मंगलवार, 21 जून 2011

वाजपेयी के बाद लीडर नंबर 1...?




विनोद उपाध्याय

भाजपा भगवान भरोसे है। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी भी कुछ नहीं कर पा रहे है। हां, मेहनत वे खूब कर रहे है। लेकिन भाजपा की फसल मरी हुई है, बतौर प्रमाण पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजे है। करीब इकतीस साल की युवा भाजपा जिसका उदय भारतीय राजनीति में दक्षिणपंथ की ओर ऐतिहासिक मोड़ माना गया, जिसे पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी की जोड़ी ने करीब छह साल तक सत्ता के शिखर पर बैठाया। अब पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी सक्रिय राजनीति से रिटायर हो चुके हैं तो दूसरी तरफ लालकृष्ण आडवाणी रिटायर होने के मुकाम पर आ पहुंचे हैं। ऐसे में भाजपा आज पूरी तरह नेता विहिन नजर आ रही है।
2012 में होने वाल उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव की आहट के साथ ही पार्टी को 2014 के लोकसभा चुनाव का भूत सताने लगा है,क्योंकि राजनीतिक विश£ेषकों का मानना है की केन्द्र की सत्ता का रास्ता उत्तर प्रदेश से ही होकर जाएगा। ऐसे में पार्टी को एक ऐसे नेता की तलाश है जो पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की तरह सभी वर्गो को ग्राह्य हो। वैसे तो पार्टी में प्रधानमंत्री पद के दावेदार नेताओं में लालकृष्ण आडवानी,सुषमा स्वराज,अरूण जेटली और नरेन्द्र मोदी शामिल हैं,लेकिन इन सब की छवि साम्प्रदायिक और विवादास्पद है। यानी इन नेताओं के सहारे इस गठबंधन की राजनीति के दौर में सत्ता का ख्वाब तो देखा जा सकता है लेकिन पाना मुश्किल होगा।
भाजपा केन्द्र की सत्ता में आयी तो देश का अगला प्रधानमंत्री कौन बनेगा। अलट बिहारी बाजपेयी के बाद भाजपा में यदि सबसे बड़ा कोई नाम है तो वह है लालकृष्ण आडवानी। हालांकि आडवानी के नाम पर पार्टी के अधिकांश सदस्य खुले दिल से सहमति नहीं दे पा रहे हैं। अस्सी पार आडवाणी यूं तो पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान ही यह कह चुके हैं कि 2014 के लोकसभा चुनाव में वह उम्मीदवार नहीं होंगे। लालकृष्ण आडवानी भले ही उप प्रधानमंत्री के पद पर रह चुके हों परन्तु पार्टी का कोई भी नेता उन्हें एक अच्छा प्रधानमंत्री नहीं मानता है। पार्टी में आडवानी की छवि एक कट्टरवादी नेता की है जो किसी भी परिस्थति में झुकने को तैयार नहीं होता। राजनेताओं का कहना है कि लोकतंत्र के लिए यह बेहतर संकेत नहीं है और वह भी ऐसी दशा में जब सरकार जोड़तोड़ कर बनायी जाए। भाजपा नेता यह मानते हैं कि देश की सत्ता में आने के लिए उसे कई अन्य दलों का साथ लेना होगा जिसके लिए बहुत सयंम रखना पड़ता है। इन बातों को ध्यान में रखते हुए पार्टी चाहती है कि प्रधानमंत्री पद पर के लिए ऐसा नाम चयन किया जाए जो सभी घटक दलों में सामंजस बनाकर देश चलाए।
प्रधानमंत्री पद के दावेदारों में सुषमा स्वराज व अरूण जेटली का नाम तेजी से उभर कर सामने आ रहा है। लम्बे समय से पार्टी में काम कर रही तेज तर्रार नेता सुषमा स्वराज को प्रबल दावेदार कहा जा रहा है लेकिन लेकिन संघ परिवार महिलाओं को नेतृत्व में आगे रखने के लिए नहीं जाना जाता। जबकि दूसरे नम्बर पर अरूण जेटली हैं जिनके समर्थन में राजनाथ सिंह पहले ही तैयार हो चुके हैं। राजनाथ सिंह का प्रयास होगा कि उनके समर्थक जेटली के पक्ष में हामी भरे। उधर मुरली मनोहर जोशी भी अपने समर्थन में वोट जुटाने का प्रयास कर रहे हैं। पार्टी में फायरब्रा़ंड नेत्री उमा भारती भी लौट आईं हैं लेकिन आलाकमान उन पर भरोसा करने की गलती नहीं करेगा।
ऐसे में पार्टी क्षेत्रीय राजनीति से एक ऐसे दमदार नेता की तलाश कर रही है जो अपने राज्य के साथ-साथ अन्य प्रदेशों और सभी समुदाय के लोगों के बीच अपनी पैठ बना सके। वर्तमान समय में गुजरात के मख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ,उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक,मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह ,झारखण्ड के मुख्यमंत्री अर्जुन मुण्डा ,कर्नाटक के मुख्यमंत्री येद्दियुरप्पा ,हिमांचल प्रदेश के मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल और बिहार के उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी भाजपा या के क्षेत्रीय क्षत्रप हैं।
गुजरात के मख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को ताक भाजपा अगले प्रधानमंत्री के रूप में देख रही है। भाजपा में पीएम पद के भले ही कई दावेदार हों , लेकिन पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी ने साफ कर दिया है कि नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री पद के सबसे सही दावेदार हैं। इसमें कोई दो राय नहीं है कि मोदी विकास की राजनीति के रोल मॉडल हैं। गुजरात में उनका काम बोलता है। गडकरी की माने तो उनमें देश का नेतृत्व करने की तमाम खूबियां हैं और वह पीएम पद के सबसे सही दावेदार हैं।
आज की तारीख में भाजपा में अगर कोई जन नेता है तो अटल बिहारी वाजपेयी के अलावा नरेंद्र मोदी का ही नाम लिया जा सकता है। वाजपेयी के अलावा मोदी की ही सभाओं में लाखों की भीड़ होती है और वे वाजपेयी की तरह सहज वक्ता नहीं हैं लेकिन भीड़ को बांध कर रखना उन्हें अच्छी तरह आता है। मुहावरे वे गढ़ लेते हैं, जहां जरूरत होती है, वहां वही भाषा बोलते हैं और अच्छे-अच्छे खलनायकों को हिट करने वाली और दर्शकों को मुग्ध करने वाली जो बात होती है, वह मोदी में भी है कि वे अपने किसी कर्म,अकर्म या कुकर्म पर शर्मिंदा नजर नहीं आते। नरेंद्र मोदी गोधरा के खलनायक हैं मगर संघ परिवार, भाजपा और कुल मिला कर हिंदुओं के बीच भले आदमी माने जाते हैं। नरेंद्र मोदी ने काफी कुछ स्वर्गीय प्रमोद महाजन की तरह राजनीति में अपनी जगह खुद बनाई है। घर-द्वार छोड़ा, पत्नी की शक्ल बहुत दिनों बाद शायद अखबारों और टीवी पर ही देखी होगी और संघ के स्वयंसेवक बन गए। जल्दी ही प्रचारक बनें और जब उनकी लोकप्रियता बढ़ती दिखी तो उन्हें संघ परिवार के निर्देश पर ही राजनीति में ले आया गया। पहले गुजरात की राजनीति और फिर दिल्ली में महासचिव बन कर उन्होंने आधार और रणनीति दोनों अर्जित किए। लेकिन मोदी गोधरा कांड की काली छाया से अभी तक उबर नहीं पाए हैं।
मोदी के बाद अगर हम उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक,मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह ,झारखण्ड के मुख्यमंत्री अर्जुन मुण्डा ,कर्नाटक के मुख्यमंत्री येद्दियुरप्पा ,हिमांचल प्रदेश के मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल और बिहार के उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी पर नजर डाले तो हम पाते हैं कि भाजपा के इन क्षेत्रीय क्षत्रपों में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ही एक मात्र ऐसे नेता हैं जिनकी छवि अपने राज्य में जितनी दमदार है उतनी ही केन्द्र में भी।
सच तो यह है कि भारत में कुछ राजनेता ऐसे हैं, जो केंद्रीय राजनीति की मुख्यधारा में नहीं हैं लेकिन केंद्रीय राजनीति उन्हीं के आसपास घूमती रहती है। ऐसे नेताओं में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का भी नाम है और भाजपा का केन्द्रीय नेतृत्व शिवराज को तराश कर उन्हें अगला अटल बिहारी बनाने में जुट गया है। केन्द्रीय नेतृत्व यह बात भली भांति मालुम है कि क्षेत्रीय नेताओं में शिवराज ही ऐसे नेता हैं जिन्होंने केन्द्र और राज्य में विभिन्न पदों पर लंबे समय तक काम किया है। शिवराज सिंह चौहान सन् 1977 से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक हैं। सन् 1977-78 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के संगठन मंत्री बने। सन् 1975 से 1980 तक अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के मध्य प्रदेश के संयुक्त मंत्री रहे। सन् 1980 से 1982 तक अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के प्रदेश महासचिव, 1982-83 में परिषद की राष्ट्रीय कार्यकारणी के सदस्य, 1984-85 में भारतीय जनता युवा मोर्चा, मध्य प्रदेश के संयुक्त सचिव, 1985 से 1988 तक महासचिव तथा 1988 से 1991 तक युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष रहे। शिवराज 1990 में पहली बार बुधनी विधानसभा क्षेत्र से विधायक बने। इसके बाद 1991 में विदिशा संसदीय क्षेत्र से पहली बार सांसद बने। चौहान 1991-92 मे अखिल भारतीय केशरिया वाहिनी के संयोजक तथा 1992 में अखिल भारतीय जनता युवा मोर्चा के महासचिव बने। सन् 1992 से 1994 तक भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश महासचिव नियुक्त। सन् 1992 से 1996 तक मानव संसाधन विकास मंत्रालय की परामर्शदात्री समिति, 1993 से 1996 तक श्रम और कल्याण समिति तथा 1994 से 1996 तक हिन्दी सलाहकार समिति के सदस्य रहे। चौहान 11 वीं लोक सभा में वर्ष 1996 में विदिशा संसदीय क्षेत्र से पुन: सांसद चुने गये। सांसद के रूप में 1996-97 में नगरीय एवं ग्रामीण विकास समिति, मानव संसाधन विकास विभाग की परामर्शदात्री समिति तथा नगरीय एवं ग्रामीण विकास समिति के सदस्य रहे। चौहान वर्ष 1998 में विदिशा संसदीय क्षेत्र से ही तीसरी बार 12 वीं लोक सभा के लिए सांसद चुने गये। वह 1998-99 में प्राक्कलन समिति के सदस्य रहे। शिवराज वर्ष 1999 में विदिशा से चौथी बार 13 वीं लोक सभा के लिये सांसद निर्वाचित हुए। वे 1999-2000 में कृषि समिति के सदस्य तथा वर्ष 1999-2001 में सार्वजनिक उपक्रम समिति के सदस्य रहे।
सन् 2000 से 2003 तक भारतीय जनता युवा मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे। इस दौरान वे सदन समिति (लोक सभा) के अध्यक्ष तथा भाजपा के राष्ट्रीय सचिव रहे। शिवराज 2000 से 2004 तक संचार मंत्रालय की परामर्शदात्री समिति के सदस्य रहे। शिवराज सिंह चौहान पॉचवी बार विदिशा से 14वीं लोक सभा के सदस्य निर्वाचित हुये। वह वर्ष 2004 में कृषि समिति, लाभ के पदों के विषय में गठित संयुक्त समिति के सदस्य, भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव, भाजपा संसदीय बोर्ड के सचिव, केन्द्रीय चुनाव समिति के सचिव तथा नैतिकता विषय पर गठित समिति के सदस्य और लोकसभा की आवास समिति के अध्यक्ष रहे।
शिवराज वर्ष 2005 में भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किये गये। चौहान को 29 नवंबर 2005 को मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई गई। प्रदेश की तेरहवीं विधानसभा के निर्वाचन में चौहान ने भारतीय जनता पार्टी के स्टार प्रचारक की भूमिका का बखूबी निर्वहन कर विजयश्री प्राप्त की। चौहान को 10 दिसंबर 2008 को भारतीय जनता पार्टी के 143 सदस्यीय विधायक दल ने सर्वसमति से नेता चुना और 12 दिसंबर 2008 को पन: मुख्यमंत्री बने। शिवराज की अभी तक की सफल राजनीतिक यात्रा पर गौर करें तो हम पाते हैं कि उनमें एक कुशल राजनेता के सभी गुण हैं। शिवराज की इसी खुबी को भाजपा भुनाने की तैयारी कर रही है।
रामनामी ओढ़ कर राजनीति के मैदान में उतरी भारतीय जनता पार्टी अपनी साम्प्रदायिक छवि से आजिज आ चुकी है इसलिए वह अब अपनी छवि बदलने में लगी हुई है लेकिन उसे दमदार सेकूलर चेहरा नहीं मिल पा रहा है। भाजपा में लालकृष्ण आडवाणी,नितिन गडकरी,मरली मनोहर जोशी,अरुण जेटली, सुषमा स्वराज, राजनाथ सिंह, नरेन्द्र मोदी आदि जितने कदावर नेता है इन सबकी साम्प्रदायिक छवि है। जब भाजपा हिन्दू पार्टी थी। जब हिंदुओं को भाजपा ने आंदोलित किया था। तब दलित, फारवर्ड, जाट, किसान आदि सभी जातियों या वर्गो ने अपनी पहचान हिन्दू की मानी थी। तब जब आडवाणी ने राम रथयात्रा की थी। उस रियलिटी को भाजपा लीडरशिप ने आज इस दलील से खारिज किया हुआ है कि काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ा करती। आज का समाज, आज का नौजवान और आज का हिन्दू अयोध्या पुराण से आगे बढ़ चुका है। इसलिए जरूरत आज वाजपेयी बनने की है। पार्टियों को पटाने की है और 2014 के लिए एलांयस के जुगाड़ की है। ऐसे में पार्टी मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की सेकूलर छवि बनाने के लिए प्राणपण से जुट गई है। मुस्लिम वोटो को पटाने की कोशिश हो रही है।
असम,तमिलनाडु,केरल,पंदुचेरी और पश्चिम बंगाल में हुए विधानसभा चुनावों में भारी खर्चा और कड़ी मेहनत के बाद भी नतीजा उलटा निकलने से भाजपा को अहसास को गया है कि अगर आगामी लोकसभा चुनाव तक उसने अपनी छवि नहीं बदली तो लोकसभा चुनाव तो दूर वह भाजपा शासित राज्यों में भी सत्ता से बंचित हो सकती है। वर्तमान समय में गुजरात (मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी),उत्तराखण्ड (मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक),मध्यप्रदेश (मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान), छत्तीसगढ़ (मुख्यमंत्री रमन सिंह),झारखण्ड (मुख्यमंत्री अर्जुन मुण्डा),कर्नाटक (मुख्यमंत्री येद्दियुरप्पा),हिमांचल प्रदेश (मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल)और बिहार (उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ) में भाजपा या उसकी समर्थित सरकारे है। पार्टी इन राज्यों में सत्ता बरकरार रखने के साथ-साथ अन्य कई राज्यों सहित केन्द्र में भी सत्ताशीन होने का ख्वाब बुन रही है, इसलिए नितिन गडकरी,अरुण जेटली, सुषमा स्वराज, राजनाथ सिंह, सभी इन दिनों इस थीसिम में काम कर रहे है कि वोट जोड़ो, अल्पसंख्यक जोड़ो,दलित जोड़ो, किसान जोड़ो, फारवर्ड जोड़ो, उदार बनों और अपने को स्वीकार्य बनाते हुए जोड़तोड़ से सरकार बनाओं। साध्य आसान नहीं है,इसलिए साधनों को आहिस्ता आहिस्ता प्रयोग में लाया जा रहा है।
बीते साल जून में जब देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों को लेकर सुराज सम्मेलन का आयोजन किया गया था तो सम्मेलन में हुए विचार-विमर्श के बाद यह बहस शुरू हुआ था कि अब कौन है भाजपा का मुख्यमंत्री नंबर वन? हालांकि पार्टी नेतृत्व ने इस सवाल पर कन्नी काटने में ही भलाई समझी। उस एक साल पहले शरू हुई बहस का जवाब मिला है उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक में। जहां पार्टी पदाधिकारियों ने मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और उनकी योजनाओं की भरपूर प्रशंसा कर इस बात का संकेत दे दिया की वे ही भाजपा के मुख्यमंत्री नंबर वन हैं।
वर्तमान समय में गुजरात (मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी),उत्तराखण्ड (मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक),मध्यप्रदेश (मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान), छत्तीसगढ़ (मुख्यमंत्री रमन सिंह),झारखण्ड (मुख्यमंत्री अर्जुन मुण्डा),कर्नाटक (मुख्यमंत्री येद्दियुरप्पा),हिमांचल प्रदेश (मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल)और बिहार (उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ) में भाजपा या उसकी समर्थित सरकार है। लेकिन जिस प्रकार मप्र की योजनाओं को राष्ट्रीय स्तर पर मान,सम्मान मिला और अनुसरण हुआ उतना और किसी राज्य की योजनाओं को नहीं मिला। भाजपा का राष्ट्रीय नेतृत्व मानता है कि मप्र भाजपा ने हमेशा देश को दिशा दी है। मध्यप्रदेश में शिवराजसिंह चौहान के नेतृत्व से प्रदेश की तस्वीर बदली है। मप्र में भय,भूख,भ्रष्टाचार से मुक्ति की सबसे पहले पहल हुई। सत्ता और संगठन का जितना बेहतर तालमेल यहां है वह और किसी राज्य में नजर नहीं आ रहा है।
उल्लेखनीय है कि भाजपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद नितिन गडकरी ने बीते साल जून में जब देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों को लेकर सुराज सम्मेलन का आयोजन किया तो उसमें गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी मुख्य वक्ता बनाए गए। मोदी ने भाजपा के कई शीर्ष केंद्रीय नेताओं की मौजूदगी में भाजपा के मुख्यमंत्रियों को सुराज और सुशासन का पाठ पढ़ाया तो ऐसा लगा जैसे भाजपा को नंबर वन मुख्यमंत्री मिल गया। गडकरी के अध्यक्ष बनने के बाद हुए मुख्यमंत्रियों के इस सम्मेलन से पहले और बाद में देश के कई नामचीन उद्योगपतियों से लेकर बॉलीवुड के बादशाह अमिताभ बच्चन तक ने मोदी के नेतृत्व और शासन का बखान करने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी थी। अनेक लोगों को मोदी में भविष्य का प्रधानमंत्री बनने की क्षमता नजर आई। लेकिन गुजरात में लगातार भाजपा की जीत के नायक रहे मोदी पर गोधरा कांड का ऐसा दाग लगा है जिससे उनका उबर पाना मुश्किल है। भाजपा आलाकमान जानता है कि गठबंधन राजनीति के इस दौर में मोदी की कट्टरवादी छवि दिल्ली की कुर्सी तक ले जाने में बाधा खड़ी करेगी इसलिए उसने शिवराज की विकासवादी छवि को अपने एजेंडे में शामिल किया है।
इसका पहला नजारा मिला गडकरी के भाजपा अध्यक्ष बनने के साल भर बाद ही पिछले दिनों जब दिल्ली में भाजपा के मुख्यमंत्रियों का दूसरा सम्मेलन हुआ। वहां मु़बई अधिवेशन की अपेक्षा बहुुत कुछ बदला-बदला सा था। मोदी सम्मेलन में न तो मुख्य वक्ता थे और न ही उनका पहले जैसे एकछत्र जलवा ही था। सम्मेलन की खास बात यह भी रही कि इसमें विकास, सुराज और सुशासन जैसे शब्दों के लिए केवल गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का ही नाम नहीं लिया गया बल्कि मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को तो सबसे अधिक सराहना मिली। ऐसे में यह सवाल उठना भी लाजिमी था कि क्या विकास के नाम पर नरेंद्र मोदी के मुकाबले में भाजपा के दूसरे मुख्यमंत्रियों को खड़ा किया जा रहा है? हालांकि इस सवाल पर भाजपा का कोई भी नेता ऐसा कुछ नहीं बोला जो पार्टी के मुख्यमंत्रियों के बीच कलह का कारण बनता। पार्टी के प्रवक्ताओं से जब यह पूछा गया कि क्या इस बार भी नरेंद्र मोदी सम्मेलन में छाए रहे? तो उत्तर मिला-भाजपा के सभी मुख्यमंत्री अच्छा काम कर रहे हैं। इसलिए भाजपा के मुख्यमंत्रियों के सम्मेलन में जिस प्रकार की प्रशंसा मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की हुई है उससे तो यही लगता है कि राट्रीय स्तर पर भाजपा का चेहरा बनने से पहले मोदी को भाजपा के भीतर ही कड़ी चुनौती मिल मिल रही है। और लखनऊ में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक में तो लगभग इस बात का संकेत भी मिल गया है कि अब भाजपा को वह चेहरा मिल गया है जिसे आगे कर वह आगे की रणनीति बना सकती है। दरअसल, भाजपा का लक्ष्य 2014 में होने वाले लोकसभा चुनाव और उससे पहले होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए अपना लक्ष्य तय करना है। पार्टी को अटल-आडवाणी के बाद एक ऐसे व्यक्ति की तलाश है जो राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी का चेहरा बन सके। जिसके नाम जनता वोट दे और जो अपने काम और नाम से जनता को भाजपा को वोट देने के लिए प्रेरित कर सके।
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी का तो कहना है कि भ्रष्टाचार उन्मूलन के लिए मध्य प्रदेश सरकार की योजनाओं का दूसरे राज्यों को भी अनुकरण करना चाहिए। वहीं, पार्टी के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी का कहना है कि मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में पार्टी संगठन और राज्य सरकार के बीच बेहतर तालमेल सराहनीय है अन्य भाजपा शासित राज्यों को भी इसका अनुकरण करना चाहिए। गडकरी बड़े विश्वास के साथ कहते हैं कि मध्य प्रदेश की सभी 29 सीटों पर विजयी होकर लाल किला का रास्ता यही से तैयार करना है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक पदाधिकारी कहते हैं कि मप्र भाजपा में मुख्यमंत्री पद को लेकर मचे घमासान के बीच एक बार पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा ने लिखा था, मत चूको चौहान। छह माह के भीतर ही मुख्यमंत्री की कुर्सी पर आसीन होकर शिवराज सिंह चौहान ने अपने राजनैतिक गुरू की वाणी को सही साबित किया। तब से प्रदेश की राजनीति की पटरी पर आई शिवराज एक्सप्रेस धीरज के साथ बढ़ती ही जा रही है। भारी झंझावात के बीच जब उन्होंने कुर्सी संभाली थी तो कयास लग रहे थे कि शिवराज की राह में प्रशासनिक अनुभवहीनता आड़े आएगी। यह कयास गलत निकले। धीरे ही सही लेकिन उन्होंने प्रदेश में विकास और सुशासन की ऐसी लहर पैदा की केवल भाजपा शासित राज्य ही नहीं बल्कि देश के अन्य राज्यों के मुख्यमंत्रियों से आगे निकलकर राजनैतिक बिसात पर भी बाजी मार ली।
जानकारों की माने तो यह सब दो साल बाद की राजनीतिक परिस्थितियों को ध्यान में रख किया जा रहा है। राष्ट्रीय फलक पर गौर करें तो भाजपा के पास ऐसे चेहरों की कमी दिखाई पड़ती है जो भीड़ खींचने का माद्दा रखते हो और जिनकी छवि भी अच्छी हो। ना काहू से दोस्ती ना काहू से बैर की नीति पर चलने वाले शिवराज इस पैमाने पर फिट बैठते हैं। उन्हें चुनौती गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी और हाल ही में पार्टी की सदस्य बनी उमा भारती से मिल सकती है। लेकिन दोनों हिंदूवादी चेहरे हैं जिनसे गठबंधन के इस दौर में कई सहयोगियों को दिक्कत हो सकती है,इसलिए शिवराज जैसे मध्यमार्गी नेता पार्टी के लिए फायदेमंद रह सकते हैं। इसे ध्यान में रख कर ही उन्हें अल्पसंख्यकों के निकट ले जाया जा रहा है। इसकी शुरूआत भोपाल में 12 जून को भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा द्वारा शिवराज के सम्मान के साथ हुई। मौके की नजाकत देखते हुए शिवराज ने भी आव देखा न ताव और घोषणा कर दी की- मैं मुसलमानों की सुरक्षा करूंगा और उन्हें कोई दिक्कत नहीं होने दूंगा। जिस तरह से इंसान की दो आखें व दो बाजू होते हैैं उसी तरह हिंदू और मुसलमान मेरे लिए हैैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की इस घोषणा पर टिप्पणी करते हुए मध्य प्रदेश कांग्रेस सदभावना प्रकोष्ट के प्रदेश अध्यक्ष मुश्ताक मलिक कहते हैं कि पूरा प्रदेश जानता है कि शिवराज के कार्यकाल में आरएसएस, विश्व हिन्दु परिषद, बजरंग दल द्वारा विभिन्न अवसरों पर प्रदेश को झुलसाने की कोशिश की गई। मध्यप्रदेश में जब से भाजपा सरकार आई है तब से प्रदेश के करीब 250 स्थानों पर साम्प्रदायिक दंगे हुए हैं और अल्पसंख्यक समुदाय के बेकसूर लोगों पर भाजपा सहित और उनके सहयोगी संगठन आरएसएस और बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने सुनियोजित एवं षडय़ंत्रपूर्वक अत्याचार कर काफी नुकसान पहुंचाया है। ऐसे में शिवराज की साम्प्रदायिक छवि को भाजपा सेकूलर बनाने की कोशिश कर दाग धोने की कोशिश कर रही है। उधर शिवराज की सेकूलर छवि के सम्मान पर बरसते हुए कांग्रेस के विधायक आरिफ अकील ने सम्मान को मुसलमानों के साथ छलावा बताते हुए कहा की शिवराज का सम्मान मुसलमानों का अपमान है।
अकील कहते हैं कि मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार अपने खर्चे पर मुख्यमंत्री का सम्मान करवाकर अल्पसंख्यकों के घावों पर मरहम लगाने की कोशिश कर रही है। जबकि प्रदेश का बच्चा-बच्चा तक जानता है कि प्रदेश की भाजपा सरकार के संरक्षण में 1 जनवरी 2004 से लेकर अब तक करीब 250 बार मुस्लिम समुदाय को परेशान करने के लिए साम्प्रदायिक माहौल बिगाडऩे की कोशिश की गई। वह सरकार से सवाल करते हुए पूछते हैं कि आज मुस्लिम समुदाय की हितैशी बनने की कोशिश कर रही सरकार ने आज तक मुसलमानों के लिए क्या किया। प्रधानमंत्री कार्यालय के पत्र क्रमांक 850/3/सी/3/05- पोल दिनांक 9 मार्च 2005 को अधिसूचना जारी कर भारत के मुस्लिम समुदाय की सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक स्थिति पर रिपोर्ट तैयार करने के लिए न्यायमूर्ति राजिन्दर सच्चर की अध्यक्षता में 7 सदस्यीय समिति का गठन किया है। इस समिति की रिपोर्ट को मध्यप्रदेश में लागू नहीं करने के संबंध में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने विधानसभा से लेकर जनसभाओं तक में बोला है कि प्रदेश में सच्चर कमेटी की सिफारिशें लागू नहीं की जाएंगी। इससे दो समुदायों दरार पैदा होगी लेकिन इसके पीछे षडय़ंत्र यह है कि कहीं मुसलमानों का उत्थान न हो जाए, वे सामाजिक, आर्थिक एवं शैक्षणिक दृष्टि से परिपक्व न हो जाए। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि भाजपा सरकार मुस्लिम समुदाय की कितनी हितैषी है। वह सिर्फ मुसलमानों को वोट बैंक के रूप मे इस्तेमाल करना चाहती है।
दरअसल भाजपा लीडरशिप सिर्फ वाजपेयी के प्रधानमंत्रित्व काल की याद में खोई हुई है। जिन्हें प्रधानमंत्री बनना है, वे भाजपा के रणनीतिकार है। और ये सत्ता का मूल मंत्र वाजपेयी की कथित स्वीकार्यता का मानते हंै। ऐसा था नहीं। भाजपा जिन 180 सांसदों की ताकत से सत्ता में आई थी, उसकी वजह हिन्दू लहर थी। मंदिर आंदोलन था। 180 सांसदों की जीत के पीछे दलित, जाट, किसान, फारवर्ड, बैकवर्ड का अलग-अलग मैनेजमेंट नहीं था बल्कि हिन्दू नारा था। इस कोर ताकत से 180 सांसद आए तो उसके बाद सरकार बनाने के लिए जरूरी 273 सांसदों की संख्या याकि 94 सांसदों वाले जयललिता और चंद्रबाबू जुड़ गए। पहली वजह भाजपा का 180 सांसदों का हिन्दू वोट बैंक था। उसी से भाजपा धुरी बनी। उस धुरी की तरफ पार्टियां खिंची चली आई। तब किसी ने यह नहीं कहां कि भाजपा जैसी कम्युनल पार्टी के साथ कैसे सत्ता साझेदार हो सकते हैं?
हिन्दू मूल के चाल,चेहरे और चरित्र की 180 सीटों की उस ताकत को भाजपा ने आज गंवाया हुआ है। उसकी भरपाई के लिए वह कभी दलित वोट जोडऩे, कभी किसान वोटों की राजनीति या कभी मुस्लिम को नाराज नहीं करने की उधेड़बुन में रहती है। मतलब भाजपा में 180 सीटों के बजाय बाद के 94 सांसदों के जुगाड़ वाले एलायंस पर फोकस है। अरुण जेटली, सुषमा स्वराज, राजनाथ सिंह आदि सभी मान कर चल रहे ह़ै कि सन् 2014 में 180 सीटे अपने आप आएगी। इसलिए प्रधानमंत्री बनने के लिए ज्यादा जरूरी बाकी 84 सांसदों के एलायंस पर पूरा फोकस बनाना है। अपनी स्वीकार्यता बनाना है। इन सबका फोकस पार्टियों और नेताओं को पटाने, मीडिया में वाजपेयी छाप इमेज बनवाने और मीडिया से जिम्मेवार पार्टी प्रचारित करवाने पर है। यह एप्रोच व्यक्तिवादी सोच से उपजी है। सेल्फ प्रमोशन की कारस्तानी है। सेल्फ प्रमोशन, मैनेजमेंट और सुविधा की राजनीति में भाजपा ऐसी ढ़ल गई है कि नागपुर से आए नितिन गडकरी को भी दिल्ली में यह तर्प जंचा है कि नरेंद्र मोदी, वरुण गांधी, उमा भारती, डॉ.सुब्रह्मण्यम स्वामी जैसों को उतारना महंगा पड़ेगा। इसलिए इनदिनों सबकी नजर शिवराज सिंह पर है।
भाजपा में हर कोई प्रधानमंत्री बनने के ख्याल में खोया हुआ है तो वजह यह सोच है कि सन् 2014 तक कांग्रेस पूरी तरह बर्बाद होगी। पर ये यह नहीं सोच रहे है कि कांग्रेस के बरबाद होने से भाजपा कहां आबाद हो रही है? भाजपा ले दे कर मध्यप्रदेश, गुजरात, राजस्थान, कर्नाटक हिमाचल, जैसे सात-आठ राज्यों की 140 सीटों वाली पार्टी है। भाजपा का 2014 का लोकसभा चुनाव महज सवा दो सौ सीटों का बनता है। इसमें भी आधी से ज्यादा सीटों पर उसे एंटी इनकंबेसी का सामना करना पड़ेगा। पर यह रियलिटी गडकरी, जेटली, सुषमा को दिखलाई नहीं देती है। इसलिए कि इनका फोकस मैनेजमेंट और इस जोड़-तोड़ पर है कि नीतिश कुमार, जयललिता, चंद्रबाबू या जगनमोहन या ममता या प्रफुल्ल महंत या मायावती से एलायंस बना सकने के लिए क्या किया जाएं? भाजपा की टॉप लीडरशिप का पूरा फोकस सन् 2014 में जैसे- तैसे प्रधानमंत्री पद के जुगाड़ का है। प्रधानमंत्री पद और सत्ता की आकांक्षा होना गलत बात नहीं है। पर आकंक्षा यदि मुंगेरी लाल के सपने जैसी हवाई हो तो उसमें क्या कुछ बन सकता है? भाजपा के तमाम नेता यह सोच कर बल्ले-बल्ले है कि कांग्रेस से हालात नहीं संभल रहे हैं इसलिए उनका अवसर है। पर क्या ऐसा है? यह तो उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव में लग ही जाएगा।

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