार करने पर इसे अनिल अंबानी का सरकार के साथ धोखा बताया जा रहा है। राज्य सरकार ने मात्र तीन करोड़ रूपए में लगभग पचास करोड़ रुपए की जमीन धीरूभाई अंबानी न्यास को दी थी। अंबानी के कहने पर सरकार ने एयरपोर्ट से अचारपुरा तक पांच किलोमीटर सड़क भी बना दी, लेकिन अब अंबानी न केवल यूनिवर्सिटी खोलने से मना कर रहे हैं, बल्कि इस प्रोजेक्ट पर खर्च दस करोड़ रुपए भी मांग रहे हैं। राज्य सरकार के आमंत्रण पर 2008 में अनिल अंबानी भोपाल पहुंचे थे। उन्होंने मुख्यमंत्री निवास पर सीएम के साथ नाश्ता करते - करते धीरूभाई अंबानी ट्रस्ट की ओर से अचारपुरा में विश्वविद्यालय खोलने के प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किये थे। पत्रकारों और अफसरों की उपस्थिति में अनिल अंबानी को 110 एकड़ जमीन के कागजात सौंपे गए। अंबानी ने भी वायदा किया कि अगले दो तीन साल में यूनिवर्सिटी शुरू कर देंगे।
अंबानी ने जमीन का आधिपत्य लेते ही वहां जैसे ही बाउंड्रीवाल का काम शुरू किया तथा राज्य सरकार ने अचारपुरा से एयरपोर्ट तक सड़क बनाना शुरू की तो अचारपुरा और मणीखेड़ी में दस लाख रूपए एकड़ की जमीन चालीस से पचास एकड़ तक पहुंच गई। शिक्षा व्यावसाय से जुड़े कई संस्थानों ने भी अंबानी को देखते हुए वहां एजूकेशन हब में धड़ाधड़ जमीनें आबंटित करा ली। अंबानी ने इसी माह राज्य सरकार को पत्र भेजकर इस प्रोजेक्ट से हटने की सूचना दी है। अंबानी के इस पत्र को मंत्रालय के अधिकारी धोखे के रूप में देख रहे हैं। चर्चा है कि भोपाल में पहले से जो कॉलेज चल रहे हैं उन्हे ही छात्र नहीं मिल रहे हैं, ऐसे में अंबानी को यूनिवर्सिटी की सफलता पर संदेह होने लगा था। प्रदेश में महर्षि योगी विश्व विद्यालय के लगभग फेल हो चुका है। यह भी चर्चा है कि अंबानी प्रदेश में चल रहे अपने अन्य प्रोजेक्टों में अनुमतियों को लेकर सरकार की टालने वाली नीति से दुखी है। इसी कारण उन्होंने यूनिवर्सिटी से हाथ खीचा है।
अब स्नैपडील भी दिखा रही है सुनहरे सपने
जानी-मानी ऑनलाइन कम्पनी स्नैपडील भी अब मप्र को सुनहरे सपने दिखा रही है। कंपनी के सीईओ कुणाल बहल अभी 20 मई को भोपाल में आयोजित शिवराज सरकार के युवा उद्यमी पंचायत में ना सिर्फ शामिल हुए बल्कि उन्होंने शासन के साथ एमओयू भी साइन किया। स्नैपडील के मामले में चौंकाने वाला तथ्य यह सामने आया है कि महाराष्ट्र सरकार के खाद्य एवं औषधि प्रशासन ने कुणाल बहल सहित अन्य निदेशकों के खिलाफ गैर जमानती धाराओं में पनवेल थाने पर एफआईआर दर्ज करवाई है। यह एफआईआर स्नैपडील डॉट कॉम द्वारा आपत्तिजनक दवाइयां बेचने के मामले में दर्ज हुई है, जिसकी पुलिसिया जांच शुरू हो गई, जिसके चलते संभव है कि स्नैपडील के कर्ताधर्ताओं की गिरफ्तारी भी हो सकती है। स्नैपडील देश की दूसरी सबसे बड़ी ऑनलाइन सामान विक्रेता कंपनी है। इसके सीईओ कुणाल बहल व्हार्टन के स्नातक हैं। उन्होंने 2010 में इस कंपनी की स्थापना की थी।
यह पहला मौका नहीं है जब ऑनलाइन कम्पनी की इस तरह की गड़बड़ी सामने आई है। पूर्व में भी कुछ बड़ी कम्पनियों के खिलाफ इसी तरह के प्रकरण दर्ज हुए, जिसके बाद केन्द्र सरकार ने ऐसी ई-कॉमर्स वाली कम्पनियों पर निगाह भी रखना शुरू किया है। इसी कड़ी में स्नैपडील का भी नाम सामने आया है। अभी पिछले दिनों ही महाराष्ट्र सरकार के खाद्य एवं औषधि प्रशासन यानि एफडीए ने चिकित्सकों के पर्चे पर बेची जाने वाली दवाइयों को ऑनलाइन बिकते पाया और उसके उत्तर मुंबई कार्यालय पर छापा भी डाला गया। इसके पश्चात स्नैपडील के कुणाल बहल और कम्पनी के अन्य निदेशकों के खिलाफ एफडीए ने रायगढ़ जिले के पनवेल पुलिस थाने पर एफआईआर दर्ज करवा दी। यह एफआईआर औषधि एवं सौंदर्य सामग्री कानून 1940 और औषधि एवं चमत्कारी उपाय (आपत्तिजनक विज्ञापन) कानून 1954 के प्रावधानों के तहत दर्ज करवाई गई और जो धथाराओं इसमें लगाई गईं वे संज्ञेय है यानि उनमें जमानत नहीं मिल सकती। ये एफआईआर एफडीए के वरिष्ठ आईएएस अधिकारी और आयुक्त हर्षदीप काम्बले के निर्देश पर दर्ज करवाई गई। सूत्रों का कहना है कि स्नैपडील डॉट कॉम ने कम्पनी कानून के तहत जेस्पर इन्फोटेक प्रा.लि. बनाई जो भारत के दवा विक्रेताओं के साथ करार कर उनकी दवाएं ऑनलाइन बेचती है। ऐसी 45 दवा भी बिक्री के लिए रख दी गई जिनमें आपत्तिजनक दावे किए गए और जो औषधि एवं चमत्कारी उपाय कानून 1954 के खिलाफ है। इनमें सिलडेनॉफिल साइरेट जैसी टैबलेट भी शामिल है जो मनोचिकित्सकों, यौन रोगियों और त्वचा चिकित्सकों द्वारा सिर्फ अधिकृत पर्चे पर ही बेची जा सकती है, लेकिन स्नैपडील द्वारा उसे सहजता से ऑनलाइन उपलब्ध करवाया जाता रहा। हालांकि जांच के दौरान कम्पनी ने इन दवाइयों को ऑनलाइन बिक्री से तुरंत हटा भी लिया, लेकिन एफडीए ने बाद में यह भी पाया कि लिखित वायदा करने के बाद भी स्नैपडील 'आई पिलÓ और 'अनवांटेड 72Ó जैसी दवा बेचते भी पाया गया। इस संबंध में भी अलग से कार्रवाई की जा रही है। पनवेल थाने के अफसर मनीष कोलहटकर से अवश्य पूछा गया तो उन्होंने स्वीकार किया कि स्नैपडील के कुणाल बहल और अन्य के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है, जिसकी जांच-पड़ताल की जा रही है और जांच में तथ्य सही पाए गए तो कुणाल बहल सहित अन्य की गिरफ्तारियां भी होंगी। चूंकि गैर जमानती धाराओं में प्रकरण दर्ज हुआ है लिहाजा अभी कुणाल बहल को अग्रिम जमानत भी नहीं मिल सकती। गौरतलब है कि एफडीए ने पिछले हफ्ते स्नैपडील के गोरगांव स्थित कार्यालय पर छापा मारा था। स्नैपडील पर विगोरा टैबलेट, एस्कोरिल कफ सीरप, अनवांटेड 72 और आइ-पिल जैसी दवाएं ऑनलाइन बेचने का आरोप था। जबकि ये दवाएं डॉक्टर की सलाह पर ही खरीदी जानी चाहिए। ऐसी दवाओं की ऑनलाइन बिक्री खरीदार के लिए भी नुकसानदेह हो सकती हैं। ड्रग एंड कॉस्मेटिक एक्ट-1940 के सेक्शन 18(सी) के अनुसार सिर्फ लाइसेंस प्राप्त खुदरा दवा विक्रेता ही चिकित्सक की लिखित सलाह पर ये दवाएं बेच सकते हैं। एफडीए कमिश्नर हर्षदीप कांबले के अनुसार इस तरह की दवाओं की ऑनलाइन बिक्री गैरकानूनी है। कांबले ने बताया कि दूसरी ई-कामर्स कंपनियों जैसे फ्लिपकार्ट और अमेजान के खिलाफ भी जांच जारी है। अगर ये कंपनियां भी ऐसे काम करती पाई गईं, तो इनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।
बिना जांच पड़ताल मप्र ने कैसे कर लिया करार
अब यहां सवाल यह है कि जिस कम्पनी और उसके सीईओ के खिलाफ कुछ दिनों पूर्व ही महाराष्ट्र सरकार के एक जिम्मेदार महकमे खाद्य एवं औषधि प्रशासन ने एफआईआर दर्ज करवाई हो उसी के सीईओ के साथ मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार ने एमओयू कैसे साइन कर लिया? क्या प्रदेश के अफसरों ने मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान को भी अंधेरे में रखा, जिस तरह पूर्व में ये अफसर ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट में भी भूमाफियाओं और कई दागियों को उपकृत कर चुके हैं? भोपाल आए स्नैपडील के सीईओ कुणाल बहल को जबरदस्त पब्लिसिटी भी प्रदेश सरकार द्वारा दिलवाई गई और बकायदा मुख्यमंत्री की मौजूदगी में स्नैपडील और मध्यप्रदेश लघु उद्योग निगम के बीच एक एमओयू भी साइन किया गया, जिसमें कुणाल बहल के साथ निगम के प्रबंध संचालक बीएल कांताराव ने हस्ताक्षर किए। इस मौके पर मुख्यमंत्री के साथ वाणिज्य एवं उद्योगमंत्री यशोधराराजे सिंधिया और मुख्य सचिव एंटोनी जेसी डीसा भी मौजूद रहे। मध्यप्रदेश सरकार के जनसम्पर्क संचालनालय ने बकायदा इसका प्रेस नोट भी जारी किया और दावा किया कि प्रदेश के बुनकर और हस्त शिल्पियों द्वारा निर्मित उत्पादों का स्नैपडील के ऑनलाइन पोर्टल के माध्यम से विक्रय किया जाएगा। प्रदेश शासन ने यह भी कहा कि स्नैपडील देश की तेजी से बढ़ती ई-कॉमर्स कम्पनी है, जिसका वार्षिक विक्रय 3 बिलियन डॉलर यानि 30 हजार करोड़ है।
भोपाल के युवा उद्यमी पंचायत में बांटा था ज्ञान
मध्यप्रदेश सरकार ने अभी भोपाल में युवा उद्यमी पंचायत का आयोजन किया जिसमें सुक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों को कई तरह की सौगातें देने की घोषणा मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने की। इस अवसर पर स्नैपडील के सीईओ कुणाल बहल ने भी मीडिया के साथ-साथ युवा उद्यमियों को जबरदस्त ज्ञान बांटा, जिसमें उन्होंने बताया कि 5 बार असफल होने के बाद वे अपने छटवें बिजनेस मॉडल यानि ई-कॉमर्स में सफल हुए। वे प्रदेश के युवा उद्यमियों के उत्पादों को अपने ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध करवाएंगे। इसी तरह के इंटरव्यू कुणाल बहल के मीडिया में प्रमुखता से प्रकाशित हुए मगर महाराष्ट्र सरकार द्वारा दर्ज करवाई गई एफआईआर की सच्चाई किसी ने उजागर नहीं की।
मृगनयनी के प्रोडक्ट भी स्नैपडील पर
अधिकारियों का दावा है कि स्नैपडील और मध्यप्रदेश लघु उद्योग निगम के बीच हुए एमओयू के तहत प्रदेश के बुनकर और हस्तशिल्पियों द्वारा निर्मित उत्पादों का इस ऑनलाइन पोर्टल के माध्यम से विक्रय होगा। इस माध्यम से उत्पादों के विक्रय से प्रदेश के बुनकरों और हस्तशिल्पियों के उत्पादन में वृद्धि होगी। इससे प्रदेश के बुनकरों एवं हस्तशिल्पियों को स्व-रोजगार के नए अवसर उपलब्ध होंगे। बिना प्रचार-प्रसार और लागत बढ़ाये उत्पादों के विक्रय की सुविधा उपलब्ध होगी। जन-सामान्य को मृगनयनी जैसे प्रतिष्ठित ब्रांड का लाभ प्राप्त होगा। मृगनयनी और स्नैपडील दोनों के अनुभवों का लाभ बुनकरों और हस्तशिल्पियों को मिलेगा। ग्राहक को प्रतियोगी दरों पर उत्पाद उपलब्ध होगा। बिचौलियों के न होने से सीधे बुनकरों और हस्तशिल्पियों को फायदा होगा। इस पोर्टल के माध्यम से क्रेताओं को चौबीस घंटे और सातो दिन उत्पाद क्रय की सुविधा होगी। स्नैपडील कंपनी देश की तेजी से बढ़ रही है ई-कामर्स कंपनी है और जिसका वार्षिक विक्रय 3 बिलियन डालर है।

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