रविवार, 1 मार्च 2015

बीमार उद्योगों की जमीन पर स्थापित होंगे नए उद्योग

पीएमओ ने मांगी 27 हजार हेक्टेयर जमीन की रिपोर्ट
मेक इन इंडिया को हकीकत में बदलने की शुरूआत होगी मप्र से
विनोद उपाध्याय
भोपाल। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मेक इन इंडिया नारे को हकीकत में बदलने के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ)ने अपने हाथ में काम ले लिया है। पीएमओ ने अपने प्रारंभिक पड़ताल में मप्र को औद्योगिक हब बनाने का खाका तैयार किया है। प्रदेश भर में खाली पड़े इंडस्ट्रियल प्लॉट का आवंटन करने की कवायद शुरू कर दी है। इसके साथ ही मध्य प्रदेश में बीमार उद्योगों के पास जो 27 हजार हेक्टेयर जमीन है उसे भी अधिगृहित करने की तैयारी की जा रही है। पीएमओ पूरी योजना की सीधी निगरानी कर रहा है। उल्लेखनीय है कि मप्र में अब तक हुए इंवेस्टर्स समिट में लाखों करोड़ रूपए के निवेश के प्रस्ताव आए और एमओयू हुए, लेकिन प्रदेश में उस अनुपात में औद्योगिक निवेश नहीं हुआ। आलम यह है कि मध्य प्रदेश सरकार औद्योगिक विकास के लिए लगातार निवेश को महत्व दे रही है, निवेशकों को लुभाने का हरसंभव प्रयास कर रही है, मगर निवेश बढऩे की बजाय गिरता जा है। एसोसिएटेड चैम्बर ऑफ कामर्स एण्ड इंडस्ट्रीज ऑफ इंडिया (एसोचैम) द्वारा किए गए एक अध्ययन से पता चलता है कि राज्य में बीते वर्ष निवेश में पिछले वर्ष की तुलना में 83 प्रतिशत की गिरावट आई है। एसोचैम के इकोनॉमिक रिसर्च ब्यूरो द्वारा कराए गए इस अध्ययन में बीते वर्ष निवेश में गिरावट का भी खुलासा हुआ है। इस रिपोर्ट के मुताबिक वित्तीय वर्ष 2013-14 में नए निवेश में 83 प्रतिशत की भारी गिरावट दर्ज की गई है। वित्तीय वर्ष 2012-13 में जहां 37 हजार करोड़ रुपए का नया निवेश किया गया था, वहीं गुजरे वित्त वर्ष में यह गिरकर मात्र 6350 करोड़ रुपए ही रह गया। उधर, अक्टूबर में इंदौर में हुए इंवेस्टर्स समिट में विभिन्न औद्योगिक घरानों ने मध्य प्रदेश में निवेश के बड़े वादे किए। रिलायंस समूह से लेकर अदाणी समूह ने यहां मध्य प्रदेश सरकार के वैश्विक निवेशक सम्मेलन में करीब 7 लाख करोड़ रुपए के निवेश की प्रतिबद्धता जताई। जबकि प्रदेश सरकार ने कहा था कि 1 लाख करोड़ का निवेश संभावित है, लेकिन अभी तक कोई सामने नहीं आया है। इसको देखते हुए अब पीएमओ ने मप्र को औद्योगिक हब बनाने की तैयारी शुरू कर दी है। पीएमओ की योजना अनुसार सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग मंत्रालय(एमएसएमईं ) द्वारा यह प्रयास किया जा रहा है कि राज्य सरकारें खाली पड़े इंडस्ट्रियल प्लॉट के आंवटन की प्रक्रिया को सरल करें। इस दिशा में क्या कदम उठाए गए, कितने प्लॉट आवंटित हुए इसकी हर महीने समीक्षा की जाएगी। एमसएमई सेक्टर में मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने के लिए गठित अंतर मंत्रालीय समूह (आईएमजी) ने अच्छे बिजनेस प्लान रखने वाले कारोबारियों के लिए देश भर में खाली पड़े 30 हजार प्लॉट का आवंटन करने का प्रस्ताव दिया था। जिसके आधार पर राज्यों के साथ मिलकर जरूरी प्रावधान किए जा रहे हैं। मप्र में भूमि अधिग्रहण की समस्याओं को देखते हुए खाली पड़े प्लॉट को आवंटित करने की योजना बनाई गई है। इन प्लॉट पर कारोबार शुरू करना कहीं ज्यादा आसान है। यहां पहले से ही इंफ्रास्ट्रक्चर मौजूद है, ऐसे में कारोबारियों को कई सारे प्रक्रियागत मामलों से निजात मिल जाएगी।
राज्य सरकार कानून करेगी आसान
बताया जाता है की इस संबंध में राज्य सरकार से बातचीत शुरू हो गई है। जिसमें यह कहा गया है कि वह खाली पड़े प्लॉट के आवंटन प्रक्रिया को आसान करें। जिससे कि उनका आवंटन जल्द से जल्द किया जा सके। एमएसएमई मंत्रालय की कोशिश है कि आवंटन प्रक्रिया को जल्द से जल्द पूरा कर लिया जाए। मंत्रालय ने सभी राज्य सरकार से कहा है कि वह अपने यहां औद्योगिक पार्कों, इंडस्ट्रियल एस्टेट और स्पेशल इकॉनोमिक जोन में खाली पड़ी जमीन की तलाश करे और ये खाली जमीन छोटे उद्योगों को उपलब्ध कराएं। सरकार की योजना इन जमीनों पर नॉन कोर सेक्टर के उद्योगों को स्थापित करने की है। खाली पड़ी इन जमीनों का सबसे अधिक फायदा टैक्स्टाइल, आईटी, ऑटो पार्ट और फूड प्रोसेसिंग जैसे नॉन कोर सेक्टर के उद्योगों को मिल सकता है। ये उद्योग बेहद कम स्थान पर स्थापित होते हैं। ऐसे में सरकार छोटे इंडस्ट्रियल प्लॉट पर अधिक संख्या में उद्योग स्थापित कर सकेगी।
खाली पड़े हैं 7 हजार औद्योगिक भूखंड
केंद्रीय एमएसएमई मंत्रालय के अनुसार, मप्र में औद्योगिक पार्क, इंडस्ट्रियल एरिया और स्पेशल इकॉनोमिक जोन में करीब 7,000 और देश भर में 40,000 से अधिक औद्योगिक भूखंड खाली पड़े हैं। औद्योगिक जमीनों सबसे बड़ी समस्या स्पेशल इकॉनोमिक जोन में है। देश भर में खाली पड़े प्लॉट में से 50 फीसदी प्लॉट विशेष आर्थिक क्षेत्रों (सेज) में खाली पड़े हैं। यदि राज्य सरकारें उचित योजना बनाकर इन खाली भूखंडों को जरूरतमंद उद्योगों को उपलब्ध कराते हैं तो देश भर में लाखों नए उद्योग सफलता पूर्वक शुरू हो सकते हैं। इसको देखते हुए सबसे पहले मप्र से इसकी शुरूआत होने जा रही है। उधर,प्रदेश सरकार बीमार उद्योगों के पास पड़ी 27 हजार हेक्टेयर जमीन भी अधिगृहित करने की तैयारी कर रही है। इसके लिए नोटिस भेजना शुरू कर दिया गया है।
उद्योग न शुरू करने पर वापस हो सकती हैं जमीनें
छोटे उद्योगों को जमीन उपलब्ध कराने के लिए मध्य प्रदेश सरकार औद्योगिक क्षेत्रों का सर्वे भी करवा रही हैं। इसके तहत उन उद्योगों की जांच की जा रही है जिन्होंने औद्योगिक क्षेत्रों में जमीन तो ले रखी है। लेकिन लंबे समय से वहां पर औद्योगिक गतिविधि शुरू नहीं की है। ऐसे उद्योगों की जमीनें वापस ली जा सकती हैं। इसके साथ ही जरूरत से ज्यादा जमीन अपने नाम पर आवंटन करवाने वाले उद्योगों की जमीनें वापस लेने की तैयारी भी की जा रही हैं। विंध्य व महाकौशल के लिए जबलपुर-कटनी-सतना-सिंगरौली इंडस्ट्रीयल कॉरिडोर बहुप्रतिक्षित योजना है। इस योजना के मूर्त रूप लेने से सतना, रीवा, सीधी व सिंगरौली में विकास के अवसर पर उपलब्ध होंगे, वहीं जबलपुर व कटनी का भी औद्योगिक विकास होगा। इसके लिए मप्र शासन ने 6 जिलों में करीब 6.5 हजार वर्ग हेक्टेयर जमीन चिह्नित की है। लगभग 370 किमी दायरे में चिह्नित जमीनों पर औद्योगिक क्षेत्र विकसित किया जाएगा। इन पर बड़े उद्योग तो लगेंगे ही साथ ही लघु और सूक्ष्म उद्योग भी लगाए जाएंगे। इतने बड़े पैमाने पर उद्योग स्थापित होने से रोजगार व संसाधन दोनों का विकास होगा। कॉरीडोर को अमलीजामा पहनाने की जिम्मेदारी एकेवीएन को दी गई है। विभाग ने कलेक्टरों के माध्यम से जमीन की तलाश शुरू कर चुकी है। विंध्य व महाकौशल के 6 जिलों में 6541.842 वर्ग हेक्टेयर लैंड बैंक सुरक्षित की गई है।
सबसे ज्यादा लैंड बैंक कटनी में
प्रस्तावित इंडस्ट्रीयल कॉरिडोर के लिए सतना, रीवा, सीधी, सिंगरौली, जबलपुर व कटनी में किया जमीन तलाशी गई है। सबसे ज्यादा जमीन कटनी में 4350.581 वर्ग हेक्टेयर है, जबकि सबसे कम सीधी में 91.156 वर्ग हेक्टेयर है। सतना में 892.495, रीवा में 244.186, सिंगरौली में 232.620 और जबलपुर में 724.794 वर्ग हेक्टेयर जमीन चिह्नित की गई है। इंडस्ट्रीयल कॉरिडोर के लिए जमीन चिह्नित करने में इस बात का ध्यान रखा गया है कि जमीन नेशनल हाइवे से ज्यादा दूर न हो। सतना के उचेहरा में 86.219, इचौल में 29.974, बगहा में 40.134, नयागांव-बिरसिंहपुर में 100.170, रहिकवार में 64. 096, सुरदहा कला में 96.035, खिरिया कोठार में 14.824, सोनौरा में 86.752, उमरी-रामपुर बाघेलान में 67.57 व बाबूपुर अतरहरा-उचेहरा में 180.364 वर्ग हेक्टेयर जमीन चिह्नित है। रीवा में मऊगंज के घुरहेटा कला में 175. 059 व गुढ़ के हरदी में 69.137 वर्ग हेक्टेयर चिह्नित जमीन है। सिंगरौली में 52.560, पिडस्ताली में 63.122, फुलवारी में 60.630, बाघाडीह में 29.980 व गनियारी में 32.328 वर्ग हेक्टेयर, सीधी के चोरबा में 9.940, रामपुर सिहावल में 72.136 व बरहाई चुरहट में 9.080 वर्ग हेक्टेयर जमीन चिह्नित है।
हर जिले में अलग उद्योग
इस योजना के तहत हर जिले की विशेषता के आधार पर औद्योगिक इकाई लगाई जाएगी। सतना में सीमेंट उद्योग के अलावा खाद्य प्रसंस्करण के लिये सप्लाई चेन लॉजिस्टिक सेंटर, प्रोसेसिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर रीजनल हब्स का विकास, फूड प्रोसेसिंग यूनिट आदि विकसित की जाएगी। इंडस्ट्रियल कॉरीडोर एनएच- 7 व 75 पर प्रस्तावित है। इसमें सिटी सेंटर, मल्टी प्रोडक्ट इंडस्ट्रीयल पार्क, लॉजिस्टिक पार्क, एग्रो एंड हार्टीकल्चर पार्क, कोल बेस्ड पार्क, वुड पार्क, हर्बल पार्क, फीस प्रोसेसिंग पार्क, होटल डेवलपमेंट प्रोजेक्ट, इंजीनियरिंग पार्क, टूरिस्ट विलेज, रूरल टेक्नोलॉजी पार्क, इंटीग्रेटेड टाउनशिप को शामिल किया गया है। इसको लेकर एकेवीएन काम भी कर रहा है। इसके बनने से यह क्षेत्र सभी महानगरों के संपर्क में रहेगा।
जमीन लेने तक सिमटे निवेशक
प्रदेश सरकार मप्र में औद्योगिक निवेश को आकर्षित करने की रणनीति फिलहाल निवेशकों को रास नहीं आ रही है। सरकार की देश-विदेश की यात्राओं और रोड शो के मद्देनजर हाईटेक बुलाव और ब्रांडिंग पर निवेशक मप्र में होने वाले इंवेस्टर्स समिट में मेहमान बनकर आने में तो जरूर रुचि दिखा रहे हैं, लेकिन वह सरकार और सूबे की जनता के भरोसे पर खरा नहीं उतर पा रहे हैं। यही कारण है कि इंवेस्टर्स समिट में दिल खोलकर एमओयू साइन करने और निवेशक घोषणा करने वाले यह उद्योगपति जमीन पर अपने उद्योगों को नहीं उतार पा रहे हैं। इसके चलते न तो प्रदेश में उद्योगों का जाल बिछ पा रहा है और न ही सूबे के बेरोजगार शिक्षित और अशिक्षित युवाओं को रोजगार मिल पा रहा है। हालांकि, यह बात और है कि इसके उलट प्रदेश सरकार मेहमान बनकर आने वाले निवेशकों और देश-विदेशी उपद्योगपतियों पर जमकर मेहरबान है और उनकी अगवानी और स्वागत में खर्च करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रही है। यही कारण है कि अब तक करीब 10 से अधिक इंवेस्टर्स समिट में अरबों रुपए से अधिक की राशि खर्च हो चुकी है, लेकिन प्रदेश में इसके एवज में आया निवेश कुछ खास नहीं कर पाया है। आंकड़ों पर गौर करें तो प्रदेश सरकार देशी-विदेशी उद्योगपतियों को रिझाने और मप्र में औद्योगिक निवेश को बढ़ाने के लिए अब तक इंवेस्टर्स समिट में करीब 120 करोड़ रुपए से अधिक की राशि खर्च कर चुकी है, लेकिन इसके नजीते में अब तक मात्र एक दर्जन से अधिक उद्योग ही धरातल पर उतर सके हैं। पिछली इंवेस्टर्स समिट के दौरान उद्योगपतियों के बीच किए गए कुल 327 एमओयू (मेमोरैंडम ऑफ अंडरस्टैडिंग) में से 33 निरस्त हो चुके हैं। यही नहीं शेष उद्योग या तो सर्वे तक सीमित हैं या काम चालू होने की स्थिति तक सिमटे हुए हैं। हालांकि, अभी तक कुल मिलाकर काम शुरू कर चुके करीब 20 उद्योगों में मात्र 6582 लोगों को ही रोजगार मिल सका है। प्रदेश में वर्ष 2008 से लेकर अब तक कुल 9 इंवेस्टर्स समिट हुई हैं। इनमें कुल 327 एमओयू हुए हैं, जिनमें करीब 20 करोड़ 5 लाख 20 हजार रुपए से अधिक की राशि खर्च हुई है। वहीं हाल ही में इंदौर में हुई ग्लोबल इंवेस्टर्स समिट में करीब 100 करोड़ रुपए (अनुमानित-ज्यादा भी हो सकती है) से अधिक राशि खर्च हुई है। पिछली इंवेस्टर्स समिट में नजर डालें तो अब तक करीब 50 से अधिक एमओयू निरस्त हो चुके हैंं। इन एमओयू में करीब एक लाख करोड़ रुपए से अधिक राशि के निवेश शामिल हैं, जो आंकड़ों में तो शामिल हो गए, लेकिन वह जमीन पर नहीं उतरेंगे। सूत्रों की मानें तो अभी तक 170 उद्योगों में ही सर्वे कार्य का शुरू हुआ है, जबकि 109 उद्योगों में जमीनी स्तर पर काम चालू हो गया है। वर्तमान में इनमें से कुल 13 उद्योगों पर ही उत्पादन शुरू हुआ है, जिनके जरिए सरकारी आंकड़े में मात्र 6 हजार 582 लोगों को ही रोजगार मुहैया हो सका है, जबकि सरकार इसके लिए अरबों की राशि सरकारी खजाने में से खर्च कर चुकी है।
निवेश के बजाय तारीफ में दिखा इंट्रस्ट
अक्टूबर माह में इंदौर में आयोजित ग्लोबल इंवेस्टर्स समिट में देश के विभिन्न उद्योग समूह के प्रमुखों ने न केवल मप्र में निवेश की इच्छा जताई, बल्कि सरकार के मुखिया शिवराज सिंह चौहान के सामने खूब तारीफ भी की। इस दौरान उद्योगपति मुकेश अंबानी ने रिलायंस समूह द्वारा आगामी डेढ़ वर्ष में 20 हजार करोड़ का निवेश और उनके छोटे भाई अनिल अंबानी ने रिलायंस एडीए समूह के मप्र में मौजूदा 30 हजार करोड़ के निवेश को बढ़ाकर 60 हजार करोड़ करने का वादा किया, तो वहीं अधिकांश उद्योगपति निवेश राशि की घोषणा के बजाय सरकार की उपलब्धि और खूबी गिनाने में ज्यादा ध्यान दिया। टाटा समूह के चेयरमेन सायरस मिस्त्री ने निवेश राशि की घोषणा के बजाय 10 हजार युवाओं को रोजगार का वादा किया। तो वहीं उद्योगपति गौतम अडानी ने कहा कि वह प्रदेश में 20 हजार करोड़ का निवेश करेंगे। वहीं एस्सार समूह के चेयरमेन शशि रूइया ने ऊर्जा, स्टील, बीपीओ तथा कोलबेंड में 4000 करोड़ के निवेश की बात कही, जबकि वेलस्पन समूह की सिंदूर मित्तल ने मप्र में 5000 करोड़ की घोषणा की। उधर, विदेशी निवेशकों में आस्ट्रेलिया से आए जेएनएस समूह के जान स्टोन ने निवेश राशि की घोषणा के बजाय प्रदेश सरकार की तारीफ में पुल बांधते ही दिखे। यही नहीं फ्यूचर समूह के चेयरमेन किशोर बियानी ने मप्र में फूड पार्क स्थापित कर 10,000 युवाओं को रोजगार का वायदा किया। हालांकि, सीआईआई के चेयरमैन तथा डीसीएम समूह के प्रमुख अजय श्रीराम, सिम्बोइसिस की प्रबंध संचालक डॉ. स्वाति मजूमदार, आईटीसी के वायसी देवेश्वर मप्र की सराहना तक सीमित रहे। ऐसे में इस भारी-भरकम इंवेस्टर्स समिट में निवेशकों के एमओयू और निवेश राशि की घोषणा के बजाय सरकार और सरकारी उपलब्धियों में ही व्यस्त दिखे। ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि आगामी दिनों में यह निवेश और उद्योग धरातल पर उतरते हैं या फिर पिछली बार की तरह घोषणा तक ही सीमित रह जाते हैं।
ऐसे में मप्र कैसे बनेगा पॉवर हब
आंकड़ों के मुताबिक, प्रदेश सरकार और विभिन्न उद्योगपतियों व निवेशकों के बीच हुए एमओयू में से सबसे ज्यादा स्टील, आयरन और सीमेंट प्लांट के एमओयू निरस्त हुए हैं। प्रदेश सरकार एक और दावा कर रही है कि आने वाले दिनों में मध्य प्रदेश ऊर्जा के मामले में सरप्लस प्रदेश होगा, लेकिन जिस तरह से पॉवर प्लांट के एमओयू निरस्त हुए हैं उससे सरकार के इस दावे को झटका लग सकता है। यहां सबसे मजेदार बात यह है कि वर्ष 2013 में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले राज्य सरकार ने 24 घंटे बिजली देने का ऐलान किया था है, लेकिन विधानसभा चुनाव होने और तीसरी बार भाजपा की सरकार बनने के बाद प्रदेश सरकार के इस दावे की हवा निकल चुकी है और आज गांवों में ही नहीं, बल्कि शहरों में भी 24 घंटे बिजली की आपूर्ति नहीं हो पा रही है। यही नहीं पिछले माह प्रदेश में अचानक आए बिजली संकट ने सरकार के दावों की पोल खोलकर रख दी है। बड़ी संख्या में पॉवर प्लांटों के एमओयू निरस्त होने के कारण आगामी सालों में मप्र में बिजली उत्पादन बढऩे और सूबे के पॉवर हब बनाने के सरकार के दावे में कितना दम है यह भी आने वाले दिनों में साफ हो जाएगा। वैसे निवेशकों की रुचि और निरस्त हो रहे एमओयू को देखकर लगता नहीं है।
जमीन नहीं की चिन्हित और एमओयू किए निरस्त
बताया जाता है कि जिन उद्योगपतियों ने एमओयू निरस्त किए हैं, उन्होंने प्रदेश में अपने उद्योग के हिसाब से जमीन के लिए स्थान चिन्हित नहीं किया था, लेकिन जब इन उद्योगों को धरातल में उतारने की बात आई तो उन्होंने एमओयू निरस्त कर दिया। निरस्त एमओयू में करीब एक दर्जन उद्योग 1000 से लेकर 2000 करोड़ रुपए के बीच के हैं।
13966 करोड़ के एमओयू निरस्त
प्रदेश सरकार के साथ उद्योगपतियों के साथ किए गए कुल 327 एमओयू में से करीब 33 निरस्त हुए हैं। इससे प्रदेश से करीब 13 हजार 966 करोड़ रुपए का निवेश छिन गया है। निरस्त होने वाले एमओयू में सबसे ज्यादा निवेश छोटे जिलों में होना था। इनमें से कुछ चंबल संभाग के हैं तो ज्यादातर महाकौशल, विन्ध्य क हैं, जबकि निरस्त होने वाले एमओयू में इंदौर क्षेत्र के उद्योग काफी कम हैं।
अब तक हुई इंवेस्टर्स मीट
इवेंस्टर्स मीट आयोजन स्थान अवधि खर्च एमओयू
जबलपुर इंवेस्टर्स मीट फरवरी 2008 59.13 43
बुंदेलखंड इंवेस्टर्स मीट सागर अप्रैल 2008 19.91 25
इंवेस्टर्स मीट ग्वालियर जुलाई 2008 114.00 29
प्रवासी भारतीय सम्मेलन भोपाल जनवरी 2010 42.94 -
ग्लोबल समिट-11 खजुराहो अक्टूबर 2012 563.29 71
एमपी बायर सेलर मीट भोपाल फरवरी 2012 84.85 -
एमपी टेक्सटाइल एक्सपो इंदौर मार्च 2012 124.18 -
एग्री बिजनेस मीट इंदौर मई 2012 31.98 -
ग्लोबल इंवेस्टर्स समिट इंदौर अक्टूबर 2012 9.65 159
ग्लोबल इंवेस्टर्स समिट इंदौर अक्टूबर 2014 100.00
यह हुए निरस्त
कंपनी प्लांट निवेश स्थल एमओयू में. रश्मी मेटालिक लि. कोलकाता एल्यूमि. प्लांट जबलपुर 1000 करोड़ में. जीएल स्टील एंड पॉवर लि. स्पांज आयरन कटनी 310 करोड़ में. कार्पोरेट स्पात एलॉय नागपुर थर्मल पॉवर प्लांट शहडोल 800 करोड़ में. अग्रवाल इंडो टेक्स मुंबई मैग्नीज प्रोडक्ट बालाघाट 110 करोड़ में. जैन स्टील एंड पॉवर लि. स्टील प्लांट – 1000 करोड़ ूमें. जैसवाल निको इंडस्ट्रीज नागपुर पॉवर, आरयन अनूपपुर 1465 करोड़ में. सार्थक इंडस्ट्रीज मुंबई सीमेंट प्लांट झाबुआ 700 करोड़ में. रूंगटा माइंस कोलकाता सीमेंट प्लांट कटनी 450 करोड़ में. शिवम नेचरल रिर्सोस डेव. आ. एंड मैग्नीज जबलपुर 25.10 करोड़ में. कोरबा मेटल्स एंड कंडक्टर्स आयरन एंड पॉवर सिहोरा 62.00 करोड़ में. सिमबोली शुगर लि. नई दिल्ली शुगर इंडस्ट्रीयल डबरा 400 करोड़ में. अनिक इंडस्ट्रीज लि. मुंबई मार्बल ग्रेनाइट नरसिंहपुर 200 करोड़ में. अनिक इडस्ट्रीज लि. मुंबई आयरन प्रोजेक्ट जबलपुर 200 करोड़ में. नेवा स्टील एंड फेरो एलॉय इंदौर आयरन एंड स्टील इंदौर 100 करोड़ में. नर्मदा मेटल्स एंड मिनरल्स मुंबई प्लांट फॉर आयरन जबलपुर 25 करोड़ में. टाटा मेटेलिका लि. पॉवर प्लांट मध्यप्रदेश 1000 करोड़ में. मेघालय सीमेंट लि. स्टील प्लांट, पॉवर मध्यप्रदेश 2000 करोड़ में. एबीजी एनर्जी प्रा. लि. सीमेंट प्लांट मध्यप्रदेश 1500 करोड़ में. बेलमेक्स मेंटल इंडिया स्टील एंड पॉवर मध्यप्रदेश 145 करोड़ में. हीरो एसोसिएट्स लि. एयर क्रॉफ्ट रायसेन 500 करोड़ में. सांघी इंफ्रास्ट्रक्चर एमपी लि. सीमेंट, पॉवर कैलारस 1076 करोड़ में. मां शाकाम्बरी स्टील लि. आयरन प्लांट ग्वालियर 105 करोड़ में. ऑटो मेटिव एक्सिल लि. फोर्जिग एंड मशीन पीथमपुर 110 करोड़ में. बंसल खजिन उद्योग रेड ऑक्साइड सतना 52 करोड़ में. भोजपुरिया ओवरसीज प्रा.लि. राइस मिलिंग मंडीदीप 25 करोड़ में. पॉवर टेक ग्लोबल प्रा. ट्रांसफॉर्मर मंडीदीप 60 करोड़ में. न्यू जेन स्पेशलिटी प्लॉस्टिक लि. एडवांस प्लास्टिक मालनपुर 25 करोड़ में. केएस आयरन एंड स्टील स्टील रोलिंग बामौर 70 करोड़ में. केएस मेटकॉस्ट प्रा. लि. एनएए इनगॉट बामौर 30 करोड़ में. रिजेंसी माइंनिंग प्रा. लि. आयरन ग्वालियर 21 करोड़ में. क्रुडेंट स्टील्स एंड माइंस प्रा.लि. स्टील प्लांट जबलपुर 400 करोड़

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