सोमवार, 2 जून 2014

मप्र के 160 से अधिक नौकरशाह निशाने पर

वर्षों से लंबित भ्रष्टाचार के मामलों की खुलेगी फाइल
भोपाल। 6 मई को जैसे ही सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने एतिहासिक फैसला सुनाते हुए दिल्ली पुलिस एक्ट की धारा 6-ए को खारिज किया वैसे ही भ्रष्ट नौकरशाहों तथा उन्हें संरक्षण देने वालों के होश उड़ गए। इसका सबसे अधिक असर मप्र के उन 160 से अधिक नौकरशाहों पर पड़ा है,जो किसी न किसी भ्रष्टाचार के मामले में दागी हैं और उनकी फाइल सरकार की मेहरबानी से बंद पड़ी है। क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद मप्र सरकार भी अपने नौकरशाहों से कानूनी कवच छीनने की तैयारी कर रही है। उधर,सीबीआई ने भी इन भ्रष्ट अफसरों की फाइल खगालनी शुरू कर दी है। उल्लेखनीय है की सुप्रीम कोर्ट पूर्व में सीबीआई सहित अन्य जांच एजेंसियों को पिंजरे का तोता कहते आया है। वह हमेशा जांच एजेंसियों को स्वतंत्र रूप से काम करने को कहता था,लेकिन उसमें कानूनी अड़चने सामने आ जाती थीं। लेकिन 6 मई को सुब्रमण्यम स्वामी की दिल्ली पुलिस एक्ट की धारा 6-ए के खिलाफ याचिका पर सुनवाई करते हुए संविधान पीठ ने दिल्ली पुलिस एक्ट की धारा 6-ए को खारिज कर दिया है। इसमें प्रावधान है कि वरिष्ठ नौकरशाहों की जांच के लिए सरकार की अनुमति अनिवार्य है। पीठ ने कहा है कि जब आपराधिक कृत्य की जांच की बात हो तब किसी तरह का भेदभाव नहीं होना चाहिए। पीठ ने भ्रष्टाचार के मामलों में वरिष्ठ नौकरशाहों की जांच के लिए सरकारी मंजूरी अनिवार्य होने संबंधी प्रावधान को अवैध और असंवैधानिक करार दिया है। पीठ ने कहा,प्रिवेंशन ऑफ करप्शन एक्ट के तहत अपराध में वरिष्ठ नौकरशाह के दर्जे का कोई मतलब नहीं है। अब सीबीआई को अधिकारियों की जांच के लिए सरकार की मंजूरी लेने की जरूरत नहीं होगी। उधर,यह फैसला आने के बाद मप्र सरकार भी अखिल भारतीय सेवाओं के अफसरों के लिए 'कवचÓ साबित होने वाली राज्य सरकार की 2012 में जारी अधिसूचना निरस्त करने की तैयारी कर रही है। गौरतलब है कि राज्य सरकार ने दिल्ली स्पेशल पुलिस इस्टेब्लिशमेंट एक्ट 1946 के सेक्शन 6 के तहत 5 फरवरी 1957 के तहत केंद्र सरकार को आरोपी अफसरों पर कार्रवाई करने की स्वीकृति दे दी थी लेकिन 2012 मेें राज्य सरकार ने इस आदेश में संशोधन करते हुए आरोपी अफसरों पर कार्रवाई से पहले राज्य सरकार की अनुमति जरूरी कर दी थी। लेकिन हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद राज्य सरकार के पुराने आदेश समाप्त हो सकते हैं। ऐसे में राज्य सरकार अपने आदेश को जल्द वापस लेने की तैयारी कर रही है।
17 साल से अटका था मामला
वरिष्ठ नौकरशाहों को जांच से संरक्षण देने का मामला 17 साल पहले सुप्रीम कोर्ट में आया था। पहली याचिका सुब्रमण्यम स्वामी ने दायर की थी। 2004 में एक एनजीओ ने भी याचिका दायर कर जांच से पहले मंजूरी का प्रावधान खत्म करने की मांग की। सुनवाई के दौरान केंद्र ने दलील दी कि प्रावधान सिर्फ इसलिए है कि टॉप ब्यूरोक्रेट नीति-निर्माण में शामिल होते हैं। अब सीबीआई या अन्य जांच एजेंसियों को बड़े से बड़े अफसर के खिलाफ जांच और पूछताछ के लिए किसी से भी इजाजत लेने की जरूरत नहीं पड़ेगी। फायदा यह होगा कि न तो मामले की छानबीन में देरी होगी और न ही छानबीन से जुड़ी जानकारी लीक होने का खतरा होगा। कानूनी जानकारों के मुताबिक, इस फैसले के बाद सीबीआई ज्यादा असरदार और पेशेवर तरीके से काम कर सकेगी। सीबीआई के पूर्व डायरेक्टर जोगिंदर सिंह बताते हैं कि धारा-6 ए के तहत प्रावधान था कि टॉप ब्यूरोक्रेट यानी जॉइंट सेक्रेटरी और उससे ऊपर लेवल के अफसरों के खिलाफ जांच और छानबीन के लिए पहले केंद्र से संबंधित विभाग की सक्षम अथॉरिटी से इजाजत लेना जरूरी था, लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने जो व्यवस्था दी है उससे यह अनिवार्यता खत्म हो जाएगी। पहले सीबीआई के पास जब बड़े अफसर के खिलाफ करप्शन से जुड़े सबूत भी होते थे तो जांच एजेंसियां न तो पीई (प्रारंभिक जांच) कर पाती थी और न ही पूछताछ। सीबीआई या जांच एजेंसियां पहले सक्षम अथॉरिटी के सामने सबूत देकर इजाजत मांगती थी। इस प्रक्रिया में छानबीन से जुड़े साक्ष्य लीक होने का खतरा बना रहता था। इजाजत लेने में कई बार सालों निकल जाते थे और मामले की छानबीन अधर में लटक जाती थी। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने जांच एजेंसियों को यह अधिकार दे दिया है की वे सरकार से बिना अनुमति के भी भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई कर सकती हैं।
सीबीआई कर रही मप्र के दागी अधिकारियों की केस स्टडी
सुप्रीम कोर्ट के निर्णय और राज्य सरकार के रूख को देखते हुए प्रदेश के अफसरों की जान सांसत में फंसी हुई है,क्योंकि लोकायुक्त और इओडब्ल्यू में जिन अधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले दर्ज हैं उनके केस की स्टडी इनदिनों सीबीआई कर रही है। बताया जाता है कि जिन नौकरशाहों पर केस दर्ज है उनके अलावा करीब 3 दर्जन और अधिकारियों की शिकायत प्रदेश भर से सीबीआई के पास पहुंची है। वर्तमान में प्रदेश में 417 आईएएस के पद हैं,लेकिन तैनाती 311 की ही है। पिछले दस साल में इनमें से एक-एक करके इतने नौकरशाहों पर भ्रष्टाचार के मामले दर्ज हुए हैं कि, अब उनकी गिनती भी मुश्किल नजर आने लगी है। वह भी ऐसे में जब लोकायुक्त संगठन में पहुंचने वाली शिकायतों में से जांच के बाद 10 फीसदी मामलों में ही आपराधिक प्रकरण दर्ज हो पाते हैं। फिर यह मामला नौकरशाहों का हो तब तो प्रकरण दर्ज होना बड़ा ही मुश्किल हो जाता है।
फिर से खुलेगी इनकी फाइल
सुप्रीम कोर्ट के रूख और जांच एजेंसियों के स्वतंत्र करने के निर्देश में प्रदेश सरकार एक बार फिर से उन दागी अधिकारियों की फाइल खोलने जा रही है जिनके केस वर्षों से दबे हुए हैं। उल्लेखनीय है कि बीते वर्षो में एक ओर लोकायुक्त जहां सरकार से अधिकारियों के खिलाफ चालान पेश करने की अनुमति के लिए छटपटा रहा है,वहीं दूसरी ओर संगठन ने ऊपरी दबाव में साक्ष्य के अभाव बताकर 25 से ज्यादा मामलों में खात्मा लगा दिया गया था। इनमें एमए खान,एके श्रीवास्तव, होशियार सिंह , आरके गोयल, जगत स्वरूप, राकेश बंसल, एलएन मीणा, रामजी टांडेकर, आईसीपी केसरी, मोहन गुप्ता, बीआर नायडू, बीएल खरे, एके जैन, मोहम्मद सुलेमान और शहजाद खान शरीक हैं। इनमें से कुछ अब इस दुनिया में नहीं जबकि कुछ सेवानिवृत्त हो चुके हैं। ऐसा फायदा अन्य दागी अधिकारियों को न मिले इसके लिए एक बार फिर से पुरानी फाइलें खोले जाने की तैयारी चल रही है। वैसे मध्यप्रदेश लोकायुक्त वर्तमान में प्रदेश के लगभग 36 आईएएस अधिकारियों के खिलाफ जांच कर रहा है। लोकायुक्त संगठन के अलावा अन्य जांच एजेसियों में अफसरों के खिलाफ लंबित मामलों की लंबी फेहरिस्त है। यह जानकर किसी को भी आश्चर्य होगा कि मप्र के लगभग 25 आईएएस अधिकारियों की जांच मप्र आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो कर रहा है। अब ऐसे सभी अधिकारियों के खिलाफ एक बार फिर से जांच होगी।
सीबीआई भी जुटी जांच में उधर,सूत्र बताते हैं कि वर्षों से लोकायुक्त और इओडब्ल्यू में भ्रष्टाचार के जो मामले लंबित हैं उनकी जानकारी सीबीआई में भी मंगाई है। सीबीआई के पास जिन अधिकारियों का केस पहुंचा है उनमें उन अधिकारियों का नाम है जिनके खिलाफ लोकायुक्त में वर्ष 2009 से भ्रष्टाचार की जांच चल रही है। इस सूची में प्रदेश के वर्तमान मुख्य सचिव एंटोनी डिसा और पूर्व मुख्यसचिव राकेश साहनी सहित तीन दर्जन आईएएस अफसरों के नाम शामिल थे। इनमें कुछ अफसरों को लोकायुक्त क्लीन चिट दे दी है।
अफसरों के नाम व आरोप - एंटोनी डिसा - निविदा स्वीकृति में अनियमितताएं - राकेश साहनी - पुत्र को 5 लाख रूपए कम में विमान प्रशिक्षण दिलाया - मनीष श्रीवास्तव त्रैमासिक अर्धवार्षिक परीक्षा के मुद्रण कार्य में घोटाला - अरूण पांडे खनिज लीज में ठेकेदारों को अवैध लाभ पंहुचाना - प्रभात पाराशर - वाहनों के क्रय में 5 लाख से अधिक का भ्रष्टाचार - गोपाल रेड्डी - कालोनाईजरों को अनुचित लाभ पहुंचाना, शासन को आर्थिक हानि पहुंचाना - अनिता दास - ऊन तथा सिल्क साडिय़ों के क्रय में भ्रष्टाचार - दिलीप मेहरा - कार्यपालन यंत्री से अधीक्षण यंत्री की पदोन्नति में अनियमितताएं - मोहम्मद सुलेमान - कालोनाईजरों को अवैध लाभ पंहुचाना - टी राधाकृष्णन - दवा खरीदी में अनियमितताएं - एसएस उप्पल - पांच लाख रूपए लेकर भूमाफियाओं को अनुज्ञा दी - अस्ण भट्ट - भारी रिश्वत लेकर निजी भूमि में अदला बदली - निकुंज श्रीवास्तव - पद का दुरूपयोग एवं भ्रष्टाचार, दो शिकायतें - एमके सिंह - तीन करोड़ रूपए का मुद्रण कार्य आठ करोड़ रूपए में कराया - एमए खान - भ्रष्टाचार एवं वित्तिय अनियमितताएं, तीन शिकायतें - संजय दुबे - शिक्षाकर्मियों के चयन में अनियमितताएं - रामकिंकर गुप्ता - इंदौर योजना क्रमांक 54 में निजी कंपनी को सौ करोड़ रूपए का अवैध लाभ पंहुचाया - एमके वाष्र्णेय - सम्पत्तिकर का अनाधिकृत निराकरण करने से निगम को अर्थिक हानि - आरके गुप्ता - निविदा स्वीकृति में अनियमितताएं - केदारलाल शर्मा - सेन्ट्रीफयूगल पम्प क्रय में अनियमितताएं - शशि कर्णावत - पद का दुरूपयोग, दो शिकायतें - केके खरे - पद का दुरूपयोग कर भ्रष्टाचार - विवेक अग्रवाल - 21 लाख रूपए की राशि का मनमाना उपयोग - एसके मिश्रा - खनिज विभाग में एमएल, पीएल आवंटन में भ्रष्टाचार - महेन्द्र सिंह भिलाला - 75 लाख रूपए की खरीदी में अनियमितताएं - अल्का उपाध्याय - भारी धन राशि लेकर छह माह तक दवा सप्लाई के आदेश जारी नहीं किए - सोमनाथ झारिया - 4 वर्षों से भ्रष्टाचार एवं पद का दुरूपयोग करना - डा. पवन कुमार शर्मा - बगैर रोड़ बनाए ठेकेदार को पांच लाख का भुगतान करना
ईओडब्लू जांच के दायरे मे 25 आईएएस अफसरों के नाम व आरोप - पी नरहरि - सड़क निर्माण व स्टाप डेम में गड़बड़ी - तरूण गुप्ता - फर्जी यात्रा देयक - आरके गुप्ता - इंदौर में मैंकेनिक नगर में गलत तरीके से लीज - डीके तिवारी - ट्रेजर आईलैंड की भूमि उपांतरित करने में गड़बड़ी - एवी सिंह - ट्रेजर आईलैंड की भूमि उपांतरित करने में गड़बड़ी - एसएस अली - फर्जी फर्मों के द्वारा सर्वे सामग्री एवं कम्प्यूटर खरीदी - एमके अग्रवाल - फर्जी फर्मों के द्वारा सर्वे सामग्री एवं कम्प्यूटर खरीदी - राजेश मिश्रा - फर्जी दस्तावजों के आधार पर आचार सत्कार शाखा में गड़बड़ी - शिखा दुबे - अनुसूचित जाति, जनजाति के विधार्थियों की गणवेश खरीदी में अनियमितता - जीपी सिंघल - सेमी ओटोमेटिक प्लांट की जगह प्राइवेट डिस्टलरी से देशी शराब की वाटलिंग कराने का आरोप -स्व. टी धर्माराव - सेमी ओटोमेटिक प्लांट की जगह प्राइवेट डिस्टलरी से देशी शराब की वाटलिंग कराने का आरोप - योगेन्द्र कुमार - शराब की दूकान बंद कराने की धमकी देकर लाईसेंसधारियों से अवैध वसूली - आरएन बैरवा - अनुसूचित जाति के छात्रों के भोजन बजट में गड़बड़ी - मनीष रस्तोगी - सतना में रोजगार गारंटी योजना में 10 करोड़ की अनियमितता - विवेक पोरवाल - सतना में रोजगार गारंटी योजना में 10 करोड़ की अनियमितता - हरिरंजन राव - रायल्टी का भुगतान नहीं करने से शासन को लाखों की चपत लगाई - अंजू सिंह बघेल - नरेगा में भुगतान की गडगड़़ी - एसएस शुक्ला - बाल श्रमिक प्रशिक्षण में आठ करोड़ रूपए का दुरूपयोग - सीबी सिंह - बिल्डर्स को लाभ पहुंचाने के लिए अवैध निर्माण व बिक्रय - प्रमोद अग्रवाल - औधोगिक केन्द्र विकास निगम में अनियमितताएं - आशीष श्रीवास्तव - एमपीएसआईडीसी की राशि का एक मुश्त उपयोग कर बैंक लोन पटाने का मामला - संजय गोयल - नरेगा में कुंआ निर्माण में अनियमितता - निकुंज श्रीवास्तव - रेडक्रास सोसाइटी में आर्थिक गड़बड़ी - एसएन शर्मा - ट्रांसफर के बाद बंगले पर फाइलें बुलाकर आम्र्स लायसेंस स्वीकृत किए - मनीष श्रीवास्तव - चार शिकायतें, शिवपुरी, टीमकगढ़ में अर्धवार्षिक परीक्षा में गलत भुगतान, राजीव गांधी शिक्षा मिशन में निर्माण में अनियमितता, दवा व बिस्तर खरीदी में गड़बड़ी, उत्तर पुस्तिका छपाई और गणवेश खरीदी और खदानों का गलत तरीके से आवंटन आदि।
लोकायुक्त और अधिक होगा सशक्त अब सुप्रीम कोट के रूख को देखते हुए मध्य प्रदेश सरकार लोकायुक्त को और अधिक सशक्त बनाने जा रही है। पिछले दस साल में लोकायुक्त की छापामार कार्रवाई से चपरासी से लेकर अफसरों तक के करोड़पति होने का खुलासा होने पर पूरी सरकार की किरकिरी हो रही है। मध्यप्रदेश लोकायुक्त के पास 11 मंत्रियों, 49 आईएएस, 11 आईपीएस और 100 से अधिक पीसीएस अधिकारियों के खिलाफ शिकायतें हैं लेकिन सरकार की ओर से इन मामलों में इनके खिलाफ अभियोजन की अनुमति नहीं दी गई है। बीते तीन साल में लोकायुक्त ने मध्यप्रदेश में रिश्वत लेते हुए रंगे हाथों पकड़े जाने के 361 मामलों, पद का दुरुपयोग करने के 66 और अनुपातहीन संपत्ति के 114 मामलों में कार्यवाही की है। लोकायुक्त ने अब तक लगभग 663 करोड़ रुपए की बकाया राशि भी वसूल की है। इन सब को देखते हुए सरकार अब कठोर कदम उठाने की तैयारी कर चुकी है। इसलिए वह विधि विशेषज्ञों से लोकायुक्त को और सशक्त बनाने का सुझाव ले रही है। लोकायुक्त पी पी नावलेकर का भी कहना है कि लोकायुक्तों के पास भ्रष्टाचार पर लगाम कसने के भरपूर अधिकार नहीं हैं। जिससे मध्य प्रदेश में भ्रष्टाचार पर पूरी तरह से लगाम नहीं लग सकती है। उन्होंने कहा कि शिवराज को केंद्र सरकार के लोकपाल बिल की तरह राज्य के लोकायुक्त कानून में बदलाव लाने चाहिए। अगर लोकायुक्त को वो पावर दी जाती हैं तो भ्रष्टाचार निवारण में लोकायुक्त ज्यादा कारगर होगा। विधि विशेषज्ञ भी कहते हैं कि वाकई यदि लोकायुक्त कारगर हो तो उसके महत्व प्रदेश सरकार के लिए फलदायी भी साबित हो सकता है। मध्यप्रदेश की जो संपत्ति राज्य के बाहर थी, उसका सही-सही पता प्रदेश सरकार को भी नहीं था। क्योंकि प्रदेश सरकार के पास ऐसा कोई महकमा नहीं है, जो राज्य की सीमा से बाहर स्थित संपत्ति की जानकारी रखे। किंतु अब लोकायुक्त ने पता किया है कि प्रदेश की संपत्ति केरल और महाराष्ट्र में फैली हुई है। केरल में प्रदेश सरकार की 300 एकड़ जमीन है। इस पर अवैध कब्जाधारी चाय के बागान लगाए हुए हैं। इसी तरह मुंबई में 500 एकड़ जमीन है। इसे कब्जाधारियों से मुक्त कराने के लिए अदालती कार्रवाई विचाराधीन है। लोकायुक्त यदि उन सामंतों की जमीनों की भी पड़ताल करेगी, जिनको मध्यभारत में विलय करते वक्त गुजारे के लिए कुछ निशिचत परिसंपत्तियां दी गर्इं थीं,बाद में उन्होंने राजस्व दस्तावेजों में हेराफेरी कराकर तमाम अराजियां फिर से हड़प लीं। इनमें से ज्यादातर अचल संपत्तियां नगरीय क्षेत्रों में हैं और उनका बाजार मूल्य अरबों में है। ये संपत्तियों यदि वापस होती हैं तो राज्य सरकार की माली हालत तो सुधरेगी ही, उन पूर्व सामंतों के मुख से नकाब उतरेगा, जो लोक कल्याण का मुखौटा लगाकर देश-प्रदेश की राजनीति में अपना वजूद बनाए हुए हैं।
इनके मामले की भी होगी जांच प्रदेश के उन कुछ चर्चित मामलों की भी फिर से जांच होगी,जो वर्षों से लंबित है। उनमें से मप्र विद्युत मंडल में विद्युत मीटर खरीदी मामले में लोकायुक्त में पुन: जांच शुरू हो गई है। मप्र विद्युत मंडल में सदस्य (वित्त) रहते हुए अजीता वाजपेयी ने विद्युत मीटर खरीदी की थी जिसमें कई करोड़ों के घोटाले का आरोप है। उल्लेखनीय है कि लोकायुक्त पुलिस में दस साल में 19 आईएएस अफसरों के खिलाफ एफआईआर दर्ज हो चुकी हैं लेकिन पांच वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ पर्याप्त साक्ष्य नहीं होने का कारण बताकर अदालत में उनके मामलों का खात्मा भेज दिया गया। दो अधिकारियों के मामले में विशेष न्यायालयों के निर्णय को लेकर लोकायुक्त पुलिस की ओर से हाईकोर्ट में अपील की गई है। इनमें से सर्वाधिक तीन-तीन मामले सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी यूके सामल, सेवारत आईएएस अधिकारी राजेश राजौरा और आरके गुप्ता के खिलाफ हैं। रमेश थेटे के खिलाफ भी दो मामले दर्ज हो चुके हैं जिनमें से रिश्वत लेते पकड़े जाने के एक मामले में थेटे को विशेष न्यायालय ने सजा दी थी। इसके बाद उन्हें सेवा से पृथक कर दिया गया। फिर उन्हें हाईकोर्ट ने बरी किया लेकिन लोकायुक्त पुलिस इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील में गई है। इसके अलावा दो प्रशासनिक अधिकारी अशोक देशवाल और लक्ष्मीकांत द्विवेदी के खिलाफ जब प्रकरण दर्ज हुआ था तब उन्हें आईएएस नहीं मिला था। अभी वे आईएएस अधिकारी हैं। उनके खिलाफ भी लोकायुक्त पुलिस में दो एफआईआर दर्ज हैं। एक अन्य आईएएस संजय शुक्ला ने नगर निगम आयुक्त के कार्यकाल में दो करोड़ रुपए की खरीदी की थी जिसमें सामग्री की कीमत केवल 96 लाख रुपए पाया जाना प्रमाणित हुआ है। इस प्रकार उन पर बिना टेंडर, कोटेशन के एक करोड़ चार लाख रुपए का एक फर्म को लाभ पहुंचाया। हैरानी की बात यह है कि वे इस समय प्राइम पोस्ट पर हैं। रतलाम कलेक्टर और नगर सुधार न्यास के अध्यक्ष की हैसियत से विनोद सेमवाल ने विनोद पारिख नाम के व्यक्ति को शहरी क्षेत्र की जमीन दे दी। कटनी में हाउसिंग बोर्ड के प्रोजेक्ट के लिए ज्यादा कीमत पर जमीन खरीदी का मामला तत्कालीन आयुक्त हाउसिंग बोर्ड राघवचंद्रा और कटनी कलेक्टर शहजाद खान के अब तक गले पड़ा हुआ है। इसमें विशेष न्यायालय ने खात्मा निरस्त कर दिया और हाईकोर्ट ने इसे मान्य कर लिया। अब इस मामले से जुड़ा एक पक्ष सुप्रीम कोर्ट चला गया है। वहीं शिवपुरी भू-अर्जन अधिकारी के रूप में एलएस केन ने आईटीबीपी के लिए अधिग्रहित जमीन का मुआवजा किसानों को नहीं देकर मध्यस्थ को दे दिया था। हालांकि 26 मार्च 2014 को शिवपुरी के जिला एवं सत्र न्यायाधीश ने छत्तीसगढ़ में पदस्थ आईएएस अधिकारी एलएस केन और डिप्टी कलेक्टर आरएन शर्मा को का दोषी मानते हुए दो-दो साल के सश्रम कारावास की सजा सुनाई है। दोषियों पर 10-10 हजार रुपए का अर्थदंड भी लगाया गया है। सजा सुनाने के बाद अदालत ने एलएस केन की जमानत भी मंजूर कर ली। मूलत: ग्वालियर जिले के भितरवार क्षेत्र के रहने वाले एलएस केन इस समय रायपुर में ज्वाइंट सेक्रटरी फॉरेस्ट हैं।

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