सोमवार, 2 जून 2014

चुनाव परिणाम से चकराया बलखडिय़ा...डाला पाठा के जंगलों में डेरा

मध्यप्रदेश-उत्तरप्रदेश के 300 गांवों में छाया खौफ
भोपाल। लोकसभा चुनाव में करीब आधा दर्जन से अधिक सीटों पर अपने मनपसंद उम्मीदवार की हार के बाद दस्यु सरगना स्वदेश सिंह बलखडिय़ा और उसका गिरोह चकरा गया है और बड़ी वारदात करने के लिए पूरे गैंग के साथ पाठा(उत्तर प्रदेश के बांदा-चित्रकूट और मध्य प्रदेश के सतना व रीवा के इस इलाके को पाठा के नाम से जाना जाता है। पाठा, जिसकी पहचान खाकी की फाइलों में खूंखार दस्यु गिरोहों की आरामगाह के रूप में होती आई है। ) के जंगलों में डेरा डाले हुए है। बुंदेलखंड के तराई वाले इन इलाकों के आसपास के क्षेत्रों में पडऩे वाली लोकसभा सीटों पर सपा और अपने अन्य कुछ पसंदीदा उम्मीदवारों को वोट देने के लिए बलखडिय़ा ने फरमान जारी किया था,लेकिन इस बार न तो मध्यप्रदेश और न ही उत्तरप्रदेश के लोगों ने उसकी सुनी। इसका परिणाम यह हुआ की जिन-जिन उम्मीदवारों को बलखडिय़ा ने वोट देने को कहा था उनकी हार हो गई। कई उम्मीदवार तो अपनी जमानत तक नहीं बचा सके। बताते हैं कि अपने उम्मीदवारों के हारने के बाद दस्यु सरगना ने तराई क्षेत्र में आने वाले 300 गांवों के लोगों का इसका परिणाम भुगतने की चुतावनी दी है। इससे इन गांवों में दहशत फैली हुई है। उल्लेखनीय है कि मप्र और उप्र में आने वाले तराई क्षेत्र के जंगलों में उत्पादित होने वाले तेंदूपत्ते की तुड़ाई और संग्रह को देखते हुए दस्यु गिरोह लेवी वसूलने के लिए हर साल इस समय सक्रिय हो जाता है। इस साल लोकसभा चुनाव होने के कारण क्षेत्र में केंद्रीय सुरक्षा बलों की मौजुदगी को देखते हुए 6 लाख का ईनामी स्वदेश सिंह बलखडिय़ा और उसका 30 सदस्यीय गिरोह अंडरग्राउंड ही रहा और अपना फरमान तेंदूपत्ता तुड़ाई का ठेका लेने वाले ठेकेदारों और वोटरों तक पहुंचाता रहा। अब जब चुनाव परिणाम आ गए हैं और उसने जिन लोगों को वोट दिलाने का ठेका लिया था,उनकी हार के बाद वह बिलबिला गया है। उसने पाठा क्षेत्र के लोगों को धमकाना शुरू कर दिया है।
9 करोड़ में लिया था ठेका
बताते हैं कि विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं ने थोकबंद वोट के लिए बलखडिय़ा को करीब 9 करोड़ रूपए दिए थे। बलखडिय़ा ने मप्र की रावा,सतना,सीधी,शहडोल और उप्र की मिर्जापुर,इटावा,बांदा सहित कुछ अन्य सीटों के लिए सौदा किया था,लेकिन जनता ने वोट की चोट ऐसी दी की उसके समर्थक नेता चारों खाने चित हो गए। बीहड़ों में आने वाले गांवों और आसपास के शहरी क्षेत्रों में लागों के इस बदले रूख को देखते हुए बलखडिय़ा अब हिसाब चुकाने की धमकी दे रहा है। पुलिस के एक आला अधिकारी बताते हैं कि इनामी डाकू बलखडिय़ा की हुकूमत बांदा और चित्रकूट के करीब 300 गांवों में चलती है। जो वो चाहता है, वही होता है। बीहड़ो में कुछ साल पहले तक डाकू ददुआ और ठोकिया की हुकूमत चलती थी। अब सुदेश पटेल उर्फ बलखडिय़ा की चल रही है। बलखडिय़ा की एक और पहचान आज पुलिस रिकार्ड में आईएस 262 के नाम से भी है। डाकू बलखडिय़ा के साथियों ने बीहड़ी गांवो में घूम-घूमकर एलान करना शुरू कर दिया है कि जिसने हमारे उम्मीदवार को वोट नहीं दिया है वे बुलेट खाने के लिए तैयार रहे। ठोकिया और रागिया के खात्मे के बाद गैंग लीडर बने बलखडिय़ा के पास न केवल तगड़ा मैन पावर है बल्कि अत्याधुनिक स्वचालित हथियारों का जखीरा भी है। गैंग के पास 2 स्टेनगन, 4 सेमी आटोमैटिक राईफल 5 श्रीनाटथ्री, 4 स्प्रिंगफील्ड राईफल, 8 राईफल 315 बोर, बाकी दोनाली, एक नाली 12 बोर, रिवाल्वर-पिस्टल, बम आदि है। बलखडिय़ा गैंग में 25 वर्षीय बबली कोल और 26 वर्षीय जुग्गी पटेल शार्प शूटर हैं और इन पर सरकार ने दो-दो लाख का इनाम घोषित किया है। यही वजह है कि पिछले दो साल से धड़ाधड़ लाशें गिराकर नरसंहार कर रहे बलखडिय़ा का खौफ आधा दर्जन संसदीय सीट पर सिर चढ़कर बोल रहा है। बांदा के बदौसा से लेकर चित्रकूट के बरगढ़ तक तकरीबन 300 गांवों में बलखडिय़ा की हुकूमत है। इनमें से अधिकांश इलाके के वो गांव शामिल हैं, जो विंध्य पर्वत श्रृंखलाओं से सटे जंगली इलाकों में हैं। इसके अलावा दर्जनों ऐसे गांव हैं, जहां पुलिस की आमदरफ्त कभी कभार ही होती है। विडंबना यह कि इन इलाकों के लोग शासन-सत्ता पर कम, डकैतों के रहमो करम पर ज्यादा जीते मरते हैं। चित्रकूट के पूर्व पुलिस उपाधीक्षक ओपी राय कहते हैं, बुंदेलखंड में पटेल (कुर्मी) समुदाय डकैत ददुआ को अपना हीरो मानता है। बीहड़ में दो दर्जन से ज्यादा छोटे-छोटे गैंग हैं, जिनकी कमान युवा डकैतों के हाथ में है। इनकी मुख्य गतिविधि अपहरण और सरकारी योजनाओं में लगे ठेकेदारों से पैसा वसूलना है। लेकिन लखनपुर गांव में रहने वाले शिवमोहन कहते हैं,विंध्य के आसपास बसे कुर्मीबहुल इलाकों में लोगों को डाकुओं का उतना खौफ नहीं, जितना कि पुलिस का है। पुलिस पटेल समुदाय के हर व्यक्ति को डकैतों का मददगार समझती है और प्रताडि़त करती है। पिछले दस साल में पुलिस इन इलाकों में 50 से ज्यादा युवाओं को भारतीय दंड संहिता की धारा 216 के तहत अपराधियों की मदद और संरक्षण देने के नाम पर जेल भेज चुकी है। लिहाजा मानिकपुर, मारकुंडी, बाहिलपुर, भरतकूप, फतेहगंज जैसे इलाकों में आधे से ज्यादा युवा पलायन कर चुके हैं।
अय्याशी के चक्कर में बलखडिय़ा
उत्तर प्रदेश-मध्य प्रदेश के सरहदी जिलों में खौफ का दूसरा नाम बन चुके डकैत सुदेश कुमार पटेल उर्फ बलखडिय़ा की जान भी लड़की की वजह से जाएगी? यह सवाल इनदिनों बुंदेलखंड में लोगों के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है। दरअसल, पिछले साल उत्तर प्रदेश के चित्रकूट जिले में दिल्ली पुलिस के एक सब इंस्पेक्टर को मौत के घाट उतारने वाले बलखडिय़ा ने अपने सौतेले भाई सुंदर पटेल की मौत के बाद कुछ साल पहले गिरोह की कमान संभाली थी। बुंदेलखंड में डकैतों पर नजर रखने वाले पुलिस वाले मानते हैं कि बलखडिय़ा अपने सौतेले भाई सुंदर पटेल की रास्ते पर ही चल रहा है। सुंदर की दो साल पहले सतना जिले में पुलिस से हुई मुठभेड़ में मौत हो गई थी। कई लोग दबी जुबान मानते हैं कि सुंदर की मौत अय्याशी के चलते हुए थी। बताया जाता है कि सुंदर पटेल की करीब एक दर्जन महिलाओं से दोस्ती थी। मोबाइल फोन पर महिलाओं से घंटों बातें करना उसका रोज का शगल था। जिस समय उसका सतना पुलिस से आमना-सामना हुआ वह महिला से ही मिलने आया था। पुलिस को उसके मोबाइल फोन की लोकेशन बार-बार सतना जिले के नयागांव थाना क्षेत्र की मिल रही थी। पुलिस को उसके कब्जे से करीब 40 मोबाइल सिम बरामद हुई थीं। वहीं, ऐसा माना जाता है कि निर्भय गुर्जर की मौत भी गैंग में शामिल महिला डकैतों की ओर से उसके रुझान के चलते हुई थी।
पाठा में डकैत चला रहे हैं 'अपनीÓ सरकार ददुआ और सुंदर पटेल की मौत के बाद उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के एक बड़े इलाके में फैले बुंदेलखंड में एक बार फिर डकैतों ने सिर उठाया है। बुंदेलखंड के पठारनुमा पहाडिय़ों में इन डकैतों का गढ़ है। इन पहाडिय़ों को स्थानीय बोली में 'पाठाÓ कहते हैं। पाठा के बीहड़ों में बसे गांवों में 60 फीसदी से ज्यादा कुर्मी बिरादरी के लोग हैं। इसके अलावा यहां कोल आदिवासियों की भी खासी तादाद है। पाठा में डकैतों का आतंक किस कदर सिर चढ़कर बोल रहा है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि चित्रकूट और बांदा जिलों में पिछले 10 महीने के भीतर 17 लोग डकैतों की गोलियों का निशाना बन चुके हैं। पाठा के इन बीहड़ों में डकैती का इतिहास तीन दशक पुराना है, जब यहां डकैत शिवकुमार पटेल उर्फ ददुआ आतंक का पर्याय बनकर सामने आया था। इसके बाद अंबिका पटेल उर्फ ठोकिया उर्फ डॉक्टर ने भी यहां डकैती की कई वारदातों को अंजाम दिया। 22 जुलाई, 2007 को स्पेशल टास्क फोर्स ने ददुआ को मार गिराया था और इसके साल भर बाद 4 अगस्त, 2008 को ठोकिया को भी मौत के घाट उतार दिया गया। ठोकिया के बाद इस गैंग की कमान सुंदर पटेल उर्फ रागिया ने संभाली। इस गैंग के दो मुख्य सदस्य बलखडिय़ा और राम सिंह गौड़ थे। 25 दिसंबर, 2011 को मध्य प्रदेश पुलिस ने सुंदर पटेल को भी मार गिराया। सुंदर पटेल की मौत के बाद सुदेश पटेल उर्फ बलखडिय़ा और राम सिंह गौड़ डाकुओं के मुख्य सरगना रहे, लेकिन इसी साल मार्च में बुंदेलखंड के कुख्यात डकैत बांदा राम सिंह गौड़ की जिले के भदौसा के जंगलों में हत्या कर दी गई थी। राम सिंह गौड़ और बलखडिय़ा गिरोह के बीच गैंगवार चल रही थी। राम सिंह की मौत के बाद उसके साथियों ने राजू गौड़ के गैंग में शामिल हो गए थे और तब उन लोगों ने कसम खाई थी कि वे बलखडिय़ा से राम सिंह की मौत का बदला लेंगे। लेकिन राम सिंह की मौत के बाद बुदेलखंड खासकर यूपी के बांदा, चित्रकूट और मध्य प्रदेश के सतना जिलों में बलखडिय़ा गिरोह का वर्चस्व हो गया है। इस समय बलखडिय़ा पर अपहरण, लूट, हत्या और डकैती जैसे कई मामले उस पर दर्ज हैं। सुंदर पटेल गिरोह की तरह बलखडिय़ा का गिरोह भी मध्य प्रदेश और यूपी में वारदातों को अंजाम देता रहा है। सुंदर पटेल गिरोह के डेढ़ दर्जन सदस्यों के आ जाने से बलखडिय़ा गिरोह में डकैतों की संख्या 30 से भी अधिक हो गई है। बलखडिय़ा गिरोह के खास सदस्यों में रामसिंह गोंड, पीलवन उर्फ मदारी गोंड, रामचन्द्र पटेल और झुग्गु पटेल शामिल हैं। गिरोह की ताकत बढ़ जाने से उसका आतंक और बढऩे की संभावना जताई जा रही है। लोगों का अनुमान है कि वे अपने भाई सुंदर पटेल और उसके साथियों की मौत के जिम्मेदार लोगों से भी बदला लेगा।
खड़े बालों की वजह से बलखडिय़ा नाम मिला डकैत सुदेश कुमार पटेल को उसके सिर के खड़े बालों के कारण बलखडिय़ा कहा जाता है। बुंदेलखंड के लोगों का मानना है कि वे सुंदर पटेल से भी ज्यादा खतरनाक है। जब पुलिस से मुठभेड़ में सुंदर पटेल मारा गया था तब उसकी उम्र 60 बरस के आसपास थी जबकि बलखडिय़ा 32 साल का है। उसकी बहादुरी से प्रेरित होकर कुख्यात डकैत ददुआ ने उसे अपनी .375 बोर की रायफल इनाम में भी दी थी। हैं।
बैलेट दो या बुलेट लो बुंदेलखंड के दुरुह बीहड़ों में बचे खुचे छोटे बड़े गिरोह भी दस्युओं अथवा उनके सगे संबंधियों का चुनाव में खुलकर साथ दे रहे थे। बैलेट दो या बुलेट लो की धमकियों वाले फरमान लोगों तक पहुंचाए गए थे। लेकिन इस बार लोगों ने धमकियों की अधिक परवाह नहीं की। बुंदेलखंड के बीहड़ में पहले भी चुनावी राजनीति की बिसात बिछाई जाती थी, लेकिन तब वे किसी जाति विशेष के प्रत्याशी के समर्थन की रणनीति बनाते थे। चुनाव के समय उनके दखल से जीत-हार का फैसला होता था। अब बदले हालात में दस्यु सरदारों का रुझान खुद चुनावी मैदान में कूदने की ओर है। इसमें उन्हें राजनीतिक दलों का साथ भी मिला है। बुंदेलखंड का पाठा क्षेत्र चुनाव के दौरान हमेशा सुर्खियों में रहा है। यहां दस्यु सरगना ददुआ की हुकूमत चलती रही है। ग्राम प्रधान से लेकर विधायक व सांसद तक का चुनाव उसके इशारे पर ही होता रहा है। लोकसभा के इस चुनाव में ददुआ व ठोकिया जैसे खूंखार डकैतों का दहशत तो नहीं थी, लेकिन बलखडिय़ा गिरोह ने पुलिस की नाक में दम कर दिया है। बांदा की जिला जेल में बंद ददुआ का दाहिना हाथ राधे समेत आधा दर्जन खूंखार डकैत वहीं से चुनाव का संचालन कर रहे थे। बांदा संसदीय क्षेत्र के मऊ मानिकपुर, कर्वी और नरैनी विधानसभा क्षेत्रों में जीत हार का फैसला मौजूदा दस्यु गिरोहों के हाथ में होता है। सुदूर जंगली व बीहड़ क्षेत्रों में पुलिस व प्रशासन निष्क्रिय है। अभावग्रस्त पाठा में ददुआ के गुरु गया और राजा रगौली जैसे तीन दर्जन से अधिक डकैतों का सीधा हस्तक्षेप है। स्थानीय पुलिस का कहना है कि वामपंथ की अलख जगाने वाले कामरेड राम सजीवन इस क्षेत्र से तीन बार सांसद व चार बार विधायक रह चुके हैं। उन्होंने यह कारनामा कथित तौर पर दस्यु ददुआ की बदौलत किया है। मायावती सरकार में मंत्री रह चुके दद्दू प्रसाद पर ददुआ को कथित तौर पर संरक्षण देने का मामला अदालत में है। मारे जाने के बाद भी ददुआ की हनक का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उसके बेटे वीर सिंह कर्वी से सपा विधायक हैं। भाई बालकुमार मिर्जापुर से सपा का सांसद था,जो इस बार सीट बदल कर बांदा से सपा के ही टिकट पर चुनाव मैदान था लेकिन उसकी हार हो गई। ददुआ का भतीजा राम सिंह प्रतापगढ़ की पट्टी विधानसभा सीट से सपा का विधायक है। ददुआ के बाद दूसरा बड़े दस्यु सरगना ठोकिया के परिवार के कई सदस्य ग्राम प्रधान से लेकर जिला परिषद का चुनाव जीत चुके हैं। इन्हें सपा, बसपा व रालोद तक से टिकट मिल चुकी है।
राजनीतिक लालसा पाल रखा है बलखडिय़ा ने चित्रकूट के पुलिस प्रशासन का मानना कि जिस तरह बलखडिय़ा इस लोकसभा चुनाव में भीतर ही भीतर सक्रिय रहा उससे संकेत मिले हैं कि वह आने वाले दिनों में सशर्त सरेंडर कर राजनीति में उतरना चाहता है। इसके लिए उत्तर प्रदेश सरकार के कुछ मंत्री और मप्र के कुछ नेता प्रयास कर रहे हैं। सूत्रों की मानें तो खाकी से बचने के लिए बलखडिय़ा और उसका गिरोह स्थानीय लोगों से धमकी के बल पर मदद हासिल करता आया है। इस वजह से खाकी के लिए उसकी तलाश अब तक बेहद मुश्किल साबित हुई है। हालांकि पुलिस रिकार्ड में बलखडिय़ा की तलाश में चलने वाले ऑपरेशनों की भी कमी नहीं है। हथियारों से लैस जवान पाठा के जंगलों में बलखडिय़ा की दहशत की भनक लगते ही उसका खात्मा करने के लिए निकल पड़ते हैं, लेकिन बलखडिय़ा बचकर निकलता रहता है।

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