शुक्रवार, 21 अक्तूबर 2011

कोयला से काला




कोयला जितना काला है उससे अधिक इस धंधे में लगे लोग काले हैं। ब्लैक डायमंड के नाम से प्रख्यात कोयले के काले कारोबार ने रातों ही रात में कईयों को फर्श से उठाकर अर्श पर ला खड़ा किया है। कोयले के कारोबार में मापदंडों का जिस प्रकार उल्लंघन हो रहा है उससे पर्यावरण भी दूषित हो रहा है। सिंगरौली में 22 सितंबर को ग्रीनपीस द्वारा सार्वजनिक सभा में एक रिपोर्टे जारी की गई। रिपोर्टर को जारी करते हुए ग्रीनपीस की प्रिया पिल्लई ने कहा सिंगरौली पर पर्यावरण एवं मानवाधिकार के हनन के निशान दिखाई देते हैं। हमारी रिपोर्ट देश की विधुत राजधानी में छाए प्रदुषण एवं विनाश को बेनकाब करती है।
चारों तरफ कोयला की धूल के बीच पुरा जन-समुदाय कोयला खदानों के भारी बोझ के साये में जी रहा है।उन्होंने अपनी जमीन विधुत उत्पादन के लिए दी जो उन तक नहीं पहुँचती है और अब उनके पास जीविकोपार्जन के लिए कोई भरोसेमंद साधन नहीं तथा स्वास्थ्य चौपट हो गया है। इसे विकास नहीं कहा जा सकता। धरती और लोगो की इतने व्यापक पैमाने पर हो रही बरबादी को हम नजऱअंदाज़ नहीं कर सकते जिसे उनके अधिकारों की रक्षा किए बिना और हमारे द्वारा किए जा रहे पर्यावरण के अतिक्रमण की सीमा तय किए बिना उन पर थोपा जा रहा है।
यह हजारों हेक्टेयर सघन वनों का सवाल है, हाशिए पर पड़े हजारों आदिवासी एवं दुसरे समुदाय तथा इस क्षेत्र का सम्पूर्ण पारिस्थिकी तन्त्र खतरे में है। फिर भी महज कुछ टन निम्नस्तरीय कोयले के लिए सरकार यहां की समृद्ध जैव विविधता का विनाश करने पर तुली हुई है। कोयला से काला' नामक एक रिपोर्ट आज बैधन की एक सार्वजनिक सभा में जारी की गई। इस सभा में कोयला खनन एवं थर्मल पावर प्लांटों से प्रभावित गांवों के लोग और वैसे लोग जिनके गांवों में खनन या औद्योगिक परियोजनाएँ प्रस्तावित हैं, उपस्थित थे।
यह रिपोर्ट ग्रीनपीस द्वारा जुलाई 2011 में गठित एक तथ्य आंकलन दल (फैक्ट फाइंडिंग मिशन)(1) का नतीजा है। इसमें पर्यावरण एवं इस क्षेत्र के लोगों पर अनियंत्रित कोयला खनन तथा ताप बिजली संयंत्र (थर्मल पावर प्लांटों) के प्रभाव को दर्ज किया गया है। इस तथ्य आंकलन दल को देश की विद्युत राजधानी के तौर पर प्रोत्साहित, सिंगरौली, में कोयला खनन के कारण हो रहे मानवीय उत्पीडऩ एवं पर्यावरण के विनाश की सच्चाई को सामने लाने के लिए गठित किया गया था।
रिपोर्ट को जारी करते हुए ग्रीनपीस की प्रिया पिल्लई ने कहा, ''सिंगरौली पर पर्यावरण एवं मानवाधिकार के हनन के निशान दिखाई देते हैं। हमारी रिपोर्ट, देश की विद्युत राजधानी माने जाने वाले सिंगरौली, में छाए प्रदूषण एवं विनाश को बेनकाब करती है। चारों तरफ कोयले की धूल के बीच पूरा जन-समुदाय कोयला खदानों के भारी बोझ के साये में जी रहा है। उन्होंने अपनी जमीनें विद्युत उत्पादन के लिए दीं जो उन तक नहीं पहुंचती है और अब उनके पास जीविकोपार्जन के लिए कोई भरोसेमंद साधन नहीं है तथा उनका स्वास्थ्य चौपट हो गया है। इसे विकास नहीं कहा जा सकता। धरती और लोगों की इतने व्यापक पैमाने पर हो रही बरबादी को हम नजरअंदाज नहीं कर सकते जिसे उनके अधिकारों की रक्षा किए बिना और हमारे द्वारा किए जा रहे पर्यावरण के अतिक्रमण की सीमा तय किए बिना उन पर थोपा जा रहा है।''
इस तथ्य आंकलन दल के निष्कर्ष महत्वपूर्ण हैं, खासकर मंत्रियों के समूह (जीओएम) द्वारा कोयला खनन के लिए वन प्रखंडों के आवंटन की स्वीकृति के संदर्भ में। केवल सिंगरौली में ही, माहन, छत्रसाल, अमेलिया एवं डोंगरी टाल-2 के वन प्रखंडों को पहले 'वर्जितÓ (नो-गो) की श्रेणी में रखा गया था। लेकिन अब इस विषय में मंत्रियों के समूह की ओर से स्वीकृति की प्रतीक्षा की जा रही है। हाल ही में कुछ खबरों के अनुसार मंत्रियों के समूह द्वारा 'वर्जितÓ व 'गैर वर्जितÓ (गो) क्षेत्र का सीमांकन रद्द किया जा सकता है। जब तक अक्षत वनों का सीमांकन नहीं किया जाता, इन वनों और लोगों की जमीन पर अधिग्रहण का खतरा बढ़ता रहेगा।
आधिकारिक तौर पर, 1980 में वन संरक्षण अधिनियम लागू होने के बाद से सिंगरौली क्षेत्र में 5,872.18 हेक्टेयर वन का गैर-वन्य उपयोग के लिए विपथन किया जा चुका है। सिंगरौली के वन प्रमंडल अधिकारी के अनुसार और भी 3,299 हेक्टेयर वन विपथन के लिए प्रस्तावित है। इसमें वर्तमान एवं प्रस्तावित औद्योगिक गतिविधियों के कारण वन-भूमि के अतिक्रमण के विभिन्न उदाहरण शामिल नहीं हैं।
फिलहाल, प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर से माहन के वनों को एस्सार एवं हिंडाल्को के खनन स्वामित्व में हस्तांतरित करने के लिए बेहद दबाव दिया जा रहा है। पूर्व पर्यावरण एवं वन मंत्री, जयराम रमेश ने संकेत दिए थे कि इन वनों में खनन नही किया जाना चाहिए। माहन में उपलब्ध कुल 144 मिलियन टन का कोयला भंडार हिंडाल्को इंडस्ट्रीज लिमिटेड एवं एस्सार पावर लिमिटेड के ताप बिजली संयंत्र के लिए केवल 14 वर्षों तक कोयले की आपूर्ति के लायक हैं।
ग्रीनपीस इंडिया की नीति अधिकारी प्रिया पिल्लई ने आगे कहा, ''यह हजारों हेक्टेयर सघन वनों का सवाल है, हशिए पर पड़े हजारों आदिवासी एवं दूसरे समुदाय तथा इस क्षेत्र का संपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र खतरे में हैं। फिर भी, महज कुछ टन निम्नस्तरीय कोयले के लिए सरकार यहां की समृद्ध जैव विविधता का विनाश करने पर तुली हुई है। वन भूमि के और अधिक विपथन के पहले सरकार को दूसरे क्षेत्रों में कोयले की उपलब्धता एवं वैकल्पिक ऊर्जा समाधानों का आंकलन करना चाहिए। कंपनियों को भी चाहिए कि वे प्रभावित समुदायों की आजीविका पर ध्यान दें, मानवाधिकारों पर हो रहे असर का आंकलन करें, भूमिहीनों एवं वन-आश्रित समुदायों की क्षतिपूर्ति तथा पुनर्वास की व्यवस्था करें।''
तथ्य आंकलन दल ने 9 एवं 10 जुलाई 2011 को सिंगरौली के उत्तर प्रदेश वाले इलाके में चिलिका दाड, दिबुलगंज (अनपरा थर्मल पावर प्लांट के निकट), बिलवाड़ा और सिंगरौली क्षेत्र के मोहर वन प्रखंड, अमलोरी एवं निगाही खदानों का दौरा किया। इस दल ने जनपद प्रशासन एवं कोल इंडिया लिमिटेड के प्रतिनिधियों से भी मुलाकात की।
रिपोर्ट में शामिल सूचनाओं के अनुसार देश में चुनिंदा 88 अति प्रदूषित औद्योगिक खण्ड के विस्तृत पर्यावरण प्रदूषण सूचकांक पर सिंगरौली नौवें स्थान पर है। इसके 81.73 अंक यह साफ-साफ संकेत करते है कि यह क्षेत्र खतरनाक स्तर पर प्रदूषित है। दरअसल, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान (एनआईएच) और भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड (भेल) के प्रदूषण नियंत्रण अनुसंधान संस्थान (पीसीआरआई) की रिपोर्ट साफ-साफ संकेत करती है कि कोयला खनन के कारण सिंगरौली क्षेत्र में भू-जल का प्रदूषण हुआ है।
इसके अतिरिक्त, ' इलेक्ट्रिसिटे द फ्रांसÓ की एक अप्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार उत्पादन के लिए निम्नस्तरीय कोयले के उपयोग के कारण सिंगरौली के थर्मल पावर प्लांटों से हर साल लगभग 720 किलोग्राम पारा (मर्करी) निकलता है। अनेक गांवों में और यहां तक कि नॉदर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (एनसीएल) के उच्च अधिकारियों के द्वारा भी, तथ्य आंकलन दल को बताया गया कि चूंकि उनका दौरा बरसात के मौसम में हुआ है इसलिए वायु का गुणवत्ता स्तर काफी बेहतर था। सामान्यत:, और खासकर गर्मी के महीनों में वायु की गुणवत्ता का स्तर काफी खराब होता है। राख के तालाबों और खदानों के आस-पास रहने वाले ग्रामवासियों ने कहा कि उन महीनों में उनका जीवन नर्क हो जाता है। इसके फलस्वरूप, सिंगरौली गांव के लोगों को अनेक तरह की स्वास्थ्य समस्याएँ रहती हैं जिनमें सांस की तकलीफ, टीबी, चर्मरोग, पोलियो, जोड़ों में दर्द और अचनाक कमजोरी तथा रोजमर्रा की सामान्य गतिवधियों को करने में कठिनाई जैसी अनेक समस्याएं हैं।
इस रिपोर्ट में इस बात को भी उजागर किया गया है कि किस तरह विभिन्न खनन एवं औद्योगिक गतिविधियों ने ग्रामीण जीवन को नुकसान पहुंचाया है लेकिन इन गतिविधियों के संचालकों से किसी ने भी स्वास्थ्य सेवा एवं बुनियादी सुविधाओं को मुहैया कर लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ रहे कुप्रभाव को कम करने की जिम्मेदारी नहीं ली है। उदाहरण के लिए, सोनभद्र जनपद (उत्तर प्रदेश में) के शक्तिनगर में चिलिका दाड गांव को लें जो नैशनल कोलफील्ड्स लिमिटेड (एनसीएल) के मिट्टी के ढेर, कोयला ढोने वाली रेलवे लाइन और राष्ट्रीय ताप विद्युत निगम के पावर प्लांट से घिरा है और यहां जल को प्रदूषित करने, वायु को प्रदूषित करने एवं स्वीकृत मानदंड से अधिक शोर पैदा करने में इनमें से हरेक की भूमिका है।
केवल अकेले चिलिका दाड में ही 600 ऐसे परिवार हैं जिन्हें इन विभिन्न परियोजनाओं के कारण अनेक बार विस्थापित होना पड़ा है। इन निवासियों को आवासीय पट्टे दिए गए केवल उस पर रहने के अधिकार के साथ। वे न तो इस जमीन को बेच सकते हैं और न ही इसके एवज में कोई कर्ज ले सकते हैं। अब इस गांव से महज 50 मीटर की दूरी पर भारी संख्या में खदानों, बेरोजगारी, उच्चस्तरीय प्रदूषण एवं खनन विस्फोट का खतरा झेल रहे ग्रामीणों के सामने बदहाली को झेलने के अलावा और कोई विकल्प नहीं बचा है।
तथ्य आंकलन दल इस बात की सिफारिश करता है कि जब तक अन्य क्षेत्रों में कोयले की उपलब्धता एवं वैकल्पिक ऊर्जा समाधानों का आंकलन न हो जाए तब तक के लिए सिंगरौली के वन क्षेत्र में सभी खनन गतिविधियों पर रोक लगाई जाए। दल यह भी सिफारिश करता है कि सभी खनन एवं औद्योगिक गतिविधियों का व्यापक मानवाधिकार आंकलन किया जाए और लोगों की शिकायतें दूर करने के लिए जमीनी स्तर पर कारवाई की जाए। इस दल ने महसूस किया है कि दशकों से सिंगरौली में प्रभावित जन समुदायों की आजीविका का सवाल बुनियादी तौर पर अनुत्तरित ही रहा है। इस मोर्चे पर तथ्य आंकलन दल ने सुझाव दिया है कि लोग अपनी पूर्ववर्ती आजीविका को जारी रख सकें, इस पर प्रशासन को ध्यान देना चाहिए। इसके लिए भूमि-आधारित क्षतिपूर्ति व्यवस्था लागू की जाए जिसके माध्यम से अधिग्रहीत की गई कृषि भूमि के बदले में किसी दूसरी जगह कृषि भूमि प्रदान की जाए।

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