मंगलवार, 18 जनवरी 2011

चम्बल में प्यार बसता है

चंबल आजकल सन्नाटे में है कल तक बीहड़ो में दस्युसुंदरियों के सौतिया डाह के चलते जहां चूड़ियों की खनखनाहट और गोलियों की तड़तड़ाहट आम बात थी आज वहां सन्नाटा पसरा है। लोग चम्बल के नाम पर क्यों सहम जाते है क्या इसलिए, की बहा देश के नामी डकैत रहते है, या कुछ और लेकिन कभी किसी ने सोचा है की ये बही चम्बल है लोगो के दर्द पर पिघलने वाले डाकू हैं वो वक़्त के हालात होंगे जिनके चलते उन्हे ये रास्ता अपनाना पड़ा.चंबल घाटी के डाकुओं के भी अपने आदर्श और सिंद्धांत हुआ करते थे. अमीरों को लूटना और गरीबों की मदद करना यहां के डाकुओं का शगल हुआ करता था. अन्याय और शोषण के खिलाफ विद्रोह करने वाले ये लोग पुलिस की फाइलों में भले ही “डाकू” के नाम से जाने जाते हों, लेकिन यहां के लोग उन्हें सम्मान से “बागी” कहते हैं. बागी यानी अन्याय के खिलाफत बगावत करने वाला... मानसिंह और मलखान सिंह जैसे दस्यु सरगनाओं की गौरव गाथाएं और आदर्श की मिसाल यहां के बच्चे-बच्चे के मुंह से सुनाई देती है. चंबल के पुरानी पीढ़ी के डाकू महिलाओं का बहुत सम्मान करते थे. डाकू डकैती के समय महिलाओं को हाथ नहीं लगाते थे. महिलाओं का मंगलसूत्र डाकू कभी नहीं लूटते थे. अगर डकैती वाले घर में बहन- बेटी आ रुकी है तो इज्जत पर हाथ डालने की बात तो दूर डाकू उनके गहनों तक को हाथ नहीं लगाया करते थे. पहली और दूसरी पीढ़ी के डाकू इस सिद्धांत और आदर्श को मानते थे. तब गिरोह में किसी महिला सदस्य का प्रवेश वर्जित था. लेकिन तीसरी पीढ़ी के डाकुओं ने अपने आदर्श बदल लिए. चंबल के बीहड़ों में लंबे समय तक कार्यरत रहे एक पूर्व पुलिस अधिकारी के मुताबिक “तीसरी पीढ़ी के डाकूओं ने न केवल महिलाओं पर बुरी नजर डालनी शुरु की, बल्कि उन्हें अपह्रृत कर बीहड़ में भी लाने लगे. अस्सी और नब्बे के दशक में जितनी महिला डकैत हुई, उनमें से ज्यादातर का डाकू गिरोह के सरदार द्वारा अपहरण किया गया था.

चंबल घाटी के इतिहास में पुतलीबाई का नाम पहली महिला डकैत के रूप में दर्ज है. बीहडों में पुतलीबाई का नाम एक बहादुर और आदर्शवादी महिला डकैत के रूप में सम्मानपूर्वक लिया जाता है. गरीब मुसलिम परिवार में जन्मी गौहरबानों को परिवार का पेट पालने के लिए नृत्यांगना बनना पड़ा. इस पेशे ने उसे नया नाम दिया-पुतलीबाई. शादी-ब्याह और खुशी के मौकों पर नाचने-गाने वाली खूबसूरत पुतलीबाई पर सुल्ताना डाकू की नजर पड़ी और वह उसे जबरन गिरोह के मनोरंजन के लिए नृत्य करने के लिए अपने पास बुलाने लगा. डाकू सुल्ताना का पुतलीबाई से मेलजोल बढ़ता गया और दोनों में प्रेम हो गया. इसके बाद पुतलीबाई अपना घर बार छोड़ कर सुल्ताना के साथ बीहड़ों में रहने लगी.” पुलिस इनकाउंटर में सुल्ताना के मारे जाने के बाद पुतलाबाई गिरोह की सरदार बनी और 1950 से 1956 तक बीहड़ों में उसका जबरदस्त आतंक रहा. पुतलीबाई पहली ऐसी महिला डकैत थी, जिसने गिरोह के सरदार के रूप में सबसे ज्यादा पुलिस से मुठभेड़ की. बताया जाता है कि एक पुलिस मुठभेड़ में गोली लगने से पुतलीबाई को अपना एक हाथ भी गवाना पड़ा था. बावजूद इसके उसकी गोली चलाने की तीव्रता में कोई कमी नहीं आई. छोटे कद की दुबली-पतली फुर्तीली पुतलीबाई एक हाथ से ही राइफल चला कर दुश्मनों के दांत खट्टे कर देती थी. सुल्ताना की मौत के बाद गिरोह के कई सदस्यों ने उससे शादी का प्रस्ताव रखा लेकिन सुल्ताना के प्रेम में दिवानी पुतलीबाई ने सबको इनकार कर काटों की राह चुनी. कभी चंबल के बीहड़ों में आतंक के पर्याय रह चुके पूर्व दस्यु सरगना मलखान सिंह पुतलीबाई के साहस और सुल्ताना के प्रति समर्पण भावना की प्रशंसा करते नहीं थकते. पुतलीबाई के साहस की मिसाल देते हुए मलखान सिंह कहते हैं, “वह ‘मर्द’ थी और मुठभेड़ में जमकर पुलिस का मुकाबला करती थी. बीहड़ में अपनी निडरता और साहस के लिए जानी जाने वाली डाकू पुतलीबाई 23 जनवरी, 1956 को शिवपुरी के जंगलों में पुलिस इनकांउटर में मार दी गई थी.

पुतलीबाई के बाद कुसमा नाइन को खूंखार दस्यु सुंदरी के रूप में जाना जाता है. 90 के दशक में चंबल के बाहड़ों में कुसमा ने अपने आतंक का डंका बजा रखा था. दस्यु सरगना रामआसरे उर्फ फक्कड़ के साथ रही कुसमा ने आखिर तक फक्कड़ का साथ नहीं छोड़ा. कुसमा उत्तर प्रदेश के जालौन जिले के टिकरी गांव की रहने वाली है. विक्रम मल्लाह गिरोह का माधो सिंह कुसमा को उठा कर अपने साथ बीहड़ में ले गया था. यह बात 1978 की है. बाद में गिरोह बंटने पर कुसमा नाइन कुछ दिनों लालाराम गिरोह में भी रही किन्तु सीमा परिहार से ललाराम के निकटता के चलते वह राम आसरे उर्फ फक्कड़ के साथ जुड़ गई और करीब दस साल फक्कड के साथ बीहड़ों में बीताने के बाद 8 जून, 2004 को भिंड में मध्य प्रदेश पुलिस के सामने उसने आत्म समर्पण कर दिया फिलहाल दोनों जेल में हैं. कुसमा फक्कड़ को इस कदर प्रेम करती थी कि जब 2003-04 में फक्कड़ बुरी तरह बीमार था और बंदूक उठाने में असमर्थ था, तब कुसमा न केवल उसकी सेवा करती थी, बल्कि साए की तरह हमेशा उसके साथ रहती थी. इस दौरान कई मुठभेड़ में वह फक्कड को पुलिस से बचाकर भी कई बार सुरक्षित स्थान पर ले गई. कुसमा फक्कड को लेकर जितनी कोमल थी, दुश्मनों के लिए उतनी ही निर्दयी और बर्बर. दस्यु फूलन देवी के द्वारा 14 फरवरी 1981 को किये गये बेहमई कांड जिसमे कि फूलन ने एक साथ करीब 22 ठाकुरों को लाइन में खड़ा कर मीैत के घाट उतार दिया था जिसका बदला कुसमा ने 23 मई को उत्तर प्रदेश के औरैया जिले के मईअस्ता गांव के 13 मल्लाहों को एक लाइन में खड़ा कर फूलन की तर्ज पर ही गोलियों से भून कर लिया था. इतना ही नहीं फक्कड गिरोह से गद्दारी करने वाले संतोष और राजबहादुर की चाकूं से आंखे निकाल कर कुसमा ने ‘प्रेम’ के साथ-साथ ‘बर्बरता’ की भी मिसाल पेश की थी. हालां कि फूलन देवी और सीमा परिहार भी दस्यु सुंदरी के रूप में बीहड़ों में काफी चर्चित रहीं। 1976 से 1983 तक चंबल में फूलन ने राज किया और चर्चित बेहमई कांड के बाद उसने 12 फरवरी, 1983 को मध्य प्रदेश पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह की उपस्थिती में करीब 10 हजार जनता व 300 से अधिक पुलिस र्किमयों के सामने आत्मसमर्पण करने वाली फूलन ने पांच मागें प्रमुखता से सरकार के सामने रखीं थी जिसमें अपने भई को सरकारी नौकरी व पिता को आवासीय प्लाट तथा मृत्यु दण्ड न होना और 8 साल से अधिक जेल न होना प्रमुख थीं. बाद में वह 1994 में पैरोल पर आयी तथा एकलब्य सेना का गठन किया महात्मांगांधी व दुर्गा को आदर्श व पूज्य मानने वाली फूलन ने राजनीति में रुचि ली और सांसद भी बनीं. लेकिन 25 जुलाई, 2001 को दिल्ली के सरकारी निवास पर उनकी हत्या कर दी गई. सीमा परिहार के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था. दस्यु सरगना लालाराम सीमा परिहार को उठा कर बीहड़ लाया था. बाद में लालाराम ने गिरोह के एक सदस्य निर्भय गूजर से सीमा की शादी करवा दी. लेकिन दोनों जल्दी ही अलग हो गए. सीमा परिहार के मुताबिक उसे लालाराम से प्रेम हो गया और फिर उसने लालाराम से शादी कर ली उसके एक बेटा भी है.” लेकिन 18 मई, 2000 को पुलिस मुठभेंड में लालाराम के मारे जाने के बाद 30 नवंबर, 2000 को सीमा परिहार ने भी आत्मसमर्पण कर दिया. फिलहाल वह जमानत पर रिहा हैं और औरैया में रहते हुए राजनीति में सक्रिय हैं.

फूलनदेवी के ही चुनाव क्षेत्र मिर्जापुर से लोकसभा का चुनाव लड़ चुकी सीमा परिहार फिलहाल समाजवादी पार्टी में सक्रिय हैं. इसके अलावा रज्जन गूजर क साथ रही लबली पांडेय जो कि उत्तर प्रदेश की इटावा के भरेह गांव की रहने वाली थी सूत्र बतातें है कि 1992 में ही लबली की शादी हो गई, लेकिन पति ने उसे तलाक दे दिया. पिता की मौत और पति द्वारा ठुकराए जाने से आहत लवली की मुलाकात दस्यु सरगना रज्जन गूजर से हुई और दोनों में प्यार हो गया. रज्जन से रिश्ते को लेकर लवली को गांव वालों के भला-बुरा कहने पर रज्जन ने भरेह के ही एक मंदिर में डाकुओं की मौजूदगी में लवली से शादी कर ली. दस्यु सुदंरी लवली के आतंक से कभी बीहड़ थर्राता था. 50 हजार की इनामी यह दस्यु सुंदरी 5, मार्च, 2000 को अपने प्रेमी रज्जन गूर्जर के साथ पुलिस मुठभेड़ में मारी गई. नीलम गुप्ता और श्याम जाटव की कहानी इन सबसे कुछ अलग है. श्याम जाटव को दुर्दांत डाकू निर्भय गूजर ने अपना दत्तक पुत्र घोषित किया था. औरैया की रहने वाली नीलम गुप्ता का निर्भय ने 26 जनवरी, 2004 को अपहरण कर लिया था. महिलाओं के शौकिन निर्भय ने नीलम को अपना रखैल बना लिया था. लेकिन जवान नीलम और श्याम जाटव का प्यार ऐसा परवान चढा कि दोनों ने निर्भय के खौफ के बावजूद शादी कर ली. बाद में निर्भय ने दोनों की हत्या के काफी प्रयास भी किए. निर्भय से बचने के लिए दोनों ने उत्तर प्रदेश पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया. फिलहाल दोनों जेल में हैं इन सबके अलावा सलीम गूजर-सुरेखा, चंदन यादव-रेनू यादव, मानसिंह-भालो तिवारी, सरनाम सिंह- प्रभा कटियार, तिलक सिंह-शीला, जयसिंह गूर्जर-सुनीता बाथम और निर्भय सिंह-बंसती पांडेय की जोड़ियां बीहड़ों में काफी चर्चित रही. इनमें से सीमा परिहार और सुरेखा तथा रेनू यादव ने तो अपने प्रेमियों के निशानी के रूप में बच्चे को भी जन्म दिया है. जगन और कोमेश के “आतंक और खौफ” से कल तक जो घबराते थे, वही आज उसके “प्रेम” की चर्चा करते दिखाई देते है. दो दर्जन से ज्यादा हत्याएं करने वाला 12 लाख का इनामी खुंखार डकैत जगन गूर्जर को “प्यार” ने बदल दिया है. अब वह डकैत की तरह नहीं, बल्कि एक आम आदमी की तरह जीना चाहता है. हत्या, अपहरण, लूट और डकैती जैसे 70 से ज्यादा जघन्य अपराधों के आरोपी और 15 सालों से तीन राज्यों की पुलिस को नाकों चने चबवाने वाले दुर्दांत डाकू जगन ने पुलिस के सामने केवल इसलिए आत्मसमर्पण कर दिया ताकि वह अपनी प्रेमिका और दस्यु सुंदरी कोमेश के साथ रह सके।

कहते हैं प्यार में वह ताकत है जो पत्थर को भी पिघला कर मोम कर देती है दस्यु जगन गूर्जर इसकी एक मिसाल है. राजस्थान के धौलपुर जिले के पूर्व सरपंच छीतरिया गूर्जर की बेटी कोमेश अपने पिता की हत्या का बदला लेने के लिए बंदूक उठा कर बीहड़ों में कूदी गिरोह में साथ-साथ रहने के बाद जगन और कोमेश एक दूसरे के करीब हो गए. शादीशुदा और दो बच्चों के बाप जगन से उसकी नजदीकी इस कदर बढ़ गई कि साढ़े चार फुट लंबी 28 वर्षीय कोमेश गिरोह में जगन की ढ़ाल मानी जाने लगी. पिछले साल नवंबर में मध्य प्रदेश की मुरैना पुलिस के साथ मुठभेड़ में गोली लगने से कोमेश घायल हो गई. जगन उसे पुलिस की नजरों से बचा कर अपने साथ ले गया. लेकिन राजस्थान के धौलपुर के समरपुरा के एक नर्सिंग होम में 5 नवंबर, 2008 को इलाज करा रही कोमेश को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। कोमेश की जुदाई जगन से बर्दास्त नहीं हुई और उससे मिलने को बेचैन जगन ने 31 जनवरी, 2009 को राजस्थान के करौली जिले के कैमरी गांव के जगदीश मंदिर के परिसर में राजस्थान से सांसद सचिन पायलट के सामने इस शर्त पर आत्मसमर्पण कर दिया कि उसे और कोमेश को एक ही जेल में रखा जाए. आत्मसमर्पण के समय जगन ने भावुक हो कर कहा, “वह अब आम आदमी की तरह सामाजिक जीवन जीना चाहता है.” पुलिस फाइलों में इन महिला डकैतों के अपराधों के किस्से तो दर्ज हैं, लेकिन, उनके प्रेम और समर्पण की मिसाल नहीं। कई बार चंबल में दस्यु सुदरियों के बीच पनपे शौतिया डाह को लेकर भी गोलियों की तड़तडा़हट हुई कभी सीमा परिहार को ठिकाने लगाने का मन कुसमा नाइन ने बनाया तो कभी बसंती ने नीलम को । आज चंबल में न तो दस्यु सुदरियों की चूड़िया खनकती दिखतीं हैं और न ही अब गोलियों की तड़तड़ाहट ही अब सुनाई पड़ती है।
प्रदेश की पुलिस के लिए सिरदर्द बना डकैत राजेन्द्र गुर्जर उर्फ गट्टा अपने भाई का घर बसाने के लिए युवती मिलने पर जश्न मनाते समय मारा गया। गिरोह के सदस्य रात 11.30 बजे शराब पीकर दावत उड़ा रहे थे तभी बंदूक से गोली चल गई जो गट्टा को जा लगी और उसकी मौत हो गई। बताते हैं कि पिछले साल नवंबर में गट्टा गिरोह पहाड़गढ़ थाना क्षेत्र के जंगल में दो सप्ताह तक रुका था। वहां के आदिवासी टपरे की एक युवती से गट्टा के छोटे भाई सालिगराम उर्फ सलगा की बात पक्की हो गई और इसके एवज में वह 50 हजार रुपए देने को तैयार हो गया था। इस बीच पुलिस को शादी की भनक लग गई और भय के कारण शादी टूट गई। सलगा पर 15 हजार रुपये का इनाम घोषित है और वह गट्टा के ही साथ रहता है। इसके बाद गट्टा ने आदिवासियों की मदद से युवती की तलाश जारी रखी, इसी कारण गिरोह का पहाड़गढ़ व श्योपुर के जंगलों में मूवमेंट देखा जाने लगा। गट्टा मोरोवन गांव भी किसी अन्य युवती को देखने गया था। एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि युवती देखने के बाद गिरोह ने गांव से कुछ दूर गेहूं के खेत में जश्न मनाया और शराब व मुर्गे की दावत उड़ाई। नशे की हालत में गिरोह के किसी सदस्य की बंदूक चल गई जो गट्टा को जा लगी।
मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की सीमा से लगते राजस्थान के दुर्गम दस्यु प्रभावित धौलपुर जिले में सक्रिय डकैत गिरोह का पत्थर की खदानों से चौथ वसूली, फिरौती वसूलने के लिए अपहरण और दुश्मनी का बदला लेने का जुनून पुलिस के लिए सरदर्द बना हुआ है। पुलिस की चाक चौबंद सुरक्षा के बावजूद चंबल के बीहड़ में कई सालों से डकैतों की यही दबंगई चल रही है। चंबल में सक्रिय करीब पांच दर्जन डकैतों पर शिकंजा कसना पुलिस के लिए चुनौती बना हुआ है।
पुलिस अधीक्षक राहुल प्रकाश ने कहा, ‘दस्यु उन्मूलन अभियान को प्राथमिकताओं में सबसे ऊपर रखा हुआ है। अभियान के लिए डकैत निरोधक दस्ता निरन्तर निगरानी रख रहा है। दस्यू उन्मूलन दस्ते ने राजस्थान सशस्त्र बल और अन्य एजेंसियों की मदद से बीहड़ में चम्बल क्षेत्र में तलाशी अभियान छेड़ रखा है।’ उन्होंने कहा कि दस्यु लारा मीणा और मुकेश ठाकुर पर ईनाम की राशि बढ़ाने के लिए भी सरकार को प्रस्ताव भेजा हुआ है। मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश पुलिस ने दस्यु राजेन्द्र गुर्जर के सिर पर बीस हजार रूपए का इनाम घोषित कर रखा है। दस्यु लारा मीणा, दस्यु मुकेश ठाकुर और दस्यु भंवर मीणा समेत दर्जनों डकैत गिरोह पर शिकंजा कसने के लिए समय समय पर मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश पुलिस के साथ संयुक्त कार्यवाही भी की जाती है। धौलपुर के निवासियों का कहना है कि कहने को तो जिला पुलिस, दस्यु उन्मूलन के लिए विशेष दस्ता साल भर अभियान चलाता है, लेकिन तीन सूबों (राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश) का साझा इलाका होने, डकैत गिरोहों की ग्रामीणों के खिलाफ बदले की कार्यवाही करने की संभावना और और जातीय आधार पर मिलने वाले संरक्षण के कारण यह कोशिशें नाकाफी साबित हो रही हैं।
पुलिस सूत्रों के मुताबिक, धौलपुर जिले में करीब पांच दर्जन डकैत हैं, जो राजस्थान के अलावा समीपवर्ती आगरा, मुरैना, ग्वालियर, और करौली जिलों में अपराधों को अंजाम दे रहे हैं। डकैतों की इस फेहरिस्त में सबसे बड़े नाम दस्यु जगन गुर्जर के भाई पान सिंह, लाल सिंह और पप्पू गुर्जर के हैं। सूत्रों के अनुसार, 11 लाख रूपए के इनामी दस्यु जगन गुर्जर द्वारा बीते साल करौली में आत्म समर्पण करने के बाद से जगन गुर्जर के तीन भाइयों ने ही गिरोह की कमान थाम रखी है। गिरोह के सदस्यों के पास अत्याधुनिक ए के-47 समेत अन्य हथियार हैं। उन्होंने बताया कि मध्यप्रदेश तथा राजस्थान पुलिस ने चम्बल बीहड़ में सक्रिय दस्यु पान सिंह पर 35 हजार रूपए, लालसिंह पर बाइस हजार रूपए तथा पप्पू गुर्जर पर बीस हजार रूपए का इनाम घोषित कर रखा है। सूत्रों के अनुसार, दस्यु प्रभावित इलाके में डकैत राजेन्द्र गुर्जर का नाम अपहरण के मुख्य षड्यंत्रकारी के रुप में चंबल में कुख्यात है। दिल्ली, जयपुर, आगरा, मथुरा समेत दूसरे बड़े शहरों से ‘कैरियर के जरिए पकड़’ (लोगों का अपहरण कर) चंबल के बीहड़ में लाई जाती है तथा यहीं पर फिरौती वसूलने का काम होता है। पुलिस अधीक्षक का कहना है कि चंबल के बीहड़ों से डकैतों के सफाए के बारे में डकैतों के शरणदाताओं के विरुद्ध कार्रवाई तथा मुखबिर तंत्र को मजबूत करने के अलावा तीन राज्यों की पुलिस के बीच में साझा रणनीति भी बनी है। समय समय पर तीनों राज्य दस्यु उन्मूलन के लिए सुरक्षा बलों की संयुक्त कार्यवाही भी करते हैं।

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