शुक्रवार, 24 जनवरी 2014

जंगल के भरोसे, "सुपरहीरो" का परिवार

जगदलपुर। छत्तीसगढ के जंगलों में प्रचलित कहानियों में सुपर हीरो जैसी ख्याति पाने वाले भूमकाल आंदोलन के नायक गुंडा धूर फिर एक बार चर्चा में आ गए हैं। गणतंत्र दिवस पर दिल्ली में होने वाली परेड में गुंडा धूर की गाथाओं को झांकी के जरिए प्रदर्शित किया जाएगा। लेकिन कहानी का मर्म यह है कि एक ओर जहां इस जंगल की रक्षा करने वाले इस नायक की गाथा राष्ट्रीय राजधानी में गूंजेगी , तब उनका परिवार गांव में रोजी-रोटी की जुगत में ही लगा रहेगा। जिला मुख्यालय से करीब 35 किमी दूर नेतानार गांव में गुंडाधूर की तीसरी पीढ़ी आज भी निवासरत है। पत्रिका की टीम ने गहन पड़ताल के बाद गंुडाधूर के वंशजों को ढूंढ निकाला और उनकी व्यथा को जाना। गुंडाधूर का नाती जोगी धूर (85) अब इस परिवार का मुखिया है। नेतानार गांव में जब हमारी टीम पहुंची तो पूरा परिवार लांदा (आदिवासी पेय) की कुटाई में व्यस्त था। पास ही जोगी धूर गांव के कुछ लोगों के साथ चौपाल लगाए बैठे थे। दुभाषिए की मदद से हमने उनसे बात की तो वे अपने दादा की वीर गाथाएं सुनाने लगे। उनका परिवार पहले गेहूंपदर में रहता था। बाद में अंग्रेजी हुकूमत ने उन पर दबाव बनाना शुरू किया तो उनके पिता आयता परिवार सहित पलायन कर गए। बाद में उनका परिवार चांयकुर मेें बस गया। जंगल का ही सहारा जोगी धूर ने बताया कि उन्हें शासन-प्रशासन से आज तक कोई सुविधा नहीं मिली है न कभी किसी सरकारी नुमाइंदें ने उनकी पूछ परख की। उनके परिवार सहित सभी गांव वाले अपनी आजीविका के लिए जंगल पर आश्रित हैं। जंगलों में शिकार से उनका पेट भरता है। वहीं जंगल से बांस लाकर वे टोकनियां और कड़गी बनाते हैं, जिन्हें बाजार में बेचकर अन्य सुविधाएं जुटाई जाती हंै। धान, कोसरा, मंडिया की फसल भी उगाते हैं। जोगी अब बने गुंडाधूर देव नेतानार इलाके में गुण्डाधूर व उनके परिवार को देव का दर्जा हासिल है। जोगी धुर को वर्तमान में गुण्डाधूर देव के नाम से जाना जाता है, इनकी पूजा भी की जाती है। उनके चाचा के पुत्र मंगडु ही उनके पुजारी हैं, जो उनकी नियमित पूजा करते हैं। नहीं है प्रमाणित फोटोग्राफ यह जानकर आpर्य होगा कि जिस गुंडाधूर की तस्वीर को भूमकाल आंदोलन के हीरो की तहर देश के सामने रखने की तैयारी है, उसके प्रमाणित फोटोग्राफ आज तक किसी के पास नहीं है। बस्तर के कलाकारों,रचनाकारों और इतिहासकारों ने जिस तरह से गुण्डाधूर की भूमिका और उनकी आकृति को पेश किया। इससे गुण्डाधूर एक वेताली कल्पना की तरह स्थापित हो चुके हैं। इस तरह नायक बने गंुडाधूर इतिहासकार डॉ केके झा का कहना है कि गुंडाधूर गेहूंपदर के पुजारी परिवार से संबंधित थे। ऎसा बताया जाता है कि वह तंत्र-मंत्र के भी जानकार थे। वह तत्कालीन राजा रूद्रप्रतापदेव के चाचा कालेन्द्र सिंह के दांहिने हाथ माने जाते थे। सन 1910 में अंग्रेजों ने जंगल काटने पर रोक लगा दी थी और जंगल पर आदिवासियों के अधिकार सीमित कर दिए थे। इससे आदिवासियों में आक्रोश था। कालेन्द्र सिंह ने अंगे्रजों के खिलाफ विद्रोह कर दिया और गुंडाधूर आंदोलन के नायक के तौर पर उभरे। तोकापाल से आंदोलन की शुरूआत हुई और मध्य बस्तर में यह आंदोलन तेजी से फैला। लेकिन अंग्रेजों ने आंदोलन को दबा दिया। गुण्डाधूर के साथी डेबरीधूर को फंासी दे दी गई, लेकिन गुण्डाूधर का आज तक पता नहीं चला।

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