शुक्रवार, 24 जनवरी 2014

सरकारी धन व हथियारों से फैल रहा लाल आतंक

रायपुर। दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी के पूर्व प्रवक्ता गुड्सा उसेंडी से मिली जानकारी के आधार पर पुलिस ने एक सप्ताह में अभनपुर, भानुप्रतापपुर और रायपुर से आठ लोगों को धरदबोचा। अभनपुर और भानुप्रतापपुर से गिरफ्तार किए गए माओवादी समर्थकों से भारी मात्रा में एके-47 की गोलियां, जिलेटिन छड़ें, डेटोनेटर और इलेक्ट्रॉनिक सामान जब्त किया। बरामद गोलियां सरकारी हैं, क्योंकि ये गोलियां पुलिस और सशस्त्रबलों को ही मिलती हैं। वहीं, रायपुर से गिरफ्तार किए गए दो बिचौलियों ने यह खुलासा किया कि किस तरह खनन ठेकेदारों और सरकारी काम करने वाले ठेकेदारों से सुविधा शुल्क लेकर लाल आतंक मजबूत हो रहा है। मतलब साफ है कि माओवादी सरकारी पैसे और सरकारी हथियारों का इस्तेमाल ही खून-खराबे के लिए कर रहे हैं। अधिकतर हथियार सरकारी : सुरक्षा विशेषज्ञों के अनुसार नक्सलबाड़ी आंदोलन के शुरूआती दिनों से ही संगठन हथियारों के लिए लूट पर निर्भर रहा है। पहले जमींदारों से लूटे हथियार। फिर सुरक्षाबलों से हथियार लूटकर पार्टी ने अपनी आर्मरी को मजबूत किया। वर्ष 2007 में तत्कालीन पुलिस प्रमुख विश्वरंजन ने स्वीकार किया था कि माओवादियों की सबसे प्रचलित राइफल एके-47 पुलिस से लूटी हुई है। यही नहीं, एलएमजी और रॉकेट लॉन्चर जैसे हथियार भी लूट के जरिए उन तक पहुंचे हैं। गोलियां बड़ी चुनौती : खुफिया सूत्रों का कहना है कि माओवादियों ने उन्नत किस्म के हथियार तो खूब इकट्ठे कर लिए हैं, लेकिन उनके सामने असल चुनौती गोलियों की है। भारत में विभिन्न राइफलों और मशीनगनों में इस्तेमाल होने वाली गोलियां सरकारी हथियार फैक्ट्रियों में ही बनती हैं, उनको देसी तरीके से नहीं बनाया जा सकता। इसी कारण वे लूटकर, सेंध लगाकर या अन्य तरीके से गोलियां एकत्र करते हैं। खुद का रिसर्च एंड डेवलपमेंट विंग : हथियारों की कमी पूरी करने और आत्मनिर्भर बनने के लिए माओवादियों खुद की रिसर्च एंड डेवलपमेंट विंग खड़ी कर ली है। 6-7 साल पहले इस विंग ने भोपाल और ओडिसा के राउरकेला में रॉकेट लॉन्चर और रॉकेट बनाने का कारखाना डालने की योजना बनाई थी, लेकिन योजना लीक हो गई। अब वे लॉजिस्टीक कमांड के जरिए हथियारों की आपूर्ति कर रहे हैं। बस्तर में इसकी कमान प्रभाकर नाम के माओवादी कमांडर के हाथ है। अन्य प्रदेशों में पकड़ा जा चुका है नेटवर्क : वर्ष 2011 उत्तरप्रदेश एसटीएफ ने 26वीं वाहिनी पीएसी (प्रोविंसियल आम्र्स कांस्टेबुलरी) के एक आर्मरर (शस्त्रागार प्रभारी) को गोरखपुर से और प्रदेश पुलिस के एक आर्मरर को बस्ती पुलिसलाइन से गिरफ्तार कर सरकारी गोलियों को माओवादियों तक पहुंचाने वाले गिरोह का खुलासा किया था। ये लोग गोलियों के रिकॉर्ड में हेरफेर कर उन्हें बेच देते थे। बिहार और झारखंड से भी ऎसे मामले सामने आ चुके हैं। झीरम घाटी हमले में भी इस्तेमाल हुई थीं सरकारी गोलियां झीरम घाटी में गत वर्ष 25 मई को हुए सबसे बड़े माओवादी हमले में भी सरकारी गोलियों का इस्तेमाल हुआ था। कॉर्टेज के खोखे पर मिले मार्क के आधार पर सीआरपीएफ के डिप्टी कमांडेंट अश्विन झा ने स्वीकार किया था कि यह आयुध फैक्ट्री वरणगांव (भुसावल, महाराष्ट्र) में बनी थीं। इनकी आपूर्ति केवल अर्द्धसैनिक बलों और प्रदेश पुलिस इकाइयों को ही की जाती हैं। स्वीकार चुकी एनआईए अगस्त 2012 में एनआईए ने कोलकाता की अदालत में माना था कि माओवादियों ने अबुझमाड़ में हथियार फैक्ट्री लगा ली है और तीन साल में वे लगभग पांच करोड़ के रॉकेट लॉन्चर व अन्य हथियार बना चुके हैं।

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